पानीपत । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन अनेजा ने
जितेंद्र ढींगरा को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी डेजिग्नेटिड घोषित करके
राजेंद्र उर्फ राजा साबू गिरोह के कई नेताओं और सदस्यों को बुरी तरह निराश
किया है । निराश होने वाले इन नेताओं और सदस्यों को उम्मीद थी कि जिस
तरह से दो वर्ष पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी डेजिग्नेटिड चुने जाने वाले
टीके रूबी के लिए बखेड़ा खड़ा किया गया था, उसी तरह इस बार जितेंद्र ढींगरा
को भी लपेटा जायेगा । गिरोह के दो नेताओं - मधुकर मल्होत्रा और प्रमोद विज
ने तो लोगों के बीच घोषणा भी की थी कि वह किसी भी कीमत पर जितेंद्र ढींगरा
को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की कुर्सी तक नहीं बढ़ने देंगे । मधुकर मल्होत्रा
ने तर्क भी दिया था कि टीके रूबी के साथ जो हुआ, वह वास्तव में जितेंद्र
ढींगरा के साथ 'लड़ाई' के चलते हुआ; उनके अनुसार, लड़ाई टीके रूबी से नहीं
बल्कि जितेंद्र ढींगरा से थी - टीके रूबी तो घुन के रूप में पिसे । मधुकर
मल्होत्रा और प्रमोद विज के तेवरों के चलते लोगों को यह देखने का इंतजार था
कि जितेंद्र ढींगरा से निपटने के लिए राजा साबू गिरोह के लोग क्या हथकंडा
अपनाते हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन अनेजा की घोषणा ने लेकिन तमाशा
होने के इंतजार को खत्म कर दिया और जितेंद्र ढींगरा से 'लड़ने' की घोषणा
करने वाले मधुकर मल्होत्रा व प्रमोद विज जैसे 'वीरों' को चुप रह जाने के
लिए मजबूर होना पड़ा ।
मधुकर मल्होत्रा और प्रमोद विज के नजदीकियों के अनुसार, राजा साबू ने कुछ न करने की सख्त हिदायत दी थी, जिस कारण इन्हें न चाहते हुए भी चुप रहने के लिए मजबूर होना पड़ा । दरअसल टीके रूबी के मामले में राजा साबू को जिस फजीहत का सामना करना पड़ा और उनकी 'महानता' का छप्पर जिस तरह तिनका तिनका बिखर गया, उसके कारण राजा साबू की फिर से एक नई लड़ाई छेड़ देने की हिम्मत हुई नहीं । टीके रूबी के मामले में उल्लेखनीय है कि राजा साबू और उनके गिरोह के लोग टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने से रोकने में तो कामयाब रहे, लेकिन इसके ऐवज में राजा साबू को बड़ी भारी 'कीमत' चुकानी पड़ी है । इस बात को मधुकर मल्होत्रा और प्रमोद विज जैसे लोग नहीं समझ पायेंगे - वास्तव में इन्होंने तो कुछ खोया नहीं; ये ऐसे लोग हैं जो 'बदनामी' को भी उपलब्धि मानते हैं - बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हुआ । किंतु टीके रूबी से निपटने के चक्कर में राजा साबू की तो जीवन भर की सारी 'कमाई' लुट गई । राजा साबू ने बड़ी मेहनत से रोटरी में अपना एक आभामंडल बनाया था - जिसमें उनके प्रति सम्मान भी था, और उनका डर भी था । अधिकतर लोग उनके प्रति सम्मान का भाव ही रखते थे, और जो नहीं रखते थे - वह उनसे डरते थे, और डर के चलते चुप रहते थे । लेकिन टीके रूबी से निपटने के चक्कर में उन्होंने अपनी ऐसी भद्द पिटवाई कि रोटरी में उन्होंने सम्मान भी खोया और लोगों ने उनसे डरना भी बंद कर दिया ।
टीके रूबी से पहले, डिस्ट्रिक्ट में हालत यह थी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के जिन भी उम्मीदवारों को राजा साबू का नाम लेकर कह दिया जाता था कि राजा साबू अभी तुम्हें गवर्नर के रूप में देखने के लिए तैयार नहीं हैं, तो वह उम्मीदवार बेचारे घर बैठ जाते थे । पहली बार टीके रूबी ने राजा साबू के 'फतबे' को चुनौती दी, तो राजा साबू अपने पूरे दल-बल के साथ उन पर पिल पड़े । इस लड़ाई के नतीजे को लेकर राजा साबू खुद कंफ्यूज हुए कि नतीजे को वह अपनी जीत के रूप में देखें या अपनी तबाही भरी हार के रूप में देखें । टीके रूबी से निपटने के चक्कर में राजा साबू की तरफ से जो और जैसी हरकतें हुईं, उनके कारण पूरे रोटरी समाज में उनकी जमकर थू थू हुई; उनकी हरकतों के बारे में लोगों ने चटखारे ले ले कर बातें कीं - हर किसी का कहना रहा कि राजा साबू का असली चेहरा देख कर वह मायूस हुए हैं, और वह सोच भी नहीं सकते थे कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के पद पर रह चुका व्यक्ति इस तरह की हरकतें करेगा, या अपने डिस्ट्रिक्ट में होने देगा । राजा साबू की सबसे ज्यादा बुरी दशा तो उनके अपने डिस्ट्रिक्ट में हुई - जहाँ दो वर्ष पहले तक उनके कहे हुए शब्द 'वेद-वाक्य' की तरह लिए जाते थे और उनसे कोई सवाल करने की हिम्मत नहीं कर पाता था, वहाँ अब हालत यह हो गई कि उनसे जुड़े मामलों में लोग न सिर्फ उनसे सवाल करने लगे, बल्कि उनके जबाव से संतुष्ट न होने पर प्रतिसवाल तक करने लगे । आयोजनों में लोगों को अपनी उपेक्षा करते देख उन्हें तगड़ा झटका लगा, और उन्हें खुद लोगों के पास जाकर पूछना पड़ा कि 'तुम मुझे इग्नोर तो नहीं कर रहे हो न ?'
