Saturday, March 25, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 - यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए रमेश बजाज की उम्मीदवारी जितेंद्र ढींगरा के लिए चुनौती क्यों है ?

पानीपत । रमेश बजाज ने वर्ष 2018-19 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद हेतु समर्थन जुटाने के लिए हाल ही में जिन शहरों का दौरा किया है, वहाँ के रोटेरियंस - खासकर क्लब्स के अध्यक्षों की प्रतिक्रिया ने उनके और अभी हाल ही में चुने गए वर्ष 2019-20 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा के सामने गंभीर चुनौती खड़ी कर दी है । अधिकतर रोटेरियंस ने रमेश बजाज की उम्मीदवारी को लेकर नकारात्मक प्रतिक्रिया ही व्यक्त की है; यह बात रमेश बजाज और जितेंद्र ढींगरा के लिए गंभीर चुनौती की इसलिए है - क्योंकि नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले लोगों में उन लोगों की संख्या भी अच्छी-खासी है, जो जितेंद्र ढींगरा के नजदीक और समर्थक रहे हैं । इन लोगों का कहना है कि जितेंद्र ढींगरा के नजदीक और समर्थक होने का यह अर्थ तो नहीं है कि हम हमेशा उन्हीं के कहने पर वोट डालेंगे । हालाँकि इन्हीं नजदीकियों और समर्थकों में से कुछ का कहना है कि जितेंद्र ढींगरा जब रमेश बजाज के लिए समर्थन जुटाने निकलेंगे, तब अपने नजदीकियों और समर्थकों को रमेश बजाज के समर्थन के लिए राजी कर लेंगे । जितेंद्र ढींगरा के नजदीकियों और समर्थकों का यूँ भी कहना है कि रमेश बजाज की उम्मीदवारी प्रस्तुत होने से वह खुश तो नहीं हैं, लेकिन अंततः उन्हें रहना तो रमेश बजाज के पक्ष में ही होगा ।
रमेश बजाज की उम्मीदवारी दो परस्पर विरोधी 'वैचारिक' ध्रुवों के बीच है : उनकी उम्मीदवारी को उनके अपने खेमे के लोगों के बीच पसंद भी नहीं किया जा रहा है, लेकिन साथ ही उनके जीतने को लेकर हर कोई आश्वस्त भी है । दरअसल बाकी जो उम्मीदवार हैं, उनकी उम्मीदवारी में लोगों को कोई करंट नहीं नजर आ रहा है । डॉक्टर सुधीर चौधरी की उम्मीदवारी को लेकर लोगों के बीच हमदर्दी का भाव तो है, लेकिन लोगों की इस हमदर्दी को वोट में बदलने का मैकेनिज्म डॉक्टर सुधीर चौधरी के पास नहीं दिख रहा है । कपिल गुप्ता को लेकर उम्मीद की गई थी कि सत्ता खेमे में 'वजनदार' उम्मीदवार की जो कमी महसूस की जा रही है, वह उसे पूरा करेंगे और चुनावी मुकाबले को प्रतिस्पर्द्धी बनायेंगे; पूरी तरह से किसी निर्णय पर पहुँचना हालाँकि अभी जल्दबाजी करना होगा, लेकिन अभी तक के जो संकेत हैं उससे लगता नहीं है कि कपिल गुप्ता अपनी उम्मीदवारी को मुकाबले में ला पायेंगे । इस तरह, दूसरे उम्मीदवारों की कमजोरियाँ रमेश बजाज की उम्मीदवारी को मजबूती देती हैं - और इसी आधार पर रमेश बजाज के नजदीकियों व समर्थकों को लगता है कि तमाम विरोधों और प्रतिकूलताओं के बावजूद रमेश बजाज को चुनावी कामयाबी अंततः मिल ही जाएगी ।
