Tuesday, January 30, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ई में रमेश काबरा के अचानक से उम्मीदवार बनने की घोषणा के पीछे जगदीश गुलाटी के नेतृत्व वाली तिकड़ी के 'खेल' को ही देखा/पहचाना जा रहा है

वाराणसी । रमेश काबरा की अचानक से सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवारी घोषित करके मुकुंदलाल टंडन,जगदीश गुलाटी व वीरेंद्र गोयल की बदनाम तिकड़ी ने एक बार फिर डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अपना गंदा खेल शुरू कर दिया है । उल्लेखनीय है कि इन तीनों का प्रायः हर वर्ष का यह खेल रहा है कि पहले तो यह किसी को भी सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए कभी खुले तो कभी छिपे तरीके से 'प्रेरित' करते हैं, उससे कई तरह के खर्चे करवाते हैं - और फिर ऐन मौके पर किसी और को उम्मीदवार बना देते हैं । लोगों का आरोप है कि इस तरह से यह तीनों उम्मीदवारों से पैसे ऐंठने का प्रयास करते हैं, जिसमें कभी कामयाब होते हैं और कभी नहीं भी होते हैं । यह तीनों उम्मीदवारों से पैसे ऐंठने में कामयाब हों या न हों - उम्मीदवार बनने वाला जरूर बर्बाद और परेशान हो जाता है । इनकी इस चालबाजी के चलते कई बार ऐसा हुआ है कि पहले से चला आ रहा उम्मीदवार अपना समय, अपनी एनर्जी और अपना पैसा लगा चुकने के बावजूद इनकी हरकतों के चलते पीछे हट जाता है । इनकी हरकतों के कारण एक उम्मीदवार को तो अपना लगा पैसा वापस पाने के लिए धरने पर भी बैठने के लिए मजबूर होना पड़ा था । मुकुंदलाल टंडन, जगदीश गुलाटी और वीरेंद्र गोयल की तिकड़ी की खुशकिस्मती यह है कि अपना खेल चलाने के लिए इन्हें कोई न कोई मोहरा मिल भी जाता है । इस बार भी रमेश काबरा के रूप में इन्हें एक मोहरा मिल गया है । रमेश काबरा को लोग मोहरे के रूप में इसलिए देख/पहचान रहे हैं, क्योंकि यह सज्जन अभी कुछ ही दिन पहले तक उम्मीदवार बनने की संभावना से साफ साफ इंकार करते आ रहे थे । लगातार इंकार करते रहने के बावजूद, यूँ तो कोई भी उम्मीदवार बन सकता है - लेकिन रमेश काबरा का मामला काफी अलग है ।
दरअसल रमेश काबरा काफी पहले उम्मीदवार बने थे । पूर्व गवर्नर बन चुकीं पुष्पा स्वरूप के सामने रमेश काबरा ने अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी और काफी आगे तक बढ़ गए थे, लेकिन जल्दी ही उन्हें समझ में आ गया था कि चुनावी चक्कर को झेल पाना उनके लिए मुश्किल ही है - लिहाजा उन्होंने फिर चुनावी मुकाबले से अपने आपको बाहर कर लिया था; और ऐसा बाहर कर लिया कि उसके बाद वाले वर्षों में भी उन्होंने उम्मीदवार बनने का प्रयास नहीं किया । पिछले लायन वर्ष में, रमेश काबरा जब दूसरी बार कैबिनेट सेक्रेटरी बने तब लोगों को लगा कि वह शायद उम्मीदवार बनने की तैयारी कर रहे हैं - लेकिन उन्होंने लगातार उम्मीदवार बनने की संभावना से इंकार ही किया । उनका यह इंकार अभी चार दिन पहले तक जारी ही था, और पूरी ढृढ़ता के साथ जारी था । उनके नजदीकियों का कहना रहा है कि एक उम्मीदवार को जिस तरह के दबाव झेलना पड़ते हैं, वह रमेश काबरा के बस की बात नहीं हैं - और इसे उन्होंने चूँकि खुद समझ लिया है, इसलिए चुनावी चक्कर में वह नहीं पड़ेंगे । हाँ, यदि बिना चुनाव का सामना किए उन्हें (सेकेंड वाइस) डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने का मौका मिलेगा, तो वह जरूर तैयार हो जायेंगे । इसीलिए तीसरी कैबिनेट मीटिंग के मौके पर अचानक से रमेश काबरा की प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने हर किसी को हैरान ही किया । उल्लेखनीय है कि अभी तक सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में डॉक्टर आरकेएस चौहान की ही सक्रियता लोगों को देखने को मिल रही थी । अजय मेहरोत्रा के भी उम्मीदवार बनने की चर्चा तो सुनी गई थी, लेकिन फिर जब उनकी कोई सक्रियता देखने को नहीं मिली तो डॉक्टर आरकेएस चौहान के नाम पर ही डिस्ट्रिक्ट में सहमति बनती हुई दिखी । इस व्यापक सहमति को देख कर ही उम्मीद की जा रही थी कि पिछले वर्ष की तरह ही इस वर्ष भी सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव निर्विरोध ही हो जायेगा - और इसे डिस्ट्रिक्ट की पहचान व प्रतिष्ठा के संदर्भ में एक अच्छे संकेत के रूप में देखा जा रहा था ।
उम्मीद के साथ-साथ कई लोगों को लेकिन आशंका भी थी कि मुकुंद लाल टंडन, जगदीश गुलाटी व वीरेंद्र गोयल की तिकड़ी निर्विरोध चुनाव तो नहीं होने देगी और कुछ न कुछ झमेला जरूर ही खड़ा करेगी । सुना गया था कि चैतन्य पांड्या को इन्होंने उम्मीदवार बनने के लिए राजी भी कर लिया था । लेकिन उनकी उम्मीदवारी की औपचारिक घोषणा होती, उससे पहले ही कुछ ज्यादा 'मौज-मजा' करने के चक्कर में चैतन्य पांड्या पुलिस की कार्रवाई में फँस गए । इसके बाद रमेश काबरा को तैयार किया गया । इस घटना क्रम से ही जाहिर है कि रमेश काबरा न तो उम्मीदवार बनने के लिए प्रयत्नशील थे, और उम्मीदवार बनने से इंकार करने की उनकी बात सच ही थी - और न मुकंदलाल टंडन, जगदीश गुलाटी व वीरेंद्र गोयल की वह पहली पसंद थे । इस तिकड़ी को चूँकि कोई उम्मीदवार नहीं मिला, इसलिए इन्होंने रमेश काबरा को उम्मीदवार बनने के लिए राजी किया है । वास्तव में इसीलिए, रमेश काबरा को उम्मीदवार के रूप में नहीं - बल्कि उक्त तिकड़ी के एक मोहरे के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है; और कई लोगों को लगता है कि रमेश काबरा शायद ही उम्मीदवार बने रह सकेंगे । हालाँकि कुछेक लोगों को यह भी लगता है कि सारा खेल डॉक्टर आरकेएस चौहान के रवैये पर भी निर्भर करेगा - वह यदि चुनावी मुकाबले से बचने की कोशिश करेंगे तो फिर रमेश काबरा हो सकता है कि हिम्मत कर लें और उम्मीदवार बने रहें । दरअसल रमेश काबरा को उनके नेताओं ने समझाया है कि उम्मीदवार के रूप में वह यदि 'तेजी' दिखायेंगे तो फिर डॉक्टर आरकेएस चौहान मुकाबले में नहीं बने रहेंगे और उनका काम आसानी से बन जायेगा । कुछेक लोगों को यह भी लगता है कि हो सकता है कि रमेश काबरा का काम आसान हो जाए - किंतु इस आसानी की जो 'कीमत' उन्हें चुकानी पड़े, वह उसके लिए तैयार न हों; और इस कारण से उनकी आसानी भी उन्हें भारी पड़े । क्या होगा, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा - लेकिन अचानक से प्रस्तुत हुई रमेश काबरा की उम्मीदवारी ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में हलचल जरूर मचा दी है ।

Monday, January 29, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन की तीसरी कैबिनेट मीटिंग में कमल शेखर के शो को फ्लॉप हुआ देख तथा इसे लेकर विशाल सिन्हा और प्रमोद चंद्र सेठ के बीच शुरू हुई तू तू मैं मैं को सुन कर हताश हुए गुरनाम सिंह के कार्यक्रम के बीच से ही वापस लौटने से कमल शेखर की हालत और पतली हुई

शाहजहाँपुर । शाहजहाँपुर में आयोजित हुई तीसरी कैबिनेट मीटिंग में कमल शेखर और उनके समर्थक नेताओं ने अपनी 'ताकत' दिखाने की योजना तो बहुत बनाई थी, लेकिन उस योजना के बुरी तरह से पिट जाने के कारण अब उनके बीच आपस में ही तू तू मैं मैं शुरू हो गई है । विशाल सिन्हा ने योजना के पिट जाने के लिए प्रमोद चंद्र सेठ को यह कहते हुए जिम्मेदार ठहराया कि प्रमोद चंद्र सेठ ने बातें तो बड़ी बड़ी की थीं, लेकिन देखने में आया कि उन्होंने रिजल्ट कुछ नहीं दिया । प्रमोद चंद्र सेठ ने यह कहते/बताते हुए विशाल सिन्हा को जिम्मेदार ठहराया कि विशाल सिन्हा ने सारी जिम्मेदारी तो उन्हें सौंप दी, किंतु तालमेल बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं ली । योजना को बुरी तरह पिटा देख और इसके लिए विशाल सिन्हा व प्रमोद चंद्र सेठ को आपस में भिड़ा देख गुरनाम सिंह इतने निराश हुए कि वह कार्यक्रम के बीच से ही वापस लौट गए । हालात से निराश और हताश विशाल सिन्हा ने अपनी नाराजगी 'जय हो' शीर्षक फिल्मी गीत पर निकाली और उसे बजने से रुकवा दिया । इस सारे तमाशे को देख कमल शेखर के नजदीकियों ने समझ लिया कि कमल शेखर को उनके समर्थक नेता एक-दूसरे पर जिम्मेदारी थोपते हुए किस तरह बेवकूफ बना रहे हैं ।
उल्लेखनीय है कि शाहजहाँपुर में आयोजित हुई तीसरी कैबिनेट मीटिंग को लेकर कमल शेखर के समर्थक नेता खासे उत्साहित थे । उनकी योजना थी कि इस मीटिंग में वह अपने समर्थकों का बड़ा जमावड़ा इकट्ठा करेंगे, जिसके जरिए डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच हवा बनायेंगे कि कमल शेखर को भारी समर्थन हैं । योजना के अनुसार, शाहजहाँपुर के ज्यादा से ज्यादा क्लब्स के पदाधिकारियों को कमल शेखर के इर्द-गिर्द इकट्ठा करने और 'दिखाने' की तैयारी की जा रही थी, जिससे संदेश दिया जा सके कि अशोक अग्रवाल को तो अपने शहर में ही समर्थन नहीं मिल रहा है, और उनके शहर में उनसे ज्यादा समर्थन तो कमल शेखर के साथ है । इस योजना को क्रियान्वित करने की जिम्मेदारी प्रमोद चंद्र सेठ को सौंपी गई थी । प्रमोद चंद्र सेठ यूँ भी दावा करते रहे हैं कि शाहजहाँपुर में एक अशोक अग्रवाल के क्लब को छोड़ कर सभी क्लब्स के वोट उनके कहने से पड़ेंगे । उनके इसी दावे को ध्यान में रखते हुए तीसरी कैबिनेट मीटिंग में कमल शेखर के कैम्प में शाहजहाँपुर के ज्यादातर क्लब्स के पदाधिकारियों को जुटाने की जिम्मेदारी प्रमोद चंद्र सेठ को सौंपी गई थी । मीटिंग के दौरान लेकिन नजारा बिलकुल उल्टा दिखाई दिया । शाहजहाँपुर के अधिकतर क्लब्स के पदाधिकारी अशोक अग्रवाल के कैम्प में और उनके इर्द-गिर्द ही दिखाई पड़े । यहाँ तक कि प्रमोद चंद्र सेठ और संजय चोपड़ा के क्लब्स के कई एक प्रमुख सदस्य तक अशोक अग्रवाल के कैम्प में नजर आए ।
तीसरी कैबिनेट मीटिंग के लिए तैयार की गई अपनी योजना को बुरी तरह से पिटता और मामले को उल्टा पड़ता देख कमल शेखर के समर्थक नेताओं के बीच गहरी निराशा छा गई और इस निराशा में विशाल सिन्हा तो बुरी तरह से बौखला गए । उनकी बौखलाहट का शिकार बने प्रमोद चंद्र सेठ । विशाल सिन्हा ने यह कहते हुए प्रमोद चंद्र सेठ को अपमानित किया कि प्रमोद चंद्र सेठ बातें तो बड़ी बड़ी कर रहे थे, लेकिन यहाँ दिख गया है कि उनके बस की कुछ है नहीं । प्रमोद चंद्र सेठ यूँ तो भले व्यक्ति हैं और प्रायः बहसबाजी में उलझते नहीं हैं, लेकिन विशाल सिन्हा की जलीकटी बातें सुनकर उनसे चुप रहा नहीं गया और उन्होंने पलटकर जबाव दिया कि विशाल सिन्हा यदि यह समझते हैं कि लोगों के साथ तालमेल बनाने के प्रयास करने की बजाए वह बद्तमीजीपूर्ण बातें करके ही कमल शेखर के लिए समर्थन जुटा लेंगे, तो भारी भ्रम में हैं । प्रमोद चंद्र सेठ का कहना रहा कि विशाल सिन्हा - और विशाल सिन्हा के कहने में आकर कमल शेखर ने शाहजहाँपुर में लोगों के साथ तालमेल बनाने का प्रयास ही नहीं किया, जिसका नतीजा रहा कि तीसरी कैबिनेट मीटिंग में कमल शेखर का 'शो' बुरी से पिट गया । कमल शेखर के शो को फ्लॉप हुआ देख तथा इसे लेकर विशाल सिन्हा और प्रमोद चंद्र सेठ के बीच शुरू हुई तू तू मैं मैं को सुन कर गुरनाम सिंह तो इतने हताश हुए कि कार्यक्रम के बीच में ही वापस लौट गए । वापस लौटते हुए उन्होंने कुछेक लोगों से कहा भी कि मैं यहाँ बहुत उत्साह और उम्मीद के साथ आया था, लेकिन मैं देख रहा हूँ कि कमल शेखर की उम्मीदवारी के लिए ज्यादा समर्थन जुट नहीं रहा है और अशोक अग्रवाल के मुकाबले वह बहुत ही कमजोर साबित हो रहे हैं ।  
गुरनाम सिंह को निराश और हताश होकर कार्यक्रम के बीच से ही वापस लौटता देख कमल शेखर के कैम्प में और मायूसी छा गई । इस मायूसी को देख विशाल सिन्हा का पारा और चढ़ गया - चढ़े पारे में वह लेकिन करते भी तो क्या करते ? विशाल सिन्हा ने फिर भी अपना गुस्सा एआर रहमान के 'जय हो' शीर्षक मशहूर फिल्मी गीत पर निकाला । उल्लेखनीय है कि अशोक अग्रवाल ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में 'जय हो' का उद्घोष किया हुआ है, जो एक तरह से उनका नारा ही बन गया है । कार्यक्रम के लगभग हो चुकने के बाद जब गाने आदि चल रहे थे, तब एआर रहमान का 'जय हो' शीर्षक गीत बजने पर विशाल सिन्हा बुरी तरह भड़क गए और आरोप लगाने लगे कि इस गाने के जरिये अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी का प्रचार किया जा रहा है । विशाल सिन्हा ने इस गीत को बजने से रोकने की माँग की । उनकी यह माँग सुनकर लोगों के बीच उनका बड़ा मजाक भी बना - और लोगों ने यही कहा कि अपने उम्मीदवार कमल शेखर की पतली हालत को देख कर विशाल सिन्हा दरअसल बुरी तरह बौखला गए हैं और इसी बौखलाहट में एक फिल्मी गीत से वह चिढ़ उठे हैं । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में अब एक महीने से भी कम समय रह गया है - जाहिर है कि अपनी पतली हालत को सुधारने का कमल शेखर के पास ज्यादा मौका नहीं बचा है । उनके समर्थक नेताओं की बौखलाहट को देख कर लग रहा है कि उन्हें भी हालत को सुधारने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा है ।

Saturday, January 27, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएल खट्टर की दिल्ली में दिखाई जा रही नेतागिरी ने राजीव अग्रवाल के लिए तो मुश्किलें बढ़ाई ही हैं, हरदीप सरकारिया के खिलाफ नेगेटिव वोटिंग का खतरा भी पैदा किया

