Monday, April 1, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में दीपक तलवार और अरुण पुरी को भी वीके हंस के समर्थन में लाकर दीपक टुटेजा ने सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के लिए गंभीर चुनौती पैदा की

नई दिल्ली । दीपक टुटेजा की कार्रवाई ने अजय बुद्धराज को तगड़ा झटका दिया है । दीपक टुटेजा ने जो किया उसके चलते वह अजय बुद्धराज की उम्मीद से ज्यादा होशियार साबित हुए हैं । अजय बुद्धराज के एक नजदीकी के अनुसार, अजय बुद्धराज को यह आशंका तो थी कि दीपक टुटेजा शायद उनके साथ न रहें, लेकिन यह उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि दीपक टुटेजा खुद तो जायेंगे ही, अपने साथ अरुण पुरी और दीपक तलवार को भी ले जायेंगे । दीपक टुटेजा ने जो कदम उठाया है, उसने अजय बुद्धराज की राजनीति में ऐसा पंक्चर किया है कि उनकी राजनीति की सारी हवा निकाल दी है । अजय बुद्धराज ने पंक्चर जोड़ कर अपनी राजनीति को वापस पटरी पर लाने के लिए अरुण पुरी और दीपक तलवार को दीपक टुटेजा से अलग करने का अभियान तो छेड़ा हुआ है, लेकिन अभी तक तो बात बनती हुई नहीं दिख रही है । दीपक तलवार, अरुण पुरी और दीपक टुटेजा के कदम ने सुरेश जिंदल को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवाने के अजय बुद्धराज के अभियान को दिल्ली में तो तगड़ा झटका दिया ही है, हरियाणा तक में नुकसान पहुँचाया है । इन तीनों के वीके हंस की उम्मीदवारी के समर्थन में खुल कर आने से जो राजनीतिक समीकरण बने हैं, उनके दबाव के चलते सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थन में भिवानी में होने वाली मीटिंग को ऐन मौके पर रद्द कर देना पड़ा ।
सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थन में दिल्ली के जिस एकतरफा समर्थन का दावा किया जा रहा था - दीपक तलवार, अरुण पुरी और दीपक टुटेजा ने उस समर्थन से हाथ खींच कर बाजी पलट दी है । उल्लेखनीय है कि, जैसा कि अपनी एक पिछली रिपोर्ट में हमने बताया था कि सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को गुपचुप रूप से संभव करने के पीछे अजय बुद्धराज का मुख्य उद्देश्य डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दीपक टुटेजा के प्रभाव को कम करना था । दीपक टुटेजा ने पिछले कुछेक वर्षों में कुछेक क्लब्स में अपने समर्थक बना लिए हैं और इसके कारण उनके पास कुछ वोटों की एकमुश्त ताकत जमा हो गई है । चुनावी राजनीति का वास्तविक नजारा यही है कि जिसके पास वोट की जितनी ताकत है, उसकी अहमियत उतनी ही बड़ी होती है । यह बात हालाँकि आधी सच है । बाकी आधा सच यह भी है कि कुछेक लोगों ने अपने ऑरा (प्रभामंडल) के कारण भी अपनी अहमियत बनाई हुई है । जैसे अजय बुद्धराज का ही मामला है - उनके पास वोट की ताकत ज्यादा नहीं है लेकिन अपने ऑरा की बदौलत उन्होंने अपनी अच्छी धाक बनाई हुई है । अपने ऑरा में उन्होंने डीके अग्रवाल और अरुण पुरी के ऑरा तथा दीपक टुटेजा के वोटों की ताकत को जोड़ कर अपनी अच्छी राजनीति जमाई हुई थी । इनमें दीपक टुटेजा ने चूँकि वोटों की अच्छी खासी ताकत बना ली है, उसके चलते अजय बुद्धराज को उनसे चुनौती मिलती दिखी । विजय शिरोहा के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने का सेहरा पूरी तरह दीपक टुटेजा के सिर बँधा । इसमें अजय बुधराज को अपनी सत्ता के लिए खतरा दिखा और उन्हें दीपक टुटेजा का 'ईलाज' करना जरूरी लगने लगा । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के जरिये अजय बुद्धराज ने जो जाल बिछाया, उसमें मुख्य निशाना दरअसल दीपक टुटेजा ही हैं ।
