Thursday, March 9, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 - यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट की कॉन्फ्रेंस में डिस्ट्रिक्ट ग्रांट के बारे में पूछे गए मोहिंदर पॉल गुप्ता के सवाल में रीचआउट टू अफ्रीका प्रोजेक्ट के जिक्र पर राजा साबू के भड़कने से प्रोजेक्ट की फंडिंग तथा उसके खर्च को लेकर लगने वाले आरोप और भी गंभीर हो उठे हैं

करनाल/चंडीगढ़ । करनाल में आयोजित हुई डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में पूछे गए एक सवाल में रीचआउट टू अफ्रीका प्रोजेक्ट का जिक्र सुन कर राजेंद्र उर्फ राजा साबू के गुस्से में आग-बबूला हो जाने के पीछे के रहस्य की पर्तें धीरे-धीरे खुल रही हैं - और जैसे जैसे सच्चाई लोगों के सामने आ रही है, राजा साबू का असली रूप लोगों के सामने प्रकट हो रहा है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जब रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के वरिष्ठ पूर्व अध्यक्ष मोहिंदर पॉल गुप्ता ने अपने एक सवाल में रीचआउट टू अफ्रीका प्रोजेक्ट का संदर्भ दिया, तो राजा साबू बुरी तरह बौखला गए थे और गुस्से से तमतमाते हुए वह अपनी सीट छोड़ कर हॉल के बीच आ गए थे और लोगों से सवाल करने लगे थे कि उन्हें रीचआउट टू अफ्रीका प्रोजेक्ट नहीं करना चाहिए क्या ? उनके इस व्यवहार और सवाल पर हॉल में मौजूद अधिकतर लोग तो हक्के-बक्के रह गए थे और उनके बीच जो जबाव मिला वह यही कि - जरूर करना चाहिए । रीचआउट टू अफ्रीका प्रोजेक्ट राजा साबू के क्लब का एक महत्त्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है, और इसके पीछे की पूरी सोच सचमुच बहुत शानदार सोच है । इस प्रोजेक्ट से किसी को भी भला क्या ऐतराज हो सकता है ? मोहिंदर पॉल गुप्ता ने इस प्रोजेक्ट के होने या न होने को लेकर सवाल नहीं उठाया था; उनका सवाल तो डिस्ट्रिक्ट ग्रांट के दुरुपयोग को लेकर था, जिसमें संदर्भ के रूप में रीचआउट टू अफ्रीका प्रोजेक्ट की फंडिंग का जिक्र था - लोगों के लिए यह समझना मुश्किल हुआ कि प्रोजेक्ट की फंडिंग के बारे में पूछे गए सवाल का सीधा-सीधा जबाव देने की बजाए, सवाल से राजा साबू इस कदर बौखला क्यों गए ? राजा साबू की बौखलाहट 'बता' रही थी जैसे कि मोहिंदर पॉल गुप्ता के उक्त सवाल ने राजा साबू को भरी सभा में 'रंगे हाथ' पकड़ लिया था - जिससे बचने के लिए राजा साबू को अपना गुस्सा दिखा कर अपने लिए सहानुभूति जुटाने का नाटक करना पड़ा ।
