Wednesday, March 1, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के चुनाव में मुकेश कुशवाह की नियम विरुद्ध मनमानी के सामने इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे असहाय क्यों बने हुए हैं ?

कानपुर । दीप कुमार मिश्र को बेईमानीपूर्ण तरीके से सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन 'चुनवा' कर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य मुकेश कुशवाह ने इंस्टीट्यूट के नए बने प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे को खासे धर्मसंकट में फँसा दिया है । उन पर एक तरफ मुकेश कुशवाह की कारस्तानी को अनदेखा करने का दबाव है, तो दूसरी तरफ प्रेसीडेंट पद के रूप में अपने पद व इंस्टीट्यूट की गरिमा को बचाने की चुनौती है । मुकेश कुशवाह की तरफ से दावा सुना गया है कि उन्होंने नीलेश विकमसे के खास सेंट्रल काउंसिल सदस्य अनिल भंडारी से बात कर ली है और अनिल भंडारी ने उन्हें आश्वस्त किया है कि उन्होंने जो किया है, प्रेसीडेंट के रूप में नीलेश विकमसे उसे पलटेंगे नहीं । मुकेश कुशवाह इसलिए भी आश्वस्त हैं क्योंकि उनकी कारस्तानी को सेंट्रल रीजन के बाकी चार सेंट्रल काउंसिल सदस्यों में से तीन - मनु अग्रवाल, प्रकाश शर्मा तथा केमिशा सोनी का खुला समर्थन है । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में नीलेश विकमसे के जो अन्य नजदीकी हैं, उनका कहना लेकिन यह भी है कि सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के चुनाव में चुनाव अधिकारी के रूप में मुकेश कुशवाह ने जो हरकत की है - उसे लेकर नीलेश विकमसे खासे परेशान भी हैं और उनका मानना है कि इस तरह की हरकतों पर वह यदि चुप रहे तो मुकेश कुशवाह जैसे लोग इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन को अपनी कारस्तानी से बदनाम करते रहेंगे । 
मुकेश कुशवाह सहित सेंट्रल रीजन के चार सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की मनमानीभरी दादागिरी का पहला लक्षण तो तब दिखा, जब उन्होंने सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के चुनाव में वोट डालने का फैसला किया । नैतिकता का तकाजा यह कहता है कि रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के चुनाव में रीजन के सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को वोटिंग में शामिल नहीं होना चाहिए, और रीजनल काउंसिल के सदस्यों को ही पदाधिकारी चुनने देना चाहिए । मुकेश कुशवाह, मनु अग्रवाल, प्रकाश शर्मा व केमिशा सोनी ने लेकिन लगता है कि नैतिकता का पाठ पढ़ा ही नहीं है । इनकी बदकिस्मती लेकिन यह रही कि निर्लज्जता के साथ नैतिकता के पाठ की अनदेखी करने के बाद भी चेयरमैन पद के इनके उम्मीदवार दीप कुमार मिश्र को जीत नहीं मिल सकी । पंद्रह वोटों में दीप कुमार मिश्र और चेयरमैन पद के दूसरे उम्मीदवार रोहित रुवाटिया अग्रवाल को पहली वरीयता के सात-सात वोट मिले और एक वोट में पहली वरीयता का वोट नहीं दिया गया था, जबकि दूसरी वरीयता का वोट दीप कुमार मिश्र के लिए था । तर्कशील तरीके से देखें तो जो वोटर दीप कुमार मिश्र को दूसरी वरीयता का वोट दे रहा है, उसका पहली वरीयता का वोट रोहित रुवाटिया अग्रवाल के लिए ही रहा होगा - जो किसी तकनीकी गड़बड़ी के चलते मार्क नहीं हो पाया होगा । इंस्टीट्यूट का कामकाज लेकिन तर्कशीलता के आधार पर नहीं चलता है, वह ठोस साक्ष्यों के आधार पर ही काम करेगा - और इसके लिए ही नियम-कानून बनाए गए हैं । इंस्टीट्यूट के नियम-कानून के अनुसार, इस पंद्रहवें वोट को रद्द होना चाहिए था ।
