नई
दिल्ली । डायबिटीज से 'लड़ने' के लिए मिली ग्रांट को हड़पने की कोशिशों में
लगे गिरोह के 'अलीबाबा' को आखिरकार पर्दे के पीछे से बाहर आने के लिए मजबूर
होना ही पड़ा है । अभी तक पर्दे के पीछे से मामले को सुलटाने का
प्रयास कर रहे लायंस इंटरनेशनल के प्रेसीडेंट पद पर बैठे नरेश अग्रवाल ने
अब सीधे-सीधे मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग को पत्र लिख कर एक करोड़ 31
लाख रुपए की रकम एलसीआईएफ को वापस करने के लिए कहा है । लायंस इंटरनेशनल
के इतिहास में यह पहला मौका होगा, जब किसी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट को उस
ग्रांट की रकम को वापस करने के लिए कहना पड़ा हो - जिसके बारे में हर कोई
जानता है कि वह 'खर्च' कर ली गई है । मजे की बात यह है कि खुद इंटरनेशनल
प्रेसीडेंट का दावा है कि खर्चे में कोई बेईमानी नहीं हुई है । हर कोई
जानता है - जाहिर है कि नरेश अग्रवाल भी जानते ही होंगे - कि एलसीआईएफ से
मिली उक्त ग्रांट जिस प्रोजेक्ट के लिए मिली है, वह पूरा हो गया है; इसलिए
ग्रांट की रकम एलसीआईएफ को वापस करने की बात भला कैसे की जा सकती है ? ग्रांट
की रकम देने के बाद एलसीआईएफ रकम का हिसाब-किताब माँग सकती है, जो यदि उसे
न मिल रहा हो तो बड़े नेता/पदाधिकारी उसे देने के लिए कह सकते हैं - सुझाव
दे सकते हैं और या धमकी भी दे सकते हैं । पर यहाँ मजे की बात यह हो रही है
कि हिसाब-किताब कोई नहीं माँग रहा है - न एलसीएएफ माँग रही है, और न
इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल हिसाब-किताब देने की बात कर रहे हैं;
दोनों ही ग्रांट की रकम वापस करने की बात कर रहे हैं, जो तकनीकी रूप से
खर्च हो चुकी है । इससे ही साबित है कि लायंस इंटरनेशनल में इस समय जो
लोग पदाधिकारी हैं, वह अलीबाबा और उसके गिरोह की तरह काम कर रहे हैं । उनके
लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि उन्होंने लूट की जो योजना बनाई थी, वह फेल
होती हुई दिख रही है ।
नरेश अग्रवाल ने विनय गर्ग को लिखे पत्र में कहा/बताया है कि उन्होंने 'गुड फेथ' में मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 को उक्त ग्रांट दिलवाई थी । उल्लेखनीय है कि लायंस इंटरनेशनल के दस्तावेजों में 'गुड फेथ' में ग्रांट देने/दिलवाने का कोई प्रावधान ही नहीं है; ग्रांट लेने/देने के लिए एक प्रक्रिया का प्रावधान है - जिसे पूरा करके ही ग्रांट लेने/देने का काम हो सकता है । प्रावधानों की अनदेखी करके नरेश अग्रवाल ने जिस तरह से 'यह' ग्रांट ली/दिलवाई है, उससे ही साबित होता है कि शुरू से ही उनकी नीयत' में खोट था । एकबारगी इस बात को अनदेखा भी कर दिया जाए, तो इसके आगे की प्रक्रिया यह है कि जिसे ग्रांट मिली है - उससे ग्रांट की रकम का हिसाब-किताब माँगा जाए । इस प्रक्रिया के तहत एलसीआईएफ को ग्रांट की रकम का हिसाब-किताब माँगना चाहिए, और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के रूप में नरेश अग्रवाल को भी मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के पदाधिकारियों से कहना चाहिए कि वह तुरंत हिसाब-किताब दें । लेकिन इस मामले में भी लायंस इंटरनेशनल की मान्य प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा रहा है ।
