Wednesday, November 29, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3141 के विजय जालान को रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर का पद मिलने से इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए भरत पांड्या की उम्मीदवारी पर संकट मँडराया, और अशोक गुप्ता के पक्ष में मनोवैज्ञानिक माहौल बना

मुंबई/जयपुर । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए प्रस्तुत किए गए चेलैंज को मान्य करवाने के लिए अशोक गुप्ता को अपने डिस्ट्रिक्ट में मिले जोरदार समर्थन, रंजन ढींगरा के चेलैंज के वापस होने तथा रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर (आरआरएफसी) पद पर विजय जालान की नियुक्ति ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद पर भरत पांड्या के दावे पर गंभीर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का काम किया है - जिसके चलते इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए जो लड़ाई उन्हें अभी तक आसान लग रही थी, वह उनके लिए मुश्किलोंभरी हो गई लग रही है । विजय जालान के आरआरएफसी बनने पर भरत पांड्या तथा उनके समर्थकों को अपने ही लोगों से सुनने को मिल रहा है कि रोटरी में सभी पद क्या एक ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों को मिलेंगे ? उल्लेखनीय है कि अभी पिछले दिनों ही गुलाम वहनवती की रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी पद पर नियुक्ति हुई है, और अब उनके ही डिस्ट्रिक्ट के विजय जालान आरआरएफसी नियुक्त हो गए हैं । भरत पांड्या भी इन्हीं के डिस्ट्रिक्ट के हैं । ऐसे में, इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में भूमिका निभाने वाले आम और खास रोटेरियंस के बीच यह सवाल उठने लगा है कि रोटरी में सभी बड़े और महत्त्वपूर्ण पद किसी एक ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों को ही क्यों मिलने चाहिए ? यह सवाल भरत पांड्या के समर्थन-आधार को डिस्टर्ब करने के साथ घटाने का काम भी करता दिख रहा है । भरत पांड्या के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि उनके डिस्ट्रिक्ट के 'जुड़वाँ भाई' जैसे डिस्ट्रिक्ट 3142 और उनके अपने डिस्ट्रिक्ट में उनके जो विरोधी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के संदर्भ में अभी तक नैतिक व मनोवैज्ञानिक कारणों से चुप लगाए बैठे थे, वह अचानक से मुखर होने लगे हैं और 'एक ही डिस्ट्रिक्ट में सभी पद क्यों' जैसे सवाल को हवा दे कर इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी दौड़ में भरत पांड्या के सामने मुश्किलें खड़ी करने के अभियान में लग गए हैं ।
इसी के साथ-साथ भरत पांड्या और उनके चुनावी रणनीतिकारों को यह देख/जान कर तगड़ा झटका लगा है कि अशोक गुप्ता को अपने डिस्ट्रिक्ट में जोरदार समर्थन मिला है । भरत पांड्या और उनके नजदीकियों को हालाँकि यह विश्वास तो था ही कि अशोक गुप्ता के चेलैंज को अपने डिस्ट्रिक्ट में पर्याप्त समर्थन मिल जाएगा - लेकिन इतना जोरदार समर्थन मिलने की उन्हें उम्मीद नहीं थी । डिस्ट्रिक्ट के करीब 125 क्लब्स में से 110/112 क्लब्स की तरफ से अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में कॉन्करेंस मिली हैं । कॉन्करेंस देने के मामले में जो क्लब्स बचे रह गए हैं, वह भी इसलिए बचे रह गए क्योंकि उनमें से अधिकतर की कॉन्करेंस उचित समय पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय में पहुँच नहीं सकी, और बाकी कुछ क्लब्स कॉन्करेंस को अधिकृत करवाने की प्रक्रिया को पूरा नहीं कर सके । इस स्थिति ने जता/दिखा दिया है कि डिस्ट्रिक्ट के मामलों में लोगों की राय और पक्ष भले ही अलग अलग रहते रहे हों, लेकिन अशोक गुप्ता की इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उम्मीदवारी के मामले में पूरा डिस्ट्रिक्ट उनके समर्थन में है । यह परिदृश्य भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के लिए चिंता का विषय इसलिए है, क्योंकि पहली बात तो यह कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि अशोक गुप्ता को अपने डिस्ट्रिक्ट में इतना व्यापक समर्थन प्राप्त है, और दूसरी बात यह कि अशोक गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट में अशोक गुप्ता विरोधी जिन नेताओं पर वह भरोसा कर रहे थे - वह नेता निष्प्रभावी साबित हुए हैं और उनके भरोसे पर खरे नहीं उतरे हैं । इससे भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेता यह सोचने के लिए मजबूर हुए हैं कि वह कहीं अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन-आधार की पहुँच को कम आँकने की गलती तो नहीं कर रहे हैं, और अशोक गुप्ता के साथ निजी खुन्नस रखने वाले विरोधियों पर जरूरत से ज्यादा भरोसा तो नहीं कर रहे हैं ?
भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की रणनीति दरअसल नकारात्मक तिकड़मों पर ही आधारित रही है । अशोक गुप्ता को घेर लेने, उन्हें अपने ही डिस्ट्रिक्ट में 'कमजोर' करने/दिखाने तथा उनके समर्थन-आधार में विभाजन करने पर ही भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं का जोर रहा है । इसके तहत अशोक गुप्ता पर रोटरी रिसोर्स ग्रुप के पदाधिकारी के रूप में काम करने पर रोक लगा दी गई, जिसके चलते डिस्ट्रिक्ट 3080 में आयोजित हुए इंटरसिटी सेमीनार में मुख्य अतिथि के रूप में मिले निमंत्रण को स्वीकार करने के बाद उन्हें वापस करने के लिए मजबूर होना पड़ा । अशोक गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट में कोशिश की गई कि उन्हें अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में ज्यादा कॉन्करेंस न मिल सकें; भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने यह तो मान लिया था कि अशोक गुप्ता अपनी उम्मीदवारी को मान्य करवाने के लिए जरूरी कॉन्करेंस तो जुटा ही लेंगे, लेकिन उनकी घेरेबंदी के जरिए कोशिश की गई थी कि उन्हें ज्यादा कॉन्करेंस न मिलें - ताकि जोन के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लोगों के बीच यह प्रचारित किया जा सके कि अशोक गुप्ता को तो अपने ही डिस्ट्रिक्ट में समर्थन नहीं है, और उन्होंने तो बस जैसे-तैसे जरूरी कॉन्करेंस जुटाई हैं । अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में दर्ज हुईं 90 प्रतिशत से अधिक क्लब्स की कॉन्करेंस ने लेकिन भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की चाल को फेल कर दिया है । भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन-आधार में विभाजन करने के लिए रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी के जरिए बड़ी चाल चली थी, लेकिन रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी के वापस हो जाने से उनकी उस चाल ने बीच रास्ते में ही दम तोड़ दिया है ।
मजे की बात यह देखने में आई है कि अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के खिलाफ चली गईं नकारात्मक चालें स्वतः ही फेल होती गईं हैं; उन्हें फेल करने के लिए अशोक गुप्ता और या उनके समर्थक नेताओं को कुछ करना नहीं पड़ा है । अशोक गुप्ता और उनके समर्थकों पर गंभीर आरोप बल्कि यही है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को उन्हें जिस गंभीरता से लेना चाहिए, उतनी गंभीरता से वह ले नहीं रहे हैं - यदि ले रहे हैं, तो लेते हुए 'दिख' नहीं रहे हैं । संभवतः यह भरत पांड्या के समर्थक नेताओं के द्वारा की गई उनकी घेराबंदी का नतीजा भी हो । इसलिए अशोक गुप्ता और उनके समर्थकों द्वारा बिना कुछ किए ही भरत पांड्या के समर्थक नेताओं की चालबाजियों के फेल होने को किस्मत की बात के रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है । लोगों को लग रहा है कि अशोक गुप्ता और उनके समर्थकों की तुलना में तो उनकी किस्मत ज्यादा तेज चल रही है । इससे लोगों को यह उम्मीद भी बँधी है कि इसे एक सकारात्मक संदेश के रूप में लेते/देखते हुए अशोक गुप्ता और उनके समर्थक/साथी अब ज्यादा जोश और तैयारी के साथ जुटेंगे । भरत पांड्या के समर्थक नेताओं के लिए मुसीबत और चिंता की बात वास्तव में यही है कि हाल-फिलहाल की घटनाओं से अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में जो एक वातावरण बना है, उससे उनके समर्थक नेताओं में खासा जोश पैदा हुआ है और उन्हें लगने लगा है कि माहौल उनके पक्ष में है - उन्हें जरूरत सिर्फ उसे संयोजित व संगठित करने की है । समय ने भरत पांड्या और उनके समर्थक नेताओं के सामने दोहरी मुसीबत खड़ी कर दी है - एक तरफ तो अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए चुनौती बनती स्थितियाँ खुद-ब-खुद सुलझती जा रही हैं और उनके रास्ते की बाधाएँ अपने आप से दूर हो रही हैं; और दूसरी तरफ विजय जालान को आरआरएफसी का पद मिलने से उनके लिए लोगों को यह समझाना मुश्किल हुआ है कि रोटरी के सभी बड़े और महत्त्वपूर्ण पद एक ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों को क्यों मिलने चाहिए ? इसलिए विजय जालान के रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर बनने ने भरत पांड्या की इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उम्मीदवारी के सामने गंभीर संकट खड़ा कर दिया है ।

Monday, November 27, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में ग्लोबल ग्रांट्स हड़प कर उससे अपनी राजनीति साधने तथा मौज-मजा करने की पोल खुलती देख राजा साबू ने मोहिंदर पॉल गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी से निकलवाने के लिए कमर कसने के जरिए क्या अपनी ही कमजोरी को साबित नहीं किया है ?

चंडीगढ़ । राजा साबू - पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू ने एक बार फिर मोहिंदर पॉल गुप्ता के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और उन्हें डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी से हटाने के लिए मुहिम छेड़ दी है । राजा साबू के करीबियों का कहना/बताना है कि राजा साबू ने अब पक्की तरह से ठान लिया है कि वह मोहिंदर पॉल गुप्ता को तीन सदस्यीय डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी में नहीं रहने देंगे और इसके लिए यदि जरूरत पड़ी तो इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम पर भी दबाव डालेंगे कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी से मोहिंदर पॉल गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी से हटाने के लिए कहें । उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले ही बासकर चॉकलिंगम की मौजूदगी में चंडीगढ़ में संपन्न हुई कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी में मोहिंदर पॉल गुप्ता को सदस्य बनाने पर आपत्ति की थी । उक्त आपत्ति के लिए उन्होंने मोहिंदर पॉल गुप्ता के पूर्व गवर्नर न होने के तथ्य को बहाना बनाया था । उनका कहना था कि डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी में पूर्व गवर्नर्स ही सदस्य हो सकते हैं । उक्त मीटिंग में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी ने राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स को आईना दिखाते हुए बताया था कि पिछले रोटरी वर्ष में उन्होंने ही यह नियम बनाया था कि डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी में एक सदस्य कोई रोटेरियन भी हो सकता है; इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्होंने तो उसी नियम का पालन करते हुए मोहिंदर पॉल गुप्ता को सदस्य बनाया है । टीके रूबी के इस जबाव के बाद राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स को बासकर चॉकलिंगम के सामने फजीहत का शिकार होना पड़ा था - और मोहिंदर पॉल गुप्ता के खिलाफ उनकी मुहिम औंधे मुँह गिर पड़ी थी ।
राजा साबू को मोहिंदर पॉल गुप्ता का बुखार लेकिन एक बार फिर चढ़ आया है, जिसके फलस्वरूप उन्होंने मोहिंदर पॉल गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी से हटवाने के लिए फिर से कमर कस ली है । राजा साबू के करीबियों के अनुसार, मोहिंदर पॉल गुप्ता के खिलाफ राजा साबू का गुस्सा एक बार फिर दरअसल इसलिए फूटा है, क्योंकि मोहिंदर पॉल गुप्ता ने हाल ही दिनों में डिस्ट्रिक्ट में ग्लोबल ग्रांट्स के नाम पर मची धाँधली को बेनकाब किया है - जिसके चलते राजा साबू की देखरेख में ग्लोबल ग्रांट्स की होने वाली बंदरबाँट की पोल खुली है । अभी हाल ही में मोहिंदर पॉल गुप्ता ने क्लब्स के प्रेसीडेंट्स और सेक्रेटरीज को पत्र लिख कर ग्लोबल ग्रांट्स से संबंधित तथ्यों और नियमों से परिचित करवाया और राजा साबू के क्लब का उदाहरण देते हुए बताया कि किस तरह अपनी तरफ से मामूली रकम देकर ग्लोबल ग्रांट्स के नाम पर मोटी रकम ली जा सकती है । अपने पत्र में मोहिंदर पॉल गुप्ता ने इस तथ्य को उद्घाटित किया कि कैसे राजा साबू के क्लब ने कुल करीब तीस हजार डॉलर देकर ग्रांट्स के नाम पर दस लाख डॉलर से अधिक की रकम जुटा ली । मोहिंदर पॉल गुप्ता ने पिछले दिनों निरंतरता के साथ जो जो तथ्य उद्घाटित किये हैं, उनसे डिस्ट्रिक्ट के लोगों को पता चला है कि राजा साबू और उनके करीबी पूर्व गवर्नर्स ने किस किस तरीके से विभिन्न ग्रांट्स को इधर से उधर करके मोटी मोटी रकमें जुटा लीं, और उनसे सेवा के नाम पर अपनी राजनीति तथा अपने मौज-मजे के लिए मौके बनाए हैं । राजा साबू के क्लब ने कुछेक ग्रांट्स तो ऐसी जुगाड़ लीं, जिनमें क्लब ने इकन्नी भी नहीं दी और ग्रांट के रूप में मिले लाखों रुपए से राजा साबू, मधुकर मल्होत्रा और कमल बेदी तथा क्लब के दूसरे कुछेक सदस्यों ने मौज/मस्ती की और या कमाई की । मोहिंदर पॉल गुप्ता की कोशिशों के चलते ही राजा साबू की चेयरमैनी में चल रहे रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के अकाउंट्स को छिपा कर रखने के प्रयास फेल हुए और उसके अकाउंट्स सामने आ सके, और उसमें बेहद चालाकी से 'ठिकाने' लगाई जा रही दो करोड़ 83 लाख रुपए की रकम 'पकड़ी' जा सकी ।
मोहिंदर पॉल गुप्ता की इन कोशिशों से लोगों को पहली बार तथ्यों और सुबूतों के साथ पता चला कि राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स किस तरह ग्लोबल ग्रांट्स हड़पने का खेल खेलते रहे हैं । अपने इस खेल को बचाने के लिए राजा साबू को मोहिंदर पॉल गुप्ता का मुँह बंद करना जरूरी लगा है; और इसीलिए वह कुछ भी करके मोहिंदर पॉल गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी से हटवा देना चाहते हैं । मजे की बात यह है कि राजा साबू के गिरोह के ही कुछेक पूर्व गवर्नर्स को लगता है कि ऐसा करने के जरिए राजा साबू अपने लिए मुसीबतों को कम करने की बजाए बढ़ाने का ही काम करेंगे - क्योंकि मोहिंदर पॉल गुप्ता ने हिसाब/किताब में पारदर्शिता तथा ईमानदारी लाने/बरतने के लिए जो अभियान छेड़ा हुआ है, वह डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के सदस्य के रूप में नहीं बल्कि एक रोटेरियन के रूप में छेड़ा हुआ है । ऐसे में, मोहिंदर पॉल गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी से राजा साबू हटवा भी देते हैं, तो उससे मोहिंदर पॉल गुप्ता के अभियान पर भला क्या असर पड़ेगा ? ऐसा मानने और कहने वाले पूर्व गवर्नर्स ने याद दिलाया कि पिछले रोटरी वर्ष में करनाल में हुई रमन अनेजा की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में हार्टलैंड प्रोजेक्ट की फंडिंग को लेकर पूछे गए मोहिंदर पॉल गुप्ता के सवाल पर राजा साबू ने बौखला कर जो नाटक किया था और जिसके चलते लोगों के बीच उनकी भारी फजीहत हुई थी, उस समय मोहिंदर पॉल गुप्ता किसी कमेटी के सदस्य नहीं थे । इन पूर्व गवर्नर्स का हालाँकि कहना यह भी है कि राजा साबू अपने सामने किसी की सुनते/मानते तो हैं नहीं, और अपने मन की ही करते हैं और इसीलिए लगातार अपनी किरकिरी करवा रहे हैं । राजा साबू को स्वीकार करना और समझना चाहिए कि समय अब उनके अनुकूल नहीं रह गया है, और लोगों के बीच बना उनका ऑरा(आभामंडल) अब धूमिल पड़ गया है - इसलिए उन्हें मनमाने और तानाशाहीभरे रवैये से नहीं, बल्कि थोड़े उदार रवैये से हालात को अनुकूल बनाने का प्रयास करना चाहिए ।
राजा साबू के नजदीकियों का ही कहना है कि बदले हुए हालात और माहौल में राजा साबू को मोहिंदर पॉल गुप्ता को हल्के में नहीं लेना चाहिए और समझना चाहिए कि मोहिंदर पॉल गुप्ता एक वरिष्ठ व अनुभवी रोटेरियन हैं, जिन्होंने कई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के साथ नजदीकियत रखते हुए काम किया है और महत्त्वपूर्ण अवॉर्ड प्राप्त किए हैं । सतीश सलूजा के गवर्नर-काल में उन्हें 'मोस्ट रेस्पॉन्सिबिल प्रेसीडेंट ऑफ द ईयर' का अवॉर्ड मिला था; मधुकर मल्होत्रा ने अपने गवर्नर-काल में उन्हें 'मोस्ट आउटस्टैंडिंग चेयरमैन' के अवॉर्ड के लिए चुना था, और जो खुद राजा साबू ने उन्हें दिया था । मनप्रीत सिंह और डेविड हिल्टन के गवर्नर-काल में भी उन्हें उल्लेखनीय काम करने के लिए सम्मानित किया गया था । मोहिंदर पॉल गुप्ता के कामकाज के तथा पिछले वर्षों में लगातार सम्मानित होते रहे उनके रिकॉर्ड को देखते हुए टीके रूबी ने अपने गवर्नर-काल में उन्हें कई कमेटियों में शामिल किया है । पिछले दिनों पानीपत में आयोजित हुए रोटरी फाउंडेशन सेमीनार में हरियाणा के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी ने विशिष्ट सेवाओं के लिए उन्हें सम्मानित किया । अपने लंबे अनुभव और अपनी निरंतर सक्रियता के बल पर ही मोहिंदर पॉल गुप्ता ने जब डिस्ट्रिक्ट के हिसाब-किताब में ईमानदारी और पारदर्शिता लाने/बरतने के लिए अभियान छेड़ा, तो उनके अभियान पर लोगों ने विश्वास तो किया ही - साथ ही साथ उनके अभियान के प्रति समर्थन भी व्यक्त किया । इसीलिए राजा साबू के करीबियों को भी लगता है कि मोहिंदर पॉल गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी से निकलवाने का अभियान छेड़ कर राजा साबू ने अपनी कमजोरी को खुद ही साबित करने के साथ-साथ जैसे अपना 'अपराध' भी क़ुबूल कर लिया है; ऐसे में राजा साबू यदि इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम से दबाव डलवा कर मोहिंदर पॉल गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी से निकलवा भी देते हैं - तो यह 'जीत' वास्तव में उनकी हार ही होगी ।