नई दिल्ली । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएल खट्टर की दिल्ली में भी दिखाई जा रही नेतागिरी पर भड़कती नजर आ रही डिस्ट्रिक्ट की राजनीति और उसका हरदीप सरकारिया की उम्मीदवारी पर पड़ते संभावित प्रतिकूल असर ने राजीव अग्रवाल को भी मुसीबत में डालने का काम शुरू कर दिया है । इस मुसीबत में राजीव अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की आरके शाह के साथ सौदेबाजी करने की कोशिशों को लगे धक्के ने भी इजाफा किया है । दरअसल आरके शाह की सक्रियता को नेताओं ने अगले वर्ष के लिए समर्थन की हरी झंडी पाने की उनकी कोशिश के रूप में देखा/पहचाना है । अधिकतर नेताओं को लगता है कि आरके शाह को भी पता है कि उनके लिए चुनाव जीतना तो मुश्किल है, अपनी उम्मीदवारी से लेकिन वह राजीव अग्रवाल को और ज्यादा सक्रिय होने के लिए मजबूर जरूर कर देंगे - इसलिए अपनी सक्रियता के जरिये वह राजीव अग्रवाल के समर्थक नेताओं पर इस बात के लिए दबाव बनाने का प्रयास कर रहे हैं कि वह अगले वर्ष के लिए उनकी उम्मीदवारी को समर्थन देने की घोषणा कर दें । मजे की बात यह सुनी जा रही है कि राजीव अग्रवाल खुद तो अपने समर्थक नेताओं पर आरके शाह के साथ 'समझौता' करने के लिए दबाव बना रहे हैं, ताकी उनकी मुसीबत टले - लेकिन उनके समर्थक नेता इसके लिए राजी नहीं हो रहे हैं । उनका मानना और कहना है कि आरके शाह को चुनाव लड़ने ही दिया जाए, ताकि उन्हें खुद भी पता चल जाए कि लोगों के बीच उनके लिए कितना समर्थन है ? आरके शाह को लेकर राजीव अग्रवाल और उनके समर्थक नेताओं के बीच का यह 'झगड़ा' अभी चल तो रहा है, लेकिन नेताओं को उम्मीद है कि वह आरके शाह को कोई तवज्जो नहीं देंगे - तो वह खुद ही चुनावी मैदान से हट जायेंगे ।
हालाँकि केएल खट्टर की दिल्ली में भी दिखाई जा रही नेतागिरी इस मामले को थोड़ा पेचीदा बना रही है । दिल्ली के कई नेता इस बात पर भड़के हुए हैं कि जब वह हरियाणा में किसी से बात नहीं कर रहे हैं, और हरियाणा की राजनीति का सारा दारोमदार उन्होंने हरियाणा के नेताओं के जिम्मे छोड़ दिया है - तब फिर केएल खट्टर दिल्ली में क्यों अपनी टाँग अड़ा रहे हैं ? केएल खट्टर ने दिल्ली में राजीव अग्रवाल के लिए समर्थन जुटाने के लिए कुछेक क्लब्स के पदाधिकारियों से बात की है । दिल्ली के नेताओं को जब इस बात का पता चला तो वह भड़के और कहने लगे कि दिल्ली में राजीव अग्रवाल को समर्थन दिलवाने का काम वह कर लेंगे; राजीव अग्रवाल की उन्हें ज्यादा ही चिंता है तो वह हरियाणा में उन्हें समर्थन दिलवाने का काम करें । केएल खट्टर की इस कार्रवाई को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राजिंदर बंसल को नीचा दिखाने की कार्रवाई के रूप में भी देखा/पहचाना गया है । दरअसल राजिंदर बंसल को आरके शाह की उम्मीदवारी के समर्थन में समझा/पहचाना जा रहा है - हालाँकि राजिंदर बंसल ने अभी तक सार्वजनिक रूप से आरके शाह को समर्थन देने की कोई कोशिश की नहीं है । माना/समझा जा रहा है कि राजीव अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थन में बात करके केएल खट्टर ने लोगों के बीच यह संदेश देने का प्रयास किया है कि राजिंदर बंसल की चिंता करने की जरूरत नहीं है - हरियाणा के नेता पूरी तरह राजीव अग्रवाल के साथ हैं । राजीव अग्रवाल के समर्थक नेताओं का कहना है कि प्रयास तो उनका अच्छा है, लेकिन यह प्रयास दिल्ली की बजाए वह यदि हरियाणा में करते/दिखाते तो उनके प्रयास पर सवाल खड़े नहीं होते - और राजीव अग्रवाल का ज्यादा भला होता ।
केएल खट्टर के इस 'प्रयास' ने हरियाणा में हरदीप सरकारिया को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार चुनने के मनमाने तरीके से नाराज लोगों को भड़काने का काम किया है - और वहाँ हरदीप सरकारिया के खिलाफ नेगेटिव वोटिंग करने/करवाने की चर्चा शुरू हो गयी है । वहाँ लोगों का कहना है कि हरदीप सरकारिया के खिलाफ कोई उम्मीदवार यदि नहीं भी आ रहा है, तो भी इसका मतलब यह नहीं है कि नेताओं की मनमानियाँ लोग चुपचाप सहते जायेंगे और हरदीप सरकारिया आसानी से सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन जायेंगे । हरियाणा में वास्तव में समस्या यह हुई है कि जो लोग हरदीप सरकारिया को मनमाने तरीके से उम्मीदवार चुने जाने से खफा हैं, वह नेताओं के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त करने के लिए राजीव अग्रवाल को निशाना बना रहे हैं । राजीव अग्रवाल भी चूँकि 'नेताओं के उम्मीदवार' के रूप में देखे/पहचाने जा रहे हैं, इसलिए हाल ही में हरियाणा में चलाए गए अपने संपर्क अभियान में उन्हें लोगों की बेरुखी और नाराजगी का शिकार बनना पड़ा । राजीव अग्रवाल के लिए मुसीबत की बात यह हुई कि अपने संपर्क अभियान में उन्हें नेताओं की तरफ से भी कोई मदद नहीं मिली । नेताओं ने वीके हंस पर दबाव बना कर उन्हें राजीव अग्रवाल के साथ जाने के लिए मजबूर तो कर दिया, लेकिन वीके हंस ने भी राजीव अग्रवाल के संपर्क अभियान को लेकर ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया । उम्मीद तो हालाँकि की जा रही है कि धीरे-धीरे हालात सामान्य हो जायेंगे - लेकिन केएल खट्टर की दिल्ली में राजीव अग्रवाल को लेकर दिखाई गई सक्रियता ने अलग अलग कारणों से अलग अलग खेमों और समूहों में जो 'आग' लगाई है, उसने 'नेताओं के उम्मीदवार' के रूप में देखे/पहचाने जा रहे हरदीप सरकारिया और राजीव अग्रवाल के सामने मुश्किलें खड़ी करने और उन्हें बढ़ाने का ही काम किया है ।

Thursday, January 25, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया की हरकतों के सहारे, रोटरी इंटरनेशनल के चुनाव में सुशील गुप्ता को फँसाने की अशोक महाजन की कोशिश विवाद का विषय बनी

नई दिल्ली । सुशील गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट की तरफ से रोटरी इंटरनेशनल में चुनावी शिकायत दर्ज करवाने की अशोक महाजन की कोशिश तो कामयाब नहीं हो सकी है, लेकिन उनकी कोशिश को लेकर लगने/चलने वाले आरोपों/प्रत्यारोपों ने इंटरनेशनल सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट के चुनावी नजारे को खासा नाटकीय जरूर बना दिया है । दरअसल सुशील गुप्ता की तरफ से लगाए गए आरोपों के चलते रोटरी के बड़े नेताओं के बीच हैरानीपूर्ण सवाल पैदा हुआ है कि अशोक महाजन इंटरनेशनल सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में सुशील गुप्ता की संभावनाओं को चोट पहुँचाने के लिए क्या इस स्तर पर भी उतर सकते हैं ? अशोक महाजन की तरफ से इस आरोप पर लेकिन जबाव सुना गया है कि सुशील गुप्ता अपने डिस्ट्रिक्ट में हो रही अशोभनीय घटनाओं के लिए उन्हें जिम्मेदार कैसे ठहरा सकते हैं ? अशोक महाजन की तरफ से सुनने को मिल रहा है कि सुशील गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अपनी ही टीम की एक महिला पदाधिकारी के साथ बदतमीजी करता है, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में पक्षपातपूर्ण बेईमानी करता है - जिसकी लिखित में शिकायत होती है, और जो शिकायतें रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों तक पहुँचती हैं; ऐसे में क्या यह मजाक नहीं है कि सुशील गुप्ता अपने डिस्ट्रिक्ट में एक न्यायपूर्ण व सद्भावपूर्ण माहौल बनाने में खुद तो असफल रहते हैं, और अपनी इस असफलता का ठीकरा अशोक महाजन के सिर फोड़ने की कोशिश करते हैं । मजे की और गनीमत की बात यह है कि इस मामले में सुशील गुप्ता और अशोक महाजन खुद कुछ नहीं कह रहे हैं; वह अपने अपने नजदीकियों के जरिये ही एक-दूसरे के खिलाफ माहौल बनाने तथा एक-दूसरे को 'गिराने' के प्रयासों में लगे हैं । अपने अपने नजदीकियों को शिखंडी की तरह इस्तेमाल करते हुए सुशील गुप्ता और अशोक महाजन के बीच छिड़ी लड़ाई ने इंटरनेशनल सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट की चुनावी लड़ाई को खासा दिलचस्प बना दिया है ।
उल्लेखनीय है कि अगले रोटरी वर्ष के शुरू में होने वाले इंटरनेशनल सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव की 'युद्धभूमि' इंडिया में ही है । चर्चा और दावे सुने जा रहे हैं कि इस बार सुशील गुप्ता के चुने जाने के अच्छे आसार हैं । समझा जाता है कि इंटरनेशनल सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट चुनने के पीछे जो भी 'खेल' होते हैं और जो समीकरण बनते हैं, सुशील गुप्ता ने उन्हें साध लिया है - और वह हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि उनका बना/बनाया खेल न बिगड़े । खेमेबाजी की राजनीति के चलते, लेकिन राजा साबू खेमे के नेता लोग - उनमें भी खासतौर से अशोक महाजन उनके खेल को बिगाड़ने के प्रयासों में लगे नजर आते हैं । राजा साबू के कई नजदीकी सुशील गुप्ता की तीखी आलोचनाएँ करते सुने जा रहे हैं । यहाँ यह याद करना भी प्रासंगिक होगा कि अशोक महाजन पिछले दो-तीन वर्षों में इंटरनेशनल सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट 'बनने' के प्रयास कर चुके हैं । अपनी विफलता के लिए वह सुशील गुप्ता को भी जिम्मेदार मानते/ठहराते रहे हैं । राजा साबू को अपने डिस्ट्रिक्ट में - और अपने डिस्ट्रिक्ट की घटनाओं के कारण रोटरी समाज में जो फजीहत झेलना पड़ी है, उसके लिए वह सुशील गुप्ता को भी जिम्मेदार मानते/ठहराते हैं । इस कारण से राजा साबू ने अपने समर्थक व नजदीकी नेताओं को सुशील गुप्ता के खिलाफ सक्रिय किया हुआ है । इस सक्रियता के चलते ही राजा साबू खेमे के नेता लोग सुशील गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट की घटनाओं के सहारे सुशील गुप्ता को घेरने की कोशिशों में भी जुटे रहते हैं । सुशील गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट के मौजूदा गवर्नर रवि चौधरी और अगले रोटरी वर्ष में होने वाले गवर्नर विनय भाटिया अपनी अपनी हरकतों से ऐसे हालात बनाते ही रहते हैं, जिनसे सुशील गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3011 का नाम खराब होता है । अशोक महाजन और राजा साबू खेमे के दूसरे नेताओं को लगता है कि रवि चौधरी और विनय भाटिया की हरकतों के सहारे वह रोटरी इंटरनेशनल के नेताओं व पदाधिकारियों के बीच डिस्ट्रिक्ट 3011 के लिए बदनामीभरी मुसीबतें खड़ी कर सकते हैं, जो वास्तव में इंटरनेशनल सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव के संदर्भ में सुशील गुप्ता की भी मुसीबत होगी ।
सुशील गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट में अभी हाल ही में संपन्न हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी द्वारा की गई पक्षपातपूर्ण बेईमानी के आरोपों को अशोक महाजन ने ऐसे ही मौके के रूप में पहचाना । उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब दिल्ली चाणक्यपुरी के प्रेसीडेंट एसएन चतुर्वेदी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में पक्षपातपूर्ण तरीके से बेईमानी होने का आरोप लगाते हुए जो आरोप-पत्र दिया है, उसमें रवि चौधरी के साथ-साथ विनय भाटिया तथा कुछेक पूर्व गवर्नर्स की भूमिका और मिलीभगत के तथ्यों व सुबूतों का ब्यौरा है । सुशील गुप्ता के नजदीकियों की तरफ से सुनने को मिला है कि अशोक महाजन ने अपनी तरफ से पूरे पूरे प्रयास किए कि उक्त आरोप-पत्र के आधार पर रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत दर्ज हो जाए । सुशील गुप्ता की तरफ से रोटरी के बड़े नेताओं को सुनने को मिला कि अशोक महाजन ने उनके डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स व अन्य कुछ प्रमुख लोगों को उकसाया कि चुनावी बेईमानी को लेकर रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत दर्ज हो, जिससे कि रोटरी इंटरनेशनल के नेताओं के बीच सुशील गुप्ता का नाम खराब हो, और इंटरनेशनल सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट बनने का उनका मौका खराब हो । अशोक महाजन की तरफ से हालाँकि इसका प्रतिवाद हुआ और सुनने को मिला कि सुशील गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट के कुछेक लोगों ने ही इस शिकायत के साथ उनसे संपर्क किया था, कि उनके डिस्ट्रिक्ट में गवर्नर मनमानी व बदतमीजी करता है और डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ व प्रभावी रोटेरियन होने के बावजूद सुशील गुप्ता चुपचाप तमाशा देखते रहते हैं । अशोक महाजन के नजदीकी लोगों का कहना है कि अशोक महाजन पर आरोप लगाने से पहले सुशील गुप्ता को अपने गिरेबाँ में झाँकना चाहिए और अपनी नाकामियों व अपनी मजबूरियों पर विचार करना चाहिए कि उनके होते हुए उनके डिस्ट्रिक्ट में गवर्नर रोटेरियंस के साथ बदतमीजी और मनमानी करने तथा रोटरी को मजाक बना देने का साहस कैसे कर लेता है ? 
सुशील गुप्ता और अशोक महाजन के नजदीकियों के बीच छिड़ी जुबानी जंग इंटरनेशनल सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव को किस तरफ से प्रभावित करेगी, यह तो बाद में ही पता चलेगा - फिलहाल लेकिन इस जुबानी जंग ने उक्त चुनाव के सीन को खासा दिलचस्प तो बना ही दिया है ।

Wednesday, January 24, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से इस्तीफा देने, अन्यथा बर्खास्त करने के संबंध में सतीश सिंघल को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट ईआन रिसेले द्वारा लिखे पत्र का तेवर संकेत दे रहा है कि रोटरी इंटरनेशनल ने सतीश सिंघल के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की तैयारी कर ली है

