गाजियाबाद । आज दोपहर ढलते मुकेश गोयल की देह ही अग्नि को समर्पित नहीं हुई है, बल्कि डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन की प्रशासनिक व्यवस्था तथा चुनावी राजनीति की तड़क-भड़क, रहस्य-रोमांच और गुलगपाड़े वाली गपशप भी उनकी देह के साथ राख हो गई । डिस्ट्रिक्ट की प्रशासनिक व्यवस्था और चुनावी राजनीति तो उनकी अनुपस्थिति में अपना समीकरण बना लेगी - बना क्या लेगी, उसने बना लिया है - लेकिन मुकेश गोयल की उपस्थिति मात्र से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जो जीवंतता साँसे भरती थी, वह मुकेश गोयल की साँसों के साथ ही परलोकवासी हो गई नजर आ रही है । पिछले तीन-चार महीने में मुकेश गोयल मृत्यु के और नजदीक पहुँच गए थे, डॉक्टरों ने जबाव दे दिया था और किसी भी तरह के ईलाज को व्यर्थ बता दिया था - लेकिन मृत्युशय्या पर पड़े पड़े भी मुकेश गोयल सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से जुड़ी डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को लेकर जो चालें चल रहे थे, उनसे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के बनने/बिगड़ने वाले समीकरणों में खासी हलचल मची हुई थी । अभी दस/बारह दिन पहले ही उन्होंने अपने नजदीकियों से कहा था कि वह मीटिंग्स आदि में चल कर नहीं जा सकते हैं, तो क्या हुआ - वह व्हीलचेयर पर तो जा सकते हैं ।
मुकेश गोयल के आभामंडल का ही असर था कि वह हालाँकि पिछले तीन वर्षों से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में या तो अपने आप को कमजोर पाते/आँकते हुए समर्पण कर रहे थे, और या चुनावी मुकाबले में पराजित हो रहे थे; तथा पिछले तीन/चार महीने से डॉक्टरों के जबाव देने के बाद दुआओं पर चल रहे थे - लेकिन फिर भी हर किसी को वह अपनी राजनीतिक चाल को लेकर आशंकित किए हुए थे । मुकेश गोयल को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जिताऊ नेता के रूप में पहचान मिली; लेकिन उनको इस पहचान तक सीमित करना उनके साथ अन्याय करना है - वास्तव में उनकी असली खूबी यह थी कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट की लायन राजनीति में आम लायन की भूमिका को सिर्फ महत्त्वपूर्ण ही नहीं, बल्कि निर्णायक बनाने का काम किया । आम लायन सदस्यों के साथ उनके जुड़ाव ने उन्हें एक ऐसे करिश्माई नेता की पहचान दे दी थी, दूसरे नेता जिससे भय खाते थे । वह अंग्रेजी मुहावरे 'लार्जर देन लाइफ' को चरितार्थ कर रहे थे । वह डिस्ट्रिक्ट के 'शोमैन' थे । सच्चाई यह थी कि उनकी राजनीतिक ताकत वास्तव में उतनी बड़ी नहीं थी, जितना बड़ा उनके करिश्मे का शोर था - जिसे उन्होंने अपने व्यवहार और आचरण से खुद बनाया था । लेकिन हाँ, इसमें उन्हें मिलने वाली चुनावी सफलताओं का भी योगदान था, जो उन्हें विनय मित्तल के संग-साथ के कारण मिलीं ।
मुकेश गोयल डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में किस्मत के धनी भी थे, जिसके चलते उन्हें विनय मित्तल जैसा साथी-सहयोगी मिला । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में मुकेश गोयल को जैसी सफलताएँ मिलीं, उसके पीछे वास्तविक तैयारी असल में विनय मित्तल की रहती थी । मुकेश गोयल ने अंत समय तक इस बात का ध्यान रखा और अभी पाँच/छह दिन पहले ही उन्होंने लिखित में विनय मित्तल की खासी प्रशंसा भी की थी । मुकेश गोयल की राजनीतिक ताकत भले ही कमजोर पड़ गई थी, लेकिन उनके करिश्मे का शोर बरकरार था - और इसीलिए अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी जबकि वह मृत्युशय्या पर पड़े थे, तब भी कई लोग उम्मीद कर रहे थे कि वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति की हवा बदल सकते हैं । यह मुकेश गोयल के बूते की ही बात थी कि वह जान/समझ रहे थे कि उनकी राजनीतिक पारी पूरी हो चुकी है - लेकिन फिर भी वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को नियंत्रित करने तथा उसके शीर्ष पर बैठने की तरकीबें लड़ा रहे थे, और अपनी तरकीबों से दूसरे नेताओं को हैरान/परेशान किए हुए थे । मुकेश गोयल का यही करिश्मा था, और इसकी बदौलत ही उन्होंने डिस्ट्रिक्ट की प्रशासनिक व्यवस्था तथा चुनावी राजनीति को तड़क-भड़क, रहस्य-रोमांच और गुलगपाड़े वाली गपशप के साथ जीवंत बनाया हुआ था । उनकी गैरमौजूदगी में इस जीवंतता को बनाये रख पाना वास्तव में खासा चुनौतीपूर्ण ही होगा ।