Monday, April 29, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में हार सुरेश जिंदल की नहीं, अजय बुद्धराज की हुई है और जीत का सेहरा वीके हंस के साथ-साथ विजय शिरोहा के सिर भी बँधा है

नई दिल्ली । सुरेश जिंदल की चुनावी पराजय के रूप में आख़िरकार वही घटित हुआ, जिसके घटने की इबारत दीवार पर पिछले कई दिनों से साफ-साफ लिखी नजर आ रही थी । इस इबारत को हर कोई स्पष्ट रूप से पढ़ पा रहा था; केवल सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थक कुछेक - सभी नहीं, सिर्फ कुछेक नेता ही इसे नहीं पढ़ पा रहे थे । सुरेश जिंदल की पराजय की इबारत को पढ़ तो वह भी रहे थे, लेकिन उन्हें चूँकि सुरेश जिंदल से पैसे ऐंठने थे इसलिए वह जो 'पढ़' रहे थे, उसे स्वीकार नहीं कर रहे थे । उनके लिए सुरेश जिंदल को झाँसे में बनाये रखना जरूरी था - और इसीलिये वह सुरेश जिंदल को लगातार आश्वस्त किये हुए थे कि जैसे भी होगा और जो भी करना होगा 'हम तुम्हें जितवायेंगे ।' वोटों की गिनती के मौके पर मौजूद एक वरिष्ठ लायन नेता ने इन पंक्तियों के लेखक को बताया कि वोटों की गिनती जब पूरी हो चुकी थी और रिजल्ट घोषित किया जाने वाला था, तब भी सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थक नेता उनके जीतने का दावा कर रहे थे और उनसे बकाया रकम बसूल रहे थे । सुरेश जिंदल से पूरा पैसा बसूलने के बाद ही रिजल्ट घोषित होने दिया गया ।
चुनावी नतीजे के रिकॉर्ड के अनुसार सुरेश जिंदल चुनाव हारे हैं - पर वह तो सिर्फ इस्तेमाल हो रहे थे; इसलिए वास्तव में वह नहीं हारे हैं । हारे तो उनके समर्थक नेता हैं - उनके समर्थक नेताओं में भी कुछेक तो बेचारे पहले से ही हारे हुए-से हैं, इसलिए उनकी हार कोई नई बात नहीं है - जैसे हर्ष बंसल और चंद्रशेखर मेहता । हर्ष बंसल के बारे में जो कहा जाता रहा है, वह एक बार फिर सच साबित हुआ कि हर्ष बंसल जिसके साथ हैं उसे तो फिर कोई भी नहीं बचा सकता । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन को राजनीतिक रूप से कुछ पाना/खोना नहीं था - उनकी चिंता तो डिस्ट्रिक्ट कांफ्रेंस के खर्चे का जुगाड़ हो जाने तथा ड्यूज मिल जाने तक की थी, जिसे उन्होंने सुरेश जिंदल को फाँस लेने के साथ पूरा कर लिया । बड़ा दाँव अजय बुद्धराज का था । अजय बुद्धराज पिछले कई वर्षों से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के सबसे ताकतवर नेता 'बने हुए' थे । उनकी अच्छी चौधराहट चल रही थी, लेकिन उनकी दो समस्याएँ थीं - एक तो यह कि उनका ग्रुप 'डीके अग्रवाल ग्रुप' के नाम से जाना/पहचाना जाता था और दूसरी यह कि उनकी चौधराहट दीपक टुटेजा पर आश्रित थी । इन दोनों कारणों से उन्हें कई बार यह लगता था - यह इसलिए भी लगता था क्योंकि दूसरे लोग उन्हें इसका अहसास कराते रहते थे - कि उनसे ज्यादा अहमियत इन दोनों को मिलती है । डीके अग्रवाल को नाम के कारण और दीपक टुटेजा को काम के कारण ।
सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी में अजय बुद्धराज को इन दोनों समस्याओं से एक साथ छुटकारा पाने का मौका नजर आया । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी का जो ब्ल्यू प्रिंट राकेश त्रेहन ने उन्हें दिखाया उसमें अजय बुद्धराज ने 'देखा' कि सुरेश जिंदल की जीत के साथ ही उनका ग्रुप 'डीके अग्रवाल ग्रुप' नहीं, बल्कि 'अजय बुद्धराज ग्रुप' के नाम से जाना/पहचाना जायेगा और दीपक टुटेजा पर भी उनकी निर्भरता ख़त्म हो जायेगी; लोगों का यह मानना/कहना भी झूठ साबित हो जायेगा कि अजय बुद्धराज की मुट्ठी बंद है इसलिए वह लाख की लगती है, खुलेगी तो पता चलेगा कि वह तो खाक की है । इसी भरोसे और उम्मीद में अजय बुद्धराज ने सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया । अजय बुधराज जानते थे कि चुनाव सुरेश जिंदल का नहीं है, बल्कि उनका है और इसीलिये इस बार के चुनाव में उन्होंने जितनी भागदौड़ की, इससे पहले कभी नहीं की थी । लेकिन चुनावी नतीजे ने बताया है कि उनकी भागदौड़ का उन्हें कोई फायदा नहीं मिला और उनकी जिस मुट्ठी को खाक का समझा/पहचाना जा रहा था, वह सही ही समझा/पहचाना जा रहा था । इसीलिये सुरेश जिंदल की चुनावी हार वास्तव में अजय बुद्धराज की हार है । सुरेश जिंदल की चुनावी पराजय के साथ अजय बुद्धराज की चौधराहट और उनकी नेतागिरी की पोल खुल गई है ।
जीता कौन ? चुनावी नतीजे के रिकॉर्ड के अनुसार जीत तो वीके हंस की हुई है लेकिन उनकी उम्मीदवारी पर दाँव बहुतों का लगा था इसलिए जीत उन उन लोगों की भी है । दीपक टुटेजा के सामने भी कठिन परीक्षा की घड़ी थी । उल्लेखनीय है कि जब दीपक टुटेजा, अरुण पुरी और दीपक तलवार ने वीके हंस की उम्मीदवारी का समर्थन करने का फैसला किया था, तब अजय बुद्धराज ने अरुण पुरी और दीपक तलवार को मनाने का तो जोरदार प्रयास किया था; लेकिन दीपक टुटेजा के मामले में उनका रवैया 'जाता है तो जाये' वाला था । अजय बुद्धराज को दरअसल साबित ही यह करना था कि वह दीपक टुटेजा के समर्थन के बिना भी चुनाव जीत/जितवा सकते हैं । इसीलिये उन्होंने दीपक टुटेजा को वापस अपने साथ लाने का कोई प्रयास नहीं किया । ऐसे में, दीपक टुटेजा के सामने यह साबित करने की चुनौती थी कि अजय बुद्धराज की नेतागिरी के पीछे उनके काम की ताकत थी । राजिंदर बंसल और केएल खट्टर के सामने प्रदीप जैन की चुनावी हार से मिले दाग को धोने का लक्ष्य था । सबसे बड़ी और गंभीर चुनौती लेकिन विजय शिरोहा के सामने थी ।
सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के जरिये, राकेश त्रेहन और अजय बुद्धराज ने जो ताना-बाना बुना था - उसका मूल उद्देश्य दरअसल विजय शिरोहा को घेरना, उन्हें अपमानित करना और उन्हें अलग-थलग कर देने का ही था । विजय शिरोहा के साथ राकेश त्रेहन का झगड़ा तो कई बार लोगों के सामने आया है । राकेश त्रेहन को लगता है कि उनकी कई 'योजनाएँ' विजय शिरोहा के कारण ही फेल हुई हैं, इसलिए उनके लिए विजय शिरोहा से बदला लेना जरूरी हुआ । अजय बुद्धराज को राकेश त्रेहन की बदले की कार्रवाई में यह फायदा नजर आया कि विजय शिरोहा अलग-थलग पड़ेंगे तो दीपक टुटेजा कमजोर होंगे । विजय शिरोहा के लिए यह चुनाव जीने/मरने जैसा मामला था । विजय शिरोहा ने इसी रूप में इसे लिया भी । उन्होंने अपने चुनाव में उतनी मेहनत नहीं की थी, जितनी उन्हें इस चुनाव में करनी पड़ी । मेहनत के साथ-साथ विजय शिरोहा ने जिस तरह की रणनीति अपनाई, उसने उनके विरोधियों को भी चकरा कर रखा । चुनाव वाले दिन राकेश त्रेहन लोगों को मजे ले ले कर बता रहे थे कि पिछले पाँच/छह दिनों में उन्होंने विजय शिरोहा को अपने घर के कई कई चक्कर कटवाए हैं । राकेश त्रेहन इसी बात से खुश दिखे कि विजय शिरोहा ने उनके घर के कई कई चक्कर काटे, वह यह देखने/समझने में विफल रहे कि उनके घर के चक्कर काट काट कर विजय शिरोहा ने उन्हें ऐसा 'बाँध दिया' कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वह सुरेश जिंदल के लिए जो कुछ कर सकते थे उसे वह कर ही नहीं पाए । सुरेश जिंदल और उनके नजदीकियों के लिए राकेश त्रेहन का रवैया खासा पहेलीभरा रहा - चुनावी नतीजा घोषित होने के बाद उनका आरोप रहा कि राकेश त्रेहन या तो विजय शिरोहा से जा मिले थे और या विजय शिरोहा ने उन्हें ऐसा फँसा दिया था कि उनके पास करने को कुछ रह ही नहीं गया था ।
विजय शिरोहा ने राकेश त्रेहन को फँसा कर उन्हें 'बेकार' तो बाद में किया था, उससे पहले उन्होंने केएल खट्टर और राजिंदर बंसल के साथ अपने तार जोड़ कर विरोधी खेमे के उन नेताओं को हैरान कर दिया था, जो यह मान कर चल रहे थे कि विजय शिरोहा इन दोनों के साथ 'बैठने' के लिए तैयार ही नहीं होंगे । विजय शिरोहा खुद तो इनके साथ बैठे ही, केएल खट्टर और सुशील खरिंटा जैसे धुर विरोधियों को भी उन्होंने एक साथ बैठा दिया । सिर्फ इतना ही नहीं, केएल खट्टर और राजिंदर बंसल के साथ दीपक टुटेजा और अरुण पुरी को बैठाने का कमाल भी विजय शिरोहा ने ही किया । यह काम कर भी वही सकते थे । हरियाणा फोरम के झंडे तले हालाँकि केएल खट्टर और राजिंदर बंसल ने कम भागदौड़ नहीं की, लेकिन उनकी भागदौड़ को वोट में बदलने और भरोसे का संगठित रूप देने का काम विजय शिरोहा ने ही किया । राकेश त्रेहन और अजय बुद्धराज की राजनीति वास्तव में विजय शिरोहा का गलत आकलन करने के कारण ही पिटी । इन दोनों का मानना था कि विजय शिरोहा के बस की राजनीति करना नहीं है ।
राजिंदर बंसल की पहल और सक्रियता से बने हरियाणा फोरम का झंडा जब विजय शिरोहा के हाथ में थमाया गया था तब राकेश त्रेहन और अजय बुद्धराज ने मजाक उड़ाते हुए कहा था कि राजिंदर बंसल और केएल खट्टर ने विजय शिरोहा को फँसा दिया है तथा अपने गले में पड़ा मरा हुआ साँप उन्होंने विजय शिरोहा के गले में डाल दिया है । बाद की घटनाओं ने लेकिन साबित किया कि राजिंदर बंसल की चाल कामयाब रही और विजय शिरोहा पर भरोसा करने का अच्छा नतीजा मिला । वीके हंस की चुनावी जीत में यूँ तो बहुत लोगों का सहयोग रहा, लेकिन यदि किसी एक का नाम लेने की शर्त हो तो निस्संदेह वह नाम विजय शिरोहा का ही होगा । यहाँ इस तथ्य को याद करना प्रासंगिक होगा कि वीके हंस की उम्मीदवारी के समर्थन में जो नेता जुटे, उन्होंने वीके हंस का समर्थन करने से शुरुआत नहीं की थी - वह तो सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं द्धारा अलग-थलग कर दिए गए थे और उनके बीच भी कई कई तरह के झगड़े-झंझट थे । उनके सामने पहले तो अपने अपने झगड़े-झंझट भूलकर और या उन्हें निपटा कर एकजुट होने की चुनौती थी, फिर उन्हें अपना एक उम्मीदवार चुनना था, उस उम्मीदवार को भरोसा दिलाना था और फिर उस भरोसे को क्रियान्वित करना था - इतना सब करने में केंद्रीय भूमिका विजय शिरोहा ने निभाई । वीके हंस की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की खूबियों और कमियों का आकलन करें तो पायेंगे कि यह केंद्रीय भूमिका विजय शिरोहा ही निभा सकते थे । राजिंदर बंसल ने शायद इसी आकलन के चलते कमान विजय शिरोहा को सौंप दी थी । विजय शिरोहा की जिस खूबी को देख पाने में राकेश त्रेहन और अजय बुद्धराज विफल रहे थे, उस खूबी को राजिंदर बंसल ने पहचान लिया था । नतीजा सबके सामने है । इसीलिये कहा जा सकता है कि चुनावी नतीजे के चलते सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद मिलेगा तो वीके हंस को और सुरेश जिंदल के लिए यह पद दूर हो गया है - किंतु इस चुनाव में हार वास्तव में अजय बुद्धराज की हुई है और जीत का सेहरा विजय शिरोहा के सिर बँधा है ।

