Sunday, March 29, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता अपने नाकारापन को छिपाने तथा अपनी छोटी सोच का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट आलोक गुप्ता द्वारा कोरोना वायरस से पैदा हुई मुश्किलों को हल करने में मदद के लिए शुरू किए गए प्रयास को बंद करवाने में जुट गए हैं

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट आलोक गुप्ता ने इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता तथा इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या की बातों से प्रेरित हो कर कोरोना वायरस के कारण उपजी स्थिति से निपटने के लिए फंड इकट्ठा करने की जो कोशिश की, वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता को नागवार गुजरी है - और उन्होंने आलोक गुप्ता की कोशिश को तुरंत रोकने के लिए आदेश जारी कर दिया है । दीपक गुप्ता ने काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सभी सदस्यों से भी अनुरोध किया है कि वह आलोक गुप्ता को उक्त फंड इकट्ठा करने से रोकें । दीपक गुप्ता का कहना है कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, और इस तरह का कोई फंड इकट्ठा करने का प्रयास उनकी तरफ से ही हो सकता है, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट को ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है । दीपक गुप्ता का कहना है कि आलोक गुप्ता जो कर रहे हैं, वह उनके अधिकार क्षेत्र में दखलंदाजी है । दीपक गुप्ता के लिए बदकिस्मती की बात लेकिन यह हुई है कि उनकी बात को तर्कपूर्ण मानते हुए भी काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सदस्य इस पक्ष में नहीं दिख रहे हैं कि आलोक गुप्ता ने जो प्रयास शुरू किया है - उसे रोका जाए । किसी किसी ने तो दीपक गुप्ता से दो-टूक कह भी दिया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वह जब कुछ करते हुए नजर नहीं आ रहे थे, तब आलोक गुप्ता ने पहल करके क्या गलत कर दिया ? मामला जब दूसरों की जानकारी में आया तो लगभग हर किसी ने दीपक गुप्ता को लताड़ना शुरू किया कि वह खुद तो कुछ करना नहीं चाहते हैं, और न उन्होंने कुछ करने के लिए कदम उठाया - आलोक गुप्ता कुछ कर रहे हैं, तो उसमें टाँग अड़ा रहे हैं ।
मजे की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट के कुछेक वरिष्ठ सदस्यों ने दीपक गुप्ता को सलाह दी थी कि कोरोना वायरस से पैदा हुई मुसीबत ने जिस तरह से देश और समाज को घेरा है, उसे देखते हुए रोटेरियंस के रूप में हमें कुछ करना चाहिए । दीपक गुप्ता ने रोटेरियन और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में कुछ करने में दिलचस्पी दिखाने की बजाये उन्हें जबाव दिया कि उनके क्लब के वरिष्ठ सदस्य अनिल अग्रवाल सिविल डिफेंस में बड़े पद पर सक्रिय हैं, आप जो कुछ भी करना चाहते हैं उनके साथ मिलकर कर लें । इसके बाद ही, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट आलोक गुप्ता ने कोरोना वायरस से पैदा हुई मुसीबत से निपटने में सहयोग करने के लिए फंड इकट्ठा करने के प्रयास शुरू किए । वास्तव में इसके लिए उन्हें शेखर मेहता और भरत पांड्या की बातों से प्रेरणा मिली । दरअसल एक दिन पहले ही शेखर मेहता व भरत पांड्या ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स इलेक्ट के साथ बातचीत की थी, जिसमें मौजूदा हालात में रोटेरियंस की जिम्मेदारियों और कार्य-योजनाओं के बारे में बातें हुईं थीं । उन्हीं बातों से प्रेरित होकर आलोक गुप्ता ने फंड इकट्ठा करने के लिए प्रयास शुरू किए । उनके प्रयासों को लोगों की तरफ से अच्छा रिस्पॉन्स भी मिला । दीपक गुप्ता लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपने नाकारापन को छिपाने तथा अपनी छोटी सोच का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट आलोक गुप्ता द्वारा शुरू किए गए प्रयास को बंद करवाने में जुट गए हैं ।
काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सदस्यों तथा अन्य कुछेक लोगों ने दीपक गुप्ता के रवैये पर अफसोस व्यक्त करते हुए कहा है कि ऐसे समय में, जब सारी दुनिया के साथ-साथ देश और समाज गहरी मुसीबत में है - दीपक गुप्ता अपनी घटिया राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे हैं । उनका कहना है कि होना तो यह चाहिए था कि आलोक गुप्ता द्वारा शुरू किए गए प्रयासों में दीपक गुप्ता सहयोग करते - जिससे समाज के लोगों के बीच रोटेरियंस की पहचान व साख और मजबूत होती तथा रोटरी समुदाय में डिस्ट्रिक्ट का नाम होता; इसकी बजाये दीपक गुप्ता उलटे आलोक गुप्ता द्वारा शुरू किए गए प्रयासों को बंद करवाने में जुट गए । उल्लेखनीय है कि आलोक गुप्ता ने जो प्रयास शुरू किया, वह उन्होंने अपने गवर्नर-वर्ष के प्रेसीडेंट्स तथा अपनी टीम के सदस्यों के साथ शुरू किया - लोगों का कहना है कि दीपक गुप्ता को आलोक गुप्ता के प्रयासों को मदद नहीं भी करना था, तो वह अपने गवर्नर-वर्ष के प्रेसीडेंट्स तथा अपनी टीम के सदस्यों के साथ आलोक गुप्ता जैसा ही काम शुरू कर सकते थे और आलोक गुप्ता से ज्यादा पैसा इकट्ठा करके नाम कमा सकते थे । दीपक गुप्ता ने लेकिन न पहले कुछ करने के बारे में विचार किया, और न कुछेक लोगों के कहने के बावजूद उन्होंने कुछ करने के प्रति कोई दिलचस्पी दिखाई - आलोक गुप्ता को पहल करता देख कर भी उन्हें कुछ करने के बारे में नहीं सूझा; यह बात लेकिन उन्हें तुरंत समझ में आ गई कि चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वह हैं - इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रोटरी और समाज के लिए कोई अच्छा काम कैसे कर सकता है ? अपने इस रवैये से दीपक गुप्ता ने यही दर्शाया है कि 'मैं तो कुछ करूँगा नहीं, तुम्हें भी कुछ करने नहीं दूँगा ।' मुश्किल समय में अपनी इस घटिया सोच व व्यवहार से दीपक गुप्ता ने वास्तव में अपनी फजीहत ही करवाई है ।

Friday, March 27, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में कोरोना वायरस से उपजे हालात एक तरफ तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रमेश बजाज के लिए 'वरदान' बने हैं, तो दूसरी तरफ राजा साबू के लिए सीओएल के मामले में अपनी दाल गलाने का 'मौका'