राजा साबू के निकटवर्तियों को उम्मीद तो हालाँकि नहीं थी कि टीके रूबी के चक्कर में राजा साबू को जो चौतरफा फजीहत झेलना पड़ी है, उससे राजा साबू कोई सबक लेंगे - लेकिन जितेंद्र ढींगरा के मामले में राजा साबू की तरफ से जिस तरह का समर्पण हुआ है, उसे देखते हुए लोगों को लगा है कि राजा साबू ने अपने नुकसान की भरपाई करने के बारे में सोचना शुरू कर दिया है । दरअसल राजा साबू को यह देखकर भी खासा तगड़ा झटका लगा कि उनके और उनके 'सैनिकों' के विरोध के बावजूद जितेंद्र ढींगरा को नोमीनेटिंग कमेटी में एकतरफा समर्थन मिला और नौ में से आठ सदस्यों के पहली वरीयता के वोट पाकर जितेंद्र ढींगरा अधिकृत उम्मीदवार चुने गए । इस नतीजे से राजा साबू ने भाँप लिया कि डिस्ट्रिक्ट में हवा पूरी तरह उनके खिलाफ है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लगता है कि इस नजारे को देख कर भी राजा साबू ने समझ लिया होगा कि अभी जितेंद्र ढींगरा और नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले से पंगा लेना उचित नहीं होगा और इस फैसले के सामने समर्पण करने में ही भलाई है । राजा साबू के बारे में रोटरी में हालाँकि (कु)ख्यात है कि वह अपने विरोधियों को भूलते नहीं हैं और जब जैसे जहाँ मौका मिलता है, उनसे बदला लेने का पूरा पूरा प्रयास करते हैं । इसलिए लोगों को लगता है कि राजा साबू ने अभी भले ही जितेंद्र ढींगरा की जीत के सामने समर्पण कर दिया हो, लेकिन मौका मिलने पर वह जितेंद्र ढींगरा के सामने अवश्य ही मुश्किलें खड़ी करेंगे । वह सब जब होगा, तब देखा जायेगा - अभी लेकिन जितेंद्र ढींगरा को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी डेजिग्नेटिड घोषित करने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन अनेजा की घोषणा पर डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने राहत की साँस लेते हुए खुशी जाहिर की है ।
मधुकर मल्होत्रा और प्रमोद विज के नजदीकियों के अनुसार, राजा साबू ने कुछ न करने की सख्त हिदायत दी थी, जिस कारण इन्हें न चाहते हुए भी चुप रहने के लिए मजबूर होना पड़ा । दरअसल टीके रूबी के मामले में राजा साबू को जिस फजीहत का सामना करना पड़ा और उनकी 'महानता' का छप्पर जिस तरह तिनका तिनका बिखर गया, उसके कारण राजा साबू की फिर से एक नई लड़ाई छेड़ देने की हिम्मत हुई नहीं । टीके रूबी के मामले में उल्लेखनीय है कि राजा साबू और उनके गिरोह के लोग टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने से रोकने में तो कामयाब रहे, लेकिन इसके ऐवज में राजा साबू को बड़ी भारी 'कीमत' चुकानी पड़ी है । इस बात को मधुकर मल्होत्रा और प्रमोद विज जैसे लोग नहीं समझ पायेंगे - वास्तव में इन्होंने तो कुछ खोया नहीं; ये ऐसे लोग हैं जो 'बदनामी' को भी उपलब्धि मानते हैं - बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हुआ । किंतु टीके रूबी से निपटने के चक्कर में राजा साबू की तो जीवन भर की सारी 'कमाई' लुट गई । राजा साबू ने बड़ी मेहनत से रोटरी में अपना एक आभामंडल बनाया था - जिसमें उनके प्रति सम्मान भी था, और उनका डर भी था । अधिकतर लोग उनके प्रति सम्मान का भाव ही रखते थे, और जो नहीं रखते थे - वह उनसे डरते थे, और डर के चलते चुप रहते थे । लेकिन टीके रूबी से निपटने के चक्कर में उन्होंने अपनी ऐसी भद्द पिटवाई कि रोटरी में उन्होंने सम्मान भी खोया और लोगों ने उनसे डरना भी बंद कर दिया ।
