Friday, April 12, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में हर्ष बंसल ने सब्जबाग दिखा कर सुरेश जिंदल से मोटी रकम जुटाने की व्यवस्था की

नई दिल्ली । सुरेश जिंदल की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत उम्मीदवारी के समर्थन में जब से हर्ष बंसल ने अपनी सक्रियता तेज की है, तब से सुरेश जिंदल के समर्थकों व शुभचिंतकों की चिंता बढ़ गई है । उन्हें डर यह पैदा हुआ है कि हर्ष बंसल की बद-जुबान और उनकी बदनामी सुरेश बंसल की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का नहीं, बल्कि घटाने का काम करेगी । हर्ष बंसल के बारे में माना भी जाता है कि वह जिसके दोस्त हो जायें, उसके दुश्मन फिर आराम करने चले जाते हैं - यह सोच कर कि उनका काम अब हर्ष बंसल ही कर लेगा । यानि हर्ष बंसल जिसके दोस्त हो जाते हैं उसे फिर दुश्मनों की जरूरत नहीं पड़ती । वीके हंस जो दो बार चुनाव हारे हैं - उनमें उनके विरोधियों ने उन्हें नहीं हराया था; हर्ष बंसल के 'सहयोग' और 'समर्थन' ने उन्हें हराया था । प्रदीप जैन जैसे वरिष्ठ और सक्रिय लायन को हराया विजय शिरोहा ने ही था, लेकिन प्रदीप जैन को हार के रास्ते पर 'पहुँचाया' हर्ष बंसल ने ही था ।
हर्ष बंसल का 'अपने' उम्मीदवार की मिट्टी कुटवाने का तरीका है बड़ा दिलचस्प - वह 'अपने' उम्मीदवार को 'मिल रहे समर्थन' की ऐसी हवा बनाते और दिखाते हैं कि उम्मीदवार अपने आप को जीता हुआ समझने लगता है । वो तो जब नतीजा आता है, तब उनके समर्थित उम्मीदवार को असलियत का पता चलता है । वीके हंस के दोनों चुनावों को तथा प्रदीप जैन के चुनाव को जिन भी लोगों ने नजदीक से देखा है, वह बता सकते हैं कि नतीजा आने से पहले हर्ष बंसल इन्हें भारी बहुमत से जीता हुआ घोषित कर रहे थे । यूँ तो हर उम्मीदवार को और उसके समर्थकों को अपनी जीत का ख्वाब आता ही है - यह बहुत स्वाभाविक प्रतिक्रिया है; लेकिन हर्ष बंसल का तरीका खासा तूफानी होता है और पहली नजर में बड़ा विश्वसनीय 'दिखता' है । वह उम्मीदवार के सामने ऐसा सीन बनाते हैं कि उम्मीदवार बेचारा शक भी नहीं कर पाता । असलियत का पता उसे नतीजा आने पर ही चलता है । एक उदाहरण काफी होगा - सुरेश जिंदल के समर्थन में दिल्ली में उन्होंने बड़े समर्थन का दावा किया है । अपने दावे के समर्थन में उन्होंने जो तथ्य 'बनाये' और बताये हैं, वह उनके दावे को 'सच' भी साबित-सा करते हैं । लेकिन उन्होंने बड़ी चतुराई से कुछ बाते छिपा लीं । अपने क्लब का समर्थन सुरेश जिंदल के लिए घोषित करवाने को लेकर उन्हें क्लब के पदाधिकारियों की बड़ी खुशामद-मिन्नत करनी पड़ी और अपनी इज्जत का वास्ता देना पड़ा । क्लब के पदाधिकारियों ने उन्हें बुरी तरह हड़काया कि उनसे पूछे बिना उन्होंने सुरेश जिंदल को समर्थन पत्र देने का वायदा क्यों किया ? हर्ष बंसल ने गिड़गिड़ा कर, माफी मांग कर और आगे से ऐसा न करने का वायदा करके अपने क्लब के पदाधिकारियों को सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन पत्र देने के लिए राजी तो कर लिया - लेकिन इस तरीके से क्या वह अपने क्लब के वोट भी सुरेश जिंदल को सचमुच दिलवा सकेंगे ? अब, दिख तो यही रहा है कि हर्ष बंसल के क्लब ने सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थन में पत्र दिया है; लेकिन पर्दे के पीछे जो हुआ है उसके चलते इसमें तो संदेह ही है कि सुरेश जिंदल को उनके क्लब के वोट भी मिलेंगे क्या ? दरअसल हर्ष बंसल की इसी तिकड़म के कारण, उनका जो उम्मीदवार नतीजा आने से पहले जीतता हुआ दिखता, चुनावी नतीजा आने के बाद वह चारों खाने चित्त पड़ा नजर आता है ।
हर्ष बंसल इस तरह की बनावटी तिकड़म करते क्यों हैं ? वह सुरेश जिंदल को वास्तविकता बता क्यों नहीं देते हैं कि उन्होंने कैसे खुशामद कर कर के उनके लिए समर्थन पत्र जुटाए हैं और यह मत समझना कि इनके वोट भी मिलेंगे ही ? हर्ष बंसल ऐसा इसलिए नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें सुरेश जिंदल से अपने फर्जी क्लब्स के ड्यूज भरने के लिए मोटी रकम चाहिए । इसके लिए उन्हें सुरेश जिंदल को यह दिखाना जरूरी है कि हर तरफ उन्हीं का जलवा है । इस तथाकथित जलवे के पीछे छिपी सच्चाई यदि सामने आई तो सुरेश जिंदल हो सकता है कि उन्हें उतने पैसे न दें, जितने वह चाह/मांग रहे हैं । चर्चा है कि हर्ष बंसल के जो फर्जी क्लब हैं उनमें उन्होंने इस वर्ष कई कई सदस्य बढ़ाये हैं, जिनके वोट अगले लायन वर्ष में मिलेंगे । यानि हर्ष बंसल को सुरेश जिंदल से उन सदस्यों के ड्यूज भी खसोटने हैं, जिनके वोट उन्हें नहीं मिलने हैं । हर्ष बंसल का वीके हंस के साथ जो अनुभव रहा उससे सबक लेकर हर्ष बंसल की कोशिश रहेगी कि वह चुनावी नतीजा आने से पहले ही सुरेश जिंदल से पैसे ले लें । वीके हंस के साथ उनका जो पैसों का झगड़ा बताया जाता है वह हर्ष बंसल के धोखे में न फँसने की वीके हंस की कोशिश के कारण ही तो पैदा हुआ । सुरेश जिंदल उस तरह की कोई कोशिश न कर सकें, इसके लिए हर्ष बंसल उन्हें सब्जबाग दिखाना जरूरी समझते हैं और आंकड़ों की पूरी बाजीगरी से सुरेश जिंदल को आश्वस्त कर देना चाहते हैं कि जीत तो उनकी पक्की ही है । हर्ष बंसल ने आंकड़ों की बाजीगरी का इसी तरह का सब्जबाग वीके हंस को दो बार और प्रदीप जैन को दिखाया था - लेकिन हुआ क्या, यह सभी को पता है । इसीलिये सुरेश जिंदल से हमदर्दी रखने वाले लोगों का कहना है कि सुरेश जिंदल को हर्ष बंसल की लफ्फाजी और लूट-खसोट वाली हरकत से बच कर रहना चाहिए । हमदर्दी रखने वालों ने ऐसा कह तो दिया, लेकिन उनकी चिंता यह भी है कि 'रजिया' बेचारी बचेगी कैसे ?