मुकेश कुशवाह ने चुनाव अधिकारी के रूप में लेकिन इंस्टीट्यूट के नियम-कानून की अनदेखी करते हुए इस पंद्रहवें वोट को दीप कुमार मिश्र के खाते में जोड़ कर उन्हें विजेता घोषित कर दिया । इससे पहले मुकेश कुशवाह ने एक हरकत यह और की थी कि रोहित रुवाटिया अग्रवाल को मिले एक वोट को दीप कुमार मिश्र के खाते में जोड़ दिया था, उनकी यह हरकत लेकिन तुरंत से पकड़ में आ गई थी । रद्द हो जाने वाले वोट को गिनती में शामिल करने के मामले में भी मुकेश कुशवाह की मनमानी का आलम यह रहा कि सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के तत्कालीन चेयरमैन अभय छाजेड़ ने इंस्टीट्यूट के मुख्यालय से इस मामले में निर्देश लिया, तो संयुक्त सचिव जी रंगनाथन की तरफ से ईमेल के जरिये उनसे स्पष्ट कहा गया कि नियमानुसार उक्त वोट रद्द होगा - मुकेश कुशवाह ने लेकिन उनके फैसले को भी मानने से इंकार करते हुए दीप कुमार मिश्र को विजेता घोषित कर दिया । मुकेश कुशवाह ने चुनाव अधिकारी  के रूप में जिस निर्लज्जता के साथ इंस्टीट्यूट के नियम की ऐसीतैसी की है, उसके कारण वह अनुशासनात्मक कार्रवाई के पात्र बनते हैं - लेकिन उनका आत्मविश्वास दिखाता है कि इस मामले में उनकी इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे के साथ सेटिंग हो चुकी है, और वह आश्वस्त हैं कि उनकी हरकत के चलते न तो उनके खिलाफ कोई कार्रवाई होगी और न उनका फैसला ही बदला जायेगा ।
मुकेश कुशवाह ने चुनाव अधिकारी के रूप में जो हरकत की है, उसे जयपुर ब्रांच की राजनीति के संदर्भ में बदले की कार्रवाई के रूप में भी देखा/बताया जा रहा है । जयपुर ब्रांच पर कब्जे की लड़ाई में प्रकाश शर्मा और गौतम शर्मा की जोड़ी को श्याम लाल अग्रवाल, प्रमोद कुमार बूब व रोहित रुवाटिया अग्रवाल की तिकड़ी से मात खानी पड़ रही है । प्रकाश शर्मा और गौतम शर्मा ने रोहित रुवाटिया अग्रवाल को अपनी तरफ करने का हर संभव प्रयास किया, लेकिन उन्हें किसी भी तरह से सफलता नहीं मिली । रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के चुनाव में रीजनल काउंसिल के सदस्यों में रोहित रुवाटिया अग्रवाल का पलड़ा जब भारी दिखा, तो प्रकाश शर्मा को उन्हें दबाव में लेकर जयपुर ब्रांच पर कब्जे को लेकर सौदेबाजी करने का मौका मिला । चर्चा है कि प्रकाश शर्मा ने रोहित रुवाटिया अग्रवाल को साफ बता दिया था कि जयपुर ब्रांच के मामले में वह यदि उनके ग्रुप का समर्थन नहीं करेंगे, तो उन्हें किसी भी कीमत पर रीजनल काउंसिल का चेयरमैन नहीं बनने दिया जायेगा । जो हुआ, उसके जरिये प्रकाश शर्मा ने अपनी धमकी को सच साबित करके दिखा दिया । उल्लेखनीय है कि जयपुर को आठ वर्ष बाद रीजनल काउंसिल में चेयरमैन पद मिलने जा रहा था - जिसे लेकिन मुकेश कुशवाह, मनु शर्मा, केमिशा सोनी की मदद से प्रकाश शर्मा व गौतम शर्मा की ब्लैकमेल की राजनीति ने संभव नहीं होने दिया ।