जयपुर
। चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की कन्टीन्यूइंग प्रोफेशनल एजुकेशन
कमेटी द्वारा जयपुर में आयोजित की जा रही दो दिवसीय नेशनल कॉन्फ्रेंस
इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे की फजीहत का कारण बन रही है । विवादपूर्ण
मुद्दों पर नीलेश विकमसे के फैसला न करने के रवैये के चलते इंस्टीट्यूट के
सेक्रेटरी बेचारे वी सागर की बड़ी आफत हो जाती है - क्योंकि अक्सर उनकी
सुनी नहीं जाती है और कोई भी उन्हें कभी भी लताड़ देता है । रीजनल काउंसिल के
पदाधिकारियों ने समझ लिया है कि नीलेश विकमसे इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट
बन जरूर गए हैं, लेकिन प्रेसीडेंट पद की जिम्मेदारी सँभाल और निभा पाना
उनके बस की बात है नहीं, और इसलिए वह इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी को भी कुछ
नहीं समझते और मनमानियों पर उतरे रहते हैं । जयपुर में 24/25 नबंवर को
हो रही नेशनल कॉन्फ्रेंस इंस्टीट्यूट में फैली अराजकता का दिलचस्प
उदाहरण है । इस नेशनल कॉन्फ्रेंस की मेज़बानी को लेकर विवाद है -
इंस्टीट्यूट के नियमानुसार, जयपुर में आयोजित हो रहे इंस्टीट्यूट के
कार्यक्रम की मेज़बानी इंस्टीट्यूट की जयपुर ब्राँच को करनी/मिलनी चाहिए;
लेकिन मेज़बानी निभा रही है सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल । मजे की बात
यह है कि सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल की मीटिंग में इस बारे में जो
विचार-विमर्श हुआ, उसमें भी नेशनल कॉन्फ्रेंस की मेज़बानी जयपुर ब्रांच को
सौंपने का फैसला हुआ - लेकिन उसके बाद भी मेज़बानी का अधिकार जयपुर ब्राँच
से छीन कर सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल को सौंप दिया गया है ।
यह पूछना बेकार है कि सेंट्रल इंडिया रीजनल
काउंसिल के चेयरमैन दीप मिश्र आखिर काउंसिल की मीटिंग में ही हुए फैसले पर
अमल क्यों नहीं कर रहे हैं ? यह पूछना इसलिए बेकार है क्योंकि दीप मिश्र
को एक 'कठपुतली' चेयरमैन के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है, और माना/समझा
जाता है कि उन्हें चेयरमैन की कुर्सी दिलवाने वाले ऊपर के लोग जैसे
'नचाते' हैं, वह वैसे ही 'नाचते' हैं । दरअसल दीप मिश्र ऐसे अनोखे चेयरमैन
हैं, जिन्हें काउंसिल के दस सदस्यों में से कुल चार का समर्थन है, और
जिन्हें चेयरमैन का पद एक्सऑफिसो सदस्य के रूप में सेंट्रल काउंसिल के पाँच
में से चार सदस्यों के समर्थन के चलते मिला है । ऐसे में, बेचारे दीप
मिश्र की मजबूरी और व्यथा को समझा जा सकता है । संदर्भित मामले में दरअसल
हुआ यह कि सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल की मीटिंग में उपस्थित हुए
सदस्यों के बहुमत ने मेज़बानी की जिम्मेदारी जयपुर ब्राँच को सौंपने का
फैसला लिया; लेकिन इस फैसले को मानने से यह कहते/बताते हुए इंकार कर दिया
गया कि काउंसिल का बहुमत इस फैसले से सहमत नहीं है । निश्चित रूप
से बहुमत को अपना फैसला लागू करने का अधिकार है, लेकिन यह तथाकथित बहुमत
है कहाँ ? यह तथाकथित बहुमत उस मीटिंग में नजर क्यों नहीं आया, जिस
मीटिंग में जयपुर में हो रही नेशनल कॉन्फ्रेंस की मेज़बानी सुनिश्चित करने
का मामला तय हो रहा था ? कम से कम न्याय का दिखावा ही कर लिया जाता और
यह तथाकथित बहुमत दूसरी मीटिंग करके पहली मीटिंग के फैसले को पलट देता -
लेकिन ऐसा करने की जरूरत भी नहीं समझी गई । असल में, ऐसा करने में एक
समस्या यह भी थी कि तथाकथित बहुमत के ठेकेदार सेंट्रल काउंसिल सदस्य मनु
अग्रवाल को अपने साथ मान रहे हैं, लेकिन मनु अग्रवाल जयपुर ब्राँच को
मेज़बानी देने का फैसला करने वाली मीटिंग में मौजूद थे और इस फैसले के साथ
थे - ऐसे में यदि इसी मुद्दे पर सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल की दूसरी मीटिंग होती तो पहले हुए फैसले को बदलने के लिए
मनु अग्रवाल को अपना स्टैंड बदलना होता, और तब उनका दोहरा चरित्र
'रिकॉर्ड' पर आता ।
मनु अग्रवाल के दोहरे चरित्र को
रिकॉर्ड पर आने से तो बचा लिया गया है, लेकिन सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल
की मीटिंग में हुए फैसले को खुद सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल द्वारा
ठेंगा दिखाए जाने की हरकत पर उनकी चुप्पी से उनका दोहरा चरित्र लोगों के
सामने तो आ ही गया है । क्योंकि मनु अग्रवाल यदि अभी भी मीटिंग में लिए
