Wednesday, April 18, 2012

राकेश त्रेहन जिन केएल खट्टर के कारण तरह-तरह से अपमानित होते रहे हैं, मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए अब उन्हीं केएल खट्टर का समर्थन करेंगे क्या

नई दिल्ली | केएल खट्टर मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन बनने के लिए अब उन्ही राकेश त्रेहन की खुशामद में जुट गए हैं, जिन राकेश त्रेहन के खिलाफ अभी हाल तक उन्होंने जबरदस्त निंदा अभियान चलाया था और जिनके खिलाफ षड्यंत्रपूर्वक नेगेटिव वोटिंग करवाई थी | केएल खट्टर ने अपने नजदीकियों को तथा दूसरे अन्य लोगों को विश्वास दिलाया है कि उन्होंने राकेश त्रेहन के साथ भले ही कितना ही घटियापन किया हो, लेकिन फिर भी वह राकेश त्रेहन से अपनी उम्मीदवारी की चिठ्ठी पर हस्ताक्षर करवा लेंगे | यहाँ मजे की बात यह है कि राकेश त्रेहन के नजदीकियों को तो केएल खट्टर के इस दावे के पूरा होने का कुछ-कुछ भरोसा है, लेकिन केएल खट्टर के नजदीकियों को ऐसा भरोसा नहीं है | दरअसल राकेश त्रेहन के नजदीकियों ने उन्हें बार-बार समझाया था कि केएल खट्टर और उनके ग्रुप के लोग किसी भी तरह से विश्वास करने योग्य नहीं हैं; लेकिन राकेश त्रेहन कभी छुप कर तो कभी चालाकी से केएल खट्टर और उनके ग्रुप के नेताओं से संबंध जोड़े रहे थे | पता नहीं क्यों, राकेश त्रेहन को यह विश्वास रहा कि केएल खट्टर और उनके ग्रुप के नेता दूसरों के साथ भले ही घटियापन करते/दिखाते रहे हों, लेकिन उनके साथ घटियापन नहीं करेंगे | नेगेटिव वोटिंग को लेकर भी राकेश त्रेहन को पक्का विश्वास था कि विजय शिरोहा के खिलाफ नेगेटिव वोटिंग भले ही हो, लेकिन उनके खिलाफ नेगेटिव वोटिंग नहीं होगी | इसके लिए उन्होंने अपने लोगों को अँधेरे में रख कर चंद्रशेखर मेहता से तार भी जोड़ लिए थे - किंतु उसका कोई फायदा नहीं हुआ और जितने नेगेटिव वोट विजय शिरोहा को पड़े, उतने ही नेगेटिव वोट राकेश त्रेहन को भी मिले | सभी का - पक्ष और विपक्ष के सभी लोगों का मानना है कि केएल खट्टर और चंद्रशेखर मेहता ने मिल कर राकेश त्रेहन को उल्लू बनाया | राकेश त्रेहन के नजदीकियों को लगता है कि इससे राकेश त्रेहन को शायद सबक मिला हो कि केएल खट्टर और चंद्रशेखर मेहता किसी भी तरह से विश्वास करने योग्य नहीं हैं | राकेश त्रेहन के कुछेक नजदीकियों को हालाँकि अभी भी शक है कि पता नहीं राकेश त्रेहन ने अब भी सबक सीखा है या नहीं ? केएल खट्टर ने अपनी उम्मीदवारी के आवेदन पर राकेश त्रेहन के हस्ताक्षर करवा लेने का जो विश्वास जताया है, उससे राकेश त्रेहन पर शक करने वाले नजदीकियों का शक और बढ़ गया है | सभी के लिए यह उत्सुकता का विषय है कि केएल खट्टर और उनके संगी-साथियों से बार-बार अपमानित होते रहने के बावजूद उनके साथ तार जोड़े रखने वाले राकेश त्रेहन अब भी उनके काम आयेंगे क्या ?
