नई
दिल्ली । शारदा यूनिवर्सिटी और मिलान फाउंडेशन के संयुक्त तत्त्वाधान में
करीब चार सौ लोगों की उपस्थिति में 'इंडिया नीड्स डॉटर्स' विषय पर आयोजित
हुए एक पैनल डिस्कशन में आभा झा चौधरी को शामिल होने का मौका मिलना उनके
साथ-साथ रोटरी की पहचान और प्रतिष्ठा के लिए भी उल्लेखनीय बात है । रोटरी
से बाहर के समाज और अकादमिक संस्थानों में रोटेरियंस को सम्मान के साथ
आमंत्रित करने तथा उन्हें तवज्जो मिलने की घटनाएँ यदा-कदा ही सुनने/देखने
को मिलती हैं । रोटरी में जो तमाम लोग अपनी महानता और वीरता के डंके पीटते
हैं, उनमें से अधिकांश की महानता और वीरता रोटरी की चौखट के भीतर ही दम
तोड़ देती है और रोटरी के बाहर के समाज में वह अपनी कोई पहचान व साख बना
सकने में असफल ही होते/रहते हैं । जिन रोटेरियंस को किसी बड़े पद पर होने के
कारण कुछ समय के लिए अपनी महानता और वीरता दिखाने/जताने का मौका मिलता भी
है, पद से उतरते ही उनमें से अधिकतर रोटरी में ही गुमनामी के दलदल में जा
गिरते हैं । उल्लेखनीय बात यह है कि अपनी काबिलियत और प्रतिभा
दिखाने/जताने का मौका रोटरी में यूँ तो बहुत से लोगों को मिलता है, लेकिन
ज्यादातर लोग उस मौके को अपनी मूर्खता व जहालत दिखाने/जताने में और लफंगई
करने या उसका साथ देने में खर्च कर देते हैं - और इसका नतीजा यह देखने को
मिलता है कि बाद में फिर वह गुमनामी में पड़े होते हैं और या नॉनसेंस हरकतें
करते हुए अपने आप को किसी तरह सीन में बनाए रखने की कोशिश करते नजर आते
हैं । ऐसे में, आभा झा चौधरी को रोटरी के बाहर भी मिल रही पहचान और प्रतिष्ठा रोटरी के लिए निश्चित ही एक बड़ी उपलब्धि की बात है ।
रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3011 ही नहीं, आसपास के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में भी किसी रोटेरियंस को रोटरी के बाहर आभा झा चौधरी जैसी पहचान और प्रतिष्ठा मिली हो, ऐसा ध्यान नहीं पड़ता । आभा झा चौधरी के अलावा एक अकेले राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू ही हैं, जिनका नाम रोटरी की दीवारों से बाहर आ सका है । लेकिन राजा साबू को भी यह मुकाम इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने के बाद ही नसीब हो सका है । इस संदर्भ को ध्यान में रख कर आकलन करें तो आभा झा चौधरी की उपलब्धि राजा साबू से भी बड़ी ही मानी जाएगी । आभा झा चौधरी ने एक रोटेरियन के रूप में अपनी सक्रियता और संलग्नता से पिछले कुछ समय में ही रोटरी में जो मुकाम पाया है, वह खुद सफलता और स्वीकार्यता की एक दिलचस्प कहानी बताता है । रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों तथा नेताओं से प्रशंसित प्रोजेक्ट्स में आभा झा चौधरी को शामिल करना; रोटरी इंटरनेशनल के पोलियो खत्म करने के अभियान को चलाने के लिए फंड्स इकट्टा करने के उद्देश्य से शुरू की गई 'वर्ल्ड ग्रेटेस्ट मील' परियोजना में आभा झा चौधरी को भारत का 'कंट्री-कोऑर्डीनेटर' का पद मिलना इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि उनकी सक्रियता और संलग्नता ने रोटरी में एक व्यापक पहचान बनाई है । बड़ी बात रोटरी में ही पहचान बनाना नहीं है, बल्कि यह है कि उनकी पहचान और प्रतिभा का दायरा रोटरी की दीवारों के पार समाज और अन्य संस्थाओं तक फैला/पहुँचा । आभा झा चौधरी विभिन्न शहरों में अलग अलग तरह की संस्थाओं में अलग अलग विषयों पर केंद्रित होने वाले आयोजनों में वक्ता के रूप में आमंत्रित होती रही हैं, और शामिल होती रही हैं ।