Sunday, November 26, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी की बदतमीजी तथा डॉक्टर सुब्रमणियन के पक्षपातपूर्ण फैसले का शिकार बनीं वरिष्ठ रोटेरियन आभा झा चौधरी को शारदा यूनिवर्सिटी के आयोजन में खासी महत्ता और सम्मान मिला

नई दिल्ली । शारदा यूनिवर्सिटी और मिलान फाउंडेशन के संयुक्त तत्त्वाधान में करीब चार सौ लोगों की उपस्थिति में 'इंडिया नीड्स डॉटर्स' विषय पर आयोजित हुए एक पैनल डिस्कशन में आभा झा चौधरी को शामिल होने का मौका मिलना उनके साथ-साथ रोटरी की पहचान और प्रतिष्ठा के लिए भी उल्लेखनीय बात है । रोटरी से बाहर के समाज और अकादमिक संस्थानों में रोटेरियंस को सम्मान के साथ आमंत्रित करने तथा उन्हें तवज्जो मिलने की घटनाएँ यदा-कदा ही सुनने/देखने को मिलती हैं । रोटरी में जो तमाम लोग अपनी महानता और वीरता के डंके पीटते हैं, उनमें से अधिकांश की महानता और वीरता रोटरी की चौखट के भीतर ही दम तोड़ देती है और रोटरी के बाहर के समाज में वह अपनी कोई पहचान व साख बना सकने में असफल ही होते/रहते हैं । जिन रोटेरियंस को किसी बड़े पद पर होने के कारण कुछ समय के लिए अपनी महानता और वीरता दिखाने/जताने का मौका मिलता भी है, पद से उतरते ही उनमें से अधिकतर रोटरी में ही गुमनामी के दलदल में जा गिरते हैं । उल्लेखनीय बात यह है कि अपनी काबिलियत और प्रतिभा दिखाने/जताने का मौका रोटरी में यूँ तो बहुत से लोगों को मिलता है, लेकिन ज्यादातर लोग उस मौके को अपनी मूर्खता व जहालत दिखाने/जताने में और लफंगई करने या उसका साथ देने में खर्च कर देते हैं - और इसका नतीजा यह देखने को मिलता है कि बाद में फिर वह गुमनामी में पड़े होते हैं और या नॉनसेंस हरकतें करते हुए अपने आप को किसी तरह सीन में बनाए रखने की कोशिश करते नजर आते हैं । ऐसे में, आभा झा चौधरी को रोटरी के बाहर भी मिल रही पहचान और प्रतिष्ठा रोटरी के लिए निश्चित ही एक बड़ी उपलब्धि की बात है ।
रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3011 ही नहीं, आसपास के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में भी किसी रोटेरियंस को रोटरी के बाहर आभा झा चौधरी जैसी पहचान और प्रतिष्ठा मिली हो, ऐसा ध्यान नहीं पड़ता । आभा झा चौधरी के अलावा एक अकेले राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू ही हैं, जिनका नाम रोटरी की दीवारों से बाहर आ सका है । लेकिन राजा साबू को भी यह मुकाम इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने के बाद ही नसीब हो सका है । इस संदर्भ को ध्यान में रख कर आकलन करें तो आभा झा चौधरी की उपलब्धि राजा साबू से भी बड़ी ही मानी जाएगी । आभा झा चौधरी ने एक रोटेरियन के रूप में अपनी सक्रियता और संलग्नता से पिछले कुछ समय में ही रोटरी में जो मुकाम पाया है, वह खुद सफलता और स्वीकार्यता की एक दिलचस्प कहानी बताता है । रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों तथा नेताओं से प्रशंसित प्रोजेक्ट्स में आभा झा चौधरी को शामिल करना; रोटरी इंटरनेशनल के पोलियो खत्म करने के अभियान को चलाने के लिए फंड्स इकट्टा करने के उद्देश्य से शुरू की गई 'वर्ल्ड ग्रेटेस्ट मील' परियोजना में आभा झा चौधरी को भारत का 'कंट्री-कोऑर्डीनेटर' का पद मिलना इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि उनकी सक्रियता और संलग्नता ने रोटरी में एक व्यापक पहचान बनाई है । बड़ी बात रोटरी में ही पहचान बनाना नहीं है, बल्कि यह है कि उनकी पहचान और प्रतिभा का दायरा रोटरी की दीवारों के पार समाज और अन्य संस्थाओं तक फैला/पहुँचा । आभा झा चौधरी विभिन्न शहरों में अलग अलग तरह की संस्थाओं में अलग अलग विषयों पर केंद्रित होने वाले आयोजनों में वक्ता के रूप में आमंत्रित होती रही हैं, और शामिल होती रही हैं ।
इसलिए शारदा यूनिवर्सिटी और मिलान फाउंडेशन के संयुक्त तत्त्वाधान में आयोजित होने वाले एक पैनल डिस्कशन में आभा झा चौधरी का शामिल होना कोई खास बात नहीं है; लेकिन फिर भी यह बात खास हो गई है, तो इसका कारण यह है कि पिछले दिनों ही आभा झा चौधरी को एक वरिष्ठ रोटेरियन के रूप में अपने ही डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी की बदतमीजी का शिकार होना पड़ा है, और उनके द्वारा रोटरी इंटरनेशनल में दर्ज करवाई गयी शिकायत के चलते बनी जाँच कमेटी के मुखिया डॉक्टर सुब्रमणियन की तरफ से भी उन्हें न्याय नहीं मिला । यह एक बिडंवनापूर्ण नजारा है कि अपने काम, अपनी सोच और अपनी प्रतिभा से रोटरी के बड़े मंचों के साथ-साथ समाज की अकादमिक संस्थाओं में महत्ता, प्रशंसा और सम्मान पा रहीं आभा झा चौधरी को अपने ही डिस्ट्रिक्ट में अपने ही लोगों के द्वारा प्रताड़ना और अपमान का शिकार होना पड़ रहा है । दुनिया में यह एक आम समझ है कि किसी मूर्ख व्यक्ति से यह उम्मीद नहीं करना चाहिए कि वह किसी प्रतिभाशाली व्यक्ति का सम्मान करेगा; इसलिए आभा झा चौधरी के साथ रवि चौधरी ने क्या किया - इसे अनदेखा भी कर दें; लेकिन डॉक्टर सुब्रमणियन ने जो किया, वह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है । डॉक्टर सुब्रमणियन और रवि चौधरी की सामाजिक 'पहचान' में जमीन-आसमान का अंतर है, इसलिए किसी को उम्मीद नहीं थी कि वह अपने आप को रवि चौधरी के स्तर तक गिरा लेंगे । समाज में कहा/माना जाता है कि समाज को बुरे लोगों से उतना नुकसान नहीं पहुँचता है, जितना बुरे लोगों को संरक्षण देने वाले तथा बुरे लोगों की हरकतों पर चुप रहने वाले अच्छे लोगों से पहुँचता है ।
रवि चौधरी ने आभा झा चौधरी के साथ बदतमीजी की, यह कोई नई बात नहीं थी; दूसरे कई लोगों के साथ-साथ विनोद बंसल और सुशील गुप्ता जैसे लोग उनकी बदतमीजी का शिकार हो चुके हैं - ऐसे में, आभा झा चौधरी को भी उनकी बदतमीजी का शिकार होना, तो यह रवि चौधरी के व्यवहार के अनुरूप ही था । फर्क सिर्फ यह हुआ कि दूसरे लोगों ने अपने साथ हुई बदतमीजी को या तो यह कहते हुए अनदेखा कर दिया कि 'अरे छोड़ो, रवि तो बदतमीज है ही' और या बदला लेते हुए रवि चौधरी को उन्हीं के लहजे में जबाव दे दिया - लेकिन आभा झा चौधरी ने न्याय की गुहार लगाते हुए रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत दर्ज कर दी । उन्होंने न तो रवि चौधरी की हरकत को अनदेखा किया, और न उनके 'स्तर' पर उतरने की कोशिश की । उन्हें उम्मीद रही होगी कि जिस रोटरी में उनकी प्रतिभा और उनकी सक्रियता को पहचान और प्रतिष्ठा मिली, उस रोटरी में उन्हें न्याय भी मिलेगा । न्याय करने की जिम्मेदारी डॉक्टर सुब्रमणियन को मिली, तो आभा झा चौधरी के साथ-साथ दूसरों को भी आस बँधी कि डॉक्टर सुब्रमनियन अवश्य ही ऐसा फैसला करेंगे कि रवि चौधरी ही नहीं, आगे आने वाले गवर्नर भी रोटरी पदाधिकारियों - खासकर महिला पदाधिकारियों के साथ बदतमीजी करने का साहस नहीं कर सकेंगे । लेकिन जब फैसला आया, तो पता चला कि डॉक्टर सुब्रमणियन ने तमाम उपलब्ध तथ्यों और सुबूतों को अनदेखा करते हुए रवि चौधरी के सामने पूरी तरह समर्पण कर दिया और उन्हें क्लीन चिट दे दी । लोगों के लिए यह समझना मुश्किल हुआ है कि डॉक्टर सुब्रमणियन ने पता नहीं किस दबाव में या किस स्वार्थ और या किस मजबूरी में परस्पर अंतर्विरोधों से भरा उक्त फैसला किया । डॉक्टर सुब्रमणियन ने अपने पक्षपातपूर्ण फैसले के जरिये आभा झा चौधरी के साथ भले ही न्याय न किया हो, लेकिन वह आभा झा चौधरी की पहचान और प्रतिष्ठा को जरा भी खंडित नहीं कर सके हैं - जिसका सुबूत है शारदा यूनिवर्सिटी और मिलान फाउंडेशन के संयुक्त तत्त्वाधान में आयोजित हुए एक पैनल डिस्कशन में आभा झा चौधरी को आमंत्रित किया जाना । डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए भी यह बात शर्मिंदगीभरी होनी तो चाहिए कि जो आभा झा चौधरी रोटरी के बाहर भी रोटरी की पहचान और प्रतिष्ठा को बढ़ाने का काम कर रही हैं, उन आभा झा चौधरी को प्रताड़ित करती रवि चौधरी की करतूत पर उन्होंने पर्दा डालने का काम किया है ।

Thursday, November 23, 2017

रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने के लिए ही सुशील गुप्ता इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी को धोखा देने और रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी की बलि चढ़ाने के रास्ते पर बढ़े हैं क्या ?

नई दिल्ली । रोटरी जोन 4 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अपने चेलैंज को अधिकृत करवाने के लिए रंजन ढींगरा और उनके समर्थकों को जिस तरह की मशक्कत करना पड़ रही है, उसके चलते पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता की अपने ही खेमे के लोगों के बीच भारी फजीहत हो रही है । सुशील गुप्ता के ही नजदीकयों का कहना है कि पहले तो उन्हें यही समझ नहीं आ रहा है कि सुशील गुप्ता ने क्यों तो रंजन ढींगरा से इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए चेलैंज करवा दिया, और फिर जब चेलैंज करवा ही दिया है - तो अब उनके चेलैंज को अधिकृत करवाने के लिए न्यूनतम सक्रियता दिखलाने से भी क्यों बच रहे हैं ? खेमे के पूर्व गवर्नर्स नेताओं का कहना है कि उन्होंने सुझाव दिया था कि सुशील गुप्ता की मौजूदगी में संभावित समर्थक पूर्व गवर्नर्स की एक मीटिंग कर लेना चाहिए, ताकि रंजन ढींगरा के समर्थन में एकजुटता को 'दिखाया' जा सके; किंतु ऐसी कोई मीटिंग तो नहीं ही हो सकी है - बल्कि रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी के पक्ष में क्लब्स से कॉन्करेंस जुटाने का काम कुछेक अनजान से रोटेरियंस को सौंप दिया गया है । खेमे के नेताओं का ही कहना है कि डिस्ट्रिक्ट से रंजन ढींगरा चूँकि अकेले ही चेलैंज कर रहे हैं, इसलिए उन्हें जरूरी कॉन्करेंस तो मिल ही जायेंगी - लेकिन जिस तरह से उनके पक्ष में कॉन्करेंस जुटाने का काम हो रहा है, उसे देखते हुए उनकी उम्मीदवारी एक मजाक बन जा रही है और इसके लिए सुशील गुप्ता को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है । दरअसल सुशील गुप्ता और रंजन ढींगरा के खास नजदीकी महत्त्वपूर्ण लोगों को भी यह नहीं पता है कि रंजन ढींगरा इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए चेलैंज कर क्यों रहे हैं ? रंजन ढींगरा की इस प्रस्तावित उम्मीदवारी के पीछे चूँकि सुशील गुप्ता को देखा/पहचाना जा रहा है, इसलिए हर किसी के निशाने पर सुशील गुप्ता ही हैं । 
इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में सुशील गुप्ता का व्यवहार अचानक से पहेलीभरा इसलिए भी हो गया है, क्योंकि उन्हें तो अशोक गुप्ता की प्रस्तावित उम्मीदवारी के समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जाता रहा है; और अशोक गुप्ता अपनी प्रस्तावित उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने वास्ते ज्यादा गंभीरता और योजना के साथ तैयारी करते हुए सुने जा रहे हैं । ऐसे में हर किसी को यह सवाल परेशान कर रहा है कि सुशील गुप्ता ने अशोक गुप्ता की तैयारी में सहयोग करना छोड़ कर रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी को झंडा क्यों उठा लिया है - और अब जब उठा ही लिया है, तब फिर वह रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी के पक्ष में गंभीरता और योजना के साथ काम करते हुए 'नजर' क्यों नहीं आ रहे हैं ? उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3011 में और जोन 4 के नेताओं के बीच रंजन ढींगरा के चेलैंज का जिक्र पहली बार तब सुना गया था, जब डिस्ट्रिक्ट 3011 में ही दीपक कपूर के चेलैंज की चर्चा थी । दीपक कपूर को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए चुने गए अधिकृत उम्मीदवार भरत पांड्या के समर्थक खेमे के 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता है । माना/समझा गया था कि चूँकि डिस्ट्रिक्ट 3011 और उसके ' जुड़वाँ भाई' डिस्ट्रिक्ट 3012 में अशोक गुप्ता के लिए अच्छा समर्थन है, इसलिए उनके समर्थन-आधार को तोड़ने के लिए दीपक कपूर की उम्मीदवारी को लाया जा रहा है । इस तरकीब की काट के लिए रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी की बात सामने आई थी । अशोक गुप्ता के समर्थन-आधार को बचाने के लिए रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी को ढाल के रूप में प्रस्तुत करने की तैयारी को एक अच्छी और जबावी कार्रवाई के रूप में देखा/पहचाना गया था और इससे अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी को मनोवैज्ञानिक फायदा मिलता 'दिखा' था । इस जबावी कार्रवाई से भरत पांड्या खेमे को झटका लगा था और तब दीपक कपूर का चेलैंज करने का फैसला वापस ले लिया गया । ऐसी स्थिति में रंजन ढींगरा का चेलैंज करने का कार्यक्रम भी स्वतः ही स्थगित होना था - और वह हो भी गया था । लेकिन एक शाम अचानक पता चला कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में रंजन ढींगरा के क्लब ने उनके चेलैंज के पेपर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय में जमा करवा दिए हैं ।
इस अप्रत्याशित घटनाचक्र पर सभी का सिर चकराया । सुशील गुप्ता के नजदीकियों से उस समय हालाँकि यह सुनने को मिला कि सुशील गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट 3011 के गवर्नर रवि चौधरी पर भरोसा नहीं है और उन्हें आशंका है कि रवि चौधरी बाद में दीपक कपूर के चेलैंज के पेपर आए/मिले बता देने की धोखाधड़ी कर सकता है, इसलिए ऐहतियातन रंजन ढींगरा के चेलैंज के पेपर भी जमा करवा दिए जाने चाहिए । ऐसे में भी, जब यह बात रिकॉर्ड पर आ गई कि डिस्ट्रिक्ट 3011 में एक अकेले रंजन ढींगरा का चेलैंज हुआ है, और दीपक कपूर का चेलैंज धोखाधड़ी से भी आ सकने का रास्ता बंद हो चुका है - तब रंजन ढींगरा की प्रस्तावित उम्मीदवारी का नाटक बंद हो जाना चाहिए था, और उनके लिए कॉन्करेंस जुटाने की कार्रवाई नहीं होनी चाहिए थी । इससे रंजन ढींगरा का चेलैंज अपने आप निरस्त हो जाता और अशोक गुप्ता के लिए हालात पहले जैसे ही हो जाते । मजे की बात यह देखने में आ रही है कि रंजन ढींगरा के चेलैंज के मामले को न तो ठंडे बस्ते में डाला जा रहा है, और न इस मामले में कोई खास सक्रियता दिखाई जा रही है । इससे लग रहा है कि सुशील गुप्ता की मंशा रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी को बनाए रखने में भी है, लेकिन वह उसके लिए कुछ करने को लेकर भी उत्सुक नहीं हैं । चूँकि यह स्थिति अशोक गुप्ता को नुकसान पहुँचाने वाली है, इसलिए सुशील गुप्ता की राजनीतिक नीयत सवालों के घेरे में आ गई है । लोगों को हैरानी है कि अशोक गुप्ता के लिए बैटिंग करते करते सुशील गुप्ता आखिर भरत पांड्या के लिए बैटिंग कैसे और क्यों करने लगे ?
लोगों को लग रहा है कि सुशील गुप्ता यह सब नाटक इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद की लाइन में लगने के लिए कर रहे हैं । अशोक गुप्ता के समर्थक के रूप में उनका नाम तेजी से सामने आया तो उन्होंने इससे बचने के उपाय के रूप में रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी की बलि चढ़ाने की तैयारी कर ली है । लोगों को लग रहा है कि अशोक गुप्ता के समर्थक का टैग हटाने के लिए ही उन्होंने रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी को सचमुच ले आने का फैसला किया है; इससे रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट का 'चुनाव' करवाने वाले बड़े खिलाड़ियों के सामने उन्हें यह दिखाने और साबित करने में आसानी होगी कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में वह अशोक गुप्ता के साथ नहीं थे - यदि होते तो अपने ही डिस्ट्रिक्ट से वह किसी को उम्मीदवार क्यों बनने देते ? अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी को धोखा देकर, रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी की बलि चढ़ा कर और भरत पांड्या की उम्मीदवारी की मदद करने का नाटक जमा कर सुशील गुप्ता इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के लिए अपनी राह को आसान बना सकेंगे या नहीं - यह तो बाद में पता चलेगा, अभी लेकिन सुशील गुप्ता दूसरों के साथ साथ अपनों के निशाने पर भी हैं । उनके अपनों का ही कहना है कि दूसरों को खुश करने के नाम पर सुशील गुप्ता जिस तरह से अपनों को धोखा दे रहे हैं तथा उन्हें बलि का बकरा बना रहे हैं, इससे वह दूसरों के साथ साथ अपनों के बीच भी अपनी फजीहत करवा रहे हैं ।

