इंदौर । इंदौर ब्रांच के दूसरे वर्ष के पदाधिकारियों के चुनाव में एक्सऑफिसो सदस्य के रूप में इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल की सदस्य केमिशा सोनी ने जिस तरह की मनमानियाँ कीं, उससे उनके समर्थकों व शुभचिंतकों तक को तगड़ा झटका लगा है - और उनके लगे झटके ने इंस्टीट्यूट की इंदौर की राजनीति में उथल-पुथल मचने के संकेत दिए हैं । इस प्रसंग ने इंदौर में केमिशा सोनी की बदनामी में और इजाफा किया है । केमिशा सोनी की बढ़ती बदनामी और उनके समर्थकों व शुभचिंतकों के भी उनके खिलाफ होते जाने से विष्णु झावर उर्फ़ काका जी
और मनोज फडनिस को इंदौर की राजनीति में अपनी खोई हुई जमीन वापस मिलने की
उम्मीद होने लगी है, और उन्होंने इस बारे में अपने प्रयास भी तेज कर दिए
हैं । उल्लेखनीय है कि पिछले चुनाव में केमिशा सोनी ने इन्हें कड़ी टक्कर दी
थी, और इंदौर की राजनीति में इनके प्रभुत्व को धूल चटा दी थी; हालाँकि उस
समय भी माना/समझा गया था कि विष्णु झावर और मनोज फडनिस को केमिशा सोनी ने
नहीं, बल्कि उनकी खुद की चौधराहटभरी कार्रवाइयों ने हराया है । विष्णु झावर के 'आशीर्वाद' से नियंत्रित होने वाली इंस्टीट्यूट की
इंदौर की राजनीति से लोग इतने त्रस्त हो गए थे कि पिछले चुनाव में उनके
सेंट्रल काउंसिल व रीजनल काउंसिल के उम्मीदवारों को हार का शिकार होना पड़ा
था । यह हार इसलिए और उल्लेखनीय बन गई थी क्योंकि मनोज फडनिस के
इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट होने के बावजूद उन्हें यह हार मिली थी ।
उम्मीद की गई थी कि विष्णु झावर और मनोज फडनिस का हाल देखकर केमिशा सोनी
सबक लेंगी और वह गलतियाँ नहीं करेंगी जो विष्णु झावर और मनोज फडनिस ने कीं -
और जिनके कारण उन्हें फजीहत झेलना पड़ी ।
लेकिन लोगों ने पाया कि केमिशा सोनी तो उनकी भी 'गुरु' साबित हो रही हैं । पिछले एक वर्ष में इंदौर ब्रांच के कामकाज में उनका जैसा हस्तक्षेप रहा है, उससे लोगों को लगा है जैसे इंदौर ब्रांच को वह अपना निजी ऑफिस मान रही हैं और ब्रांच के पदाधिकारियों व सदस्यों को अपने ऑफिस के कर्मचारी के रूप में देख रही हैं । लोगों का कहना है कि उनका रवैया तो विष्णु झावर और मनोज फडनिस से भी बुरा है - यह लोग मनमानी और पक्षपात तो करते थे, लेकिन ऐसा करते हुए दूसरों को बेइज्जत नहीं करते थे; केमिशा सोनी विरोधियों को तो छोड़िये, अपने समर्थकों तक का लिहाज नहीं करतीं हैं और वह यदि उनकी बात मानते हुए नहीं दिखते हैं तो उन्हें भी बुरी तरह
झिड़क देती हैं । इंदौर ब्रांच में पिछले वर्ष चेयरपर्सन रहीं गर्जना राठौर
शुरू में केमिशा सोनी के समर्थकों में देखी/पहचानी जाती थीं, लेकिन केमिशा
सोनी के निरंतर बने रहने वाले हस्तक्षेप व दबाव से वह इतनी परेशान हो उठीं
कि कार्यकाल पूरा होते होते वह केमिशा सोनी के विरोधियों के नजदीक दिखाई देने लगीं । सबसे दिलचस्प मामला निलेश गुप्ता का है : रीजनल काउंसिल के सदस्य निलेश गुप्ता खेमेबाजी के संदर्भ में यूँ
तो केमिशा सोनी वाले खेमे में 'होते' हैं, लेकिन कई मौकों पर उन्हें
केमिशा सोनी के रवैये पर इर्रीटेट होते हुए देखा गया है । निलेश गुप्ता के
नजदीकियों का कहना है कि सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल की राजनीति में
निलेश गुप्ता चूँकि केमिशा सोनी की 'राजनीति' का समर्थन नहीं करते हैं,