पानीपत । कोरोना वायरस की आपदा से निपटने के लिए अपनाई गई लॉकडाउन व कर्फ्यू जैसी देशव्यापी व्यवस्था डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रमेश बजाज के लिए वरदान साबित हुई है । दरअसल इस व्यवस्था के चलते अप्रैल के पहले सप्ताह में होने वाले पेट्स कार्यक्रम के स्थगित होने से रमेश बजाज ने बड़ी राहत की साँस ली है । वास्तव में, लॉकडाउन व कर्फ्यू जैसी व्यवस्था के चलते अधिकतर डिस्ट्रिक्ट्स में पेट्स आदि कार्यक्रम स्थगित ही हुए हैं - लेकिन इसके कारण अधिकतर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट उदाश व परेशान ही हुए हैं, क्योंकि अधिकतर डिस्ट्रिक्ट्स में पेट्स की तैयारियाँ काफी हद तक पूरा हो चुकी थीं, और पेट्स के स्थगित होने से न केवल उन तैयारियों पर पानी फिर गया है, बल्कि काफी नुकसान होने के भी अनुमान हैं । ऐसे में, पेट्स के स्थगित होने से एक अकेले रमेश बजाज के 'खुश' होने का कारण यह बताया/सुना जा रहा है कि पेट्स आयोजन को लेकर दरअसल उनकी कोई तैयारी ही नहीं थी । पेट्स की तैयारी को लेकर प्रेसीडेंट्स इलेक्ट के बीच इस बात को लेकर खासा असमंजस रहा था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट की तरफ से उन्हें कोई सूचना और जानकारी ही नहीं मिल रही थी कि पेट्स के संबंध में उन्हें क्या करना है ? प्रेसीडेंट्स इलेक्ट का ही कहना/बताना रहा कि उन्होंने रमेश बजाज और उनके नजदीकियों से भी पेट्स की तैयारी को लेकर पूछताछ की, लेकिन हर कहीं से उन्हें टालमटोल वाले जबाव ही सुनने को मिले । रमेश बजाज के कुछेक नजदीकियों का तो यहाँ तक कहना/बताना रहा कि पेट्स को लेकर क्या तैयारी है, इसका खुद उन्हें ही कुछ पता नहीं है । ऐसे में समझा जाता है कि पेट्स को लेकर रमेश बजाज की वास्तव में कोई तैयारी थी ही नहीं, और वह अभी सोच ही रहे थे कि उन्हें करना क्या है कि लॉकडाउन व कर्फ्यू जैसी व्यवस्था लागू हो गई । जाहिर तौर पर लॉकडाउन व कर्फ्यू की यह व्यवस्था रमेश बजाज के लिए 'वरदान' बन गई । 
पेट्स से पहले एजीटीएस का आयोजन भी रमेश बजाज को रद्द करना पड़ा था, हालाँकि उसके लिए लॉकडाउन या कर्फ्यू जिम्मेदार नहीं था; और उससे भी पहले प्री-पेट्स के आयोजन को लेकर भारी विवाद पैदा हो गया था और उसका हो पाना खतरे में पड़ गया था । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा ने मामला न संभाला होता, तो प्री-पेट्स का आयोजन भी नहीं ही हो पाता । पेट्स का आयोजन भी पहले कुफ्री में होना तय हुआ था, फिर वह कैंसिल हुआ और उसके पंचकुला में होने की बात सुनी गई - उसके बाद पेट्स के बारे में कुछ नहीं सुना गया । कोरोना वायरस दुनिया भर के लोगों के लिए भले ही अभिशाप साबित हो रहा हो, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में पेट्स करने को लेकर रमेश बजाज के लिए यह राहत पहुँचाने वाला साबित हुआ है ।  रमेश बजाज के कुछेक नजदीकियों का कहना है कि उन्हें अपनी टीम के सदस्यों का पर्याप्त सहयोग नहीं मिल रहा है, इसलिए उनके काम ठीक से संयोजित नहीं हो पा रहे हैं; लेकिन उनकी टीम के ही कुछेक सदस्यों का कहना है कि रमेश बजाज खुद कन्फ्यूज हैं और कार्यक्रमों को लेकर उनके पास कोई योजना या विजन ही नहीं है - और इसलिए उनके आयोजनों को लेकर अनिश्चिता बनी हुई है । मजे की बात यह है कि रमेश बजाज को अपने गवर्नर-वर्ष के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर अरुण शर्मा का ही उचित सहयोग नहीं मिल पा रहा है, हालाँकि अरुण शर्मा की तरफ से सुनने को मिल रहा है कि रमेश बजाज ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर तो बना दिया है - लेकिन अपने कार्यक्रमों को लेकर वह उनसे कोई विचार-विमर्श नहीं कर रहे हैं और न उनसे कोई सलाह ही ले रहे हैं । ऐसे में, लोगों के बीच चर्चा यह है कि रमेश बजाज आखिर सलाह ले किस से रहे हैं ?
डिस्ट्रिक्ट में एक तरफ तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रमेश बजाज की आयोजनों को लेकर फजीहत हो रही है, तो दूसरी तरफ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा की कुछेक गतिविधियों को लेकर खूब वाहवाही हो रही है । लोगों को यह देख/सुन/जान कर और मजा आ रहा है कि जितेंद्र ढींगरा की तारीफ करने में पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं । कोरोना से मुकाबले को लेकर जितेंद्र ढींगरा ने सोशल मीडिया में एक संदेश प्रसारित किया, जिसकी राजा साबू ने भरपूर तरीके से तारीफ की - ऐसी तारीफ, जैसी किसी और ने नहीं की । जितेंद्र ढींगरा के नजदीकियों के अनुसार, राजा साबू आजकल जितेंद्र ढींगरा की तारीफ करने के बहाने व मौके ढूँढ़ते रहते हैं - और जैसे ही कोई मौका मिलता है, तड़ से उनकी तरफ कर देते हैं । कोरोना से मुकाबले को लेकर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी ने भी सोशल मीडिया में दो/एक संदेश प्रसारित किए हैं, लेकिन वह जितेंद्र ढींगरा जैसे खुशकिस्मत नहीं 'दिखे' कि राजा साबू की तारीफ उन्हें भी मिले । अच्छे कामों की तारीफ के मामले में राजा साबू की यह पक्षपातपूर्ण भूमिका दरअसल उनके स्वार्थ से जुड़ी देखी जा रही है । राजा साबू के तौर-तरीकों से परिचित लोगों का कहना/बताना है कि राजा साबू किसी की तब ही तारीफ करते हैं, जब उन्हें अपना कोई काम निकालना होता है - अन्यथा तो वह आदमी को 'आदमी' भी नहीं समझते । समझा जा रहा है कि राजा साबू अपने किसी आदमी को सीओएल के लिए चयनित करवाने के उद्देश्य से जितेंद्र ढींगरा की तारीफों में लगे हुए हैं - उन्हें 'पता' है कि जितेंद्र ढींगरा ही सीओएल के लिए चयन होने/करने में निर्णायक भूमिका निभायेंगे । सीओएल के लिए अभी हालाँकि किसी/किन्हीं नामों की चर्चा नहीं है, पर माना/समझा जा रहा है कि राजा साबू और जितेंद्र ढींगरा की जिस नाम पर सहमति बन जायेगी - वह सीओएल के लिए 'चुन' लिया जायेगा । ऐसे में, मनमोहन सिंह का पलड़ा भारी लग रहा है, क्योंकि एक वही हैं जिनकी दोनों तरफ अच्छी पैठ है । वह हालाँकि सीओएल में एक बार जा चुके हैं, लेकिन इससे क्या होता है - नेता लोग राजी हो जाएँ, तो वह दूसरी बार भी सीओएल में चले जायेंगे !

Tuesday, March 24, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में गौरव गर्ग और रजनीश गोयल को बधाई दे कर पंकज बिजल्वान ने अपनी चुनावी रणनीति को बदलने का तथा इस बात को समझने का संकेत दिया है कि चुनावी राजनीतिक अभियान में व्यक्तिगत चिढ़ और खुन्नस से कोई फायदा नहीं होता है   