नरेश अग्रवाल ने विनय गर्ग को लिखे पत्र में दावा किया है कि इस ग्रांट की रकम को मल्टीपल के जिन वरिष्ठ पदाधिकारियों ने खर्च किया है, उनकी ईमानदारी पर शक नहीं किया जा सकता है - इसलिए ऐसा करके सिर्फ उनको ही नहीं, बल्कि मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 को भी बदनामी के दलदल में धकेला जा रहा है । मजे की बात यह है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग ने बार बार यह कहा है कि वह किसी पर भी बेईमानी करने का आरोप नहीं लगा रहे हैं, वह तो सिर्फ खर्च हुई रकम का हिसाब-किताब माँग रहे हैं, जो ग्रांट के प्राप्तकर्ता की हैसियत से उन्हें एलसीसीआई को देना है । ग्रांट की रकम खर्च करने वाले पदाधिकारी हिसाब-किताब देने में टाल-मटोल करने का रवैया अपना कर खुद ही लोगों के मन में प्रोजेक्ट में धाँधली होने की आशंका पैदा कर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि प्रोजेक्ट चेयरमैन के रूप में जगदीश गुलाटी ने पहले तो प्रोजेक्ट के आवंटन में और फिर खर्च हुई रकम का हिसाब-किताब देने में टाल-मटोल भरा जो रवैया अपनाया है, उसके चलते यह मामला खासा भड़क गया है । जगदीश गुलाटी ने अपने डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर कुँवर बीएम सिंह से विनय गर्ग पर दबाव डलवाने का जो प्रयास किया, उसे उनकी बहुत ही घटिया हरकत के रूप में देखा/पहचाना गया - और उनकी इसी तरह की हरकतों के चलते ग्रांट की रकम में भारी धाँधली होने के आरोपों को बल मिला है ।
उम्मीद की जा रही थी कि नरेश अग्रवाल इस मामले को हल करने के लिए कोई सम्मानजनक पहल करेंगे । कुछेक लोग हालाँकि इस घपलेबाजी के मास्टरमाइंड के रूप में नरेश अग्रवाल को ही पहचान रहे थे, लेकिन फिर भी अन्य कई लोगों को विश्वास रहा कि अब जब मामला खासा गंभीर मोड़ ले चुका है, तब नरेश अग्रवाल मामले को निपटाने के लिए जगदीश गुलाटी से हिसाब-किताब देने को कहेंगे - ताकि मामला सम्मानजनक तरीके से खत्म हो और धाँधली के आरोप हवा हों । लेकिन विनय गर्ग को लिखे पत्र में नरेश अग्रवाल ने जो रवैया अपनाया है, उसने सारे मामले तथा धाँधली के आरोपों को और गहरा कर दिया है । नरेश अग्रवाल ने अपने पत्र में खुद कहा/लिखा है कि उक्त ग्रांट मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 को मिली है; जाहिर है कि हिसाब-किताब मल्टीपल के पदाधिकारियों को ही देना है, जो वह तब दे पायेंगे - जब जगदीश गुलाटी उन्हें देंगे । नरेश अग्रवाल हिसाब-किताब देने/लेने की लेकिन कोई बात ही नहीं कर रहे हैं, वह तो ग्रांट की रकम एलसीआईएफ को वापस करने की बात कर रहे हैं - ताकि वह एलसीआईएफ से जगदीश गुलाटी को पैसा दिलवा सकें । नरेश अग्रवाल का यह दावा सच हो सकता है कि प्रोजेक्ट की रकम में जगदीश गुलाटी ने कोई धाँधली नहीं की है - लेकिन तब फिर मल्टीपल काउंसिल के पदाधिकारियों को हिसाब-किताब देने में जगदीश गुलाटी हिचक क्यों रहे हैं ? लोगों के बीच सवाल है कि उनका डर इसलिए तो नहीं है कि तब उनकी धाँधली पकड़ ली जाएगी ? विनय गर्ग को लिखे पत्र में नरेश अग्रवाल भी हिसाब-किताब देने/लेने की बात से कतरा रहे हैं, इसलिए लोगों को सवाल करने का मौका मिला है कि इस धाँधली में नरेश अग्रवाल का भी हिस्सा है क्या ?