Wednesday, November 22, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में रवि चौधरी के साथ 'दोस्ताना' दिखा दिखा कर विनय भाटिया क्या विनोद बंसल पर डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद छोड़ने के लिए दबाव बना रहे हैं ?

फरीदाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया और उनके खासमखास पप्पूजीत सिंह सरना ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संबंध में जिस तरह की सक्रियता और संलग्नता दिखाना शुरू किया है, उसने विनोद बंसल के लिए गंभीर समस्या और मुसीबत पैदा कर दी है - और उनके लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद बचाए रख पाना खासा चुनौतीपूर्ण हो गया है । मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी पिछले कुछ समय से विनोद बंसल के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं ही, जिसके तहत वह विनोद बंसल को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद से हटाने के लिए विनय भाटिया पर दबाव भी बना रहे हैं । विनोद बंसल को विनय भाटिया ने अपने गवर्नर-काल के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर नियुक्त किया हुआ है । दोनों के बीच के संबंधों से परिचित लोगों को लगता था कि विनय भाटिया का गवर्नर-काल विनोद बंसल ही चलायेंगे, लेकिन देखने में आ रहा है कि रवि चौधरी ने विनय भाटिया पर इस तरह से कब्जा जमा लिया है कि विनय भाटिया तो उनकी कठपुतली लगने/दिखने ही लगे हैं - विनोद बंसल के लिए भी 'इज्जत' बचाना मुश्किल हो रहा है । विनय भाटिया द्वारा आयोजित पेम टू के कुछेक आयोजनों में विनोद बंसल को अनुपस्थित पा कर इस बात को और हवा मिली है कि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद पर विनोद बंसल अब शायद ज्यादा दिन न रह पाएँ । पेम टू के कुछेक आयोजनों में अपनी उपस्थिति को लेकर तो विनोद बंसल ने लोगों को सफाई दी कि प्रोफेशनल तथा रोटरी इंटरनेशनल के कुछेक असाइनमेंट को पूरा करने के लिए उन्हें दिल्ली से बाहर रहना पड़ा और इसलिए वह उक्त आयोजनों में शामिल नहीं हो सके; साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि विनय भाटिया जिस क्षण उनसे डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद छोड़ने के लिए कहेंगे, वह जरा भी देर नहीं करेंगे और तुरंत ही पद छोड़ देंगे ।
विनय भाटिया के नजदीकियों का कहना है कि विनय भाटिया की विनोद बंसल से डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद छोड़ देने के लिए कहने की तो हिम्मत नहीं है - लेकिन वह लगातार ऐसी हरकतें कर रहे हैं और ऐसे हालात बना रहे हैं, जिससे कि विनोद बंसल खुद ही डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद छोड़ दें । दरअसल रवि चौधरी ने जिस तरह से विनोद बंसल के खिलाफ जहर उगलना जारी रखा हुआ है  और रोटरी क्लब दिल्ली राजधानी के पूर्व प्रेसीडेंट राजेश गुप्ता के एक प्रोजेक्ट को मिली करीब सवा चार करोड़ रुपए की ग्लोबल ग्रांट के साथ नाम जोड़ कर विनोद बंसल को जिस तरह से बदनाम करने की मुहिम छेड़ी हुई है - उसके बाद भी विनय भाटिया ने रवि चौधरी के साथ जिस तरह के घुलमिल वाले संबंध बना रखे हैं, उसे विनोद बंसल के खिलाफ रवि चौधरी और विनय भाटिया की मिलीजुली 'योजना' के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । विनय भाटिया को कुछेक लोगों ने समझाया भी कि रवि चौधरी के चक्कर में रहोगे तो उसके जैसी ही बदनामी को प्राप्त होगे, इसलिए उससे बच कर तथा उससे दूर रहो । विनय भाटिया को यह भी बताने/समझाने के प्रयास हुए हैं कि तुम्हारा कार्यकाल अभी शुरू हो रहा है, इसलिए इस समय तुम्हें थोड़ा संजीदगी से काम और 'व्यवहार' करना चाहिए । विनय भाटिया पर लेकिन इन सभी समझाइसों का कोई असर देखने को नहीं मिला है, और वह लगातार रवि चौधरी के ही रंग में रंगे देखे जाते रहे । इससे लोगों ने समझ लिया है कि विनय भाटिया के 'रंग-ढंग' भी रवि चौधरी जैसे ही हैं । हालाँकि इससे  भी बात ज्यादा बड़ी नहीं बनी; लेकिन बात 'बड़ी' तब बनी जब विनोद बंसल के खिलाफ रवि चौधरी द्वारा मोर्चा खोले जाने के बाद भी विनय भाटिया को रवि चौधरी के साथ हमेशा ही खुसर-पुसर करते हुए देखा जा रहा है । 
विनोद बंसल के लिए परेशानी का सबब बने रवि चौधरी और विनय भाटिया के 'दोस्ताने' के साथ-साथ रही सही कसर पप्पूजीत सिंह सरना की राजनीतिक हरकतों ने पूरी कर दी है । पप्पूजीत सिंह सरना ने फरीदाबाद में संजीव राय मेहरा की उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए जिस तरह से अभियान चलाया हुआ है, और अपने अभियान में कहीं कहीं जिस तरह से विनय भाटिया को भी शामिल किया हुआ है - उससे डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर होने के नाते विनोद बंसल के लिए मुसीबत पैदा हो गई है, क्योंकि इनकी हरकतों के लिए ठीकरा लोग विनोद बंसल के सिर पर ही फोड़ते हैं । लोगों को लगता है कि विनय भाटिया और पप्पूजीत सिंह सरना डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति के संदर्भ में जो कुछ भी कर रहे हैं, उसके लिए उन्हें विनोद बंसल ही प्रोत्साहित कर रहे हैं । इनकी हरकतों के चलते विनोद बंसल के लिए लोगों को यह कहना/समझाना मुश्किल हो रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में उनकी न तो कोई दिलचस्पी है और न कोई संलग्नता । उल्लेखनीय है कि चुनावी राजनीति में भूमिका निभाने के कारण रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड पप्पूजीत सिंह सरना को सीधे सीधे लताड़ चुका है; उस लताड़ के चलते पप्पूजीत सिंह सरना को डिस्ट्रिक्ट में कोई महत्त्वपूर्ण पद मिलना ही नहीं चाहिए था - लेकिन विनय भाटिया को डरा-धमका कर पप्पूजीत सिंह सरना ने सबसे महत्त्वपूर्ण पद तो हथिया ही लिया है - साथ ही अपनी हरकतों को भी जारी रखा हुआ है । विनोद बंसल जान/समझ रहे हैं कि विनय भाटिया और पप्पूजीत सिंह सरना की इन हरकतों की खबरें रोटरी के बड़े नेताओं और पदाधिकारियों तक पहुँच ही रही होंगी, और जो रोटरी के बड़े नेताओं व पदाधिकारियों के बीच उनकी बदनामी कर/करा रही होंगी । इसी से लोगों को लग रह है कि विनय भाटिया के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद लेकर विनोद बंसल ने वास्तव में मुसीबत मोल ले ली है । कुछेक लोगों को यह बात भी हालाँकि समझ में नहीं आ रही है कि विनोद बंसल आखिर रवि चौधरी, विनय भाटिया, पप्पूजीत सिंह सरना जैसे लोगों के सामने मजबूर क्यों बने हुए हैं ?

Tuesday, November 21, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में टीके रूबी के साथ-साथ राजा साबू पर भी मदद न करने का आरोप लगा कर मधुकर मल्होत्रा क्या सचमुच राजा साबू का 'आदमी' होने का टैग हटा कर रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर का पद हथियाने का जुगाड़ बैठा रहे हैं ?

चंडीगढ़ । रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद के लिए लॉबिइंग शुरू करके मधुकर मल्होत्रा दोहरी मुसीबत में फँस गए हैं । उन्हें यह देख/जान कर तगड़ा झटका लगा है कि उक्त पद पर उनकी नियुक्ति रुकवाने के लिए उनके डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर टीके रूबी तो अपने तरीके से प्रयास कर ही रहे हैं, उनके समर्थक समझे जाने वाले राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू ने भी उनकी नियुक्ति को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है । राजा साबू के रवैये को लेकर मधुकर मल्होत्रा को ही नहीं, डिस्ट्रिक्ट के बाहर के नेताओं को भी झटका लगा है । मधुकर मल्होत्रा न सिर्फ राजा साबू के ही क्लब के सदस्य हैं, बल्कि राजा साबू के बड़े खास भी हैं । मधुकर मल्होत्रा उनका बड़ा ध्यान भी रखते हैं । अभी हाल ही में अपने नाम पर ली गई मंगोलिया मेडीकल मिशन की ग्रांट को ठिकाने लगाने के लिए मधुकर मल्होत्रा ने मंगोलिया की जो यात्रा की थी, उसमें वह राजा साबू को भी वॉलिंटियर के रूप में ले गए थे । राजा साबू ने वहाँ बहुत आनंद लिया था और आनंद लेते मौकों की तस्वीरें भी खिंचवाई थीं । राजा साबू को आनंद लेते देख मधुकर मल्होत्रा को भी अच्छा लगा था, और उन्होंने उम्मीद की थी कि इसके बदले में राजा साबू भी मौका पड़ने पर उनके लिए कुछ करेंगे । लेकिन कमल सांघवी के इस्तीफा देने के बाद खाली हुए रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद पर नियुक्ति के मामले का अब जब मौका आया है, तब राजा साबू उनके लिए कुछ करते हुए नहीं दिख रहे हैं । मजे की बात यह है कि मधुकर मल्होत्रा उक्त पद मिलने या न मिलने को लेकर ज्यादा परेशान नहीं हैं, वह इस बात से ज्यादा परेशान हैं कि रोटरी में सभी को यह 'दिख' रहा है कि उक्त पद उन्हें दिलवाने के लिए राजा साबू कोई प्रयत्न नहीं कर रहे हैं । रोटरी नेताओं और रोटेरियंस के बीच राजा साबू का आदमी होने की पहचान रखने वाले मधुकर मल्होत्रा के लिए यह बात ज्यादा झटके वाली है ।
मधुकर मल्होत्रा को इससे भी बड़ा झटका डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी के रवैये से लगा है । यूँ तो पिछले दो-ढाई वर्षों से टीके रूबी के साथ उनका छत्तीस का रिश्ता चल रहा था, लेकिन हाल ही के दिनों में उन्होंने महसूस किया कि जैसे टीके रूबी दबाव में आ रहे हैं । दरअसल राजा साबू और उनके गिरोह के लोगों को टीके रूबी के साथ सीधी लड़ाई में जो हार/मात मिली, उससे सबक लेकर उन्होंने अपनी रणनीति बदली है - जिसके तहत तरह तरह के जाल बिछा कर उन्होंने टीके रूबी की घेराबंदी की है । इस घेराबंदी का टीके रूबी पर उन्हें असर पड़ता हुआ भी 'दिखा' है । राजा साबू एंड कंपनी ने टीके रूबी के प्रति दोहरा रवैया अपनाया है - एक तरफ तो रोटरी इंटरनेशनल में तथा रोटरी के बड़े नेताओं के बीच विभिन्न मामलों को लेकर उनकी शिकायत करके उनपर दबाव बनाने का प्रयास किया है, और दूसरी तरफ उनके साथ संबंध सुधारने की कोशिशें भी की हैं । संबंध सुधारने की कोशिशें हालाँकि पर्दे के पीछे ही चली हैं, लेकिन पर्दे के थोड़ा-बहुत हिलने/डुलने से उन कोशिशों की झलक बाहर भी लोगों को देखने को मिली है । टीके रूबी के रवैये में भी दोनों तरफ के लोगों को 'झुकने' वाला दृश्य नजर आया है । साथ ही लेकिन लोगों को यह भी 'देखने' को मिला है कि बात बनते बनते बिगड़ भी जा रही है - टीके रूबी और राजा साबू व उनके गिरोह के लोग पास आते हुए दिखते भी हैं, लेकिन वह फिर छिटक कर दूर हो जाते हैं । राजा साबू गिरोह के लोगों को ही लगता है और उनका कहना है कि टीके रूबी तो झगड़े को खत्म करना चाहते हैं, लेकिन उनके नजदीकी उन्हें भड़का देते हैं और फिर वह भड़क कर पीछे हट जाते हैं । टीके रूबी के साथ चल रही इस धूप-छाँव के बावजूद मधुकर मल्होत्रा को उम्मीद थी कि रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद के लिए की जा रही उनकी कोशिशों में टीके रूबी बाधा खड़ी नहीं करेंगे । लेकिन मधुकर मल्होत्रा को यह जान/देख कर तगड़ा झटका लगा है कि उक्त पद की दौड़ में उनके सामने रूकावटें खड़ी करने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी ने पहले से ही व्यवस्था कर या करवा दी थी ।
रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद के लिए मची पेलमपेल से परिचित लोगों का कहना हालाँकि यह भी है कि उक्त पद के लिए मधुकर मल्होत्रा होड़ में कहीं थे ही नहीं, और वह अपनी खीझ और अपना फ्रस्ट्रेशन निकालने के लिए नाहक ही राजा साबू और टीके रूबी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । असल में, उक्त पद के लिए आवेदन माँगने की कार्रवाई के सामने आने के बाद मधुकर मल्होत्रा को उम्मीद बँधी थी कि राजा साबू यदि दिलचस्पी लेंगे तो उक्त पद पर उनकी ताजपोशी हो सकती है । लेकिन देबाशीष मित्रा तथा विजय जालान जैसे लोगों को भी जब उक्त पद के लिए लाइन में खड़ा देखा गया, तब कई अन्य 'उम्मीदवारों' के साथ-साथ मधुकर मल्होत्रा का नाम स्वतः ही पीछे हट गया । देवाशीष मित्रा पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता के डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर हैं, और विजय जालान पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर अशोक महाजन तथा रोटरी फाउंडेशन के लिए हाल ही में चुने गए ट्रस्टी गुलाम वहनवती के डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर हैं । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार भरत पांड्या भी इसी डिस्ट्रिक्ट के हैं । रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद पर होने वाली नई नियुक्ति में गुलाम वहनवती की सिफारिश की खास अहमियत होगी - यह सोच कर विजय जालान इस पद पर अपनी नियुक्ति को लेकर बहुत आशावान हैं । उन्हें विश्वास है कि गुलाम वहनवती इस पद के लिए उनके नाम की ही सिफारिश करेंगे । उक्त पद के लिए उम्मीदवारों के बीच जिस तरह का घमासान लेकिन मच गया है, उसे देखते/समझते हुए लग रहा है कि किसी भी प्रभावी नेता के लिए 'अपने' आदमी को यह पद दिलवा पाना आसान नहीं होगा । राजा साबू, सुशील गुप्ता और मनोज देसाई जैसे नेता इस पद को लेकर छिड़ी लड़ाई से जिस तरह से बाहर हो गए हैं, उससे लग रहा है कि इस पर पर होने वाली नियुक्ति सभी को चौंकाने का काम ही करेगी । ऐसे में, कुछेक लोगों को यह भी लग रहा है कि राजा साबू पर मदद न करने का आरोप लगा कर मधुकर मल्होत्रा शायद राजा साबू का 'आदमी' होने का टैग हटाने तथा राजा साबू विरोधी नेताओं के बीच पैठ बनाने तथा उनका समर्थन जुटाने की तिकड़म लगा रहे हैं । उन्हें लग रहा है कि शायद इससे ही रीजनल रोटरी फाउंडेशन पद के मामले में उनका काम बन जाए ।