देहरादून । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए हुए चुनाव में बड़ी और बुरी हार का शिकार होने के बाद पंकज बिजल्वान अब सबसे पहले अपना क्लब छोड़ कर अपने लिए एक नया क्लब बनाने की कोशिशों में जुटे हैं । हालाँकि अभी तक चर्चा सुनी जा रही थी कि उनके क्लब के प्रमुख सदस्य, फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अश्वनी काम्बोज अपने कुछेक साथियों के साथ क्लब छोड़ेंगे और अपना एक नया क्लब बनायेंगे । लेकिन अब सुनने को मिल रहा है कि पंकज बिजल्वान यह देख/जान कर बहुत व्यथित और निराश हैं कि उनकी उम्मीदवारी को उनके अपने क्लब के ही अधिकतर सदस्यों का सहयोग/समर्थन नहीं मिला, इसलिए अब वह क्लब में रहने में कोई फायदा नहीं देख रहे हैं - और अपने लिए एक नया क्लब बना लेने में ही अपनी भलाई देख/पहचान रहे हैं । उनके कुछेक नजदीकी यद्यपि उन्हें यह भी समझा रहे हैं कि नया क्लब बनाने के झंझट में पड़ने की बजाये वह किसी ऐसे क्लब में ट्रांसफर ले लें, जहाँ उनके 'मित्र' हों और जहाँ उन्हें एकतरफा सहयोग/समर्थन मिल सके । पंकज बिजल्वान सचमुच क्या करेंगे, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा - लेकिन एक बात पक्की लग रही है, और वह यह कि पंकज बिजल्वान और अश्वनी काम्बोज अब एक क्लब में नहीं रहेंगे । इस वर्ष हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव और उसके नतीजे ने एक तरफ विनय मित्तल और मुकेश गोयल के वर्षों पुराने संग/साथ में गहरी खाई बना दी है, तो दूसरी तरफ अश्वनी काम्बोज और पंकज बिजल्वान की दोस्ती के बीच भी चौड़ी दरार पैदा कर दी है । यह ठीक है कि विनय मित्तल और मुकेश गोयल के बीच बनी खाई के किस्से में जो रोमांच व 'ग्लैमर' है, और जिसके चलते यह प्रसंग 'राष्ट्रीय' चर्चा का विषय बना है - वैसा रोमांच अश्वनी काम्बोज व पंकज बिजल्वान की दोस्ती में पड़ी दरार के किस्से में नहीं है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट के और खासतौर से देहरादून के लोगों के लिए वह एक बात बनाने वाला किस्सा तो है ही ।
अश्वनी काम्बोज के साथ संबंध बिगड़ने के कारण पंकज बिजल्वान के लिए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अगली लड़ाई और मुश्किल हो गई है । पंकज बिजल्वान के कुछेक समर्थकों का ही मानना और कहना है कि अश्वनी काम्बोज के पास वोटों की कोई 'ताकत' भले ही न हो - लेकिन उनके साथ बिगड़े संबंधों का प्रतीकात्मक रूप से प्रतिकूल असर तो पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी पर पड़ेगा ही । इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि इस वर्ष के चुनाव में पंकज बिजल्वान के समर्थकों ने इस तथ्य को छिपाने की भरसक कोशिश की कि अश्वनी काम्बोज का समर्थन पंकज बिजल्वान को नहीं मिलेगा । 'रचनात्मक संकल्प' ने जब जब इस तथ्य को उद्घाटित किया, तब तब पंकज बिजल्वान के समर्थकों ने 'रचनात्मक संकल्प' को निशाना बनाया - लेकिन सच्चाई को किसी भी तरह से छिपाया नहीं जा सका । अश्वनी काम्बोज की तरफ से होने वाले नुकसान की भरपाई करने के लिए पंकज बिजल्वान ने हालाँकि गौरव गर्ग और रजनीश गोयल की तरफ हाथ बढ़ाया है । पंकज बिजल्वान ने पिछले वर्ष फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट होने पर गौरव गर्ग को बधाई नहीं दी थी, और वह गौरव गर्ग से बुरी तरह चिढ़े हुए थे - लेकिन इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट बनने पर गौरव गर्ग को उन्होंने फोन करके बधाई दी । राजनीतिक प्रौढ़ता का प्रदर्शन करते हुए पंकज बिजल्वान ने अपने प्रतिद्वंद्वी रहे रजनीश गोयल को भी फोन करके बधाई दी । गौरव गर्ग और रजनीश गोयल को फोन करके बधाई देने के पंकज बिजल्वान के 'काम' को अच्छे संकेत के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, और माना जा रहा है कि 'ठोकरों' ने उन्हें राजनीतिक रूप से मैच्योर बनाना शुरू कर दिया है ।
पंकज बिजल्वान सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को पुनःप्रस्तुत करने के मामले में हालाँकि कितनी मैच्योरटी दिखाते हैं, यह देखना/समझना अभी बाकी है । इस वर्ष के चुनाव में, पंकज बिजल्वान ने चुनाव जीतने के लिए हर वह हथकंडा अपनाया - जिसे चुनाव जीतने के लिए जरूरी समझा जाता है । इसके बावजूद वह भारी अंतर से और बुरी तरह से चुनाव हार गए । इससे एक बात साबित हो गई है कि चुनाव हथकंडों से नहीं जीते जाते हैं - यह सच है कि चुनाव जीतने के लिए हथकंडों का इस्तेमाल करना भी जरूरी होता है, लेकिन सिर्फ हथकंडों के भरोसे चुनाव जीतने की उम्मीद करना आत्मघाती होता है । पंकज बिजल्वान के सामने चुनौती और मुश्किल यह है कि एक उम्मीदवार के रूप में वह जितना, जैसा, जो कर सकते थे, वह उन्होंने इस वर्ष कर लिया है; उससे ज्यादा कुछ करने को बचता नहीं है - ऐसे में, चुनावी रणनीति में बदलाव करके तथा नए समीकरणों को बना कर ही वह अपनी उम्मीदवारी के लिए कोई उम्मीद कर सकते हैं । डिस्ट्रिक्ट में अभी लेकिन जो 'हालात' हैं; विनय मित्तल की रणनीति ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति पर जैसा, जो शिकंजा कसा हुआ है - उसमें नए समीकरणों को लेकर कोई संभावना अभी तो नजर नहीं आ रही है । पंकज बिजल्वान ने गौरव गर्ग और रजनीश गोयल को फोन करके बधाई देने का जो काम किया है, उससे यह संकेत जरूर मिल रहा है कि उन्होंने अपनी रणनीति में बदलाव करने के लिए कदम उठा लिया है - और इस बात को समझ लिया है कि चुनावी राजनीतिक अभियान में व्यक्तिगत चिढ़ और खुन्नस से कोई फायदा नहीं होता है । हालाँकि यह देखना/समझना अभी बाकी है कि पंकज बिजल्वान अपनी रणनीति में किस हद तक और क्या क्या बदलाव करते हैं और हालात की सच्चाई को किस हद तक कैसे समझते/पहचानते है - दरअसल इसी पर यह निर्भर करता है कि पुनःप्रस्तुत होने वाली उम्मीदवारी के लिए वह जीतने लायक समर्थन जुटा पायेंगे या इस वर्ष जैसे नतीजे को ही दोहरायेंगे । 

Monday, March 23, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी से पीछा छुड़ा कर और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव राय मेहरा के सहयोग/समर्थन के बल पर अशोक कंतूर ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जीता

