Saturday, January 20, 2018

लायंस इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में डायबिटीज ग्रांट में घपले के आरोपी जगदीश गुलाटी के पक्ष में खड़े होकर, पारस अग्रवाल ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए अपने प्रयासों को और मुश्किल बना लिया है क्या ?

आगरा । एक करोड़ 31 लाख रुपए की डायबिटीज ग्रांट में घपले के आरोपों में घिरे पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर जगदीश गुलाटी को 'बचाने' की लड़ाई में डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू के गवर्नर पारस अग्रवाल के भी कूद पड़ने से - जगदीश गुलाटी के 'बचने' की तो कोई गारंटी नहीं बनी है, लेकिन मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद पर पारस अग्रवाल के पहुँचने की कोशिश जरूर मुसीबत में फँस गई है । समझा जा रहा है कि डायबिटीज ग्रांट में गबन करने के आरोपियों तथा मल्टीपल काउंसिल के बीच छिड़ी 'लड़ाई' में गबन के आरोपियों का साथ देने का फैसला पारस अग्रवाल ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में लीडरशिप का समर्थन पाने/जुटाने के लालच में किया है । पारस अग्रवाल को विश्वास है कि आज वह ग्रांट के गबन के आरोपों में फँसे लीडरशिप के नेताओं का साथ देंगे, तो कल लीडरशिप के यही नेता मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में उनका साथ देंगे - और वह मजे से चेयरमैन बन जायेंगे । मजे की बात यह है कि पिछले दिनों ही लायंस इंटरनेशनल बोर्ड के सदस्यों के साथ डिनर में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को शामिल करने की उनकी तैयारी में लीडरशिप के नेताओं द्वारा टाँग अड़ा देने को लेकर पारस अग्रवाल लीडरशिप के नेताओं के खिलाफ हो गए थे, लेकिन पारस अग्रवाल अब फिर से लीडरशिप के नेताओं के साथ हो गए नजर आ रहे हैं । इससे लोगों को लग यह भी रहा है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की लड़ाई को लेकर पारस अग्रवाल अभी भी असमंजस में हैं - और उनके लिए यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि वह अपने लिए कहाँ समर्थन खोजें/बनाएँ ? उनके शुभचिंतकों तक को लग रहा है कि डायबिटीज ग्रांट में गबन के आरोपों में घिरे नेताओं का समर्थन करके पारस अग्रवाल ने अपने लिए वास्तव में बड़ी मुसीबत खड़ी कर ली है ।
पारस अग्रवाल ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग को पत्र लिख कर डायबिटीज ग्रांट के एक करोड़ 31 लाख रुपए जगदीश गुलाटी को दे देने के लिए कहा है । जगदीश गुलाटी डायबिटीज प्रोजेक्ट के चेयरमैन हैं । पारस अग्रवाल का ऐसा लिखना अपने आप में मजाक की बात है । इससे ऐसा लग रहा है कि पारस अग्रवाल ने मामले को समझा ही नहीं है; और या सब कुछ जानते/समझते हुए भी वह अपने 'स्वार्थ' में ऐसे अंधे हो गए हैं कि कुछ भी जानना/समझना नहीं चाहते हैं । डायबिटीज ग्रांट का मामला कोई जगदीश गुलाटी और विनय गर्ग के बीच का मामला नहीं है, यह वास्तव में एलसीआईएफ और मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के बीच का मामला है । मल्टीपल काउंसिल की पिछली मीटिंग में कुछ ऐसे फैसले हुए हैं, जो ग्रांट की रकम जगदीश गुलाटी या एलसीआईएफ को देने के मामले में विनय गर्ग के हाथ बाँधते हैं । मल्टीपल काउंसिल के पदाधिकारी होने के नाते पारस अग्रवाल भी उस फैसले से बँधे हुए हैं । ऐसे में, अब यदि पारस अग्रवाल चाहते हैं कि ग्रांट का पैसा या तो जगदीश गुलाटी को दे दिया जाए और या एलसीआईएफ को वापस कर दिया जाए - तो उन्हें पहले तो मल्टीपल काउंसिल की इमरजेंसी मीटिंग बुलाने की माँग करना चाहिए, और फिर मीटिंग में उक्त फैसला करवाना चाहिए । पारस अग्रवाल ऐसा कुछ करने की बजाए, विनय गर्ग से सीधी माँग कर रहे हैं कि - काउंसिल के फैसले को छोड़ो, आप तो बस ग्रांट का पैसा जगदीश गुलाटी को दे दो । पारस अग्रवाल के इस रवैये से लग रहा है कि जैसे उन्होंने मान लिया है कि वह जैसे ही ग्रांट का पैसा जगदीश गुलाटी को दिलवा देंगे, वैसे ही वह मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बन जायेंगे ।
पारस अग्रवाल से पहले, डायबिटीज ग्रांट में घपले के आरोपों में घिरे जगदीश गुलाटी को 'बचाने' का प्रयास कुँवर बीएम सिंह ने भी किया था । कुँवर बीएम सिंह चूँकि जगदीश गुलाटी के ही डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर हैं, और उन्हें गवर्नर चुनवाने/बनवाने में जगदीश गुलाटी की भूमिका रही थी - इसलिए कुँवर बीएम सिंह का उनके बचाव में उतरना तो लोगों को फिर भी हजम हो गया, किंतु पारस अग्रवाल का जगदीश गुलाटी के पक्ष में खड़ा होना किसी को समझ नहीं आया है । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के चुनावी समीकरणों को जो भी जानता/पहचानता है, उसे पता है कि जगदीश गुलाटी अपने डिस्ट्रिक्ट का वोट पारस अग्रवाल को नहीं दिला सकेंगे । तब फिर पारस अग्रवाल ने अपने आप को जगदीश गुलाटी को बचाने के लिए क्यों प्रस्तुत किया ? समझा जाता है कि इस मामले में पारस अग्रवाल ने लीडरशिप के बड़े नेताओं से कोई 'डील' की है, जिसके चलते वह ग्रांट में गबन के आरोपी के पक्ष में खुल कर आ गए हैं । मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को लग रहा है कि डायबिटीज ग्रांट के मामले में लीडरशिप के लोग जिस तरह फँसे हैं, उसके चलते उन्होंने अपनी चमक और अपनी धाक खो दी है, जिसका प्रतिकूल असर उन्हें मिल सकने वाले समर्थन पर भी पड़ेगा - और ऐसे में मल्टीपल काउंसिल की चुनावी राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाना उनके लिए मुश्किल होगा । इसी आकलन के आधार पर, पारस अग्रवाल के शुभचिंतकों को भी लग रहा है कि डायबिटीज ग्रांट में घपले के आरोपियों का साथ देकर पारस अग्रवाल ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए अपने प्रयासों को और मुश्किल बना लिया है ।