कानपुर
। मुकेश कुशवाह ने सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल तथा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स
इंस्टीट्यूट के गौरवशाली इतिहास को कलंकित करने की जो हरकत की, उसके निशान
मिटाने के लिए इंस्टीट्यूट प्रशासन ने कदम तो उठाया है - लेकिन मुकेश
कुशवाह की हरकतों के दाग इतने गहरे हैं कि लगता नहीं है कि इंस्टीट्यूट
प्रशासन के प्रयासों के बावजूद वह पूरी तरह मिट पायेंगे । सेंट्रल
इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के चुनाव में चुनाव अधिकारी की भूमिका
निभा रहे सेंट्रल काउंसिल सदस्य मुकेश कुशवाह ने अपनी मनमानीपूर्ण बेईमानी
से दीप कुमार मिश्र को चेयरमैन 'चुनवाने' का जो कांड किया, इंस्टीट्यूट
प्रशासन ने उसे रद्द कर दिया है - और चेयरमैन पद के लिए दोबारा चुनाव कराने
का आदेश दिया है । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के इतिहास में यह
पहला मौका है, जब उसकी किसी रीजनल काउंसिल में चेयरमैन का चुनाव रद्द करके
दोबारा चुनाव कराने का निर्णय हुआ है । इंस्टीट्यूट के इतिहास में इस काले
अध्याय को जोड़ने की जिम्मेदारी के लिए मुकेश कुशवाह को याद किया जायेगा ।
इस कलंक-कथा की खास बात यह है कि मुकेश कुशवाह जब इसे 'लिख' ही रहे थे, तब
ही इंस्टीट्यूट प्रशासन की तरफ से साफ शब्दों में बता दिया गया था कि वह
जो कर रहे हैं - वह नियम विरुद्ध है और गलत है; मुकेश कुशवाह उस समय लेकिन
पद की गर्मी और अहंकार में इस कदर जकड़े हुए थे कि उन्होंने साफ साफ लिखे उन
शब्दों को कोई अहमियत ही नहीं दी ।
मुकेश कुशवाह को दरअसल उम्मीद
थी कि वह जो फैसला कर देंगे, इंस्टीट्यूट प्रशासन अंततः उसे स्वीकार कर ही
लेगा । मुकेश कुशवाह की तरफ से उस समय दावा किया भी गया था कि उन्होंने
इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे के खास
सेंट्रल काउंसिल सदस्य अनिल भंडारी से बात कर ली है और अनिल भंडारी ने
उन्हें आश्वस्त किया है कि उन्होंने जो किया है, प्रेसीडेंट के रूप में
नीलेश विकमसे उसे पलटेंगे नहीं । अनिल भंडारी से मिले आश्वासन के भरोसे
ही मुकेश कुशवाह ने इंस्टीट्यूट के संयुक्त सचिव जी रंगनाथन की तरफ से
नियमों के मिले हवाले की परवाह करने की जरूरत नहीं समझी । मुकेश कुशवाह
अपनी कारस्तानी को लेकर इसलिए भी आश्वस्त थे क्योंकि उनके किए-धरे को
सेंट्रल रीजन के बाकी चार सेंट्रल काउंसिल
सदस्यों में से तीन - मनु अग्रवाल, प्रकाश शर्मा तथा केमिशा सोनी का खुला
समर्थन मिला था । किंतु किसी का भी आश्वासन और समर्थन उनके काम नहीं आया । लोगों
का कहना/मानना है कि दरअसल मुकेश कुशवाह की जैसी छवि है, उसके चलते
इंस्टीट्यूट प्रशासन को लगा होगा कि मुकेश कुशवाह की इस हरकत पर उन्होंने
यदि कोई कार्रवाई नहीं की तो मुकेश कुशवाह का हौंसला बढ़ेगा और फिर वह अपनी
कारस्तानियों से इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन को बदनाम करते रहेंगे ।
इसलिए इंस्टीट्यूट प्रशासन की तरफ से चुनाव अधिकारी के रूप में मुकेश कुशवाह द्धारा मनमानीपूर्ण बेईमानी से कराए गए सेंट्रल
इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद के चुनाव को रद्द करके उक्त चुनाव को
दोबारा कराने का आदेश दिया गया है ।