नोएडा । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट ईआन रिसेले की तरफ से सतीश सिंघल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद से तुरंत इस्तीफा देने के मिले सुझाव से यह स्पष्ट हो गया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर सतीश सिंघल के दिन अब गिनती के बचे हैं । ईआन रिसेले ने अपने पत्र में यह भी स्पष्ट कर दिया है कि सतीश सिंघल यदि इस्तीफा देने के लिए तैयार नहीं होते हैं, तो वह कारण सहित यह बताएँ कि उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद से बर्खास्त क्यों न कर दिया जाए ? रोटरी इंटरनेशनल के काम करने के तरीकों से जो लोग परिचित हैं, उनका मानना और कहना है कि सतीश सिंघल पर लगे आरोपों के मामले में अब जब इंटरनेशनल प्रेसीडेंट का 'प्रवेश' हो गया है, तो इसका सीधा मतलब है कि इंटरनेशनल पदाधिकारियों ने सतीश सिंघल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से हटाने की पूरी 'तैयारी' कर ली है, और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के पत्र के जरिए उस तैयारी को अमली जामा पहनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है । इस मामले में दिलचस्पी दिखा रहे रोटरी के बड़े नेताओं का कहना है कि सतीश सिंघल ने इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम द्वारा गठित कमेटी के सदस्यों के सामने अपनी बात रखने से बचने की कोशिश करके अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली है । सतीश सिंघल अपने पहले से निर्धारित कार्यक्रम का वास्ता देकर दिल्ली आए उक्त कमेटी के सदस्यों के सामने उपस्थित नहीं हुए । ऐसे में, सतीश सिंघल के खिलाफ आरोपों का पुलिंदा लिए उनके क्लब के पदाधिकारियों ने कमेटी के सदस्यों को यह भी बताया कि क्लब में शुरू हुई कार्रवाई में भी सतीश सिंघल ने सहयोग नहीं किया, और फिर आरोप लगाने लगे कि उनका पक्ष सुने बिना उनके खिलाफ कार्रवाई कर दी गई । कमेटी के सदस्यों ने सतीश सिंघल को यह विकल्प भी दिया कि खुद न आ पाने की स्थिति में वह अपना पक्ष रखने के लिए अपने किसी प्रतिनिधि को भेज सकते हैं । सतीश सिंघल ने लेकिन इस विकल्प को भी स्वीकार नहीं किया । समझा जाता है कि इससे यह माना गया कि सतीश सिंघल जाँच के काम को लंबा खींचना चाहते हैं, और यह वह बचने के लिए कर रहे हैं । रोटरी के बड़े नेताओं का मानना और कहना है कि सतीश सिंघल की यह कोशिश उन पर भारी पड़ी है, क्योंकि उनके इस रवैये को देख कर ही रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों ने उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निश्चय कर लिया है ।
सतीश सिंघल के लिए बदकिस्मती वाला संयोग रहा कि जिन दिनों उनके खिलाफ लगे आरोपों की जाँच के लिए बनी कमेटी के सदस्य दिल्ली आए हुए थे, उन्हीं दिनों रोटरी फाउंडेशन की एक मीटिंग के सिलसिले में रोटरी के कई बड़े नेता दिल्ली में थे । सतीश सिंघल के खिलाफ मोर्चा खोले लोग तो बड़े नेताओं के बीच सतीश सिंघल के खिलाफ लगे आरोपों के तथ्य दिखा/बता रहे थे, लेकिन वहाँ सतीश सिंघल की तरफदारी करने वाला कोई नहीं था । डिस्ट्रिक्ट में सतीश सिंघल के नजदीक समझे जाने वाले लोग या तो उस 'भीड़' से दूर ही रहे, और जो मौके पर मौजूद भी थे - उन्होंने चुप बने रहने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी । इससे कमेटी के सदस्यों के साथ-साथ रोटरी के बड़े नेताओं के बीच भी यही संदेश गया कि सतीश सिंघल के खिलाफ लगे आरोप इतने पुख्ता हैं, कि उनके समर्थक और नजदीकी भी उनकी तरफदारी करने से बच रहे हैं । जैसा कि इस तरह के मौकों पर होता है, लोग बढ़चढ़ कर अपनी राय देने लगते हैं और एक माहौल-सा बन जाता है । यहाँ माहौल सतीश सिंघल के खिलाफ बन गया, क्योंकि प्रायः हर बड़े नेता ने कहा/सुनाया कि रोटरी में इस तरह की बेईमानियाँ स्वीकार और बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिएँ । समझा जाता है कि बड़े नेताओं की इस तरह की बातों से जाँच कमेटी के सदस्य प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके, और फलस्वरूप उनकी रिपोर्ट सतीश सिंघल के खिलाफ कुछ ऐसी बनी कि उनके लिए बचने का कोई शक-सुबह भी बचा नहीं रह गया ।
इंटरनेशनल प्रेसीडेंट ईआन रिसेले के सतीश सिंघल को लिखे पत्र की लंबाई, उसकी भाषा, उसमें व्यक्त हुए शब्दों और उसके 'तेवर' पर यदि गौर करें - तो यह समझने में देर नहीं लगेगी कि रोटरी इंटरनेशनल में सतीश सिंघल के खिलाफ मामला कितना पुख्ता और गंभीर बन चुका है । रोटरी इंटरनेशनल द्वारा की जाने वाली कार्रवाइयों से परिचित लोगों तथा अन्य जानकारों का कहना है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के पत्र आमतौर पर इतने लंबे नहीं होते हैं, और उनमें तथ्यों के मामले में संकेत भर होते हैं । सतीश सिंघल को संबोधित पत्र में ईआन रिसेले ने लेकिन जिस विस्तार से बातों और घटनाओं का सिलसिलेवार जिक्र किया है, और आरोपों के संदर्भ में जिस तरह के भारी-भरकम व दो-टूक शब्दों का इस्तेमाल किया है, उसे इसी बात के संकेत के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है कि रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों ने सतीश सिंघल के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की तैयारी कर ली है । रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के मैनेजिंग ट्रस्टी पद से हटाए जाने को अदालत में चुनौती देकर, तथा क्लब से निकाले जाने को आर्बिट्रेटर के विवाद में फँसाने के जरिए सतीश सिंघल ने अपने बचने के लिए जो मौके बनाए हैं - वैसा मौका लगता है कि इंटरनेशनल पदाधिकारी सतीश सिंघल को नहीं देना चाहते हैं, और इसीलिए उन्होंने बहुत ध्यान व गहराई से तैयारी की है । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट ईआन रिसेले का पत्र इस तैयारी का पूरा पूरा आभास दे रहा है । सतीश सिंघल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद से इस्तीफा देने का सुझाव देने के साथ ही ईआन रिसेले ने उन्हें बर्खास्त करने से पहले अपना पक्ष रखने का जो मौका दिया है, उससे लग रहा है कि रोटरी इंटरनेशनल उनके बचने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहता है और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर सतीश सिंघल के दिन बस अब गिने-चुने ही रह गए हैं ।

Tuesday, January 23, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल और जयपुर ब्रांच की राजनीति में गौतम शर्मा को जब-तब इस्तेमाल करते रहे सेंट्रल काउंसिल सदस्य प्रकाश शर्मा क्या अब सचमुच उनसे पीछा छुड़ाने की कोशिश में हैं

जयपुर । प्रकाश शर्मा के बदलते तेवरों के चलते गौतम शर्मा को सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनने की पिछले करीब एक वर्ष से पाली हुई अपनी उम्मीद खतरे में पड़ती दिख रही है । मजे की बात यह है कि यह खतरा प्रकाश शर्मा का 'आदमी' होने के कारण ही वास्तव में उनके सामने आ खड़ा हुआ है । चुनावी वर्ष होने के कारण सेंट्रल काउंसिल सदस्य पिछली बार की ही तरह इस बार भी 'एकता' बना कर किसी ऐसे सदस्य को तो चेयरमैन बनाने/बनवाने का प्रयास करेंगे, जो मौजूदा चेयरमैन दीप मिश्र की तरह ही उनकी कठपुतली बन कर रहे - लेकिन यह तय माना जा रहा है कि वह सदस्य गौतम शर्मा तो नहीं ही होंगे । कहा/सुना जा रहा है कि गौतम शर्मा को प्रकाश शर्मा के 'आदमी' के रूप में देखने/पहचानने के कारण 'एका' बनाने वाले बाकी सेंट्रल काउंसिल सदस्य चेयरमैन के रूप में उनके नाम पर सहमत नहीं होंगे । गौतम शर्मा के नजदीकियों के अनुसार, प्रकाश शर्मा ने उन्हें सेक्रेटरी बनवाने का आश्वासन जरूर दिया हुआ है । गौतम शर्मा और उनके समर्थक दरअसल यह देख/जान कर ज्यादा निराश हैं कि जो प्रकाश शर्मा पिछले करीब एक वर्ष से उन्हें चेयरमैन बनवाने का आश्वासन दे रहे थे, वही प्रकाश शर्मा मौका नजदीक आने पर गौतम शर्मा को इस बार चेयरमैन पद की चुनावी दौड़ से बाहर ही मान/बता रहे हैं । उल्लेखनीय है कि सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के मौजूदा चेयरमैन दीप मिश्र ऐसे अनोखे चेयरमैन हैं, जिन्हें रीजनल काउंसिल के दस सदस्यों में से कुल चार का समर्थन है, और जिन्हें चेयरमैन का पद एक्सऑफिसो सदस्य के रूप में सेंट्रल काउंसिल के पाँच में से चार सदस्यों के समर्थन के चलते मिला है । गौतम शर्मा इसी समीकरण के भरोसे इस बार सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन बनने की कोशिश में थे, लेकिन इंस्टीट्यूट में चुनावी वर्ष होने के कारण सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच गौतम शर्मा के नाम पर सहमती बनती हुई नहीं दिख रही है ।
दरअसल सेंट्रल काउंसिल के लिए इस बार अनुज गोयल, अभय छाजेड़ और प्रमोद बूब के उम्मीदवार बनने की संभावनाओं के चलते सेंट्रल रीजन के पाँचों मौजूदा सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की सदस्यता खतरे में पड़ी दिख रही है - इसलिए वह कोई ऐसा काम नहीं करना चाहेंगे, जो लोगों के बीच उनकी पहचान को नकारात्मक बनाए । अनुज गोयल की संभावित उम्मीदवारी के चलते मुकेश कुशवाह और मनु अग्रवाल की सदस्यता पर खतरा दिख रहा है । यह तो हर कोई मान रहा है कि उत्तर प्रदेश में इन तीनों में से दो लोग तो आ जायेंगे, लेकिन वह दो लोग कौन होंगे - इसे लेकर कोई भी निश्चिन्त नहीं है । यही हाल राजस्थान में है, जहाँ कि प्रमोद बूब की संभावित उम्मीदवारी प्रकाश शर्मा और श्यामलाल अग्रवाल के लिए खतरा बनी है; इस खतरे को सतीश गुप्ता व विजय गर्ग में से किसी एक की संभावित उम्मीदवारी और बढ़ा देती है । जातीय आधार पर प्रकाश शर्मा ही सबसे ज्यादा खतरे में नजर आ रहे हैं । अभय छाजेड़ की संभावित उम्मीदवारी मध्य प्रदेश में केमिशा सोनी के लिए चुनौती बनी है । अपनी कई गतिविधियों और अपने रवैये के चलते केमिशा सोनी ने इंदौर में अपने विरोधियों की संख्या को बढ़ाने का जो काम किया है, वह भी चुनाव में उनकी मुश्किलों को बढ़ाने वाला साबित होगा और इसलिए भी इस बार का चुनाव उनके लिए खासा चुनौतीपूर्ण होगा । सेंट्रल काउंसिल के सदस्य चुनावी नजरिये से अपने अपने क्षेत्रों में जिस तरह से मुसीबत में घिरे हैं, उसके चलते सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के इस वर्ष होने वाले चुनाव में वह पिछली बार की तरह आरोपपूर्ण तरीके से शामिल होने से बचने की कोशिश - उम्मीद है कि करेंगे ।
इस बात ने सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के इस बार होने वाले चुनावों को दिलचस्प बना दिया है । प्रकाश शर्मा जिस तरह से गौतम शर्मा को सेक्रेटरी बनवाने की बात कर रहे हैं, उसके चलते माना जा रहा है कि सेंट्रल काउंसिल सदस्य विरोधी खेमे के दो/तीन सदस्यों को तोड़ कर रीजनल काउंसिल में अपना बहुमत बनाने का प्रयास करेंगे । रीजनल काउंसिल के दस सदस्यों में छह सदस्यों वाला विरोधी खेमा यदि एकजुट बना रहता है, और सेंट्रल काउंसिल सदस्य रीजनल काउंसिल की राजनीति से अपने आप को दूर रखते हैं - तब तो गौतम शर्मा और सत्ता पक्ष के बाकी सदस्यों को अबकी बार सिर्फ झुनझुना मिलने की ही स्थिति है । छह सदस्यीय विरोधी खेमे में चेयरमैन बनने के प्रबल आकांक्षी तो हालाँकि दो/तीन सदस्य हैं, लेकिन उनके बीच गलाकाट स्पर्धा के संकेत अभी तो नहीं दिख रहे हैं - इसलिए सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के लिए उनमें फूट डालना भी आसान काम नहीं होगा । इसलिए गौतम शर्मा के लिए चेयरमैन तो दूर, सेक्रेटरी बनने के भी लाले दिख रहे हैं । गौतम शर्मा के नजदीकियों के अनुसार, गौतम शर्मा और उनके समर्थक लेकिन इस बात से निराश और नाराज हैं कि प्रकाश शर्मा अपने स्वार्थ में उन्हें जब-तब इस्तेमाल तो करते रहे, लेकिन अब वह उनसे पीछा छुड़ाने की कोशिश में हैं और उन्हें अकेला छोड़ दिया । प्रकाश शर्मा के चक्कर में गौतम शर्मा ने रीजनल काउंसिल और जयपुर ब्रांच में भी लोगों से 'दुश्मनी' कर ली - और अब प्रकाश शर्मा ने भी उन्हें अकेला कर दिया है ।

Sunday, January 21, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की दिल्ली में हुई 'वुमेन कॉन्फ्रेंस' में डायरेक्टर अर्चना शर्मा तो पहुँची ही नहीं; राजेश शर्मा की बदतमीजी के चलते चरनजोत सिंह नंदा, राज चावला, हंसराज चुग आदि को अपमानित होकर और लौटना पड़ा

नई दिल्ली । महिला सशक्तिकरण के नाम पर 'पत्नी सशक्तिकरण' करने की राजेश शर्मा की कोशिश उन्हें ऐसी उल्टी पड़ी कि अपनी पत्नी को तो उन्हें 'वुमेन कॉन्फ्रेंस' से दूर रखना ही पड़ा, कॉन्फ्रेंस भी कुल मिला कर मजाक बन कर रह गई । पूर्व सेंट्रल काउंसिल सदस्य चरनजोत सिंह नंदा, नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पूर्व चेयरमैन राज चावला और रीजनल काउंसिल के पूर्व सदस्य हंसराज चुग आदि को कॉन्फ्रेंस स्थल से बेइज्जत होकर वापस लौटना पड़ा । राजेश शर्मा की कारस्तानी के चलते इंस्टीट्यूट के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि इंस्टीट्यूट प्रशासन को किसी कॉन्फ्रेंस की व्यवस्था की निगरानी के लिए ऑब्जर्वर भेजना पड़ा । दरअसल सेंट्रल काउंसिल के सदस्य संजीव चौधरी ने इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट को ईमेल लिख कर आगाह किया था कि इंस्टीट्यूट में एक व्यक्ति को मनमानी और बदतमीजी क्यों करने दी जा रही है ? इसी के बाद, इंस्टीट्यूट प्रशासन ने 'वुमेन कॉन्फ्रेंस' की निगरानी के लिए ऑब्जर्वर की नियुक्ति की । राजेश शर्मा की हरकतों पर जो बबाल मचा, उसके चलते आयोजन की डायरेक्टर अर्चना शर्मा ही आयोजन से नदारत हो गईं । कॉन्फ्रेंस में ट्रॉफी का लालच देकर बुलवाई गईं कई महिला चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को पहली बात पता चला कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन एक ऐसा व्यक्ति है, जिसे लोगों के सामने बोलना तक नहीं आता है और जो बोलने से बचता है; उन्हें हैरानी हुई कि ऐसा व्यक्ति काउंसिल का सदस्य और फिर चेयरमैन कैसे बन गया ? कोढ़ में खाज वाली बात यह हुई कि राजेश शर्मा और रीजनल काउंसिल में उनके छह चंपुओं की तमाम कोशिशों के बावजूद कॉन्फ्रेंस में कुल 62 महिला चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ही जुट सकीं । काउंसिल के ही लोगों ने याद किया कि पिछले वर्ष हुई बुमेन कॉन्फ्रेंस में 67 महिला चार्टर्ड एकाउंटेंट्स थीं, जबकि उसकी तैयारी अकेले तत्कालीन वाइस चेयरपरसन पूजा बंसल ने की थी - और बिना किसी तमाशे के आयोजन किया था ।
इस बार सबसे बड़ा तमाशा तो अर्चना शर्मा को लेकर हुआ । अपनी पत्नी को कॉन्फ्रेंस का डायरेक्टर बनाने/बनवाने को लेकर राजेश शर्मा की जब चौतरफा फजीहत हुई, तो उन्होंने यह कहते हुए अपने आप को बचाया कि कॉन्फ्रेंस में मेरी पत्नी की बजाए कोई और अर्चना शर्मा डायरेक्टर के रूप में आयेंगी । इसके बाद किसी ऐसी अर्चना शर्मा की खोज शुरू हुई, जो कॉन्फ्रेंस में आने को तैयार हो जाए । राजेश शर्मा की मदद से नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का अगला चेयरमैन बनने की तैयारी कर रहे पंकज पेरिवाल इस मामले में उनके मददगार बने, और उन्होंने अपने एक साथी पदाधिकारी की पत्नी - अर्चना शर्मा को कॉन्फ्रेंस में डायरेक्टर के रूप में भेजने की व्यवस्था कर दी । पंकज पेरिवाल ने तो व्यवस्था कर दी, लेकिन उनके साथी व उनकी पत्नी को जल्दी ही समझ में आ गया कि पंकज पेरिवाल और राजेश शर्मा अपने स्वार्थ में उनका इस्तेमाल कर रहे हैं, और उनके चक्कर में वह भी फजीहत का शिकार बनेंगे । लिहाजा, ऐन मौके पर वह अर्चना शर्मा पीछे हट गईं । राजेश शर्मा और उनके चंपुओं ने अंत समय तक अर्चना शर्मा की खोज की - लेकिन अर्चना सिंघल मिलीं, अर्चना गुप्ता मिलीं, अर्चना श्रीवास्तव मिलीं, अर्चना अग्रवाल मिलीं, किंतु अर्चना शर्मा नहीं मिलीं - जो मिलीं, वह राजेश शर्मा के 'खेल' में शामिल होने के लिए तैयार नहीं हुईं । नतीजा यह रहा कि कॉन्फ्रेंस की डायरेक्टर के रूप में अर्चना शर्मा के नाम का शोर तो बहुत मचा था, लेकिन कॉन्फ्रेंस में अर्चना शर्मा ही नहीं मिलीं । सारे झमेले से अनजान कॉन्फ्रेंस में पहुँची कुछेक महिला चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने राजेश शर्मा से पूछा भी कि भाभी जी क्यों नहीं आईं ? भैय्या जी से लेकिन इसका कोई जबाव देते हुए नहीं बना ।
'वुमेन कॉन्फ्रेंस' को लेकर भारी फजीहत का शिकार होने के चलते बौखलाए राजेश शर्मा की बदतमीजी का शिकार चरनजोत सिंह नंदा, राज चावला और हंसराज चुग जैसे लोग भी हुए । राकेश मक्कड़ ने इन्हें कॉन्फ्रेंस में प्रतिभागियों को आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित कर लिया था । ऐसा करते हुए राकेश मक्कड़ दरअसल भूल गए थे कि भले ही वह रीजनल काउंसिल के चेयरमैन हैं, किंतु राजेश शर्मा ने उनकी औकात दो कौड़ी की बना कर रखी हुई है - यही कारण रहा कि राकेश मक्कड़ के इन आमंत्रितों को राजेश शर्मा ने कॉन्फ्रेंस हॉल के अंदर घुसने तक नहीं दिया । चरनजोत सिंह नंदा को हॉल में प्रवेश करता देख राजेश शर्मा ऐसा भड़के कि मंच से ही चिल्ला उठे कि बाहर के लोगों को अंदर क्यों घुसने दिया जा रहा है । चरनजोत सिंह नंदा मंच से प्रतिभागियों को संबोधित करना चाहते थे; राकेश मक्कड़ इसके लिए उन्हें मंच तक ले जा रहे थे, लेकिन राजेश शर्मा ने उनकी ऐसी बेइज्जती की, कि चरनजोत सिंह नंदा फिर उलटे पैर वापस ही लौट गए । उल्लेखनीय है कि सेंट्रल काउंसिल के पिछले चुनाव में राजेश शर्मा ने चरनजोत सिंह नंदा के उम्मीदवार के रूप में ही अपना अभियान चलाया था, और उन्हीं के समर्थन के बूते चुनाव जीता था । उस समय राजेश शर्मा उनकी खुशामद में लगे रहते थे । उन्हीं राजेश शर्मा के द्वारा चरनजोत सिंह नंदा को बेइज्जत होता देख, कॉन्फ्रेंस स्थल पर पहुँचे राज चावला और हंसराज चुग ने हॉल में जाने की हिम्मत ही नहीं की - और बाहर से ही वापस लौट गए । राकेश मक्कड़ उनसे मुँह छिपाते देखे गए । राकेश मक्कड़ को कॉन्फ्रेंस में पहुँचे प्रतिभागियों से भी उस समय मुँह छिपाने की जरूरत पड़ी, जब चेयरमैन के रूप में उन्हें 'दो शब्द' कहने के लिए कहा गया । राकेश मक्कड़ माइक की तरफ बढ़े भी और वास्तव में उन्होंने दो की जगह पाँच शब्द कहे - 'मुझे कुछ नहीं कहना है' । यह सुनकर प्रतिभागियों को हैरानी हुई कि यह कैसा चेयरमैन है ? उन्होंने आपस में एक-दूसरे से पूछा भी कि रीजनल काउंसिल में ऐसे लोग भी सदस्य और चेयरमैन बन जाते हैं क्या ?
ऐसी ही घटनाओं और बातों ने इस वर्ष की 'वुमेन कॉन्फ्रेंस' को मजाक का विषय बना दिया, जिसके लिए हर कोई राजेश शर्मा की घटिया व छोटी सोच तथा उनके बदतमीजीपूर्ण व्यवहार को जिम्मेदार ठहरा रहा है ।

Saturday, January 20, 2018

लायंस इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में डायबिटीज ग्रांट में घपले के आरोपी जगदीश गुलाटी के पक्ष में खड़े होकर, पारस अग्रवाल ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए अपने प्रयासों को और मुश्किल बना लिया है क्या ?