Thursday, April 25, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में ऐसी दासन को लेकर की गई बेहूदा बयानबाजी सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थकों की हार को नजदीक देखने से पैदा हुई बौखलाहट का नतीजा है क्या

नई दिल्ली । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थकों ने लायंस क्लब दिल्ली वेस्ट के वरिष्ठ सदस्य ऐसी दासन को लेकर जो फूहड़ और बदतमीजी भरी बयानबाजी की, उसके कारण सुरेश जिंदल को दिल्ली में मिल सकने वाले समर्थन में और कमी आ जाने की चर्चा है । मामले पर लीपापोती करने और नुकसान की भरपाई करने के लिए सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने ऎसी दासन से माफी तो माँगी ही है, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन ने उन्हें मल्टीपल की कांफ्रेंस में अवार्ड दिलवाने का लालच भी दिया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन और सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के दूसरे समर्थक नेताओं ने उम्मीद यह लगाई है कि इस तरह की बातों से वह ऐसी दासन को पटा लेंगे और उनके साथ हुई बदतमीजी के कारण हुए नुकसान को भर लेंगे । लेकिन उनकी बदकिस्मती यह है कि उन्होंने मामले को संभालने की जैसी जो कोशिश की उससे मामला बिगड़ और गया है । लायंस क्लब दिल्ली वेस्ट के सदस्यों का कहना है कि सिर्फ माफी माँगने से कुछ नहीं होगा; सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को यह बताना होगा कि ऐसी दासन के साथ किसने फूहड़ और बदतमीजी भरी बयानबाजी की है ? उल्लेखनीय है कि सुरेश जिंदल के समर्थक नेताओं में इस तरह का काम करने के लिए हर्ष बंसल (कु)ख्यात हैं । लायंस क्लब दिल्ली वेस्ट के सदस्यों को भी लगता है कि ऐसी दासन के साथ जो हुआ है, वह हर्ष बंसल की ही कारस्तानी है । हर्ष बंसल ने हालाँकि इस बात से इंकार किया है और ऐसी दासन तथा उनके क्लब के सदस्यों से कहा है कि वह ऐसी दासन के बारे में इस तरह की बातें किये जाने की निंदा करते हैं । ऐसी दासन के क्लब के सदस्यों का कहना है कि उक्त बयानबाजी के पीछे यदि हर्ष बंसल नहीं हैं, तो उन्हें बताना चाहिए कि फिर कौन है ? ऐसी दासन को मल्टीपल कांफ्रेस में अवार्ड दिलवाने की राकेश त्रेहन की बात पर क्लब के लोगों का कहना है कि इस बारे में चूँकि मल्टीपल से ऐसी दासन को अभी तक कोई अधिकृत सूचना या पत्र नहीं मिला है, इसलिए ऐसा लगता है कि राकेश त्रेहन उन्हें बहका रहे हैं और उनकी भावनाओं से खेल रहे हैं । राकेश त्रेहन द्धारा ऐसी दासन को मल्टीपल कांफ्रेंस में अवार्ड दिलवाने की बात जबसे सामने आई है, तब से उनके साथ के लोगों ने भी कहना शुरू कर दिया है कि राकेश त्रेहन उन्हें भी मल्टीपल कांफ्रेंस में अवार्ड दिलवाएँ । इससे राकेश त्रेहन मुसीबत में फँस गए हैं कि वह किसे किसे अवार्ड दिलवाएँ और कहाँ से दिलवाएँ ? ऐसी दासन से अवार्ड का 'मजाक' उन्हें इतना भारी पड़ेगा, उन्होंने सोचा ही नहीं था ।
ऐसी दासन के साथ सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थकों ने जो किया, वह दरअसल सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थकों की बौखलाहट का नतीजा है । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थक नेता असल में,अपनी खिसकती जा रही जमीन को देख देख कर परेशान हो रहे हैं । अपने आप को मुकाबले में बनाये रखने के लिए वह जो कुछ भी कर रहे हैं उससे उन्हें नुकसान ही हो रहा है । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त करते हुए कुछेक क्लब्स की तरफ से मैसेज निकाला गया, ताकि लोगों के बीच सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थन में हवा बने - पर हुआ यह कि सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी की हवा कम और हो गई; क्योंकि जिन क्लब्स के समर्थन का दावा किया गया वह क्लब्स तो कैंसिल हैं और उनके वोट पड़ेंगे ही नहीं । लोगों ने तुरंत से पैरोडी बना ली - 'जिस तरह कागज के फूलों से खुशबू नहीं आ सकती, उसी तरह कैंसिल क्लब्स के समर्थन से चुनाव नहीं जीता जा सकता ।' सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को लगता है कि वह समर्थन के झूठे दावे करते हुए मैसेज करेंगे तो उससे सुरेश जिंदल चुनाव जीत जायेंगे । इसी फार्मूले से लायंस क्लब दिल्ली वेस्ट के समर्थन का दावा किया गया, लेकिन क्लब के वरिष्ठ सदस्य ऐसी दासन ने तुरंत भंडाफोड़ कर दिया कि लायंस क्लब दिल्ली वेस्ट ने सुरेश जिंदल का समर्थन करने का कोई फैसला नहीं किया है । अपने झूठ की पोल खुलती देख सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थक नेता ऐसी दासन के खिलाफ बेहूदा बयानबाजी पर उतर आये । जाहिर है कि इससे मामला और बिगड़ गया । इस तरह की घटनाओं को देख कर लोगों को लगने लगा है कि सुरेश जिंदल को चुनाव हरवाने का उनके समर्थकों ने ही जिम्मा उठा  है ।  

Tuesday, April 23, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3250 में चर्चा है कि कमल सांघवी को रोटरी में इवेंट मैनेज करने का काम करना है या रोटरी के वास्तविक लक्ष्यों को प्राप्त करने का