रमेश बजाज को तमाम विरोधों और प्रतिकूलताओं के बावजूद कामयाबी मिलने की यही आश्वस्ति - वास्तव में खुद रमेश बजाज और जितेंद्र ढींगरा के लिए चुनौती बनी है । चुनौती इसलिए कि इस आश्वस्ति के चलते इनके लिए यह तय करना मुश्किल हो रहा है कि रमेश बजाज की उम्मीदवारी के प्रति जो विरोध है, खुद इनके अपने लोगों के बीच जो विरोध है - उसे अनदेखा कर दें, या उसे खत्म करने के लिए कोई कार्रवाई करें ? यह सवाल दरअसल इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि जितेंद्र ढींगरा के सामने चुनौती यह है कि उन्हें यह तय करना है कि उन्हें डिस्ट्रिक्ट का एक आम गवर्नर बनना है - जैसे बाकी गवर्नर हैं; या एक खास गवर्नर बनना है - जिसे डिस्ट्रिक्ट में एक नया माहौल बनाना है । डिस्ट्रिक्ट में कुछेक गवर्नर हैं, जो हर वर्ष अपने अपने उम्मीदवारों को हवा देते हैं - उनमें से कोई किसी वर्ष कामयाब होता है, तो कोई अन्य किसी वर्ष सफल हो जाता है । जितेंद्र ढींगरा के ही कई नजदीकियों का कहना है कि दूसरे गवर्नर जो करते रहे हैं, उसके चलते खुद जितेंद्र ढींगरा कभी फायदे में रहे हैं, तो कभी नुकसान उठाने के लिए मजबूर हुए हैं - इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि अब जब जितेंद्र ढींगरा खुद उस खेल के एक खिलाड़ी हो गए हैं, तो वह खेल को पहले की ही तरह चलने देना चाहेंगे, या खेल को बदलने का प्रयास करेंगे ।
इसीलिए वर्ष 2018-19 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए होने वाले चुनाव की केमिस्ट्री और उसका गणित - सिर्फ एक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का ही चुनाव नहीं करेगा, बल्कि डिस्ट्रिक्ट की आगे की चुनावी राजनीति तथा दशा-दिशा को भी तय करेगा । रमेश बजाज की उम्मीदवारी के नजदीक दिखने से बचने की जो कोशिश जितेंद्र ढींगरा की तरफ से होती हुई दिख रही है, उससे लगता है कि जितेंद्र ढींगरा अपनी भूमिका को लेकर अभी जैसे अनिश्चय में हैं और - चुनावी राजनीति के दूसरे 'ठेकेदारों' जैसा व्यवहार करने से बचना चाहते हैं । जितेंद्र ढींगरा के सम्मान में होने वाले कार्यक्रमों में तो रमेश बजाज की उपस्थिति और उनकी उम्मीदवारी का प्रमोशन होता हुआ दिखा है, लेकिन उसके अलावा जितेंद्र ढींगरा ने अभी तक रमेश बजाज की उम्मीदवारी के लिए कुछ करने से बचने का ही प्रयास किया है । जितेंद्र ढींगरा के इस रवैये ने रमेश बजाज के लिए चुनौती बढ़ा दी है - क्योंकि जितेंद्र ढींगरा के ही कई नजदीकियों और समर्थकों ने रमेश बजाज की उम्मीदवारी के प्रति नाखुशी दिखाई/जताई है । ऐसे में, रमेश बजाज को यदि जितेंद्र ढींगरा की खुली मदद के बिना ही अपना चुनाव लड़ना पड़ता है, तो इससे जितेंद्र ढींगरा के 'खेमे' में एक अलग तरह की केमिस्ट्री बनने की स्थितियाँ बनेंगी । यही कारण है कि बहुत अनुकूलताओं और जीत की आश्वस्ति की बावजूद रमेश बजाज की उम्मीदवारी डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को गहरे से प्रभावित करेगी - और यही चीज रमेश बजाज और जितेंद्र ढींगरा के लिए अलग अलग रूप में चुनौती की बात है ।