Sunday, November 19, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में डायबिटीज तथा मीसल्स रूबेला ग्रांट में हेराफेरी को लेकर हो रही बातों/चर्चाओं की गर्मागर्मी की आँच की पकड़ में विनय गर्ग के भी आने/फँसने से मामला खासा रोमांचक हो गया है

नई दिल्ली । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग को सत्ताधारी नेताओं, खासकर जेपी सिंह के नजदीक जाता/होता देख विनय गर्ग के समर्थक और साथी हैरान/परेशान हो रहे हैं और उन्हें लग रहा है कि विनय गर्ग को अब चूँकि सत्ताधारी नेताओं के साथ जाने/होने में फायदा दिख रहा है, तो वह वह अब अपने ही साथियों के साथ धोखाधड़ी करने पर उतर आए हैं । विनय गर्ग के खास रहे उनके ही डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर चमन लाल गुप्ता ने डायबिटीज को लेकर जागरूकता अभियान चलाने के लिए मल्टीपल के डिस्ट्रिक्ट्स को मिली ग्रांट लायंस कोऑर्डिनेशन कमेटी को ट्रांसफर करने के मुद्दे पर सवाल करते हुए विनय गर्ग को ईमेल लिखा, लेकिन विनय गर्ग ने उसका जबाव ही नहीं दिया । चमन लाल गुप्ता तथा उनके और विनय गर्ग के संगी-साथी विनय गर्ग के इस रवैये पर खासे भड़के हुए हैं । दरअसल मल्टीपल में विनय गर्ग के संगी-साथियों को लगता है कि लीडरशिप के नेता और पदाधिकारी डायबिटीज ग्रांट को मनमाने तरीके से खर्च करके उसमें घपलेबाजी करने की योजना बना रहे हैं । वह इस मुद्दे पर लीडरशिप के नेताओं को घेरना चाहते हैं; लेकिन वह यह देख कर हैरान/परेशान हैं कि उक्त मुद्दे पर मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के रूप में विनय गर्ग भी लीडरशिप के नेताओं व पदाधिकारियों से मिले हुए हैं । चमन लाल गुप्ता ने विनय गर्ग को संबोधित ईमेल पत्र में जो कहा, उसके पीछे उनकी मंशा लोगों को यही दिखाई दी कि विनय गर्ग इस मुद्दे पर लीडरशिप के नेताओं और पदाधिकारियों से बात करें और डायबिटीज के नाम पर आई/मिली ग्रांट पर डिस्ट्रिक्ट्स को उनका हक दिलवाएँ । विनय गर्ग लेकिन औपचारिक रूप से मामले पर चुप्पी साधे बैठे हैं, और अनौपचारिक बातचीत में अपनी असहायता का वास्ता देते हैं - इससे उनके ही संगी/साथियों को उनकी भूमिका पर संदेह होने लगा है । 
विनय गर्ग ने मीसल्स रूबेला ग्रांट के पैसे निकालने के लिए जेपी सिंह द्वारा प्रस्तुत किए गए चेक्स पर जिस फुर्ती से हस्ताक्षर किए हैं, उसे देख कर तो विनय गर्ग के संगी/साथी हक्के-बक्के ही रह गए हैं । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट और मल्टीपल की राजनीति में जेपी सिंह और विनय गर्ग एक दूसरे के विरोधी के रूप में आमने/सामने रहे हैं, और जेपी सिंह विरोधी राजनीति के समर्थन में होने के कारण ही विनय गर्ग को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन की कुर्सी मिली है - लेकिन अब विनय गर्ग जिस फुर्ती से जेपी सिंह द्वारा किए जा रहे मीसल्स रूबेला ग्रांट के खर्चों पर मोहर लगा रहे हैं, उसे देख/जान कर विनय गर्ग के संगी/साथियों के तोते उड़े हुए हैं । दरअसल मीसल्स रूबेला ग्रांट के खर्चों के हिसाब-किताब को लेकर विनय गर्ग के संगी-साथी जेपी सिंह की गर्दन दबोचने की तैयारी में हैं, लेकिन उन्हें अपनी तैयारी विनय गर्ग के रवैये से फेल होती नजर आ रही है । विनय गर्ग ने अपने संगी-साथियों से कहा भी कि जेपी सिंह ने उन्हें खर्चों का जो विवरण भेजा है, उसे वह झूठा या गलत आखिर किस आधार पर ठहराएँ और भुगतान के चेक्स पर हस्ताक्षर न करें ? विनय गर्ग का कहना है कि जेपी सिंह ने खर्चों के जो विवरण भेजे हैं, उनकी सत्यता जानने के लिए प्रयास करने का उनके पास समय नहीं है, और इसलिए पचड़े में पड़ने से बचने के लिए उन्होंने जेपी सिंह द्वारा दिए गए विवरण को सही ही मान लिया । यह सुन कर उनके संगी-साथियों का कहना रहा कि जेपी सिंह द्वारा दिए गए खर्चों के विवरण पर संदेह जताते हुए प्रक्रिया संबंधी और डिटेल्स तो वह माँग सकते थे, जिससे विवरण में की गई हेराफेरी पकड़ने या उसके संकेत पाने में आसानी होती - किंतु समयाभाव का वास्ता देकर विनय गर्ग उनके द्वारा दिए गए विवरण को आँख मूँद कर सच मानते गए और भुगतान के चेक्स पर हस्ताक्षर करते गए । इससे लायंस इंटरनेशनल द्वारा प्राप्त हुई मीसल्स रूबेला ग्रांट के मुद्दे पर जेपी सिंह को घेरने की विनय गर्ग के संगी-साथियों की तैयारी धरी की धरी रह गई ।
डायबिटीज ग्रांट के मुद्दे को लेकर आरोप लगाते एक बेनामी पत्र में तो ग्रांट की रकम हड़पने की तैयारी में विनय गर्ग की मिली भगत की बात कह दी गई है । चमन लाल गुप्ता के ईमेल पत्र में संकेत रूप से तथा बेनामी पत्र में खुले रूप से विनय गर्ग को जिस तरह से कठघरे में खड़ा करने की कोशिश हुई है, वह इस बात का सुबूत है कि विनय गर्ग की भूमिका उनके अपने ही लोगों के बीच संदेह के घेरे में आ गई है । मजे की बात यह है कि विनय गर्ग के लिए फिलहाल प्रातः स्मरणीय बने हुए सुशील अग्रवाल और तेजपाल खिल्लन भी डायबिटीज व मीसल्स रूबेला ग्रांट के मुद्दे पर सत्ताधारी नेताओं के साथ मिले हुए 'दिख' रहे हैं । सुशील अग्रवाल राजनीतिक कारणों से और तेजपाल खिल्लन व्यावसायिक कारणों से सत्ताधारी नेताओं के साथ 'कभी दूर, कभी पास' का खेल खेलें, यह बात तो लोगों को फिर भी समझ में आती है - लेकिन विनय गर्ग का सत्ताधारी नेताओं, और खासकर जेपी सिंह के साथ 'मिल जाने' की स्थितियों ने लोगों को हैरान/परेशान किया हुआ है । विनय गर्ग के विरोधी तो खुल कर कहने लगे हैं, और उनके कुछेक संगी-साथियों को भी शक होने लगा है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन 'बनने' में खर्च हुए पैसे की वसूली कर लेने के लिए ही तो कहीं विनय गर्ग ने जेपी सिंह से हाथ नहीं मिला लिया है ? डायबिटीज तथा मीसल्स रूबेला ग्रांट में हेराफेरी को लेकर मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के लोगों के बीच बातों/चर्चाओं की जो गर्मागर्मी है, उसकी आँच की पकड़ में विनय गर्ग के भी आते/फँसते जाने से मामला खासा रोमांचक हो गया है ।

Friday, November 17, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी का नामांकन भरने के बाद भी मुनीश गौड़ को कार्यक्रम करने देने तथा उसमें बढ़चढ़ कर शिरकत करने की रवि चौधरी की हरकत डॉक्टर सुब्रमणियन से क्लीन चिट पाने के लिए हुई डील का नतीजा है क्या ?

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी को जिस दिन वरिष्ठ रोटेरियन आभा झा चौधरी से बदतमीजी करने के मामले में निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियन की तरफ से क्लीन चिट मिली, उसी दिन डॉक्टर सुब्रमणियन के उम्मीदवार के रूप में देखे/पहचाने जा रहे मुनीश गौड़ के एक सरकारी कार्यक्रम में चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन करते हुए रवि चौधरी का उपस्थित होना मात्र एक संयोग है - या यह दोनों के बीच हुई किसी 'डील' का सुबूत है ? रवि चौधरी और मुनीश गौड़ कार्यक्रम के दौरान जहाँ बैठे, वहाँ लगे हुए बैकड्रॉप की इबारत बता रही है कि वह एक सरकारी कार्यक्रम था, जिसके आयोजक मुनीश गौड़ थे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रवि चौधरी के पास उसके तीन दिन पहले तक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए मुनीश गौड़ का नामांकन आ चुका था - इस नाते रवि चौधरी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की गरिमा तथा चुनावी आचार संहिता का ध्यान रखते हुए उक्त कार्यक्रम में शामिल नहीं होना चाहिए था; किंतु डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रवि चौधरी ने चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की गरिमा तथा रोटरी के नियमों के पालन को तिलांजली देते हुए साजिशों, तिकड़मों, बेईमानियों व बदतमीजियों को ही अपना ध्येय/लक्ष्य बनाया हुआ है - इसलिए रवि चौधरी ने जो किया, वह उनकी हरकतों के अनुरूप ही था । रवि चौधरी की इस हरकत ने लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के एक दूसरे उम्मीदवार संजीव राय मेहरा को तगड़ा झटका दिया है । संजीव राय मेहरा और उनके साथी उम्मीद कर रहे थे कि चुनावी लड़ाई में रवि चौधरी उनका सहयोग और समर्थन करेंगे, इसलिए रवि चौधरी को मुनीश गौड़ की तरफ झुका देख कर उन्हें लगा है कि रवि चौधरी ने उनके साथ धोखा कर दिया है । संजीव राय मेहरा के कुछेक नजदीकियों का हालाँकि यह भी कहना है कि रवि चौधरी अंततः मुनीश गौड़ के साथ भी ज्यादा देर नहीं टिकेंगे और धोखेबाजीभरा अपना असली वाला रंग दिखाते हुए उन्हें भी धोखा ही देंगे ।
संजीव राय मेहरा के नजदीकियों का ही विश्वास है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की गरिमा और चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन करते हुए रवि चौधरी ने मुनीश गौड़ के एक सरकारी कार्यक्रम में शामिल होना डॉक्टर सुब्रमणियन के साथ हुई एक डील के तहत ही स्वीकार किया होगा । वरिष्ठ रोटेरियन आभा झा चौधरी के साथ बदतमीजी करने के मामले में फँसी अपनी गर्दन को बाहर निकालने के लिए रवि चौधरी को डॉक्टर सुब्रमणियन की मदद की जरूरत थी ही, और इस जरूरत को पूरा करने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की गरिमा तथा चुनावी आचार संहिता को ठेंगे पर रखना रवि चौधरी के लिए कोई मुश्किल बात नहीं थी । मजे की बात यह देखने को मिली है कि रवि चौधरी की डिस्ट्रिक्ट टीम की प्रमुख पदाधिकारी के रूप में आभा झा चौधरी द्वारा वर्ल्ड पोलियो डे पर कार्यक्रम आयोजित करना और उसमें प्रेसीडेंट्स की भागीदारी को सुनिश्चित करना तो रवि चौधरी को नागवार गुजरा था, और इसके लिए उन्होंने आभा झा चौधरी के साथ बदतमीजी तक कर डाली थी; लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी का नामांकन प्रस्तुत कर देने के बाद मुनीश गौड़ द्वारा एक सरकारी कार्यक्रम की आड़ में रोटेरियंस को लेकर आयोजन करने, उसमें रोटरी क्लब्स को शामिल करने तथा प्रेसीडेंट्स को आमंत्रित करने पर रवि चौधरी को कोई आपत्ति नहीं हुई । चुनावी आचार संहिता के संबंध में रोटरी इंटरनेशनल के नियमों व दिशा-निर्देशों के पालन को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रवि चौधरी को यदि जरा सी भी समझ और तमीज होती, तो वह यह कार्यक्रम नहीं होने देते - लेकिन समझ व तमीज के मामले में लगातार फेल साबित होते रहे रवि चौधरी एक बार फिर फेल हो गए, और उन्होंने न सिर्फ यह कार्यक्रम होने दिया बल्कि बढ़चढ़ कर इसमें भाग भी लिया ।
चुनावी आचार संहिता के संबंध में रोटरी इंटरनेशनल के नियमों व दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करती तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की गरिमा को छिन्न-भिन्न करती रवि चौधरी की इस हरकत के पूरा होते ही कुछ घंटों के अंदर ही रवि चौधरी को चूँकि डॉक्टर सुब्रमणियन की तरफ से क्लीन चिट मिल गई - इससे लोगों को डॉक्टर सुब्रमणियन व रवि चौधरी के बीच डील होने का शक हुआ है । मुनीश गौड़ और डॉक्टर सुब्रमणियन एक ही क्लब के सदस्य हैं, तथा मुनीश गौड़ को डॉक्टर सुब्रमणियन के उम्मीदवार के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है । एक उम्मीदवार के रूप में मुनीश गौड़ की सक्रियता का कोई खास नोटिस अभी तक नहीं लिया जा सका था । लोगों को लगता है कि आभा झा चौधरी के साथ बदतमीजी करने के मामले में रवि चौधरी की गर्दन फँसी, और मामले की जाँच कमेटी का मुखिया पद डॉक्टर सुब्रमणियन को मिला - तो मुनीश गौड़ और डॉक्टर सुब्रमणियन को रवि चौधरी को अपने 'पक्ष' में लाने का मौका नजर आया । रवि चौधरी वैसे तो घोषणा करते रहते हैं कि उम्मीदवारों की गतिविधियों पर उनकी पूरी निगाह है, और कोई भी उम्मीदवार उन्हें यदि चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन करता हुआ दिखा तो वह उसका नामांकन रद्द कर देंगे - लेकिन मुनीश गौड़ के मामले में 14 नवंबर के कार्यक्रम में उन्हें चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन होता हुआ नहीं नजर आया; तो इसका कारण यही समझा जा रहा है कि उनकी डॉक्टर सुब्रमणियन के साथ यही डील हुई होगी कि वह मुनीश गौड़ के कार्यक्रम को न सिर्फ होने देंगे बल्कि उसमें बढ़चढ़ कर शिरकत भी करेंगे, और इसके बदले में डॉक्टर सुब्रमणियन उन्हें आभा झा चौधरी के साथ बदतमीजी करने के मामले में तमाम साक्ष्य होने के बावजूद क्लीन चिट दे देंगे । यह दोनों 'काम' एक ही दिन में कुछ घंटों के अंतराल पर जिस तरह संपन्न हुए, उससे भी डील होने की बात विश्वसनीय लगती है ।
डिस्ट्रिक्ट में कई लोगों के बीच सवाल उठा है कि डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ पूर्व गवर्नर और पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता वैसे तो डिस्ट्रिक्ट व रोटरी की छवि को लेकर बहुत चिंतित रहते हैं, लेकिन चुनावी आचार संहिता के खुल्लमखुल्ला उल्लंघन में भागीदार बनने की रवि चौधरी की हरकत पर उन्होंने क्या किया है ? इसका एक ही जबाव सुनने को मिल रहा है कि उन्होंने न कुछ किया है और न वह कुछ करेंगे; वह तो बस धृतराष्ट्र की तरह आँखों पर पट्टी बाँध कर रवि चौधरी को दुर्योधन और दुःशासन की भूमिका एक साथ निभाने का मौका देते रहेंगे ।
कार्यक्रम के बैकड्रॉप की तस्वीर :

Thursday, November 16, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में इंटरनेशनल बोर्ड सदस्यों के साथ डिनर में शामिल होने के खर्च के हिसाब-किताब में घपलेबाजी के आरोपों के बीच विनय गर्ग द्वारा सुशील अग्रवाल के लिए बनाई गई फजीहत की स्थिति मल्टीपल की राजनीति में क्या सचमुच एक बड़ी 'घटना' है ?