राजा साबू के इस नाटक में राजा-भक्ति दिखाते हुए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेपीएस सिबिया ने भी अतिथि कलाकार की भूमिका निभाने की कोशिश की, किंतु राजा साबू ने उन्हें जब अपना मुँह बंद रखने की हिदायत दी तो फिर वह चुप लगा गए । जेपीएस सिबिया ने दरअसल सुझाव दिया कि रीचआउट टू अफ्रीका प्रोजेक्ट होने या न होने को लेकर उपस्थिति लोगों के बीच वोटिंग करा ली जाए । कुछ ही वर्ष पहले राजा साबू के हाथों से आउटस्टैंडिंग डिस्ट्रिक्ट चेयरमैन का अवॉर्ड ले चुके मोहिंदर पॉल गुप्ता ने कहा कि लोगों को पूरी बात बताई जाए और फिर वोटिंग करा ली जाए । मोहिंदर पॉल गुप्ता के तेवर देख कर राजा साबू ने मामले की नाजुकता को पहचाना और जेपीएस सिबिया को अपना मुँह बंद रखने को कहा । राजा-भक्ति में जेपीएस सिबिया ने जिस तत्परता के साथ अपना मुँह खोला था, राजा-झिड़की के बाद उसी तत्परता से उन्होंने फिर अपना मुँह बंद कर लिया - और वोटिंग की बात भी फिर गायब हो गई । राजा साबू ने भी मामले को जल्दी से समेट लिया - वह समझ रहे थे कि मामले में बात यदि आगे बढ़ी तो फिर उनकी सारी पोल पट्टी अभी यहीं खुल जायेगी । राजा साबू ने तो मामले को समेट लिया, किंतु लोगों के मन में यह सवाल बना ही रहा कि मोहिंदर पॉल गुप्ता के सवाल में आखिर ऐसा क्या था जिससे कि राजा साबू ने अपना आपा खो दिया और वह बुरी तरह बौखला गए ?
कॉन्फ्रेंस के बाद जिन लोगों ने इस बारे में सच्चाई समझने/जानने की कोशिश की, उन्हें यह जानकर गहरा धक्का लगा कि राजा साबू जैसे व्यक्ति ने सेवा कार्यों की आड़ में कैसे कैसे कारनामे किये हुए हैं, और जैसे ही उनके कारनामे सामने आने को हुए वह अपने गुस्से को दिखाते हुए लोगों को भावनात्मक रूप से भड़काने का प्रयास करने लगे । मोहिंदर पॉल गुप्ता का सवाल वास्तव में डिस्ट्रिक्ट ग्रांट को लेकर था; उनका आरोप था कि डिस्ट्रिक्ट ग्रांट को कुछ ही क्लब मनमाने तरीके से इस्तेमाल करते हैं और उसे दिखा कर मैचिंग ग्रांट ले लेते हैं - जिसे ऐसे कामों में खर्च किया जाता है जो डिस्ट्रिक्ट की भौगोलिक सीमाओं से दूर-दराज होते हैं । मोहिंदर पॉल गुप्ता का कहना था कि इससे रोटरी की बुनियादी सोच का उल्लंघन होता है । इसी संदर्भ में उन्होंने राजा साबू के क्लब के रीचआउट टू अफ्रीका प्रोजेक्ट का जिक्र किया, जिस पर राजा साबू बुरी तरह भड़क गए । उनके भड़कने से लोगों का ध्यान रीचआउट टू अफ्रीका प्रोजेक्ट की फंडिंग संरचना पर गया तो इसमें चल रही धोखाधड़ी की पोल खुली । मजे की बात यह है कि रीचआउट टू अफ्रीका प्रोजेक्ट की फंडिंग को लेकर कई बार सवाल उठे हैं, लेकिन कभी भी लोगों को इसका जबाव नहीं मिला । जो तथ्य चर्चा में आया है, वह यह है कि राजा साबू पहले तो डिस्ट्रिक्ट ग्रांट से इस प्रोजेक्ट के लिए पैसे ले लेते हैं, फिर इस पैसे से मैचिंग ग्रांट का जुगाड़ करते हैं और फिर इस पैसे से समाज सेवा करते हुए अपनी फोटो खिंचवाते हैं । राजा साबू ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में लोगों से पूछा था कि उन्हें यह प्रोजेक्ट करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए ? लोग अब उसका जबाव देते हुए कह रहे हैं कि राजा साबू को यह प्रोजेक्ट अवश्य करना चाहिए - किंतु अपने पैसे से करना चाहिए; डिस्ट्रिक्ट ग्रांट पर डिस्ट्रिक्ट के दूसरे क्लब्स का भी अधिकार हैं, उन्हें भी डिस्ट्रिक्ट ग्रांट इस्तेमाल करने का मौका मिलना चाहिए ।
