Saturday, January 6, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए धीरज खंडेलवाल की सक्रियता के पीछे प्रफुल्ल छाजेड़ को 'रोकने' के साथ-साथ वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन विष्णु अग्रवाल से भी निपटने की तैयारी है क्या ?

मुंबई । धीरज खंडेलवाल ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट का आगामी वाइस प्रेसीडेंट बनने/चुनने के लिए जिस तरह से कमर कसी है, उसके चलते वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए वेस्टर्न रीजन में मजबूत समझे/देखे जा रहे प्रफुल्ल छाजेड़ और निहार जम्बूसारिया के लिए गंभीर चुनौती तो पैदा हुई ही है, वाइस प्रेसीडेंट पद का चुनावी परिदृश्य भी दिलचस्प हो उठा है । वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए सदर्न रीजन से अब्राहम बाबु तथा एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी को भी गंभीरता से लिया जा रहा है । उम्मीदवारी के लिए हाथ-पैर तो और भी कई सेंट्रल काउंसिल सदस्य चला रहे हैं और अपने अपने जुगाड़ बैठाने में लगे हैं, लेकिन सतत प्रयासों और सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में अपनी सक्रियता व सदस्यों के बीच अपनी पहचान और खेमेबाजी के समीकरणों के हिसाब से आकलन करने वाले लोग वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए अभी चार लोगों - प्रफुल्ल छाजेड़, निहार जम्बूसारिया, अब्राहम बाबु और एमपी विजय कुमार के बीच ही मुकाबले को देख रहे हैं । प्रफुल्ल छाजेड़ को इंस्टीट्यूट के मौजूदा प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे का समर्थन माना/सुना जा रहा है, तो अब्राहम बाबु के साथ पिछले वर्ष प्रेसीडेंट रहे देवराज रेड्डी के समर्थन की चर्चा सुनी जा रही है । एमपी विजय कुमार को हर वर्ष वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में टाँग अड़ाने वाले पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम अग्रवाल के भरोसे देखा/पहचाना जा रहा है, तो निहार जम्बूसारिया दूसरे रीजंस के कुछेक सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के साथ बने अपने संबंधों के भरोसे चुनावी मैदान में हैं । इन चारों को सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच की अलग-अलग तरह की खेमेबाजी का सहयोग/समर्थन तो है ही, साथ ही इनका अपना अपना कार्य-व्यवहार भी है - जिसके चलते वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए इनकी उम्मीदवारी को गंभीरता के साथ देखा जा रहा है ।
लेकिन वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए अचानक से वेस्टर्न रीजन के धीरज खंडेलवाल ने जो सक्रियता दिखाई है, उसने वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में खासी गर्मी पैदा कर दी है । धीरज खंडेलवाल ने सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में करीब दो वर्षों के अभी तक के अपने कार्यकाल में हालाँकि ऐसी कोई छाप नहीं छोड़ी है, जिसके चलते उनकी उम्मीदवारी को कोई गंभीरता से - लेकिन अचानक से बढ़ी उनकी सक्रियता के पीछे पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम अग्रवाल को देखे जाने के कारण मामला थोड़ा रोचक जरूर हो गया है । धीरज खंडेलवाल की लोगों के बीच उत्तम अग्रवाल का 'आदमी' होने की एक बहुत ही मजबूत छवि है - यह छवि धीरज खंडेलवाल की ताकत भी है, और साथ ही साथ उनकी कमजोरी भी है । दरअसल इस छवि के चक्कर में उनकी अपनी पहचान और उनका अपना व्यक्तित्व दब गया है, और इस कारण से उनकी अपनी 'भूमिका' बहुत सिमटी हुई सी रह गई है । इस वजह से, उत्तम अग्रवाल के समर्थन के बावजूद धीरज खंडेलवाल की उम्मीदवारी को कोई भी गंभीरता से नहीं देख रहा है, और हर कोई मान/समझ रहा है कि उत्तम अग्रवाल ने प्रफुल्ल छाजेड़ का काम बिगाड़ने के लिए धीरज खंडेलवाल को सक्रिय किया है । उत्तम अग्रवाल को प्रफुल्ल छाजेड़ से यूँ तो कोई समस्या नहीं है; लेकिन प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत में चूँकि नीलेश विकमसे की जीत समझी जाएगी - इसलिए उत्तम अग्रवाल को प्रफुल्ल छाजेड़ का काम बिगाड़ने के लिए धीरज खंडेलवाल को सक्रिय करना पड़ा है । उल्लेखनीय है कि वेस्टर्न रीजन में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में उत्तम अग्रवाल का विकमसे भाइयों के साथ पुराना बैर है, और जब जब भी उनके बीच सीधी चुनावी टक्कर हुई है - उत्तम अग्रवाल को हमेशा ही विकमसे भाइयों से हारना ही पड़ा है । इसी बात से पैदा हुई खुन्नस में उत्तम अग्रवाल ने प्रफुल्ल छाजेड़ की उम्मीदवारी के लिए वेस्टर्न रीजन में ही मुसीबत खड़ी करने के उद्देश्य से धीरज खंडेलवाल को सक्रिय कर दिया है ।