इंस्टीट्यूट प्रशासन ने इंस्टीट्यूट के इतिहास और उसकी पहचान/प्रतिष्ठा पर मुकेश कुशवाह द्धारा पोती गई कालिख को इस तरह से पौंछने की कोशिश तो की गई है, लेकिन उसकी यह कोशिश अधिकतर लोगों को आधी-अधूरी भी लग रही है । लोगों का मानना/कहना है कि सिर्फ चेयरमैन का ही नहीं, सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल का पूरा चुनाव ही दोबारा होना चाहिए । उनका तर्क है कि रीजनल काउंसिल में पहले चेयरमैन का चुनाव होता है, और यह चुनाव बाकी पदों के लिए होने वाले चुनाव की भावभूमि और केमिस्ट्री तय करता है - इसलिए चेयरमैन के चुनाव में हुई बेईमानी ने बाकी सभी चुनावों पर अपना असर डाला है, इसलिए इंस्टीट्यूट प्रशासन यदि वास्तव में न्याय करना चाहता है तो उसे पूरा चुनाव दोबारा कराना चाहिए; अन्यथा चेयरमैन पद के लिए दोबारा होने वाला चुनाव महज खानापूर्ति करना होगा । मुकेश कुशवाह की मनमानीपूर्ण बेईमानी के चलते चेयरमैन पद पाने से वंचित रहे रोहित रुवाटिया अग्रवाल के समर्थकों व शुभचिंतकों को भी लगता है कि तीन सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के समर्थन के बूते मुकेश कुशवाह जो बेईमानी कर सके, उसके चलते दोबारा होने वाले चुनाव में 'वास्तविक चुनाव' नहीं हो सकेगा - और रोहित रुवाटिया अग्रवाल के साथ सचमुच न्याय नहीं हो पायेगा । समर्थकों व शुभचिंतकों की तरफ से रोहित रुवाटिया अग्रवाल को सलाह दी जा रही है कि उन्हें सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के सभी पदों का चुनाव दोबारा कराने हेतु इंस्टीट्यूट प्रशासन को राजी करने के लिए उपलब्ध सभी विकल्पों पर विचार करना चाहिए ।
सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद के लिए दोबारा चुनाव होने की स्थिति ने सेंट्रल काउंसिल सदस्य प्रकाश शर्मा के लिए खासी मुसीबत खड़ी कर दी है । माना/समझा जाता है कि रद्द हुए चुनाव में प्रकाश शर्मा ने रोहित रुवाटिया अग्रवाल को समर्थन नहीं दिया था । इसके लिए जयपुर और राजस्थान में उन्हें भारी आलोचना का शिकार होना पड़ा है । लोगों ने उन्हें याद दिलाया कि सेंट्रल काउंसिल की अपनी उम्मीदवारी के लिए उन्होंने जयपुर और राजस्थान का वास्ता देकर ही समर्थन जुटाया था, और अगले चुनाव में भी उन्हें यही 'वास्ता' देना पड़ेगा - ऐसे में जयपुर और राजस्थान को चेयरमैन 'मिलने' के मौके के साथ उन्होंने धोखा क्यों कर दिया ? प्रकाश शर्मा समय के साथ जयपुर और राजस्थान के लोगों के 'घाव' के भरने का इंतजार कर रहे थे कि दोबारा चुनाव होने/कराने की घोषणा ने उनके घावों को कुरेद कर फिर से ताजा कर दिया है । प्रकाश शर्मा और उनके नजदीकियों को यह डर सता रहा है कि चेयरमैन पद के लिए दोबारा होने वाले चुनाव में रोहित रुवाटिया अग्रवाल यदि नहीं जीते, तो जयपुर और राजस्थान में लोग इसके लिए प्रकाश शर्मा को ही जिम्मेदार ठहरायेंगे और इसका खामियाजा उन्हें अगले चुनाव में भुगतना पड़ सकता है ।
सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद के लिए दोबारा होने वाले चुनाव का नतीजा क्या होगा, इसका जबाव तो जल्दी ही मिल जायेगा - लेकिन दोबारा चुनाव होने की स्थिति ने मुकेश कुशवाह की बेईमानीपूर्ण कारस्तानी पर जो मोहर लगाई है और प्रकाश शर्मा के लिए जो मुसीबत खड़ी की है, उसने सेंट्रल रीजन में एक दिलचस्प नजारा खड़ा किया है ।
