Thursday, March 23, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के चुनाव में गुरचरण सिंह भोला को मिलती दिख रही बढ़त को यशपाल अरोड़ा ब्लड बैंक से जुड़ी जेपी सिंह की बदनामी और अगले लायन वर्ष के पदों के बँटवारे के जरिये रोक सकेंगे क्या ?

नई दिल्ली । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के क्लब्स के बीच गुरचरण सिंह भोला की बढ़ती स्वीकार्यता का मुकाबला करने के लिए यशपाल अरोड़ा के समर्थकों ने जेपी सिंह पर लगे ब्लड बैंक के आरोपों को जिस तरह दोबारा से 'हथियार' बनाया है, उससे सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव खासा दिलचस्प हो गया है । मजे की बात यह देखने में आ रही है कि जेपी सिंह की बदनामी की छड़ी से जेपी सिंह की उम्मीदवारी को 'पीटने' की बजाए गुरचरण सिंह भोला की उम्मीदवारी को चोट पहुँचाने की कोशिश की जा रही है । इससे सत्ता खेमे के नेताओं की रणनीति का यह अंतर्विरोध सामने आ रहा है कि उन्होंने इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी वाले चुनाव की बजाए अपना सारा ध्यान और जोर सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव पर केंद्रित कर लिया है, और इसीलिए उन्होंने जेपी सिंह की बदनामी की छड़ी से जेपी सिंह की उम्मीदवारी को पीटना छोड़ कर गुरचरण सिंह भोला की उम्मीदवारी को निशाना बनाना शुरू कर दिया है । उल्लेखनीय है कि गुरचरण सिंह भोला की उम्मीदवारी के खिलाफ शुरू से ही ब्लड बैंक से जुड़ी जेपी सिंह की बदनामी को इस्तेमाल किया गया है; लेकिन लगता है कि सत्ता खेमे के नेताओं का यह फार्मूला कामयाब नहीं हुआ; और जेपी सिंह की भारी बदनामी के बावजूद गुरचरण सिंह भोला का पलड़ा पहले मुकेश गोयल और फिर यशपाल अरोड़ा पर भारी साबित होता गया है । अब जब चुनाव नजदीक आ पहुँचा है, तब एक फिर गुरचरण सिंह भोला की उम्मीदवारी की बढ़ती दिख रही बढ़त को रोकने के लिए यशपाल अरोड़ा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने जेपी सिंह की बदनामी को ही जिस तरह से मुद्दा बनाने का प्रयास शुरू किया है - उससे लग रहा है कि गुरचरण सिंह भोला की उम्मीदवारी को कमजोर करने/बनाने के लिए उनके पास रणनीति का खासा अभाव है ।
लायनिज्म में गुरचरण सिंह भोला की तुलना में यशपाल अरोड़ा के बेहतर प्रोफाइल का भी यशपाल अरोड़ा को फायदा नहीं हो सका है । इस आधार पर भी हालाँकि यशपाल अरोड़ा और उनके समर्थकों ने हवा बनाने की कोशिश की थी और तर्क दिए थे कि गुरचरण सिंह भोला की तुलना में यशपाल अरोड़ा डिस्ट्रिक्ट में चूँकि ज्यादा पदों पर रहे हैं, इसलिए लायनिज्म में उन्होंने ज्यादा काम किया है और उनका अनुभव गुरचरण सिंह भोला से ज्यादा है । लेकिन यह फार्मूला भी उनके काम नहीं आया । चुनावी राजनीति में दरअसल सिर्फ इस तरह की बातों के ही भरोसे फायदा नहीं मिलता है । राष्ट्रीय राजनीति से संदर्भ लें - तो पाते हैं कि दिल्ली में कांग्रेस, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और पंजाब में अकाली-भाजपा को भरोसा था कि उन्होंने चूँकि बहुत काम किए हैं, इसलिए उन्हें हराना संभव नहीं है; किंतु बहुत काम करने के बावजूद तीनों ही न सिर्फ हारे, बल्कि बुरी तरह से हारे । चुनाव दरअसल स्थितियों/परिस्थितियों के मैनेजमेंट से भी प्रभावित होता है - इसीलिए स्थितियों/परिस्थितियों के मामले में 'भारी' होने के बावजूद यशपाल अरोड़ा को गुरचरण सिंह भोला के सामने मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है । यशपाल अरोड़ा को सत्ता खेमे का एकतरफा समर्थन है, लायनिज्म का उनका प्रोफाइल बढ़िया है, प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार पर जेपी सिंह की बदनामी का भार लटका हुआ है - लेकिन फिर भी प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार गुरचरण सिंह भोला से उन्हें कड़ी टक्कर मिल रही है, तो इसका कारण यही माना/समझा जा रहा है कि उनके चुनावी मैनेजमेंट में भारी कमी है ।
