नई दिल्ली । रीजनल रोटरी
फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद के लिए आवेदन माँगने की रोटरी इंटरनेशनल की
कार्रवाई और इस कार्रवाई के चलते करीब बीस लोगों के आवेदनों के आ जाने से
डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल को तगड़ा झटका लगा
है, और इस पद पर उनकी नियुक्ति को लेकर लगाई जा रही उम्मीदें ध्वस्त होती
हुई दिख रही हैं । रोटरी के बड़े नेताओं के बीच इस स्थिति को उनके पूर्व
इंटरनेशनल डायरेक्टर्स सुशील गुप्ता और शेखर मेहता के नजदीक होने के दंड के
रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है । दरअसल इन दोनों पूर्व इंटरनेशनल
डायरेक्टर्स के साथ नजदीकी के चलते विनोद बंसल की रीजनल रोटरी फाउंडेशन
कोऑर्डीनेटर पद पर नियुक्ति पक्की समझी जा रही थी, पर अब लग रहा है कि
इन्हीं दोनों की वजह से उक्त पद पर विनोद बंसल की नियुक्ति को लेकर खतरा खड़ा हो गया है । विनोद बंसल के लिए पैदा हुआ यह खतरा सुशील गुप्ता के लिए भी बड़ी चुनौती के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । दरअसल
विनोद बंसल को आजकल सुशील गुप्ता की 'आँख के तारे' के रूप में देखा/पहचाना
जाता है - ऐसे में विनोद बंसल की एक पद पर स्वाभाविक रूप से होने जा रही
नियुक्ति को रोकने के लिए नियुक्ति-प्रक्रिया का पैटर्न ही बदल दिया जाए,
तो यह विनोद बंसल के साथ-साथ उनके सबसे बड़े समर्थक के लिए भी झटके वाली बात
तो है ही । कुछेक लोगों को हालाँकि यह भी लग रहा है कि उक्त पद पर
नियुक्ति अंततः तो विनोद बंसल की ही होगी; लोगों से इस पद के लिए आवेदन माँगने का नाटक शेखर मेहता
द्वारा रचा गया है - और इसके पीछे कुछ उनके कुछ गहरे राजनीतिक उद्देश्य हैं । इस
नाटक के जरिए शेखर मेहता ने वास्तव में एक तीर से कई शिकार कर लेने की व्यूह रचना की
है ।
रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर का पद अभी कुछ दिन पहले तक कमल सांघवी के पास था, जो जोन 6 ए में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार के रूप में चुने जाने पर उन्होंने हाल ही में छोड़ दिया है । विनोद बंसल चूँकि उनके साथ असिस्टेंट रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर के पद पर रहे हैं, इसलिए माना/समझा जा रहा था कि कमल सांघवी द्वारा खाली की गई कुर्सी उन्हें स्वतः ही मिल जाएगी । लोग तो कमल सांघवी द्वारा खाली की गई कुर्सी पर विनोद बंसल की ताजपोशी होने का इंतजार ही कर रहे थे - लेकिन मामले में अचानक से ट्विस्ट आ गया है । रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद के लिए आवेदन माँगने की कार्रवाई वास्तव में एक अप्रत्याशित कार्रवाई है । रोटरी में रिसोर्स ग्रुप के पदों के लिए आवेदन माँगने का रिवाज नहीं है, यहाँ तो लॉबिइंग से ही पद मिलते हैं । विनोद बंसल के लिए लॉबिइंग भी तगड़ी ही देखी/समझी जा रही थी, लेकिन जिस अचानक तरीके से रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद के लिए आवेदन माँगने का फरमान आया - उक्त पद पर विनोद बंसल की ताजपोशी होने की सारी तैयारी धरी रह गई ।
रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद पर रहते हुए कमल सांघवी के इंटरनेशनल डायरेक्टर 'बनने' से इस पद की महत्ता अचानक से बढ़ गई है । इस महत्ता को बढ़ाने में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए विनोद बंसल की संभावित उम्मीदवारी की चर्चा ने भी बड़ा योगदान दिया है । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए जोन 4 में होने वाले अगले चुनाव में विनोद बंसल की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने की चर्चा है - इस चर्चा की पृष्ठभूमि में उन्हें रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर की कुर्सी मिलने का एक अलग और खास महत्त्व स्वाभाविक रूप से हो गया । ऐसे में उनके विरोधियों का सक्रिय होना भी स्वाभाविक है । कुछेक लोगों को लगता है कि विरोधियों के साथ-साथ समर्थकों ने भी विनोद बंसल की राह को मुश्किल बनाने का काम किया है, और इसलिए उनकी राह सचमुच में मुश्किल हो गई है । यह जो अचानक से झमेला पैदा हो गया है, उसके लिए कुछेक लोग शेखर मेहता को भी जिम्मेदार ठहराते हैं । शेखर मेहता को यूँ तो विनोद बंसल के समर्थक के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है, लेकिन सुशील गुप्ता के साथ विनोद बंसल की बढ़ती