नरेश अग्रवाल ने विनय गर्ग को लिखे पत्र में कहा/बताया है कि उन्होंने 'गुड फेथ' में मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 को उक्त ग्रांट दिलवाई थी । उल्लेखनीय है कि लायंस इंटरनेशनल के दस्तावेजों में 'गुड फेथ' में ग्रांट देने/दिलवाने का कोई प्रावधान ही नहीं है; ग्रांट लेने/देने के लिए एक प्रक्रिया का प्रावधान है - जिसे पूरा करके ही ग्रांट लेने/देने का काम हो सकता है । प्रावधानों की अनदेखी करके नरेश अग्रवाल ने जिस तरह से 'यह' ग्रांट ली/दिलवाई है, उससे ही साबित होता है कि शुरू से ही उनकी नीयत' में खोट था । एकबारगी इस बात को अनदेखा भी कर दिया जाए, तो इसके आगे की प्रक्रिया यह है कि जिसे ग्रांट मिली है - उससे ग्रांट की रकम का हिसाब-किताब माँगा जाए । इस प्रक्रिया के तहत एलसीआईएफ को ग्रांट की रकम का हिसाब-किताब माँगना चाहिए, और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के रूप में नरेश अग्रवाल को भी मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के पदाधिकारियों से कहना चाहिए कि वह तुरंत हिसाब-किताब दें । लेकिन इस मामले में भी लायंस इंटरनेशनल की मान्य प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा रहा है ।
नरेश अग्रवाल ने विनय गर्ग को लिखे पत्र में दावा किया है कि इस ग्रांट की रकम को मल्टीपल के जिन वरिष्ठ पदाधिकारियों ने खर्च किया है, उनकी ईमानदारी पर शक नहीं किया जा सकता है - इसलिए ऐसा करके सिर्फ उनको ही नहीं, बल्कि मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 को भी बदनामी के दलदल में धकेला जा रहा है । मजे की बात यह है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग ने बार बार यह कहा है कि वह किसी पर भी बेईमानी करने का आरोप नहीं लगा रहे हैं, वह तो सिर्फ खर्च हुई रकम का हिसाब-किताब माँग रहे हैं, जो ग्रांट के प्राप्तकर्ता की हैसियत से उन्हें एलसीसीआई को देना है । ग्रांट की रकम खर्च करने वाले पदाधिकारी हिसाब-किताब देने में टाल-मटोल करने का रवैया अपना कर खुद ही लोगों के मन में प्रोजेक्ट में धाँधली होने की आशंका पैदा कर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि प्रोजेक्ट चेयरमैन के रूप में जगदीश गुलाटी ने पहले तो प्रोजेक्ट के आवंटन में और फिर खर्च हुई रकम का हिसाब-किताब देने में टाल-मटोल भरा जो रवैया अपनाया है, उसके चलते यह मामला खासा भड़क गया है । जगदीश गुलाटी ने अपने डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर कुँवर बीएम सिंह से विनय गर्ग पर दबाव डलवाने का जो प्रयास किया, उसे उनकी बहुत ही घटिया हरकत के रूप में देखा/पहचाना गया - और उनकी इसी तरह की हरकतों के चलते ग्रांट की रकम में भारी धाँधली होने के आरोपों को बल मिला है ।
उम्मीद की जा रही थी कि नरेश अग्रवाल इस मामले को हल करने के लिए कोई सम्मानजनक पहल करेंगे । कुछेक लोग हालाँकि इस घपलेबाजी के मास्टरमाइंड के रूप में नरेश अग्रवाल को ही पहचान रहे थे, लेकिन फिर भी अन्य कई लोगों को विश्वास रहा कि अब जब मामला खासा गंभीर मोड़ ले चुका है, तब नरेश अग्रवाल मामले को निपटाने के लिए जगदीश गुलाटी से हिसाब-किताब देने को कहेंगे - ताकि मामला सम्मानजनक तरीके से खत्म हो और धाँधली के आरोप हवा हों । लेकिन विनय गर्ग को लिखे पत्र में नरेश अग्रवाल ने जो रवैया अपनाया है, उसने सारे मामले तथा धाँधली के आरोपों को और गहरा कर दिया है । नरेश अग्रवाल ने अपने पत्र में खुद कहा/लिखा है कि उक्त ग्रांट मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 को मिली है; जाहिर है कि हिसाब-किताब मल्टीपल के पदाधिकारियों को ही देना है, जो वह तब दे पायेंगे - जब जगदीश गुलाटी उन्हें देंगे । नरेश अग्रवाल हिसाब-किताब देने/लेने की लेकिन कोई बात ही नहीं कर रहे हैं, वह तो ग्रांट की रकम एलसीआईएफ को वापस करने की बात कर रहे हैं - ताकि वह एलसीआईएफ से जगदीश गुलाटी को पैसा दिलवा सकें । नरेश अग्रवाल का यह दावा सच हो सकता है कि प्रोजेक्ट की रकम में जगदीश गुलाटी ने कोई धाँधली नहीं की है - लेकिन तब फिर मल्टीपल काउंसिल के पदाधिकारियों को हिसाब-किताब देने में जगदीश गुलाटी हिचक क्यों रहे हैं ? लोगों के बीच सवाल है कि उनका डर इसलिए तो नहीं है कि तब उनकी धाँधली पकड़ ली जाएगी ? विनय गर्ग को लिखे पत्र में नरेश अग्रवाल भी हिसाब-किताब देने/लेने की बात से कतरा रहे हैं, इसलिए लोगों को सवाल करने का मौका मिला है कि इस धाँधली में नरेश अग्रवाल का भी हिस्सा है क्या ?