मुंबई/जयपुर
। इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए प्रस्तुत किए गए चेलैंज को मान्य करवाने
के लिए अशोक गुप्ता को अपने डिस्ट्रिक्ट में मिले जोरदार समर्थन, रंजन
ढींगरा के चेलैंज के वापस होने तथा रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर
(आरआरएफसी) पद पर विजय जालान की नियुक्ति ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद पर भरत
पांड्या के दावे पर गंभीर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का काम किया है - जिसके
चलते इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए जो लड़ाई उन्हें अभी तक आसान लग रही
थी, वह उनके लिए मुश्किलोंभरी हो गई लग रही है । विजय जालान के
आरआरएफसी बनने पर भरत पांड्या तथा उनके समर्थकों को अपने ही लोगों से सुनने
को मिल रहा है कि रोटरी में सभी पद क्या एक ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों को
मिलेंगे ? उल्लेखनीय है कि अभी पिछले दिनों ही गुलाम वहनवती की रोटरी
फाउंडेशन में ट्रस्टी पद पर नियुक्ति हुई है, और अब उनके ही डिस्ट्रिक्ट के
विजय जालान आरआरएफसी नियुक्त हो गए हैं । भरत पांड्या भी इन्हीं के
डिस्ट्रिक्ट के हैं । ऐसे में, इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में भूमिका
निभाने वाले आम और खास रोटेरियंस के बीच यह सवाल उठने लगा है कि रोटरी में
सभी बड़े और महत्त्वपूर्ण पद किसी एक ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों को ही क्यों
मिलने चाहिए ? यह सवाल भरत पांड्या के समर्थन-आधार को डिस्टर्ब करने के
साथ घटाने का काम भी करता दिख रहा है । भरत पांड्या के लिए मुसीबत की बात
यह हुई है कि उनके डिस्ट्रिक्ट के 'जुड़वाँ भाई' जैसे डिस्ट्रिक्ट 3142 और उनके अपने डिस्ट्रिक्ट
में उनके जो विरोधी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के संदर्भ में अभी तक नैतिक व मनोवैज्ञानिक कारणों से चुप लगाए बैठे
थे, वह अचानक से मुखर होने लगे हैं और 'एक ही डिस्ट्रिक्ट में सभी पद
क्यों' जैसे सवाल को हवा दे कर इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी दौड़ में
भरत पांड्या के सामने मुश्किलें खड़ी करने के अभियान में लग गए हैं ।
इसी के साथ-साथ भरत पांड्या और उनके चुनावी रणनीतिकारों को यह देख/जान कर तगड़ा झटका लगा है कि अशोक गुप्ता को अपने डिस्ट्रिक्ट में जोरदार समर्थन मिला है । भरत पांड्या और उनके नजदीकियों को हालाँकि यह विश्वास तो था ही कि अशोक गुप्ता के चेलैंज को अपने डिस्ट्रिक्ट में पर्याप्त समर्थन मिल जाएगा - लेकिन इतना जोरदार समर्थन मिलने की उन्हें उम्मीद नहीं थी । डिस्ट्रिक्ट के करीब 125 क्लब्स में से 110/112 क्लब्स की तरफ से अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में कॉन्करेंस मिली हैं । कॉन्करेंस देने के मामले में जो क्लब्स बचे रह गए हैं, वह भी इसलिए बचे रह गए क्योंकि उनमें से अधिकतर की कॉन्करेंस उचित समय पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय में पहुँच नहीं सकी, और बाकी कुछ क्लब्स कॉन्करेंस को अधिकृत करवाने की प्रक्रिया को पूरा नहीं कर सके । इस स्थिति ने जता/दिखा दिया है कि डिस्ट्रिक्ट के मामलों में लोगों की राय और पक्ष भले ही अलग अलग रहते रहे हों, लेकिन अशोक गुप्ता की इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उम्मीदवारी के मामले में पूरा डिस्ट्रिक्ट उनके समर्थन में है । यह परिदृश्य भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के लिए चिंता का विषय इसलिए है, क्योंकि पहली बात तो यह कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि अशोक गुप्ता को अपने डिस्ट्रिक्ट में इतना व्यापक समर्थन प्राप्त है, और दूसरी बात यह कि अशोक गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट में अशोक गुप्ता विरोधी जिन नेताओं पर वह भरोसा कर रहे थे - वह नेता निष्प्रभावी साबित हुए हैं और उनके भरोसे पर खरे नहीं उतरे हैं । इससे भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेता यह सोचने के लिए मजबूर हुए हैं कि वह कहीं अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन-आधार की पहुँच को कम आँकने की गलती तो नहीं कर रहे हैं, और अशोक गुप्ता के साथ निजी खुन्नस रखने वाले विरोधियों पर जरूरत से ज्यादा भरोसा तो नहीं कर रहे हैं ?
भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की रणनीति दरअसल नकारात्मक तिकड़मों पर ही आधारित रही है । अशोक गुप्ता को घेर लेने, उन्हें अपने ही डिस्ट्रिक्ट में 'कमजोर' करने/दिखाने तथा उनके समर्थन-आधार में विभाजन करने पर ही भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं का जोर रहा है । इसके तहत अशोक गुप्ता पर रोटरी रिसोर्स ग्रुप के पदाधिकारी के रूप में काम करने पर रोक लगा दी गई, जिसके चलते डिस्ट्रिक्ट 3080 में आयोजित हुए इंटरसिटी सेमीनार में मुख्य अतिथि के रूप में मिले निमंत्रण को स्वीकार करने के बाद उन्हें वापस करने के लिए मजबूर होना पड़ा । अशोक गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट में कोशिश की गई कि उन्हें अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में ज्यादा कॉन्करेंस न मिल सकें; भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने यह तो मान लिया था कि अशोक गुप्ता अपनी उम्मीदवारी को मान्य करवाने के लिए जरूरी कॉन्करेंस तो जुटा ही लेंगे, लेकिन उनकी घेरेबंदी के जरिए कोशिश की गई थी कि उन्हें ज्यादा कॉन्करेंस न मिलें - ताकि जोन के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लोगों के बीच यह प्रचारित किया जा सके कि अशोक गुप्ता को तो अपने ही डिस्ट्रिक्ट में समर्थन नहीं है, और उन्होंने तो बस जैसे-तैसे जरूरी कॉन्करेंस जुटाई हैं । अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में दर्ज हुईं 90 प्रतिशत से अधिक क्लब्स की कॉन्करेंस ने लेकिन भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की चाल को फेल कर दिया है । भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन-आधार में विभाजन करने के लिए रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी के जरिए बड़ी चाल चली थी, लेकिन रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी के वापस हो जाने से उनकी उस चाल ने बीच रास्ते में ही दम तोड़ दिया है ।
मजे की बात यह देखने में आई है कि अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के खिलाफ चली गईं नकारात्मक चालें स्वतः ही फेल होती गईं हैं; उन्हें फेल करने के लिए अशोक गुप्ता और या उनके समर्थक नेताओं को कुछ करना नहीं पड़ा है । अशोक गुप्ता और उनके समर्थकों पर गंभीर आरोप बल्कि यही है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को उन्हें जिस गंभीरता से लेना चाहिए, उतनी गंभीरता से वह ले नहीं रहे हैं - यदि ले रहे हैं, तो लेते हुए 'दिख' नहीं रहे हैं । संभवतः यह भरत पांड्या के समर्थक नेताओं के द्वारा की गई उनकी घेराबंदी का नतीजा भी हो । इसलिए अशोक गुप्ता और उनके समर्थकों द्वारा बिना कुछ किए ही भरत पांड्या के समर्थक नेताओं की चालबाजियों के फेल होने को किस्मत की बात के रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है । लोगों को लग रहा है कि अशोक गुप्ता और उनके समर्थकों की तुलना में तो उनकी किस्मत ज्यादा तेज चल रही है । इससे लोगों को यह उम्मीद भी बँधी है कि इसे एक सकारात्मक संदेश के रूप में लेते/देखते हुए अशोक गुप्ता और उनके समर्थक/साथी अब ज्यादा जोश और तैयारी के साथ जुटेंगे । भरत पांड्या के समर्थक नेताओं के लिए मुसीबत