धनबाद । रोटरी क्लब ऑफ धनबाद चेरीटेबल ट्रस्ट द्धारा पिछले तीस वर्ष से भी अधिक समय से चलाये जा रहे जीवन ज्योति स्कूल के मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर बच्चों को उनके घरों से लाने -लेजाने के लिए आवश्यक बस को खरीदने के लिए तैयार किये गए मैचिंग ग्रांट प्रोजेक्ट के निरस्त हो जाने के कारण कमल सांघवी गंभीर आरोपों में घिर गए हैं । उल्लेखनीय है कि कमल सांघवी का क्लब रोटरी क्लब धनबाद इस मैचिंग ग्रांट प्रोजेक्ट का प्राइमरी होस्ट पार्टनर था और खुद कमल सांघवी की देखरेख में यह प्रोजेक्ट तैयार किया गया था और उनपर ही इस प्रोजेक्ट को संभव करने की जिम्मेदारी थी । इस प्रोजेक्ट से संबद्ध जो दस्तावेज 'रचनात्मक संकल्प' के पास हैं, उनके अनुसार 13286 अमेरिकी डॉलर के इस प्रोजेक्ट के लिए 500 अमेरिकी डॉलर रोटरी क्लब धनबाद से और 2000 अमेरिकी डॉलर डिस्ट्रिक्ट 3250 के डीडीएफ एकाउंट से लेने की संस्तुति प्राप्त कर ली गई थी । बाकी बची रकम में से 5095 अमेरिकी डॉलर रोटरी फाउंडेशन से लेने की बात तय हुई थी और 5691 अमेरिकी डॉलर के लिए मैचिंग पार्टनर खोजना था । इस प्रोजेक्ट को पूरा करने की जिम्मेदारी चूँकि कमल सांघवी ने ली थी, इसलिए किसी को भी इसके पूरा हो पाने को लेकर जरा सा भी संदेह नहीं था । कमल सांघवी की रोटरी में जैसी धाक है; कल्याण बनर्जी के 'ब्ल्यू-आयड ब्यॉय' की उनकी जैसी पहचान है - उसके बाद इस प्रोजेक्ट की सफलता को लेकर किसी के पास भी शक/संदेह की कोई गुंजाइश नहीं थी । लेकिन फिर भी प्रोजेक्ट ड्रॉप हो गया । मजे की बात यह है कि इस प्रोजेक्ट के ड्रॉप होने के लिए ट्रस्ट के, क्लब के और डिस्ट्रिक्ट के लोगों की तरफ से कमल सांघवी को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है । आरोप लगाया जा रहा है कि कमल सांघवी की रोटरी के वास्तविक कामों में नहीं बल्कि रोटरी के नाम पर इवेंट मैनेज करने में ज्यादा दिलचस्पी हो गई है ।
कमल सांघवी को लेकर लोगों के बीच चर्चा है कि कमल सांघवी को चूँकि इंटरनेशनल डायरेक्टर बनना है और उन्होंने समझ लिया है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने के लिए रोटरी के वास्तविक काम करना जरूरी नहीं है, बल्कि रोटरी के बड़े नेताओं को खुश करना/रखना जरूरी है इसलिए वह अब 'उसमें' जुट गए हैं । उनके डिस्ट्रिक्ट के लोगों का ही कहना है कि मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता को खुश करने/रखने के लिए उनके आयोजनों को सफल बनाने में कमल सांघवी ने जितनी सक्रियता दिखाई है, उसके सौवें अंश की सक्रियता भी वह यदि मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर बच्चों के स्कूल के लिए दिखा पाते तो उक्त प्रोजेक्ट सफल हो जाता । इससे भी ज्यादा मजे की और दुर्भाग्य की बात यह है कि अपने क्लब के अपनी ही देखरेख में बने प्रोजेक्ट के ड्रॉप होने का कमल सांघवी को कोई अफ़सोस भी नहीं है । उनका कहना है कि जीवन ज्योति स्कूल का काम सुचारू रूप से चल रहा है और इस प्रोजेक्ट के ड्रॉप होने से बच्चों को किसी भी तरह की असुविधा नहीं हो रही है । यदि सचमुच ऐसा ही है तो फिर 13286 अमेरिकी डॉलर का यह प्रोजेक्ट बनाया ही क्यों गया था ? इस प्रोजेक्ट में बच्चों को लाने-लेजाने के लिए एक मिनी बस खरीदनी थी तथा विशेष सॉफ्टवेयर के साथ दो कंप्यूटर सिस्टम और एक एलसीडी प्रोजेक्टर भी खरीदा जाना था । उम्मीद की जानी चाहिए कि कमल सांघवी की देखरेख में यदि उक्त प्रोजेक्ट तैयार किया गया था तो सचमुच में शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर बच्चों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए ही उक्त प्रोजेक्ट तैयार किया गया होगा । लेकिन अब कमल सांघवी कह रहे हैं कि प्रोजेक्ट ड्रॉप होने से बच्चों की जरूरतों पर कोई असर नहीं पड़ा है । कमल सांघवी का यह भी कहना है कि प्रोजेक्ट की रकम ऐसी नहीं है जिसे जुटाना उनके लिए मुश्किल हो - वह चार फोन घुमायेंगे, उक्त रकम इकठ्ठा हो जायेगी ।
कमल सांघवी की इस बात पर कोई भी शक नहीं कर सकता है - क्योंकि उनका रुतबा ऐसा ही है । सवाल लेकिन यही है कि शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के स्कूल की जरूरतों को पूरा करने के लिए जितनी रकम की गणना आपने की, उसे चार फोन घुमा कर ही जुटा लेना चाहिए था - उसके लिए मैचिंग ग्रांट जुटाने के पचड़े में पड़ने की कोशिश ही आपने क्यों की और जब की तो उसे सफल बनाने में दिलचस्पी क्यों नहीं ली ? कमल सांघवी के क्लब के ही ट्रस्ट द्धारा चलाये जा रहे जीवन ज्योति स्कूल के मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर बच्चों को उनके घरों से लाने -लेजाने के लिए आवश्यक बस को खरीदने के लिए तैयार किये गए मैचिंग ग्रांट प्रोजेक्ट के निरस्त हो जाने का कमल सांघवी को भले ही कोई अफ़सोस न हो, लेकिन इससे उनके डिस्ट्रिक्ट के उनके विरोधियों को अच्छा मसाला मिल गया है । कमल सांघवी ने पिछले कुछ वर्षों में रोटरी के बड़े नेताओं से अच्छे संबंध बना लिए हैं, जिसके चलते रोटरी में उनकी अच्छी साख और धाक बनी है - जो उनके डिस्ट्रिक्ट के कई लोगों को पसंद नहीं आ रही है । मौजूदा इंटरनेश्नल डायरेक्टर शेखर मेहता के साथ उनकी जो जोड़ी बनी है - वह कईओं की आँखों की किरकिरी बनी है । कोलकाता में वर्ष 2011 में शेखर मेहता की देखरेख में आयोजित हुए रोटरी इंस्टीट्यूट में तथा इस वर्ष हैदराबाद में शेखर मेहता की देखरेख में आयोजित हो रहे रोटरी साउथ एशिया सम्मिट में कमल सांघवी को जो प्रमुख जिम्मेदारी मिली है, वह कई प्रमुख रोटेरियंस को बुरी तरह खटक रही है ।
यह इसलिए भी खटक रही है क्योंकि कमल सांघवी उक्त जिम्मेदारियों को निभाने में बहुत सफल हो रहे हैं और उस सफलता के लिए उनकी तारीफ भी हो रही है । उनकी इस सफलता को लेकिन उनके क्लब के प्रोजेक्ट के ड्रॉप होने से जोड़ कर सवाल किया जा रहा है कि रोटरी में कमल सांघवी को इवेंट मैनेज करने का काम करना है या रोटरी के वास्तविक लक्ष्यों को प्राप्त करने का काम करना है ? इस सवाल का जबाव भी दिया जा रहा है और वह यह कि कमल सांघवी जानते हैं कि उनके क्लब के द्धारा तीस वर्षों से भी अधिक समय से चलाये जा रहे स्कूल के शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर बच्चे उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर थोड़े ही बनवा सकते हैं, वह तो शेखर मेहता बनवा सकते हैं इसलिए उन्हें शेखर मेहता की 'सेवा' में जुटना ज्यादा जरूरी लगा है - इस चक्कर में उनके खुद के द्धारा तैयार किया गया प्रोजेक्ट ड्रॉप हो गया तो उनकी बला से ।


Friday, April 19, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में अनुपम बंसल के गवर्नर-काल की टीम बनाने में विशाल सिन्हा की सक्रियता के चलते डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट सेक्रेटरी पद पर होने वाली नियुक्ति को लेकर असमंजस बना

लखनऊ । अनुपम बंसल के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट सेक्रेटरी पद को लेकर एक दिलचस्प किस्म की खींचतान चलने की ख़बरें सुनने को मिल रही हैं । उम्मीद की जा रही है कि 21 अप्रैल को चुने हुए पदाधिकारियों के सम्मान में जो कार्यक्रम हो रहा है, उसमें अनुपम बंसल अपनी टीम के प्रमुख पदाधिकारियों के नामों की घोषणा करेंगे - इसके चलते डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट सेक्रेटरी पद को लेकर खींचतान और बढ़ गई है । अनुपम बंसल के गवर्नर-काल के लिए बने कार्यालय में जिन लोगों का नियमित आना-जाना है उनकी बातें सुनें/मानें तो डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट सेक्रेटरी पद के लिए बिश्वनाथ चौधरी का नाम तय हो चुका है और उसमें किसी तरह के उलटफेर की संभावना नहीं है, लेकिन इन्हीं में से कुछ लोगों का कहना है कि अनुपम बंसल की टीम के गठन को लेकर विशाल सिन्हा जिस तरह सक्रिय हैं उसे देख कर आशंका होती है कि एन मौके पर डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट सेक्रेटरी का ताज कहीं विशाल सिन्हा के माथे पर न बंध जाये । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का कार्यभार संभालने की तैयारी में जुटे अनुपम बंसल के कार्यालय में विशाल सिन्हा की जिस तरह की सक्रियता है और जिस तरह सारे फैसले उन्हीं के दिशा-निर्देशन में हो रहे हैं उसे देख कर बिश्वनाथ चौधरी ने भी अपने आसपास के लोगों से कहना शुरू कर दिया है कि जब सभी फैसले विशाल सिन्हा को ही करने हैं तो डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट सेक्रेटरी उन्हीं को बना देना चाहिए । बिश्वनाथ चौधरी की इस तरह की बातों को उनकी निराशा और नाराजगी की प्रतिक्रिया के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
अनुपम बंसल के समर्थक कुछेक वरिष्ठ लोगों का भी मानना/कहना है कि अनुपम बंसल के गवर्नर-काल की गतिविधियों व फैसलों में यदि विशाल सिन्हा का हस्तक्षेप ज्यादा रहना है तो अच्छा यही होगा कि उन्हें ही डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट सेक्रेटरी बना देना चाहिए, अन्यथा जो डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट सेक्रेटरी पद पर होगा वह अपने आप को इग्नोर और अपमानित महसूस करेगा और तब झंझट पैदा होगा । विशाल सिन्हा को चूँकि अगले लायन वर्ष में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करनी है, इसलिए डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों व फैसलों को वह अपने फायदे को ध्यान में रखते हुए क्रियान्वित करना/करवाना चाहेंगे - तब तो और भी जबकि अनुपम बंसल उन्हें खुली छूट देने के लिए तैयार बैठे हैं । अनुपम बंसल और विशाल सिन्हा से हमदर्दी रखने वाले लोगों का सुझाव यही है कि अनुपम बंसल को जब अपने गवर्नर-काल में विशाल सिन्हा को हावी होने/रहने देना है तब फिर उन्हें बिश्वनाथ चौधरी को अपमानित होने देने की स्थिति में नहीं धकेलना चाहिए - यह बिश्वनाथ चौधरी, विशाल सिन्हा और अनुपम बंसल - तीनों के लिए घातक होगा ।
अनुपम बंसल ने जिस तरह अपने आप को और अपने गवर्नर-काल को गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा के हवाले कर दिया है उसके कारण वह अपने क्लब में भी पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए हैं । उल्लेखनीय है कि उनके और दूसरे पदाधिकारियों के सम्मान के लिए होने वाले आयोजन की तैयारी के लिए जो पहली मीटिंग बुलाई गई थी, उसमें अनुपन बंसल के क्लब से एक भी सदस्य शामिल नहीं हुआ था । उससे ही साबित हो गया था कि अनुपम बंसल को अपने ही क्लब में समर्थन नहीं है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को यह आभास तो रहा है कि अनुपम बंसल किसी भी मामले में क्लब के वरिष्ठ सदस्य और पूर्व गवर्नर भूपेश बंसल को न तो विश्वास में ले रहे हैं और न ही उनसे किसी भी तरह का कोई सलाह-मशविरा कर रहे हैं - लेकिन इसके चलते अनुपम बंसल क्लब में बुरी तरह अकेले और अलग-थलग पड़ गए हैं इसका सुबूत पहली बार लोगों के सामने आया । उस 'घटना' के बाद ऐसा लगा था कि अनुपम बंसल कुछ संभलेंगे और अपने क्लब के लोगों के साथ संबंध सुधारने का प्रयास करेंगे और इस प्रयास में गुरनाम सिंह व विशाल सिन्हा के साथ अपने संबंधों को संतुलित करेंगे - लेकिन अनुपम बंसल ऐसा करते हुए किसी को 'दिख' नहीं रहे हैं । अनुपम बंसल के गवर्नर-काल की टीम बनाने में विशाल सिन्हा की जो सक्रियता है, उसे देखते हुए डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट सेक्रेटरी पद पर होने वाली बिश्वनाथ चौधरी की संभावित ताजपोशी खतरे में पड़ती दिख रही है । कई लोगों का मानना और कहना है कि बिश्वनाथ चौधरी की ताजपोशी यदि अभी हो भी गई तो बाद में भी वह संकट में ही फँसी रहेगी । लोगों की इसी तरह की प्रतिक्रिया के बीच डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट सेक्रेटरी के पद को लेकर असमंजस और खींचतान बनी हुई है ।

Wednesday, April 17, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में झूठी-झूठी और बेसिरपैर की बातों से सुरेश जिंदल के समर्थकों की निराशा ही सामने आ रही है