रीचआउट टू अफ्रीका प्रोजेक्ट धोखाधड़ीभरी फंडिंग संरचना के कारण ही विवाद में नहीं है, बल्कि अपनी 'प्रकृति' के कारण भी संदिग्ध बना हुआ है । यह प्रोजेक्ट उस मशहूर कहावत/शिक्षा का मजाक बनाता है - जिसमें कहा गया है कि 'चैरिटी बिगिन्स एट होम' । मैं यदि अपने पड़ोसियों/नजदीकियों की मुश्किलों व परेशानियों की अनदेखी करके दूर-दराज के लोगों की मुश्किलों व परेशानियों को दूर करने की बात करता हूँ, तो वास्तव में मैं धूर्तता और पाखंड का परिचय दे रहा होता हूँ । रीचआउट टू अफ्रीका प्रोजेक्ट के जरिये राजा साबू अपना ऐसा ही परिचय दे रहे हैं । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि कुछ वर्ष पहले राजा साबू का क्लब चंडीगढ़ में गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल चलाया करता था, जिसमें कुछ हजार रुपए वार्षिक का खर्च आता था - लेकिन जिसे पैसों की कमी के कारण बंद कर दिया गया । चंडीगढ़ में गरीब बच्चों के लिए स्कूल को चलाते रहने में राजा साबू ने कोई दिलचस्पी नहीं ली, इसीलिए अफ्रीका के बच्चों के लिए उनकी दिलचस्पी सवालों के घेरे है । लोगों को लगता है कि राजा साबू दिखावे के लिए लिए सेवा करते हैं - और इसलिए ही वहीं सेवा करते हैं जहाँ बड़ा दिखावा किया जा सकने की संभावना बनती है । अब चंडीगढ़ में गरीब बच्चों का स्कूल चलाने में तो कोई 'फायदा' नहीं है, इसलिए उसे बंद कर देने में ही अक्लमंदी है; लेकिन अफ्रीकी देशों में बच्चों का ईलाज कराने में फायदा ही फायदा है - लोगों के बीच आरोपपूर्ण चर्चा है कि रीचआउट टू अफ्रीका प्रोजेक्ट के नाम पर अफ्रीकी देशों में जाकर राजा साबू अपने बिजनेस के लिए संभावनाएँ जुगाड़ने का काम करते हैं । किसी की भी समझ में यह बात नहीं आती है कि अफ्रीकी देशों में बच्चों का ईलाज करने के लिए जाने वाली डॉक्टर्स की टीम में राजा साबू क्यों और क्या करने जाते हैं ?
रीचआउट टू अफ्रीका प्रोजेक्ट की फंडिंग संरचना तथा उसके खर्च का हिसाब-किताब देने में राजा साबू जिस तरह से बचने की कोशिश करते हैं, उससे अफ्रीकी बच्चों के ईलाज के नाम पर चलने वाले इस प्रोजेक्ट में पैसों की हेराफेरी के आरोपों को भी बल मिला है । लोगों का कहना है कि इस तरह के आरोपों की चर्चा को रोकने का सबसे अच्छा और आसान तरीका है कि राजा साबू फंडिंग और खर्च का सारा ब्यौरा सार्वजनिक कर दें - इससे आरोप लगाने वालों का मुँह अपने आप बंद हो जायेगा । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में डिस्ट्रिक्ट ग्रांट के बारे में पूछे जाने वाले मोहिंदर पॉल गुप्ता के सवाल में रीचआउट टू अफ्रीका प्रोजेक्ट का जिक्र आने से राजा साबू जिस तरह भड़के, उससे उक्त आरोप और भी गंभीर हो उठे हैं ।