केएल खट्टर भी मजेदार व्यक्ति हैं | सिर्फ इसलिए ही नहीं कि जिन राकेश त्रेहन को वह बार-बार और तरह-तरह से अपमानित करते/करवाते रहे हैं, उन्हीं राकेश त्रेहन से वह समर्थन की उम्मीद भी कर रहे हैं; बल्कि इसलिए भी कि कई बार विभिन्न मौकों पर यह कह चुकने - कि लायनिज्म में आकर उन्होंने बड़ी गलती की और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनना तो उनके जीवन की सबसे बड़ी भूल रही - के बावजूद अब वह मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन की चुनावी दौड़ में शामिल हो गए हैं | हालाँकि उनके नजदीकियों का कहना है कि वह भी जानते हैं कि उनके चेयरपरसन बनने की तो कोई संभावना नहीं है, वह तो बस काउंसिल में किसी भी पद की जुगाड़ में हैं | लेकिन इसके लिए भी शामिल तो उन्हें चेयरपरसन पद की दौड़ में होना पड़ेगा | केएल खट्टर मान कर चल रहे हैं कि वह चेयरपरसन पद के लिए अपना दावा पेश करेंगे तब कहीं यह संभावना बनेगी कि वह काउंसिल में कोई पद पा लें | इस कोशिश में उनके लिए मुसीबत की बात यह रही कि जिन लोगों का उन्हें सहयोग और समर्थन चाहिए उन लोगों तक उनकी बदनामी उनसे पहले पहुँची हुई थी | चेयरपरसन - या कुछ भी - बनने के लिए उन्होंने जिस किसी के यहाँ भी गुहार लगाई उसी ने उन्हें उलाहना दिया कि अपने डिस्ट्रिक्ट में तो कोई तुम्हारे साथ है नहीं - वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर फर्स्ट और वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सेकेंड तुम्हारे खिलाफ हैं; ऐसे में कैसे कुछ बनोगे ? मल्टीपल में लोगों को पता हो गया है कि केएल खट्टर ने अपने व्यवहार से अधिकतर लोगों को, खास करके काम के लोगों को अपने खिलाफ किया हुआ है | वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर फर्स्ट राकेश त्रेहन और वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सेकेंड विजय शिरोहा को तो छोड़िये, अभी हाल ही में जो सुभाष गुप्ता वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सेकेंड पद के लिए चुने गए हैं और जिन्हें चुनवाने का श्रेय केएल खट्टर लेने का प्रयास करते रहे हैं, वह सुभास गुप्ता भी केएल खट्टर के कट्टर खिलाफ हो गए हैं | इसी का नतीजा है कि अपने चुने जाने की खुशी में सुभाष गुप्ता ने जो पार्टी दी न तो उसमें उन्होंने केएल खट्टर को बुलाया और न अपने एक पारिवारिक समारोह में उन्हें निमंत्रित करने की जरूरत समझी | सुभाष गुप्ता का कहना है कि केएल खट्टर ने उम्मीदवार के रूप में उन्हें तरह-तरह से जमकर चूसा और हर तरह से तंग किया |
केएल खट्टर की (कु)ख्याति चूँकि मल्टीपल के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में जा पहुँची है, इसलिए उन्हें कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा है; लेकिन फिर भी उन्हें उम्मीद है कि उन्हें मल्टीपल काउंसिल में कोई न कोई पद मिल ही जायेगा | केएल खट्टर ने अपने नजदीकियों से कहा है कि मल्टीपल काउंसिल में पदों की बंदरबांट करने वाले नेताओं को उन्होंने पटा लिया है और उन्हें कुछ न कुछ अवश्य ही मिल जायेगा | अपने नजदीकियों से तो उन्होंने यहाँ तक दावा किया है कि राकेश त्रेहन यदि उनके आवेदन पर समर्थन-हस्ताक्षर नहीं भी करते हैं तो भी वह मल्टीपल काउंसिल में किसी न किसी पद पर होंगे ही | किंतु फिर भी वह राकेश त्रेहन को समर्थन-हस्ताक्षर के लिए पटाने में लग गए हैं, क्योंकि वह भी जान रहे हैं कि बिना राकेश त्रेहन के समर्थन-हस्ताक्षर के उनका दावा कमजोर पड़ेगा |
राकेश त्रेहन की खुशामद में केएल खट्टर को जुटा देख कर लोगों की उत्सुकता यह जानने को लेकर बढ़ गई है कि केएल खट्टर के हाथों तरह-तरह से अपमानित होते रहने वाले राकेश त्रेहन उनके लिए अपना समर्थन हस्ताक्षरित करेंगे या नहीं ?