नई दिल्ली । लायंस इंटरनेशनल के बोर्ड सदस्यों के साथ डिनर में शामिल होने वाले लोगों से पैसे लेने या न लेने के मामले में असमंजस के चलते कोऑर्डीनेटर की भूमिका निभा रहे पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल को भारी फजीहत का सामना करना पड़ा - और उनकी इस फजीहत का ठीकरा मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग के सिर फोड़े जाने के चलते मामला और गर्मा गया है । मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में इस वर्ष एक अजब-गजब तमाशा यह चल रहा है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के पद पर तो विनय गर्ग हैं, लेकिन मल्टीपल की कमान तेजपाल खिल्लन और सुशील अग्रवाल के हाथों में ही देखी/पहचानी जाती है - जिस कारण कई बार ऐसे फैसले हो जाते हैं, जो विनय गर्ग की किरकिरी का कारण बनते हैं । लेकिन इंटरनेशनल बोर्ड सदस्यों के साथ डिनर कराने का मौका देने के लिए पैसे लेने या न लेने के मामले में विनय गर्ग ने अपने चेयरमैन होने की दबंगई दिखाई, तो बेचारे सुशील अग्रवाल को भारी फजीहत का सामना करना पड़ा । मल्टीपल काउंसिल के ही कुछेक पदाधिकारियों ने, जो डिनर का मुफ्त निमंत्रण पाने की कोशिशों के असफल हो जाने के कारण विनय गर्ग से खफा हुए हैं, सुशील अग्रवाल को विनय गर्ग के खिलाफ भड़काने का काम किया - लेकिन सुशील अग्रवाल भी चूँकि मौके की नजाकत समझ रहे हैं, इसलिए उन्होंने फिलहाल भड़काने वाली बातों को दरकिनार कर फजीहत का घूँट चुपचाप गटक जाने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी है ।
इंटरनेशनल बोर्ड सदस्यों के साथ डिनर में मल्टीपल के पदाधिकारियों और लोगों को शामिल करने को लेकर चूँकि कोई स्पष्ट नीति नहीं थी, इसलिए भी इस मामले में मनमानियाँ चलीं - और पैसों के घपले तक के आरोप चर्चा में हैं । उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले इंटरनेशनल डायरेक्टर विजय राजू की तरफ से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स तथा अन्य पदाधिकारियों को संदेश मिला था कि जो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अपने डिस्ट्रिक्ट में पाँच सौ या उससे अधिक नए सदस्य जोड़ चुका होगा, उसे इंटरनेशनल बोर्ड सदस्यों के साथ डिनर में शामिल होने का मौका मुफ्त में मिलेगा । मजे की बात यह रही कि उनके इस ऑफर को किसी ने भी गंभीरता से नहीं लिया । डिनर के एक दिन पहले तक यही स्पष्ट नहीं था कि किस से पैसे लेने हैं और किस से नहीं लेने हैं । इसी असमंजसता के चलते दिल्ली में आयोजित हुई बोर्ड मीटिंग की तैयारी करने/करवाने में दिन/रात एक करने वाले डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के पूर्व गवर्नर दीपक तलवार से पैसे देने को कह दिया गया । तैयारी में हाथ बँटाने वाले डिस्टिक्ट 321 ए थ्री के ही एक अन्य पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन से भी जब पैसे देने के लिए कहा गया तो वह बुरी तरह नाराज हो गए, और उन्होंने यह कहते हुए बबाल काटा कि यहाँ काम भी करो, और रोटी खाने के लिए पैसे भी दो - तब उनके पैसे माफ कर दिए गए । उनके डिनर के पैसे माफ करने का फैसला हुआ, तब फिर दीपक तलवार से भी पैसे नहीं लेने का फैसला हुआ । इस तरह राकेश त्रेहन के बबाल से दीपक तलवार को भी फायदा हो गया । यह हालाँकि किसी की भी समझ में नहीं आया कि इनके डिनर का पैसा माफ करने का फैसला किस स्तर की अथॉरिटी ने किया और इनका पैसा आखिर किस 'अकाउंट' में एडजस्ट हुआ ?
इससे भी बड़ा तमाशा डिस्ट्रिक्ट्स के तीनों/तीनों पदाधिकारी गवर्नर्स के मामले में हुआ । कार्यक्रम के कोऑर्डीनेटर के रूप में सुशील अग्रवाल ने कार्यक्रम से दो दिन पहले मेल लिख कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को बाकायदा सूचना दी कि जो भी गवर्नर डिनर में शामिल होना चाहता है, वह साढ़े नौ हजार रुपये देकर अपना रजिस्ट्रेशन करवा ले । जिस किसी ने सुशील अग्रवाल से यह कंफर्म करने की कोशिश भी की कि क्या डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को भी पैसे देने होंगे, तो उसे यही सुनने को मिला कि हाँ, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को भी पैसे देने होंगे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने लेकिन जब विनय गर्ग से इस बारे में बात की, तो विनय गर्ग का कहना रहा कि अरे आप सुशील अग्रवाल की बात छोड़ो, उनके चक्कर में न पड़ो - मैं आपको पास देता/दिलवाता हूँ । विनय गर्ग की पहल पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तथा फर्स्ट व सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को उनके जीवन साथी के साथ डिनर शामिल होने का मौका मुफ्त में मिला । ऐसे में, लोगों के बीच सवाल उठा कि विनय गर्ग की पहल से यदि डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों को इंटरनेशनल बोर्ड सदस्यों के साथ डिनर में शामिल होने का मौका मुफ्त में मिल सकता था, तो फिर सुशील अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से प्रति व्यक्ति साढ़े नौ हजार रुपये देने/जमा कराने के लिए दबाव क्यों बना रहे थे ? गौर करने वाला तथ्य यह है कि इंटरनेशनल बोर्ड सदस्यों के 13 नवंबर के डिनर को लायंस कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इंडिया एसोसिएशन (एलसीसीआईए) द्वारा स्पॉन्सर करने का तो जिक्र मिलता है, लेकिन इस बात का कहीं कोई जिक्र नहीं है कि बाकी लोगों के डिनर का खर्च कौन उठायेगा । यह अनुमान की बात रही कि साढ़े नौ हजार रुपये का रजिस्ट्रेशन इसीलिए रखा गया है कि डिनर में शामिल होने वाले लोग अपना खर्चा स्वयं करेंगे । यहाँ तक कोई समस्या नहीं हुई । समस्या तब शुरू हुई जब अलग अलग कारणों से तथा अलग अलग परिस्थितियों के चलते कई लोगों को इंटरनेशन बोर्ड सदस्यों के साथ मुफ्त में डिनर करने का मौका मिला । सवाल यह उठा कि इनका खर्चा कहाँ से मिला, और जिन लोगों से पैसे लिए गए - वह किस अकाउंट में गए ?
यह सामान्य से सवाल इसलिए बबाल बनते नजर आ रहे हैं, क्योंकि इनका जबाव किसी से नहीं मिल पा रहा है । पैसे भी अलग अलग पदाधिकारियों ने लिए - किसी ने केएम गोयल को पैसे दिए, किसी ने सुशील अग्रवाल को तथा किसी ने विनय गर्ग को पैसे देकर डिनर का टिकट लिया । एक डिनर की कीमत साढ़े नौ हजार रुपये रखे जाने को लेकर भी कई लोगों की आपत्ति रही और उन्होंने इसे काफी महँगा आँका/बताया । इससे भी हिसाब/किताब में घपलेबाजी होने के आरोप लगे हैं । हिसाब-किताब में घपलेबाजी के आरोपों के बीच मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन होने का रुतबा दिखा/जता कर विनय गर्ग ने पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल के लिए जो फजीहत वाली स्थिति बनाई है - उसे मल्टीपल की राजनीति में एक बड़ी 'घटना' के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।

Wednesday, November 15, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल का रीजनल रोटरी फाउंडेशन का कोऑर्डीनेटर बनना क्या सचमुच खटाई में पड़ गया है, या यह सुशील गुप्ता को झटका देने के लिए रचा गया सिर्फ एक तमाशा है ?

नई दिल्ली । रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद के लिए आवेदन माँगने की रोटरी इंटरनेशनल की कार्रवाई और इस कार्रवाई के चलते करीब बीस लोगों के आवेदनों के आ जाने से डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल को तगड़ा झटका लगा है, और इस पद पर उनकी नियुक्ति को लेकर लगाई जा रही उम्मीदें ध्वस्त होती हुई दिख रही हैं । रोटरी के बड़े नेताओं के बीच इस स्थिति को उनके पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर्स सुशील गुप्ता और शेखर मेहता के नजदीक होने के दंड के रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है । दरअसल इन दोनों पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर्स के साथ नजदीकी के चलते विनोद बंसल की रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद पर नियुक्ति पक्की समझी जा रही थी, पर अब लग रहा है कि इन्हीं दोनों की वजह से उक्त पद पर विनोद बंसल की नियुक्ति को लेकर खतरा खड़ा हो गया है । विनोद बंसल के लिए पैदा हुआ यह खतरा सुशील गुप्ता के लिए भी बड़ी चुनौती के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । दरअसल विनोद बंसल को आजकल सुशील गुप्ता की 'आँख के तारे' के रूप में देखा/पहचाना जाता है - ऐसे में विनोद बंसल की एक पद पर स्वाभाविक रूप से होने जा रही नियुक्ति को रोकने के लिए नियुक्ति-प्रक्रिया का पैटर्न ही बदल दिया जाए, तो यह विनोद बंसल के साथ-साथ उनके सबसे बड़े समर्थक के लिए भी झटके वाली बात तो है ही । कुछेक लोगों को हालाँकि यह भी लग रहा है कि उक्त पद पर नियुक्ति अंततः तो विनोद बंसल की ही होगी; लोगों से इस पद के लिए आवेदन माँगने का नाटक शेखर मेहता द्वारा रचा गया है - और इसके पीछे कुछ उनके कुछ गहरे राजनीतिक उद्देश्य हैं । इस नाटक के जरिए शेखर मेहता ने वास्तव में एक तीर से कई शिकार कर लेने की व्यूह रचना की है ।
रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर का पद अभी कुछ दिन पहले तक कमल सांघवी के पास था, जो जोन 6 ए में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार के रूप में चुने जाने पर उन्होंने हाल ही में छोड़ दिया है । विनोद बंसल चूँकि उनके साथ असिस्टेंट रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर के पद पर रहे हैं, इसलिए माना/समझा जा रहा था कि कमल सांघवी द्वारा खाली की गई कुर्सी उन्हें स्वतः ही मिल जाएगी । लोग तो कमल सांघवी द्वारा खाली की गई कुर्सी पर विनोद बंसल की ताजपोशी होने का इंतजार ही कर रहे थे - लेकिन मामले में अचानक से ट्विस्ट आ गया है । रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद के लिए आवेदन माँगने की कार्रवाई वास्तव में एक अप्रत्याशित कार्रवाई है । रोटरी में रिसोर्स ग्रुप के पदों के लिए आवेदन माँगने का रिवाज नहीं है, यहाँ तो लॉबिइंग से ही पद मिलते हैं । विनोद बंसल के लिए लॉबिइंग भी तगड़ी ही देखी/समझी जा रही थी, लेकिन जिस अचानक तरीके से रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद के लिए आवेदन माँगने का फरमान आया - उक्त पद पर विनोद बंसल की ताजपोशी होने की सारी तैयारी धरी रह गई ।
रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद पर रहते हुए कमल सांघवी के इंटरनेशनल डायरेक्टर 'बनने' से इस पद की महत्ता अचानक से बढ़ गई है । इस महत्ता को बढ़ाने में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए विनोद बंसल की संभावित उम्मीदवारी की चर्चा ने भी बड़ा योगदान दिया है । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए जोन 4 में होने वाले अगले चुनाव में विनोद बंसल की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने की चर्चा है - इस चर्चा की पृष्ठभूमि में उन्हें रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर की कुर्सी मिलने का एक अलग और खास महत्त्व स्वाभाविक रूप से हो गया । ऐसे में उनके विरोधियों का सक्रिय होना भी स्वाभाविक है । कुछेक लोगों को लगता है कि विरोधियों के साथ-साथ समर्थकों ने भी विनोद बंसल की राह को मुश्किल बनाने का काम किया है, और इसलिए उनकी राह सचमुच में मुश्किल हो गई है । यह जो अचानक से झमेला पैदा हो गया है, उसके लिए कुछेक लोग शेखर मेहता को भी जिम्मेदार ठहराते हैं । शेखर मेहता को यूँ तो विनोद बंसल के समर्थक के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है, लेकिन सुशील गुप्ता के साथ विनोद बंसल की बढ़ती नजदीकी को देख/जान कर शेखर मेहता उनके प्रति कुछ अनमने से हुए प्रतीत दिखे हैं । कुछेक अन्य लोगों को हालाँकि यह बात समझ में नहीं आती है क्योंकि शेखर मेहता को सुशील गुप्ता के खेमे के ही सदस्य के रूप में देखा जाता है; लेकिन 'इस' बात को कहने वाले लोगों का तर्क है कि एक खेमे में भी तो कई कई उपखेमे होते ही हैं और एक खेमे के लोगों के बीच टाँग-खिंचाई होती ही है । दरअसल चुनावी राजनीति के समीकरणों का ताना-बाना कुछ तो यूँ भी उलझा हुआ होता ही है, जिसे चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों के बीच की होड़ और उलझा देती है - जिसके चलते कई बार बड़े आश्चर्यकारी तमाशे देखने को मिलते हैं । रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर की नई नियुक्ति को लेकर शुरू हुआ तमाशा एक ऐसा ही तमाशा है । उम्मीद की जा रही है कि इस तमाशे के अभी और कुछ रंग देखने को मिलेंगे ।

Tuesday, November 14, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी द्वारा की गई बदतमीजी के मामले में जाँच अधिकारी के रूप में निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियन ने तथ्यों की जैसी जो अनदेखी की है, उसने जाँच के काम को पूरी तरह मजाक बनाते हुए मामले को बिगाड़ और दिया है

