गाजियाबाद
। आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के विरोध में तेवर दिखा कर जेके गौड़ कहीं
सुभाष जैन को दिए गए धोखे का पश्चाताप करने तथा सुभाष जैन की 'गुड बुक' में
फिर से शामिल होने का जुगाड़ तो नहीं बैठा रहे हैं ? यह
सवाल लोगों के बीच दरअसल इसलिए पैदा हुआ, क्योंकि अगले रोटरी वर्ष में
होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में आलोक गुप्ता की
संभावित उम्मीदवारी के विरोध में एक अकेले जेके गौड़ की आवाज ही सुनाई दे
रही है - जिसे वास्तव में बेमतलब और फिजूल की कसरत के रूप में देखा/पहचाना
गया है । अगले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव अभी
अपनी प्रारंभिक अवस्था में ही है, और अभी संभावित उम्मीदवार अपनी अपनी
योजना बनाने में ही लगे हैं; इस अवस्था में समर्थन और विरोध के कोई मतलब
नहीं हैं । अगले रोटरी वर्ष के संभावित उम्मीदवारों में अभी तक आलोक गुप्ता
और ललित खन्ना के नाम सामने आए हैं, जिनके समर्थन या विरोध की नेताओं ने
अभी कोई घोषणा नहीं की है - हालाँकि चुनाव यदि सचमुच इनके बीच ही हुआ
तथा और कोई तीसरा उम्मीदवार नहीं आया तो कौन नेता किसके साथ होगा, इसका
अनुमान लगाना कोई मुश्किल नहीं है । इस बीच लेकिन एक अकेले जेके गौड़ की आवाज ही जोर से सुनाई दी है, जिसमें आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी का विरोध है ।
किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल हुआ है कि जेके गौड़ को अभी से अगले रोटरी वर्ष की आलोक
गुप्ता की संभावित उम्मीदवारी के विरोध में आवाज उठाने की जरूरत आखिर क्यों पड़ी है ?
जेके
गौड़ के नजदीकियों का कहना है कि ऐसा करके जेके गौड़ ने दरअसल सुभाष जैन के
'नजदीक' आने की कोशिश की है । इस वर्ष के चुनाव में जेके गौड़ ने सुभाष जैन
की 'पीठ में छुरा भौंकने' का जो काम किया है, आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के
विरोध में अभी से नजर आ कर, वास्तव में वह सुभाष जैन को दिए गए घाव को
भरने की कोशिश कर रहे हैं । मौजूदा वर्ष जेके गौड़ के लिए यूँ तो
'उपलब्धियों' भरा रहा है, लेकिन उपलब्धियों के लिए उन्हें भारी कीमत भी
चुकानी पड़ी है - जो उनके लिए आगे मुसीबत भरी साबित हो सकती है । आगे की
संभावित मुसीबतों को कम करने के लिए ही जेके गौड़ को आलोक गुप्ता की
उम्मीदवारी के विरोध में खड़ा होने की जल्दबाजी करना पड़ी है । जेके गौड़
की इस वर्ष की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के बड़े
समझे जाने वाले नेता रमेश अग्रवाल की 'नाक काट' ली - और कुछ ज्यादा ही काट
ली । उल्लेखनीय है कि इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव
में रमेश अग्रवाल के उम्मीदवार अशोक जैन को हरवाने में तो जेके गौड़ ने
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई ही, साथ ही इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करने
वाली नोमीनेटिंग कमेटी में जाने की रमेश अग्रवाल की योजना को भी ध्वस्त
करने में उन्होंने सफलता पाई । इन सफलताओं की बात तक तो मामला ठीक है,
लेकिन समस्या हुई है कि इन सफलताओं को पाने के लिए जेके गौड़ को सुभाष जैन
के साथ भी धोखा करना पड़ा, और सिर्फ धोखा ही नहीं करना पड़ा - मामला उनकी 'पीठ में
