Saturday, January 27, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएल खट्टर की दिल्ली में दिखाई जा रही नेतागिरी ने राजीव अग्रवाल के लिए तो मुश्किलें बढ़ाई ही हैं, हरदीप सरकारिया के खिलाफ नेगेटिव वोटिंग का खतरा भी पैदा किया

नई दिल्ली । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएल खट्टर की दिल्ली में भी दिखाई जा रही नेतागिरी पर भड़कती नजर आ रही डिस्ट्रिक्ट की राजनीति और उसका हरदीप सरकारिया की उम्मीदवारी पर पड़ते संभावित प्रतिकूल असर ने राजीव अग्रवाल को भी मुसीबत में डालने का काम शुरू कर दिया है । इस मुसीबत में राजीव अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की आरके शाह के साथ सौदेबाजी करने की कोशिशों को लगे धक्के ने भी इजाफा किया है । दरअसल आरके शाह की सक्रियता को नेताओं ने अगले वर्ष के लिए समर्थन की हरी झंडी पाने की उनकी कोशिश के रूप में देखा/पहचाना है । अधिकतर नेताओं को लगता है कि आरके शाह को भी पता है कि उनके लिए चुनाव जीतना तो मुश्किल है, अपनी उम्मीदवारी से लेकिन वह राजीव अग्रवाल को और ज्यादा सक्रिय होने के लिए मजबूर जरूर कर देंगे - इसलिए अपनी सक्रियता के जरिये वह राजीव अग्रवाल के समर्थक नेताओं पर इस बात के लिए दबाव बनाने का प्रयास कर रहे हैं कि वह अगले वर्ष के लिए उनकी उम्मीदवारी को समर्थन देने की घोषणा कर दें । मजे की बात यह सुनी जा रही है कि राजीव अग्रवाल खुद तो अपने समर्थक नेताओं पर आरके शाह के साथ 'समझौता' करने के लिए दबाव बना रहे हैं, ताकी उनकी मुसीबत टले - लेकिन उनके समर्थक नेता इसके लिए राजी नहीं हो रहे हैं । उनका मानना और कहना है कि आरके शाह को चुनाव लड़ने ही दिया जाए, ताकि उन्हें खुद भी पता चल जाए कि लोगों के बीच उनके लिए कितना समर्थन है ? आरके शाह को लेकर राजीव अग्रवाल और उनके समर्थक नेताओं के बीच का यह 'झगड़ा' अभी चल तो रहा है, लेकिन नेताओं को उम्मीद है कि वह आरके शाह को कोई तवज्जो नहीं देंगे - तो वह खुद ही चुनावी मैदान से हट जायेंगे ।
हालाँकि केएल खट्टर की दिल्ली में भी दिखाई जा रही नेतागिरी इस मामले को थोड़ा पेचीदा बना रही है । दिल्ली के कई नेता इस बात पर भड़के हुए हैं कि जब वह हरियाणा में किसी से बात नहीं कर रहे हैं, और हरियाणा की राजनीति का सारा दारोमदार उन्होंने हरियाणा के नेताओं के जिम्मे छोड़ दिया है - तब फिर केएल खट्टर दिल्ली में क्यों अपनी टाँग अड़ा रहे हैं ? केएल खट्टर ने दिल्ली में राजीव अग्रवाल के लिए समर्थन जुटाने के लिए कुछेक क्लब्स के पदाधिकारियों से बात की है । दिल्ली के नेताओं को जब इस बात का पता चला तो वह भड़के और कहने लगे कि दिल्ली में राजीव अग्रवाल को समर्थन दिलवाने का काम वह कर लेंगे; राजीव अग्रवाल की उन्हें ज्यादा ही चिंता है तो वह हरियाणा में उन्हें समर्थन दिलवाने का काम करें । केएल खट्टर की इस कार्रवाई को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राजिंदर बंसल को नीचा दिखाने की कार्रवाई के रूप में भी देखा/पहचाना गया है । दरअसल राजिंदर बंसल को आरके शाह की उम्मीदवारी के समर्थन में समझा/पहचाना जा रहा है - हालाँकि राजिंदर बंसल ने अभी तक सार्वजनिक रूप से आरके शाह को समर्थन देने की कोई कोशिश की नहीं है । माना/समझा जा रहा है कि राजीव अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थन में बात करके केएल खट्टर ने लोगों के बीच यह संदेश देने का प्रयास किया है कि राजिंदर बंसल की चिंता करने की जरूरत नहीं है - हरियाणा के नेता पूरी तरह राजीव अग्रवाल के साथ हैं । राजीव अग्रवाल के समर्थक नेताओं का कहना है कि प्रयास तो उनका अच्छा है, लेकिन यह प्रयास दिल्ली की बजाए वह यदि हरियाणा में करते/दिखाते तो उनके प्रयास पर सवाल खड़े नहीं होते - और राजीव अग्रवाल का ज्यादा भला होता ।
केएल खट्टर के इस 'प्रयास' ने हरियाणा में हरदीप सरकारिया को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार चुनने के मनमाने तरीके से नाराज लोगों को भड़काने का काम किया है - और वहाँ हरदीप सरकारिया के खिलाफ नेगेटिव वोटिंग करने/करवाने की चर्चा शुरू हो गयी है । वहाँ लोगों का कहना है कि हरदीप सरकारिया के खिलाफ कोई उम्मीदवार यदि नहीं भी आ रहा है, तो भी इसका मतलब यह नहीं है कि नेताओं की मनमानियाँ लोग चुपचाप सहते जायेंगे और हरदीप सरकारिया आसानी से सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन जायेंगे । हरियाणा में वास्तव में समस्या यह हुई है कि जो लोग हरदीप सरकारिया को मनमाने तरीके से उम्मीदवार चुने जाने से खफा हैं, वह नेताओं के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त करने के लिए राजीव अग्रवाल को निशाना बना रहे हैं । राजीव अग्रवाल भी चूँकि 'नेताओं के उम्मीदवार' के रूप में देखे/पहचाने जा रहे हैं, इसलिए हाल ही में हरियाणा में चलाए गए अपने संपर्क अभियान में उन्हें लोगों की बेरुखी और नाराजगी का शिकार बनना पड़ा । राजीव अग्रवाल के लिए मुसीबत की बात यह हुई कि अपने संपर्क अभियान में उन्हें नेताओं की तरफ से भी कोई मदद नहीं मिली । नेताओं ने वीके हंस पर दबाव बना कर उन्हें राजीव अग्रवाल के साथ जाने के लिए मजबूर तो कर दिया, लेकिन वीके हंस ने भी राजीव अग्रवाल के संपर्क अभियान को लेकर ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया । उम्मीद तो हालाँकि की जा रही है कि धीरे-धीरे हालात सामान्य हो जायेंगे - लेकिन केएल खट्टर की दिल्ली में राजीव अग्रवाल को लेकर दिखाई गई सक्रियता ने अलग अलग कारणों से अलग अलग खेमों और समूहों में जो 'आग' लगाई है, उसने 'नेताओं के उम्मीदवार' के रूप में देखे/पहचाने जा रहे हरदीप सरकारिया और राजीव अग्रवाल के सामने मुश्किलें खड़ी करने और उन्हें बढ़ाने का ही काम किया है ।