नजदीकी को देख/जान कर शेखर मेहता उनके प्रति कुछ अनमने से हुए प्रतीत दिखे हैं । कुछेक अन्य लोगों को हालाँकि यह बात समझ में नहीं आती है क्योंकि शेखर मेहता को सुशील गुप्ता के खेमे के ही सदस्य के रूप में देखा जाता है; लेकिन 'इस' बात को कहने वाले लोगों का तर्क है कि एक खेमे में भी तो कई कई उपखेमे होते ही हैं और एक खेमे के लोगों के बीच टाँग-खिंचाई होती ही है । दरअसल चुनावी राजनीति के समीकरणों का ताना-बाना कुछ तो यूँ भी उलझा हुआ होता ही है, जिसे चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों के बीच की होड़ और उलझा देती है - जिसके चलते कई बार बड़े आश्चर्यकारी तमाशे देखने को मिलते हैं । रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर की नई नियुक्ति को लेकर शुरू हुआ तमाशा एक ऐसा ही तमाशा है । उम्मीद की जा रही है कि इस तमाशे के अभी और कुछ रंग देखने को मिलेंगे ।
रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर का पद अभी कुछ दिन पहले तक कमल सांघवी के पास था, जो जोन 6 ए में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार के रूप में चुने जाने पर उन्होंने हाल ही में छोड़ दिया है । विनोद बंसल चूँकि उनके साथ असिस्टेंट रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर के पद पर रहे हैं, इसलिए माना/समझा जा रहा था कि कमल सांघवी द्वारा खाली की गई कुर्सी उन्हें स्वतः ही मिल जाएगी । लोग तो कमल सांघवी द्वारा खाली की गई कुर्सी पर विनोद बंसल की ताजपोशी होने का इंतजार ही कर रहे थे - लेकिन मामले में अचानक से ट्विस्ट आ गया है । रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद के लिए आवेदन माँगने की कार्रवाई वास्तव में एक अप्रत्याशित कार्रवाई है । रोटरी में रिसोर्स ग्रुप के पदों के लिए आवेदन माँगने का रिवाज नहीं है, यहाँ तो लॉबिइंग से ही पद मिलते हैं । विनोद बंसल के लिए लॉबिइंग भी तगड़ी ही देखी/समझी जा रही थी, लेकिन जिस अचानक तरीके से रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद के लिए आवेदन माँगने का फरमान आया - उक्त पद पर विनोद बंसल की ताजपोशी होने की सारी तैयारी धरी रह गई ।
रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर पद पर रहते हुए कमल सांघवी के इंटरनेशनल डायरेक्टर 'बनने' से इस पद की महत्ता अचानक से बढ़ गई है । इस महत्ता को बढ़ाने में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए विनोद बंसल की संभावित उम्मीदवारी की चर्चा ने भी बड़ा योगदान दिया है । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए जोन 4 में होने वाले अगले चुनाव में विनोद बंसल की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने की चर्चा है - इस चर्चा की पृष्ठभूमि में उन्हें रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर की कुर्सी मिलने का एक अलग और खास महत्त्व स्वाभाविक रूप से हो गया । ऐसे में उनके विरोधियों का सक्रिय होना भी स्वाभाविक है । कुछेक लोगों को लगता है कि विरोधियों के साथ-साथ समर्थकों ने भी विनोद बंसल की राह को मुश्किल बनाने का काम किया है, और इसलिए उनकी राह सचमुच में मुश्किल हो गई है । यह जो अचानक से झमेला पैदा हो गया है, उसके लिए कुछेक लोग शेखर मेहता को भी जिम्मेदार ठहराते हैं । शेखर मेहता को यूँ तो विनोद बंसल के समर्थक के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है, लेकिन सुशील गुप्ता के साथ विनोद बंसल की बढ़ती नजदीकी को देख/जान कर शेखर मेहता उनके प्रति कुछ अनमने से हुए प्रतीत दिखे हैं । कुछेक अन्य लोगों को हालाँकि यह बात समझ में नहीं आती है क्योंकि शेखर मेहता को सुशील गुप्ता के खेमे के ही सदस्य के रूप में देखा जाता है; लेकिन 'इस' बात को कहने वाले लोगों का तर्क है कि एक खेमे में भी तो कई कई उपखेमे होते ही हैं और एक खेमे के लोगों के बीच टाँग-खिंचाई होती ही है । दरअसल चुनावी राजनीति के समीकरणों का ताना-बाना कुछ तो यूँ भी उलझा हुआ होता ही है, जिसे चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों के बीच की होड़ और उलझा देती है - जिसके चलते कई बार बड़े आश्चर्यकारी तमाशे देखने को मिलते हैं । रीजनल रोटरी फाउंडेशन कोऑर्डीनेटर की नई नियुक्ति को लेकर शुरू हुआ तमाशा एक ऐसा ही तमाशा है । उम्मीद की जा रही है कि इस तमाशे के अभी और कुछ रंग देखने को मिलेंगे ।