छुरा भौंकने' जैसा हुआ । जेके गौड़ का रोटरी का इतिहास यूँ तो धोखे का ही भरापूरा उदाहरण है - ज्यादा पुरानी बात नहीं है, जब उन्हें मुकेश अरनेजा के 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता था; लेकिन जैसे ही उन्हें अहसास हुआ कि फायदा मुकेश अरनेजा के साथ नहीं, बल्कि रमेश अग्रवाल के साथ रहने में है तो वह झट से रमेश अग्रवाल की गोद में जा बैठे । रमेश अग्रवाल के साथ जब उनका पूरा काम निकल गया, तो वह झट से उनकी गोद से उतर भी गए और उन्हें बुरा-भला कहने लगे । रमेश अग्रवाल को सबक सिखाने के चक्कर में उन्होंने सुभाष जैन के साथ भी धोखा कर दिया - और जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि सुभाष जैन के साथ उन्होंने धोखा ही नहीं किया है, बल्कि उनकी पीठ में छुरा भौंकने का काम किया है । जेके गौड़ चाहते तो रमेश अग्रवाल से सीधे ही निपट सकते थे - लेकिन उस स्थिति में वह सफलता के प्रति खुद को ही आश्वस्त नहीं कर सके, और इसलिए सफलता तक पहुँचने के लिए उन्होंने सुभाष जैन को सीढ़ी बना लिया । सुभाष जैन के जरिए जेके गौड़ ने अशोक जैन को समर्थन देने का भरोसा दिया और बदले में उम्मीद की कि रमेश अग्रवाल इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी में पहुँचने के उनके रास्ते का रोड़ा नहीं बनेंगे । यह 'डील' कर लेने के बाद भी जेके गौड़ ने अशोक जैन का समर्थन नहीं किया । दरअसल अशोक जैन को हरवा कर ही जेके गौड़ का रमेश अग्रवाल से बदला पूरा हो पाता । रमेश अग्रवाल से पूरा बदला लेने के लिए लेकिन उन्होंने जिस तरह से सुभाष जैन की पीठ में छुरा भौंका, उससे उनके लिए मामला काफी मुसीबतभरा हो गया है ।
असल में, जेके गौड़ के क्लब के कुछेक प्रमुख सदस्य सुभाष जैन के निकटवर्तियों में हैं, और उन्हें भी जेके गौड़ का सुभाष जैन के साथ धोखा करना पसंद नहीं आया है । इसके अलावा, जेके गौड़ भी जानते/समझते हैं कि भले ही उन्होंने दीपक गुप्ता का समर्थन किया है - लेकिन दीपक गुप्ता इसका कोई अहसान नहीं मानेंगे और पहले की तरह ही उन्हें अपमानित और जलील करते रहेंगे । मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल से उन्हें वैसे ही कोई उम्मीद नहीं है । ऐसे में, उन्हें भी लग रहा है कि सुभाष जैन से धोखा करके उन्होंने अपने लिए मुश्किलों को और बढ़ा लिया है । वास्तव में, इस वर्ष 'उपलब्धियों' को पाने के बाद भी - जेके गौड़ ने अपनी दशा ऐसी कर ली है, जिसमें कि वह न घर के रहे और न घाट के । डिस्ट्रिक्ट में ठीक-ठाक तरीके से बने रहने के लिए जे के गौड़ को सुभाष जैन के पास 'लौटने' का ही विकल्प सूझ रहा है । वह समझ रहे हैं कि अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद को लेकर जो भी राजनीतिक बिसात बिछेगी, उसमें सुभाष जैन किसी भी रूप में आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के साथ तो नहीं ही रहेंगे । इसलिए जेके गौड़ ने अभी से ही आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के विरोध में झंडा उठा लिया है । जेके गौड़ को विश्वास है कि उनके हाथ में यह झंडा रहेगा, तो सुभाष जैन उनसे धोखा खाने के बावजूद उन्हें अपने यहाँ जगह दे देंगे । राजनीति में वैसे भी दोस्तियाँ और दुश्मनियाँ ज्यादा दिन कहाँ चलती हैं ?