इसलिए इंदौर ब्रांच के मामलों में केमिशा सोनी उन्हें अक्सर हड़काती रहती हैं - इंदौर ब्रांच में राजनीतिक खेमेबाजी का जो तानाबाना है, उसके कारण निलेश गुप्ता चूँकि केमिशा सोनी के साथ रहने के लिए मजबूर हैं, इसलिए मनमसोस कर वह अपमानित होते रहते हैं ।
इंदौर ब्रांच के सदस्यों को ही नहीं, रीजनल काउंसिल के सदस्यों को भी अभी चार दिन पहले इंदौर ब्रांच के दूसरे वर्ष के
पदाधिकारियों के चुनाव में केमिशा सोनी की मनमानियों का शिकार होना पड़ा ।
इस चुनाव में पहला झमेला तो चेयरमैन के चुनाव को लेकर हुआ - केमिशा सोनी ने
इंस्टीट्यूट के नए बने नियम के हवाले से वाइस चेयरमैन को ही चेयरमैन बनाने
के लिए दबाव बनाया; ब्रांच के बहुमत सदस्य लेकिन मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के एक फैसले का
हवाला देते हुए चेयरमैन पद के लिए चुनाव कराने की माँग कर रहे थे - केमिशा
सोनी ने लेकिन हाईकोर्ट के फैसले को मानने/अपनाने से इंकार कर दिया ।
केमिशा सोनी ने हाईकोर्ट के फैसले की ही अवमानना नहीं की, बल्कि
इंस्टीट्यूट के उक्त नियम के उस प्रावधान की भी अवहेलना की जो ब्रांच के
दो-तिहाई सदस्यों को अधिकार देता है कि वह यदि एकमत हों तो चेयरमैन पद के
लिए चुनाव कर सकते हैं । इससे भी बड़ी बात यह कि एक्सऑफिसो सदस्य के रूप में
केमिशा सोनी को ब्रांच के चुनाव को गवर्न करने का नैतिक अधिकार ही नहीं था
- ब्रांच के पदाधिकारियों का चुनाव ब्रांच के सदस्यों को ही करने देना
चाहिए था; लेकिन ब्रांच पर अपना कब्जा बनाये रखने के लिए केमिशा सोनी ने
न नैतिकता की परवाह की, न हाईकोर्ट के फैसले को स्वीकार किया और न
इंस्टीट्यूट के नियम को ही माना । ऐसा करते हुए उन्होंने ब्रांच के सदस्यों
और रीजनल काउंसिल सदस्यों को तरह तरह से हड़काया व अपमानित किया, सो अलग ।
चेयरमैन
पद 'हथियाने' के बाद केमिशा सोनी ने बाकी पदों पर भी नजर गड़ाई और उन्हें
कब्जाने के लिए भी चालें चलीं - कुछेक पदों पर लेकिन उन्हें मात भी खानी पड़ी; इस सारे नज़ारे को लोगों ने बहुत ही बुरे प्रसंग के रूप में देखा और रेखांकित किया है । केमिशा
सोनी के रवैये से इंदौर ब्रांच में पहली बार यह हुआ कि एक्सऑफिसो सदस्यों
ने ब्रांच के पदाधिकारियों के चुनाव में वोट डाले - और इस तरह ब्रांच के सदस्यों की हैसियत घटाने का काम हुआ । पहली बार अल्पमत का व्यक्ति चेयरमैन बना है । ब्रांचेज के संचालन में एक अलिखित 'नियम' है कि ब्रांच के पदाधिकारियों का चुनाव ब्रांच के सदस्यों को ही करना चाहिए तथा एक्सऑफिसो सदस्यों को उनके अभिभावक तथा उनके सलाहकार
के रूप में ही रहना चाहिए । जो नेता लोग ब्रांचेज में अपना प्रभुत्व बनाना
चाहते हैं और बना कर रखना चाहते हैं, वह भी और चाहें जो उठापटक करें -
लेकिन इस 'लक्ष्मणरेखा' को पार करने से बचते हैं; केमिशा सोनी ने लेकिन इस 'लक्ष्मणरेखा' की मर्यादा की कोई परवाह नहीं की और इस तरह इंदौर ब्रांच के इतिहास में काला पन्ना जोड़ा ।
केमिशा सोनी की इस
कार्रवाई को लेकर इंदौर में नाराजगी का जो माहौल बना है, उसने विष्णु झावर
तथा मनोज फडनिस व उनके नजदीकियों को खासा उत्साहित किया है । उन्हें उम्मीद बंधी है कि केमिशा सोनी की जिस तेजी से लोगों के बीच बदनामी बढ़ रही है, और उनके समर्थक ही उनसे खफा और दूर होते जा रहे हैं - उससे उन्हें इंदौर की राजनीति में अपनी वापसी करने का मौका आसानी से मिल जायेगा ।