Sunday, November 5, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए मदन बत्रा की उम्मीदवारी एक तरफ जेपी सिंह के लिए, तो दूसरी तरफ विनय गर्ग के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे के लिए चुनौती की तरह प्रस्तुत हुई है

अंबाला । एक लंबी ना-नुकुर के बाद मदन बत्रा ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी की अंततः जो घोषणा की है, उसने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गर्मी पैदा करने के साथ-साथ फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि मेहरा के लिए भी बड़ी मुसीबत और चुनौती भी खड़ी कर दी है । मदन बत्रा की उम्मीदवारी इस उम्मीद और माँग के साथ प्रस्तुत हुई है कि पिछली बार उन्होंने डिस्ट्रिक्ट में शांति और भाईचारा बनाने के उद्देश्य से अपनी उम्मीदवारी का त्याग किया था, और उनके इस त्याग का सभी ने स्वागत करते हुए उन्हें अगली बार निर्विरोध चुनवाने का आश्वासन व भरोसा दिया था । उनके 'त्याग' के चलते चूँकि रवि मेहरा को फायदा हुआ था, इसलिए त्याग के बदले में दिए गए आश्वासन और भरोसे को पूरा करने की जिम्मेदारी भी रवि मेहरा की ही ज्यादा है - इसलिए मदन बत्रा और उनके समर्थक नेता रवि मेहरा पर ही दबाव बनायेंगे कि वह अपना समर्थन तो मदन बत्रा को दे हीं, अपने 'साथियों' का समर्थन भी मदन बत्रा को दिलवाएँ । ऐसा हो पाना चूँकि असंभव ही है, इसलिए रवि मेहरा के ऊपर एक नैतिक दबाव तो होगा ही । यह दबाव इसलिए और ज्यादा गंभीर होगा क्योंकि उन पर अपने खेमे के उम्मीदवार के रूप में रमन गुप्ता के लिए 'काम' करना जरूरी होगा । लायन राजनीति में आश्वासनों व भरोसों का यूँ तो कोई मूल्य नहीं है, और कोई इनकी परवाह भी नहीं करता है - लेकिन विरोधियों को चित करने के लिए इनकी बातें तो की ही जाती हैं, और विरोधियों के लिए इस तरह की बातें मुसीबत भी बनती ही हैं । मदन बत्रा की उम्मीदवारी के संदर्भ में पिछली बार किया गया उनका 'त्याग' और उन्हें दिया गया आश्वासन व भरोसा इस वर्ष के सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में एक प्रमुख मुद्दा तो बनेगा ही ।
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में विनय गर्ग के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे के नेताओं को भी इस बात का - और इस बात की गंभीरता का अहसास है और इसीलिए उन्होंने इस बात की हवा के सहारे फुलाए जा रहे गुब्बारे को फोड़ने की तैयारी शुरू कर दी है । उनकी तरफ से कहा जा रहा है कि मदन बत्रा को यदि पिछली बार किए गए 'त्याग' का ही फायदा लेना था, तो इस बार अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत करने में उन्होंने देर क्यों कर दी ? कहा जा रहा है कि मौजूदा लायन वर्ष के अभी तक के बीते चार महीनों में मदन बत्रा ने न तो अपनी उम्मीदवारी को लेकर कोई दिलचस्पी दिखाई और न डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में ही अपनी उपस्थिति या सक्रियता प्रदर्शित की - इसलिए मान लिया गया कि लायनिज्म में अब उनकी कोई दिलचस्पी नहीं रह गई है, और इस कारण से रमन गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी को लेकर काम शुरू कर दिया है तथा अब वह इतना आगे बढ़ गए हैं कि उनसे पीछे लौटने के लिए कहना संभव नहीं होगा । इस तर्क का हालाँकि मदन बत्रा और उनके समर्थक नेताओं की तरफ से बड़ा जोरदार जबाव दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि पिछली बार मदन बत्रा जब पीछे लौटे थे, तब वह काफी आगे बढ़ चुके थे और मोटी रकम खर्च कर चुके थे; उसके बाद भी डिस्ट्रिक्ट में शांति और भाईचारा बनाने के लिए उन्होंने त्याग किया था और वह पीछे लौटे थे । उनका कहना है कि रमन गुप्ता ने तो अभी कोई ज्यादा काम भी नहीं किया है, और अभी उनका कोई खास पैसा भी खर्च नहीं हुआ है - इसलिए अभी वह आराम से पीछे लौट सकते हैं ।