गुरचरण सिंह भोला और उनके समर्थक नेताओं ने संगठित व योजनाबद्ध तरीके से अभियान चलाया है, जबकि यशपाल अरोड़ा और उनके समर्थक नेताओं का अभियान बिखरा-बिखरा सा रहा है; इसी का नतीजा रहा कि यशपाल अरोड़ा और उनके समर्थक नेता न तो अपने कुनबे को एक रख सके - और न अपने समर्थकों व शुभचिंतकों की सामर्थ्य का उचित और पूरा फायदा उठा सके हैं । गुरचरण सिंह भोला के समर्थक नेताओं ने दिल्ली में विनय सागर जैन तथा हरियाणा में नरेंद्र गोयल को अपनी तरफ मिला कर सत्ता खेमे को तगड़ा झटका दिया । अपने कुनबे को संभाले रखने में असफल रहे सत्ता खेमे के लोग अपनी असफलता पर पर्दा डालने की कोशिश करते हुए विनय सागर जैन और नरेंद्र गोयल को ही कोसते रहे । गुरचरण सिंह भोला और उनके समर्थक नेताओं ने क्लब्स के पदाधिकारियों तथा प्रमुख लोगों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए योजनाबद्ध रूप से हर तरकीब भिड़ाई - उन्होंने अपनी कमजोरियों और कमियों को पहचानते हुए उन्हें दूर करने का हर संभव प्रयास किया; दूसरी तरफ यशपाल अरोड़ा और उनके समर्थक नेताओं ने यह समझने/मानने का प्रयास ही नहीं किया कि उनकी कोई कमजोरी और कमी भी है - वह अधिकतर समय इसी भरोसे रहे कि गुरचरण सिंह भोला को लायनिज्म का कुछ पता नहीं है, और जेपी सिंह की लोगों के बीच बदनामी है । यशपाल अरोड़ा और उनके समर्थक नेताओं ने गुरचरण सिंह भोला और जेपी सिंह की कमजोरियों और कमियों को तो बढ़ा-चढ़ा कर देखा, लेकिन अपनी कमजोरियों और कमियों की तरफ से आँखें बंद रखीं - और इसलिए उन्हें इस बात का आभास भी नहीं हुआ कि कैसे और कब हालात उनके लिए मुश्किल भरे हो गए ।
यशपाल अरोड़ा और उनके समर्थक नेताओं के बीच परस्पर अविश्वास और तालमेल के अभाव का दिलचस्प उदाहरण यह है कि बीमारी के चलते यशपाल अरोड़ा जब उम्मीदवारी से पीछे हट गए थे, और उनकी जगह मुकेश गोयल उम्मीदवार थे - तब यशपाल अरोड़ा ने ही गुरचरण सिंह भोला को जोरदार तरीके से हौंसला व प्रोत्साहन देने का काम किया था । संभवतः यशपाल अरोड़ा को यह बात पसंद नहीं आई थी कि उनके पीछे हटने का फायदा उनके अपने खेमे के मुकेश गोयल को मिले, उक्त फायदा वह अपने लगभग-पड़ोसी गुरचरण सिंह भोला को 'देना' चाहते थे - इसलिए जब/तब वह गुरचरण सिंह भोला को समझाते रहते थे कि 'पीछे मत हटना', 'डटे रहना', 'मेहनत करोगे तो जरूर कामयाब होगे', आदि-इत्यादि । उस समय यशपाल अरोड़ा को इस बात की भनक भी नहीं थी कि हालात पलटेंगे और गुरचरण सिंह भोला को वह जो सबक दे रहे हैं, वह सबक मुकेश गोयल के लिए नहीं बल्कि खुद उनके लिए भारी पड़ेंगे । यशपाल अरोड़ा ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि पड़ोसी-धर्म निभाने की आड़ में गुरचरण सिंह भोला को प्रोत्साहित करने के जरिये मुकेश गोयल के लिए वह जो खड्डा खोद रहे हैं, उसमें खुद उनके गिरने का खतरा पैदा हो जायेगा ।
गुरचरण सिंह भोला की उम्मीदवारी के अभियान को मिलती दिख रही सफलता से अब जब यशपाल अरोड़ा और उनके समर्थकों को खतरा महसूस हुआ है, तब उन्होंने ब्लड बैंक से जुड़ी जेपी सिंह की बदनामी और अगले लायन वर्ष के पदों के बँटवारे के जरिये अपनी स्थिति को सुधारने के लिए कमर कसी है । यशपाल अरोड़ा और उनके समर्थक नेताओं को भरोसा है कि जेपी सिंह की बदनामी का वास्ता देकर तथा अगले लायन वर्ष के पदों का ऑफर देकर वह जरूरी वोटों की व्यवस्था कर लेंगे तथा गुरचरण सिंह भोला को मिलती नजर आ रही सफलता को रोक लेंगे । चुनाव के नजदीक आते आते सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के दोनों उम्मीदवारों और उनके समर्थक नेताओं की सक्रियताओं व गतिविधियों में जिस तरह की तेजी आई है, उसने डिस्ट्रिक्ट के चुनावी परिदृश्य को रोमांचपूर्ण बना दिया है ।