आगरा । एक करोड़ 31 लाख रुपए की डायबिटीज ग्रांट में घपले के आरोपों में घिरे पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर जगदीश गुलाटी को 'बचाने' की लड़ाई में डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू के गवर्नर पारस अग्रवाल के भी कूद पड़ने से - जगदीश गुलाटी के 'बचने' की तो कोई गारंटी नहीं बनी है, लेकिन मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद पर पारस अग्रवाल के पहुँचने की कोशिश जरूर मुसीबत में फँस गई है । समझा जा रहा है कि डायबिटीज ग्रांट में गबन करने के आरोपियों तथा मल्टीपल काउंसिल के बीच छिड़ी 'लड़ाई' में गबन के आरोपियों का साथ देने का फैसला पारस अग्रवाल ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में लीडरशिप का समर्थन पाने/जुटाने के लालच में किया है । पारस अग्रवाल को विश्वास है कि आज वह ग्रांट के गबन के आरोपों में फँसे लीडरशिप के नेताओं का साथ देंगे, तो कल लीडरशिप के यही नेता मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में उनका साथ देंगे - और वह मजे से चेयरमैन बन जायेंगे । मजे की बात यह है कि पिछले दिनों ही लायंस इंटरनेशनल बोर्ड के सदस्यों के साथ डिनर में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को शामिल करने की उनकी तैयारी में लीडरशिप के नेताओं द्वारा टाँग अड़ा देने को लेकर पारस अग्रवाल लीडरशिप के नेताओं के खिलाफ हो गए थे, लेकिन पारस अग्रवाल अब फिर से लीडरशिप के नेताओं के साथ हो गए नजर आ रहे हैं । इससे लोगों को लग यह भी रहा है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की लड़ाई को लेकर पारस अग्रवाल अभी भी असमंजस में हैं - और उनके लिए यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि वह अपने लिए कहाँ समर्थन खोजें/बनाएँ ? उनके शुभचिंतकों तक को लग रहा है कि डायबिटीज ग्रांट में गबन के आरोपों में घिरे नेताओं का समर्थन करके पारस अग्रवाल ने अपने लिए वास्तव में बड़ी मुसीबत खड़ी कर ली है ।
पारस अग्रवाल ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग को पत्र लिख कर डायबिटीज ग्रांट के एक करोड़ 31 लाख रुपए जगदीश गुलाटी को दे देने के लिए कहा है । जगदीश गुलाटी डायबिटीज प्रोजेक्ट के चेयरमैन हैं । पारस अग्रवाल का ऐसा लिखना अपने आप में मजाक की बात है । इससे ऐसा लग रहा है कि पारस अग्रवाल ने मामले को समझा ही नहीं है; और या सब कुछ जानते/समझते हुए भी वह अपने 'स्वार्थ' में ऐसे अंधे हो गए हैं कि कुछ भी जानना/समझना नहीं चाहते हैं । डायबिटीज ग्रांट का मामला कोई जगदीश गुलाटी और विनय गर्ग के बीच का मामला नहीं है, यह वास्तव में एलसीआईएफ और मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के बीच का मामला है । मल्टीपल काउंसिल की पिछली मीटिंग में कुछ ऐसे फैसले हुए हैं, जो ग्रांट की रकम जगदीश गुलाटी या एलसीआईएफ को देने के मामले में विनय गर्ग के हाथ बाँधते हैं । मल्टीपल काउंसिल के पदाधिकारी होने के नाते पारस अग्रवाल भी उस फैसले से बँधे हुए हैं । ऐसे में, अब यदि पारस अग्रवाल चाहते हैं कि ग्रांट का पैसा या तो जगदीश गुलाटी को दे दिया जाए और या एलसीआईएफ को वापस कर दिया जाए - तो उन्हें पहले तो मल्टीपल काउंसिल की इमरजेंसी मीटिंग बुलाने की माँग करना चाहिए, और फिर मीटिंग में उक्त फैसला करवाना चाहिए । पारस अग्रवाल ऐसा कुछ करने की बजाए, विनय गर्ग से सीधी माँग कर रहे हैं कि - काउंसिल के फैसले को छोड़ो, आप तो बस ग्रांट का पैसा जगदीश गुलाटी को दे दो । पारस अग्रवाल के इस रवैये से लग रहा है कि जैसे उन्होंने मान लिया है कि वह जैसे ही ग्रांट का पैसा जगदीश गुलाटी को दिलवा देंगे, वैसे ही वह मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बन जायेंगे ।
पारस अग्रवाल से पहले, डायबिटीज ग्रांट में घपले के आरोपों में घिरे जगदीश गुलाटी को 'बचाने' का प्रयास कुँवर बीएम सिंह ने भी किया था । कुँवर बीएम सिंह चूँकि जगदीश गुलाटी के ही डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर हैं, और उन्हें गवर्नर चुनवाने/बनवाने में जगदीश गुलाटी की भूमिका रही थी - इसलिए कुँवर बीएम सिंह का उनके बचाव में उतरना तो लोगों को फिर भी हजम हो गया, किंतु पारस अग्रवाल का जगदीश गुलाटी के पक्ष में खड़ा होना किसी को समझ नहीं आया है । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के चुनावी समीकरणों को जो भी जानता/पहचानता है, उसे पता है कि जगदीश गुलाटी अपने डिस्ट्रिक्ट का वोट पारस अग्रवाल को नहीं दिला सकेंगे । तब फिर पारस अग्रवाल ने अपने आप को जगदीश गुलाटी को बचाने के लिए क्यों प्रस्तुत किया ? समझा जाता है कि इस मामले में पारस अग्रवाल ने लीडरशिप के बड़े नेताओं से कोई 'डील' की है, जिसके चलते वह ग्रांट में गबन के आरोपी के पक्ष में खुल कर आ गए हैं । मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को लग रहा है कि डायबिटीज ग्रांट के मामले में लीडरशिप के लोग जिस तरह फँसे हैं, उसके चलते उन्होंने अपनी चमक और अपनी धाक खो दी है, जिसका प्रतिकूल असर उन्हें मिल सकने वाले समर्थन पर भी पड़ेगा - और ऐसे में मल्टीपल काउंसिल की चुनावी राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाना उनके लिए मुश्किल होगा । इसी आकलन के आधार पर, पारस अग्रवाल के शुभचिंतकों को भी लग रहा है कि डायबिटीज ग्रांट में घपले के आरोपियों का साथ देकर पारस अग्रवाल ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए अपने प्रयासों को और मुश्किल बना लिया है ।

Thursday, January 18, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की काउंसिल की महिला सदस्यों को दरकिनार कर अपनी पत्नी अर्चना शर्मा को बुमेन कॉन्फ्रेंस का डायरेक्टर बनवा कर राजेश शर्मा ने एक बार फिर इंस्टीट्यूट की प्रतिष्ठा को कलंकित करने का काम किया

नई दिल्ली । महिला सशक्तिकरण के नाम पर 'पत्नी सशक्तिकरण' करने की राजेश शर्मा की हरकत से लोगों के बीच एक बार फिर यह साबित हुआ कि राजेश शर्मा किसी भी तरह से सुधरने वाले नहीं हैं । उल्लेखनीय है कि राजेश शर्मा अपनी हरकतों के चलते प्रोफेशन के लोगों के बीच बार बार लताड़ खाते रहे हैं । इंस्टीट्यूट के इतिहास में राजेश शर्मा अभी तक अकेले ऐसे सेंट्रल काउंसिल सदस्य हैं, जिन्हें प्रोफेशन के लोगों की नाराजगी का शिकार होने से बचने के लिए इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में खिड़की से कूद कर भागना पड़ा और जिनके लिए इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में 'राजेश शर्मा चोर है' जैसे नारे लगाए गए और गूँजे । उम्मीद की गई थी कि प्रोफेशन के लोगों के बीच अपनी हो/बढ़ रही बदनामी से सबक लेकर राजेश शर्मा अपने व्यवहार और आचरण में संजीदगी लायेंगे, और ऐसे काम करने से बचेंगे - जो लोगों के बीच उनकी नकारात्मक पहचान को बढ़ाए व गाढ़ा करें । लेकिन राजेश शर्मा बार बार अपनी हरकतों से लोगों की उम्मीदों को ठेंगा दिखा देते हैं और पिछली बार से भी बड़ा कारनामा कर दिखाते हैं । राजेश शर्मा अभी तक तो अपनी हरकतों से प्रोफेशन के सदस्यों को ही परेशान, उपेक्षित और अपमानित करते रहे हैं, लेकिन इस बार उन्होंने सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों को ही निशाने पर ले लिया है । इंस्टीट्यूट की कैपेसिटी बिल्डिंग ऑफ मेंबर्स इन प्रैक्टिस कमेटी और नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के संयुक्त तत्त्वाधान में 'बुमेन कॉन्फ्रेंस' करने में जल्दबाजी करने तथा राजेश शर्मा की पत्नी अर्चना शर्मा के कॉन्फ्रेंस की डायरेक्टर 'बनने' में राजेश शर्मा की जो हरकत रही है, प्रोफेशन के लोगों के बीच उसे लेकर भारी नाराजगी है । 
मजे की बात यह है कि कैपेसिटी बिल्डिंग ऑफ मेंबर्स इन प्रैक्टिस कमेटी में सेंट्रल काउंसिल की दो महिला सदस्य - के श्रीप्रिया और केमिशा सोनी हैं, तथा नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में दो महिला सदस्य - योगिता आनंद व पूजा बंसल हैं; लेकिन बुमेन कॉन्फ्रेंस का डायरेक्टर इनमें से किसी को न बना कर राजेश शर्मा की पत्नी को बनाया गया । कैपेसिटी बिल्डिंग ऑफ मेंबर्स इन प्रैक्टिस कमेटी के चेयरमैन मुकेश कुशवाह से इस बारे में कुछ लोगों ने जब बात की, तो उन्होंने यह कहते हुए मामले से अपने को अलग कर लिया कि इस बारे में सभी फैसले राजेश शर्मा कर रहे हैं, लिहाजा उनसे ही पूछो । राजेश शर्मा उक्त कमेटी के वाइस चेयरमैन हैं । कमेटी के बाकी लोगों का कहना है कि मुकेश कुशवाह तो बस कहने के लिए चेयरमैन हैं, उन्हें कुछ आता/जाता भी नहीं है और उन्हें कुछ करने में दिलचस्पी भी नहीं है - जिसके चलते राजेश शर्मा ने ही चेयरमैन की 'जिम्मेदारियाँ' ले ली हैं । 'बुमेन कॉन्फ्रेंस' की तैयारी को लेकर जो मीटिंग हुई, उसमें भी अर्चना शर्मा को डायरेक्टर बनाने पर सवाल उठे, और पूछा गया कि उनका कहाँ क्या योगदान है और उन्होंने ऐसा क्या किया है कि चार काउंसिल सदस्यों के होते हुए उन्हें डायरेक्टर बनाया जा रहा है; तो इसके जबाव में सुनने को मिला कि चेयरमैन ने कहा है कि भाभी जी को ही डायरेक्टर बनाना है । यहाँ चेयरमैन से मतलब राकेश मक्कड़ से है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ किस हद तक राजेश शर्मा की गिरफ्त में हैं, और उनकी जी-हुजूरी में रहते हैं - यह अब जगजाहिर बात है ।
राजेश शर्मा की पत्नी अर्चना शर्मा को डायरेक्टर बनाने से काउंसिल सदस्य ही नहीं, बल्कि राजेश शर्मा और राकेश मक्कड़ के कई समर्थक तक नाराज हो गए हैं । इनके समर्थकों व नजदीकियों में जो महिला चार्टर्ड एकाउंटेंट्स हैं, उनमें से कइयों ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा है कि चुनाव के समय तो यह उनसे मदद लेते हैं, और जब कहीं कार्यक्रम का मौका आता है, तो अपनी पत्नी और भाभी ही इन्हें दिखती हैं । अपनी पत्नी को डायरेक्टर बनवाने की राजेश शर्मा की हरकत को लेकर लोगों के बीच जो नाराजगी पैदा हुई है, उसने बुमेन कॉन्फ्रेंस के बुरी तरह फ्लॉप होने की स्थिति बना दी है । कॉन्फ्रेंस को फ्लॉप होने से बचाने के लिए राजेश शर्मा और उनके 'चंपुओं' ने वाट्स-ऐप पर अभियान तो चलाया हुआ है, लेकिन उसका कोई फायदा होता हुआ नहीं दिख रहा है । राजेश शर्मा और राकेश मक्कड़ से इस वर्ष होने वाले रीजनल काउंसिल के चुनाव में सहयोग/समर्थन मिलने की उम्मीद में कुछेक संभावित उम्मीदवारों - जो पिछली बार हार गए थे - ने भी कॉन्फ्रेंस को कामयाब बनाने का बीड़ा उठाया हुआ है । राजेश शर्मा और राकेश मक्कड़ की तरफ से महिला चार्टर्ड एकाउंटेंट्स तथा ब्रांचेज में महिला पदाधिकरियों को ट्रॉफी व अवॉर्ड का लालच देकर ज्यादा से ज्यादा सदस्यों को कॉन्फ्रेंस में लाने के लिए प्रेरित भी किया जा रहा है । उन्हें उम्मीद है कि ट्रॉफी और अवॉर्ड के लालच में कई महिला चार्टर्ड एकाउंटेंट्स तथा ब्रांचेज में महिला पदाधिकारी कॉन्फ्रेंस को सफल बनाने में जुट जायेंगी । हारे हुए और लालची किस्म के 'नेताओं' के भरोसे, अपनी पत्नी की डायरेक्टरशिप में होने वाली बुमेन कॉन्फ्रेंस को कामयाब बनाने की राजेश शर्मा की कोशिशों ने इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन की साख व प्रतिष्ठा को उनके हाथों एक बार फिर कलंकित करने का ही काम किया है ।

Wednesday, January 17, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी लड़ाई में अशोक गुप्ता की बढ़त रोकने तथा भरत पांड्या को वोट दिलवाने की तिकड़मों के चक्कर में रिसोर्स ग्रुप में दीपक तलवार, विनोद बंसल, ललित श्रीमाल और आशीष देसाई के पद खतरे में पड़े

