
रमेश अग्रवाल ने समझ लिया कि 'रचनात्मक संकल्प' ने जो मुद्दा उठाया उस मुद्दे का व्यापक असर हुआ है और उसने उनके अपने डिस्ट्रिक्ट में और दूसरे डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर्स के बीच उनकी खासी फजीहत करा दी है | इससे उन्होंने सबक लिया और पहली बार - पहली बार उन्होंने अपने किसी कार्यक्रम में उन लोगों को शामिल नहीं किया जो उनकी टीम में नहीं हैं |
तो क्या रमेश अग्रवाल पर सचमुच असर हुआ है ? रमेश अग्रवाल वह नौटंकीपना अब नहीं दिखायेंगे जो अभी हाल तक वह दिखाते रहे हैं ?
रमेश अग्रवाल को जानने वाले लोगों का कहना है कि रमेश अग्रवाल पर अभी असर होता हुआ जरूर दिखा है, लेकिन यह असर ज्यादा दिन तक बना नहीं रह पायेगा; क्योंकि रमेश अग्रवाल उन लोगों में से हैं जिनके बारे में मशहूर कहावत कही गई है कि 'चोर चोरी से जाये, पर हेराफेरी से न जाये' | रमेश अग्रवाल के नजदीकियों का ही कहना है कि रमेश अग्रवाल ने पेट्स की तैयारियों को अंतिम रूप देने के लिए अपनी टीम के सदस्यों की मीटिंग में भले ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संभावित उम्मीदवारों को नहीं बुलाया है, लेकिन पेट्स में संभावित उम्मीदवारों की उपस्थिति को आप अवश्य ही देखेंगे | पेट्स, जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि प्रेसीडेंट इलेक्ट सेमिनार है - जिसमें प्रेसीडेंट इलेक्ट की उपस्थिति होनी होती है | इस कार्यक्रम को संभव बनाने तथा अच्छे से आयोजित करने के लिए कुछेक लोगों का सहयोग चाहिए होता है - जिन लोगों को सहयोग करने के लिए चुना जाता है उनकी उपस्थिति की बात भी समझ में आती है | लेकिन जिन लोगों को सहयोग के लिए नहीं चुना जाता, जिन लोगों का पेट्स में कोई काम नहीं है - पेट्स में उनकी उपस्थिति का क्या अर्थ है ? पेट्स की तैयारियों से जुड़े रमेश अग्रवाल के नजदीकियों का ही कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संभावित उम्मीदवारों का पेट्स में कोई काम नहीं है, पेट्स की तैयारी से जुड़ी मीटिंग में रमेश अग्रवाल ने उन्हें बुलाया भी नहीं - लेकिन पेट्स में वह उपस्थित होंगे | इसलिए होंगे - क्योंकि रमेश अग्रवाल उनसे मोटा पैसा ऐंठ चुके हैं |
रमेश अग्रवाल लेकिन जिन संभावित उम्मीदवार से पैसा नहीं ऐंठ पाये - जैसे रवि भाटिया से, उन रवि भाटिया का पेट्स के लिए रजिस्ट्रेशन करने में अड़ंगे डाल रहे हैं | रवि भाटिया पेट्स में जा सकें इसके लिए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश चंद्र प्रयास कर रहे हैं, लेकिन उनके प्रयासों के बाद भी रवि भाटिया का पेट्स में जाना अभी तक तो मुश्किल ही बना हुआ है | इस तरह रमेश अग्रवाल ने 'दिखा' दिया है कि रोटरी को धंधा बना देने और पक्षपात करने जैसे आरोपों से बचने के लिए वह एक कदम आगे तो बढ़ाते हैं लेकिन फिर तुरंत ही दो कदम पीछे खींच लेते हैं - 'हेराफेरी' की आदत आसानी से छूटती जो नहीं |