नई दिल्ली । सुरेश जिंदल और उनके नजदीकियों के लिए यह पहेली समझना मुश्किल हो रहा है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले नेता मौजूदा स्थिति की सच्चाई उनसे छिपाने की कोशिश क्यों कर रहे हैं ? उल्लेखनीय है कि सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले नेता सुरेश जिंदल को चुनावी जीत का सपना तो बढ़-चढ़ कर दिखा रहे हैं - लेकिन इसके तहत वे जो तथ्य दिखा/बता रहे हैं, उनका सच्चाई से दूर दूर तक का नाता नजर नहीं आ रहा है । जैसे, सुरेश जिंदल को उनकी जीत का भरोसा दिलाने के लिए जो गणित समझाया गया है उसमें उनके पक्ष में उन क्लब्स के वोट भी जोड़ लिए गए हैं जो अभी कैंसिल हैं - यह कहते/बताते हुए कि उन कैंसिल क्लब्स के बकाया ड्यूज जमा करके उन्हें पुनर्जीवित कर लिया जायेगा । कहने/सुनने में बात बड़ी सीधी सी लगती है और कोई शक भी नहीं कर सकता है कि इसमें किसी भी तरह का झूठ और धोखा छिपा है । लेकिन लायंस इंटरनेशनल के नियम-कानूनों को जानने/समझने वाले लोग जानते हैं कि कैंसिल क्लब्स को पुनर्जीवित करने के लिए कुछ नियम हैं - सिर्फ बकाया ड्यूज चुका देने भर से कैंसिल क्लब्स पुनर्जीवित नहीं हो जायेंगे । लायंस इंटरनेशनल के नियम-कानून के अनुसार डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दस कैंसिल क्लब्स को बकाया ड्यूज जमा करवा कर पुनर्जीवित करवा सकता है - इसके बाद उसे फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को विश्वास में लेना होगा । सुरेश जिंदल को चुनाव लड़वाने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन अभी तक आठ कैंसिल क्लब्स को पुनर्जीवित करवा चुके हैं - जाहिर तौर पर अब उनके पास दो और कैंसिल क्लब को पुनर्जीवित करवाने का मौका है । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थक नेता लेकिन उन्हें ग्यारह कैंसिल हुए पड़े क्लब्स के वोटों की गिनती बता रहे हैं ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन के पास दो कैंसिल क्लब को पुनर्जीवित करने का जो अधिकार है - उसमें भी एक लफड़ा है । विरोधी खेमे के पक्ष के समझे जाने वाले एक कैंसिल क्लब के बकाया ड्यूज पहले से ही लायंस इंटरनेशनल जा चुके हैं, इस कारण से पुनर्जीवित होने का पहला अधिकार उसका स्वतः बन जाता है - लेकिन उसके पुनर्जीवित होने से चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की 'राजनीति' पर प्रतिकूल असर पड़ता है तो क्या डिस्ट्रिक्ट गवर्नर उस क्लब का अधिकार छीन कर 'अपने' उम्मीदवार को फायदा पहुँचाने की गरज से अपने समर्थक कैंसिल क्लब को पुनर्जीवित कराने की सिफारिश करेंगे ? विरोधी खेमे के लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने अपने उम्मीदवार को फायदा पहुँचाने के उद्देश्य से यदि कोई बेईमानी की तो वह विरोध करेंगे । सुरेश जिंदल के समर्थक नेता जिस तरह का गणित बता रहे हैं उसे देखते हुए लगता है कि सुरेश जिंदल को चुनाव जितवाने के लिए उनके पास बेईमानी के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं है । लायंस इंटरनेशनल से वोटों की जो अधिकृत सूची आई है उसके हिसाब से सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थक नेता 25 वोटों की कमी पा रहे हैं - विरोधी पक्ष के नेताओं के गणित के हिसाब से तो सुरेश जिंदल को 45 से 50 वोटों की कमी पड़ रही है । विरोधी पक्ष के नेताओं की बात पर यदि ध्यान न भी दें तो खुद सुरेश जिंदल के समर्थक नेता लायंस इंटरनेशनल की अधिकृत सूची के आधार पर अपने को पीछे पहचान रहे हैं । अपने को आगे करने/दिखाने के लिए उन्होंने इसी तरह की बातें करना शुरू की हैं जिन्हें बेईमानी और धोखे से ही पूरा किया जा सकेगा । जैसे कभी वह दावा करने लगते हैं कि विरोधी पक्ष के कई क्लब पेपर क्लब हैं और उन्हें वोट का अधिकार नहीं दिया जायेगा । सवाल यह है कि आप यदि पेपर क्लब के सचमुच खिलाफ हैं तो लायन वर्ष के शुरू होते ही आपने उन्हें बंद करवाने की कार्रवाई क्यों नहीं की - जिन क्लब्स के ड्यूज जमा हैं और लायंस इंटरनेशनल ने जिन्हें वोट का अधिकार दे दिया है, उनका वोट का अधिकार आप कैसे छीन सकते हैं ?
सुरेश जिंदल से सचमुच की हमदर्दी रखने वाले लोगों को लगता है कि सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थक नेता भी जानते हैं कि ड्यूज जमा न होने के कारण कैंसिल हुए 'अपने' क्लब्स को पुनर्जीवित करवाने का भरोसा हो या विरोधी पक्ष के तथाकथित पेपर क्लब्स को वोट का अधिकार न देने का उनका दावा हो - होना जाना कुछ नहीं है; वह तो बस सुरेश जिंदल को हौंसला देने के कारण से ऐसा प्रचार कर रहे हैं । सुरेश जिंदल का हौंसला बनाये रखना उनके लिए इसलिए जरूरी है ताकि कहीं सुरेश जिंदल चुनाव से पहले ही मैदान न छोड़ दें ? सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को बनाये रखना उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के लिए बहुत ही जरूरी है जिससे कि उनके क्लब्स के ड्यूज जमा हो सकें और उनके दूसरे खर्चे पूरे हो सकें । इसलिए कोई भी झूठ-सच बोल कर वह सुरेश जिंदल की हिम्मत बनाये रखने की कोशिश कर रहे हैं । सुरेश जिंदल के समर्थक नेता अपनी इस कोशिश में अक्सर ही बड़े मनोरंजक सीन भी बना दे रहे हैं - जैसे लोगों को मिले एक एसएमएस में सुरेश जिंदल को 'असली हरियाणवी' बताया गया है । इस बात से एक किस्सा याद आया -
एक सर्कस वालों ने एक बार एक साथ दो शेर दिखाने की योजना बनाई । समस्या लेकिन यह आई कि शेर उनके पास एक ही था । शेर भले ही उनके पास एक था लेकिन खुशकिस्मती उनकी यह थी कि उनके पास हर्ष बंसल, अजय बुद्धराज, चंद्रशेखर मेहता की तरह के चतुर लोग थे - जिन्होंने तुरंत सुझाव दिया कि दूसरे पिंजरे में शेर की खाल पहना कर एक आदमी को रख देना, जिसे सख्त हिदायत दी जाये कि वह पिंजरे में सिर्फ इधर से उधर टहले और कभी-कभार दर्शकों की तरफ घूर कर देख ले । सर्कस वालों को यह आईडिया अच्छा लगा और उन्होंने इस पर अमल किया । दर्शकों के सामने दो पिंजरों में दो शेर थे जो अपने अपने पिंजरे में बस टहलकदमी कर रहे थे । अचानक जो असली वाला शेर था वह जोर से दहाड़ा । दर्शकों ने उत्सुकता बस दूसरे पिंजरे की तरफ देखा । दूसरे पिंजरे में शेर की खाल पहने आदमी को चूँकि हिदायत थी कि उसे सिर्फ टहलते ही रहना है इसलिए उसने अपनी तरफ देख रहे दर्शकों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया । तभी अचानक से एक व्यक्ति उसके पिंजरे के पास आकर खड़ा हुआ और धीरे से कुछ कह कर चला गया । वह व्यक्ति शायद हर्ष बंसल टाइप का होगा क्योंकि उसके जाते ही शेर की खाल पहने आदमी ने चिल्ला चिल्ला कर कहना शुरू किया कि 'असली शेर मैं हूँ'' 'असली शेर मैं हूँ' - उसने दर्शकों से कहा कि दहाड़ भले ही दूसरा रहा है, लेकिन असली मैं हूँ ।
सुरेश जिंदल को 'असली हरियाणवी' 'घोषित' करने की कार्रवाई भी कुछ ऐसी ही बात हो गई है - उन्हें असली घोषित करने/करवाने वालों ने इतना धैर्य भी नहीं रखा कि असली-नकली का भेद सभी जानते हैं और वह अपनी-अपनी समझ से तय कर लेंगे - उन्हें चिल्ला चिल्ला कर कहने की जरूरत नहीं है कि असली कौन है ? इस बात से वास्तव में सुरेश जिंदल के समर्थकों के बीच की निराशा ही सामने आई है । 

Friday, April 12, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में हर्ष बंसल ने सब्जबाग दिखा कर सुरेश जिंदल से मोटी रकम जुटाने की व्यवस्था की