नई दिल्ली । रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए जोन 4 में हो रहे चुनाव में भरत पांड्या को कड़े मुकाबले के चलते हार के कगार में फँसा देख, बचे-खुचे वोटों पर कब्जा जमाने के लिए भरत पांड्या के समर्थक बड़े नेताओं व पदाधिकारियों ने रिसोर्स ग्रुप के पदों को 'बेचने' की तैयारी की है । समस्या की बात लेकिन यह हुई है कि इस तैयारी की भनक मिलने पर रिसोर्स ग्रुप के मौजूदा पदाधिकारियों के बीच अपनी अपनी कुर्सी बचाने की दौड़ मच गई है, जिसके कारण एक तरफ तो गुपचुप रूप से की जा रही तैयारी की पोल खुल गई है - और दूसरी तरफ रिसोर्स ग्रुप के पदों पर काबिज होने के लिए भरत पांड्या के समर्थकों में होड़ मच गई है । इस दौड़/होड़ में रिसोर्स ग्रुप में दीपक तलवार, विनोद बंसल, ललित श्रीमाल, आशीष देसाई आदि के पदों पर खतरा मंडराता देखा जा रहा है । रिसोर्स ग्रुप के पदों के लिए यूँ तो लंबी लाइन है, लेकिन इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव की पृष्ठभूमि में रिसोर्स ग्रुप के पदों के लिए सबसे बड़े दावेदारों में गुरजीत सिंह, दीपक शिकारपुर, दीपक पुरोहित आदि हैं । इन्होंने भरत पांड्या के पक्ष में माहौल बनाने तथा उन्हें वोट दिलवाने के लिए अथक प्रयास किए हैं, लेकिन उन्हें लग रहा है कि भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक बड़े नेताओं व पदाधिकारियों ने उन्हें इस्तेमाल कर लिया है - उनसे काम तो ले लिया, लेकिन उनके लिए कुछ करते हुए नहीं दिख रहे हैं । अपने आप को 'इस्तेमाल करो, और छोड़ दो' वाले फार्मूले का शिकार होता देख यह लोग भड़के हुए हैं । गुरजीत सिंह का तो काम पूरा हो गया है, इसलिए भरत पांड्या के समर्थक बड़े नेताओं व पदाधिकारियों को उनकी ज्यादा चिंता नहीं है; लेकिन दीपक शिकारपुर और दीपक पुरोहित के डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3131 में अभी करीब पचास प्रतिशत वोटिंग बाकी है - इसलिए भरत पांड्या के समर्थक बड़े नेताओं व पदाधिकारियों को इनकी चिंता करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है ।
जोन 4 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए हो रहे चुनाव में 85 से 90 प्रतिशत के बीच वोटिंग हो चुकने का अनुमान लगाया जा रहा है । वोटिंग पैटर्न के जो तथ्य भरत पांड्या के समर्थकों को मिले हैं, या उन्होंने जुटाए हैं - उसने उन्हें निराश किया है । भरत पांड्या के कई एक समर्थकों का कहना है कि अभी तक जो वोट पड़े हैं, उनमें ही अशोक गुप्ता ने निर्णायक बढ़त बना ली है; हालाँकि अन्य कुछेक समर्थकों का कहना है कि अशोक गुप्ता को विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में अच्छे वोट मिले हैं और वह बराबर की टक्कर पर हैं या थोड़ा बहुत आगे भी हैं - तो भी भरत पांड्या के लिए मुकाबला अभी खत्म नहीं हुआ है, और बाकी बचे वोटों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में कुल करीब 2300 वोट पड़ने हैं । अधिकतर डिस्ट्रिक्ट्स में इंटरनेट सुविधा से दूर और अलग-थलग रहने/पड़ने वाले क्लब्स के वोट अभी नहीं पड़ सके हैं, और या जिन्हें अभी तक भी लिंक व पासवर्ड नहीं मिले हैं - वह वोट डालने से बचे रह गए हैं । एक अकेले डिस्ट्रिक्ट 3131 में ही वोटिंग की रफ्तार ढीली है । इसका कारण यह सुना जा रहा है कि डिस्ट्रिक्ट के 'नेताओं' ने जानबूझ कर 'अपने अपने' क्लब्स को वोट डालने से रोका हुआ है - ताकि वह भरत पांड्या के समर्थक बड़े नेताओं व पदाधिकारियों से 'ठीक' से सौदेबाजी कर सकें । दरअसल भरत पांड्या के समर्थक नेताओं व पदाधिकारियों ने विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के प्रमुख 'नेताओं' को रिसोर्स ग्रुप में पद देने/दिलवाने का लालच देकर अपने पक्ष में किया हुआ था । वह तो जब कमल सांघवी के इस्तीफे से खाली हुए आरआरएफसी के पद पर भरत पांड्या के ही डिस्ट्रिक्ट के विजय जालान की नियुक्ति हो गई, तब नेताओं का माथा ठनका और उन्हें लगा कि उन्हें झूठे लालच देकर इस्तेमाल करने की कोशिश की जा रही है ।
दरअसल विजय जालान को रिसोर्स ग्रुप में पद मिलने के साथ ही विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के नेताओं को जब अपने ठगे जाने तथा धोखे का शिकार होने का अहसास हुआ, तभी उनमें से अधिकतर ने भरत पांड्या की उम्मीदवारी के पक्ष में सक्रिय रहने तथा कुछ करने से मुँह मोड़ लिया - जिसका खामियाजा वोटिंग लाइन खुलने के बाद भरत पांड्या की उम्मीदवारी को उठाना पड़ा । भरत पांड्या के समर्थक बड़े नेताओं को विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में जिन जिन नेताओं से 'सहयोग' मिलने की उम्मीद थी, उनमें से अधिकतर शांत बने रहे और उन्होंने कुछ किया ही नहीं - कुछेक ने तो अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए काम किया । स्वाभाविक रूप से इसका फायदा अशोक गुप्ता को मिला, और कई डिस्ट्रिक्ट्स में उन्हें उम्मीद से बढ़ कर समर्थन मिला । मामले की नजाकत भरा यह नजारा देख कर भरत पांड्या के समर्थक नेता और पदाधिकारी सावधान और सक्रिय हुए हैं, तथा उन्होंने समझ लिया है कि अब झूठे आश्वासन देने से काम नहीं चलेगा - उन्हें ठोस रूप में कुछ करना पड़ेगा । ठोस रूप में कुछ करने की ज्यादा जरूरत उन्हें डिस्ट्रिक्ट 3131 में ही लग रही है - जहाँ कि अभी सौ के करीब वोट पड़ना बाकी हैं, और जहाँ दो/तीन नेता रिसोर्स ग्रुप में पद पाने के अभिलाषी हैं । रिसोर्स ग्रुप की विभिन्न कमेटियों में में इनके लिए जगह बनाने के लिए मौजूदा कुछेक कमेटियों के पदाधिकारियों की बलि चढ़ानी पड़ेगी - और जिसके तहत उन्हें उनके पदों से हटाना पड़ेगा ।
इस हलचल को देखते हुए रिसोर्स ग्रुप के पदाधिकारियों के बीच अपने अपने पद बचाने की होड़ मच गई है । रिसोर्स ग्रुप में दीपक तलवार, विनोद बंसल, ललित श्रीमाल और आशीष देसाई को कमजोर कड़ी के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है - और जिसके चलते इनकी कुर्सी को खतरे के निशाने पर चिन्हित किया गया है । कुछेक लोगों को लगता है कि आशीष देसाई को पद से हटाने का चूँकि गलत संदेश जायेगा और उससे अशोक गुप्ता को सहानुभूति मिल सकती है, इसलिए हो सकता है कि उनकी कुर्सी सुरक्षित बनी रहे - और बाकी लोग निशाना बने; जबकि अन्य कुछ लोगों को लगता है कि दीपक तलवार व विनोद बंसल के डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3011 में, तथा ललित श्रीमाल के डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3040 में अभी चूँकि थोड़ी बहुत वोटिंग बाकी है, इसलिए उन्हें न छेड़ कर आशीष देसाई का ही शिकार करने का निश्चय किया जाए । इसके अलावा, यह तय करने की भी चुनौती है कि रिसोर्स ग्रुप में किसे पद दिया जाए ? पद पाने के आकांक्षी चूँकि ज्यादा हैं, अंतिम चरण की वोटिंग के लिहाज से महत्त्वपूर्ण बने डिस्ट्रिक्ट 3131 में ही दो/तीन नेता पद के आकांक्षी हैं - इसलिए यह तय करना भी मुश्किलों भरा काम है कि अभी किसे संतुष्ट किया जाए । बीच वर्ष में पद खाली करवाने/भरवाने की कार्रवाई एक अलग तरह की बदनामी और मुसीबत का सबब बन सकती है, इसलिए ज्यादा कुछ करने से भी बचने की कोशिश होगी । बड़े नेताओं के बीच की चर्चाओं के अनुसार, ज्यादा नहीं तो - एक पद के लिए तो हटाने/भरने का खेल हो सकता है । अब लोगों के बीच सारी माथापच्ची इस बात पर है कि वह एक कौन होगा, जिसका पद छिनेगा और जिसे मिलेगा ? सारी माथापच्ची में यह मानने/समझने वाले लोगों की संख्या ज्यादा है कि भरत पांड्या को बाकी बचे वोटों की बड़ी संख्या दिलवाने के लिए उनके समर्थक नेता और पदाधिकारी रिसोर्स ग्रुप में रोटरी पब्लिक इमेज कोऑर्डीनेटर के पद से आशीष देसाई को हटा कर उनकी जगह दीपक शिकारपुर को बैठा दें - जिसके बदले में दीपक शिकारपुर डिस्ट्रिक्ट के बाकी बचे करीब पचास प्रतिशत वोट भरत पांड्या को दिलवाएँ । लोगों के बीच कयास बहुतेरे हैं; ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि आखिर होता क्या है ?

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में राजीव अग्रवाल को फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार चुने जाने के तरीके को लेकर पैदा हुई नाराजगी का, राजिंदर बंसल के 'कभी पास/कभी दूर' दिखने के चलते आरके शाह कोई फायदा उठाते हुए नजर नहीं आ रहे हैं

नई दिल्ली । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में राजीव अग्रवाल को आशीर्वाद देने वाले कार्यक्रम में राजिंदर बंसल की उपस्थिति ने आरके शाह को तगड़ा झटका दिया है । दरअसल आरके शाह को उम्मीद थी कि राजिंदर बंसल हरियाणा में उन्हें समर्थन दिलवाने के लिए प्रयास करेंगे । यह उम्मीद उन्हें दो कारणों से थी : एक कारण तो राजिंदर बंसल के साथ उनके पुराने संबंध के रूप में था, जिसमें हालाँकि बीच में काफी उतार-चढ़ाव आते रहे थे - लेकिन पिछले दिनों राजिंदर बंसल के क्लब के अधिष्ठापन समारोह में जब दिल्ली से पहुँचने वालों में एक अकेले आरके शाह ही लोगों को दिखे थे, तब यह मान लिया गया था कि तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद राजिंदर बंसल के साथ आरके शाह के संबंध यथावत है; दूसरा कारण राजिंदर बंसल का वह कथन बना, जो दिल्ली के पूर्व गवर्नर्स की मीटिंग में राजीव अग्रवाल की उम्मीदवारी को हरी झंडी मिलने के बाद राजिंदर बंसल की तरफ से सुना गया - जिसमें कहा बताया गया कि राजीव अग्रवाल को हरियाणा में जानता ही कौन है ? इससे संकेत मिला कि राजिंदर बंसल फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में राजीव अग्रवाल के चयन से खुश नहीं हैं । कुछेक लोगों का कहना भी रहा कि राजिंदर बंसल फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में आरके शाह की वकालत कर रहे थे - हालाँकि ढीले/ढाले ढंग से ही कर रहे थे । इस तरह की बातों से आरके शाह की उम्मीदवारी को बल मिल रहा था । लेकिन दिल्ली में राजीव अग्रवाल की उम्मीदवारी को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का आशीर्वाद देने/दिलवाने के उद्देश्य से आयोजित हुए कार्यक्रम में हरियाणा के अन्य पूर्व गवर्नर्स के साथ-साथ राजिंदर बंसल की भी मौजूदगी ने आरके शाह की उम्मीदवारी को मिल रहे बल का दम निकालने का काम किया ।
हालाँकि कार्यक्रम में मौजूदगी से समर्थन का कोई ठोस दावा तो नहीं किया जा सकता है, लेकिन उससे एक संकेत तो मिलता ही है । राजीव अग्रवाल की उम्मीदवारी को आशीर्वाद देने/दिलवाने वाले कार्यक्रम में दिल्ली के ही जो पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मौजूद थे, उनमें से कई राजीव अग्रवाल को उम्मीदवार चुने जाने के 'तरीके' को लेकर अभी तक भी अपनी नाराजगी दिखा रहे हैं, और यदि हालात बने तो उनको राजीव अग्रवाल की उम्मीदवारी के खिलाफ जाते देखने का भी नजारा दिख जायेगा । इन पूर्व गवर्नर्स का आरोप है कि राजीव अग्रवाल की उम्मीदवारी को हरी झंडी देने में डीके अग्रवाल और अजय बुद्धराज की जोड़ी ने धोखे का सहारा लिया । आरोप है कि मीटिंग से पहले तक यह दोनों आनंद दुआ को हरी झंडी देने की बात कर रहे थे, इसलिए आनंद दुआ की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले पूर्व गवर्नर्स ने इन पर भरोसा कर लिया और मीटिंग को संचालित करने की जिम्मेदारी इन्हें ही सौंप दी । मीटिंग के संचालन की बागडोर हाथ में आते ही डीके अग्रवाल और अजय बुद्धराज ने खेल कर दिया, और राजीव अग्रवाल के नाम की घोषणा कर दी । आनंद दुआ के समर्थक हक्के-बक्के रह गए और मौके की नजाकत भाँप कर वह कुछ कहने का साहस भी नहीं कर सके और राजीव अग्रवाल के नाम पर सहमति 'व्यक्त' करने के लिए मजबूर हुए । डीके अग्रवाल और अजय बुद्धराज के धोखे से खुद आनंद दुआ इतने हताश हुए कि दूसरा नंबर देने की पेशकश को उन्होंने तुरंत ठुकरा दिया । उनकी तरफ से सुनने को मिला कि धोखेबाजों का क्या भरोसा, अगले वर्ष वह फिर धोखा दे सकते हैं । आनंद दुआ और उनके समर्थक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स नेताओं की नाराजगी और हताशा राजीव अग्रवाल  की उम्मीदवारी के लिए चुनौती बन सकती है ।
राजीव अग्रवाल के लिए अभी हालाँकि हालात अनुकूल नजर आ रहे हैं । हरियाणा में उन्हें अभी भले ही कोई न जानता/पहचानता हो और दिल्ली में अलग अलग कारणों से कई लोग उम्मीदवार के रूप में उनके चयन से भले ही खुश न हों - लेकिन चूँकि उनके सामने कोई मजबूत और संगठित चुनौती उपस्थित नहीं है, इसलिए उनके सामने 'अभी' खतरा कुछ नहीं दिख रहा है । आरके शाह उम्मीदवार बने जरूर हुए हैं, लेकिन उनकी सक्रियता में कोई सुनियोजित योजना और तैयारी नजर नहीं आ रही है । यही कारण है कि उम्मीदवार के रूप में राजीव अग्रवाल के चयन के तरीके को लेकर पैदा हुई नाराजगी का वह कोई फायदा उठाते हुए नहीं दिखे हैं । मजे की बात यह है कि जो 'नाराज' पूर्व गवर्नर आरके शाह की उम्मीदवारी में अपना 'भविष्य' देख रहे हैं, वह भी आरके शाह के ढीले/ढाले व बिखरे हुए से रवैये को देख कर नाउम्मीद से हो रहे हैं । उनका कहना है कि आरके शाह के पास/साथ लगता है कि कोई योजनाकार नहीं है और आरके शाह विश्वास कर रहे हैं कि 'नाराज' पूर्व गवर्नर्स अपने आप उनके पास जायेंगे । 'नाराज' पूर्व गवर्नर्स का कहना है कि वह कितना ही राजीव अग्रवाल के चयन से नाराज हों, और इसका बदला वह आरके शाह का समर्थन करके लेना चाहते हों - लेकिन इसके लिए पहल वह नहीं कर सकते हैं, पहल तो आरके शाह को ही करना है । आरके शाह की तरफ से कोई प्रभावी पहल होती हुई नजर नहीं आ रही है । ऐसे ही मुकाम पर राजिंदर बंसल की भूमिका रेखांकनीय हो जाती है । आरके शाह के लिए मुश्किल की बात यह हो गई है कि आरके शाह के समर्थक हो सकने वाले पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को जोड़ने का काम राजिंदर बंसल कर सकते हैं - पर वह यदि यह नहीं कर रहे हैं, तो फिर लोगों के बीच इसका मतलब यही समझा जायेगा कि आरके शाह की उम्मीदवारी को राजिंदर बंसल का समर्थन भी नहीं रह गया है ।
राजीव अग्रवाल और आरके शाह आजकल हरियाणा की खाक छान रहे हैं; हरियाणा के क्लब्स के प्रमुख लोग अपने अपने नेताओं से पूछ रहे हैं कि किसे 'हाँ' कहनी और किसे 'न' ? मजे की बात यह सुनने को मिल रही है कि नेताओं की तरफ से उन्हें सलाह दी जा रही है कि अभी न किसी से 'हाँ' कहो और न किसी को 'न' कहो; दोनों को ही भरोसा दो कि हम तुम्हारे साथ है, बाद में देखेंगे कि क्या करना है । इससे संकेत मिल रहा है कि अनुकूल माहौल के बावजूद अभी भी राजीव अग्रवाल के लिए आगे का रास्ता पूरी तरह सुरक्षित नहीं हुआ है, और आरके शाह के लिए उम्मीद अभी भी बाकी है । आगे का सीन इस बात पर निर्भर करेगा कि दोनों उम्मीदवार आगे तैयारी क्या दिखाते हैं, और चाल क्या चलते हैं ?

Tuesday, January 16, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में डायबिटीज ग्रांट के एक करोड़ 31 लाख रुपए के हिसाब-किताब की बात से नरेश अग्रवाल को भी कतराता देख लोगों के बीच सवाल उठा है कि ग्रांट की धाँधली में नरेश अग्रवाल का भी हिस्सा है क्या ?

