नई
दिल्ली । आनंद दुआ और आरके अग्रवाल में से किसी एक को फर्स्ट वाइस
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार चुनने के मामले में दिल्ली के
पूर्व गवर्नर्स नेताओं की बढ़ती असमंजसता ने डिस्ट्रिक्ट के चुनावी समीकरणों
में उलटफेर का माहौल बनाना शुरू कर दिया है, जिसका फायदा उठाने के लिए
आरके शाह की तरफ से तैयारी होती सुनी जा रही है । यही कारण है कि
अभी तक जिन आरके शाह को 'न तीन में और न तेरह में' माना/देखा जा रहा था,
वही आरके शाह अब एक महत्त्वपूर्ण कारक बन गए हैं - और दिल्ली के पूर्व
गवर्नर्स नेता उम्मीदवार चुनने में इस तथ्य को भी सामने रख रहे हैं कि आरके
शाह की तरफ से मिलने वाली चुनौती से आनंद दुआ और आरके शाह में से कौन
प्रभावी तरीके से निपट सकेगा । उम्मीदवार चुनने में देरी करके
उम्मीदवारों को 'थका' देने और विरोध की संभावना को खत्म करने का जो
फार्मूला दिल्ली के पूर्व गवर्नर्स नेताओं ने अपनाया, वही फार्मूला दरअसल
अब उनके लिए मुसीबत बन गया है । दिल्ली में वास्तव में खतरा यह था कि
आनंद दुआ और आरके अग्रवाल में से वह जिस किसी को उम्मीदवार नहीं चुनेंगे,
वह बागी उम्मीदवार के रूप में खड़ा हो जायेगा - और तब दिल्ली में दो खेमे बन
जायेंगे और अपनी अपनी जीत को लेकर खेमेबाजी शुरू हो जाएगी । इस संभावना को
खत्म करने के लिए ही सोचा यह गया कि उम्मीदवार चुनने में देरी करके वह
किसी एक को बागी हो सकने की तैयारी करने के लिए समय ही नहीं देंगे, और इस
तरीके से दिल्ली में एकता 'बना' कर वह आरके शाह को भी अलग-थलग कर देंगे । पूर्व
गवर्नर्स नेता अपने इस फार्मूले को कामयाब होते हुए तो देख रहे हैं, लेकिन
उनकी इस कामयाबी ने एक अलग तरह का जो समीकरण बनाया है - उससे फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार चुनने को लेकर दिल्ली के पूर्व
गवर्नर्स नेताओं की मुश्किलें कम होने की बजाए बढ़ और गई हैं ।
आनंद दुआ और आरके अग्रवाल में से किसी एक के बागी हो सकने की संभावनाओं को तो मामले को घसीट कर पूर्व गवर्नर्स नेताओं ने फ्यूज कर दिया है, लेकिन इस प्रक्रिया में दोनों की इतनी 'फजीहत' भी हो चुकी है कि दोनों में से कोई भी - और उसके समर्थक नेता भी - दूसरे की उम्मीदवारी को सहज रूप में स्वीकार नहीं कर सकेगा । अब जो स्थिति बनी है, आशंका है कि उसमें जो उम्मीदवार नहीं चुना जायेगा - वह घोषित रूप में तो बागी नहीं बनेगा, लेकिन उसका और उसके समर्थक नेताओं का व्यवहार जरूर बागियों जैसा हो जायेगा । यह स्थिति आरके शाह की 'राजनीतिक पूँजी' बनती है । आरके शाह इस राजनीतिक पूँजी को इस्तेमाल कर सकेंगे या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा; लेकिन इस स्थिति ने चुने जाने वाले उम्मीदवार के सामने अभी से ही मुसीबत तो खड़ी कर ही दी है । इस स्थिति ने उम्मीदवारों से भी ज्यादा नेताओं को मुसीबत में फँसा दिया है । नेताओं के लिए मुसीबत की बात यह हो गई है कि बड़े सोच-विचार के बाद वह जिस उम्मीदवार को चुनें, वह कहीं हालात का मुकाबला कर सकने में विफल रहा तो - उम्मीदवार से ज्यादा तो नेताओं की फजीहत होगी । हरियाणा के पूर्व गवर्नर्स नेता जिस तरह से दिल्ली के उम्मीदवारों में दिलचस्पी 'दिखा' रहे हैं, उसके कारण भी फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के मामले में दिल्ली के पूर्व गवर्नर्स नेताओं के लिए मुसीबत बढ़ी है ।
केएल खट्टर ने सुरेश बिंदल के साथ दोस्ती निभाने के चक्कर में आरके अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रति दिलचस्पी दिखाई है, तो राजिंदर बंसल ने आरके शाह के प्रति अपने समर्थन को छिपाने का प्रयास तक नहीं किया है । अभी हाल ही में रोहतक में आयोजित हुए राजिंदर बंसल के क्लब के अधिष्ठापन समारोह में दिल्ली से डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डीनेटर केएम गोयल के अलावा एक सिर्फ आरके शाह को ही निमंत्रण मिला था और वह शामिल हुए थे । उक्त समारोह में - हरियाणा के बाकी पूर्व गवर्नर्स नेताओं के भी शामिल होने के कारण - आरके शाह की मौजूदगी का खास राजनीतिक संदेश तो लोगों के बीच गया ही है । दिल्ली के पूर्व गवर्नर्स नेताओं को हालाँकि यह विश्वास है कि हरियाणा के पूर्व गवर्नर्स नेता 'उनके' और उनके उम्मीदवार के साथ ही रहेंगे । संभव है कि घोषित रूप में यह स्थिति