नई
दिल्ली । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग को सत्ताधारी नेताओं, खासकर
जेपी सिंह के नजदीक जाता/होता देख विनय गर्ग के समर्थक और साथी
हैरान/परेशान हो रहे हैं और उन्हें लग रहा है कि विनय गर्ग को अब चूँकि
सत्ताधारी नेताओं के साथ जाने/होने में फायदा दिख रहा है, तो वह वह अब अपने
ही साथियों के साथ धोखाधड़ी करने पर उतर आए हैं । विनय गर्ग के खास
रहे उनके ही डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर चमन लाल गुप्ता ने डायबिटीज को
लेकर जागरूकता अभियान चलाने के लिए मल्टीपल के डिस्ट्रिक्ट्स को मिली
ग्रांट लायंस कोऑर्डिनेशन कमेटी को ट्रांसफर करने के मुद्दे पर सवाल
करते हुए विनय गर्ग को ईमेल लिखा, लेकिन विनय गर्ग ने उसका जबाव ही नहीं
दिया । चमन लाल गुप्ता तथा उनके और विनय गर्ग के संगी-साथी विनय गर्ग के इस
रवैये पर खासे भड़के हुए हैं । दरअसल मल्टीपल में विनय गर्ग के
संगी-साथियों को लगता है कि लीडरशिप के नेता और पदाधिकारी डायबिटीज ग्रांट
को मनमाने तरीके से खर्च करके उसमें घपलेबाजी करने की योजना बना रहे हैं ।
वह इस मुद्दे पर लीडरशिप के नेताओं को घेरना चाहते हैं; लेकिन वह यह देख
कर हैरान/परेशान हैं कि उक्त मुद्दे पर मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के रूप में
विनय गर्ग भी लीडरशिप के नेताओं व पदाधिकारियों से मिले हुए हैं । चमन
लाल गुप्ता ने विनय गर्ग को संबोधित ईमेल पत्र में जो कहा, उसके पीछे उनकी
मंशा लोगों को यही दिखाई दी कि विनय गर्ग इस मुद्दे पर लीडरशिप के नेताओं
और पदाधिकारियों से बात करें और डायबिटीज के नाम पर आई/मिली ग्रांट पर
डिस्ट्रिक्ट्स को उनका हक दिलवाएँ । विनय गर्ग लेकिन औपचारिक रूप से मामले
पर चुप्पी साधे बैठे हैं, और अनौपचारिक बातचीत में अपनी असहायता का वास्ता
देते हैं - इससे उनके ही संगी/साथियों को उनकी भूमिका पर संदेह होने लगा
है ।
विनय गर्ग ने मीसल्स रूबेला ग्रांट के पैसे निकालने के लिए जेपी सिंह द्वारा प्रस्तुत किए गए चेक्स पर जिस फुर्ती से हस्ताक्षर किए हैं, उसे देख कर तो विनय गर्ग के संगी/साथी हक्के-बक्के ही रह गए हैं । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट और मल्टीपल की राजनीति में जेपी सिंह और विनय गर्ग एक दूसरे के विरोधी के रूप में आमने/सामने रहे हैं, और जेपी सिंह विरोधी राजनीति के समर्थन में होने के कारण ही विनय गर्ग को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन की कुर्सी मिली है - लेकिन अब विनय गर्ग जिस फुर्ती से जेपी सिंह द्वारा किए जा रहे मीसल्स रूबेला ग्रांट के खर्चों पर मोहर लगा रहे हैं, उसे देख/जान कर विनय गर्ग के संगी/साथियों के तोते उड़े हुए हैं । दरअसल मीसल्स रूबेला ग्रांट के खर्चों के हिसाब-किताब को लेकर विनय गर्ग के संगी-साथी जेपी सिंह की गर्दन दबोचने की तैयारी में हैं, लेकिन उन्हें अपनी तैयारी विनय गर्ग के रवैये से फेल होती नजर आ रही है । विनय गर्ग ने अपने संगी-साथियों से कहा भी कि जेपी सिंह ने उन्हें खर्चों का जो विवरण भेजा है, उसे वह झूठा या गलत आखिर किस आधार पर ठहराएँ और भुगतान के चेक्स पर