नई दिल्ली । वरिष्ठ रोटेरियन आभा झा चौधरी के साथ की गई बदतमीजी के मामले में रोटरी इंटरनेशनल द्वारा गठित की गई जाँच कमेटी का जिम्मा डॉक्टर सुब्रमणियन को मिलने से आरोपी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी ने जिस तरह से राहत महसूस की थी, वह सचमुच उन्हें मिल भी गई है । रवि चौधरी की उम्मीदों के अनुसार, डॉक्टर सुब्रमणियन ने अपनी जाँच में रवि चौधरी को तो क्लीन चिट दे ही दी है, उलटे आभा झा चौधरी को ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की गरिमा को गिराने का जिम्मेदार ठहरा दिया है । डॉक्टर सुब्रमणियन के इस फैसले से उन रोटेरियंस को गहरी निराशा हुई है जो ईमानदारी से और जी-जान लगाकर रोटरी का काम करते हैं और उसके बाद भी बड़े पदाधिकारियों की प्रताड़ना का शिकार होते हैं - और फिर जिन्हें न्याय भी नहीं मिलता है; तथा अपने साथ हुए दुर्व्यवहार की शिकायत करने के लिए दोषी और ठहरा दिए जाते हैं। इस प्रकरण ने असित मित्तल कांड की याद को पुनर्जीवित कर दिया है । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर असित मित्तल ने अपनी प्रोफेशनल लूट-खसोट में रोटेरियंस को भी शिकार बनाया था; रोटरी के नेताओं और पदाधिकारियों के बीच कई बार बात हुई थी कि असित मित्तल की हरकतें रोटरी को बदनाम करने वाली हैं, इसलिए रोटरी में उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए - किंतु रोटरी के तुर्रमखाँ समझे जाने वाले नेता कार्रवाई करने का साहस नहीं कर सके और आँखों पर पट्टी बाँधे धृतराष्ट्र बने रहे । लेकिन पाप का घड़ा तो फूटता ही है - असित मित्तल की हरकतों के प्रति रोटरी के नेताओं ने भले ही आँखें बंद कर ली हों, लेकिन देश के कानून ने असित मित्तल को जेल के सींखचों के पीछे पहुँचा दिया । रोटरी के लिए शर्मनाक स्थिति यह बनी कि एक 'अपराधी' को उसने पालने/पोसने और बचाने का काम किया - जो अब अपनी करतूतों के कारण जेल में बंद होने के चलते डिस्ट्रिक्ट के साथ-साथ रोटरी की पहचान, गरिमा और प्रतिष्ठा को कलंकित करने का कारण बन रहा है ।
मजेदार संयोग है कि रवि चौधरी उसी असित मित्तल के बड़े नजदीकी यार रहे हैं । असित मित्तल के गवर्नर-काल में ही रवि चौधरी पहली बार उम्मीदवार बने थे, और रवि चौधरी को चुनवाने के लिए असित मित्तल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की सारी मर्यादा को तार-तार कर दिया था - और इस प्रक्रिया में प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार संजय खन्ना को तरह तरह से नीचा दिखाने और अपमानित करने की हद तक गए थे । तमाम तिकड़मों के बावजूद रवि चौधरी उस वर्ष लेकिन चुनाव नहीं जीत पाए थे, और संजय खन्ना अच्छे बहुमत से चुनाव जीते थे । यह तथ्य क्या यह संकेत दे रहा है कि असित मित्तल के मामले में रोटरी पदाधिकारी जिस तरह से न्याय करने और अपनी गरिमा व प्रतिष्ठा बचाने में असफल रहे थे, ठीक वही कहानी अब रवि चौधरी के मामले में दोहराई जा रही है । असित मित्तल के मामले में न्याय की गुहार लगाने वालों को जिस तरह से देश के कानून से मदद मिली थी, रवि चौधरी के मामले में भी न्याय अब क्या देश का कानून ही करेगा ? आभा झा चौधरी की तरफ से संकेत मिले हैं कि रोटरी में न्याय न मिलने की सूरत में वह देश के कानून से न्याय पाने की कोशिश करेंगी ।
आभा झा चौधरी की शिकायत पर रोटरी इंटरनेशनल ने न्याय करने के नाम पर जो तमाशा किया, वह इस बात का सुबूत भी है कि इस मामले में रोटरी के जिन भी पदाधिकारियों ने फैसला किया/लिया - उनकी मंशा न्याय करने की थी ही नहीं । न्याय करने के 'काम' की पहली जरूरत यही समझी/पहचानी जाती है कि न्याय हो - और न्याय होता हुआ 'दिखे' भी । आभा झा चौधरी की शिकायत की जाँच करवाने के मामले में पहला घपला तो यही हुआ कि जाँच की जिम्मेदारी रवि चौधरी से ठीक पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहे डॉक्टर सुब्रमणियन को सौंप दी गई । इस फैसले पर लोगों को हैरानी भी हुई - क्योंकि न्याय करते हुए 'दिखने' के लिए जरूरी था कि जाँच का काम किसी दूसरे डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर को सौंपा जाता । और यदि घटना वाले डिस्ट्रिक्ट में ही किसी को जिम्मेदारी सौंपनी थी, तो किसी वरिष्ठ पूर्व गवर्नर को सौंपनी चाहिए थी । डॉक्टर सुब्रमणियन और रवि चौधरी पिछले तीन वर्षों से डिस्ट्रिक्ट की प्रशासनिक व्यवस्था साथ-साथ देखते/सँभालते रहे हैं; ऐसे में रवि चौधरी पर लगे आरोपों के मामले में डॉक्टर सुब्रमणियन से निष्पक्ष जाँच की उम्मीद कैसे की जा सकती है ? इससे भी बड़े झमेले का कारण यह रहा कि रवि चौधरी के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर रहते हुए जाँच की गई । जाँच न्यायपूर्ण और पक्षपातरहित होते हुए 'दिखे' - इसके लिए जरूरी था कि जाँच की कार्रवाई होने तक की अवधि के लिए रवि चौधरी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से हटाया जाता । आभा झा चौधरी ने इसकी माँग भी की थी, लेकिन उनकी माँग को यह कहते हुए अनसुना कर दिया गया कि रोटरी में इस तरह की व्यवस्था नहीं है । अब होने या न होने की बात तो यह है कि रोटरी में तो यह व्यवस्था भी नहीं है कि कोई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अपनी ही टीम की वरिष्ठ महिला पदाधिकारी के साथ बदतमीजी करे । इसलिए यदि ऐसी स्थिति बनती है तो उससे निपटने के लिए भी तो रोटरी को व्यवस्था करना पड़ेगी ।
जाँच अधिकारी के रूप में निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियन ने तथ्यों की जैसी जो अनदेखी की है, उसने रवि चौधरी द्वारा की गई बदतमीजी की शिकायत की जाँच को पूरी तरह मजाक बना दिया है । रवि चौधरी को उन्होंने जिस एकतरफा तरीके से क्लीन चिट दे दी है, उससे साबित हुआ है कि जाँच अधिकारी के रूप में उन्होंने न तो घटना की परिस्थिति पर गौर किया है और न ही मौके पर मौजूद लोगों की गवाही का संज्ञान लिया है । कुछ लोगों को उम्मीद थी कि रवि चौधरी पर बदतमीजी करने के आरोप की जाँच के जरिए/बहाने दोनों पक्षों के सम्मान को बनाये रखते हुए मामले को वास्तव में निपटाने की कोशिश की जाएगी - लेकिन जिस एकतरफा तरीके से रवि चौधरी को क्लीन चिट देने तथा उलटे आभा झा चौधरी पर ही आरोप मढ़ देने का काम किया गया है - उससे मामला हल होने की बजाये और बिगड़ता नजर आ रहा है ।

Sunday, November 12, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में जेपी सिंह से 'मनचाही' मदद न मिलती देख अपनी उम्मीदवारी के प्रति ढीले पड़ते मदन बत्रा ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए रमन गुप्ता की राह को आसान बनाने का काम किया

सोनीपत । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए करीब दो सप्ताह पहले मदन बत्रा की उम्मीदवारी प्रस्तुत होने के साथ जेपी सिंह खेमे के लोगों में जो जोश पैदा हुआ था, मदन बत्रा का रवैया देखते हुए वह सिर्फ दो सप्ताह में ही न सिर्फ ठंडा पड़ गया है - बल्कि खेमे के लोगों के बीच कलह भी पैदा कर गया है । जेपी सिंह खेमे के लोगों ने अभी से मानना/कहना शुरू कर दिया है कि मदन बत्रा को उम्मीदवार बना कर खेमे के नेताओं ने अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली है, और मदन बत्रा की उम्मीदवारी सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में खेमे के लिए आत्मघाती साबित होगी । अलग अलग क्लब्स व शहरों में जेपी सिंह खेमे के जो लोग हैं, पिछले दो सप्ताह में उनके साथ घटे/हुए अनुभवों के आधार पर खेमे के नेताओं ने पाया कि मदन बत्रा ने न तो अपनी खुद की तरफ से सक्रिय होने को लेकर दिलचस्पी दिखाई है और न ही किसी की सलाह पर अमल करने का प्रयास किया - हर किसी को वह यही कहते हुए टरका रहे हैं कि जेपी सिंह से बात करो । जिन लोगों ने जेपी सिंह से बात की, उनका कहना है कि जेपी सिंह ने भी यह कहते हुए बात को टाला कि - मैं देखता हूँ । मदन बत्रा अपनी उम्मीदवारी के अभियान को चलाने के मामले में अपने ही क्लब के सदस्य और पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल सेठ तक को विश्वास में नहीं ले रहे हैं । जेपी सिंह की तरफ से उन्हें सलाह मिली थी कि वह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गुरचरण सिंह भोला के साथ तालमेल बनाएँ और काम करें, मदन बत्रा लेकिन गुरचरण सिंह भोला को भी तवज्जो देते हुए नहीं दिख रहे हैं ।
मदन बत्रा के नजदीकियों के अनुसार, मदन बत्रा चाहते हैं कि उनकी उम्मीदवारी के अभियान की कमान जेपी सिंह खुद सँभाले । जेपी सिंह लेकिन अभी फिलहाल किसी ऐसे झमेले में नहीं फँसना चाहते हैं, जिसके चलते उनका विनय गर्ग एंड टीम से टकराव पैदा हो और बढ़े । जेपी सिंह को अभी अपनी इंटरनेशनल डायरेक्टर(ई) पर मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट की पक्की वाली मोहर लगवानी है, और मीसल्स रूबेला के नाम पर चलाए जा रहे कार्यक्रमों के खर्चों के लिए रकम जुटाने वाले चेक्स पर मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के रूप में विनय गर्ग के बार-बार हस्ताक्षर करवाते रहने हैं । इन दोनों कामों में कोई विवाद और या अड़चन पैदा न हो - इसलिए जेपी सिंह अभी डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के पचड़े में पड़ने से बचना चाहते हैं, और इसलिए अभी वह मदन बत्रा की उम्मीदवारी के अभियान की बागडोर को सीधे सीधे पकड़ने से बच रहे हैं । जेपी सिंह के इस 'बचने' को मदन बत्रा शक की निगाह से देख रहे हैं, और आशंकित बने हुए हैं कि कहीं जेपी सिंह पिछली बार की तरह इस बार भी तो उन्हें इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं । दूसरे लोगों की तरह मदन बत्रा भी जानते हैं कि इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के लिए जेपी सिंह की पहली पसंद हरीश वाधवा थे, जो काफी हद तक अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए तैयार भी हो गए थे - लेकिन ऐन मौके पर फिर वह पीछे हट गए थे; दरअसल उनके कुछेक खास राजनीतिक दोस्तों/समर्थकों ने उन्हें साफ कह/बता दिया था कि वह इस वर्ष रमन गुप्ता की उम्मीदवारी को ही समर्थन देंगे, इसलिए हरीश वाधवा ने फिर उम्मीदवारी प्रस्तुत करने का विचार त्याग दिया - और तब जेपी सिंह ने मदन बत्रा को उम्मीदवार बनने के लिए राजी किया । जाहिर है कि मदन बत्रा, उम्मीदवारी के मामले में जेपी सिंह की सेकेंड के साथ-साथ मजबूरी की भी च्वाइस हैं । यह जानते/समझते हुए भी मदन बत्रा उम्मीदवार तो बन गए, लेकिन वह जेपी सिंह की ही निगरानी में अपना अभियान चलाना चाहते हैं - उन्हें लगता है कि इस तरीके से वह जेपी सिंह पर निगरानी रख सकेंगे, और 'इस्तेमाल' होने से बचे रहेंगे ।
मदन बत्रा जिस तरीके से दूसरे प्रमुख नेताओं और लोगों को इग्नोर कर रहे हैं, उससे उन्होंने अपने ही खेमे के लोगों को अपने से दूर कर लिया है । लोगों को मदन बत्रा का सबसे बुरा सुलूक तो सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गुरचरण सिंह भोला के साथ देखने/सुनने को मिला है । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते गुरचरण सिंह भोला उनके प्रभावशाली मददगार हो सकते थे, जेपी सिंह ने भी उन्हें गुरचरण सिंह भोला के साथ मिल कर काम करने का सुझाव दिया था - मदन बत्रा लेकिन इस अकड़ में हैं कि वह लायनिज्म में गुरचरण सिंह भोला से चूँकि सीनियर हैं, इसलिए गुरचरण सिंह भोला को खुद उनकी मदद करने के लिए उनके पास आना चाहिए । लोगों का कहना लेकिन यह है कि मदन बत्रा लायनिज्म में भले ही गुरचरण सिंह भोला से सीनियर हों, लेकिन उन्हें अब यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते लायनिज्म में गुरचरण सिंह भोला की हैसियत अब उनसे बड़ी हो गई है - और इसके अलावा अब जरूरत मदन बत्रा की है, प्यासे वह हैं - प्यासे को ही कुएँ के पास जाना होता है, कुआँ प्यासे के पास नहीं जाता है; इसलिए मदन बत्रा को अपनी अकड़ छोड़ कर मदद लेने के लिए जूनियर्स के पास जाना ही होगा । मदन बत्रा के इसी तरह के रवैये को देखते हुए उनके अपने खेमे के नेताओं तथा अन्य लोगों ने ही कहना शुरू कर दिया है कि इस तरह के बर्ताव के चलते मदन बत्रा के लिए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए इस वर्ष होने वाले चुनाव में सत्ता खेमे के उम्मीदवार के रूप में रमन गुप्ता का मुकाबला कर पाना मुश्किल ही होगा ।
मदन बत्रा अपने रवैये और - अपने रवैये पर जाहिर हो रही अपने ही खेमे के लोगों की प्रतिक्रिया के चलते सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की इस वर्ष की चुनावी दौड़ में शामिल होने के साथ ही उससे बाहर होते हुए नजर आ रहे हैं । उनके अपने खेमे के लोगों का ही मानना और कहना है कि इस वर्ष के चुनाव को लेकर सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के सत्ता खेमे के उम्मीदवार के रूप में रमन गुप्ता ने जिस तरह की तैयारी दिखाई है, और अपनी तैयारी से लोगों के बीच जैसी पैठ बनाई है - उसका मुकाबला कर पाना मदन बत्रा के बस की बात नहीं है । मदन बत्रा के राजनीतिक उस्ताद जेपी सिंह अपने चक्करों में फँसे हैं, और ऐसे में वह मदन बत्रा के लिए उस तरह से कुछ नहीं कर सकते हैं - जिस तरह से मदन बत्रा सोचते और चाहते हैं । यह बात शायद मदन बत्रा ने भी समझ ली है, और इसीलिए वह घोषणा करने के बावजूद अपनी उम्मीदवारी को लेकर आशंकित हैं और कुछ करने से बच रहे हैं । यह स्थिति रमन गुप्ता की राह को और आसान बनाती नजर आ रही है ।

Saturday, November 11, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की एक्जामिनेशन कमेटी के सदस्य के रूप में राजेश शर्मा की चार्टर्ड एकाउंटेंट्स परीक्षाओं को मजाक बना देने की हरकत ने इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे और वाइस प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता की कार्य व निर्णय क्षमता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य राजेश शर्मा द्वारा की गई एक हरकत के पकड़ में आने से अभी भी चल रही चार्टर्ड एकाउंटेंट्स परीक्षा की पूरी प्रक्रिया संदेह के घेरे में आ गई है, और यह साबित हो गया है कि परीक्षाओं को ईमानदारी से करवा सकने की इंस्टीट्यूट की व्यवस्था को 'बेईमान' बने रखवालों ने ही छिन्न-भिन्न कर दिया है । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच पिछले कुछ समय से चर्चा तो गर्म थी कि नबंवर/दिसंबर में हो रही परीक्षाओं में राजेश शर्मा ने कई परीक्षा केंद्रों पर अपने चहेतों को ऑब्जर्वर के रूप में नियुक्ति दिलवाई है, लेकिन इस चर्चा को सिर्फ एक आरोप के रूप में देखा जा रहा था । चूँकि प्रोफेशन के लोगों के बीच राजेश शर्मा की खासी बदनामी है, और प्रोफेशन के लोगों के बीच उन्हें एक 'दलाल' के रूप में देखा/पहचाना जाता है; पिछले ही दिनों दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में उनकी उपस्थिति में 'राजेश शर्मा चोर है' जैसे नारे गूँजे थे - इसलिए उक्त चर्चा पर किसी को हैरानी नहीं हुई थी, लेकिन उक्त आरोप को पुष्ट करने के लिए किसी के पास चूँकि कोई ठोस सुबूत नहीं था, जिसके कारण उक्त आरोप सिर्फ चर्चा का हिस्सा ही बना रहा । लेकिन 'रचनात्मक संकल्प' को इस बात का जो ठोस सुबूत मिला है, वह चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की परीक्षा-व्यवस्था में बेईमानीभरी सेंध लगाने की राजेश शर्मा की हरकत को सामने लाता है । सुबूत के रूप में सामने आए राजेश शर्मा द्वारा कुछेक खास खास लोगों को किए गए वाट्स-ऐप संदेश से साबित है कि राजेश शर्मा ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स परीक्षा की व्यवस्था को जैसे हाई-जैक कर लिया है और पूरी व्यवस्था को वह अपने बेईमानीभरे तरीके से संचालित कर रहे हैं ।
राजेश शर्मा ने अपने व्यवहार से 'रखवाले ही चोर बने' मुहावरे को चरितार्थ किया है । दरअसल राजेश शर्मा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की उस एक्जामिनेशन कमेटी के ही सदस्य हैं, जिस पर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स परीक्षाओं को ईमानदारी से करवाने की जिम्मेदारी है । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट में 39 कमेटियाँ हैं, जिनमें कुल चार कमेटियों को स्टैंडिंग कमेटी का दर्जा प्राप्त है - इन चार कमेटियों में एक एक्जामिनेशन कमेटी है । इस तथ्य से ही इस कमेटी की महत्ता समझ में आ जाती है । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे इस कमेटी के मुखिया हैं; तथा उनके और इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट के अलावा पाँच अन्य सदस्य इस कमेटी में हैं । इस कमेटी की ही अनुशंसा पर नवंबर/दिसंबर में होने वाली परीक्षाओं के लिए ऑब्जर्वर्स के मनोनयन हेतु 10 अगस्त को इंस्टीट्यूट ने नियमों की घोषणा की थी । यह घोषणा होने के बाद से ही राजेश शर्मा अपने चहेतों से संपर्क करने में जुट गए और उन्हें उनकी पसंद का परीक्षा-केंद्र दिलवाने तक का ऑफर देने लगे । 'दलाल'रूपी यह ऑफर इसलिए और ज्यादा गंभीर है - क्योंकि यह इंस्टीट्यूट की एक्जामिनेशन कमेटी के ही एक सदस्य की तरफ से दिया गया । इस ऑफर से सिर्फ राजेश शर्मा का ही करेक्टर सामने नहीं आया है, बल्कि इंस्टीट्यूट की परीक्षा-व्यवस्था का असली रूप भी सामने आया है । राजेश शर्मा द्वारा भेजे गए वाट्स-ऐप संदेश का स्क्रीन-शॉट राजेश शर्मा की ही करतूत को सामने नहीं ला रहा है, बल्कि इस तथ्य को भी उजागर कर रहा है कि नीलेश विकमसे और नवीन गुप्ता की सरपरस्ती में 'आस्तीन के साँपों' ने कैसे अपनी ऊँची पहुँच बना ली है - और परीक्षा जैसे अत्यंत महत्त्व के काम को कैसे मजाक बना दिया है ।
मजे की और राजेश शर्मा की तरफ से बेशर्मी की बात यह हुई कि राजेश शर्मा की इस हरकत को लेकर लोगों के बीच जब चर्चा शुरू हुई, तब राजेश शर्मा ने यह कहते हुए मामले को दबाने का प्रयास किया कि एक्जामिनेशन कमेटी के बाकी सदस्यों ने भी तो अपने अपने नजदीकियों और चहेतों को उनकी पसंद के परीक्षा केंद्र दिलवाने के लिए काम किए हैं । यह कहते/बताते हुए उनका आशय दरअसल यह रहा कि इस मामले में अकेले उन्हीं को निशाना क्यों बनाया जा रहा है । राजेश शर्मा की यह बात यदि सच है, तो समझा जा सकता है कि हालात आखिर किस कदर बिगड़े हुए हैं ? एक्जामिनेशन कमेटी में मंगेश किनरे, सुशील गोयल, केमिशा सोनी और पीसी जैन भी हैं । राजेश शर्मा अपनी करतूत पर पर्दा डाल कर अपने आप को बचाने तथा मामले को रफा-दफा करने/करवाने के लिए जिस तरफ से एक्जामिनेशन कमेटी के बाकी सदस्यों को भी 'आरोपी' बनाने का प्रयास कर रहे हैं, उसने मामले को दिलचस्प मोड़ दे दिया है । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स परीक्षाओं के साथ-साथ इंस्टीट्यूट की एक्जामिनेशन कमेटी को ही मजाक बना देने की राजेश शर्मा की हरकत ने इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट और वाइस प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता की कार्य व निर्णय क्षमता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं ।