इसलिए शारदा यूनिवर्सिटी और मिलान फाउंडेशन के संयुक्त तत्त्वाधान में आयोजित होने वाले एक पैनल डिस्कशन में आभा झा चौधरी का शामिल होना कोई खास बात नहीं है; लेकिन फिर भी यह बात खास हो गई है, तो इसका कारण यह है कि पिछले दिनों ही आभा झा चौधरी को एक वरिष्ठ रोटेरियन के रूप में अपने ही डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी की बदतमीजी का शिकार होना पड़ा है, और उनके द्वारा रोटरी इंटरनेशनल में दर्ज करवाई गयी शिकायत के चलते बनी जाँच कमेटी के मुखिया डॉक्टर सुब्रमणियन की तरफ से भी उन्हें न्याय नहीं मिला । यह एक बिडंवनापूर्ण नजारा है कि अपने काम, अपनी सोच और अपनी प्रतिभा से रोटरी के बड़े मंचों के साथ-साथ समाज की अकादमिक संस्थाओं में महत्ता, प्रशंसा और सम्मान पा रहीं आभा झा चौधरी को अपने ही डिस्ट्रिक्ट में अपने ही लोगों के द्वारा प्रताड़ना और अपमान का शिकार होना पड़ रहा है । दुनिया में यह एक आम समझ है कि किसी मूर्ख व्यक्ति से यह उम्मीद नहीं करना चाहिए कि वह किसी प्रतिभाशाली व्यक्ति का सम्मान करेगा; इसलिए आभा झा चौधरी के साथ रवि चौधरी ने क्या किया - इसे अनदेखा भी कर दें; लेकिन डॉक्टर सुब्रमणियन ने जो किया, वह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है । डॉक्टर सुब्रमणियन और रवि चौधरी की सामाजिक 'पहचान' में जमीन-आसमान का अंतर है, इसलिए किसी को उम्मीद नहीं थी कि वह अपने आप को रवि चौधरी के स्तर तक गिरा लेंगे । समाज में कहा/माना जाता है कि समाज को बुरे लोगों से उतना नुकसान नहीं पहुँचता है, जितना बुरे लोगों को संरक्षण देने वाले तथा बुरे लोगों की हरकतों पर चुप रहने वाले अच्छे लोगों से पहुँचता है ।
रवि चौधरी ने आभा झा चौधरी के साथ बदतमीजी की, यह कोई नई बात नहीं थी; दूसरे कई लोगों के साथ-साथ विनोद बंसल और सुशील गुप्ता जैसे लोग उनकी बदतमीजी का शिकार हो चुके हैं - ऐसे में, आभा झा चौधरी को भी उनकी बदतमीजी का शिकार होना, तो यह रवि चौधरी के व्यवहार के अनुरूप ही था । फर्क सिर्फ यह हुआ कि दूसरे लोगों ने अपने साथ हुई बदतमीजी को या तो यह कहते हुए अनदेखा कर दिया कि 'अरे छोड़ो, रवि तो बदतमीज है ही' और या बदला लेते हुए रवि चौधरी को उन्हीं के लहजे में जबाव दे दिया - लेकिन आभा झा चौधरी ने न्याय की गुहार लगाते हुए रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत दर्ज कर दी । उन्होंने न तो रवि चौधरी की हरकत को अनदेखा किया, और न उनके 'स्तर' पर उतरने की कोशिश की । उन्हें उम्मीद रही होगी कि जिस रोटरी में उनकी प्रतिभा और उनकी सक्रियता को पहचान और प्रतिष्ठा मिली, उस रोटरी में उन्हें न्याय भी मिलेगा । न्याय करने की जिम्मेदारी डॉक्टर सुब्रमणियन को मिली, तो आभा झा चौधरी के साथ-साथ दूसरों को भी आस बँधी कि डॉक्टर सुब्रमनियन अवश्य ही ऐसा फैसला करेंगे कि रवि चौधरी ही नहीं, आगे आने वाले गवर्नर भी रोटरी पदाधिकारियों - खासकर महिला पदाधिकारियों के साथ बदतमीजी करने का साहस नहीं कर सकेंगे । लेकिन जब फैसला आया, तो पता चला कि डॉक्टर सुब्रमणियन ने तमाम उपलब्ध तथ्यों और सुबूतों को अनदेखा करते हुए रवि चौधरी के सामने पूरी तरह समर्पण कर दिया और उन्हें क्लीन चिट दे दी । लोगों के लिए यह समझना मुश्किल हुआ है कि डॉक्टर सुब्रमणियन ने पता