नई दिल्ली । डायबिटीज से 'लड़ने' के लिए मिली ग्रांट को हड़पने की कोशिशों में लगे गिरोह के 'अलीबाबा' को आखिरकार पर्दे के पीछे से बाहर आने के लिए मजबूर होना ही पड़ा है । अभी तक पर्दे के पीछे से मामले को सुलटाने का प्रयास कर रहे लायंस इंटरनेशनल के प्रेसीडेंट पद पर बैठे नरेश अग्रवाल ने अब सीधे-सीधे मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग को पत्र लिख कर एक करोड़ 31 लाख रुपए की रकम एलसीआईएफ को वापस करने के लिए कहा है । लायंस इंटरनेशनल के इतिहास में यह पहला मौका होगा, जब किसी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट को उस ग्रांट की रकम को वापस करने के लिए कहना पड़ा हो - जिसके बारे में हर कोई जानता है कि वह 'खर्च' कर ली गई है । मजे की बात यह है कि खुद इंटरनेशनल प्रेसीडेंट का दावा है कि खर्चे में कोई बेईमानी नहीं हुई है । हर कोई जानता है - जाहिर है कि नरेश अग्रवाल भी जानते ही होंगे - कि एलसीआईएफ से मिली उक्त ग्रांट जिस प्रोजेक्ट के लिए मिली है, वह पूरा हो गया है; इसलिए ग्रांट की रकम एलसीआईएफ को वापस करने की बात भला कैसे की जा सकती है ? ग्रांट की रकम देने के बाद एलसीआईएफ रकम का हिसाब-किताब माँग सकती है, जो यदि उसे न मिल रहा हो तो बड़े नेता/पदाधिकारी उसे देने के लिए कह सकते हैं - सुझाव दे सकते हैं और या धमकी भी दे सकते हैं । पर यहाँ मजे की बात यह हो रही है कि हिसाब-किताब कोई नहीं माँग रहा है - न एलसीएएफ माँग रही है, और न इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल हिसाब-किताब देने की बात कर रहे हैं; दोनों ही ग्रांट की रकम वापस करने की बात कर रहे हैं, जो तकनीकी रूप से खर्च हो चुकी है । इससे ही साबित है कि लायंस इंटरनेशनल में इस समय जो लोग पदाधिकारी हैं, वह अलीबाबा और उसके गिरोह की तरह काम कर रहे हैं । उनके लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि उन्होंने लूट की जो योजना बनाई थी, वह फेल होती हुई दिख रही है ।
नरेश अग्रवाल ने विनय गर्ग को लिखे पत्र में कहा/बताया है कि उन्होंने 'गुड फेथ' में मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 को उक्त ग्रांट दिलवाई थी । उल्लेखनीय है कि लायंस इंटरनेशनल के दस्तावेजों में 'गुड फेथ' में ग्रांट देने/दिलवाने का कोई प्रावधान ही नहीं है; ग्रांट लेने/देने के लिए एक प्रक्रिया का प्रावधान है - जिसे पूरा करके ही ग्रांट लेने/देने का काम हो सकता है । प्रावधानों की अनदेखी करके नरेश अग्रवाल ने जिस तरह से 'यह' ग्रांट ली/दिलवाई है, उससे ही साबित होता है कि शुरू से ही उनकी नीयत' में खोट था । एकबारगी इस बात को अनदेखा भी कर दिया जाए, तो इसके आगे की प्रक्रिया यह है कि जिसे ग्रांट मिली है - उससे ग्रांट की रकम का हिसाब-किताब माँगा जाए । इस प्रक्रिया के तहत एलसीआईएफ को ग्रांट की रकम का हिसाब-किताब माँगना चाहिए, और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के रूप में नरेश अग्रवाल को भी मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के पदाधिकारियों से कहना चाहिए कि वह तुरंत हिसाब-किताब दें । लेकिन इस मामले में भी लायंस इंटरनेशनल की मान्य प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा रहा है ।
नरेश अग्रवाल ने विनय गर्ग को लिखे पत्र में दावा किया है कि इस ग्रांट की रकम को मल्टीपल के जिन वरिष्ठ पदाधिकारियों ने खर्च किया है, उनकी ईमानदारी पर शक नहीं किया जा सकता है - इसलिए ऐसा करके सिर्फ उनको ही नहीं, बल्कि मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 को भी बदनामी के दलदल में धकेला जा रहा है । मजे की बात यह है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग ने बार बार यह कहा है कि वह किसी पर भी बेईमानी करने का आरोप नहीं लगा रहे हैं, वह तो सिर्फ खर्च हुई रकम का हिसाब-किताब माँग रहे हैं, जो ग्रांट के प्राप्तकर्ता की हैसियत से उन्हें एलसीसीआई को देना है । ग्रांट की रकम खर्च करने वाले पदाधिकारी हिसाब-किताब देने में टाल-मटोल करने का रवैया अपना कर खुद ही लोगों के मन में प्रोजेक्ट में धाँधली होने की आशंका पैदा कर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि प्रोजेक्ट चेयरमैन के रूप में जगदीश गुलाटी ने पहले तो प्रोजेक्ट के आवंटन में और फिर खर्च हुई रकम का हिसाब-किताब देने में टाल-मटोल भरा जो रवैया अपनाया है, उसके चलते यह मामला खासा भड़क गया है । जगदीश गुलाटी ने अपने डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर कुँवर बीएम सिंह से विनय गर्ग पर दबाव डलवाने का जो प्रयास किया, उसे उनकी बहुत ही घटिया हरकत के रूप में देखा/पहचाना गया - और उनकी इसी तरह की हरकतों के चलते ग्रांट की रकम में भारी धाँधली होने के आरोपों को बल मिला है ।
उम्मीद की जा रही थी कि नरेश अग्रवाल इस मामले को हल करने के लिए कोई सम्मानजनक पहल करेंगे । कुछेक लोग हालाँकि इस घपलेबाजी के मास्टरमाइंड के रूप में नरेश अग्रवाल को ही पहचान रहे थे, लेकिन फिर भी अन्य कई लोगों को विश्वास रहा कि अब जब मामला खासा गंभीर मोड़ ले चुका है, तब नरेश अग्रवाल मामले को निपटाने के लिए जगदीश गुलाटी से हिसाब-किताब देने को कहेंगे - ताकि मामला सम्मानजनक तरीके से खत्म हो और धाँधली के आरोप हवा हों । लेकिन विनय गर्ग को लिखे पत्र में नरेश अग्रवाल ने जो रवैया अपनाया है, उसने सारे मामले तथा धाँधली के आरोपों को और गहरा कर दिया है । नरेश अग्रवाल ने अपने पत्र में खुद कहा/लिखा है कि उक्त ग्रांट मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 को मिली है; जाहिर है कि हिसाब-किताब मल्टीपल के पदाधिकारियों को ही देना है, जो वह तब दे पायेंगे - जब जगदीश गुलाटी उन्हें देंगे । नरेश अग्रवाल हिसाब-किताब देने/लेने की लेकिन कोई बात ही नहीं कर रहे हैं, वह तो ग्रांट की रकम एलसीआईएफ को वापस करने की बात कर रहे हैं - ताकि वह एलसीआईएफ से जगदीश गुलाटी को पैसा दिलवा सकें । नरेश अग्रवाल का यह दावा सच हो सकता है कि प्रोजेक्ट की रकम में जगदीश गुलाटी ने कोई धाँधली नहीं की है - लेकिन तब फिर मल्टीपल काउंसिल के पदाधिकारियों को हिसाब-किताब देने में जगदीश गुलाटी हिचक क्यों रहे हैं ? लोगों के बीच सवाल है कि उनका डर इसलिए तो नहीं है कि तब उनकी धाँधली पकड़ ली जाएगी ? विनय गर्ग को लिखे पत्र में नरेश अग्रवाल भी हिसाब-किताब देने/लेने की बात से कतरा रहे हैं, इसलिए लोगों को सवाल करने का मौका मिला है कि इस धाँधली में नरेश अग्रवाल का भी हिस्सा है क्या ?

Saturday, January 13, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में रवि चौधरी द्वारा की गई पक्षपातपूर्ण बेईमानी की शिकायत न करने के लिए अनूप मित्तल को राजी करने वाले पूर्व गवर्नर्स विनय भाटिया के गवर्नर-काल में भी क्या चुपचाप बैठे घटिया हरकतों का तमाशा देखते रहेंगे ?

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में हुई बेईमानी के आरोपों को लेकर रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत न करने के लिए अनूप मित्तल को राजी कर लेने में पूर्व गवर्नर्स नेताओं को जो सफलता मिली है, उसने विजेता बने संजीव राय मेहरा के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी को भी बड़ी राहत पहुँचाई है । दरअसल चुनाव में हुई बेईमानी के आरोप और सुबूत इतने पुख्ता थे कि जाँच-पड़ताल में संजीव राय मेहरा को मिली जीत तो छिन ही जाती, रवि चौधरी के लिए भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद बचाना मुश्किल हो जाता - और वह भी डिस्ट्रिक्ट 3100 के सुनील गुप्ता की दशा को प्राप्त होते । उल्लेखनीय है कि जैसे आरोप रवि चौधरी पर रहे हैं, लगभग वैसे ही आरोप डिस्ट्रिक्ट 3100 के गवर्नर सुनील गुप्ता पर थे - जिनकी रोटरी इंटरनेशल में शिकायत हुई; रोटरी इंटरनेशनल ने आरोपों को सही पाया और सुनील गुप्ता को तुरंत गवर्नर पद से इस्तीफा देने को कहा । उन्हें बता दिया गया कि उन्होंने यदि तुरंत इस्तीफा नहीं दिया, तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जायेगा । सुनील गुप्ता को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का स्टेटस भी नहीं मिला । रवि चौधरी की हरकतों से परिचित लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रवि चौधरी की हरकतें तो और भी घटिया व निर्लज्ज किस्म की रही हैं; ऐसे में, अनूप मित्तल ने यदि रोटरी इंटरनेशनल में औपचारिक रूप से शिकायत कर दी होती, तो रवि चौधरी का भी सुनील गुप्ता जैसा ही हाल होता । पूर्व गवर्नर्स का कहना है कि अनूप मित्तल को शिकायत न करने के लिए राजी करके, उन्होंने रवि चौधरी को नहीं - बल्कि डिस्ट्रिक्ट को बचाया है । उनका कहना है कि शिकायत होती तो जाँच बैठती और फिर आरोपों का पिटारा खुलता, जिसमें कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की रवि चौधरी के साथ मिली भगत के तथ्य भी मिलते - और फिर हो सकता था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में की गईं रवि चौधरी की करतूतों की सजा उनके साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट को भी मिलती, जैसा डिस्ट्रिक्ट 3100 के साथ हुआ ।
रवि चौधरी की करतूतों को नजरअंदाज करने के मामले में पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता खासतौर से लोगों के निशाने पर हैं । लोगों का कहना है कि अपने निजी स्वार्थ में वह रवि चौधरी की हरकतों पर आँख मूँदे रहे, जिससे रवि चौधरी को मनमानी बेवकूफियाँ और बद्तमीज़ियाँ करने का हौंसला मिलता रहा । आभा झा चौधरी की शिकायत के मामले में सुशील गुप्ता के सामने पूरा मौका था, जबकि वह रवि चौधरी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की गरिमा को बनाए रखने के बारे में आगाह कर सकते थे, उन्हें समझा सकते थे - लेकिन उन्होंने कुछ भी करने की जरूरत तो नहीं ही समझी; संकेतों व रवैये से रवि चौधरी को शह और दी, जिससे रवि चौधरी को अपनी बद्तमीज़ियाँ जारी रखने के लिए और बल मिला । कुछेक लोगों को लगता है कि सुशील गुप्ता दरअसल रवि चौधरी से डर गए; सुशील गुप्ता जान/समझ रहे हैं कि रवि चौधरी एक बद्तमीज किस्म के व्यक्ति हैं, लिहाजा सुशील गुप्ता को डर रहा कि वह कुछ कहेंगे तो रवि चौधरी उनके साथ भी बद्तमीजी कर सकते हैं - इसलिए उन्होंने चुप रहने में ही अपनी भलाई देखी । कुछेक पूर्व गवर्नर्स का कहना रहा भी कि वह चाहते और कोशिश करते तो रवि चौधरी की अक्ल ठिकाने लगा/लगवा सकते थे, लेकिन तब डिस्ट्रिक्ट की भी बदनामी होती - और यह ऐसा ही मामला होता जैसे घर में गंदगी फैला रहे चूहों से निपटने के लिए कोई घर में ही आग लगा ले । उनका कहना है कि रवि चौधरी के चक्कर में डिस्ट्रिक्ट की बदनामी तो हालाँकि हो रही है, लेकिन अभी मामला अधिकृत बदनामी की स्थिति में नहीं है - डिस्ट्रिक्ट को उस स्थिति में फँसने से बचाए रखने के लिए रवि चौधरी की बदतमीजियों को कुछ और दिन बर्दाश्त कर लेना अच्छा है । उनका कहना है कि कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की हरकतों के चलते डिस्ट्रिक्ट वैसे ही रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के 'निशाने' पर है, ऐसे में रवि चौधरी की हरकतों की शिकायत होने पर डिस्ट्रिक्ट मुसीबत में फँस जा सकता है ।
डिस्ट्रिक्ट को मुसीबत में फँसने से बचाने के लिए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स नेताओं ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी की पक्षपातपूर्ण बेईमानी की शिकायत करने से अनूप मित्तल को रोक तो लिया है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच यह सवाल चर्चा में है कि क्या यह पूर्व गवर्नर्स अनूप मित्तल को अगले रोटरी वर्ष के गवर्नर विनय भाटिया के पक्षपातपूर्ण रवैये का शिकार होने से बचा सकेंगे ? विनय भाटिया के नजदीकी और उनके गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बने पूर्व गवर्नर विनोद बंसल ने आश्वासन तो दिया है कि अगले वर्ष के चुनाव में विनय भाटिया तटस्थ रहेंगे और किसी भी उम्मीदवार के पक्ष में बेईमानी नहीं करेंगे, लेकिन विनय भाटिया ने जिस तरह से अगले रोटरी वर्ष के लिए घोषित उम्मीदवार अशोक कंतूर को प्रमोट करने का काम शुरू किया हुआ है - उसे देखते हुए विनोद बंसल का आश्वासन पूरा होता हुआ तो नहीं लग रहा है । कई मामलों में दरअसल विनय भाटिया को रवि चौधरी के ही 'छोटे भाई' के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है - और लोगों को आशंका है कि विनय भाटिया का गवर्नर-काल भी रवि चौधरी के गवर्नर-काल की तरह घटिया किस्म की हरकतों के कारण बदनाम रहेगा । इसी आधार पर लोगों को लग रहा है कि अनूप मित्तल को रवि चौधरी द्वारा की गई पक्षपातपूर्ण बेईमानी की शिकायत न करने के लिए राजी करने वाले पूर्व गवर्नर्स जैसे इस वर्ष रवि चौधरी की हरकतों को चुपचाप बैठे देखते रहे, वैसे ही वह विनय भाटिया के गवर्नर-काल में भी चुपचाप बैठे तमाशा ही देखते रहेंगे - और डिस्ट्रिक्ट की बदनामी में सहयोग करते रहेंगे ।

Thursday, January 11, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के पूर्व प्रेसीडेंट एनडी गुप्ता के राज्यसभा की तरफ बढ़ते कदमों तथा दो सीटों के खाली होने के कारण बने माहौल का सेंट्रल काउंसिल चुनाव में फायदा उठाने का सुधीर अग्रवाल के लिए अच्छा मौका बना

