Tuesday, January 30, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ई में रमेश काबरा के अचानक से उम्मीदवार बनने की घोषणा के पीछे जगदीश गुलाटी के नेतृत्व वाली तिकड़ी के 'खेल' को ही देखा/पहचाना जा रहा है

वाराणसी । रमेश काबरा की अचानक से सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवारी घोषित करके मुकुंदलाल टंडन,जगदीश गुलाटी व वीरेंद्र गोयल की बदनाम तिकड़ी ने एक बार फिर डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अपना गंदा खेल शुरू कर दिया है । उल्लेखनीय है कि इन तीनों का प्रायः हर वर्ष का यह खेल रहा है कि पहले तो यह किसी को भी सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए कभी खुले तो कभी छिपे तरीके से 'प्रेरित' करते हैं, उससे कई तरह के खर्चे करवाते हैं - और फिर ऐन मौके पर किसी और को उम्मीदवार बना देते हैं । लोगों का आरोप है कि इस तरह से यह तीनों उम्मीदवारों से पैसे ऐंठने का प्रयास करते हैं, जिसमें कभी कामयाब होते हैं और कभी नहीं भी होते हैं । यह तीनों उम्मीदवारों से पैसे ऐंठने में कामयाब हों या न हों - उम्मीदवार बनने वाला जरूर बर्बाद और परेशान हो जाता है । इनकी इस चालबाजी के चलते कई बार ऐसा हुआ है कि पहले से चला आ रहा उम्मीदवार अपना समय, अपनी एनर्जी और अपना पैसा लगा चुकने के बावजूद इनकी हरकतों के चलते पीछे हट जाता है । इनकी हरकतों के कारण एक उम्मीदवार को तो अपना लगा पैसा वापस पाने के लिए धरने पर भी बैठने के लिए मजबूर होना पड़ा था । मुकुंदलाल टंडन, जगदीश गुलाटी और वीरेंद्र गोयल की तिकड़ी की खुशकिस्मती यह है कि अपना खेल चलाने के लिए इन्हें कोई न कोई मोहरा मिल भी जाता है । इस बार भी रमेश काबरा के रूप में इन्हें एक मोहरा मिल गया है । रमेश काबरा को लोग मोहरे के रूप में इसलिए देख/पहचान रहे हैं, क्योंकि यह सज्जन अभी कुछ ही दिन पहले तक उम्मीदवार बनने की संभावना से साफ साफ इंकार करते आ रहे थे । लगातार इंकार करते रहने के बावजूद, यूँ तो कोई भी उम्मीदवार बन सकता है - लेकिन रमेश काबरा का मामला काफी अलग है ।
दरअसल रमेश काबरा काफी पहले उम्मीदवार बने थे । पूर्व गवर्नर बन चुकीं पुष्पा स्वरूप के सामने रमेश काबरा ने अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी और काफी आगे तक बढ़ गए थे, लेकिन जल्दी ही उन्हें समझ में आ गया था कि चुनावी चक्कर को झेल पाना उनके लिए मुश्किल ही है - लिहाजा उन्होंने फिर चुनावी मुकाबले से अपने आपको बाहर कर लिया था; और ऐसा बाहर कर लिया कि उसके बाद वाले वर्षों में भी उन्होंने उम्मीदवार बनने का प्रयास नहीं किया । पिछले लायन वर्ष में, रमेश काबरा जब दूसरी बार कैबिनेट सेक्रेटरी बने तब लोगों को लगा कि वह शायद उम्मीदवार बनने की तैयारी कर रहे हैं - लेकिन उन्होंने लगातार उम्मीदवार बनने की संभावना से इंकार ही किया । उनका यह इंकार अभी चार दिन पहले तक जारी ही था, और पूरी ढृढ़ता के साथ जारी था । उनके नजदीकियों का कहना रहा है कि एक उम्मीदवार को जिस तरह के दबाव झेलना पड़ते हैं, वह रमेश काबरा के बस की बात नहीं हैं - और इसे उन्होंने चूँकि खुद समझ लिया है, इसलिए चुनावी चक्कर में वह नहीं पड़ेंगे । हाँ, यदि बिना चुनाव का सामना किए उन्हें (सेकेंड वाइस) डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने का मौका मिलेगा, तो वह जरूर तैयार हो जायेंगे । इसीलिए तीसरी कैबिनेट मीटिंग के मौके पर अचानक से रमेश काबरा की प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने हर किसी को हैरान ही किया । उल्लेखनीय है कि अभी तक सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में डॉक्टर आरकेएस चौहान की ही सक्रियता लोगों को देखने को मिल रही थी । अजय मेहरोत्रा के भी उम्मीदवार बनने की चर्चा तो सुनी गई थी, लेकिन फिर जब उनकी कोई सक्रियता देखने को नहीं मिली तो डॉक्टर आरकेएस चौहान के नाम पर ही डिस्ट्रिक्ट में सहमति बनती हुई दिखी । इस व्यापक सहमति को देख कर ही उम्मीद की जा रही थी कि पिछले वर्ष की तरह ही इस वर्ष भी सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव निर्विरोध ही हो जायेगा - और इसे डिस्ट्रिक्ट की पहचान व प्रतिष्ठा के संदर्भ में एक अच्छे संकेत के रूप में देखा जा रहा था ।
उम्मीद के साथ-साथ कई लोगों को लेकिन आशंका भी थी कि मुकुंद लाल टंडन, जगदीश गुलाटी व वीरेंद्र गोयल की तिकड़ी निर्विरोध चुनाव तो नहीं होने देगी और कुछ न कुछ झमेला जरूर ही खड़ा करेगी । सुना गया था कि चैतन्य पांड्या को इन्होंने उम्मीदवार बनने के लिए राजी भी कर लिया था । लेकिन उनकी उम्मीदवारी की औपचारिक घोषणा होती, उससे पहले ही कुछ ज्यादा 'मौज-मजा' करने के चक्कर में चैतन्य पांड्या पुलिस की कार्रवाई में फँस गए । इसके बाद रमेश काबरा को तैयार किया गया । इस घटना क्रम से ही जाहिर है कि रमेश काबरा न तो उम्मीदवार बनने के लिए प्रयत्नशील थे, और उम्मीदवार बनने से इंकार करने की उनकी बात सच ही थी - और न मुकंदलाल टंडन, जगदीश गुलाटी व वीरेंद्र गोयल की वह पहली पसंद थे । इस तिकड़ी को चूँकि कोई उम्मीदवार नहीं मिला, इसलिए इन्होंने रमेश काबरा को उम्मीदवार बनने के लिए राजी किया है । वास्तव में इसीलिए, रमेश काबरा को उम्मीदवार के रूप में नहीं - बल्कि उक्त तिकड़ी के एक मोहरे के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है; और कई लोगों को लगता है कि रमेश काबरा शायद ही उम्मीदवार बने रह सकेंगे । हालाँकि कुछेक लोगों को यह भी लगता है कि सारा खेल डॉक्टर आरकेएस चौहान के रवैये पर भी निर्भर करेगा - वह यदि चुनावी मुकाबले से बचने की कोशिश करेंगे तो फिर रमेश काबरा हो सकता है कि हिम्मत कर लें और उम्मीदवार बने रहें । दरअसल रमेश काबरा को उनके नेताओं ने समझाया है कि उम्मीदवार के रूप में वह यदि 'तेजी' दिखायेंगे तो फिर डॉक्टर आरकेएस चौहान मुकाबले में नहीं बने रहेंगे और उनका काम आसानी से बन जायेगा । कुछेक लोगों को यह भी लगता है कि हो सकता है कि रमेश काबरा का काम आसान हो जाए - किंतु इस आसानी की जो 'कीमत' उन्हें चुकानी पड़े, वह उसके लिए तैयार न हों; और इस कारण से उनकी आसानी भी उन्हें भारी पड़े । क्या होगा, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा - लेकिन अचानक से प्रस्तुत हुई रमेश काबरा की उम्मीदवारी ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में हलचल जरूर मचा दी है ।