नई दिल्ली । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल और रवि चौधरी पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अशोक कंतूर को जितवाने के लिए लगे थे, लेकिन चुनाव अशोक कंतूर की बजाये अनूप मित्तल जीत गए थे; इस वर्ष वह दोनों अजीत जालान को जितवाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन चुनाव अजीत जालान की बजाये अशोक कंतूर जीत गए हैं । इस तरह अशोक कंतूर की पिछले वर्ष की हार और इस वर्ष की जीत विनोद बंसल और रवि चौधरी के लिए किरकिरी करवाने वाली साबित हुई है । रवि चौधरी ने हालाँकि बीच बीच में कुछेक बार अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के समर्थन में आने की कोशिश की थी, लेकिन अशोक कंतूर ने खासी सतर्कता रखते हुए उन्हें अपनी उम्मीदवारी के पास फटकने नहीं दिया - दरअसल वह जान/समझ रहे थे कि रवि चौधरी यदि उनकी उम्मीदवारी के साथ जुड़े, तो उनकी चुनावी नैय्या शर्तिया डूब ही जाएगी । उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष की चुनावी हार के लिए अशोक कंतूर ने रवि चौधरी को ही जिम्मेदार ठहराया था, और कहा/बताया था कि रवि चौधरी की बदनामी उनकी उम्मीदवारी पर भारी साबित हुई । अशोक कंतूर ने जान/समझ लिया था कि वह रवि चौधरी की छाया यदि मुक्त नहीं हुए, तो कभी गवर्नर नहीं बन पायेंगे; और इसलिए अपनी उम्मीदवारी को दोबारा से प्रस्तुत करने से पहले उन्होंने रवि चौधरी को क्लब से निकलवाने की 'व्यवस्था' की और रवि चौधरी को एक दूसरे क्लब में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा । रवि चौधरी ने इस वर्ष अजीत जालान की उम्मीदवारी का झंडा उठाया । अजीत जालान को बहुत लोगों ने समझाया कि रवि चौधरी से यदि उन्होंने दूरी नहीं बनाई, तो चुनाव में अपनी हार पक्की ही समझो । अजीत जालान ने किसी की नहीं सुनी, और नतीजा उनकी हार के रूप में सामने आया है ।
अजीत जालान को पहली वरीयता में तो कम वोट मिले ही, दूसरी वरीयता के 31 वोटों में से भी कुल 2 वोट ही मिले, जिसके कारण उनकी हार का अंतर 50 से भी अधिक वोटों का हो गया । दूसरी वरीयता के वोटों के मामले में अजीत जालान को वोटों का जो टोटा पड़ा, उसे रवि चौधरी की बदनामी से जोड़ कर देखा/पहचाना जा रहा है । अजीत जालान के कुछेक नजदीकियों का ही कहना है कि अजीत जालान की उम्मीदवारी के लिए की गई विनोद बंसल की मेहनत पर रवि चौधरी की बदनामी ने पानी फेर दिया है । इनका यह भी मानना और कहना है कि अजीत जालान की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने में विनोद बंसल का देर से सक्रिय होना भी अजीत जालान की हार का एक प्रमुख कारण है - इनका विश्वास है कि विनोद बंसल यदि और पहले सक्रिय होते, तो अजीत जालान की उम्मीदवारी को और वोट मिल सकते थे और शायद वह चुनाव जीत ही जाते । अजीत जालान के नजदीकियों को लगता है कि विनोद बंसल ने वोटिंग शुरू होने तक अजीत जालान की उम्मीदवारी का समर्थन करने से 'छिपने' की, और अजीत जालान की उम्मीदवारी की कमान रवि चौधरी को सौंपे रखने की जो रणनीति बनाई - उसने उल्टा असर किया; दरअसल रवि चौधरी के अजीत जालान के समर्थन में सक्रिय दिखने से अजीत जालान की उम्मीदवारी का जो कबाड़ा हुआ, विनोद बंसल ने बाद में उसे संभालने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन वह बहुत संभाल नहीं सके । विनोद बंसल का अपने क्लब का वोट आखिर में डलवाने का फैसला भी अजीत जालान की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने वाला रहा । अजीत जालान के कुछेक समर्थकों का ही मानना/कहना है कि विनोद बंसल के 'फैसले' से कई क्लब्स के पदाधिकारियों के बीच अजीत जालान को वोट देने का विश्वास नहीं बन पाया । इन्हें लगता है कि विनोद बंसल यदि अपने क्लब का वोट पहले डलवा देते, तो अजीत जालान को और कुछेक क्लब्स के वोट भी मिल सकते थे ।
इस वर्ष के चुनावी नतीजे में सबसे तगड़ा झटका महेश त्रिखा को लगा है - उन्हें नंबर एक या नंबर दो पर देखा/पहचाना जा रहा था, लेकिन चुनावी नतीजे में वह तीसरे नंबर पर पाए गए । उन्हें वोट देने वालों ने दूसरी वरीयता के लिए जिस थोक भाव में अशोक कंतूर को चुना, उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि अशोक कंतूर ने उनके समर्थन-आधार में अच्छी सेंध लगाई है । अशोक कंतूर ने यह सेंध डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव राय मेहरा के सहयोग से लगाई । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में आने वाले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के समर्थन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है; असल में उसके पास अपनी डिस्ट्रिक्ट टीम के पदों का जखीरा होता है - जिसे 'दिखा' कर वह अपने उम्मीदवार के लिए वोट जुटाने की हैसियत रखता है । संजीव राय मेहरा ने इस वर्ष के कुछेक प्रेसीडेंट्स को जिस तरह से अपनी टीम का सदस्य बनाया है, उसे देख/जान कर ही समझ लिया गया कि यह सब उन्होंने अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के लिए वोट जुटाने के लिए किया है । संजीव राय मेहरा की तरकीब काम कर गई, और अशोक कंतूर को उसका अच्छा फायदा मिला । पिछले वर्ष की चुनावी हार से मिले सबक से अशोक कंतूर ने इस वर्ष की अपनी चुनावी तैयारी को अच्छे से संयोजित भी किया, और वह पूरे चुनाव-अभियान के दौरान कभी भी ओवर-कॉन्फीडेंट होते हुए नजर नहीं आए । चुनाव अभियान के दौरान 'बनने' वाले हर प्रतिकूल मौके को अनुकूल बनाने के लिए उन्हें प्रयास किए और इस वर्ष वह पिछले वर्ष जैसी गलतियाँ करने से बचते हुए दिखे - और इसी का नतीजा रहा कि वह 50 से अधिक वोटों से विजयी हुए हैं । 

Thursday, March 19, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अजीत जालान के बड़े अंतर से जीतने के विनोद बंसल के दावे ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच हलचल मचाई हुई है, और अशोक कंतूर व महेश त्रिखा के समर्थकों को डरा दिया है

नई दिल्ली । विनोद बंसल और रवि चौधरी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अजीत जालान की जीत का दावा करके न सिर्फ अशोक कंतूर और महेश त्रिखा के समर्थकों के बीच खासी हलचल मचा दी है, बल्कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों को भी हैरान और चकित किया है । दरअसल डिस्ट्रिक्ट में हर कोई अशोक कंतूर व महेश त्रिखा में से किसी एक के जीतने का अनुमान लगा रहा है, और अजीत जालान को तीसरे नंबर पर देख/पा रहा है । अजीत जालान के नजदीकी तथा उनकी उम्मीदवारी के समर्थक तक अजीत जालान को तीसरे नंबर पर देख रहे हैं । उनके कुछेक समर्थक बताते रहे हैं कि जैसे जैसे चुनाव आगे बढ़ा, उन्हें भी समझ में आ गया कि अजीत जालान तो मुकाबले में भी नहीं आ पा रहे हैं - और तब उनकी कोशिश यह हो गई कि अजीत जालान को कम से कम इतने वोट तो मिल जाएँ कि उन्हें शर्मनाक हार का सामना न करना पड़े और वह अगले रोटरी वर्ष में अपनी उम्मीदवारी का दावा पेश कर सकें । ऐसे में, अजीत जालान की जीत के विनोद बंसल और रवि चौधरी के दावे ने हर किसी को चौंकाया है । रवि चौधरी को तो डिस्ट्रिक्ट में कोई सीरियसली नहीं लेता है; लेकिन विनोद बंसल को लेकर लोगों को लगता है कि वह यदि अजीत जालान की जीत का दावा कर रहे हैं - तो जरूर चुनावी नतीजे में कुछ बड़ा उलटफेर हो रहा होगा । विनोद बंसल, रवि चौधरी और अजीत जालान के साथ नजदीकी रखने वाले कुछेक रोटेरियंस का कहना/बताना है कि वोटिंग लाइन खुलने से दो/एक दिन पहले विनोद बंसल ने अजीत जालान की उम्मीदवारी के पक्ष में जो सक्रियता दिखाई, उसने फिर चुनावी परिदृश्य का सारा नजारा ही बदल दिया है ।
उल्लेखनीय है कि विनोद बंसल को अजीत जालान के समर्थक के रूप देखा/पहचाना तो जा रहा था, लेकिन विनोद बंसल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति से दूर रहने के दावे कर रहे थे । हालाँकि कई मौकों पर उन्हें महेश त्रिखा और अशोक कंतूर के खिलाफ शब्दों के बाण चलाते तो सुना/देखा गया; और अशोक कंतूर को लेकर अक्सर ही वह यह कहते हुए सुने गए कि उन्हें चुनाव जितवाने के लिए जितनी कोशिश की जा सकती थी, वह पिछले वर्ष उन्होंने की थी - और उसके बाद भी अशोक कंतूर नहीं जीते, तो मतलब यही है कि गवर्नर बनना उनकी किस्मत में नहीं है । महेश त्रिखा और अशोक कंतूर को लेकर की जाने वाली कटाक्षभरी विरोधी बातों के जरिये विनोद बंसल यह संकेत तो देते रहे कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों में उनकी पसंद अजीत जालान हैं, लेकिन सच यह भी है कि वह अजीत जालान के लिए कुछ करते हुए नजर नहीं आए । इसके लिए अजीत जालान को कई लोगों से ताने भी सुनने को मिले कि विनोद बंसल ने उन्हें उम्मीदवार तो बना/बनवा दिया, लेकिन उनकी उम्मीदवारी के लिए कुछ कर नहीं रहे हैं । इस तरह के तानों पर अजीत जालान तो मुस्कुरा कर चुप रह जाते, लेकिन उनके कुछेक नजदीकी लोगों को कहते/बताते रहे कि विनोद बंसल अभी पर्दे के पीछे से अजीत जालान के लिए 'काम' कर रहे हैं, और उचित समय आने पर वह पर्दा हटा कर सामने आयेंगे । 
वोटिंग शुरू होने से दो/एक दिन पहले विनोद बंसल ने अजीत जालान की उम्मीदवारी की कमान सँभाली, और रवि चौधरी के साथ मिलकर अजीत जालान के लिए वोट डलवाने का काम शुरू किया । विनोद बंसल ने बहुत ही गुपचुप तरीके से काम किया, और दूसरे लोगों को ज्यादा हवा नहीं लगने दी कि वह क्या कर रहे हैं । वोटिंग शुरू होने के आठ/नौ दिन बाद अब जब अधिकतर क्लब्स के वोट पड़ चुके हैं, और दो/तीन क्लब्स ही वोट डालने के लिए बचे रह गए हैं - तब विनोद बंसल ने खुद से ही लोगों को कहना/बताना शुरू कर दिया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव अजीत जालान जीत रहे हैं, और जल्दी ही इसकी सार्वजनिक घोषणा हो जाएगी । विनोद बंसल बता रहे हैं कि उन्हें प्रत्येक क्लब का पता है कि उसने किसे वोट दिया है, और इसी जानकारी के आधार पर उनका आकलन है कि पहली और दूसरी वरीयता के वोटों को जोड़ कर अजीत जालान को 80 से 90 के बीच वोट मिल रहे हैं, और वह एक अच्छे अंतर से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का चुनाव जीत रहे हैं । विनोद बंसल और रवि चौधरी का कहना/बताना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव का नतीजा उन लोगों के लिए एक बड़ा झटका साबित होगा, जो अजीत जालान को तीसरे नंबर पर देख रहे हैं । यह दावा यदि रवि चौधरी की तरफ से किया गया होता, तो कोई भी इसे गंभीरता से नहीं लेता; लेकिन चूँकि यह दावा विनोद बंसल की भी तरफ से किया गया है - इसलिए इस दावे ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच हलचल मचाई हुई है, और अशोक कंतूर व महेश त्रिखा के समर्थकों को डरा दिया है । देखना दिलचस्प होगा कि अजीत जालान की जीत का विनोद बंसल का दावा सचमुच सच साबित होता है, या साबित होगा कि विनोद बंसल पर रवि चौधरी की संगत का कुछ ज्यादा ही असर हो गया है ।