नई दिल्ली । सुरेश जिंदल की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत उम्मीदवारी के समर्थन में जब से हर्ष बंसल ने अपनी सक्रियता तेज की है, तब से सुरेश जिंदल के समर्थकों व शुभचिंतकों की चिंता बढ़ गई है । उन्हें डर यह पैदा हुआ है कि हर्ष बंसल की बद-जुबान और उनकी बदनामी सुरेश बंसल की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का नहीं, बल्कि घटाने का काम करेगी । हर्ष बंसल के बारे में माना भी जाता है कि वह जिसके दोस्त हो जायें, उसके दुश्मन फिर आराम करने चले जाते हैं - यह सोच कर कि उनका काम अब हर्ष बंसल ही कर लेगा । यानि हर्ष बंसल जिसके दोस्त हो जाते हैं उसे फिर दुश्मनों की जरूरत नहीं पड़ती । वीके हंस जो दो बार चुनाव हारे हैं - उनमें उनके विरोधियों ने उन्हें नहीं हराया था; हर्ष बंसल के 'सहयोग' और 'समर्थन' ने उन्हें हराया था । प्रदीप जैन जैसे वरिष्ठ और सक्रिय लायन को हराया विजय शिरोहा ने ही था, लेकिन प्रदीप जैन को हार के रास्ते पर 'पहुँचाया' हर्ष बंसल ने ही था ।
हर्ष बंसल का 'अपने' उम्मीदवार की मिट्टी कुटवाने का तरीका है बड़ा दिलचस्प - वह 'अपने' उम्मीदवार को 'मिल रहे समर्थन' की ऐसी हवा बनाते और दिखाते हैं कि उम्मीदवार अपने आप को जीता हुआ समझने लगता है । वो तो जब नतीजा आता है, तब उनके समर्थित उम्मीदवार को असलियत का पता चलता है । वीके हंस के दोनों चुनावों को तथा प्रदीप जैन के चुनाव को जिन भी लोगों ने नजदीक से देखा है, वह बता सकते हैं कि नतीजा आने से पहले हर्ष बंसल इन्हें भारी बहुमत से जीता हुआ घोषित कर रहे थे । यूँ तो हर उम्मीदवार को और उसके समर्थकों को अपनी जीत का ख्वाब आता ही है - यह बहुत स्वाभाविक प्रतिक्रिया है; लेकिन हर्ष बंसल का तरीका खासा तूफानी होता है और पहली नजर में बड़ा विश्वसनीय 'दिखता' है । वह उम्मीदवार के सामने ऐसा सीन बनाते हैं कि उम्मीदवार बेचारा शक भी नहीं कर पाता । असलियत का पता उसे नतीजा आने पर ही चलता है । एक उदाहरण काफी होगा - सुरेश जिंदल के समर्थन में दिल्ली में उन्होंने बड़े समर्थन का दावा किया है । अपने दावे के समर्थन में उन्होंने जो तथ्य 'बनाये' और बताये हैं, वह उनके दावे को 'सच' भी साबित-सा करते हैं । लेकिन उन्होंने बड़ी चतुराई से कुछ बाते छिपा लीं । अपने क्लब का समर्थन सुरेश जिंदल के लिए घोषित करवाने को लेकर उन्हें क्लब के पदाधिकारियों की बड़ी खुशामद-मिन्नत करनी पड़ी और अपनी इज्जत का वास्ता देना पड़ा । क्लब के पदाधिकारियों ने उन्हें बुरी तरह हड़काया कि उनसे पूछे बिना उन्होंने सुरेश जिंदल को समर्थन पत्र देने का वायदा क्यों किया ? हर्ष बंसल ने गिड़गिड़ा कर, माफी मांग कर और आगे से ऐसा न करने का वायदा करके अपने क्लब के पदाधिकारियों को सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन पत्र देने के लिए राजी तो कर लिया - लेकिन इस तरीके से क्या वह अपने क्लब के वोट भी सुरेश जिंदल को सचमुच दिलवा सकेंगे ? अब, दिख तो यही रहा है कि हर्ष बंसल के क्लब ने सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थन में पत्र दिया है; लेकिन पर्दे के पीछे जो हुआ है उसके चलते इसमें तो संदेह ही है कि सुरेश जिंदल को उनके क्लब के वोट भी मिलेंगे क्या ? दरअसल हर्ष बंसल की इसी तिकड़म के कारण, उनका जो उम्मीदवार नतीजा आने से पहले जीतता हुआ दिखता, चुनावी नतीजा आने के बाद वह चारों खाने चित्त पड़ा नजर आता है ।
हर्ष बंसल इस तरह की बनावटी तिकड़म करते क्यों हैं ? वह सुरेश जिंदल को वास्तविकता बता क्यों नहीं देते हैं कि उन्होंने कैसे खुशामद कर कर के उनके लिए समर्थन पत्र जुटाए हैं और यह मत समझना कि इनके वोट भी मिलेंगे ही ? हर्ष बंसल ऐसा इसलिए नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें सुरेश जिंदल से अपने फर्जी क्लब्स के ड्यूज भरने के लिए मोटी रकम चाहिए । इसके लिए उन्हें सुरेश जिंदल को यह दिखाना जरूरी है कि हर तरफ उन्हीं का जलवा है । इस तथाकथित जलवे के पीछे छिपी सच्चाई यदि सामने आई तो सुरेश जिंदल हो सकता है कि उन्हें उतने पैसे न दें, जितने वह चाह/मांग रहे हैं । चर्चा है कि हर्ष बंसल के जो फर्जी क्लब हैं उनमें उन्होंने इस वर्ष कई कई सदस्य बढ़ाये हैं, जिनके वोट अगले लायन वर्ष में मिलेंगे । यानि हर्ष बंसल को सुरेश जिंदल से उन सदस्यों के ड्यूज भी खसोटने हैं, जिनके वोट उन्हें नहीं मिलने हैं । हर्ष बंसल का वीके हंस के साथ जो अनुभव रहा उससे सबक लेकर हर्ष बंसल की कोशिश रहेगी कि वह चुनावी नतीजा आने से पहले ही सुरेश जिंदल से पैसे ले लें । वीके हंस के साथ उनका जो पैसों का झगड़ा बताया जाता है वह हर्ष बंसल के धोखे में न फँसने की वीके हंस की कोशिश के कारण ही तो पैदा हुआ । सुरेश जिंदल उस तरह की कोई कोशिश न कर सकें, इसके लिए हर्ष बंसल उन्हें सब्जबाग दिखाना जरूरी समझते हैं और आंकड़ों की पूरी बाजीगरी से सुरेश जिंदल को आश्वस्त कर देना चाहते हैं कि जीत तो उनकी पक्की ही है । हर्ष बंसल ने आंकड़ों की बाजीगरी का इसी तरह का सब्जबाग वीके हंस को दो बार और प्रदीप जैन को दिखाया था - लेकिन हुआ क्या, यह सभी को पता है । इसीलिये सुरेश जिंदल से हमदर्दी रखने वाले लोगों का कहना है कि सुरेश जिंदल को हर्ष बंसल की लफ्फाजी और लूट-खसोट वाली हरकत से बच कर रहना चाहिए । हमदर्दी रखने वालों ने ऐसा कह तो दिया, लेकिन उनकी चिंता यह भी है कि 'रजिया' बेचारी बचेगी कैसे ?       

Wednesday, April 10, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में विनोद बंसल के टीम बनाने में असफल रहने के कारण पेट्स का आयोजन बदइंतजामी का बुरी तरह शिकार हुआ और कई प्रेसीडेंट इलेक्ट ने अपने आप को अपमानित महसूस किया

नई दिल्ली । विनोद बंसल के पहले प्रमुख कार्यक्रम पेट्स (प्रेसीडेंट इलेक्ट ट्रेनिंग सेमिनार) में बदइंतजामी के कारण प्रेसीडेंट इलेक्ट को बार-बार और अलग-अलग मौकों पर जिस तरह की फजीहत का और अपमान का सामना करना पड़ा, उसे देख/जान कर उन लोगों को भारी निराशा हुई है जिन्हें विनोद बंसल के कार्यक्रमों के बहुत ही व्यवस्थित तरीके से होने की उम्मीद थी । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट में अधिकतर लोगों का यह मानना रहा है कि विनोद बंसल बहुत ही योजनाबद्ध तरीके से काम करने वाले व्यक्ति हैं और इस कारण उनके कार्यक्रमों की डिजाइनिंग और उस डिजाइनिंग पर अमल बहुत ही व्यवस्थित तरीके से होगा । पेम और डीटीटीएस में जो गड़बड़ियाँ हुईं थीं, उन्हें यह मान/सोच कर नजरअंदाज कर दिया गया था कि शुरू के कार्यक्रमों में अनुभवहीनता के चलते कुछ कमियाँ रह ही जाती हैं, इसलिए उन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं देना चाहिए । माना/सोचा यह भी गया था कि इन गड़बड़ियों से सबक लेकर विनोद बंसल पेट्स के आयोजन की डिजाइनिंग में सावधानी बरतेंगे । लेकिन पेट्स में जो हुआ उससे ऐसा लगा जैसे विनोद बंसल ने पिछली गड़बड़ियों से कोई सबक नहीं लिया और बहुत ही बेतरतीबी के साथ पेट्स का आयोजन किया । पेट्स में विभिन्न मौकों पर जिस तरह की अराजकता और अव्यवस्था देखने को मिली उसने प्रेसीडेंट इलेक्ट को तो नाराज और अपमानित-सा महसूस कराया ही, विनोद बंसल से उम्मीद रखने वाले लोगों को भी बुरी तरह से निराश किया । विनोद बंसल ने विभिन्न मौकों पर माफी मांग मांग कर हालात को ज्यादा बिगड़ने से बचाया तो, लेकिन अपने इंप्रेशन को बिगड़ने से वह नहीं बचा सके ।
पेट्स में पहुँचे कई प्रेसीडेंट इलेक्ट को पहला झटका तब लगा जब उन्हें लकी ड्रा के कूपन नहीं मिले । उन्हें बताया गया कि कूपन ख़त्म हो गए हैं । शोर मचा तो विनोद बंसल सामने आये और जिन प्रेसीडेंट इलेक्ट को कूपन नहीं मिले थे उनसे माफी मांगते हुए उन्होंने कारण बताया कि जिन लोगों को कूपन देने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी उन्होंने गलती से सभी लोगों को कूपन दे दिए, जबकि उन्हें सिर्फ प्रेसीडेंट इलेक्ट को कूपन देने थे और इसलिए कूपन ख़त्म हो गए । विनोद बंसल का यह भी कहना था कि लकी ड्रा में सिर्फ प्रेसीडेंट इलेक्ट के ड्रा ही निकलेंगे । लकी ड्रा कूपन का जैसे तैसे इंतजाम करके विनोद बंसल ने कूपन प्राप्त करने से वंचित रह गए लोगों का उस समय तो गुस्सा शांत करवा दिया, लेकिन कई प्रेसीडेंट इलेक्ट उस समय फिर भड़क गए जब उन्होंने देखा/पाया कि लकी ड्रा में ईनाम प्रेसीडेंट इलेक्ट ही नहीं, दूसरों के भी निकल रहे हैं । विनोद बंसल को उन्हें शांत करने के लिए तर्क देना पड़ा कि गलती से लकी ड्रा कूपन जिन्हें दिए जा चुके हैं उनके नाम तो ड्रा में आयेंगे ही और इसे प्रेसीडेंट इलेक्ट को माफ़ करना ही होगा । यह झगड़ा अभी पूरी तरह शांत भी नहीं हुआ था कि कुछेक प्रेसीडेंट इस बात पर उखड़ गए कि प्रेसीडेंट इलेक्ट द्धारा प्रस्तुत किये जाने वाले कार्यक्रमों के लिए पाँच मिनट की जो समय-सीमा निर्धारित की गई थी, उसका धड़ल्ले से उल्लंघन हो रहा है और इस बात पर निर्णायकों का कोई ध्यान ही नहीं है । निर्णायकों का यह कहना था कि उन्हें यह बताया ही नहीं गया कि पाँच मिनट की समय सीमा का उल्लंघन करने वाली स्क्रिप्ट पर उन्हें नेगेटिव मार्किंग करनी है ।
प्रेसीडेंट इलेक्ट को मिलने वाली टीशर्ट के साइज को लेकर बहुत ही अफरातफरी रही और साइज के अनुरूप टीशर्ट न मिलने को लेकर बहुत से प्रेसीडेंट इलेक्ट खासे नाराज हुए और दिखे । उनका कहना रहा कि जब पहले से उनसे उनके साइज पूछे गए थे और सभी ने अपने अपने साइज बता दिए थे, तब फिर उन्हें उनके साइज के अनुसार टीशर्ट क्यों नहीं दी जा रहे हैं । मजे की बात यह थी कि टीशर्ट की कोई कमी नहीं थी और सभी साइजों में टीशर्ट पर्याप्त संख्या में उपलब्ध थीं - लेकिन फिर भी लोगों को उनके साइज के अनुसार टीशर्ट नहीं दी जा रही थीं और ऐसा माहौल बना कि जैसे टीशर्ट हैं ही नहीं । यह नौबत इसलिए आई क्योंकि इस काम को अंजाम देने की कोई व्यवस्थित तैयारी की ही नहीं गई थी । जिन लोगों को टीशर्ट मिलनी थीं उनके साइज दिए/लिए जा चुके थे, जिस जिस साइज में जितनी जितनी टीशर्ट की जरूरत थी वह उपलब्ध थीं - फिर भी अफरातफरी पैदा हुई, तो इसका कारण यही था कि साइज लेने/देने और टीशर्ट देने के काम के बीच कोई तालमेल ही नहीं था । दरअसल पेट्स में जो भी समस्याएँ पैदा हुईं, वह सब तालमेल की कमी के कारण ही पैदा हुईं । तालमेल का अभाव इसलिए रहा क्योंकि विनोद बंसल पेट्स की व्यवस्था को संभालने के लिए कोई टीम नहीं बना सके । 
पेट्स में मौजूद कई लोगों का ध्यान इस बात पर गया और उन्हें यह बात बड़ी हैरान करने वाली लगी कि विनोद बंसल के क्लब के लोगों की ही पेट्स में ज्यादा भागीदारी नहीं थी और विनोद बंसल को कामकाज के लिए दूसरे क्लब के लोगों की मदद लेनी पड़ रही थी । मदद तो उन्हें मिल गई लेकिन काम करने वालों के बीच तालमेल नहीं बन पाया । समस्या यह हुई कि तालमेल बनाने की कोई कोशिश ही नहीं की गई और इसी कारण से पेट्स में अफरातफरी का माहौल रहा । तालमेल के अभाव के कारण ही कोई भी कार्यक्रम समय से शुरू नहीं हो सका - समय से जब शुरू नहीं हो सका तो समय से ख़त्म भी नहीं हुआ और फिर अराजकता का राज हो गया । इससे सभी को परेशानी हुई । विनोद बंसल के लिए एक तरफ तो इंतजाम और व्यवस्था करना मुश्किल हो रहा था लेकिन दूसरी तरफ आयोजन कमेटी के कई लोगों को करने के लिए कुछ काम ही नहीं मिला । उनके लिए यह समझना मुश्किल ही रहा कि विनोद बंसल को उन्हें जब कोई काम सौंपना ही नहीं है, तो वह उन्हें यहाँ लाये ही क्यों हैं ? यही सब देख कर लोगों ने निष्कर्ष निकाला कि विनोद बंसल को चूँकि किसी पर भरोसा नहीं है इसलिए वह पेट्स के आयोजन के संबंध में न अपने क्लब के लोगों को और न दूसरे क्लब के लोगों को लेकर टीम बना सके; और इसका नतीजा यह हुआ कि पेट्स का आयोजन बेमतलब में बदइंतजामी का बुरी तरह शिकार हुआ और सभी को परेशानी हुई तथा कई प्रेसीडेंट इलेक्ट ने अपने आप को अपमानित महसूस किया ।
पेट्स कार्यक्रम में अपने माता-पिता के साथ आये बच्चों के पैसे बसूलने को लेकर काम करने वाले लोगों के रवैये के चलते तो ऐसा फजीता हुआ कि विनोद बंसल को माफी मांग कर मामला ख़त्म करवाना पड़ा । इस किस्से में भी बात सिर्फ तालमेल के आभाव की ही थी । प्रेसीडेंट इलेक्ट को पहले से ही बता दिया गया था कि बड़े बच्चों की उपस्थिति पर अलग से कुछ पैसा देना होगा; जिन लोगों के साथ बड़े बच्चे गए थे, वह अतिरिक्त पैसा देने के लिए तैयार भी थे - लेकिन उनसे पैसा लेने का कोई उचित मैकेनिज्म तैयार नहीं किया गया । जिस तरफ से बैंक और लोन देने वाली संस्थाएँ लोन की किस्तें बसूलने के लिए भाड़े पर लोग रख लेते हैं, विनोद बंसल ने भी उसी तर्ज पर बच्चों को साथ ले गए प्रेसीडेंट इलेक्ट से अतिरिक्त पैसे बसूलने की 'व्यवस्था' की - पैसे वसूलने में लगे लोगों के व्यवहार और तरीके को कई प्रेसीडेंट इलेक्ट ने आपत्तिजनक और अपमानपूर्ण माना और विरोध किया - जिसके चलते जमकर हंगामा हुआ । विनोद बंसल ने प्रेसीडेंट इलेक्ट से माफी मांग कर मामले को किसी तरह ख़त्म करवाया । पेट्स में जिन भी बातों पर झमेला हुआ, वह कोई बड़ी बातें नहीं थीं और जरा सी सावधानी से उन्हें घटने से रोका जा सकता था - लेकिन काम को अंजाम देने के लिए टीम बनाने में विनोद बंसल द्धारा की गई लापरवाही के कारण बात बात में तमाशे हुए और सभी को अलग अलग तरीके से मुसीबतों का सामना करना पड़ा ।

