Thursday, January 11, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के पूर्व प्रेसीडेंट एनडी गुप्ता के राज्यसभा की तरफ बढ़ते कदमों तथा दो सीटों के खाली होने के कारण बने माहौल का सेंट्रल काउंसिल चुनाव में फायदा उठाने का सुधीर अग्रवाल के लिए अच्छा मौका बना

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट एनडी गुप्ता के राज्यसभा सदस्य होने/बनने के जो हालात बने हैं, उसने इस वर्ष होने वाले इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के चुनाव के संदर्भ में सुधीर अग्रवाल और उनके नजदीकियों को खासा उत्साहित किया है - क्योंकि सिर्फ उन्हें ही नहीं, बल्कि दूसरों को भी लग रहा है कि उक्त हालात ने सुधीर अग्रवाल के लिए लोगों के बीच मनोवैज्ञानिक रूप से एक अनुकूल धारणा बनाई है । दरअसल सुधीर अग्रवाल कुछ समय पहले तक एनडी गुप्ता खेमे के एक प्रमुख सदस्य हुआ करते थे और खेमे की दूसरी पंक्ति के नेताओं में पहले नंबर पर पहचाने जाते थे । एनडी गुप्ता के इंस्टीट्यूट का प्रेसीडेंट बनने के बाद उनका खेमा बिखरा, तो खेमे के लोग भी इधर-उधर हो गए - खेमे के एक नेता वेद जैन का अपना एक खेमा बन गया । नवीन गुप्ता की चुनावी राजनीति भी खेमे के लोगों को वैसे जोड़ कर नहीं रख सकी, जैसे वह एनडी गुप्ता की चुनावी सक्रियता के दिनों में हुआ करती थी । चुनावी राजनीति में सक्रिय रहने के कारण सुधीर अग्रवाल, एनडी गुप्ता खेमे के सुनहरे दिनों की याद को बनाए रखने में जरूर एक माध्यम बने रहे । खेमे जैसी कोई 'चीज' रह नहीं गई थी, खेमे के नाम पर जो लुंज-पुंज सा समूह था भी - उसमें सुधीर अग्रवाल की कोई भूमिका नहीं थी; लेकिन फिर भी 'एनडी गुप्ता खेमे' की पहचान सुधीर अग्रवाल के साथ चिपकी रह गई । इसका कारण यह रहा कि खेमे के सुनहरे दिनों में सुधीर अग्रवाल अत्यंत सक्रिय थे, और बाद के वर्षों में भी एक अकेले वही अलग अलग भूमिकाओं में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में सक्रिय बने रहे - इसलिए एनडी खेमे को लेकर जब भी कोई बात करता, तो सुधीर अग्रवाल का जिक्र साथ जुड़ ही जाता । सुधीर अग्रवाल के साथ तो यह पहचान जुड़ी रही, लेकिन लोगों के बीच यह धुँधली पड़ गई थी - एनडी गुप्ता के राज्यसभा सदस्य होने/बनने के बने हालात ने लेकिन लोगों के बीच धुँधली पड़ी उस पहचान में एक बार फिर से रंग भर दिए हैं ।
और इस रंग-भरी पहचान ने इस वर्ष होने वाले चुनाव के संदर्भ में सुधीर अग्रवाल के प्रयासों को खासा उत्साहित किया है । राज्यसभा सदस्य के रूप में एनडी गुप्ता का पहला वर्ष उनके पुराने साथियों और भक्तों को सक्रिय करने का काम करेगा, इसी वर्ष नवीन गुप्ता का इंस्टीट्यूट का प्रेसीडेंट होना उनकी सक्रियता को व्यवस्थित करने का काम करेगा - और सुधीर अग्रवाल को उनकी सक्रियता का इंस्टीट्यूट के चुनाव में फायदा उठाने का मौका मिलेगा । यह मौका सुधीर अग्रवाल को ही सिर्फ इसलिए मिलेगा, क्योंकि एनडी गुप्ता के पुराने साथियों और भक्तों के तार संभावित उम्मीदवारों में सिर्फ सुधीर अग्रवाल से ही जुड़ते हैं । एनडी गुप्ता खेमे से इस वर्ष के चुनाव में किसी उम्मीदवार के आने की चर्चा तो थी, लेकिन उम्मीदवार के रूप में जिन लोगों को पहचाना जा रहा था - उनके इंकार के चलते उक्त चर्चा धूमिल पड़ती जा रही है । दरअसल, जैसा कि पिछले पैरा में कहा गया है कि एनडी गुप्ता के खेमे की एक भावनात्मक पहचान भले ही बची हुई हो, लेकिन ठोस रूप में खेमा जैसी कोई चीज बची हुई नहीं है । इस कारण से मौजूदा स्थिति इंस्टीट्यूट के सेंट्रल काउंसिल चुनाव के संदर्भ में सुधीर अग्रवाल को ही फायदा पहुँचाने की हालत में है; या इसे यूँ भी कह सकते हैं कि मौजूदा स्थिति का फायदा - पुराने जुड़ाव और निरंतर सक्रियता के चलते - सुधीर अग्रवाल ही उठा सकते हैं ।
इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए नॉर्दर्न रीजन में इस बार अभी सुधीर अग्रवाल के अलावा. चरनजोत सिंह नंदा, हंसराज चुग, राज चावला और बिग फोर के किसी उम्मीदवार को गंभीरता से देखा/पहचाना जा रहा है । नॉर्दर्न रीजन में इस बार दो सीट खाली हो रही हैं, लेकिन एक सीट घटने की चर्चा है - इसलिए कुल मिला कर एक सीट के लिए सारा बबाल होना है । हालाँकि राजेश शर्मा वाली सीट के रूप में एक और सीट मिलने की संभावना लोगों को लग रही है । पिछली बार आखिरी सीट पर मुश्किल से जीते राजेश शर्मा को इस बार कमजोर उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । वास्तव में, अभी तक के दो वर्षों के कार्यकाल में राजेश शर्मा ने प्रोफेशन के लोगों के बीच सिर्फ बदनामी ही 'कमाई' है । पिछले वर्ष 'सीए डे' के फंक्शन में हुई बदइंतजामी में उनकी जो भूमिका रही, उसे लेकर प्रोफेशन के लोगों के बीच जो गुस्सा पैदा हुआ है - जिसके चलते इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में 'राजेश शर्मा चोर है' जैसे नारों का शोर तक गूँजा, उसके कारण चुनाव में उनकी बुरी गत बनना निश्चित माना जा रहा है । राजेश शर्मा और उनके साथियों को हालाँकि लगता है कि चुनाव का दिन आते आते पिछले वर्ष की उक्त घटना को लोग भुला चुके होंगे, लेकिन अन्य कई लोगों का कहना है कि चुनाव से पहले पड़ने वाले 'सीए डे' पर पिछले वर्ष मिले ज़ख्म फिर हरे होंगे और वह राजेश शर्मा के लिए मुसीबत बनेंगे । किसी ने कहा भी कि यह 'जब जब पुरवाई चलेगी, तब तब तेरी याद आयेगी' जैसा मामला है । अपनी कारस्तानियों और उनके चलते बनी अपनी बदनामी से दबाव झेल रहे राजेश शर्मा को चरनजोत सिंह नंदा की उम्मीदवारी आने से दोहरा झटका लगा है । पिछली बार चरनजोत सिंह नंदा की अनुपस्थिति का हंसराज चुग और राज चावला को भी अच्छा फायदा मिला था; पिछली बार की असफलता से सबक सीख कर इन दोनों ने इस बार के लिए अलग अलग तरीके से जो तैयारी की है, उसके कारण चरनजोत सिंह नंदा के लिए वापसी करना आसान नहीं होगा । माना/समझा जा रहा है कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में राजेश शर्मा वाली सीट के लिए चरनजोत सिंह नंदा, हंसराज चुग और राज चावला के बीच होड़ रहेगी ।
बिग फोर से यदि सचमुच कोई उम्मीदवार आता है, तो वह संजीव चौधरी के लिए समस्या बनेगा । नवीन गुप्ता और संजय अग्रवाल के रूप में जो दो सीट खाली होंगी, उसका फायदा किसी बनिया उम्मीदवार को ही मिलने की उम्मीद की जा रही है । इस संदर्भ में सुधीर अग्रवाल की दाल गलती दिख रही है । हालाँकि नवीन गुप्ता और संजय अग्रवाल के समर्थन-आधार का एक एक हिस्सा अतुल गुप्ता और विजय गुप्ता की तरफ जाने का भी अनुमान लगाया जा रहा है; लेकिन लोगों को लग रहा है कि सुधीर अग्रवाल ने यदि होशियारी से अपनी खूबियों और कमियों को समझते/पहचानते हुए अपना अभियान चलाया, तो खाली हो रही सीटों का बड़ा फायदा उन्हें मिल सकता है । सेंट्रल काउंसिल के लिए अभी और उम्मीदवार सक्रिय होंगे; नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के दो-तीन सदस्यों के ही सेंट्रल काउंसिल चुनाव में कूद पड़ने की उम्मीद की जा रही है - उनकी 'ताकत' इस आधार पर तय होगी कि वह किस हालात में सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बन रहे हैं - और इससे भी सेंट्रल काउंसिल के चुनाव का परिदृश्य तय होगा, और वास्तव में तभी सेंट्रल काउंसिल के चुनाव का असली खेल शुरू होगा । हालाँकि जिन लोगों ने अभी से अपनी उम्मीदवारी के बारे में तय कर लिया है, और परिस्थितियों के चलते जो बेहतर और बढ़त की स्थिति में हैं - वह यदि अभी से स्थितियों को अनुकूल बनाए रखने का प्रयास करते हैं, तो असली खेल शुरू होने के बाद भी अपनी बढ़त को बनाए रखना उनके लिए आसान ही होगा ।