टीके रूबी से पहले, डिस्ट्रिक्ट में हालत यह थी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के जिन भी उम्मीदवारों को राजा साबू का नाम लेकर कह दिया जाता था कि राजा साबू अभी तुम्हें गवर्नर के रूप में देखने के लिए तैयार नहीं हैं, तो वह उम्मीदवार बेचारे घर बैठ जाते थे । पहली बार टीके रूबी ने राजा साबू के 'फतबे' को चुनौती दी, तो राजा साबू अपने पूरे दल-बल के साथ उन पर पिल पड़े । इस लड़ाई के नतीजे को लेकर राजा साबू खुद कंफ्यूज हुए कि नतीजे को वह अपनी जीत के रूप में देखें या अपनी तबाही भरी हार के रूप में देखें । टीके रूबी से निपटने के चक्कर में राजा साबू की तरफ से जो और जैसी हरकतें हुईं, उनके कारण पूरे रोटरी समाज में उनकी जमकर थू थू हुई; उनकी हरकतों के बारे में लोगों ने चटखारे ले ले कर बातें कीं - हर किसी का कहना रहा कि राजा साबू का असली चेहरा देख कर वह मायूस हुए हैं, और वह सोच भी नहीं सकते थे कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के पद पर रह चुका व्यक्ति इस तरह की हरकतें करेगा, या अपने डिस्ट्रिक्ट में होने देगा । राजा साबू की सबसे ज्यादा बुरी दशा तो उनके अपने डिस्ट्रिक्ट में हुई - जहाँ दो वर्ष पहले तक उनके कहे हुए शब्द 'वेद-वाक्य' की तरह लिए जाते थे और उनसे कोई सवाल करने की हिम्मत नहीं कर पाता था, वहाँ अब हालत यह हो गई कि उनसे जुड़े मामलों में लोग न सिर्फ उनसे सवाल करने लगे, बल्कि उनके जबाव से संतुष्ट न होने पर प्रतिसवाल तक करने लगे । आयोजनों में लोगों को अपनी उपेक्षा करते देख उन्हें तगड़ा झटका लगा, और उन्हें खुद लोगों के पास जाकर पूछना पड़ा कि 'तुम मुझे इग्नोर तो नहीं कर रहे हो न ?'
राजा साबू के निकटवर्तियों को उम्मीद तो हालाँकि नहीं थी कि टीके रूबी के चक्कर में राजा साबू को जो चौतरफा फजीहत झेलना पड़ी है, उससे राजा साबू कोई सबक लेंगे - लेकिन जितेंद्र ढींगरा के मामले में राजा साबू की तरफ से जिस तरह का समर्पण हुआ है, उसे देखते हुए लोगों को लगा है कि राजा साबू ने अपने नुकसान की भरपाई करने के बारे में सोचना शुरू कर दिया है । दरअसल राजा साबू को यह देखकर भी खासा तगड़ा झटका लगा कि उनके और उनके 'सैनिकों' के विरोध के बावजूद जितेंद्र ढींगरा को नोमीनेटिंग कमेटी में एकतरफा समर्थन मिला और नौ में से आठ सदस्यों के पहली वरीयता के वोट पाकर जितेंद्र ढींगरा अधिकृत उम्मीदवार चुने गए । इस नतीजे से राजा साबू ने भाँप लिया कि डिस्ट्रिक्ट में हवा पूरी तरह उनके खिलाफ है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लगता है कि इस नजारे को देख कर भी राजा साबू ने समझ लिया होगा कि अभी जितेंद्र ढींगरा और नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले से पंगा लेना उचित नहीं होगा और इस फैसले के सामने समर्पण करने में ही भलाई है । राजा साबू के बारे में रोटरी में हालाँकि (कु)ख्यात है कि वह अपने विरोधियों को भूलते नहीं हैं और जब जैसे जहाँ मौका मिलता है, उनसे बदला लेने का पूरा पूरा प्रयास करते हैं । इसलिए लोगों को लगता है कि राजा साबू ने अभी भले ही जितेंद्र ढींगरा की जीत के सामने समर्पण कर दिया हो, लेकिन मौका मिलने पर वह जितेंद्र ढींगरा के सामने अवश्य ही मुश्किलें खड़ी करेंगे । वह सब जब होगा, तब देखा जायेगा - अभी लेकिन जितेंद्र ढींगरा को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी डेजिग्नेटिड घोषित करने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन अनेजा की घोषणा पर डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने राहत की साँस लेते हुए खुशी जाहिर की है ।