Sunday, April 7, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में विशाल सिन्हा के नजदीकियों की शिकायत है कि अनुपम बंसल अब शिव कुमार गुप्ता के साथ जा मिले हैं

लखनऊ । शिव कुमार गुप्ता की चुनावी जीत को शिकायती दाँव-पेंचों में फँसाने की योजना को अनुपम बंसल से पर्याप्त समर्थन न मिलता देख विशाल सिन्हा के समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच निराशा है और उनमें से कोई कोई अनुपम बंसल के प्रति आलोचनात्मक रवैया भी अपनाने/दिखाने लगा है । उल्लेखनीय है कि शिव कुमार गुप्ता की चुनावी जीत को गुरनाम सिंह और उनके नजदीकी किसी भी तरह से पचा नहीं पा रहे हैं और कुछ भी तीन-तिकड़म करके उनकी चुनावी जीत को निरस्त करा देना चाहते हैं । इसी संदर्भ में, कुछेक बातों को मुद्दा बना कर शिव कुमार गुप्ता की जीत के खिलाफ लायंस इंटरनेशनल में शिकायत दर्ज भी करा दी गई है । डिस्ट्रिक्ट में कई लोगों ने इस कार्रवाई को उचित नहीं माना है - उनका कहना है कि गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा को अपनी चुनावी पराजय को ग्रेसफुली स्वीकार करना चाहिए और डिस्ट्रिक्ट के बहुमत लोगों के फैसले के प्रति सम्मान दिखाना चाहिए और अपनी गलतियों व कमियों को पहचानते हुए उन्हें दूर करने की कोशिश करना चाहिए । कई लोगों का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट के बहुमत लोगों के फैसले के प्रति अनादर दिखा कर गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा फिर वही गलती कर रहे हैं, जिस गलती के कारण उन्हें हार का सामना करना पड़ा है । गुरनाम सिंह ने धमकियों और मनमानियों से अपनी बात मनवाने की जो कोशिशें की हैं, उसके कारण उनके अपने लोग ही उनसे दूर होते गए हैं । नया उदहारण केएस लूथरा का ही है । कुछ समय पहले तक केएस लूथरा उनके बड़े नजदीक होते थे, लेकिन उनकी मनमानियों और धमकियों से तंग आकर वह उनसे ऐसे दूर हुए कि उनकी किरकिरी करवा कर ही माने । चुनावी नतीजा शिव कुमार गुप्ता की जीत का नहीं है, वह गुरनाम सिंह की धमकी और मनमानी भरी राजनीति की हार का है । विशाल सिन्हा का दोष तो सिर्फ यह रहा कि उन्होंने गुरनाम सिंह की इस राजनीति पर जरूरत से ज्यादा भरोसा किया । 
शिव कुमार गुप्ता की जीत से गुरनाम सिंह को जो झटका लगा, उम्मीद की गई थी कि उससे गुरनाम सिंह सबक लेंगे और अपने तौर-तरीकों में सुधार करेंगे । लेकिन लगता नहीं है कि गुरनाम सिंह ने अपनी हार से कोई सबक लिया है । उन्हें अभी भी उम्मीद है कि वह तिकड़म करके शिव कुमार गुप्ता की जगह विशाल सिन्हा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवा देंगे । गुरनाम सिंह से हमदर्दी रखने वालों का भी मानना और कहना है कि इससे लेकिन गुरनाम सिंह अपनी खोई हुई साख को तो वापस नहीं पा सकेंगे, बल्कि उसे और खो देंगे । ऐसे लोगों का कहना है कि गुरनाम सिंह को यह एक ऐतिहासिक मौका मिला है कि वह अपने प्रति लोगों के बीच पैदा हुए गुस्से और विरोध के तेवर को पहचानें और स्वीकार करें तथा अपने तौर-तरीकों में सुधार करके लोगों के बीच अपने लिए सम्मान बनाए । चुनावी जीत या हार से कुछ नहीं होता है - यह खुद गुरनाम सिंह के इतिहास से ही साबित है । गुरनाम सिंह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए विद्या शंकर दीक्षित से चुनाव हारे थे, लेकिन चुनाव हारने के बावजूद गुरनाम सिंह ने बाद में विद्या शंकर दीक्षित से ज्यादा ऊँचा मुकाम बनाया/पाया । केएस लूथरा से मिली पराजय में जो सबक है, उसमें भी गुरनाम सिंह के लिए ऊँचा उठने/बनने का संकेत छिपा है - गुरनाम सिंह उस सबक को पढ़ और समझ सकें तो ?
गुरनाम सिंह लेकिन अभी 'वह' सबक पढ़ते/सीखते नहीं दिख रहे हैं - चुनावी मुकाबले में विशाल सिन्हा को जितवाने में असफल रहने के बाद अब उन्होंने 'चोर दरवाजे' से विशाल सिन्हा को चुनवाने का जाल फैलाया है । समस्या लेकिन यह हुई है कि उनकी इस कोशिश में उन्हें उन कई लोगों का भी साथ और समर्थन नहीं मिल रहा है जो चुनावी मुकाबले में विशाल सिन्हा के साथ थे । गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा के नजदीकियों का ही कहना है कि 'चोर दरवाजे' से विशाल सिन्हा को चुनवाने की मुहिम में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अनुपम बंसल का पर्याप्त सहयोग और समर्थन नहीं मिल रहा है । उनके अनुसार, अनुपम बंसल इस पचड़े से दूर रहने के लिए तर्क यह दे रहे हैं कि वह करें तो क्या करें ? उनका तर्क सही दिखता भी है - वह आखिर करें भी तो क्या करें ? गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा के नजदीकियों का कहना है कि तकनीकी रूप से अनुपम बंसल को कुछ नहीं करना है, लेकिन वह यदि इस मामले में विशाल सिन्हा की तरफ से दिलचस्पी दिखाएँ तो इस मामले में फैसला करने वाले पदाधिकारियों पर दबाव बनेगा और विशाल सिन्हा का काम बनेगा - लेकिन अनुपम बंसल इस मामले में किसी भी तरह की कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखा रहे हैं और ऐसा लगता है कि उन्होंने विशाल सिन्हा का साथ छोड़ दिया है ।
अनुपम बंसल की स्थिति - फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते दरअसल थोड़ी विकट हो गई है । उनसे सहानुभूति रखने वाले एक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का कहना है कि विशाल सिन्हा की चुनावी हार से अनुपम बंसल की भी खासी किरकिरी हुई है - जिसे वह और नहीं बढ़ाना चाहते होंगे । विशाल सिन्हा को अनुपम बंसल का खुला समर्थन था - लेकिन विशाल सिन्हा फिर भी चुनाव हार गए; तो इससे अनुपम बंसल के लिए भी बुरी स्थिति बनी । जो हुआ, सो हुआ - अनुपम बंसल ने अपनी स्थिति को फिर से सुधारने की कोशिश शुरू की है और अब वह नए लफड़े में नहीं पड़ना चाहते हैं । अनुपम बंसल के नजदीकियों का कहना है कि अनुपम बंसल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारियों को निभाना है और इसके लिए जरूरी है कि वह किसी नए लफड़े में न पड़ें । गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा ने जो नया खेल शुरू किया है - अनुपम बंसल को उसकी सफलता पर भी संदेह है और इसलिए भी वह अपने आप को इस खेल से दूर दिखाना चाहते हैं । अनुपम बंसल को डर है कि वह फिर से विशाल सिन्हा के लिए कुछ करेंगे और विशाल सिन्हा का कुछ नहीं होगा तो उनकी फिर और फजीहत होगी - और तब उनके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारियों को निभा पाना और मुश्किल हो जायेगा । गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा के नजदीकियों को अनुपम बंसल का यह दूर-दूर रहना/दिखना पसंद नहीं आ रहा है और वह शिकायत कर रहे हैं कि अनुपम बंसल लगता है कि शिव कुमार गुप्ता के साथ जा मिले हैं । 