Monday, April 9, 2012

मुकेश अरनेजा ने अपनी फितरत के अनुरूप ललित खन्ना की उम्मीदवारी को लेकर रमेश अग्रवाल से धोखा किया और रमेश अग्रवाल को पचास हजार रुपये की चपत लगवाई

नई दिल्ली | ललित खन्ना की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवारी की तैयारी की बात को रमेश अग्रवाल से छिपा कर मुकेश अरनेजा ने रमेश अग्रवाल को जो 'धोखा' देने की कोशिश की है, उससे रमेश अग्रवाल ने अपने आप को ठगा हुआ पाया है | इस मुद्दे को लेकर रमेश अग्रवाल के दो नजदीकियों के बीच हुई बातचीत को सुना गया जिसमें एक ने कहा कि 'सुनते हैं कि डायन भी पड़ोस का एक घर छोड़ देती है, लेकिन मुकेश अरनेजा ने रमेश अग्रवाल को भी नहीं छोड़ा'; दूसरे ने तुरंत चुटकी ली कि 'मुकेश अरनेजा डायन थोड़े ही हैं, वह क्यों एक भी घर छोड़े ?' उल्लेखनीय है कि रमेश अग्रवाल ने अपने गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनने वाले लोगों को चिन्हित करने पर खासा जोर दिया हुआ है और उनके साथ 'लूटो और दूर दिखने की कोशिश करो' वाला संबंध अपनाया हुआ है | पेट्स में संभावित उम्मीदवार जा सकें इसके लिए संभावित उम्मीदवारों से पचास-पचास हज़ार रुपये अतिरिक्त बसूलने वाले रमेश अग्रवाल पेट्स में यह देख/जान कर हैरान रह गए कि वहाँ मुकेश अरनेजा के मुँहबोले ललित खन्ना भी अपने आप को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार बताते हुए अपना चुनाव अभियान चला रहे हैं | हैरान होने का कारण यह रहा कि रमेश अग्रवाल ने मिले फीडबैक के आधार पर जिन लोगों को अपने गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार के रूप में चिन्हित किया है उनमें ललित खन्ना का नाम है ही नहीं | इसी कारण से उन्होंने संभावित उम्मीदवारों को दूर 'रखने' का जो नाटक रचा हुआ है, उस नाटक को वह ललित खन्ना के साथ नहीं रच पाये और न ही ललित खन्ना से वह पचास हज़ार रुपये बसूल कर पाये | रमेश अग्रवाल इस बात पर बहुत ही भन्नाए हुए रहे कि मुकेश अरनेजा ने उन्हें पचास हजार रुपये की चपत लगवा दी | ललित खन्ना ने जिस होशियारी के साथ अपने आप को रमेश अग्रवाल के हाथों लुटने से बचाया और रमेश अग्रवाल को उल्लू बनाया - रमेश अग्रवाल उसके पीछे मुकेश अरनेजा के 'धोखेबाजी के तरह-तरह के आइडियाज़ से भरे दिमाग' को जिम्मेदार मान रहे हैं | रमेश अग्रवाल को विश्वास है कि ललित खन्ना ने उनके साथ जो चाल चली है, उसे चलने की हिम्मत मुकेश अरनेजा ने ही उन्हें दी है |
रमेश अग्रवाल ही क्या, कोई भी यह नहीं स्वीकार करेगा कि ललित खन्ना ने पेट्स में अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के लिए जो अभियान चलाया उसकी उन्होंने पहले से तैयारी नहीं की होगी और उनकी उस तैयारी के बारे में मुकेश अरनेजा को नहीं पता होगा | रमेश अग्रवाल के लिए शिकायत की और निराशा की बात यही है कि तमाम दवाबों व प्रतिकूल स्थितियों के बावजूद उन्होंने मुकेश अरनेजा को इस विश्वास के भरोसे डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया था कि मुकेश अरनेजा कम-से-कम उन्हें धोखा नहीं देंगे; लेकिन मुकेश अरनेजा अपनी फितरत से बाज नहीं आये और उन्होंने ललित खन्ना की उम्मीदवारी को लेकर रमेश अग्रवाल से धोखा किया | उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए ललित खन्ना की उम्मीदवारी की संभावना काफी समय से व्यक्त की जा रही थी | मुकेश अरनेजा ही लोगों को बताते थे कि ललित को तो वह जब चाहेंगे, तब उम्मीदवार बना देंगे | ललित खन्ना क्लब की राजनीति में मुकेश अरनेजा के प्रमुख सिपाही हैं और मुकेश अरनेजा की हिफाजत में तथा उनके कहने से किसी की भी