Thursday, November 9, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स में नीलेश विकमसे के प्रेसीडेंट-काल में बना अराजकता और अनिर्णय का माहौल, नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में राकेश मक्कड़ एंड टीम की मनमानियों और लूट-खसोट के लिए वरदान बना

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ और उनके साथी पदाधिकारियों ने स्टूडेंट कन्वेंशन के नाम पर रुपए हड़पने की योजना पर काम करना शुरू किया है, और इसके तहत करीब 35 लाख रुपए का बजट बना कर तैयार किया है । पिछले वर्ष स्टूडेंट कन्वेंशन में करीब 20 लाख रुपए खर्च हुए थे । इसी से लोगों को लगता है कि राकेश मक्कड़ एंड टीम के सदस्यों के पेट कुछ ज्यादा बड़े हैं, और इसीलिए उन्होंने स्टूडेंट कन्वेंशन के खर्चे में जोर का उछाल 'पैदा' कर दिया है । इस उछाल को तर्कसंगत बनाने/दिखाने के लिए कन्वेंशन में दो हजार छात्रों की भागीदारी होने/कराने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जो पिछले वर्ष एक हजार छात्रों का था । अब पिछले वर्ष यदि एक हजार छात्रों के लिए इंतजाम करने में 20 लाख रुपए खर्च हुए थे, तो इस वर्ष दो हजार छात्रों के लिए इंतजाम करने में 35 लाख का खर्चा तो उचित ही लगता है । लेकिन यहाँ एक पेंच है - पिछले वर्ष इंतजाम भले ही एक हजार छात्रों के लिए किया गया था, लेकिन कन्वेंशन में छात्र कुल 400/500 के बीच ही पहुँचे थे । पिछले वर्ष की कन्वेंशन के लिए तैयार की/करवाई गयी तमाम स्टेशनरी अभी भी धूल खा रही है । पिछले वर्ष की कन्वेंशन आयोजित करने वाले भी राकेश मक्कड़ और उनके संगी-साथी ही थे - इसलिए एक स्वाभाविक सा सवाल बनता है कि पिछले वर्ष यही लोग स्टूडेंट कन्वेंशन में जब एक हजार छात्रों को जुटाने का लक्ष्य ही पूरा नहीं कर पाए थे, तब इस वर्ष दो हजार छात्रों का लक्ष्य क्यों निर्धारित कर लिया गया है ? राकेश मक्कड़ तथा काउंसिल में पदाधिकारी उनके साथियों की हरकतों को देखते/पहचानते हुए लोगों को इस सवाल का उचित जबाव यही समझ में आता है कि इंस्टीट्यूट के पैसे की ज्यादा से ज्यादा लूट को संभव बनाने के लिए ही राकेश मक्कड़ एंड टीम ने यह ऊँचा लक्ष्य निर्धारित किया है ।
उल्लेखनीय है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के रूप में राकेश मक्कड़ एंड टीम पर काउंसिल के हिसाब-किताब में गड़बड़ियाँ करने तथा हिसाब-किताब को काउंसिल सदस्यों से ही छिपाने को लेकर गंभीर आरोप और भारी विवाद रहे हैं; जिन्हें लेकर चारों तरफ से घिर जाने के बाद वह जो थोड़ा-बहुत हिसाब दिखाने को मजबूर हुए तो उसमें बहुत सी 'हेरा-फेरियाँ' पकड़ी गईं - और जिसके चलते पूर्व चेयरमैन दीपक गर्ग और मौजूदा ट्रेजरर सुमित गर्ग काउंसिल के 'लूटे गए' पैसे काउंसिल को वापस करने के लिए मजबूर तक हुए । पोल खुलती तथा लूटे गए पैसे वापस करने की नौबत आते देख राकेश मक्कड़ और उनके साथी पदाधिकारियों ने हिसाब-किताब फिर से छिपा लिया और बेईमानीपूर्ण तरीके से 'जबरदस्ती' बजट पास करवाया, और षड्यंत्रपूर्ण तरीके से डेढ़ मिनट में एजीएम कर ली । राकेश मक्कड़ एंड टीम की इन हरकतों पर काउंसिल के ही सदस्यों की तरफ से इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट को शिकायत की हुई है । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे की तरफ से कई कारणों से चूँकि कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं हुई, इसलिए राकेश मक्कड़ एंड टीम को मनमानियाँ करने का और बल मिला है । नीलेश विकमसे के प्रेसीडेंट-काल में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट में जो अराजकता और अनिर्णय का माहौल बना है, वह नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में राकेश मक्कड़ एंड टीम की मनमानियों और लूट-खसोट के लिए वरदान बना है ।