नहीं किस दबाव में या किस स्वार्थ और या किस मजबूरी में परस्पर अंतर्विरोधों से भरा उक्त फैसला किया । डॉक्टर सुब्रमणियन ने अपने पक्षपातपूर्ण फैसले के जरिये आभा झा चौधरी के साथ भले ही न्याय न किया हो, लेकिन वह आभा झा चौधरी की पहचान और प्रतिष्ठा को जरा भी खंडित नहीं कर सके हैं - जिसका सुबूत है शारदा यूनिवर्सिटी और मिलान फाउंडेशन के संयुक्त तत्त्वाधान में आयोजित हुए एक पैनल डिस्कशन में आभा झा चौधरी को आमंत्रित किया जाना । डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए भी यह बात शर्मिंदगीभरी होनी तो चाहिए कि जो आभा झा चौधरी रोटरी के बाहर भी रोटरी की पहचान और प्रतिष्ठा को बढ़ाने का काम कर रही हैं, उन आभा झा चौधरी को प्रताड़ित करती रवि चौधरी की करतूत पर उन्होंने पर्दा डालने का काम किया है ।
रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3011 ही नहीं, आसपास के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में भी किसी रोटेरियंस को रोटरी के बाहर आभा झा चौधरी जैसी पहचान और प्रतिष्ठा मिली हो, ऐसा ध्यान नहीं पड़ता । आभा झा चौधरी के अलावा एक अकेले राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू ही हैं, जिनका नाम रोटरी की दीवारों से बाहर आ सका है । लेकिन राजा साबू को भी यह मुकाम इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने के बाद ही नसीब हो सका है । इस संदर्भ को ध्यान में रख कर आकलन करें तो आभा झा चौधरी की उपलब्धि राजा साबू से भी बड़ी ही मानी जाएगी । आभा झा चौधरी ने एक रोटेरियन के रूप में अपनी सक्रियता और संलग्नता से पिछले कुछ समय में ही रोटरी में जो मुकाम पाया है, वह खुद सफलता और स्वीकार्यता की एक दिलचस्प कहानी बताता है । रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों तथा नेताओं से प्रशंसित प्रोजेक्ट्स में आभा झा चौधरी को शामिल करना; रोटरी इंटरनेशनल के पोलियो खत्म करने के अभियान को चलाने के लिए फंड्स इकट्टा करने के उद्देश्य से शुरू की गई 'वर्ल्ड ग्रेटेस्ट मील' परियोजना में आभा झा चौधरी को भारत का 'कंट्री-कोऑर्डीनेटर' का पद मिलना इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि उनकी सक्रियता और संलग्नता ने रोटरी में एक व्यापक पहचान बनाई है । बड़ी बात रोटरी में ही पहचान बनाना नहीं है, बल्कि यह है कि उनकी पहचान और प्रतिभा का दायरा रोटरी की दीवारों के पार समाज और अन्य संस्थाओं तक फैला/पहुँचा । आभा झा चौधरी विभिन्न शहरों में अलग अलग तरह की संस्थाओं में अलग अलग विषयों पर केंद्रित होने वाले आयोजनों में वक्ता के रूप में आमंत्रित होती रही हैं, और शामिल होती रही हैं ।
इसलिए शारदा यूनिवर्सिटी और मिलान फाउंडेशन के संयुक्त तत्त्वाधान में आयोजित होने वाले एक पैनल डिस्कशन में आभा झा चौधरी का शामिल होना कोई खास बात नहीं है; लेकिन फिर भी यह बात खास हो गई है, तो इसका कारण यह है कि पिछले दिनों ही आभा झा चौधरी को एक वरिष्ठ रोटेरियन के रूप में अपने ही डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी की बदतमीजी का शिकार होना पड़ा है, और उनके द्वारा रोटरी इंटरनेशनल में दर्ज करवाई गयी शिकायत के चलते बनी जाँच कमेटी के मुखिया डॉक्टर सुब्रमणियन की तरफ से भी उन्हें न्याय नहीं मिला । यह एक बिडंवनापूर्ण नजारा है कि अपने काम, अपनी सोच और अपनी प्रतिभा से रोटरी के बड़े मंचों के