ऐसी-तैसी करने को हमेशा तैयार रहते हैं | क्लब के लोगों का ही कहना है कि ललित खन्ना वैसे बहुत बढ़िया व्यक्ति हैं, बहुत मिलनसार हैं, बहुत मीठा बोलते हैं - लेकिन मुकेश अरनेजा की राजनीति को ज़माने के लिए वह किसी भी तरह का तांडव करने से पीछे नहीं रहते हैं | ललित खन्ना और मुकेश अरनेजा के बीच की जो केमिस्ट्री है, उसे जानने/पहचानने वाले लोगों को पूरा विश्वास है कि ललित खन्ना की उम्मीदवारी की तैयारी मुकेश अरनेजा की देख-रेख में ही संपन्न हुई होगी | रमेश अग्रवाल को भी यही विश्वास है और इसीलिए वह मुकेश अरनेजा द्धारा उनके साथ किए गए घटियापन को लेकर निराश और नाराज़ हैं |
ललित खन्ना और मुकेश अरनेजा के नजदीकियों का हालाँकि कहना है कि ललित खन्ना अभी अपनी उम्मीदवारी की बात भले ही कर रहे हों और अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे हों - लेकिन दरअसल अभी वह स्थितियों का जायेजा ले रहे हैं | संभवतः इसीलिए उन्होंने और मुकेश अरनेजा ने रमेश अग्रवाल को न बताया हो - उन्होंने तय किया हो कि वह पहले स्थितियों को समझ लें; और अभी पचास हजार रुपये रमेश अग्रवाल को देने से बच भी जाएँ | ललित खन्ना को जानने वाले लोगों का कहना है कि ललित खन्ना में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की इच्छा तो बहुत है, किंतु उम्मीदवार बनने की काबिलियत उनमें नहीं है | वह मुकेश अरनेजा के 'खाड़कू' की भूमिका तो अच्छे से निभा सकते हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार की 'जरूरतों' को पूरा करना उनके बस की बात नहीं है | मुकेश अरनेजा के चक्कर में ललित खन्ना ने अपनी स्थिति को हास्यास्पद ही बनाया हुआ है | इसका नज़ारा यह है कि पेट्स में तो ललित खन्ना ने अपने आप को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के उम्मीदवार के रूप में पेश किया और समर्थन जुटाने के लिए अभियान चलाया, किंतु पेट्स के लिए रवाना होने से कुछ ही दिन पहले वह क्लब में प्रेसीडेंट नोमीनी बने | अब ऐसे व्यक्ति की राजनीतिक समझ या अक्ल को आप क्या कहेंगे जो जिस वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत कर रहा होगा, उस वर्ष वह अपने क्लब का प्रेसीडेंट इलेक्ट होगा ? इसी बात से ललित खन्ना के नजदीकियों की इस बात में दम लगता है कि ललित खन्ना के बस की उम्मीदवार बनना है नहीं | यह बात शायद उन्हें भी पता है और इसीलिए उन्होंने रमेश अग्रवाल द्धारा मांगे जाने वाले पचास हजार रुपये होशियारी से बचा लिए | पचास हजार रुपये की 'दिन-दहाड़े' लगाई गई इस चपत के लिए रमेश अग्रवाल लेकिन ललित खन्ना की बजाये मुकेश अरनेजा को ज्यादा जिम्मेदार मान रहे हैं |
|| रमेश अग्रवाल की धूर्तता का नायाब उदाहरण ||
नई दिल्ली | रमेश अग्रवाल ने पेट्स में अपनी धूर्तता का एक नायाब नमूना प्रस्तुत किया | उन्होंने अपने भाषण में जोर देकर कहा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए होने वाले चुनाव में किसी भी उम्मीदवार का पक्ष नहीं लेंगे और उम्मीदवारों से दूरी बना कर रखेंगे | उन्होंने अपनी टीम के सदस्यों को भी चेतावनी के लहजे में आगाह किया कि वह भी उम्मीदवारों से दूर रहें | यह सुनते ही लोगों में इस बात की चर्चा शुरू हो गई कि रमेश अग्रवाल यदि सचमुच इतने ही ईमानदार हैं तो फिर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संभावित उम्मीदवार यहाँ - पेट्स में क्यों आमंत्रित किए गए हैं ? रमेश अग्रवाल की कथनी और करनी का भेद साक्षात् लोगों के सामने था - लेकिन रमेश अग्रवाल की बेशर्मी का आलम यह था कि वह लगातार उम्मीदवारों से दूर रहने की बात किए जा रहे थे | पेट्स में