इंस्टीट्यूट प्रशासन ने इंस्टीट्यूट के इतिहास और उसकी पहचान/प्रतिष्ठा पर मुकेश कुशवाह द्धारा पोती गई कालिख को इस तरह से पौंछने की कोशिश तो की गई है, लेकिन उसकी यह कोशिश अधिकतर लोगों को आधी-अधूरी भी लग रही है । लोगों का मानना/कहना है कि सिर्फ चेयरमैन का ही नहीं, सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल का पूरा चुनाव ही दोबारा होना चाहिए । उनका तर्क है कि रीजनल काउंसिल में पहले चेयरमैन का चुनाव होता है, और यह चुनाव बाकी पदों के लिए होने वाले चुनाव की भावभूमि और केमिस्ट्री तय करता है - इसलिए चेयरमैन के चुनाव में हुई बेईमानी ने बाकी सभी चुनावों पर अपना असर डाला है, इसलिए इंस्टीट्यूट प्रशासन यदि वास्तव में न्याय करना चाहता है तो उसे पूरा चुनाव दोबारा कराना चाहिए; अन्यथा चेयरमैन पद के लिए दोबारा होने वाला चुनाव महज खानापूर्ति करना होगा । मुकेश कुशवाह की मनमानीपूर्ण बेईमानी के चलते चेयरमैन पद पाने से वंचित रहे रोहित रुवाटिया अग्रवाल के समर्थकों व शुभचिंतकों को भी लगता है कि तीन सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के समर्थन के बूते मुकेश कुशवाह जो बेईमानी कर सके, उसके चलते दोबारा होने वाले चुनाव में 'वास्तविक चुनाव' नहीं हो सकेगा - और रोहित रुवाटिया अग्रवाल के साथ सचमुच न्याय नहीं हो पायेगा । समर्थकों व शुभचिंतकों की तरफ से रोहित रुवाटिया अग्रवाल को सलाह दी जा रही है कि उन्हें सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के सभी पदों का चुनाव दोबारा कराने हेतु इंस्टीट्यूट प्रशासन को राजी करने के लिए उपलब्ध सभी विकल्पों पर विचार करना चाहिए ।
सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद के लिए दोबारा चुनाव होने की स्थिति ने सेंट्रल काउंसिल सदस्य प्रकाश शर्मा के लिए खासी मुसीबत खड़ी कर दी है । माना/समझा जाता है कि रद्द हुए चुनाव में प्रकाश शर्मा ने रोहित रुवाटिया अग्रवाल को समर्थन नहीं दिया था । इसके लिए जयपुर और राजस्थान में उन्हें भारी आलोचना का शिकार होना पड़ा है । लोगों ने उन्हें याद दिलाया कि सेंट्रल काउंसिल की अपनी उम्मीदवारी के लिए उन्होंने जयपुर और राजस्थान का वास्ता देकर ही समर्थन जुटाया था, और अगले चुनाव में भी उन्हें यही 'वास्ता' देना पड़ेगा - ऐसे में जयपुर और राजस्थान को चेयरमैन 'मिलने' के मौके के साथ उन्होंने धोखा क्यों कर दिया ? प्रकाश शर्मा समय के साथ जयपुर और राजस्थान के लोगों के 'घाव' के भरने का इंतजार कर रहे थे कि दोबारा चुनाव होने/कराने की घोषणा ने उनके घावों को कुरेद कर फिर से ताजा कर दिया है । प्रकाश शर्मा और उनके नजदीकियों को यह डर सता रहा है कि चेयरमैन पद के लिए दोबारा होने वाले चुनाव में रोहित रुवाटिया अग्रवाल यदि नहीं जीते, तो जयपुर और राजस्थान में लोग इसके लिए प्रकाश शर्मा को ही जिम्मेदार ठहरायेंगे और इसका खामियाजा उन्हें अगले चुनाव में भुगतना पड़ सकता है ।
सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद के लिए दोबारा होने वाले चुनाव का नतीजा क्या होगा, इसका जबाव तो जल्दी ही मिल जायेगा - लेकिन दोबारा चुनाव होने की स्थिति ने मुकेश कुशवाह की बेईमानीपूर्ण कारस्तानी पर जो मोहर लगाई है और प्रकाश शर्मा के लिए जो मुसीबत खड़ी की है, उसने सेंट्रल रीजन में एक दिलचस्प नजारा खड़ा किया है ।