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स प्रशासन द्वारा करनाल ब्रांच के मामले में की गई कार्रवाई को प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता की बिल्डिंग के निर्माण-कार्य पर अपनी पकड़ बनाये रखने की कोशिश तथा पंकज गुप्ता के पलटी मारने को अतुल गुप्ता के 'खेल' के हिस्से के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है

करनाल । इंस्टीट्यूट की करनाल ब्रांच के पदाधिकारियों के बीच इंस्टीट्यूट प्रशासन द्वारा मनमाने तरीके से दिनेश ग्रोवर की जगह स्वाति मित्तल को ट्रेजरर 'बनाये' जाने के फैसले के खिलाफ नाराजगी है, और इसे लेकर वह इंस्टीट्यूट प्रशासन के साथ भिड़ने के मूड में दिख रहे हैं । उनके नजदीकियों का कहना है कि उनके पास हालाँकि सीमित विकल्प ही हैं । मामले से जुड़े 'दूसरे' पक्ष के लोगों का दावा लेकिन यह है कि पदाधिकारियों का 'नाटक' कुछ ही दिनों का है और उनका 'मूड' जल्दी ही ठीक हो जायेगा और वह इंस्टीट्यूट के फैसले को स्वीकार कर लेंगे । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट प्रशासन की तरफ से करनाल ब्रांच के चेयरमैन दीपक कपूर को यह जानकारी देते हुए पत्र मिला है कि इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी की सलाहानुसार, ब्रांच के ट्रेजरर पद पर हुए दिनेश ग्रोवर के चुनाव को अमान्य घोषित करते हुए स्वाति मित्तल को ट्रेजरर नियुक्त किया जाता है । करनाल ब्रांच के पदाधिकारी यह पत्र मिलने के बाद से खासे नाराज और गुस्से में हैं और आगे की कार्रवाई को लेकर विचार-विमर्श कर रहे हैं । इस विचार-विमर्श में उन्हें जो एक जोरदार विकल्प नजर आ रहा है, वह अपने अपने पदों से इस्तीफा देने का है । यह कदम उठाने से पहले वह लेकिन इसके नफे/नुकसान का आकलन कर लेना चाहते हैं । करनाल ब्रांच के पदाधिकारी इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता के साथ-साथ नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ट्रेजरर पंकज गुप्ता से बुरी तरह खफा हैं । उनका आरोप है कि करनाल ब्रांच के एक्स-ऑफिसो होने के नाते पंकज गुप्ता ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया और अपने स्वार्थ में वह तमाशबीन बने रहे, जिसके चलते इंस्टीट्यूट प्रशासन को करनाल ब्रांच के मामले में मनमानी करने का मौका मिला ।
करनाल ब्रांच के पदाधिकारियों का कहना है कि जिस 'आधार' पर करनाल ब्रांच के मामले में कार्रवाई की गई है; ठीक वैसे ही 'आधार' यमुना नगर, अमृतसर तथा भिवानी ब्रांच में हैं - लेकिन वहाँ कोई कार्रवाई नहीं की गई है । उनका आरोप है कि इसी से जाहिर है कि करनाल ब्रांच के मामले में की गई कार्रवाई मनमानी तथा पक्षपातपूर्ण है, और यह करनाल ब्रांच की बनने वाली बिल्डिंग में पैसे 'बनाने' की कोशिशों से जुड़ी हुई है । करनाल ब्रांच के पदाधिकारियों को दरअसल इसीलिए नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ट्रेजरर पंकज गुप्ता के रवैये पर हैरानी है । उल्लेखनीय है कि करनाल ब्रांच के मामले में शिकायत मिलने पर एक्स-ऑफिसो सदस्य होने के नाते पंकज गुप्ता को मामले में संज्ञान लेने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिस पर पंकज गुप्ता ने बहुत ही चलताऊ तरीके से रिएक्ट किया था । उनके रवैये से पहले ऐसा लगा था, जैसे कि मामले में वह ब्रांच के पदाधिकारियों के साथ हैं - लेकिन फिर पंकज गुप्ता ने ऐसी पलटी मारी कि वह सीन से गायब ही हो गए और इंस्टीट्यूट प्रशासन ने मनमाना, एकतरफा और पक्षपातपूर्ण फैसला ब्रांच पर थोप दिया । कई लोगों का मानना और कहना है कि करनाल ब्रांच के मामले में जो कार्रवाई हुई है, वैसी ही कार्रवाई यदि यमुना नगर, अमृतसर तथा भिवानी ब्रांच के मामलों में भी हुई होती, तब फिर उक्त कार्रवाई उचित और न्यायपूर्ण 'दिखती' - लेकिन जिस तरह से इंस्टीट्यूट प्रशासन ने सिर्फ करनाल ब्रांच के मामले में कार्रवाई की है, उसके कारण यह कार्रवाई तथा इसके पीछे अतुल गुप्ता व पंकज गुप्ता की भूमिका संदेहास्पद हो गई है । 
करनाल ब्रांच के पदाधिकारियों के चुनाव/चयन का जो झमेला है, और जिसमें इंस्टीट्यूट प्रशासन की कार्रवाई को मनमानी तथा पक्षपातपूर्ण माना/बताया जा रहा है - उसके पीछे करनाल ब्रांच की बनने वाली बिल्डिंग की 'कमान' हाथ में रखने की करनाल से लेकर दिल्ली तक के लोगों की कोशिशों को देखा/पहचाना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि करीब ढाई वर्ष पहले बिल्डिंग के लिए जमीन मिल चुकी है, और जल्दी ही उस पर निर्माण कार्य शुरू होना है । मजेदार तथ्य यह भी है कि उक्त बिल्डिंग के लिए बनी कमेटी के चेयरमैन पद को लेकर इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के पिछले टर्म में अतुल गुप्ता और विजय गुप्ता के बीच खासी 'जंग' रही थी, जिसमें विजय गुप्ता विजयी रहे थे । मौजूदा टर्म में विजय गुप्ता चूँकि अपनी जगह सुरक्षित नहीं रख सके, इसलिए बिल्डिंग कमेटी के चेयरमैन पद पर अतुल गुप्ता ने फिर से नजरें टिकाईं, लेकिन वह वाइस प्रेसीडेंट बन गए । करनाल ब्रांच की बिल्डिंग से जुड़ी 'राजनीति' से परिचित लोगों का कहना/बताना है कि प्रेसीडेंट बन जाने के बावजूद अतुल गुप्ता करनाल ब्रांच की बिल्डिंग के मामले में विजय गुप्ता से मिली पराजय की टीस को भूले नहीं हैं, और करनाल ब्रांच में 'अपने' सदस्यों के जरिये वह बिल्डिंग के मामले में अपनी 'पकड़' बनाये रखना चाहते हैं । इंस्टीट्यूट प्रशासन ने नियम-कानूनों का वास्ता देकर मनमाने व पक्षपातपूर्ण तरीके से करनाल ब्रांच के मामले में जो कार्रवाई की है, उसे अतुल गुप्ता की 'पकड़' बनाये रखने की कोशिश के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है । मामले में पंकज गुप्ता के पलटी मारने को अतुल गुप्ता के 'खेल' के हिस्से के रूप में ही जाना/देखा गया है । इंस्टीट्यूट प्रशासन के फैसले पर करनाल ब्रांच के पदाधिकारियों की नाराजगी से लेकिन लग रहा है कि यह मामला अभी जल्दी शांत होने वाला नहीं है । 