अजय बुद्धराज ने बड़ी चतुराई से जाल बिछाया था और वह दीपक टुटेजा या विजय शिरोहा से सीधे टक्कर लेते हुए दिखने से बच रहे थे - उन्होंने 'अपना बनाये' रख कर इन्हें 'मारने' की तैयारी की थी । इनसे 'छिप' कर और हर्ष बंसल तथा चंद्रशेखर मेहता जैसे धुर विरोधियों से दोस्ती गांठ कर अजय बुद्धराज ने चाल तो होशियारी से चली थी, लेकिन उनकी होशियारी की पोल भी जल्दी ही खुल गई । इसके बावजूद अजय बुद्धराज ने सावधानी नहीं बरती । उन्हें दरअसल यह विश्वास रहा कि दीपक टुटेजा छटपटाये चाहें जितना, कर कुछ नहीं पाएंगे । अजय बुद्धराज को यह विश्वास इसलिए था क्योंकि उन्होंने यह मान लिया था कि दीपक टुटेजा को किसी और का संग-साथ मिलेगा नहीं और दिल्ली में अलग-थलग पड़ जाने के डर से अकेले वह कहीं जायेंगे नहीं । अजय बुद्धराज के नजदीकियों के अनुसार, अजय बुद्धराज को भरोसा था कि उन्होंने दीपक टुटेजा की जैसी घेराबंदी की है, उसके चलते दीपक टुटेजा उपेक्षित होने के बाद भी साथ रहने को मजबूर होंगे । अजय बुद्धराज ने यह गणित भी लगाया हुआ था कि दीपक टुटेजा अलग-थलग पड़ने का खतरा उठा कर यदि साथ छोड़ भी देते हैं तो भी ज्यादा नुकसान नहीं कर पाएंगे । अजय बुद्धराज क्या, किसी और ने भी यह अनुमान तक नहीं लगाया था कि दीपक टुटेजा अकेले नहीं, बल्कि दो और लोगों को अपने साथ ले जायेंगे । अरुण पुरी से भी ज्यादा आश्चर्य लोगों को दीपक तलवार का दीपक टुटेजा के साथ जाने का हुआ है ।   
अजय बुद्धराज ने दीपक टुटेजा से मिले झटके से संभलने की कोशिश करते हुए अरुण पुरी और दीपक तलवार को मनाने पर जोर दिया हुआ है और उन्हें तरह-तरह के डर दिखा कर वापस लाने का अभियान छेड़ा हुआ है । सुरेश जिंदल को उन्होंने आश्वस्त किया हुआ है कि वह कुछ भी करेंगे और अरुण पुरी और दीपक तलवार को तो वापस ले ही आयेंगे और उसके बाद दीपक टुटेजा के वोटों के गणित से निपटेंगे । अजय बुद्धराज ही नहीं, सुरेश जिंदल के अचानक से समर्थक बने प्रदीप जैन जैसे लोग भी सुरेश जिंदल का हौंसला बनाये रखने के लिए बढ़-चढ़ कर दावे कर रहे हैं कि दीपक तलवार, अरुण पुरी और दीपक टुटेजा को मना लिया जायेगा और वापस ले आया जायेगा । सुरेश जिंदल और उनके साथ वास्तव में हमदर्दी रखने वाले लोगों को लेकिन अपना खेल बिगड़ता दिखने लगा है । दीपक तलवार, अरुण पुरी और दीपक टुटेजा का समर्थन खोने के दूसरे ही दिन भिवानी में होने वाली उनकी मीटिंग जिस तरह रद्द करनी पड़ी है उसके कारण सुरेश जिंदल और उनके साथ सच्ची हमदर्दी रखने वाले लोगों को अपनी पराजय साफ-साफ दिखाई देने लगी है । उनकी उम्मीदवारी के जरिये अपनी राजनीति ज़माने वाले नेता लोग हालाँकि उनका हौंसला बनाये रखने का जी-तोड़ प्रयास भी कर रहे हैं । ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि सुरेश जिंदल सारे नज़ारे को किस तरह ले/समझ रहे हैं ।