साथ-साथ समाज की अकादमिक संस्थाओं में महत्ता, प्रशंसा और सम्मान पा रहीं आभा झा चौधरी को अपने ही डिस्ट्रिक्ट में अपने ही लोगों के द्वारा प्रताड़ना और अपमान का शिकार होना पड़ रहा है । दुनिया में यह एक आम समझ है कि किसी मूर्ख व्यक्ति से यह उम्मीद नहीं करना चाहिए कि वह किसी प्रतिभाशाली व्यक्ति का सम्मान करेगा; इसलिए आभा झा चौधरी के साथ रवि चौधरी ने क्या किया - इसे अनदेखा भी कर दें; लेकिन डॉक्टर सुब्रमणियन ने जो किया, वह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है । डॉक्टर सुब्रमणियन और रवि चौधरी की सामाजिक 'पहचान' में जमीन-आसमान का अंतर है, इसलिए किसी को उम्मीद नहीं थी कि वह अपने आप को रवि चौधरी के स्तर तक गिरा लेंगे । समाज में कहा/माना जाता है कि समाज को बुरे लोगों से उतना नुकसान नहीं पहुँचता है, जितना बुरे लोगों को संरक्षण देने वाले तथा बुरे लोगों की हरकतों पर चुप रहने वाले अच्छे लोगों से पहुँचता है ।
रवि चौधरी ने आभा झा चौधरी के साथ बदतमीजी की, यह कोई नई बात नहीं थी; दूसरे कई लोगों के साथ-साथ विनोद बंसल और सुशील गुप्ता जैसे लोग उनकी बदतमीजी का शिकार हो चुके हैं - ऐसे में, आभा झा चौधरी को भी उनकी बदतमीजी का शिकार होना, तो यह रवि चौधरी के व्यवहार के अनुरूप ही था । फर्क सिर्फ यह हुआ कि दूसरे लोगों ने अपने साथ हुई बदतमीजी को या तो यह कहते हुए अनदेखा कर दिया कि 'अरे छोड़ो, रवि तो बदतमीज है ही' और या बदला लेते हुए रवि चौधरी को उन्हीं के लहजे में जबाव दे दिया - लेकिन आभा झा चौधरी ने न्याय की गुहार लगाते हुए रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत दर्ज कर दी । उन्होंने न तो रवि चौधरी की हरकत को अनदेखा किया, और न उनके 'स्तर' पर उतरने की कोशिश की । उन्हें उम्मीद रही होगी कि जिस रोटरी में उनकी प्रतिभा और उनकी सक्रियता को पहचान और प्रतिष्ठा मिली, उस रोटरी में उन्हें न्याय भी मिलेगा । न्याय करने की जिम्मेदारी डॉक्टर सुब्रमणियन को मिली, तो आभा झा चौधरी के साथ-साथ दूसरों को भी आस बँधी कि डॉक्टर सुब्रमनियन अवश्य ही ऐसा फैसला करेंगे कि रवि चौधरी ही नहीं, आगे आने वाले गवर्नर भी रोटरी पदाधिकारियों - खासकर महिला पदाधिकारियों के साथ बदतमीजी करने का साहस नहीं कर सकेंगे । लेकिन जब फैसला आया, तो पता चला कि डॉक्टर सुब्रमणियन ने तमाम उपलब्ध तथ्यों और सुबूतों को अनदेखा करते हुए रवि चौधरी के सामने पूरी तरह समर्पण कर दिया और उन्हें क्लीन चिट दे दी । लोगों के लिए यह समझना मुश्किल हुआ है कि डॉक्टर सुब्रमणियन ने पता नहीं किस दबाव में या किस स्वार्थ और या किस मजबूरी में परस्पर अंतर्विरोधों से भरा उक्त फैसला किया । डॉक्टर सुब्रमणियन ने अपने पक्षपातपूर्ण फैसले के जरिये आभा झा चौधरी के साथ भले ही न्याय न किया हो, लेकिन वह आभा झा चौधरी की पहचान और प्रतिष्ठा को जरा भी खंडित नहीं कर सके हैं - जिसका सुबूत है शारदा यूनिवर्सिटी और मिलान फाउंडेशन के संयुक्त तत्त्वाधान में आयोजित हुए एक पैनल डिस्कशन में आभा झा चौधरी को आमंत्रित किया जाना । डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए भी यह बात शर्मिंदगीभरी होनी तो चाहिए कि जो आभा झा चौधरी रोटरी के बाहर भी रोटरी की पहचान और प्रतिष्ठा को बढ़ाने का काम कर रही हैं, उन आभा झा चौधरी को प्रताड़ित करती रवि चौधरी की करतूत पर उन्होंने पर्दा डालने का काम किया है ।