बनी रहे, लेकिन चुनावी राजनीति के खिलाड़ी इस बात को अच्छी तरह से जानते/समझते हैं कि चुनावी राजनीति का परिणाम इससे तय नहीं होता है कि ऊपर ऊपर क्या हो रहा है या दिख रहा है - परिणाम इससे तय होता है कि अंदरूनी तौर पर क्या हो रहा है और वास्तविक सच्चाई क्या है । हरियाणा में वैसे भी आरके शाह के लिए अच्छा समर्थन आधार देखा/पहचाना जाता है । इसका नजारा विक्रम शर्मा और आरके शाह के बीच हुए पिछले चुनाव में देखा भी जा चुका है, जबकि पूर्व गवर्नर्स नेताओं का समर्थन विक्रम शर्मा के साथ था - लेकिन वोट आरके शाह को मिले थे और चुनाव वह जीते थे । इन हालातों में, दिल्ली में उम्मीदवार चुनने में हो देरी से बनी स्थिति ने आरके शाह को जिस तरह से चुनावी मुकाबले में 'स्पेस' दे दिया है, उससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों में उलटफेर होने की परिस्थितियाँ बनी हैं और माहौल थोड़ा रोमांचपूर्ण होता दिख रहा है ।
आनंद दुआ और आरके अग्रवाल में से किसी एक के बागी हो सकने की संभावनाओं को तो मामले को घसीट कर पूर्व गवर्नर्स नेताओं ने फ्यूज कर दिया है, लेकिन इस प्रक्रिया में दोनों की इतनी 'फजीहत' भी हो चुकी है कि दोनों में से कोई भी - और उसके समर्थक नेता भी - दूसरे की उम्मीदवारी को सहज रूप में स्वीकार नहीं कर सकेगा । अब जो स्थिति बनी है, आशंका है कि उसमें जो उम्मीदवार नहीं चुना जायेगा - वह घोषित रूप में तो बागी नहीं बनेगा, लेकिन उसका और उसके समर्थक नेताओं का व्यवहार जरूर बागियों जैसा हो जायेगा । यह स्थिति आरके शाह की 'राजनीतिक पूँजी' बनती है । आरके शाह इस राजनीतिक पूँजी को इस्तेमाल कर सकेंगे या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा; लेकिन इस स्थिति ने चुने जाने वाले उम्मीदवार के सामने अभी से ही मुसीबत तो खड़ी कर ही दी है । इस स्थिति ने उम्मीदवारों से भी ज्यादा नेताओं को मुसीबत में फँसा दिया है । नेताओं के लिए मुसीबत की बात यह हो गई है कि बड़े सोच-विचार के बाद वह जिस उम्मीदवार को चुनें, वह कहीं हालात का मुकाबला कर सकने में विफल रहा तो - उम्मीदवार से ज्यादा तो नेताओं की फजीहत होगी । हरियाणा के पूर्व गवर्नर्स नेता जिस तरह से दिल्ली के उम्मीदवारों में दिलचस्पी 'दिखा' रहे हैं, उसके कारण भी फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के मामले में दिल्ली के पूर्व गवर्नर्स नेताओं के लिए मुसीबत बढ़ी है ।
केएल खट्टर ने सुरेश बिंदल के साथ दोस्ती निभाने के चक्कर में आरके अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रति दिलचस्पी दिखाई है, तो राजिंदर बंसल ने आरके शाह के प्रति अपने समर्थन को छिपाने का प्रयास तक नहीं किया है । अभी हाल ही में रोहतक में आयोजित हुए राजिंदर बंसल के क्लब के अधिष्ठापन समारोह में दिल्ली से डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डीनेटर केएम गोयल के अलावा एक सिर्फ आरके शाह को ही निमंत्रण मिला था और वह शामिल हुए थे । उक्त समारोह में - हरियाणा के बाकी पूर्व गवर्नर्स नेताओं के भी शामिल होने के कारण - आरके शाह की मौजूदगी का खास राजनीतिक संदेश तो लोगों के बीच गया ही है । दिल्ली के पूर्व गवर्नर्स नेताओं को हालाँकि यह विश्वास है कि हरियाणा के पूर्व गवर्नर्स नेता 'उनके' और उनके उम्मीदवार के साथ ही रहेंगे । संभव है कि घोषित रूप में यह स्थिति बनी रहे, लेकिन चुनावी राजनीति के खिलाड़ी इस बात को अच्छी तरह से जानते/समझते हैं कि चुनावी राजनीति का परिणाम इससे तय नहीं होता है कि ऊपर ऊपर क्या हो रहा है या दिख रहा है - परिणाम इससे तय होता है कि अंदरूनी तौर पर क्या हो रहा है और वास्तविक सच्चाई क्या है । हरियाणा में वैसे भी आरके शाह के लिए अच्छा समर्थन आधार देखा/पहचाना जाता है । इसका नजारा विक्रम शर्मा और आरके शाह के बीच हुए पिछले चुनाव में देखा भी जा चुका है, जबकि पूर्व गवर्नर्स नेताओं का समर्थन विक्रम शर्मा के साथ था - लेकिन वोट आरके शाह को मिले थे और चुनाव वह जीते थे । इन हालातों में, दिल्ली में उम्मीदवार चुनने में हो देरी से बनी स्थिति ने आरके शाह को जिस तरह से चुनावी मुकाबले में 'स्पेस' दे दिया है, उससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों में उलटफेर होने की परिस्थितियाँ बनी हैं और माहौल थोड़ा रोमांचपूर्ण होता दिख रहा है ।