हस्ताक्षर न करें ? विनय गर्ग का कहना है कि जेपी सिंह ने खर्चों के जो विवरण भेजे हैं, उनकी सत्यता जानने के लिए प्रयास करने का उनके पास समय नहीं है, और इसलिए पचड़े में पड़ने से बचने के लिए उन्होंने जेपी सिंह द्वारा दिए गए विवरण को सही ही मान लिया । यह सुन कर उनके संगी-साथियों का कहना रहा कि जेपी सिंह द्वारा दिए गए खर्चों के विवरण पर संदेह जताते हुए प्रक्रिया संबंधी और डिटेल्स तो वह माँग सकते थे, जिससे विवरण में की गई हेराफेरी पकड़ने या उसके संकेत पाने में आसानी होती - किंतु समयाभाव का वास्ता देकर विनय गर्ग उनके द्वारा दिए गए विवरण को आँख मूँद कर सच मानते गए और भुगतान के चेक्स पर हस्ताक्षर करते गए । इससे लायंस इंटरनेशनल द्वारा प्राप्त हुई मीसल्स रूबेला ग्रांट के मुद्दे पर जेपी सिंह को घेरने की विनय गर्ग के संगी-साथियों की तैयारी धरी की धरी रह गई ।
डायबिटीज ग्रांट के मुद्दे को लेकर आरोप लगाते एक बेनामी पत्र में तो ग्रांट की रकम हड़पने की तैयारी में विनय गर्ग की मिली भगत की बात कह दी गई है । चमन लाल गुप्ता के ईमेल पत्र में संकेत रूप से तथा बेनामी पत्र में खुले रूप से विनय गर्ग को जिस तरह से कठघरे में खड़ा करने की कोशिश हुई है, वह इस बात का सुबूत है कि विनय गर्ग की भूमिका उनके अपने ही लोगों के बीच संदेह के घेरे में आ गई है । मजे की बात यह है कि विनय गर्ग के लिए फिलहाल प्रातः स्मरणीय बने हुए सुशील अग्रवाल और तेजपाल खिल्लन भी डायबिटीज व मीसल्स रूबेला ग्रांट के मुद्दे पर सत्ताधारी नेताओं के साथ मिले हुए 'दिख' रहे हैं । सुशील अग्रवाल राजनीतिक कारणों से और तेजपाल खिल्लन व्यावसायिक कारणों से सत्ताधारी नेताओं के साथ 'कभी दूर, कभी पास' का खेल खेलें, यह बात तो लोगों को फिर भी समझ में आती है - लेकिन विनय गर्ग का सत्ताधारी नेताओं, और खासकर जेपी सिंह के साथ 'मिल जाने' की स्थितियों ने लोगों को हैरान/परेशान किया हुआ है । विनय गर्ग के विरोधी तो खुल कर कहने लगे हैं, और उनके कुछेक संगी-साथियों को भी शक होने लगा है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन 'बनने' में खर्च हुए पैसे की वसूली कर लेने के लिए ही तो कहीं विनय गर्ग ने जेपी सिंह से हाथ नहीं मिला लिया है ? डायबिटीज तथा मीसल्स रूबेला ग्रांट में हेराफेरी को लेकर मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के लोगों के बीच बातों/चर्चाओं की जो गर्मागर्मी है, उसकी आँच की पकड़ में विनय गर्ग के भी आते/फँसते जाने से मामला खासा रोमांचक हो गया है ।
विनय गर्ग ने मीसल्स रूबेला ग्रांट के पैसे निकालने के लिए जेपी सिंह द्वारा प्रस्तुत किए गए चेक्स पर जिस फुर्ती से हस्ताक्षर किए हैं, उसे देख कर तो विनय गर्ग के संगी/साथी हक्के-बक्के ही रह गए हैं । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट और मल्टीपल की राजनीति में जेपी सिंह और विनय गर्ग एक दूसरे के विरोधी के रूप में आमने/सामने रहे हैं, और जेपी सिंह विरोधी राजनीति के समर्थन में होने के कारण ही विनय गर्ग को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन की कुर्सी मिली है - लेकिन अब विनय गर्ग जिस फुर्ती से जेपी सिंह द्वारा किए जा रहे मीसल्स रूबेला ग्रांट के खर्चों पर मोहर लगा रहे हैं, उसे देख/जान कर विनय गर्ग के संगी/साथियों के तोते उड़े हुए हैं । दरअसल मीसल्स रूबेला ग्रांट के खर्चों के हिसाब-किताब को लेकर विनय गर्ग के संगी-साथी जेपी सिंह की गर्दन दबोचने की तैयारी में हैं, लेकिन उन्हें अपनी तैयारी विनय गर्ग के रवैये से फेल होती नजर आ रही है । विनय गर्ग ने अपने संगी-साथियों से कहा भी कि जेपी सिंह ने उन्हें खर्चों का जो विवरण भेजा है, उसे वह झूठा या गलत आखिर किस आधार पर ठहराएँ और भुगतान के चेक्स पर हस्ताक्षर न करें ? विनय गर्ग का कहना है कि जेपी सिंह ने खर्चों के जो विवरण भेजे हैं, उनकी सत्यता जानने के लिए प्रयास करने का उनके पास समय नहीं है, और इसलिए पचड़े में पड़ने से बचने के लिए उन्होंने जेपी सिंह द्वारा दिए गए विवरण को सही ही मान लिया । यह सुन कर उनके संगी-साथियों का कहना रहा कि जेपी सिंह द्वारा दिए गए खर्चों के विवरण पर संदेह जताते हुए प्रक्रिया संबंधी और डिटेल्स तो वह माँग सकते थे, जिससे विवरण में की गई हेराफेरी पकड़ने या उसके संकेत पाने में आसानी होती - किंतु समयाभाव का वास्ता देकर विनय गर्ग उनके द्वारा दिए गए विवरण को आँख मूँद कर सच मानते गए और भुगतान के चेक्स पर हस्ताक्षर करते गए । इससे लायंस इंटरनेशनल द्वारा प्राप्त हुई मीसल्स रूबेला ग्रांट के मुद्दे पर जेपी सिंह को घेरने की विनय गर्ग के संगी-साथियों की तैयारी धरी की धरी रह गई ।
डायबिटीज ग्रांट के मुद्दे को लेकर आरोप लगाते एक बेनामी पत्र में तो ग्रांट की रकम हड़पने की तैयारी में विनय गर्ग की मिली भगत की बात कह दी गई है । चमन लाल गुप्ता के ईमेल पत्र में संकेत रूप से तथा बेनामी पत्र में खुले रूप से विनय गर्ग को जिस तरह से कठघरे में खड़ा करने की कोशिश हुई है, वह इस बात का सुबूत है कि विनय गर्ग की भूमिका उनके अपने ही लोगों के बीच संदेह के घेरे में आ गई है । मजे की बात यह है कि विनय गर्ग के लिए फिलहाल प्रातः स्मरणीय बने हुए सुशील अग्रवाल और तेजपाल खिल्लन भी डायबिटीज व मीसल्स रूबेला ग्रांट के मुद्दे पर सत्ताधारी नेताओं के साथ मिले हुए 'दिख' रहे हैं । सुशील अग्रवाल राजनीतिक कारणों से और तेजपाल खिल्लन व्यावसायिक कारणों से सत्ताधारी नेताओं के साथ 'कभी दूर, कभी पास' का खेल खेलें, यह बात तो लोगों को फिर भी समझ में आती है - लेकिन विनय गर्ग का सत्ताधारी नेताओं, और खासकर जेपी सिंह के साथ 'मिल जाने' की स्थितियों ने लोगों को हैरान/परेशान किया हुआ है । विनय गर्ग के विरोधी तो खुल कर कहने लगे हैं, और उनके कुछेक संगी-साथियों को भी शक होने लगा है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन 'बनने' में खर्च हुए पैसे की वसूली कर लेने के लिए ही तो कहीं विनय गर्ग ने जेपी सिंह से हाथ नहीं मिला लिया है ? डायबिटीज तथा मीसल्स रूबेला ग्रांट में हेराफेरी को लेकर मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के लोगों के बीच बातों/चर्चाओं की जो गर्मागर्मी है, उसकी आँच की पकड़ में विनय गर्ग के भी आते/फँसते जाने से मामला खासा रोमांचक हो गया है ।