इसी वरदान का प्रसाद पाने के लिए, पिछले वर्ष एक हजार छात्रों की भागीदारी के लक्ष्य-निर्धारण के साथ की गई स्टूडेंट कन्वेंशन में मुश्किल से 400/500 छात्रों को इकट्ठा कर पाने वाली राकेश मक्कड़ एंड टीम ने इस वर्ष की स्टूडेंट कन्वेंशन के लिए दो हजार छात्रों की भागीदारी का लक्ष्य निर्धारित कर अपनी अपनी जेबें भरने का इंतजाम कर लिया है । मजे की बात यह है कि काउंसिल के चेयरमैन के रूप में राकेश मक्कड़ ने स्टूडेंट कन्वेंशन के लिए काउंसिल सदस्यों तक से बात करने की जरूरत तक नहीं समझी है । उनकी मनमानी का इससे भी बड़ा सुबूत यह मिला है कि कन्वेंशन के लिए जगह बुक करवाने का काम गुपचुप रूप से जून में ही कर लिया गया था, और जिसके लिए किसी से पूछे या किसी को बताए बिना ही तीन लाख रुपए एडवांस के रूप में भी दे दिए गए थे । राकेश मक्कड़ और काउंसिल में पदाधिकारी उनके साथियों की सोच और उनके व्यवहार का दिलचस्प नजारा यह है कि पदाधिकारी के रूप में उनके पास लाइब्रेरीज के खर्चे पूरे करने के लिए पैसे नहीं हैं, और इसलिए पिछले दिनों उन्होंने लाइब्रेरीज को बंद कर देने के फैसले कर लिए - लेकिन फालतू के कामों में खर्च करने के लिए उनके पास पैसे की कोई कमी नहीं है । दरअसल फालतू के कामों में खर्च हुए 'दिखाए' गए पैसे से चूँकि अपनी अपनी जेबें भरने का मौका मिलता है, इसलिए चेयरमैन राकेश मक्कड़ और उनके साथी पदाधिकारियों का सारा ध्यान जरूरी कामों की बजाए उन्हीं पर रहता है ।
राकेश मक्कड़ के चेयरमैन-काल में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सिर्फ पैसों की ही बेईमानी नहीं हो रही है, बल्कि प्रोफेशन के नाम पर भी जमकर धोखाधड़ी हो रही है । इसका बिलकुल नया उदाहरण लुधियाना में होने वाला सेमीनार है - जिसके लिए पहले तो बताया गया था कि सेमीनार में 'एमिनेंट' स्पीकर्स आयेंगे, लेकिन जब स्पीकर्स के नाम सामने आए तो 'खोदा पहाड़, निकला चूहा' वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए काउंसिल में पदाधिकारी नितिन कँवर और राजेंद्र अरोड़ा के नाम सामने आए । इस हरकत को सरासर धोखाधड़ी मानते/बताते हुए राकेश मक्कड़ को लोगों की तरफ से जब लताड़ पड़ी, तो उन्होंने बहानेबाजी लगाई कि उन्हें कोई एमिनेंट स्पीकर मिला ही नहीं, इसलिए ऐन मौके पर उन्हें काउंसिल के इन पदाधिकारियों को ही स्पीकर्स के रूप में तय करना पड़ा है । यह हरकत कोई पहली बार नहीं हुई है; काउंसिल पदाधिकारी ब्रांचेज के कार्यक्रमों में स्पीकर्स के रूप में पहले भी जाते रहे हैं - काउंसिल के सदस्यों के आरोपों के ही अनुसार, वह इसलिए स्पीकर बनते रहे हैं, ताकि आने/जाने/ठहरने/खाने का खर्चा वह काउंसिल से बसूल सकें । राकेश मक्कड़ और उनके साथी पदाधिकारी अपनी छोटी छोटी जरूरतों और स्वार्थों को पूरा करने के लिए सेमिनार्स के आयोजन तक में जिस तरह की हेराफेरियाँ कर रहे हैं, उससे सेमिनार्स के स्तर बुरी तरह से घटे हैं और वह मजाक बन कर रह गए हैं ।