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट एनडी गुप्ता के राज्यसभा सदस्य होने/बनने के जो हालात बने हैं, उसने इस वर्ष होने वाले इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के चुनाव के संदर्भ में सुधीर अग्रवाल और उनके नजदीकियों को खासा उत्साहित किया है - क्योंकि सिर्फ उन्हें ही नहीं, बल्कि दूसरों को भी लग रहा है कि उक्त हालात ने सुधीर अग्रवाल के लिए लोगों के बीच मनोवैज्ञानिक रूप से एक अनुकूल धारणा बनाई है । दरअसल सुधीर अग्रवाल कुछ समय पहले तक एनडी गुप्ता खेमे के एक प्रमुख सदस्य हुआ करते थे और खेमे की दूसरी पंक्ति के नेताओं में पहले नंबर पर पहचाने जाते थे । एनडी गुप्ता के इंस्टीट्यूट का प्रेसीडेंट बनने के बाद उनका खेमा बिखरा, तो खेमे के लोग भी इधर-उधर हो गए - खेमे के एक नेता वेद जैन का अपना एक खेमा बन गया । नवीन गुप्ता की चुनावी राजनीति भी खेमे के लोगों को वैसे जोड़ कर नहीं रख सकी, जैसे वह एनडी गुप्ता की चुनावी सक्रियता के दिनों में हुआ करती थी । चुनावी राजनीति में सक्रिय रहने के कारण सुधीर अग्रवाल, एनडी गुप्ता खेमे के सुनहरे दिनों की याद को बनाए रखने में जरूर एक माध्यम बने रहे । खेमे जैसी कोई 'चीज' रह नहीं गई थी, खेमे के नाम पर जो लुंज-पुंज सा समूह था भी - उसमें सुधीर अग्रवाल की कोई भूमिका नहीं थी; लेकिन फिर भी 'एनडी गुप्ता खेमे' की पहचान सुधीर अग्रवाल के साथ चिपकी रह गई । इसका कारण यह रहा कि खेमे के सुनहरे दिनों में सुधीर अग्रवाल अत्यंत सक्रिय थे, और बाद के वर्षों में भी एक अकेले वही अलग अलग भूमिकाओं में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में सक्रिय बने रहे - इसलिए एनडी खेमे को लेकर जब भी कोई बात करता, तो सुधीर अग्रवाल का जिक्र साथ जुड़ ही जाता । सुधीर अग्रवाल के साथ तो यह पहचान जुड़ी रही, लेकिन लोगों के बीच यह धुँधली पड़ गई थी - एनडी गुप्ता के राज्यसभा सदस्य होने/बनने के बने हालात ने लेकिन लोगों के बीच धुँधली पड़ी उस पहचान में एक बार फिर से रंग भर दिए हैं ।
और इस रंग-भरी पहचान ने इस वर्ष होने वाले चुनाव के संदर्भ में सुधीर अग्रवाल के प्रयासों को खासा उत्साहित किया है । राज्यसभा सदस्य के रूप में एनडी गुप्ता का पहला वर्ष उनके पुराने साथियों और भक्तों को सक्रिय करने का काम करेगा, इसी वर्ष नवीन गुप्ता का इंस्टीट्यूट का प्रेसीडेंट होना उनकी सक्रियता को व्यवस्थित करने का काम करेगा - और सुधीर अग्रवाल को उनकी सक्रियता का इंस्टीट्यूट के चुनाव में फायदा उठाने का मौका मिलेगा । यह मौका सुधीर अग्रवाल को ही सिर्फ इसलिए मिलेगा, क्योंकि एनडी गुप्ता के पुराने साथियों और भक्तों के तार संभावित उम्मीदवारों में सिर्फ सुधीर अग्रवाल से ही जुड़ते हैं । एनडी गुप्ता खेमे से इस वर्ष के चुनाव में किसी उम्मीदवार के आने की चर्चा तो थी, लेकिन उम्मीदवार के रूप में जिन लोगों को पहचाना जा रहा था - उनके इंकार के चलते उक्त चर्चा धूमिल पड़ती जा रही है । दरअसल, जैसा कि पिछले पैरा में कहा गया है कि एनडी गुप्ता के खेमे की एक भावनात्मक पहचान भले ही बची हुई हो, लेकिन ठोस रूप में खेमा जैसी कोई चीज बची हुई नहीं है । इस कारण से मौजूदा स्थिति इंस्टीट्यूट के सेंट्रल काउंसिल चुनाव के संदर्भ में सुधीर अग्रवाल को ही फायदा पहुँचाने की हालत में है; या इसे यूँ भी कह सकते हैं कि मौजूदा स्थिति का फायदा - पुराने जुड़ाव और निरंतर सक्रियता के चलते - सुधीर अग्रवाल ही उठा सकते हैं ।
इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए नॉर्दर्न रीजन में इस बार अभी सुधीर अग्रवाल के अलावा. चरनजोत सिंह नंदा, हंसराज चुग, राज चावला और बिग फोर के किसी उम्मीदवार को गंभीरता से देखा/पहचाना जा रहा है । नॉर्दर्न रीजन में इस बार दो सीट खाली हो रही हैं, लेकिन एक सीट घटने की चर्चा है - इसलिए कुल मिला कर एक सीट के लिए सारा बबाल होना है । हालाँकि राजेश शर्मा वाली सीट के रूप में एक और सीट मिलने की संभावना लोगों को लग रही है । पिछली बार आखिरी सीट पर मुश्किल से जीते राजेश शर्मा को इस बार कमजोर उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । वास्तव में, अभी तक के दो वर्षों के कार्यकाल में राजेश शर्मा ने प्रोफेशन के लोगों के बीच सिर्फ बदनामी ही 'कमाई' है । पिछले वर्ष 'सीए डे' के फंक्शन में हुई बदइंतजामी में उनकी जो भूमिका रही, उसे लेकर प्रोफेशन के लोगों के बीच जो गुस्सा पैदा हुआ है - जिसके चलते इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में 'राजेश शर्मा चोर है' जैसे नारों का शोर तक गूँजा, उसके कारण चुनाव में उनकी बुरी गत बनना निश्चित माना जा रहा है । राजेश शर्मा और उनके साथियों को हालाँकि लगता है कि चुनाव का दिन आते आते पिछले वर्ष की उक्त घटना को लोग भुला चुके होंगे, लेकिन अन्य कई लोगों का कहना है कि चुनाव से पहले पड़ने वाले 'सीए डे' पर पिछले वर्ष मिले ज़ख्म फिर हरे होंगे और वह राजेश शर्मा के लिए मुसीबत बनेंगे । किसी ने कहा भी कि यह 'जब जब पुरवाई चलेगी, तब तब तेरी याद आयेगी' जैसा मामला है । अपनी कारस्तानियों और उनके चलते बनी अपनी बदनामी से दबाव झेल रहे राजेश शर्मा को चरनजोत सिंह नंदा की उम्मीदवारी आने से दोहरा झटका लगा है । पिछली बार चरनजोत सिंह नंदा की अनुपस्थिति का हंसराज चुग और राज चावला को भी अच्छा फायदा मिला था; पिछली बार की असफलता से सबक सीख कर इन दोनों ने इस बार के लिए अलग अलग तरीके से जो तैयारी की है, उसके कारण चरनजोत सिंह नंदा के लिए वापसी करना आसान नहीं होगा । माना/समझा जा रहा है कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में राजेश शर्मा वाली सीट के लिए चरनजोत सिंह नंदा, हंसराज चुग और राज चावला के बीच होड़ रहेगी ।
बिग फोर से यदि सचमुच कोई उम्मीदवार आता है, तो वह संजीव चौधरी के लिए समस्या बनेगा । नवीन गुप्ता और संजय अग्रवाल के रूप में जो दो सीट खाली होंगी, उसका फायदा किसी बनिया उम्मीदवार को ही मिलने की उम्मीद की जा रही है । इस संदर्भ में सुधीर अग्रवाल की दाल गलती दिख रही है । हालाँकि नवीन गुप्ता और संजय अग्रवाल के समर्थन-आधार का एक एक हिस्सा अतुल गुप्ता और विजय गुप्ता की तरफ जाने का भी अनुमान लगाया जा रहा है; लेकिन लोगों को लग रहा है कि सुधीर अग्रवाल ने यदि होशियारी से अपनी खूबियों और कमियों को समझते/पहचानते हुए अपना अभियान चलाया, तो खाली हो रही सीटों का बड़ा फायदा उन्हें मिल सकता है । सेंट्रल काउंसिल के लिए अभी और उम्मीदवार सक्रिय होंगे; नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के दो-तीन सदस्यों के ही सेंट्रल काउंसिल चुनाव में कूद पड़ने की उम्मीद की जा रही है - उनकी 'ताकत' इस आधार पर तय होगी कि वह किस हालात में सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बन रहे हैं - और इससे भी सेंट्रल काउंसिल के चुनाव का परिदृश्य तय होगा, और वास्तव में तभी सेंट्रल काउंसिल के चुनाव का असली खेल शुरू होगा । हालाँकि जिन लोगों ने अभी से अपनी उम्मीदवारी के बारे में तय कर लिया है, और परिस्थितियों के चलते जो बेहतर और बढ़त की स्थिति में हैं - वह यदि अभी से स्थितियों को अनुकूल बनाए रखने का प्रयास करते हैं, तो असली खेल शुरू होने के बाद भी अपनी बढ़त को बनाए रखना उनके लिए आसान ही होगा ।

Wednesday, January 10, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवारों के चयन को लेकर दिखाए गए डीके अग्रवाल के 'डुप्लीकेट' रवैये को लेकर योगेश भसीन की नाराजगी ने डिस्ट्रिक्ट के माहौल में बदमजगी पैदा की

नई दिल्ली । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार चुनने की प्रक्रिया में डीके अग्रवाल और - पहले उनके चेले रहे लेकिन अब गुरु 'बनने' की कोशिश कर रहे - अजय बुद्धराज ने जो खेल किया है, उससे योगेश भसीन तथा उनके समर्थक पूर्व गवर्नर्स भड़के हुए हैं । डीके अग्रवाल और अजय बुद्धराज हालाँकि इसकी कोई परवाह करते हुए नहीं दिख रहे हैं । उनकी तरफ से कहा जा रहा है कि उन्हें पता है कि योगेश भसीन को कौन भड़का रहा है, लेकिन वह यह भी जानते हैं कि योगेश भसीन और उन्हें भड़काने वाले लोग कुछ कर नहीं पायेंगे । योगेश भसीन की शिकायत है कि पूर्व गवर्नर्स की मीटिंग में इस वर्ष और अगले वर्ष के लिए फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार का चयन होना था, और वह हुआ भी - लेकिन इस प्रक्रिया को पूर्णता तक नहीं पहुँचाया गया है । योगेश भसीन का कहना है कि उक्त प्रक्रिया को यदि पूर्णता तक पहुँचाया जाए, तो अगले वर्ष के लिए उनकी उम्मीदवारी घोषित होती है - लेकिन जिन डीके अग्रवाल पर उक्त प्रक्रिया को पूर्णता तक पहुँचाने की जिम्मेदारी है, वह चूँकि उनके प्रति निजी खुन्नस रखते हैं इसलिए उन्होंने उक्त प्रक्रिया को बीच में ही रोक दिया है; और कोई फैसला भी नहीं दे रहे हैं । उल्लेखनीय है कि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवारों का चयन करने के लिए तीन जनवरी को डिस्ट्रिक्ट के दिल्ली के पूर्व गवर्नर्स की मीटिंग हुई, जिसमें 14 पूर्व गवर्नर्स ने हिस्सा लिया । मीटिंग की संचालन व्यवस्था डीके अग्रवाल के हाथ में थी, जिनकी तरफ से सभी पूर्व गवर्नर्स को आरके अग्रवाल, आनंद दुआ और योगेश भसीन के नाम लिखे कागज दिए गए - जिसमें पूर्व गवर्नर्स को तीनों नामों को अपनी पसंद के अनुसार वरीयता क्रम देने थे । फिर यह कागज वापस डीके अग्रवाल के पास पहुँचने थे, और उन्हें प्रत्येक उम्मीदवार को मिले वोटों की गणना करके इस वर्ष और अगले वर्ष के लिए उम्मीदवार की घोषणा करना थी । गणना करके डीके अग्रवाल ने इस वर्ष के लिए आरके अग्रवाल को और अगले वर्ष के लिए आनंद दुआ को उम्मीदवार घोषित किया ।
योगेश भसीन के अनुसार, यहाँ तक तो सब ठीक हुआ - लेकिन डीके अग्रवाल का असली रंग इसके बाद देखने को मिला । योगेश भसीन का कहना है कि फैसला सुनने के बाद आनंद दुआ ने तुरंत मौके पर ही चूँकि अगले वर्ष उम्मीदवार होने से साफ इंकार कर दिया, इसलिए अगले वर्ष उम्मीदवार बनने का मौका उन्हें मिलना चाहिए था । डीके अग्रवाल ने लेकिन ऐसा करने में कोई दिलचस्पी नहीं ली । अजय बुद्धराज ने आनंद दुआ को विचार करने के लिए चौबीस घंटे का समय देने की बात कही । योगेश भसीन ने इसे भी स्वीकार कर लिया था । उनका कहना है कि आनंद दुआ को विचार करने के लिए दिए गए चौबीस घंटों को बीते हुए भी अब तो डेढ़ सौ घंटे से भी ऊपर हो गए हैं, आनंद दुआ ने लेकिन अपना फैसला बदलने की घोषणा नहीं की है - फिर भी डीके अग्रवाल तीन जनवरी की मीटिंग की प्रक्रिया को पूर्ण करते हुए अगले वर्ष के उम्मीदवार के रूप में उनके नाम की घोषणा नहीं कर रहे हैं । योगेश भसीन के दावे और उनकी माँग का समर्थन करते हुए एक पूर्व गवर्नर ने बताया कि इसी तरह का दोहरा रवैया अपनाने के कारण बड़े नेताओं ने डीके अग्रवाल का नाम 'डुप्लीकेट कुमार' रखा हुआ है । डीके अग्रवाल का पूरा नाम दरअसल धीरज कुमार अग्रवाल है, जिसे बिगाड़ कर कुछेक बड़े नेताओं ने डुप्लीकेट कुमार अग्रवाल किया हुआ है । योगेश भसीन का दावा यह भी है कि तीन जनवरी की मीटिंग में उपस्थित हुए पूर्व गवर्नर्स से उनकी जो अलग अलग बात हुई है, उसके अनुसार आठ/नौ पूर्व गवर्नर्स ने अगले वर्ष के उम्मीदवार के रूप में उन्हें वोट दिया था; इस आधार पर उनका गंभीर आरोप यह भी है कि डीके अग्रवाल ने वोटों की गिनती में भी धोखाधड़ी की है ।
योगेश भसीन और उनके समर्थक - और या उन्हें भड़काने में लगे - पूर्व गवर्नर्स अजय बुद्धराज के रवैये पर और भी ज्यादा खफा हैं । खफा होने का कारण अजय बुद्धराज की योगेश भसीन के स्वास्थ्य को लेकर की गई टिप्पणी है । तीन जनवरी की मीटिंग में अगले वर्ष के लिए आनंद दुआ के इंकार के बाद जब योगेश भसीन अपनी उम्मीदवारी घोषित किये जाने की माँग कर रहे थे, तब अजय बुद्धराज ने यह कहते हुए उन्हें हतोत्साहित किया कि आपके कमजोर स्वास्थ्य को देखते हुए आपकी उम्मीदवारी पर फैसला करना अभी उचित नहीं होगा । यह सुनकर योगेश भसीन भड़क गए और उन्होंने अजय बुद्धराज से पूछा कि मेरे स्वास्थ्य का हाल पूछने कितनी बार मेरे यहाँ आए हो - जो अब मेरे स्वास्थ्य की चिंता कर रहे हो । योगेश भसीन के स्वास्थ्य को मुद्दा बनाने की अजय बुद्धराज की कोशिश को लेकर अन्य कुछेक पूर्व गवर्नर्स ने भी अपनी नाराजगी व्यक्त की । उनका कहना रहा कि योगेश भसीन अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से जब उनके यहाँ महँगी घड़ी का गिफ्ट लेकर आए थे, तब अजय बुद्धराज ने उनसे क्यों नहीं कहा कि आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं है और अब आपको उम्मीदवारी के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए । उल्लेखनीय है कि उम्मीदवार चुनने की प्रक्रिया शुरू होने से पहले योगेश भसीन दिल्ली के सभी पूर्व गवर्नर्स के यहाँ महँगी घड़ी का गिफ्ट लेकर गए थे; उनके अनुसार, जिस पर उन्होंने दो/ढाई लाख रुपए खर्च किए । योगेश भसीन के समर्थक पूर्व गवर्नर्स का कहना है कि महँगा गिफ्ट लेने के बावजूद अजय बुद्धराज को योगेश भसीन की उम्मीदवारी का समर्थन नहीं करना था, तो न करते - उसमें शिकायत की कोई बात नहीं है; लेकिन योगेश भसीन के स्वास्थ्य को मुद्दा बनाने का उनका प्रयास बहुत ही अशोभनीय, अमानवीय व आपत्तिजनक है ।
योगेश भसीन और उनके समर्थकों की नाराजगीभरी बातें डीके अग्रवाल और अजय बुद्धराज तक भी पहुँची हैं । दोनों ही लेकिन उनकी बातों की परवाह करते हुए नहीं नजर आ रहे हैं । गिफ्ट की बात पर अजय बुद्धराज की तरफ से कहा/सुना गया है कि उन्होंने - या अन्य किसी ने भी योगेश भसीन से गिफ्ट माँगा था क्या; अब वह क्यों बखान कर रहे हैं कि उन्होंने कितना महँगा गिफ्ट दिया और उस पर कितने रुपए खर्च किए । डीके अग्रवाल और अजय बुद्धराज की तरफ से कहा/सुना जा रहा है कि उन्हें पता है कि योगेश भसीन को भड़का कर, उनकी आड़ में कौन क्या राजनीति कर रहा है - लेकिन इससे कुछ होगा नहीं । लोगों का कहना लेकिन यह है कि डीके अग्रवाल और अजय बुद्धराज का यह विश्वास हो सकता है कि सही साबित हो कि योगेश भसीन व उनके समर्थक होने का दिखावा करने वाले पूर्व गवर्नर्स की बातों से कुछ होगा नहीं - लेकिन उनकी बातों ने लोगों के बीच डीके अग्रवाल व अजय बुद्धराज के पक्षपातपूर्ण तथा दोहरे रवैये को बेनकाब करने का काम तो किया ही है; और इससे डिस्ट्रिक्ट में बदमजगी तो पैदा हुई ही है ।

Sunday, January 7, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में डायबिटीज की बेईमानी के भुगतान को लेकर इंटरनेशनल डायरेक्टर वीके लूथरा की धमकीभरी 'स्मार्टनेस' पर विनय गर्ग द्वारा किए गए पलटवार ने जगदीश गुलाटी और ग्रांट की रकम को ठिकाने लगा चुके उनके साथियों को सांसत में डाला