और चिंता की बात वास्तव में यही है कि हाल-फिलहाल की घटनाओं से अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में जो एक वातावरण बना है, उससे उनके समर्थक नेताओं में खासा जोश पैदा हुआ है और उन्हें लगने लगा है कि माहौल उनके पक्ष में है - उन्हें जरूरत सिर्फ उसे संयोजित व संगठित करने की है । समय ने भरत पांड्या और उनके समर्थक नेताओं के सामने दोहरी मुसीबत खड़ी कर दी है - एक तरफ तो अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए चुनौती बनती स्थितियाँ खुद-ब-खुद सुलझती जा रही हैं और उनके रास्ते की बाधाएँ अपने आप से दूर हो रही हैं; और दूसरी तरफ विजय जालान को आरआरएफसी का पद मिलने से उनके लिए लोगों को यह समझाना मुश्किल हुआ है कि रोटरी के सभी बड़े और महत्त्वपूर्ण पद एक ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों को क्यों मिलने चाहिए ? इसलिए विजय जालान के रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर बनने ने भरत पांड्या की इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उम्मीदवारी के सामने गंभीर संकट खड़ा कर दिया है ।
इसी के साथ-साथ भरत पांड्या और उनके चुनावी रणनीतिकारों को यह देख/जान कर तगड़ा झटका लगा है कि अशोक गुप्ता को अपने डिस्ट्रिक्ट में जोरदार समर्थन मिला है । भरत पांड्या और उनके नजदीकियों को हालाँकि यह विश्वास तो था ही कि अशोक गुप्ता के चेलैंज को अपने डिस्ट्रिक्ट में पर्याप्त समर्थन मिल जाएगा - लेकिन इतना जोरदार समर्थन मिलने की उन्हें उम्मीद नहीं थी । डिस्ट्रिक्ट के करीब 125 क्लब्स में से 110/112 क्लब्स की तरफ से अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में कॉन्करेंस मिली हैं । कॉन्करेंस देने के मामले में जो क्लब्स बचे रह गए हैं, वह भी इसलिए बचे रह गए क्योंकि उनमें से अधिकतर की कॉन्करेंस उचित समय पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय में पहुँच नहीं सकी, और बाकी कुछ क्लब्स कॉन्करेंस को अधिकृत करवाने की प्रक्रिया को पूरा नहीं कर सके । इस स्थिति ने जता/दिखा दिया है कि डिस्ट्रिक्ट के मामलों में लोगों की राय और पक्ष भले ही अलग अलग रहते रहे हों, लेकिन अशोक गुप्ता की इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उम्मीदवारी के मामले में पूरा डिस्ट्रिक्ट उनके समर्थन में है । यह परिदृश्य भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के लिए चिंता का विषय इसलिए है, क्योंकि पहली बात तो यह कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि अशोक गुप्ता को अपने डिस्ट्रिक्ट में इतना व्यापक समर्थन प्राप्त है, और दूसरी बात यह कि अशोक गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट में अशोक गुप्ता विरोधी जिन नेताओं पर वह भरोसा कर रहे थे - वह नेता निष्प्रभावी साबित हुए हैं और उनके भरोसे पर खरे नहीं उतरे हैं । इससे भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेता यह सोचने के लिए मजबूर हुए हैं कि वह कहीं अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन-आधार की पहुँच को कम आँकने की गलती तो नहीं कर रहे हैं, और अशोक गुप्ता के साथ निजी खुन्नस रखने वाले विरोधियों पर जरूरत से ज्यादा भरोसा तो नहीं कर रहे हैं ?
भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की रणनीति दरअसल नकारात्मक तिकड़मों पर ही आधारित रही है । अशोक गुप्ता को घेर लेने, उन्हें अपने ही डिस्ट्रिक्ट में 'कमजोर' करने/दिखाने तथा उनके समर्थन-आधार में विभाजन करने पर ही भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं का जोर रहा है । इसके तहत अशोक गुप्ता पर रोटरी रिसोर्स ग्रुप के पदाधिकारी के रूप में काम करने पर रोक लगा दी गई, जिसके चलते डिस्ट्रिक्ट 3080 में आयोजित हुए इंटरसिटी सेमीनार में मुख्य अतिथि के रूप में मिले निमंत्रण को स्वीकार करने के बाद उन्हें वापस करने के लिए मजबूर होना पड़ा । अशोक गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट में कोशिश की गई कि उन्हें अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में ज्यादा कॉन्करेंस न मिल सकें; भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने यह तो मान लिया था कि अशोक गुप्ता अपनी उम्मीदवारी को मान्य करवाने के लिए जरूरी कॉन्करेंस तो जुटा ही लेंगे, लेकिन उनकी घेरेबंदी के जरिए कोशिश की गई थी कि उन्हें ज्यादा कॉन्करेंस न मिलें - ताकि जोन के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लोगों के बीच यह प्रचारित किया जा सके कि अशोक गुप्ता को तो अपने ही डिस्ट्रिक्ट में समर्थन नहीं है, और उन्होंने तो बस जैसे-तैसे जरूरी कॉन्करेंस जुटाई हैं । अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में दर्ज हुईं 90 प्रतिशत से अधिक क्लब्स की कॉन्करेंस ने लेकिन भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की चाल को फेल कर दिया है । भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन-आधार में विभाजन करने के लिए रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी के जरिए बड़ी चाल चली थी, लेकिन रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी के वापस हो जाने से उनकी उस चाल ने बीच रास्ते में ही दम तोड़ दिया है ।
मजे की बात यह देखने में आई है कि अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के खिलाफ चली गईं नकारात्मक चालें स्वतः ही फेल होती गईं हैं; उन्हें फेल करने के लिए अशोक गुप्ता और या उनके समर्थक नेताओं को कुछ करना नहीं पड़ा है । अशोक गुप्ता और उनके समर्थकों पर गंभीर आरोप बल्कि यही है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को उन्हें जिस गंभीरता से लेना चाहिए, उतनी गंभीरता से वह ले नहीं रहे हैं - यदि ले रहे हैं, तो लेते हुए 'दिख' नहीं रहे हैं । संभवतः यह भरत पांड्या के समर्थक नेताओं के द्वारा की गई उनकी घेराबंदी का नतीजा भी हो । इसलिए अशोक गुप्ता और उनके समर्थकों द्वारा बिना कुछ किए ही भरत पांड्या के समर्थक नेताओं की चालबाजियों के फेल होने को किस्मत की बात के रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है । लोगों को लग रहा है कि अशोक गुप्ता और उनके समर्थकों की तुलना में तो उनकी किस्मत ज्यादा तेज चल रही है । इससे लोगों को यह उम्मीद भी बँधी है कि इसे एक सकारात्मक संदेश के रूप में लेते/देखते हुए अशोक गुप्ता और उनके समर्थक/साथी अब ज्यादा जोश और तैयारी के साथ जुटेंगे । भरत पांड्या के समर्थक नेताओं के लिए मुसीबत और चिंता की बात वास्तव में यही है कि हाल-फिलहाल की घटनाओं से अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में जो एक वातावरण बना है, उससे उनके समर्थक नेताओं में खासा जोश पैदा हुआ है और उन्हें लगने लगा है कि माहौल उनके पक्ष में है - उन्हें जरूरत सिर्फ उसे संयोजित व संगठित करने की है । समय ने भरत पांड्या और उनके समर्थक नेताओं के सामने दोहरी मुसीबत खड़ी कर दी है - एक तरफ तो अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए चुनौती बनती स्थितियाँ खुद-ब-खुद सुलझती जा रही हैं और उनके रास्ते की बाधाएँ अपने आप से दूर हो रही हैं; और दूसरी तरफ विजय जालान को आरआरएफसी का पद मिलने से उनके लिए लोगों को यह समझाना मुश्किल हुआ है कि रोटरी के सभी बड़े और महत्त्वपूर्ण पद एक ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों को क्यों मिलने चाहिए ? इसलिए विजय जालान के रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर बनने ने भरत पांड्या की इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उम्मीदवारी के सामने गंभीर संकट खड़ा कर दिया है ।