Wednesday, March 18, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में रमेश अग्रवाल की बदनामी के कारण सीओएल के चुनाव में शरत जैन को अपने समर्थकों की मदद का ही टोटा पड़ता नजर आ रहा है, जिसके चलते मुकेश अरनेजा के मुकाबले उनकी स्थिति पतली ही दिख रही है  

नई दिल्ली । रमेश अग्रवाल के कहने/उकसाने पर शरत जैन सीओएल के लिए उम्मीदवार तो बन गए हैं, लेकिन मुकाबले पर मुकेश अरनेजा को देख कर उन्हें लग रहा है कि उन्होंने जैसे मुसीबत आमंत्रित कर ली है । दरअसल रमेश अग्रवाल की हालत ही कुछ ऐसी बन गई है कि वह जिसे उम्मीदवार बनाते हैं, मुसीबतें उसे शुरू से ही दबोच लेती हैं । मौजूदा रोटरी वर्ष में रमेश अग्रवाल ने अशोक जैन को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार बनाया/बनवाया, लेकिन अशोक जैन को जल्दी ही समझ में आ गया कि रमेश अग्रवाल की 'साढ़े साती' के कारण उनके लिए उम्मीदवारी का अभियान चला पाना मुश्किल ही होगा - सो, वह जिस पतली गली से उम्मीदवार बनने के लिए आगे बढ़े थे, उसी पतली गली से वापस लौट गए; और सुखी रहे । अब शरत जैन की भी हालत अशोक जैन जैसी ही है । मुकेश अरनेजा को मुकाबले में देख कर रमेश अग्रवाल व शरत जैन की जोड़ी ने यह तर्क देते हुए दाँव तो अच्छा चला था कि मुकेश अरनेजा एक बार सीओएल में रह चुके हैं, इसलिए अब उन्हें दूसरों के लिए मौका छोड़ देना चाहिए - लेकिन उनकी बदकिस्मती रही कि उनका यह दाँव चलते ही फुस्स हो गया । दरअसल किसी की भी समझ में नहीं आया कि रोटरी इंटरनेशनल के नियम-कानून यदि मुकेश अरनेजा को दोबारा सीओएल का सदस्य बनने का अधिकार देते हैं, तब फिर रमेश अग्रवाल व शरत जैन की जोड़ी मनमाने तरीके से उनसे यह अधिकार छीनने का प्रयास क्यों कर रही है ? और फिर, यदि इस तर्क को व्यवहार में लाना ही था, तो इसके लिए काउंसिल और गवर्नर्स की मीटिंग में बात होना चाहिए थी । यह दोनों डिस्ट्रिक्ट काउंसलर हैं, इन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता को कह कर काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग बुलवाना चाहिए थी, और उसमें यह मुद्दा रखना चाहिए था । मजे की बात लेकिन यह है कि इसके लिए न तो इन दोनों ने कोई प्रयास किए और न दीपक गुप्ता ने ही कोशिश की ।
डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख लोगों और जानकारों का मानना और कहना है कि हो सकता है कि काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में भी रमेश अग्रवाल और शरत जैन की जोड़ी मुकेश अरनेजा को उम्मीदवार बनने से न रोक पाती; तब भी लेकिन लोगों को यह तो 'दिखता' कि वह प्रॉपर तरीके से अपनी बात कह रहे हैं - और उससे उन्हें लोगों के बीच सहानुभूति और समर्थन भी मिल सकता था । यह मौका लेकिन रमेश अग्रवाल और शरत जैन की जोड़ी ने खो दिया । इससे जाहिर है कि सीओएल का पद पाने के लिए शरत जैन को और उन्हें पद दिलवाने के लिए रमेश अग्रवाल को कायदे/कानून से कुछ करना नहीं है; और इसीलिए उनके संभावित सहयोगी/समर्थक भी उनके लिए कुछ करते हुए नजर नहीं आ रहे हैं । शरत जैन को उम्मीद रही है कि दीपक गुप्ता, अशोक अग्रवाल और ललित खन्ना उनकी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम करेंगे; लेकिन वह यह देख/जान कर निराश हैं कि यह तीनों ही कुछ करते हुए नजर नहीं आ रहे हैं । दीपक गुप्ता तो अपने स्वार्थ और अपनी बेवकूफी में कुछ नहीं कर रहे हैं; दीपक गुप्ता दरअसल उम्मीद कर रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में ललित खन्ना उनकी मदद पाने के लिए जिस तरह उनके आगे-पीछे रहते थे, और उनकी हर 'डिमांड' पूरी करते थे, शरत जैन भी वैसे ही करें - शरत जैन चूँकि वैसा कुछ नहीं कर रहे हैं, इसलिए दीपक गुप्ता भी उनके लिए कुछ करने की जरूरत नहीं समझ रहे हैं । 
अशोक अग्रवाल लगता है कि रमेश अग्रवाल के साथ हुए पुराने झगड़े को अभी नहीं भूले हैं, और शरत जैन को वह चूँकि रमेश अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में ही देख/पहचान रहे हैं - इसलिए वह शरत जैन के लिए कुछ करने को प्रेरित नहीं हो पा रहे हैं । ललित खन्ना की समस्या बिलकुल अलग तरह की है; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव वह खुद बड़ी मुश्किलों से - चौथी बार में जीते हैं; ऐसे में, उन्हें डर है कि वह शरत जैन के लिए वोट जुटाने की कोशिश में कहीं खुद का मजाक न बनवा बैठें, लिहाजा वह चुप ही बने हुए हैं । ललित खन्ना की इस चुप्पी ने सीओएल के चुनाव से अलग मामले में शरत जैन की दुविधा को बढ़ाने का काम किया है । शरत जैन को ललित खन्ना की तरफ से संकेत मिला है कि वह उन्हें अपने गवर्नर-वर्ष में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनायेंगे; शरत जैन की आशंका है कि कहीं उस मामले में भी तो ललित खन्ना उन्हें झाँसा नहीं दे देंगे ? अशोक अग्रवाल और ललित खन्ना के सामने एक और मुसीबत है - उन्हें आने वाले वर्षों में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारियाँ सँभालनी हैं, और इसके लिए उन्हें डिस्ट्रिक्ट में सभी का सहयोग/समर्थन चाहिए होगा - सीओएल के चुनाव के चक्कर में वह उस संभावित सहयोग/समर्थन को खतरे में नहीं डालना चाहेंगे । यह मुसीबत वास्तव में इसलिए भी है, क्योंकि किसी को भी सीओएल के चुनाव में शरत जैन के जीतने की संभावना नहीं दिख रही है - इसलिए उनके सहयोगी/समर्थक के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले नेता लोग भी उनके समर्थन में 'दिख' कर अपनी फजीहत नहीं करवाना चाहते हैं, और उनकी उम्मीदवारी से दूर ही रहना चाहते हैं । शरत जैन और मुकेश अरनेजा के बीच होते दिख रहे सीओएल के चुनाव को एक बेमेल चुनाव के रूप में देखा जा रहा है; मुकेश अरनेजा को चुनावी राजनीति का धुरंधर समझा जाता है, जबकि शरत जैन चुनावी राजनीति के बड़े कच्चे खिलाड़ी के रूप में देखे/पहचाने जाते हैं । रही सही कसर रमेश अग्रवाल की बदनामी पूरी कर देती है । लोगों का मानना/कहना है कि रमेश अग्रवाल के उम्मीदवार होने के कारण शरत जैन की भी स्थिति वैसी ही होगी, जैसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद चुनाव के मामले में अशोक जैन की हुई थी । अशोक जैन तो हालात को समझ/पहचान कर जल्दी ही 'कट' लिए थे, देखना दिलचस्प होगा कि शरत जैन क्या करते हैं ? 