नई दिल्ली । इंटरनेशनल डायरेक्टर वीके लूथरा की झूठी धमकीभरी 'स्मार्टनेस' ने डायबिटीज प्रोजेक्ट के लिए एक करोड़ 31 लाख रुपए की रकम से जुड़े विवाद को और गंभीर बना दिया है । मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के पदाधिकारियों की तरफ से स्पष्ट कर दिया गया है कि वीके लूथरा लायंस इंटरनेशनल के आदेश की झूठी व्याख्या करके उन पर दबाव नहीं बना सकते हैं, और डायबिटीज प्रोजेक्ट के नाम पर हुई लूट में मददगार बनने के लिए उन्हें मजबूर नहीं कर सकते हैं । उल्लेखनीय है कि डाटबिटीज प्रोजेक्ट के लिए आई एक करोड़ 31 लाख रुपए की ग्रांट के अनाप-शनाप खर्च को लेकर मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के पदाधिकारियों तथा बड़े नेताओं के बीच भुगतान को लेकर पिछले कुछ समय से विवाद चल रहा है । प्रोजेक्ट चेयरमैन जगदीश गुलाटी ने अपने साथी बड़े नेताओं के साथ मिल कर आनन-फानन में उक्त रकम ठिकाने लगा दी है और अब वह चाहते हैं कि मल्टीपल पदाधिकारी उक्त रकम का भुगतान कर दें । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग कह रहे हैं कि जहाँ जो रकम खर्च हुई है, उसका पूरा हिसाब दे कर उसकी जाँच करवा लें और भुगतान ले लें । जगदीश गुलाटी और उनके साथी बड़े नेता इसके लिए तैयार नहीं हैं; वह चाहते हैं कि वह जिस किसी को जितनी रकम देने को कहें, काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग बिना चूँ-चपड़ किए उतनी रकम उसे दे दें । विनय गर्ग इसके लिए तैयार नहीं हैं ।
विनय गर्ग का कहना है कि डायबिटीज प्रोजेक्ट के नाम पर जो खर्चा किया गया है और उसकी जो बिलिंग है, वह काफी संदेहास्पद है और प्रोजेक्ट की रकम में बड़ी लूट-खसोट का आभास देती है । विनय गर्ग ने यह कहते/बताते हुए मामले को खासा गंभीर बना दिया है कि प्रोजेक्ट के तहत जो उपकरण छह से आठ लाख रुपए में खरीदे दिखाए गए हैं, वह खुले बाजार में चार से पाँच लाख रुपए में उपलब्ध सुने जा रहे हैं । इसी तरह कई चीजों के खर्च अनाप-शनाप वृद्धि के साथ दिखाए/बताए गए हैं और ऐसा लगता है कि प्रोजेक्ट की रकम का एक बड़ा हिस्सा प्रोजेक्ट करने वालों ने अपनी जेबों में भर लिया है । विनय गर्ग का कहना है कि वह ऐसे किसी काम में सहभागी नहीं बनेंगे, जिसमें बेईमानी करने के आरोप लगें और लोग उन पर भी उँगलियाँ उठाएँ । विनय गर्ग ने प्रस्ताव रखा कि मल्टीपल में एक कमेटी बनाई जाए, जो खर्च हुए पैसे का वास्तविक मूल्याँकन करे - और वह जो रकम बताए, प्रोजेक्ट की रकम के अकाउंट से उसका भुगतान कर दिया जाए । प्रोजेक्ट चेयरमैन जगदीश गुलाटी और प्रोजेक्ट 'करने' में उनके सहयोगी रहे बड़े नेता इसके लिए राजी नहीं हैं । मजे की बात यह है कि उक्त प्रोजेक्ट मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट के लिए ग्रांट हुआ था, लेकिन इस प्रोजेक्ट को करने में मल्टीपल के सभी डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारियों को शामिल नहीं किया गया, और मनमाने तरीके से कुछ ही लोगों ने इस प्रोजेक्ट की बंदरबाँट कर ली । प्रोजेक्ट को जल्दी से जल्दी पूरा करने की हड़बड़ी में प्रोजेक्ट पूरा करने की सामान्य प्रक्रिया का भी पालन नहीं किया गया; जिसके चलते प्रोजेक्ट में हुए खर्च को एलसीसीआई से पैसा उधार लेकर पूरा किया गया । लायंस इंटरनेशनल के इतिहास में किसी प्रोजेक्ट को पूरा करने में ऐसी हड़बड़ी दिखाने का दूसरा उदाहरण शायद ही मिले, जिसमें प्रोजेक्ट ग्रांट की रकम आ चुकने के बावजूद - उसे खर्च करने की नियमबद्ध प्रक्रिया अपनाने की बजाए कहीं और से उधार लेकर प्रोजेक्ट का खर्च पूरा किया जाए । विवाद और झगड़ा वास्तव में इसी बात का है कि जगदीश गुलाटी और उनके साथी माँग कर रहे हैं कि ग्रांट का पैसा एलसीसीआई को दे दिया जाए, जो प्रोजेक्ट में खर्च हुआ है; विनय गर्ग कह रहे हैं कि पहली बात तो यह कि प्रोजेक्ट ग्रांट का पैसा इस तरह ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है, और दूसरी बात यह कि चलो इस बात का तो कोई तोड़ निकाल भी लिया जायेगा - लेकिन मनमाने तरीके से किए/हुए खर्च का आँख मूँद कर तो भुगतान किसी भी तरह से नहीं ही किया जा सकेगा ।
इस विवाद के लायंस इंटरनेशनल कार्यालय में पहुँच जाने से मामला थोड़ा ट्रिकी भी हो गया है । तकनीकी रूप से देखें तो तथ्य यह है कि डायबिटीज प्रोजेक्ट की ग्रांट की रकम अभी खर्च नहीं हुई है । इस तथ्य का संज्ञान लेते हुए एलसीआईएफ कार्यालय ने काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग को पत्र लिख कर उक्त रकम वापस करने के लिए कहा है । एलसीआईएफ कार्यालय की तरफ से लिखे पत्र में साफ कहा गया है कि उक्त ग्रांट की रकम यदि वापस नहीं की गई, तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी और यह मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट को मिलने वाली ग्रांट्स पर पाबंदी के रूप में भी हो सकती है । एलसीआईएफ के इस पत्र की झूठी व्याख्या करते हुए इंटरनेशनल डायरेक्टर वीके लूथरा ने विनय गर्ग को पत्र लिख कर 'धमकाया' है कि उन्होंने यदि जल्दी ही ग्रांट का पैसा रिलीज नहीं किया, तो मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट पर पाबंदी लग जाएगी । विनय गर्ग ने उनकी इस धमकी पर कुछेक लोगों के बीच चुटकी लेते हुए कहा कि थोड़ी अंग्रेजी तो हमें भी आती है और हम भी समझ रहे हैं कि एलसीआईएफ ने मल्टीपल पर नहीं, बल्कि मल्टीपल को मिलने वाली ग्रांट्स पर पाबंदी लगाने की बात कही है । विनय गर्ग की तरफ से कहा जा रहा है कि प्रोजेक्ट के नाम पर हुए खर्च का उन्हें यदि उचित हिसाब-किताब नहीं मिला, तो वह ग्रांट की रकम एलसीआईएफ को वापस भेज देंगे । वीके लूथरा की 'स्मार्टनेस' पर विनय गर्ग द्वारा किए गए पलटवार ने जगदीश गुलाटी और ग्रांट की रकम को ठिकाने लगा चुके उनके साथियों को सांसत में डाल दिया है । उन्हें डर हुआ है कि विनय गर्ग ने यदि सचमुच ग्रांट की रकम को एलसीआईएफ को वापस कर दिया, तो फिर क्या होगा ? वीके लूथरा की धमकी का असर उल्टा पड़ने के बाद जगदीश गुलाटी और उनके संगी-साथी एक बार फिर तेजपाल खिल्लन के साथ सौदेबाजी करने का मौका बनाने की कोशिशों में जुटे हैं । तेजपाल खिल्लन चूँकि लायन लीडर के भेष में एक सौदेबाज व्यवसायी हैं - इसलिए जगदीश गुलाटी और उनके संगी-साथियों को लगता है कि तेजपाल खिल्लन से सौदेबाजी करके ही वह विनय गर्ग से भुगतान ले सकेंगे । ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि विनय गर्ग बिना उचित रिकॉर्ड मिले भुगतान न करने के अपने रवैये पर टिके/बने रहते हैं, और या जगदीश गुलाटी व तेजपाल खिल्लन के बीच होने वाली सौदेबाजी के शिकार बन जाते हैं ।
विनय गर्ग को एलसीआईएफ पदाधिकारी का पत्र :

Saturday, January 6, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए धीरज खंडेलवाल की सक्रियता के पीछे प्रफुल्ल छाजेड़ को 'रोकने' के साथ-साथ वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन विष्णु अग्रवाल से भी निपटने की तैयारी है क्या ?

मुंबई । धीरज खंडेलवाल ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट का आगामी वाइस प्रेसीडेंट बनने/चुनने के लिए जिस तरह से कमर कसी है, उसके चलते वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए वेस्टर्न रीजन में मजबूत समझे/देखे जा रहे प्रफुल्ल छाजेड़ और निहार जम्बूसारिया के लिए गंभीर चुनौती तो पैदा हुई ही है, वाइस प्रेसीडेंट पद का चुनावी परिदृश्य भी दिलचस्प हो उठा है । वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए सदर्न रीजन से अब्राहम बाबु तथा एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी को भी गंभीरता से लिया जा रहा है । उम्मीदवारी के लिए हाथ-पैर तो और भी कई सेंट्रल काउंसिल सदस्य चला रहे हैं और अपने अपने जुगाड़ बैठाने में लगे हैं, लेकिन सतत प्रयासों और सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में अपनी सक्रियता व सदस्यों के बीच अपनी पहचान और खेमेबाजी के समीकरणों के हिसाब से आकलन करने वाले लोग वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए अभी चार लोगों - प्रफुल्ल छाजेड़, निहार जम्बूसारिया, अब्राहम बाबु और एमपी विजय कुमार के बीच ही मुकाबले को देख रहे हैं । प्रफुल्ल छाजेड़ को इंस्टीट्यूट के मौजूदा प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे का समर्थन माना/सुना जा रहा है, तो अब्राहम बाबु के साथ पिछले वर्ष प्रेसीडेंट रहे देवराज रेड्डी के समर्थन की चर्चा सुनी जा रही है । एमपी विजय कुमार को हर वर्ष वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में टाँग अड़ाने वाले पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम अग्रवाल के भरोसे देखा/पहचाना जा रहा है, तो निहार जम्बूसारिया दूसरे रीजंस के कुछेक सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के साथ बने अपने संबंधों के भरोसे चुनावी मैदान में हैं । इन चारों को सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच की अलग-अलग तरह की खेमेबाजी का सहयोग/समर्थन तो है ही, साथ ही इनका अपना अपना कार्य-व्यवहार भी है - जिसके चलते वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए इनकी उम्मीदवारी को गंभीरता के साथ देखा जा रहा है ।
लेकिन वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए अचानक से वेस्टर्न रीजन के धीरज खंडेलवाल ने जो सक्रियता दिखाई है, उसने वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में खासी गर्मी पैदा कर दी है । धीरज खंडेलवाल ने सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में करीब दो वर्षों के अभी तक के अपने कार्यकाल में हालाँकि ऐसी कोई छाप नहीं छोड़ी है, जिसके चलते उनकी उम्मीदवारी को कोई गंभीरता से - लेकिन अचानक से बढ़ी उनकी सक्रियता के पीछे पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम अग्रवाल को देखे जाने के कारण मामला थोड़ा रोचक जरूर हो गया है । धीरज खंडेलवाल की लोगों के बीच उत्तम अग्रवाल का 'आदमी' होने की एक बहुत ही मजबूत छवि है - यह छवि धीरज खंडेलवाल की ताकत भी है, और साथ ही साथ उनकी कमजोरी भी है । दरअसल इस छवि के चक्कर में उनकी अपनी पहचान और उनका अपना व्यक्तित्व दब गया है, और इस कारण से उनकी अपनी 'भूमिका' बहुत सिमटी हुई सी रह गई है । इस वजह से, उत्तम अग्रवाल के समर्थन के बावजूद धीरज खंडेलवाल की उम्मीदवारी को कोई भी गंभीरता से नहीं देख रहा है, और हर कोई मान/समझ रहा है कि उत्तम अग्रवाल ने प्रफुल्ल छाजेड़ का काम बिगाड़ने के लिए धीरज खंडेलवाल को सक्रिय किया है । उत्तम अग्रवाल को प्रफुल्ल छाजेड़ से यूँ तो कोई समस्या नहीं है; लेकिन प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत में चूँकि नीलेश विकमसे की जीत समझी जाएगी - इसलिए उत्तम अग्रवाल को प्रफुल्ल छाजेड़ का काम बिगाड़ने के लिए धीरज खंडेलवाल को सक्रिय करना पड़ा है । उल्लेखनीय है कि वेस्टर्न रीजन में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में उत्तम अग्रवाल का विकमसे भाइयों के साथ पुराना बैर है, और जब जब भी उनके बीच सीधी चुनावी टक्कर हुई है - उत्तम अग्रवाल को हमेशा ही विकमसे भाइयों से हारना ही पड़ा है । इसी बात से पैदा हुई खुन्नस में उत्तम अग्रवाल ने प्रफुल्ल छाजेड़ की उम्मीदवारी के लिए वेस्टर्न रीजन में ही मुसीबत खड़ी करने के उद्देश्य से धीरज खंडेलवाल को सक्रिय कर दिया है ।
धीरज खंडेलवाल को सक्रिय करने की उत्तम अग्रवाल की कार्रवाई से उनके समर्थन के भरोसे बैठे एमपी विजय कुमार को तो झटका लगा ही है, निहार जम्बूसारिया को भी अपना गेमप्लान बिगड़ता हुआ लगा/दिखा है । दरअसल उन्हें उम्मीद थी कि ऐन मौके पर प्रफुल्ल छाजेड़ को बढ़त मिलती दिखी, तो उत्तम अग्रवाल उन्हें समर्थन दे/दिलवा देंगे । निहार जम्बूसारिया के लिए मुसीबत और चुनौती की बात यह है कि उनकी न नीलेश विकमसे से बनती है, और न उत्तम अग्रवाल से । इसके बावजूद उन्हें उत्तम अग्रवाल से 'मदद' मिलने की उम्मीद रही तो इसका कारण यही रहा कि उन्हें पता है कि उत्तम अग्रवाल नकारात्मक राजनीति करते हैं और तात्कालिक हानि-लाभ को देखते हुए अपने पैंतरे बदलते रहते हैं । दीनल शाह को उत्तम अग्रवाल ने हालाँकि कभी पसंद नहीं किया, लेकिन नीलेश विकमसे को रोकने के लिए उन्होंने दीनल शाह से हाथ मिला लेने में कोई गुरेज नहीं किया था - यह बात अलग है कि उसके बावजूद भी वह नीलेश विकमसे को नहीं रोक सके थे । क्या होता, और क्या नहीं होता - यह तो आगे पता चलता; अभी लेकिन उत्तम अग्रवाल की शह पर शुरू हुई धीरज खंडेलवाल की सक्रियता ने निहार जम्बूसारिया की उम्मीदों को वेस्टर्न रीजन में ही झटका जरूर दिया है ।
धीरज खंडेलवाल को वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए उम्मीदवार के रूप में सक्रिय करने के पीछे कुछेक लोगों के बीच उत्तम अग्रवाल की एक अन्य 'जरूरत' को कारण के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । उत्तम अग्रवाल और धीरज खंडेलवाल के कुछेक नजदीकियों का ही कहना है कि यह दोनों वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के मौजूदा चेयरमैन विष्णु अग्रवाल की संभावित उम्मीदवारी से डरे हुए हैं । इन्हें डर है कि विष्णु अग्रवाल ने यदि सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत की, तो उसका सीधा असर धीरज खंडेलवाल की सदस्यता पर पड़ेगा । धीरज खंडेलवाल पिछली बार ग्यारह सदस्यों में दसवें नंबर पर रहे थे; सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में भी धीरज खंडेलवाल ने ऐसा कुछ नहीं किया है, जिससे उनके समर्थन-आधार में बढ़ोत्तरी होती हुई देखी जाए । उधर रीजनल काउंसिल चेयरमैन के रूप में विष्णु अग्रवाल के कामकाज की काफी तारीफ हो रही है और रीजन में उनकी पहचान व समर्थन का दायरा खासा बढ़ा है ।  इसलिए विष्णु अग्रवाल की संभावित उम्मीदवारी में धीरज खंडेलवाल के लिए सीधा खतरा देखा/पहचाना जा रहा है । विष्णु अग्रवाल चूँकि उत्तम अग्रवाल के नजदीकी रिश्तेदार हैं, इसलिए दोनों का काफी समर्थन-आधार कॉमन है; यह तथ्य धीरज खंडेलवाल के लिए और भी मुसीबत भरा है । उत्तम अग्रवाल हालाँकि कई मौकों पर कह तो चुके हैं कि विष्णु अग्रवाल सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार नहीं बनेंगे, वह उन्हें नहीं बनने देंगे - और यदि बनेंगे तो वह उनकी उम्मीदवारी का खुला विरोध करेंगे । विष्णु अग्रवाल के नजदीकियों का कहना है कि विष्णु अग्रवाल सेंट्रल काउंसिल के लिए अवश्य ही अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे । ऐसे में, समझा जाता है कि वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए धीरज खंडेलवाल को उम्मीदवार बनवा कर उत्तम अग्रवाल ने उम्मीद यह की है कि इससे धीरज खंडेलवाल की सेंट्रल काउंसिल की सदस्यता में कुछ 'वजन' बढ़ेगा । बाद में वह लोगों के बीच कह/बता सकेंगे कि धीरज खंडेलवाल तो बस मामूली अंतर से ही वाइस प्रेसीडेंट बनने से रह गए हैं । उन्हें उम्मीद है कि इससे लोगों के बीच धीरज खंडेलवाल की सेंट्रल काउंसिल की सदस्यता को लेकर विश्वास बनेगा/बढ़ेगा - और यह विश्वास ही विष्णु अग्रवाल की उम्मीदवारी से मिलने वाली चुनौती में उनकी मदद करेगा ।