Wednesday, April 3, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में संजय खन्ना की उम्मीदवारी ने सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी और अजय बुद्धराज की नेतागिरी के लिए गंभीर खतरा पैदा किया

सिरसा । संजय खन्ना की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने सुरेश जिंदल और वीके हंस की उम्मीदवारी के लिए एक साथ गंभीर चुनौती पैदा की है । संजय खन्ना की उम्मीदवारी के चलते, वीके हंस की उम्मीदवारी के समर्थन में हुई मीटिंग बुरी तरह फ्लॉप हुई तो सुरेश जिंदल अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में यहाँ मीटिंग करने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहे हैं । दोनों ही खेमों के नेता संजय खन्ना को अपनी उम्मीदवारी वापस लेने और अपने अपने समर्थन में खींचने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन संजय खन्ना किसी के 'हाथ' नहीं आ रहे हैं । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के प्रमुख सेनापति अजय बुद्धराज हालाँकि दावा कर रहे हैं कि ऐन मौके पर संजय खन्ना अपनी उम्मीदवारी वापस ले लेंगे और सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के प्रति अपना समर्थन घोषित करेंगे । अपने इस दावे के संबंध में अजय बुद्धराज के पास जोरदार तर्क भी है और वह यह कि चूँकि चंद्रशेखर मेहता का सिरसा में राज है और वह उनके साथ हैं, इसलिए चंद्रशेखर मेहता ही संजय खन्ना की उम्मीदवारी को वापस करवायेंगे और तब संजय खन्ना के पास सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी का समर्थन करने के अलावा और कोई चारा नहीं होगा ।
संजय खन्ना को लेकर कई लोगों को लगता है कि अजय बुद्धराज और चंद्रशेखर मेहता ने मिलकर उन्हें ऐसा फँसाया है कि उनके लिए ज्यादा विकल्प बचे ही नहीं रहे हैं । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट में इस वर्ष के शुरू के महीनों में लोगों का विश्वास था कि अजय बुद्धराज वाला खेमा संजय खन्ना को उम्मीदवार बनाएगा । लेकिन जब उम्मीदवार सचमुच तय करने का समय आया तो अजय बुद्धराज ने सभी को आश्चर्य में डालते हुए सुरेश जिंदल को उम्मीदवार चुना और संजय खन्ना को अपने ठगे जाने का अहसास हुआ । अजय बुद्धराज से भी ज्यादा निराशा संजय खन्ना को चंद्रशेखर मेहता के रवैये से हुई - क्योंकि सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को चंद्रशेखर मेहता के समर्थन के दावे भी किये गए । चंद्रशेखर मेहता के रवैये से निराश संजय खन्ना ने लेकिन हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने सिरसा में लोगों को अपने समर्थन में जुटा कर चंद्रशेखर मेहता पर अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में रहने के लिए दबाव बनाया । यह दबाव उस समय दिखा भी जब हरियाणा फोरम के नेताओं के साथ खड़े होने के लिए चंद्रशेखर मेहता ने संजय खन्ना को उम्मीदवार बनाये जाने की शर्त रखी । अजय बुद्धराज और उनके समर्थकों का हालाँकि कहना था और है कि चंद्रशेखर मेहता ने हरियाणा फोरम के नेताओं से जान छुड़ाने के लिए संजय खन्ना की उम्मीदवारी का नाम लिया है और चंद्रशेखर मेहता यह भी जानते हैं कि संजय खन्ना के बस की उम्मीदवार बने रहना है ही नहीं और तब चंद्रशेखर मेहता उनके साथ आ जायेंगे । आजकल अजय बुद्धराज और चंद्रशेखर मेहता सार्वजानिक रूप से एक दूसरे को दी गईं गलियों को भूलकर जिस तरह एक साथ होने की कोशिश कर रहे हैं, उसे देखते हुए हो सकता है कि अजय बुद्धराज का यह कहना सच ही हो कि चंद्रशेखर मेहता ने हरियाणा फोरम के नेताओं को और संजय खन्ना को एक साथ उल्लू बनाया है । 
संजय खन्ना के रवैये ने लेकिन चंद्रशेखर मेहता की अजय बुद्धराज द्धारा बताई जा रही इस रणनीति को फेल करने की तैयारी की हुई है । संजय खन्ना ने दावा किया हुआ है और अपने इस दावे को उन्होंने इन पंक्तियों के लेखक के सामने भी दोहराया है कि वह अपनी उम्मीदवारी को किसी भी कीमत पर वापस नहीं लेंगे । संजय खन्ना और उनके समर्थकों का सोचना यह है कि दीपक तलवार, अरुण पुरी और दीपक टुटेजा के वीके हंस की उम्मीदवारी के समर्थन में जाने से सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को दिल्ली में मिल सकने वाले समर्थन-आधार को जो नुकसान पहुँचा है, उसके बाद संजय खन्ना की उम्मीदवारी के लिए चांस बढ़ गया है । दरअसल दीपक तलवार, अरुण पुरी और दीपक टुटेजा ने जो झटका दिया है उसके बाद अजय बुद्धराज के लिए सुरेश जिंदल को चुनाव जितवाने से ज्यादा एक नेता के रूप में अपनी साख बचाना ज्यादा जरूरी हो गया है । अपनी साख बचाने के वास्ते अजय बुद्धराज के लिए चंद्रशेखर मेहता का समर्थन पाना जरूरी हो गया है । संजय खन्ना और उनके समर्थकों का मानना यह है कि संजय खन्ना की उम्मीदवारी के होते हुए चंद्रशेखर मेहता के लिए उन्हें छोड़ कर अजय बुद्धराज के साथ जाना मुश्किल होगा - और तब अजय बुद्धराज को सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी का समर्थन छोड़ कर उनकी उम्मीदवारी के समर्थन के लिए मजबूर होना पड़ेगा ।
संजय खन्ना और उनके समर्थकों के अनुसार अजय बुद्धराज भी और चंद्रशेखर मेहता भी यह अच्छी तरह से समझ रहे हैं कि हरियाणा फोरम की राजनीति से निपटने के लिए उन दोनों का साथ होना जरूरी है । चंद्रशेखर मेहता के लिए संजय खन्ना की उम्मीदवारी को छोड़ कर अजय बुद्धराज के साथ जाना मुश्किल होगा; यदि वह ऐसा करते हैं तो सिरसा के लोगों के बीच उनकी पोल खुल जायेगी और सिरसा के नाम पर चलने वाली उनकी राजनीति चौपट हो जायेगी - हाँ, लेकिन यदि संजय खन्ना अपनी उम्मीदवारी खुद ही छोड़ दें तो बात अलग है; लेकिन अजय बुद्धराज के लिए सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी का साथ छोड़ना कोई मुश्किल नहीं होगा । अजय बुद्धराज का सुरेश जिंदल के साथ किसी भी तरह का कोई संबंध तो रहा नहीं है; सुरेश जिंदल को तो उन्होंने अपनी राजनीति चलाने के लिए उम्मीदवार बनाया है । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी में उन्हें यदि अपनी राजनीति चलती हुई नहीं दिखेगी तो सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को छोड़ने में भी उन्हें देर नहीं लगेगी । इसी अनुमान और गणित के भरोसे संजय खन्ना को अपनी उम्मीदवारी को बनाये रखने में अपना काम बनता दिख रहा है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों और नेताओं के 'स्वार्थों' को समझने वाले लोगों को भी लगता है कि संजय खन्ना के लिए स्थितियाँ अभी भले ही अनुकूल न दिख रही हों, लेकिन यदि वह अपनी उम्मीदवारी को बनाये रखते हैं और चंद्रशेखर मेहता को अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में बनाये रख पाते हैं - तो चुनाव का दिन आते-आते वह सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थक अजय बुद्धराज सहित दूसरे नेताओं का भी समर्थन प्राप्त कर लेंगे । यह देखना दिलचस्प होगा कि संजय खन्ना को जो मौका मिला है, उसका वह कैसे इस्तेमाल करते हैं - और कर भी पाते हैं या नहीं ?

Tuesday, April 2, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में राजेश बत्रा की अड़ंगेबाजी के बावजूद मुकेश अरनेजा ने पेट्स का निमंत्रण अंततः जुगाड़ ही लिया