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3054 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट राजेश अग्रवाल प्रेसीडेंट्स इलेक्ट की ट्रेनिंग के नाम पर लीपापोती करने तथा पूर्व गवर्नर अनिल अग्रवाल द्वारा रोटरी फाउंडेशन की चोरी की गई रकम को अपने क्लब की तरफ से वापस करवाने की पोल खुलने से आरोपों में घिरे

कोटा । डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ, प्रमुख व खास लोगों ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट राजेश अग्रवाल के 'चिराग' शीर्षक से आयोजित पहले प्रमुख कार्यक्रम से जिस तरह से दूरी बना कर रखी, और उसे जताया भी - उससे आभास मिल रहा है कि राजेश अग्रवाल ने अपने रवैये से डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर लोगों को नाराज ही किया हुआ है । इस बार कमाल यह हुआ कि डिस्ट्रिक्ट के जो प्रमुख लोग डिस्ट्रिक्ट के प्रायः प्रत्येक कार्यक्रम में उपस्थित होने/रहने के कारण 'बदनाम' भी हैं, उन्होंने भी राजेश अग्रवाल के इस आयोजन से दूर रहने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी । जो लोग कार्यक्रम में शामिल हुए, उनका कहना/बताना रहा कि आयोजन बहुत बढ़िया हुआ, अच्छा इंतजाम था, खाने और पीने की अच्छी व्यवस्था थी, खूब जमकर नाच-गाना हुआ - यानि फुल्लमफुल मस्ती रही, लोगों ने खूब एन्जॉय किया; लेकिन कार्यक्रम में बेचारी 'रोटरी' कलपती/तड़पती रही । रोटरी की जितनी और जैसी ऐसीतैसी हो सकती थी, वह 'चिराग' में हुई । कार्यक्रम में शामिल हुए लोगों से यह सुनकर कार्यक्रम से दूर रहने वालों को कहने का मौका मिला कि उन्हें यह पहले से ही पता था, और इसीलिए वह कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए । उल्लेखनीय बात यह भी रही कि कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण राजेश अग्रवाल पर कार्यक्रम को स्थगित करने लिए भारी दबाव था; सरकारी एजेंसियों से लेकर रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों तक की तरफ से जो एडवाइजरी थी, उसके तहत भी कार्यक्रम को नहीं होना चाहिए था - लेकिन राजेश अग्रवाल ने न सरकारी एजेंसियों की सुनी और न रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों की बात मानी । इसके लिए भी राजेश अग्रवाल को वाट्स-ऐप ग्रुपों में भारी आलोचना का शिकार होना पड़ा । आलोचना से बचने के लिए राजेश अग्रवाल को वाट्स-ऐप ग्रुपों से सदस्यों को निकालना पड़ा और कमेंट्स करने के उनके अधिकार को प्रतिबंधित करना पड़ा ।
'चिराग' शीर्षक से आयोजित कार्यक्रम वास्तव में प्रेसीडेंट्स इलेक्ट, सेक्रेटरी इलेक्ट, असिस्टेंट गवर्नर्स, जोनल व डिस्ट्रिक्ट टीम के सदस्यों का ट्रेनिंग प्रोग्राम था । कॉमन सेंस से सहज ही समझा जा सकता है कि दो दिन के कार्यक्रम में, किसकी कैसी क्या ट्रेनिंग हो सकती थी - जिसमें की खाना/पीना भी होना था, नाच/गाना भी होना था, एन्जॉय करना/करवाना भी था । जाहिर है कि ट्रेनिंग के नाम पर महज खानापूरी ही होनी थी, और वही हुई भी । लगता है कि राजेश अग्रवाल ट्रेनिंग को लेकर गंभीर थे भी नहीं । यह इससे 'दिखा' कि कार्यक्रम में एक भी ऐसा रोटेरियन ट्रेनर के रूप में आमंत्रित नहीं था, जो मौजूदा रोटरी परिदृश्य में सक्रिय/संलग्न हो और इस नाते रोटरी के मौजूदा लक्ष्यों व कार्यक्रमों से परिचित हो । कहने के लिए तो पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट कल्याण बनर्जी कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे, लेकिन वह सिर्फ इसलिए वहाँ थे क्योंकि वह वहीं रहते हैं, जहाँ कार्यक्रम हो रहा था । वैसे भी देखा/पाया गया है कि उम्र के दबाव के चलते कल्याण बनर्जी अब रोटरी के कार्यक्रमों को लेकर अपडेट नहीं रह पाते हैं, और उनकी स्थिति/मौजूदगी आशीर्वाद देने वाले बड़े/बुजुर्ग जैसी रह गई है । आमंत्रित ट्रेनर्स के नाम देख कर ही लोगों को लगा कि ट्रेनिंग के नाम पर राजेश अग्रवाल सिर्फ लीपापोती करना चाहते हैं, और जो उन्होंने बहुत अच्छे से की भी । उल्लेखनीय है कि रोटरी व्यवस्था में पेट्स (प्रेसीडेंट्स इलेक्ट ट्रेनिंग सेमीनार) का विशेष महत्त्व है; यह इसलिए, क्योंकि रोटरी में प्रेसीडेंट्स की भूमिका को बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना गया है । एक तरह से, प्रेसीडेंट्स को रोटरी की नींव के रूप में देखा/पहचाना जाता है, और इसलिए उनकी ट्रेनिंग पर खास जोर दिया जाता है । इसी कारण से, रोटरी व्यवस्था में प्रेसीडेंट्स की ट्रेनिंग (पेट्स) को अलग से करने का प्रावधान है । राजेश अग्रवाल ने लेकिन प्रेसीडेंट्स के साथ ही सेक्रेटरीज, असिस्टेंट गवर्नर्स तथा जोनल व डिस्ट्रिक्ट टीम के सदस्यों की भी ट्रेनिंग करवा कर दिखा/जता दिया कि रोटरी के मूल आदर्शों, कार्यक्रमों और उसकी व्यवस्था से उनका कुछ ज्यादा लेना-देना नहीं है, वह तो बस रोटरी के नाम पर एन्जॉय करने/करवाने की सोच रखते हैं ।
'चिराग' कार्यक्रम में, राजेश अग्रवाल के लिए उनके अपने क्लब - रोटरी क्लब कोटा - के कुछेक सदस्यों ने यह पोल खोलते हुए मुसीबत और बढ़ा दी कि बूढ़ों, बीमारों, गरीबों और अनपढ़ों की मदद के नाम पर ली गई करीब 20 लाख रुपए की ग्लोबल ग्रांट की घपलेबाजी की रकम उनके क्लब की तरफ से वापस की गई है । दरअसल डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच यह बात बड़ी रहस्य बनी हुई थी कि रोटरी फाउंडेशन के पैसे हड़पने के आरोप में रोटरी में ग्रांट्स, अवॉर्ड्स, असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स से वंचित रखने की सजा पाए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल को 'बचाने' के लिए पैसे दिए किसने हैं ? 'चिराग' कार्यक्रम में जुटे लोगों को राजेश अग्रवाल के क्लब के सदस्यों ने ही बताया कि चोरी की उक्त रकम उनके क्लब ने वापस की है । इस जानकारी ने पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल से जुड़े मामले को फिर से चर्चा में ला दिया । लोगों के बीच चर्चा रही कि अनिल अग्रवाल द्वारा चोरी की गई रकम राजेश अग्रवाल के क्लब की तरफ से वापस होने के पीछे आखिर खेल क्या है ? राजेश अग्रवाल और अनिल अग्रवाल की तरफ से इस बात को आखिर छिपाया क्यों जा रहा है कि अनिल अग्रवाल पर रोटरी फाउंडेशन की जिस रकम की चोरी का आरोप लगा, वह रकम राजेश अग्रवाल के क्लब की तरफ से वापस क्यों की गई है ? मजे की बात यह है कि अभी भी यह रहस्य बना हुआ है कि राजेश अग्रवाल के क्लब को वापस करने के लिए उक्त रकम आखिर दी किसने है ? उल्लेखनीय है कि रोटरी फाउंडेशन के पैसों की चोरी के आरोप में रोटरी इंटरनेशनल से सजा पाए अनिल अग्रवाल को अपने गवर्नर-काल में असाइनमेंट देने के मामले में राजेश अग्रवाल पहले से ही आरोपों के घेरे में हैं । राजेश अग्रवाल गवर्नर का पदभार संभालने से पहले ही जिस तरह से आरोपों और विवादों में फँस/घिर रहे हैं, उसे देख कर उनके नजदीकियों को ही चिंता होने लगी है कि राजेश अग्रवाल अपने गवर्नर वर्ष में डिस्ट्रिक्ट और रोटरी को पता नहीं कैसी क्या बदनामी दिलवायेंगे ?