रमन गुप्ता को पीछे लौटना नहीं है, इसलिए उन्होंने और विनय गर्ग के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे के नेताओं ने मदन बत्रा और उनके समर्थक नेताओं पर सीधा हमला बोला है । इस हमले में कहा/बताया जा रहा है कि पिछली बार मदन बत्रा ने अपनी उम्मीदवारी वापस लेकर कोई त्याग नहीं किया था और डिस्ट्रिक्ट में शान्ति व भाईचारे की बातें सिर्फ जुमला थीं - मदन बत्रा चुनाव के बीच में इसलिए पीछे हट गए थे, क्योंकि चुनाव में उन्हें अपनी पराजय सुनिश्चित लग रही थी । इसके अलावा, जेपी सिंह ने अपने राजनीतिक स्वार्थ में उनकी उम्मीदवारी की बलि ले ली - जेपी सिंह को उम्मीद रही थी कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में मदन बत्रा को मुकाबले से हटा कर, वह इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में निर्विरोध चुने जाने की स्थिति बना लेंग; किंतु उनकी उम्मीद पूरी नहीं हो सकी । उल्लेखनीय है कि दो वर्ष पहले, प्रमोद सपरा के गवर्नर-काल में यह प्रयास हुआ था कि डिस्ट्रिक्ट के दोनों खेमे के लोग कुछ 'छोड़ेंगे' और कुछ 'पायेंगे' - यह प्रयास लेकिन कुछेक नेताओं के जेपी सिंह के साथ चलने वाले 'झगड़े' के कारण सफल नहीं हो सका था, और उस वर्ष हुए राजनीतिक घमासान में जेपी सिंह को भारी फजीहत का सामना करना पड़ा था । उससे लेकिन जेपी सिंह को यह सबक मिला कि लायन-राजनीति में समझौता करने के लिए उत्सुक होने को वास्तव में कमजोरी का संकेत समझा जाता है; इसलिए यहाँ समझौता करो भी तो भी 'लड़ते' हुए 'दिखते' रहो; इस फार्मूले पर जेपी सिंह ने पिछले लायन वर्ष में अमल किया और 'दोनों' मोर्चों पर विजय पताका फहराई ।
पिछले वर्ष मिली दोहरी जीत जेपी सिंह के लिए लेकिन तब तक अधूरी है, जब तक कि मदन बत्रा को 'त्याग' का फल नहीं मिलता । दो वर्ष पहले के घटनाचक्र में मदन बत्रा की उम्मीदवारी को वापस करवाने में चूँकि जेपी सिंह का अपना स्वार्थ देखा/पहचाना जा रहा है, इसलिए मदन बत्रा को चुनावी जीत दिलवाने के लिए जेपी सिंह पर बड़ा नैतिक दबाव है । विरोधी खेमे के नेताओं को पिछले वर्ष जेपी सिंह से मिली दोहरी 'मार' का बदला लेने के लिए मदन बत्रा की राह में रोड़ा बनने का मौका दिख रहा है, लिहाजा वह योजनाबद्द तरीके से रमन गुप्ता की उम्मीदवारी को ले आए हैं । मदन बत्रा को सक्रिय तथा अपनी उम्मीदवारी के प्रति ज्यादा उत्सुक न पाते/देखते हुए जेपी सिंह किसी दूसरे को उम्मीदवार के रूप में तो खोज रहे थे, लेकिन मदन बत्रा के लिए वह मौका भी छोड़े हुए थे - ताकि मदन बत्रा बाद में शिकायत न करें । इस बीच मदन बत्रा ने अपने आप को उम्मीदवारी के लिए तैयार कर लिया; उन्हें समझाया गया है कि पिछले वर्ष जब गुरचरण सिंह भोला जैसे अपेक्षाकृत अपरिचित उम्मीदवार से यशपाल अरोड़ा जैसे खासे सक्रिय उम्मीदवार को बड़े अंतर से हराया जा सकता है, तो रमन गुप्ता उनके सामने कहाँ टिकेंगे ? रमन गुप्ता की अभी तक की सक्रियता को देखते हुए यह भी माना जा रहा है कि एक उम्मीदवार के रूप में यशपाल अरोड़ा की जो कमजोरियाँ थीं, रमन गुप्ता भी उन्हीं कमजोरियों के शिकार हैं; इसलिए जितनी आसानी से यशपाल अरोड़ा को पछाड़ दिया गया, उतनी ही आसानी से रमन गुप्ता को भी हरा दिया जायेगा । विनय गर्ग के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे के नेताओं के लिए भी इस वर्ष का चुनाव खासा महत्त्वपूर्ण है, और इसलिए वह पिछले वर्ष जैसी गलतियाँ नहीं दोहराना चाहेंगे । यही कारण है कि मदन बत्रा को कमजोर उम्मीदवार के रूप में मानते/देखते हुए भी वह चुनावी मुकाबले को लेकर सतर्क हुए हैं, और मदन बत्रा की उम्मीदवारी के पक्ष में चलने/चलाये जाने वाले दाँव-पेंचों पर शुरू से ही उनका पूरा ध्यान है ।