संभावित उम्मीदवारों का कोई काम नहीं था, उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं मिली थी, पेट्स में उनके उपस्थित होने का कोई कारण नहीं था - लेकिन फिर भी वह पेट्स में बुलाये गए थे | क्यों ? इस मामले का सबसे गंभीर पहलू यह है कि पेट्स में उपस्थित होने की अनुमति देने के बदले में रमेश अग्रवाल ने संभावित उम्मीदवारों से पचास-पचास हजार रुपये अतिरिक्त बसूले | बेईमानी का - पैसे बसूलने का ऐसा नायाब तरीका इससे पहले किसी भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने नहीं अपनाया है | 'रंगे हाथ' पकड़े जाने के बावजूद रमेश अग्रवाल द्धारा की जा रही उम्मीदवारों से दूरी बनाये रखने की बात को लोगों ने उनकी धूर्तता के एक नायाब सुबूत के रूप में ही देखा/पहचाना |

Wednesday, April 4, 2012

देखा असर ....................! रमेश अग्रवाल ने अपनी आलोचना से कुछ सबक तो सीखा है, लेकिन 'हेराफेरी' से वह सचमुच बाज आयेंगे क्या ?

नई दिल्ली | डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संभावित उम्मीदवारों को हेराफेरीपूर्ण तरीके से 'मौका' देने को लेकर रमेश अग्रवाल की चारों तरफ जो थू थू हुई, उससे सबक लेकर रमेश अग्रवाल ने पेट्स की तैयारियों को अंतिम रूप देने के लिए अपनी टीम के सदस्यों की अभी हाल ही में जो मीटिंग बुलाई उसमें उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संभावित उम्मीदवारों को नहीं बुलाया | उल्लेखनीय है कि अपने आप को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी होड़ से दूर और तटस्थ दिखाने के चक्कर में रमेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संभावित उम्मीदवारों को अपनी टीम में शामिल करने से तो इंकार कर दिया, लेकिन अपने सभी कार्यक्रमों में उन्हें नियमित रूप से शामिल करते रहे | रमेश अग्रवाल ने गजब तो यह किया कि पहले ऐजी एंड डिस्ट्रिक्ट कोर टीम ट्रेनिंग सेमिनार में तथा बाद में डिस्ट्रिक्ट टीम ट्रेनिंग सेमिनार (DTTS) में उन्होंने संभावित उम्मीदवारों को भी शामिल किया | सबसे पहले 'रचनात्मक संकल्प' ने यह सवाल उठाया था कि रमेश अग्रवाल ने जिन लोगों को अपनी टीम का सदस्य बनाने से इंकार कर दिया है, उन लोगों को 'कोर टीम सेमिनार' व 'डिस्ट्रिक्ट टीम सेमिनार' में आमंत्रित करने के पीछे आखिर उद्देश्य क्या है ? रमेश अग्रवाल के नजदीकियों के हवाले से ही 'रचनात्मक संकल्प' ने बताया था कि इसके पीछे उद्देश्य दरअसल संभावित उम्मीदवारों से पेट्स के लिए पैसा ऐंठना है | 'रचनात्मक संकल्प' में यह बात सामने आने के बाद रमेश अग्रवाल की चौतरफा आलोचना हुई | दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के रमेश अग्रवाल के साथी गवर्नर्स ने भी आश्चर्य से पूछना/कहना शुरू किया कि रमेश अग्रवाल बातें तो बड़ी ऊँची ऊँची करते हैं, हरकतें उनकी ऐसी हेराफेरी वाली हैं ? रमेश अग्रवाल को अपने डिस्ट्रिक्ट में भी पूर्व गवर्नर्स की आलोचना का शिकार होना पड़ा | पूर्व गवर्नर्स के साथ की गई मीटिंग में रमेश अग्रवाल ने होशियारी तो दिखाई कि नियम और व्यवस्था की बात करने वाले पूर्व गवर्नर्स को उन्होंने मीटिंग में बुलाया ही नहीं, और सिर्फ उन्हीं पूर्व गवर्नर्स को बुलाया जिनसे उन्हें उम्मीद थी कि वह उनकी आलोचना नहीं करेंगे | इतनी होशियारी करने के बाद भी रमेश अग्रवाल आलोचना से बच नहीं पाये | रमेश अग्रवाल की इस बात के लिए अच्छी खिंचाई हुई कि जिन लोगों को उन्होंने खुद ही तो अपनी टीम में शामिल नहीं किया, फिर क्यों उन्हीं लोगों को वह अपनी टीम के कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए बुलाते हैं ?