 

Friday, November 10, 2017

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की जयपुर ब्राँच में अपने लोगों को न जितवा पाने की खुन्नस में नेशनल कॉन्फ्रेंस की मेज़बानी का उसका अधिकार छिनवा कर प्रकाश शर्मा ने जयपुर के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के गौरव पर तो चोट की ही है, इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन की साख को भी दाँव पर लगा दिया है

जयपुर । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की कन्टीन्यूइंग प्रोफेशनल एजुकेशन कमेटी द्वारा जयपुर में आयोजित की जा रही दो दिवसीय नेशनल कॉन्फ्रेंस इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे की फजीहत का कारण बन रही है । विवादपूर्ण मुद्दों पर नीलेश विकमसे के फैसला न करने के रवैये के चलते इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी बेचारे वी सागर की बड़ी आफत हो जाती है - क्योंकि अक्सर उनकी सुनी नहीं जाती है और कोई भी उन्हें कभी भी लताड़ देता है । रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों ने समझ लिया है कि नीलेश विकमसे इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट बन जरूर गए हैं, लेकिन प्रेसीडेंट पद की जिम्मेदारी सँभाल और निभा पाना उनके बस की बात है नहीं, और इसलिए वह इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी को भी कुछ नहीं समझते और मनमानियों पर उतरे रहते हैं । जयपुर में 24/25 नबंवर को हो रही नेशनल कॉन्फ्रेंस इंस्टीट्यूट में फैली अराजकता का दिलचस्प उदाहरण है । इस नेशनल कॉन्फ्रेंस की मेज़बानी को लेकर विवाद है - इंस्टीट्यूट के नियमानुसार, जयपुर में आयोजित हो रहे इंस्टीट्यूट के कार्यक्रम की मेज़बानी इंस्टीट्यूट की जयपुर ब्राँच को करनी/मिलनी चाहिए; लेकिन मेज़बानी निभा रही है सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल । मजे की बात यह है कि सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल की मीटिंग में इस बारे में जो विचार-विमर्श हुआ, उसमें भी नेशनल कॉन्फ्रेंस की मेज़बानी जयपुर ब्रांच को सौंपने का फैसला हुआ - लेकिन उसके बाद भी मेज़बानी का अधिकार जयपुर ब्राँच से छीन कर सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल को सौंप दिया गया है ।
यह पूछना बेकार है कि सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन दीप मिश्र आखिर काउंसिल की मीटिंग में ही हुए फैसले पर अमल क्यों नहीं कर रहे हैं ? यह पूछना इसलिए बेकार है क्योंकि दीप मिश्र को एक 'कठपुतली' चेयरमैन के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है, और माना/समझा जाता है कि उन्हें चेयरमैन की कुर्सी दिलवाने वाले ऊपर के लोग जैसे 'नचाते' हैं, वह वैसे ही 'नाचते' हैं । दरअसल दीप मिश्र ऐसे अनोखे चेयरमैन हैं, जिन्हें काउंसिल के दस सदस्यों में से कुल चार का समर्थन है, और जिन्हें चेयरमैन का पद एक्सऑफिसो सदस्य के रूप में सेंट्रल काउंसिल के पाँच में से चार सदस्यों के समर्थन के चलते मिला है । ऐसे में, बेचारे दीप मिश्र की मजबूरी और व्यथा को समझा जा सकता है । संदर्भित मामले में दरअसल हुआ यह कि सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल की मीटिंग में उपस्थित हुए सदस्यों के बहुमत ने मेज़बानी की जिम्मेदारी जयपुर ब्राँच को सौंपने का फैसला लिया; लेकिन इस फैसले को मानने से यह कहते/बताते हुए इंकार कर दिया गया कि काउंसिल का बहुमत इस फैसले से सहमत नहीं है । निश्चित रूप से बहुमत को अपना फैसला लागू करने का अधिकार है, लेकिन यह तथाकथित बहुमत है कहाँ ? यह तथाकथित बहुमत उस मीटिंग में नजर क्यों नहीं आया, जिस मीटिंग में जयपुर में हो रही नेशनल कॉन्फ्रेंस की मेज़बानी सुनिश्चित करने का मामला तय हो रहा था ? कम से कम न्याय का दिखावा ही कर लिया जाता और यह तथाकथित बहुमत दूसरी मीटिंग करके पहली मीटिंग के फैसले को पलट देता - लेकिन ऐसा करने की जरूरत भी नहीं समझी गई । असल में, ऐसा करने में एक समस्या यह भी थी कि तथाकथित बहुमत के ठेकेदार सेंट्रल काउंसिल सदस्य मनु अग्रवाल को अपने साथ मान रहे हैं, लेकिन मनु अग्रवाल जयपुर ब्राँच को मेज़बानी देने का फैसला करने वाली मीटिंग में मौजूद थे और इस फैसले के साथ थे - ऐसे में यदि इसी मुद्दे पर सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल की दूसरी मीटिंग होती तो पहले हुए फैसले को बदलने के लिए मनु अग्रवाल को अपना स्टैंड बदलना होता, और तब उनका दोहरा चरित्र 'रिकॉर्ड' पर आता ।
मनु अग्रवाल के दोहरे चरित्र को रिकॉर्ड पर आने से तो बचा लिया गया है, लेकिन सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल की मीटिंग में हुए फैसले को खुद सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल द्वारा ठेंगा दिखाए जाने की हरकत पर उनकी चुप्पी से उनका दोहरा चरित्र लोगों के सामने तो आ ही गया है । क्योंकि मनु अग्रवाल यदि अभी भी मीटिंग में लिए गए अपने स्टैंड पर कायम हैं तो तथाकथित बहुमत का दावा झूठा है; बहुमत का दावा करने वाले लोग मनु अग्रवाल की चुप्पी के सहारे/भरोसे ही अपने दावे को सच 'दिखा' रहे हैं । बहुमत की इस तरह की मनमानी व्याख्या और दिखावेबाजी से सवाल पैदा हुआ है कि बहुमत यदि 'ऐसे' ही तय होना है, तो फिर मीटिंग आदि की जरूरत ही क्या है ? और क्यों मीटिंग के रिकॉर्ड और मिनिट्स तैयार करने व रखने की जरूरत है ? इस मामले को लेकर इंस्टीट्यूट में जो शिकायतें हुई हैं, उन्हें प्रथम दृष्टया उचित मानते/देखते हुए इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी वी सागर ने संबंधित पार्टियों से जबाव तलब किया है । वी सागर की इस कार्रवाई से लेकिन सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल में हो रही मनमानियों पर कोई फर्क पड़ता नहीं दिखा है । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे को इस बात से जैसे कोई मतलब ही नहीं है कि उनके प्रेसीडेंट-काल में हर कोई मनमानी कर रहा है, जिसके चलते नाहक ही विवाद पैदा हो रहे हैं - और इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन की बदनामी हो रही है । जयपुर में नेशनल कॉन्फ्रेंस का आयोजन कर रही इंस्टीट्यूट की कन्टीन्यूइंग प्रोफेशनल एजुकेशन कमेटी के चेयरमैन विजय गुप्ता से भी मेज़बानी के मामले में हो रहे नियम के उल्लंघन को लेकर शिकायत की गई, लेकिन विजय गुप्ता ने जब देखा/पाया कि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट को ही कोई फिक्र नहीं है - तो वह ही मामले में क्यों पड़ें ? विजय गुप्ता इसलिए भी मामले से दूर रहना और बचना चाहते हैं, क्योंकि इस सारे झमेले के पीछे सेंट्रल काउंसिल सदस्य हैं - जिन्हें नाराज करना सेंट्रल काउंसिल की अंदरूनी राजनीति के समीकरणों को नुकसान पहुँचाना हो सकता है ।
नेशनल कॉन्फ्रेंस की मेज़बानी के मामले में इंस्टीट्यूट के नियम की और सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल की मीटिंग में लिए गए फैसले की ऐसी-तैसी करने के पीछे सेंट्रल काउंसिल सदस्य प्रकाश शर्मा की निजी खुन्नस को देखा/पहचाना जा रहा है । जयपुर ब्राँच के सदस्यों के अनुसार, प्रकाश शर्मा को लगता है कि जयपुर ब्राँच के पदाधिकारी उनके कहे में नहीं चलते हैं, और उनकी बजाए सेंट्रल काउंसिल के ही एक दूसरे सदस्य श्याम लाल अग्रवाल को ज्यादा तवज्जो देते हैं । सेंट्रल काउंसिल के इन दोनों ही सदस्यों के बीच जयपुर में अपने अपने प्रभाव को बढ़ाने को लेकर एक स्वाभाविक सी होड़ रहती ही है; इस होड़ में श्याम लाल गुप्ता का पलड़ा इसलिए भारी दिखता है, क्योंकि जयपुर से रीजनल काउंसिल के तीन सदस्यों में दो - प्रमोद बूब और रोहित रुवाटिया उनके साथ देखे/पहचाने जाते हैं तथा जयपुर ब्राँच के पदाधिकारी उनके नजदीक हैं । प्रकाश शर्मा को जयपुर से रीजनल काउंसिल के तीसरे सदस्य गौतम शर्मा का ही समर्थन है । जयपुर ब्राँच और रीजनल काउंसिल में प्रकाश शर्मा भले ही श्याम लाल अग्रवाल से पिछड़ रहे हैं, लेकिन सेंट्रल काउंसिल में सेंट्रल रीजन का प्रतिनिधित्व करने वाले पाँच सदस्यों में प्रकाश शर्मा का पलड़ा फिलहाल भारी है । खेमेबाजी के चलते कहीं कभी 'जीत' कभी कहीं 'हार' का नजारा बनता/दिखता रहता ही है - लेकिन जयपुर में अपनी 'हार' का बदला लेने के लिए प्रकाश शर्मा इस स्तर तक जायेंगे कि इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन की साख को ही दाँव पर लगा देंगे, इसकी किसी को उम्मीद नहीं थी । जयपुर ब्राँच जयपुर के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए गौरव का प्रतीक है - राजनीति में आगे/पीछे होता ही रहता है; जयपुर ब्राँच में प्रकाश शर्मा यदि 'अपने' लोगों को नहीं जितवा सके और इस कारण से उन्हें ब्राँच में अपनी मनमानियाँ करने/थोपने का अवसर यदि नहीं मिल पा रहा है, तो इसकी खुन्नस में वह जयपुर ब्राँच का हक़ ही छिनवा देंगे - इसकी कल्पना उनके नजदीकियों और शुभचिंतकों तक ने नहीं की थी । जयपुर में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का कहना है कि जयपुर ब्राँच के पदाधिकारियों के साथ प्रकाश शर्मा की नाराजगी हो सकती है, लेकिन उनसे बदला लेने के लिए वह जयपुर ब्राँच की पहचान और प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़ करेंगे - यह प्रकाश शर्मा की छोटी सोच का सुबूत और उदाहरण है ।

Thursday, November 9, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स में नीलेश विकमसे के प्रेसीडेंट-काल में बना अराजकता और अनिर्णय का माहौल, नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में राकेश मक्कड़ एंड टीम की मनमानियों और लूट-खसोट के लिए वरदान बना