धीरज खंडेलवाल को सक्रिय करने की उत्तम अग्रवाल की कार्रवाई से उनके समर्थन के भरोसे बैठे एमपी विजय कुमार को तो झटका लगा ही है, निहार जम्बूसारिया को भी अपना गेमप्लान बिगड़ता हुआ लगा/दिखा है । दरअसल उन्हें उम्मीद थी कि ऐन मौके पर प्रफुल्ल छाजेड़ को बढ़त मिलती दिखी, तो उत्तम अग्रवाल उन्हें समर्थन दे/दिलवा देंगे । निहार जम्बूसारिया के लिए मुसीबत और चुनौती की बात यह है कि उनकी न नीलेश विकमसे से बनती है, और न उत्तम अग्रवाल से । इसके बावजूद उन्हें उत्तम अग्रवाल से 'मदद' मिलने की उम्मीद रही तो इसका कारण यही रहा कि उन्हें पता है कि उत्तम अग्रवाल नकारात्मक राजनीति करते हैं और तात्कालिक हानि-लाभ को देखते हुए अपने पैंतरे बदलते रहते हैं । दीनल शाह को उत्तम अग्रवाल ने हालाँकि कभी पसंद नहीं किया, लेकिन नीलेश विकमसे को रोकने के लिए उन्होंने दीनल शाह से हाथ मिला लेने में कोई गुरेज नहीं किया था - यह बात अलग है कि उसके बावजूद भी वह नीलेश विकमसे को नहीं रोक सके थे । क्या होता, और क्या नहीं होता - यह तो आगे पता चलता; अभी लेकिन उत्तम अग्रवाल की शह पर शुरू हुई धीरज खंडेलवाल की सक्रियता ने निहार जम्बूसारिया की उम्मीदों को वेस्टर्न रीजन में ही झटका जरूर दिया है ।
धीरज खंडेलवाल को वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए उम्मीदवार के रूप में सक्रिय करने के पीछे कुछेक लोगों के बीच उत्तम अग्रवाल की एक अन्य 'जरूरत' को कारण के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । उत्तम अग्रवाल और धीरज खंडेलवाल के कुछेक नजदीकियों का ही कहना है कि यह दोनों वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के मौजूदा चेयरमैन विष्णु अग्रवाल की संभावित उम्मीदवारी से डरे हुए हैं । इन्हें डर है कि विष्णु अग्रवाल ने यदि सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत की, तो उसका सीधा असर धीरज खंडेलवाल की सदस्यता पर पड़ेगा । धीरज खंडेलवाल पिछली बार ग्यारह सदस्यों में दसवें नंबर पर रहे थे; सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में भी धीरज खंडेलवाल ने ऐसा कुछ नहीं किया है, जिससे उनके समर्थन-आधार में बढ़ोत्तरी होती हुई देखी जाए । उधर रीजनल काउंसिल चेयरमैन के रूप में विष्णु अग्रवाल के कामकाज की काफी तारीफ हो रही है और रीजन में उनकी पहचान व समर्थन का दायरा खासा बढ़ा है ।  इसलिए विष्णु अग्रवाल की संभावित उम्मीदवारी में धीरज खंडेलवाल के लिए सीधा खतरा देखा/पहचाना जा रहा है । विष्णु अग्रवाल चूँकि उत्तम अग्रवाल के नजदीकी रिश्तेदार हैं, इसलिए दोनों का काफी समर्थन-आधार कॉमन है; यह तथ्य धीरज खंडेलवाल के लिए और भी मुसीबत भरा है । उत्तम अग्रवाल हालाँकि कई मौकों पर कह तो चुके हैं कि विष्णु अग्रवाल सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार नहीं बनेंगे, वह उन्हें नहीं बनने देंगे - और यदि बनेंगे तो वह उनकी उम्मीदवारी का खुला विरोध करेंगे । विष्णु अग्रवाल के नजदीकियों का कहना है कि विष्णु अग्रवाल सेंट्रल काउंसिल के लिए अवश्य ही अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे । ऐसे में, समझा जाता है कि वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए धीरज खंडेलवाल को उम्मीदवार बनवा कर उत्तम अग्रवाल ने उम्मीद यह की है कि इससे धीरज खंडेलवाल की सेंट्रल काउंसिल की सदस्यता में कुछ 'वजन' बढ़ेगा । बाद में वह लोगों के बीच कह/बता सकेंगे कि धीरज खंडेलवाल तो बस मामूली अंतर से ही वाइस प्रेसीडेंट बनने से रह गए हैं । उन्हें उम्मीद है कि इससे लोगों के बीच धीरज खंडेलवाल की सेंट्रल काउंसिल की सदस्यता को लेकर विश्वास बनेगा/बढ़ेगा - और यह विश्वास ही विष्णु अग्रवाल की उम्मीदवारी से मिलने वाली चुनौती में उनकी मदद करेगा ।