रमेश अग्रवाल ने समझ लिया कि 'रचनात्मक संकल्प' ने जो मुद्दा उठाया उस मुद्दे का व्यापक असर हुआ है और उसने उनके अपने डिस्ट्रिक्ट में और दूसरे डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर्स के बीच उनकी खासी फजीहत करा दी है | इससे उन्होंने सबक लिया और पहली बार - पहली बार उन्होंने अपने किसी कार्यक्रम में उन लोगों को शामिल नहीं किया जो उनकी टीम में नहीं हैं |
तो क्या रमेश अग्रवाल पर सचमुच असर हुआ है ? रमेश अग्रवाल वह नौटंकीपना अब नहीं दिखायेंगे जो अभी हाल तक वह दिखाते रहे हैं ?
रमेश अग्रवाल को जानने वाले लोगों का कहना है कि रमेश अग्रवाल पर अभी असर होता हुआ जरूर दिखा है, लेकिन यह असर ज्यादा दिन तक बना नहीं रह पायेगा; क्योंकि रमेश अग्रवाल उन लोगों में से हैं जिनके बारे में मशहूर कहावत कही गई है कि 'चोर चोरी से जाये, पर हेराफेरी से न जाये' | रमेश अग्रवाल के नजदीकियों का ही कहना है कि रमेश अग्रवाल ने पेट्स की तैयारियों को अंतिम रूप देने के लिए अपनी टीम के सदस्यों की मीटिंग में भले ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संभावित उम्मीदवारों को नहीं बुलाया है, लेकिन पेट्स में संभावित उम्मीदवारों की उपस्थिति को आप अवश्य ही देखेंगे | पेट्स, जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि प्रेसीडेंट इलेक्ट सेमिनार है - जिसमें प्रेसीडेंट इलेक्ट की उपस्थिति होनी होती है | इस कार्यक्रम को संभव बनाने तथा अच्छे से आयोजित करने के लिए कुछेक लोगों का सहयोग चाहिए होता है - जिन लोगों को सहयोग करने के लिए चुना जाता है उनकी उपस्थिति की बात भी समझ में आती है | लेकिन जिन लोगों को सहयोग के लिए नहीं चुना जाता, जिन लोगों का पेट्स में कोई काम नहीं है - पेट्स में उनकी उपस्थिति का क्या अर्थ है ? पेट्स की तैयारियों से जुड़े रमेश अग्रवाल के नजदीकियों का ही कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संभावित उम्मीदवारों का पेट्स में कोई काम नहीं है, पेट्स की तैयारी से जुड़ी मीटिंग में रमेश अग्रवाल ने उन्हें बुलाया भी नहीं - लेकिन पेट्स में वह उपस्थित होंगे | इसलिए होंगे - क्योंकि रमेश अग्रवाल उनसे मोटा पैसा ऐंठ चुके हैं |
रमेश अग्रवाल लेकिन जिन संभावित उम्मीदवार से पैसा नहीं ऐंठ पाये - जैसे रवि भाटिया से, उन रवि भाटिया का पेट्स के लिए रजिस्ट्रेशन करने में अड़ंगे डाल रहे हैं | रवि भाटिया पेट्स में जा सकें इसके लिए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश चंद्र प्रयास कर रहे हैं, लेकिन उनके प्रयासों के बाद भी रवि भाटिया का पेट्स में जाना अभी तक तो मुश्किल ही बना हुआ है | इस तरह रमेश अग्रवाल ने 'दिखा' दिया है कि रोटरी को धंधा बना देने और पक्षपात करने जैसे आरोपों से बचने के लिए वह एक कदम आगे तो बढ़ाते हैं लेकिन फिर तुरंत ही दो कदम पीछे खींच लेते हैं - 'हेराफेरी' की आदत आसानी से छूटती जो नहीं |