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ और उनके साथी पदाधिकारियों ने स्टूडेंट कन्वेंशन के नाम पर रुपए हड़पने की योजना पर काम करना शुरू किया है, और इसके तहत करीब 35 लाख रुपए का बजट बना कर तैयार किया है । पिछले वर्ष स्टूडेंट कन्वेंशन में करीब 20 लाख रुपए खर्च हुए थे । इसी से लोगों को लगता है कि राकेश मक्कड़ एंड टीम के सदस्यों के पेट कुछ ज्यादा बड़े हैं, और इसीलिए उन्होंने स्टूडेंट कन्वेंशन के खर्चे में जोर का उछाल 'पैदा' कर दिया है । इस उछाल को तर्कसंगत बनाने/दिखाने के लिए कन्वेंशन में दो हजार छात्रों की भागीदारी होने/कराने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जो पिछले वर्ष एक हजार छात्रों का था । अब पिछले वर्ष यदि एक हजार छात्रों के लिए इंतजाम करने में 20 लाख रुपए खर्च हुए थे, तो इस वर्ष दो हजार छात्रों के लिए इंतजाम करने में 35 लाख का खर्चा तो उचित ही लगता है । लेकिन यहाँ एक पेंच है - पिछले वर्ष इंतजाम भले ही एक हजार छात्रों के लिए किया गया था, लेकिन कन्वेंशन में छात्र कुल 400/500 के बीच ही पहुँचे थे । पिछले वर्ष की कन्वेंशन के लिए तैयार की/करवाई गयी तमाम स्टेशनरी अभी भी धूल खा रही है । पिछले वर्ष की कन्वेंशन आयोजित करने वाले भी राकेश मक्कड़ और उनके संगी-साथी ही थे - इसलिए एक स्वाभाविक सा सवाल बनता है कि पिछले वर्ष यही लोग स्टूडेंट कन्वेंशन में जब एक हजार छात्रों को जुटाने का लक्ष्य ही पूरा नहीं कर पाए थे, तब इस वर्ष दो हजार छात्रों का लक्ष्य क्यों निर्धारित कर लिया गया है ? राकेश मक्कड़ तथा काउंसिल में पदाधिकारी उनके साथियों की हरकतों को देखते/पहचानते हुए लोगों को इस सवाल का उचित जबाव यही समझ में आता है कि इंस्टीट्यूट के पैसे की ज्यादा से ज्यादा लूट को संभव बनाने के लिए ही राकेश मक्कड़ एंड टीम ने यह ऊँचा लक्ष्य निर्धारित किया है ।
उल्लेखनीय है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के रूप में राकेश मक्कड़ एंड टीम पर काउंसिल के हिसाब-किताब में गड़बड़ियाँ करने तथा हिसाब-किताब को काउंसिल सदस्यों से ही छिपाने को लेकर गंभीर आरोप और भारी विवाद रहे हैं; जिन्हें लेकर चारों तरफ से घिर जाने के बाद वह जो थोड़ा-बहुत हिसाब दिखाने को मजबूर हुए तो उसमें बहुत सी 'हेरा-फेरियाँ' पकड़ी गईं - और जिसके चलते पूर्व चेयरमैन दीपक गर्ग और मौजूदा ट्रेजरर सुमित गर्ग काउंसिल के 'लूटे गए' पैसे काउंसिल को वापस करने के लिए मजबूर तक हुए । पोल खुलती तथा लूटे गए पैसे वापस करने की नौबत आते देख राकेश मक्कड़ और उनके साथी पदाधिकारियों ने हिसाब-किताब फिर से छिपा लिया और बेईमानीपूर्ण तरीके से 'जबरदस्ती' बजट पास करवाया, और षड्यंत्रपूर्ण तरीके से डेढ़ मिनट में एजीएम कर ली । राकेश मक्कड़ एंड टीम की इन हरकतों पर काउंसिल के ही सदस्यों की तरफ से इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट को शिकायत की हुई है । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे की तरफ से कई कारणों से चूँकि कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं हुई, इसलिए राकेश मक्कड़ एंड टीम को मनमानियाँ करने का और बल मिला है । नीलेश विकमसे के प्रेसीडेंट-काल में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट में जो अराजकता और अनिर्णय का माहौल बना है, वह नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में राकेश मक्कड़ एंड टीम की मनमानियों और लूट-खसोट के लिए वरदान बना है ।
इसी वरदान का प्रसाद पाने के लिए, पिछले वर्ष एक हजार छात्रों की भागीदारी के लक्ष्य-निर्धारण के साथ की गई स्टूडेंट कन्वेंशन में मुश्किल से 400/500 छात्रों को इकट्ठा कर पाने वाली राकेश मक्कड़ एंड टीम ने इस वर्ष की स्टूडेंट कन्वेंशन के लिए दो हजार छात्रों की भागीदारी का लक्ष्य निर्धारित कर अपनी अपनी जेबें भरने का इंतजाम कर लिया है । मजे की बात यह है कि काउंसिल के चेयरमैन के रूप में राकेश मक्कड़ ने स्टूडेंट कन्वेंशन के लिए काउंसिल सदस्यों तक से बात करने की जरूरत तक नहीं समझी है । उनकी मनमानी का इससे भी बड़ा सुबूत यह मिला है कि कन्वेंशन के लिए जगह बुक करवाने का काम गुपचुप रूप से जून में ही कर लिया गया था, और जिसके लिए किसी से पूछे या किसी को बताए बिना ही तीन लाख रुपए एडवांस के रूप में भी दे दिए गए थे । राकेश मक्कड़ और काउंसिल में पदाधिकारी उनके साथियों की सोच और उनके व्यवहार का दिलचस्प नजारा यह है कि पदाधिकारी के रूप में उनके पास लाइब्रेरीज के खर्चे पूरे करने के लिए पैसे नहीं हैं, और इसलिए पिछले दिनों उन्होंने लाइब्रेरीज को बंद कर देने के फैसले कर लिए - लेकिन फालतू के कामों में खर्च करने के लिए उनके पास पैसे की कोई कमी नहीं है । दरअसल फालतू के कामों में खर्च हुए 'दिखाए' गए पैसे से चूँकि अपनी अपनी जेबें भरने का मौका मिलता है, इसलिए चेयरमैन राकेश मक्कड़ और उनके साथी पदाधिकारियों का सारा ध्यान जरूरी कामों की बजाए उन्हीं पर रहता है ।
राकेश मक्कड़ के चेयरमैन-काल में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सिर्फ पैसों की ही बेईमानी नहीं हो रही है, बल्कि प्रोफेशन के नाम पर भी जमकर धोखाधड़ी हो रही है । इसका बिलकुल नया उदाहरण लुधियाना में होने वाला सेमीनार है - जिसके लिए पहले तो बताया गया था कि सेमीनार में 'एमिनेंट' स्पीकर्स आयेंगे, लेकिन जब स्पीकर्स के नाम सामने आए तो 'खोदा पहाड़, निकला चूहा' वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए काउंसिल में पदाधिकारी नितिन कँवर और राजेंद्र अरोड़ा के नाम सामने आए । इस हरकत को सरासर धोखाधड़ी मानते/बताते हुए राकेश मक्कड़ को लोगों की तरफ से जब लताड़ पड़ी, तो उन्होंने बहानेबाजी लगाई कि उन्हें कोई एमिनेंट स्पीकर मिला ही नहीं, इसलिए ऐन मौके पर उन्हें काउंसिल के इन पदाधिकारियों को ही स्पीकर्स के रूप में तय करना पड़ा है । यह हरकत कोई पहली बार नहीं हुई है; काउंसिल पदाधिकारी ब्रांचेज के कार्यक्रमों में स्पीकर्स के रूप में पहले भी जाते रहे हैं - काउंसिल के सदस्यों के आरोपों के ही अनुसार, वह इसलिए स्पीकर बनते रहे हैं, ताकि आने/जाने/ठहरने/खाने का खर्चा वह काउंसिल से बसूल सकें । राकेश मक्कड़ और उनके साथी पदाधिकारी अपनी छोटी छोटी जरूरतों और स्वार्थों को पूरा करने के लिए सेमिनार्स के आयोजन तक में जिस तरह की हेराफेरियाँ कर रहे हैं, उससे सेमिनार्स के स्तर बुरी तरह से घटे हैं और वह मजाक बन कर रह गए हैं ।

Wednesday, November 8, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में बदतमीजी मामले में रोटरी इंटरनेशनल की जाँच में फँसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी की डॉक्टर सुब्रमणियन के सहारे बचने की उम्मीद टूट रही है क्या ?

नई दिल्ली । रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ मेट्रोपोलिटन के हाल ही में संपन्न हुए एक कार्यक्रम में निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियन के शामिल होने को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी बुरी तरह भड़के हुए हैं । रवि चौधरी ने अपने नजदीकियों के बीच बताया कि उन्होंने डॉक्टर सुब्रमणियन से इस बात को लेकर नाराजगी व्यक्त की है कि वह एक ऐसे कार्यक्रम में क्यों शामिल हुए, जिसमें आभा झा चौधरी भी उपस्थित थीं । रवि चौधरी ने रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ मेट्रोपोलिटन के पदाधिकारियों से भी यह कहते हुए नाराजगी व्यक्त की कि उन्होंने आभा झा चौधरी को अपने कार्यक्रम में आमंत्रित क्यों किया - जबकि आभा झा चौधरी अब डिस्ट्रिक्ट टीम की सदस्य नहीं रही हैं । रवि चौधरी दरअसल यह देख कर बुरी तरह बौखलाए हुए हैं कि वह और उनके नजदीकी तो क्लब्स के प्रेसीडेंट्स से आभा झा चौधरी के खिलाफ चिट्ठियाँ लिखवा कर आभा झा चौधरी को डिस्ट्रिक्ट में अलग-थलग करने की जो कोशिशें कर रहे हैं, उस पर रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ मेट्रोपोलिटन के पदाधिकारियों ने पानी फेर दिया है । रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ मेट्रोपोलिटन का पाँच नवंबर को हुआ कार्यक्रम खास मेहमानों की उपस्थिति के लिहाज से महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम था । इसमें कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स उपस्थित थे, तथा डिस्ट्रिक्ट के कुछेक प्रमुख रोटेरियन थे । मजे की बात यह है कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मंजीत साहनी के क्लब के इस कार्यक्रम में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी नहीं थे - यह बात हालाँकि कंफर्म नहीं हो पाई है कि रवि चौधरी को इस कार्यक्रम का निमंत्रण नहीं दिया, या निमंत्रण के बावजूद उन्होंने कार्यक्रम में पहुँचने की जरूरत नहीं समझी । इस मामले में सच्चाई चाहे जो हो, साऊथ मेट्रोपोलिटन के कार्यक्रम की जो रिपोर्ट रवि चौधरी को मिली है - वह उन्हें झटका देने वाली साबित हुई है । 
रवि चौधरी के लिए सबसे तेज झटके की बात तो यह हुई कि इस कार्यक्रम में आभा झा चौधरी को खासी तवज्जो मिली । कार्यक्रम के आयोजक, रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ मेट्रोपोलिटन के पदाधिकारियों तथा सदस्यों ने तो आभा झा चौधरी को महत्ता दी ही - कार्यक्रम में पहुँचे अन्य प्रमुख रोटेरियंस ने भी उन्हें खास सम्मान दिया । रवि चौधरी के लिए जले पर नमक छिड़कने वाली बात यह हुई कि इस कार्यक्रम में शामिल हुए निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियन ने आभा झा चौधरी के साथ सहानुभूतिपूर्वक बातचीत की । डॉक्टर सुब्रमणियन रोटरी इंटरनेशनल में रवि चौधरी द्वारा की गई बदतमीजी की आभा झा चौधरी की शिकायत की जाँच/पड़ताल के लिए बनी कमेटी के मुखिया हैं । रवि चौधरी दावा करते रहे हैं कि डॉक्टर सुब्रमणियन तो उनके ही 'आदमी' हैं, और जाँच कमेटी के मुखिया के रूप में वह आभा झा चौधरी की शिकायत तथा उनके तथ्यों को रद्दी की टोकरी में ही डालेंगे और मुझे क्लीन चिट देंगे । डिस्ट्रिक्ट में लोगों ने डॉक्टर सुब्रमणियन और रवि चौधरी की दोस्ती को चूँकि देखा भी है, इसलिए लोगों ने रवि चौधरी के दावे पर विश्वास भी कर लिया - और मान लिया कि डॉक्टर सुब्रमणियन की मुखियागिरी में आभा झा चौधरी को न्याय नहीं ही मिल पायेगा । लोगों ने देखा/पाया भी कि इसी भरोसे, आभा झा चौधरी के गंभीर आरोपों - और रोटरी इंटरनेशनल द्वारा उनके आरोपों को प्रथम दृष्टया सही मान लेने के चलते जाँच कराने के फैसले के बावजूद रवि चौधरी बेशर्मी का प्रदर्शन करते रहे हैं, और 'चोरी व सीनाजोरी' वाले मुहावरे को चरितार्थ करते चले आ रहे हैं । लेकिन रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ मेट्रोपोलिटन के कार्यक्रम में आभा झा चौधरी के साथ सहानुभूतिपूर्वक बातचीत करने की डॉक्टर सुब्रमणियन की 'हरकत' पर रवि चौधरी का माथा लेकिन ठनका है ।
दरअसल रवि चौधरी भी जानते हैं और समझ रहे हैं कि तथ्यों को यदि ईमानदारी से देखा गया तो वह पक्के ही दोषी साबित होंगे । अपने समर्थन में रवि चौधरी ने जिन कुछेक लोगों से चिट्ठियाँ लिखवाई हैं, उनमें जिस तरह की बेमतलब और बेसिरपैर की बातें कहीं गई हैं - उनसे ही साबित है कि रवि चौधरी के पास घटना-क्रम में अपने बचाव को लेकर कहने के लिए कुछ है ही नहीं, इसीलिए वह फिजूल की बातों का शोर मचा कर मामले को डायवर्ट करने का प्रयास कर रहे हैं । रवि चौधरी ने अपने समर्थन में जो चिट्ठियाँ लिखवाई हैं, उनमें अधिकतर में एक ही बात कही गई है और वह यह कि रवि चौधरी एक बहुत ही सज्जन व्यक्ति हैं, जिन्होंने उनके साथ कभी भी दुर्व्यवहार नहीं किया है । मान लेते हैं कि जिन्होंने भी यह कहा है, सच ही कहा है - लेकिन इससे रवि चौधरी अपराधमुक्त कैसे हो जाते हैं ? कोई भी व्यक्ति पहला अपराध करने - या पहली बार पकड़े जाने से पहले सज्जन ही होता है और उसके खिलाफ दुर्व्यवहार की कोई शिकायत नहीं हुई होती है । कई बार उसके परिचितों और मुहल्लेवालों को विश्वास भी नहीं होता है कि यह ऐसा अपराध कर सकता है । दिल्ली में हुए कुख्यात निर्भया कांड को याद करें, तो उसमें अपराधियों के परिचितों और पास-पड़ोस वालों के लिए विश्वास करना मुश्किल हुआ था कि यह लोग ऐसा घिनौना काम कर सकते हैं । आजकल सुर्ख़ियों में बने गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में एक मासूम बच्चे की हत्या के आरोप में गिरफ्तार स्कूल के ही ग्यारहवीं में पढ़ने वाले छात्र को लेकर भी स्कूल के लोग और उसकी कालोनी में रहने वाले लोग हैरान हैं कि यह एक मासूम की हत्या कैसे कर सकता है ? इसीलिए इस आधार पर कि डिस्ट्रिक्ट में कुछेक लोग ऐसे सौभाग्यशाली हैं जिनके साथ रवि चौधरी ने कभी कोई दुर्व्यवहार नहीं किया है - आभा झा चौधरी के साथ दुर्व्यवहार करने के मामले से रवि चौधरी बरी नहीं हो जाते हैं ।
रवि चौधरी के पक्ष में एक अकेले अरविंद कनौजिया ने तथ्यों के हवाले से बात करने की कोशिश की है, लेकिन उनके तर्क इतने लचर हैं कि वह रवि चौधरी को बचाने से ज्यादा फँसाने का काम करते हैं । रोटरी क्लब दिल्ली वसंत वैली के सदस्य अरविंद कनौजिया ने लिखा/बताया है कि उन्होंने रोटरी इंटरनेशनल की साईट देखी है और पाया है कि आभा झा चौधरी जिस 'डब्ल्यूजीमील' नाम के प्रोजेक्ट के लिए काम करती हैं, वह रोटरी इंटरनेशनल का प्रोजेक्ट नहीं है । अरविंद कनौजिया ने यह बात बताते हुए जताने की कोशिश तो यह की है कि लोगों, देखो मैं कितनी अक्ल की बात कर रहा हूँ और मैंने आभा झा चौधरी की बेईमानी पकड़ ली है; लेकिन वह यह नहीं देख पा रहे हैं कि यह जताने की कोशिश में वह कितने बड़े वाले बेवकूफ साबित हो रहे हैं । वह रोटरी की यह छोटी सी बुनियादी बात नहीं समझ सके हैं कि रोटरी जैसे सामाजिक व सेवा संगठन को नए नए क्षेत्रों में नई नई संभावनाओं को प्रेरित करने से बल मिलता है, और रोटरी यदि आज सौ वर्षों के बाद भी दुनिया भर में जगमगा रही है तो इसलिए ही क्योंकि यहाँ लकीर के फ़कीर बन कर काम नहीं किया जाता है । अरविंद कनौजिया को रोटरी इंटरनेशनल की साईट देखने का बहुत शौक है, तो उन्होंने उस साईट में कहाँ उन पदों को देखा है, जिन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रवि चौधरी ने अपनी टीम बनाते हुए सृजित किया है । अरविंद कनौजिया के तर्क से ही यदि बात करें, तो रवि चौधरी ने अपनी टीम में करीब तीन सौ लोगों की जो फौज खड़ी की है - उसमें करीब नब्बे प्रतिशत पद फर्जी हैं । अरविंद कनौजिया को ही जो 'डिस्ट्रिक्ट आईटी एंड रोटरी क्लब सेंट्रल चेयर' मिली हुई है, वह रोटरी इंटरनेशनल की साईट में उन्हें कहीं दिख रही है क्या ? और यदि नहीं दिख रही है, तो क्या वह फर्जी पद लिए हुए बैठे हैं और कोई बेईमानी कर रहे हैं ? रोटरी को सचमुच जानने/समझने वाला ऐसा नहीं कहेगा, और इसी तर्क से रोटरी को सचमुच जानने/समझने वाला 'डब्ल्यूजीमील' प्रोजेक्ट पर सवाल नहीं उठा सकता है - यह काम रवि चौधरी की भक्ति में लीन कोई अरविंद कनौजिया ही कर सकता है ।
जाहिर तौर पर अपने समर्थकों से अपने बचाव में चिट्ठियाँ लिखवाने के बावजूद रवि चौधरी अपने बचने की कोई संभावना नहीं देख रहे हैं, और ऐसे में उनकी सारी उम्मीद डॉक्टर सुब्रमणियन के रवैये पर टिकी हुई है । अभी तक, डॉक्टर सुब्रमणियन के साथ अपने संबंधों के भरोसे रवि चौधरी आश्वस्त थे और मानने के साथ साथ दावा भी कर रहे थे कि आभा झा चौधरी की शिकायत पर बनी जाँच टीम का मुखिया पद डॉक्टर सुब्रमणियन को मिलना उनके लिए तो वरदान बना है; लेकिन रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ मेट्रोपोलिटन के कार्यक्रम में डॉक्टर सुब्रमणियन के आभा झा चौधरी के साथ सहानुभूतिपूर्वक बात करने की मिली सूचनाओं के बाद से रवि चौधरी को लगने लगा है कि डॉक्टर सुब्रमणियन तथ्यों की अनदेखी शायद नहीं करेंगे । इसीलिए डॉक्टर सुब्रमणियन भी अब रवि चौधरी के निशाने पर आ गए हैं । यह देखना दिलचस्प होगा कि डॉक्टर सुब्रमणियन तथ्यों पर गौर करते हुए आभा झा चौधरी की शिकायत के साथ न्याय करेंगे, और या रवि चौधरी की धमकी में आकर उनसे अपनी दोस्ती निभायेंगे ?