नई दिल्ली । मिल गया .....मिल गया .....मिल गया .....मुकेश अरनेजा को पेट्स का निमंत्रण मिल गया । पेट्स का निमंत्रण मिलने की बात को मुकेश अरनेजा कुछ इस तरह से लोगों को बता रहे हैं जैसे उन्होंने कोई बहुत बड़ा किला फतह कर लिया हो । डीटीटीएस का निमंत्रण न मिलने से मुकेश अरनेजा जिस तरह दुखी और निराश हुए दिखे थे, उसे देखते हुए पेट्स का निमंत्रण मिलना उनके लिए किला जीतने जैसा ही है । डीटीटीएस में निमंत्रित न करके विनोद बंसल ने मुकेश अरनेजा को ऐसा करारा झटका दिया था कि मुकेश अरनेजा को अपनी भारी किरकिरी महसूस हुई थी । मुकेश अरनेजा अपने आप को डिस्ट्रिक्ट का बड़ा भारी नेता मानते हैं, लेकिन विनोद बंसल ने 'बिना कुछ किये' ही उनकी नेतागिरी की हवा निकाल दी । मजे की बात यह दिखी कि डीटीटीएस में निमंत्रित न किये जाने के लिए मुकेश अरनेजा ने विनोद बंसल के लिए तो कुछ नहीं कहा, लेकिन राजेश बत्रा को उन्होंने जी भर कर कोसा । डीटीटीएस में निमंत्रित न किये जाने के लिए मुकेश अरनेजा ने दरअसल विनोद बंसल की बजाये राजेश बत्रा को जिम्मेदार माना था । उन्होंने कुछेक लोगों से कहा था कि विनोद बंसल की हिम्मत नहीं हो सकती कि वह उन्हें निमंत्रित न करें; लेकिन वह राजेश बत्रा के हाथों मजबूर हुए । राजेश बत्रा को कोसने/गलियाने का मुकेश अरनेजा वैसे भी कोई मौका नहीं छोड़ते हैं, डीटीटीएस का निमंत्रण न मिलने के बाद तो राजेश बत्रा के प्रति उनका गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुँचा ।
राजेश बत्रा के प्रति मुकेश अरनेजा ने गुस्सा तो खूब निकाला, लेकिन उन्हें साथ ही साथ यह चिंता भी हुई कि उन्हें कहीं पेट्स का निमंत्रण भी नहीं मिला तो उनकी तो सारी शेखीबाजी निकल जायेगी । इसलिए मुकेश अरनेजा पेट्स का निमंत्रण जुगाड़ने की कोशिश में भी जुटे । विनोद बंसल के नजदीकियों ने ही बताया कि इस कोशिश में वह एक तरफ तो विनोद बंसल की खुशामद में जुटे और दूसरी तरफ उन्होंने मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता से तथा पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता से सिफारिश भी करवाई । पेट्स का निमंत्रण पाना मुकेश अरनेजा के लिए दरअसल जीने-मरने जैसा मामला रहा । उन्होंने माना/कहा कि उन्हें यदि पेट्स का निमंत्रण नहीं मिला तो उनकी तो नाक ही कट जायेगी । इसीलिये पेट्स का निमंत्रण पाने के लिए उन्होंने शेखर मेहता और सुशील गुप्ता जैसे बड़े नेताओं की मदद लेने से भी गुरेज नहीं किया । इनकी मदद जुटाने के लिए मुकेश अरनेजा ने राजेश बत्रा का नाम इस्तेमाल किया । मुकेश अरनेजा ने इन्हें भरमाया कि राजेश बत्रा ने ही विनोद बंसल पर दबाव बनाया हुआ है कि मुकेश अरनेजा को उनके गवर्नर-काल में कोई तवज्जो न मिले, और राजेश बत्रा के दबाव के कारण ही विनोद बंसल ने उन्हें डीटीटीएस में निमंत्रित नहीं किया । इस तरह की बातें करके मुकेश अरनेजा ने शेखर मेहता और सुशील गुप्ता को विनोद बंसल से उन्हें पेट्स में निमंत्रित करने की सिफारिश करने के लिए तैयार किया ।
मुकेश अरनेजा की पर्दे के पीछे की इस कार्रवाई ने 'काम' किया और उन्हें पेट्स का निमंत्रण मिल गया । पेट्स का निमंत्रण पाकर मुकेश अरनेजा इतने खुश हुए हैं कि सभी को बताते फिर रहे हैं । पेट्स का निमंत्रण और भी कई लोगों को मिला है, लेकिन इस निमंत्रण की जितनी खुशी मुकेश अरनेजा को हो रही है उतनी खुशी अन्य किसी ने प्रकट नहीं की है । मुकेश अरनेजा लोगों को बता रहे हैं कि राजेश बत्रा ने तो पूरी कोशिश की थी कि डीटीटीएस की तरह उन्हें पेट्स का भी निमंत्रण न मिले, लेकिन उन्होंने विनोद बंसल की ऐसी हालत कर दी कि विनोद बंसल के लिए राजेश बत्रा की बात मानना संभव ही नहीं रहा । मुकेश अरनेजा ने लोगों के बीच दावा किया है कि उन्हें यदि पहले से पता होता कि डीटीटीएस में उनकी उपस्थिति में राजेश बत्रा अड़ंगा डालेंगे तो वह डीटीटीएस का निमंत्रण भी ले कर दिखा देते । मुकेश अरनेजा का कहना है कि उन्हें पता है कि विनोद बंसल को कहाँ से, किससे और कैसे 'कसवाना' है - जिसके बाद विनोद बंसल के पास राजेश बत्रा की बात मानने या उनके दबावों में आने से इंकार करने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा ।
मुकेश अरनेजा पेट्स का निमंत्रण पाकर बहुत खुश हैं । खुश होने का कारण भी है - उन्होंने एक बार फिर यह साबित किया है कि वह अपने लिए जो चाहते हैं उसे किसी न किसी तिकड़म से पा ही लेते हैं ।

Monday, April 1, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में दीपक तलवार और अरुण पुरी को भी वीके हंस के समर्थन में लाकर दीपक टुटेजा ने सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के लिए गंभीर चुनौती पैदा की

नई दिल्ली । दीपक टुटेजा की कार्रवाई ने अजय बुद्धराज को तगड़ा झटका दिया है । दीपक टुटेजा ने जो किया उसके चलते वह अजय बुद्धराज की उम्मीद से ज्यादा होशियार साबित हुए हैं । अजय बुद्धराज के एक नजदीकी के अनुसार, अजय बुद्धराज को यह आशंका तो थी कि दीपक टुटेजा शायद उनके साथ न रहें, लेकिन यह उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि दीपक टुटेजा खुद तो जायेंगे ही, अपने साथ अरुण पुरी और दीपक तलवार को भी ले जायेंगे । दीपक टुटेजा ने जो कदम उठाया है, उसने अजय बुद्धराज की राजनीति में ऐसा पंक्चर किया है कि उनकी राजनीति की सारी हवा निकाल दी है । अजय बुद्धराज ने पंक्चर जोड़ कर अपनी राजनीति को वापस पटरी पर लाने के लिए अरुण पुरी और दीपक तलवार को दीपक टुटेजा से अलग करने का अभियान तो छेड़ा हुआ है, लेकिन अभी तक तो बात बनती हुई नहीं दिख रही है । दीपक तलवार, अरुण पुरी और दीपक टुटेजा के कदम ने सुरेश जिंदल को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवाने के अजय बुद्धराज के अभियान को दिल्ली में तो तगड़ा झटका दिया ही है, हरियाणा तक में नुकसान पहुँचाया है । इन तीनों के वीके हंस की उम्मीदवारी के समर्थन में खुल कर आने से जो राजनीतिक समीकरण बने हैं, उनके दबाव के चलते सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थन में भिवानी में होने वाली मीटिंग को ऐन मौके पर रद्द कर देना पड़ा ।
सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थन में दिल्ली के जिस एकतरफा समर्थन का दावा किया जा रहा था - दीपक तलवार, अरुण पुरी और दीपक टुटेजा ने उस समर्थन से हाथ खींच कर बाजी पलट दी है । उल्लेखनीय है कि, जैसा कि अपनी एक पिछली रिपोर्ट में हमने बताया था कि सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को गुपचुप रूप से संभव करने के पीछे अजय बुद्धराज का मुख्य उद्देश्य डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दीपक टुटेजा के प्रभाव को कम करना था । दीपक टुटेजा ने पिछले कुछेक वर्षों में कुछेक क्लब्स में अपने समर्थक बना लिए हैं और इसके कारण उनके पास कुछ वोटों की एकमुश्त ताकत जमा हो गई है । चुनावी राजनीति का वास्तविक नजारा यही है कि जिसके पास वोट की जितनी ताकत है, उसकी अहमियत उतनी ही बड़ी होती है । यह बात हालाँकि आधी सच है । बाकी आधा सच यह भी है कि कुछेक लोगों ने अपने ऑरा (प्रभामंडल) के कारण भी अपनी अहमियत बनाई हुई है । जैसे अजय बुद्धराज का ही मामला है - उनके पास वोट की ताकत ज्यादा नहीं है लेकिन अपने ऑरा की बदौलत उन्होंने अपनी अच्छी धाक बनाई हुई है । अपने ऑरा में उन्होंने डीके अग्रवाल और अरुण पुरी के ऑरा तथा दीपक टुटेजा के वोटों की ताकत को जोड़ कर अपनी अच्छी राजनीति जमाई हुई थी । इनमें दीपक टुटेजा ने चूँकि वोटों की अच्छी खासी ताकत बना ली है, उसके चलते अजय बुद्धराज को उनसे चुनौती मिलती दिखी । विजय शिरोहा के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने का सेहरा पूरी तरह दीपक टुटेजा के सिर बँधा । इसमें अजय बुधराज को अपनी सत्ता के लिए खतरा दिखा और उन्हें दीपक टुटेजा का 'ईलाज' करना जरूरी लगने लगा । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के जरिये अजय बुद्धराज ने जो जाल बिछाया, उसमें मुख्य निशाना दरअसल दीपक टुटेजा ही हैं ।
अजय बुद्धराज ने बड़ी चतुराई से जाल बिछाया था और वह दीपक टुटेजा या विजय शिरोहा से सीधे टक्कर लेते हुए दिखने से बच रहे थे - उन्होंने 'अपना बनाये' रख कर इन्हें 'मारने' की तैयारी की थी । इनसे 'छिप' कर और हर्ष बंसल तथा चंद्रशेखर मेहता जैसे धुर विरोधियों से दोस्ती गांठ कर अजय बुद्धराज ने चाल तो होशियारी से चली थी, लेकिन उनकी होशियारी की पोल भी जल्दी ही खुल गई । इसके बावजूद अजय बुद्धराज ने सावधानी नहीं बरती । उन्हें दरअसल यह विश्वास रहा कि दीपक टुटेजा छटपटाये चाहें जितना, कर कुछ नहीं पाएंगे । अजय बुद्धराज को यह विश्वास इसलिए था क्योंकि उन्होंने यह मान लिया था कि दीपक टुटेजा को किसी और का संग-साथ मिलेगा नहीं और दिल्ली में अलग-थलग पड़ जाने के डर से अकेले वह कहीं जायेंगे नहीं । अजय बुद्धराज के नजदीकियों के अनुसार, अजय बुद्धराज को भरोसा था कि उन्होंने दीपक टुटेजा की जैसी घेराबंदी की है, उसके चलते दीपक टुटेजा उपेक्षित होने के बाद भी साथ रहने को मजबूर होंगे । अजय बुद्धराज ने यह गणित भी लगाया हुआ था कि दीपक टुटेजा अलग-थलग पड़ने का खतरा उठा कर यदि साथ छोड़ भी देते हैं तो भी ज्यादा नुकसान नहीं कर पाएंगे । अजय बुद्धराज क्या, किसी और ने भी यह अनुमान तक नहीं लगाया था कि दीपक टुटेजा अकेले नहीं, बल्कि दो और लोगों को अपने साथ ले जायेंगे । अरुण पुरी से भी ज्यादा आश्चर्य लोगों को दीपक तलवार का दीपक टुटेजा के साथ जाने का हुआ है ।   
अजय बुद्धराज ने दीपक टुटेजा से मिले झटके से संभलने की कोशिश करते हुए अरुण पुरी और दीपक तलवार को मनाने पर जोर दिया हुआ है और उन्हें तरह-तरह के डर दिखा कर वापस लाने का अभियान छेड़ा हुआ है । सुरेश जिंदल को उन्होंने आश्वस्त किया हुआ है कि वह कुछ भी करेंगे और अरुण पुरी और दीपक तलवार को तो वापस ले ही आयेंगे और उसके बाद दीपक टुटेजा के वोटों के गणित से निपटेंगे । अजय बुद्धराज ही नहीं, सुरेश जिंदल के अचानक से समर्थक बने प्रदीप जैन जैसे लोग भी सुरेश जिंदल का हौंसला बनाये रखने के लिए बढ़-चढ़ कर दावे कर रहे हैं कि दीपक तलवार, अरुण पुरी और दीपक टुटेजा को मना लिया जायेगा और वापस ले आया जायेगा । सुरेश जिंदल और उनके साथ वास्तव में हमदर्दी रखने वाले लोगों को लेकिन अपना खेल बिगड़ता दिखने लगा है । दीपक तलवार, अरुण पुरी और दीपक टुटेजा का समर्थन खोने के दूसरे ही दिन भिवानी में होने वाली उनकी मीटिंग जिस तरह रद्द करनी पड़ी है उसके कारण सुरेश जिंदल और उनके साथ सच्ची हमदर्दी रखने वाले लोगों को अपनी पराजय साफ-साफ दिखाई देने लगी है । उनकी उम्मीदवारी के जरिये अपनी राजनीति ज़माने वाले नेता लोग हालाँकि उनका हौंसला बनाये रखने का जी-तोड़ प्रयास भी कर रहे हैं । ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि सुरेश जिंदल सारे नज़ारे को किस तरह ले/समझ रहे हैं ।