गए अपने स्टैंड पर कायम हैं तो तथाकथित बहुमत का दावा झूठा है; बहुमत का
दावा करने वाले लोग मनु अग्रवाल की चुप्पी के सहारे/भरोसे ही अपने दावे को
सच 'दिखा' रहे हैं । बहुमत की इस तरह की मनमानी व्याख्या और दिखावेबाजी से
सवाल पैदा हुआ है कि बहुमत यदि 'ऐसे' ही तय होना है, तो फिर मीटिंग आदि की
जरूरत ही क्या है ? और क्यों मीटिंग के रिकॉर्ड और मिनिट्स तैयार करने व
रखने की जरूरत है ? इस मामले को लेकर इंस्टीट्यूट में जो शिकायतें हुई
हैं, उन्हें प्रथम दृष्टया उचित मानते/देखते हुए इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी
वी सागर ने संबंधित पार्टियों से जबाव तलब किया है । वी सागर की इस
कार्रवाई से लेकिन सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल में हो रही मनमानियों पर
कोई फर्क पड़ता नहीं दिखा है । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे को
इस बात से जैसे कोई मतलब ही नहीं है कि उनके प्रेसीडेंट-काल में हर कोई
मनमानी कर रहा है, जिसके चलते नाहक ही विवाद पैदा हो रहे हैं - और
इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन की बदनामी हो रही है । जयपुर में नेशनल
कॉन्फ्रेंस का आयोजन कर रही इंस्टीट्यूट की कन्टीन्यूइंग प्रोफेशनल एजुकेशन
कमेटी के चेयरमैन विजय गुप्ता से भी मेज़बानी के मामले में हो रहे नियम के
उल्लंघन को लेकर शिकायत की गई, लेकिन विजय गुप्ता ने जब देखा/पाया कि
इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट को ही कोई फिक्र नहीं है - तो वह ही मामले में
क्यों पड़ें ? विजय गुप्ता इसलिए भी मामले से दूर रहना और बचना चाहते हैं,
क्योंकि इस सारे झमेले के पीछे सेंट्रल काउंसिल सदस्य हैं - जिन्हें नाराज करना सेंट्रल काउंसिल की अंदरूनी राजनीति के समीकरणों को नुकसान पहुँचाना हो सकता है ।
नेशनल कॉन्फ्रेंस की मेज़बानी के मामले में इंस्टीट्यूट के नियम की और
सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल की मीटिंग में लिए गए फैसले की ऐसी-तैसी
करने के पीछे सेंट्रल काउंसिल सदस्य प्रकाश शर्मा की निजी खुन्नस को
देखा/पहचाना जा रहा है । जयपुर ब्राँच के सदस्यों के अनुसार, प्रकाश शर्मा को लगता है कि जयपुर ब्राँच के पदाधिकारी उनके कहे में नहीं चलते हैं, और उनकी बजाए सेंट्रल काउंसिल के ही एक दूसरे सदस्य श्याम लाल अग्रवाल को ज्यादा तवज्जो देते हैं । सेंट्रल काउंसिल के इन दोनों ही सदस्यों के बीच जयपुर में अपने अपने प्रभाव को बढ़ाने को लेकर एक स्वाभाविक सी होड़ रहती ही है; इस होड़ में श्याम लाल गुप्ता का पलड़ा इसलिए भारी दिखता है, क्योंकि जयपुर से रीजनल काउंसिल के तीन सदस्यों में दो - प्रमोद बूब और रोहित रुवाटिया उनके साथ देखे/पहचाने जाते हैं तथा जयपुर ब्राँच के पदाधिकारी उनके नजदीक हैं । प्रकाश शर्मा को जयपुर से रीजनल काउंसिल के तीसरे सदस्य गौतम शर्मा का ही समर्थन है ।
जयपुर ब्राँच और रीजनल काउंसिल में प्रकाश शर्मा भले ही श्याम लाल अग्रवाल
से पिछड़ रहे हैं, लेकिन सेंट्रल काउंसिल में सेंट्रल रीजन का प्रतिनिधित्व
करने वाले पाँच सदस्यों में प्रकाश शर्मा का पलड़ा फिलहाल भारी है ।
खेमेबाजी के चलते कहीं कभी 'जीत' कभी कहीं 'हार' का नजारा बनता/दिखता रहता ही है - लेकिन जयपुर में अपनी 'हार' का बदला लेने के लिए प्रकाश शर्मा इस स्तर तक जायेंगे कि इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन की साख को ही दाँव पर लगा देंगे, इसकी किसी को उम्मीद नहीं थी । जयपुर ब्राँच जयपुर के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए गौरव का प्रतीक है - राजनीति में आगे/पीछे होता ही रहता है; जयपुर ब्राँच में प्रकाश शर्मा यदि 'अपने' लोगों को नहीं जितवा सके और इस कारण से उन्हें ब्राँच में अपनी मनमानियाँ करने/थोपने का अवसर यदि
नहीं मिल पा रहा है, तो इसकी खुन्नस में वह जयपुर ब्राँच का हक़ ही छिनवा
देंगे - इसकी कल्पना उनके नजदीकियों और शुभचिंतकों तक ने नहीं की थी । जयपुर
में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का कहना है कि जयपुर ब्राँच के पदाधिकारियों के
साथ प्रकाश शर्मा की नाराजगी हो सकती है, लेकिन उनसे बदला लेने के लिए वह
जयपुर ब्राँच की पहचान और प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़ करेंगे - यह प्रकाश
शर्मा की छोटी सोच का सुबूत और उदाहरण है ।