Saturday, March 14, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अशोक गुप्ता जिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हरि गुप्ता तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी राजीव सिंघल के समर्थन के बल पर जीतने की उम्मीद कर रहे थे, वही उनकी हार का कारण बने; और दिनेश शर्मा बड़े अंतर से विजयी हुए

मेरठ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी राजीव सिंघल की हर संभव तिकड़म के बावजूद, अशोक गुप्ता अगले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव दिनेश शर्मा से बड़े अंतर से हार गए हैं । राजीव सिंघल और अशोक गुप्ता की जोड़ी और उनके नजदीकी इस हार के लिए पूर्व गवर्नर राकेश सिंघल को कोस रहे हैं । इनका आरोप है कि राकेश सिंघल वैसे तो अपने आपको मुरादाबाद का बड़ा नेता बताते/समझते हैं, लेकिन मुरादाबाद का वह एक वोट भी अशोक गुप्ता को नहीं दिलवा सके । चर्चा है कि अशोक गुप्ता वोटों की मुँहमाँगी कीमत देने को तैयार थे, और मुरादाबाद में आठ/दस वोट अपने आप को 'तटस्थ' भी बता/दिखा रहे थे - लेकिन दिनेश शर्मा और उनके समर्थकों द्वारा की गई घेराबंदी को तोड़ पाने में वह विफल रहे । अशोक गुप्ता की बदकिस्मती यह रही कि मुरादाबाद में उन्हें अपने घनघोर व दमदार समर्थक राकेश सिंघल के खासमखास लोगों का भी वोट नहीं मिला । दिनेश शर्मा के गृह क्षेत्र बुलंदशहर तक में अशोक गुप्ता ने कुछेक वोट प्राप्त करने का जुगाड़ बैठा लिया, लेकिन मुरादाबाद में उन्हें खाली हाथ ही रहना पड़ा - और यही उनकी हार का प्रमुख कारण बना । मुरादाबाद के क्लब्स ने जिस तरह से दिनेश शर्मा की उम्मीदवारी के पक्ष में एकतरफा रूप में वोट किया/दिया, वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का एक दिलचस्प अध्याय है । मुरादाबाद का कोई उम्मीदवार होता है, तब मुरादाबाद के क्लब्स की ऐसी एकता कभी-कभार ही देखने को मिली है; मुरादाबाद से बाहर के उम्मीदवारों के बीच मुकाबला होने की स्थिति में तो यहाँ के वोट निश्चित रूप से बँटते ही हैं । लेकिन इस बार अनोखा काम हुआ, और दिनेश शर्मा की उम्मीदवारी के पक्ष में मुरादाबाद के क्लब्स की अप्रत्याशित एकता देखने को मिली ।
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के कुछेक जानकारों के अनुसार, मुरादाबाद के क्लब्स की यह एकता वास्तव में दिनेश शर्मा के पक्ष में नहीं - बल्कि अशोक गुप्ता के विरोध में बनी; दिनेश शर्मा को तो उसका लाभ भर मिला है । दरसअल अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी की कमान जिस तरह से राजीव सिंघल के हाथों में रही/दिखी; और अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के सहारे राजीव सिंघल जिस तरह से डिस्ट्रिक्ट का नेता बनने की कोशिश करते नजर आये - उससे डिस्ट्रिक्ट के कई नेता बुरी तरह बिदक गए । राजीव सिंघल के रवैये में डिस्ट्रिक्ट के आम और खास लोगों ने घमंड का भाव देखा और महसूस किया है; राजीव सिंघल की तरफ से, अशोक गुप्ता की जीत के बाद उनके दो/एक नजदीकियों के नाम अगले उम्मीदवारों के रूप में जिस तरह से 'उछले' - उससे भी डिस्ट्रिक्ट के नेताओं के बीच खलबली मची, और वह आपसी मतभेदों को भुला कर एकजुट हुए । डिस्ट्रिक्ट के कई नेताओं के बीच बनी एकजुटता को वरिष्ठ पूर्व गवर्नर जीएस धामा तथा युवा पूर्व गवर्नर संजीव रस्तोगी ने अपने अपने तरीके से न सिर्फ पुख्ता किया, बल्कि अपने अपने समर्थकों के जरिये दिनेश शर्मा की उम्मीदवारी के पक्ष में ऐसी जबर्दस्त घेराबंदी भी की कि विरोधियों के नजदीक समझे जाने वाले लोगों के वोट भी दिनेश शर्मा की झोली में आ गिरे । उल्लेखनीय है कि दिनेश शर्मा पहली और पिछली बार संजीव रस्तोगी के गवर्नर वर्ष में निर्विरोध चुने गए थे; लेकिन डिस्ट्रिक्ट के नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में जाने के चलते दिनेश शर्मा की वह कामयाबी खटाई में पड़ गई थी । डिस्ट्रिक्ट को नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस से बाहर लाकर दिनेश शर्मा को 'न्याय' दिलवाने के लिए रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के बीच जीएस धामा ने खासी 'वकालत' की थी, लेकिन उनके वह प्रयास सफल नहीं हो सके थे । इसलिए इस बार के चुनाव में दिनेश शर्मा को जीत की माला और शॉल पहनाने के लिए जीएस धामा और संजीव रस्तोगी ने जैसे कमर कस ली थी, और इस बार वह अपनी कोशिशों में कामयाब हुए ।
अशोक गुप्ता के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हरि गुप्ता का समर्थन लेना/पाना भी आत्मघाती साबित हुआ । मजे की बात यह रही कि हरि गुप्ता का समर्थन पाने के बाद अशोक गुप्ता व उनके समर्थक और जोश में आ कर अपनी जीत के प्रति आश्वस्त व निश्चिंत हो गए थे । लेकिन हुआ ठीक उल्टा और उनकी उम्मीदवारी का बंटाधार करने में हरि गुप्ता का भी भारी 'सहयोग' रहा । दरअसल, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में हरि गुप्ता का कार्यकाल बहुत ही बुरा रहा है और अधिकतर लोग अलग अलग कारणों से नाराज हुए हैं । रही सही कसर डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की बदइंतजामी ने पूरी कर दी । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में बदइंतजामी का आलम यह रहा कि लोगों को खाना पाने के लिए मशक्कत करना पड़ी और अपमानित तक होना पड़ा । खाना पाने के लिए पहले तो लोगों को लंबी लाइन में लगना पड़ा, जब तक उनका नंबर आया तो पता चला कि प्लेट्स खत्म हो गई हैं; जब तक प्लेट्स लगीं, तब तक रोटियाँ समाप्त हो गईं - लोग रोटियों का इंतजार कर रहे थे, लेकिन सप्लाई में दाल के डोंगे पर डोंगे चले आ रहे थे । इससे लोगों के बीच भारी अफरातफरी फैली । इससे पहले मुख्य अतिथि के रूप में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता कई मुद्दों पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में हरि गुप्ता की कमजोरियों को उद्घाटित कर चुके थे । इस तरह, लोगों ने देखा/पाया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में हरि गुप्ता हर मोर्चे पर फेल रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच चर्चा चल ही रही थी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में हरि गुप्ता ने अशोक गुप्ता से कई खर्चे स्पॉन्सर करवाए हैं, और हरि गुप्ता का सहयोग/समर्थन पाने के लिए अशोक गुप्ता ने खुशी खुशी उनके खर्चों को उठाया है - इसके चलते, डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में फैली बदइंतजामी का शिकार हुए लोगों ने अशोक गुप्ता से बदला लिया । अशोक गुप्ता की बदकिस्मती रही कि उन्हें अपने समर्थकों के रवैये से पैदा हुई नाराजगी का खामियाजा भुगतना पड़ा है; इस कारण से उनकी 'आगे की राह' को भी मुश्किलों से भरा देखा/पहचाना जा रहा है ।

Friday, March 13, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के नॉर्दर्न रीजन में संजीव सिंघल और प्रमोद जैन के खिलाफ बढ़ती नाराजगी तथा अतुल गुप्ता की सीट के खाली होने के कारण अगले वर्ष होने वाले चुनाव में कुछेक बनिया उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी करता देख सुधीर अग्रवाल और विजय गुप्ता को अभी से अपनी अपनी उम्मीदवारी के लिए सक्रिय होना जरूरी लगा है 

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल का सदस्य बनने के एक वर्ष के अंदर ही संजीव सिंघल तथा प्रमोद जैन के प्रति चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की बढ़ती नाराजगी ने इनके नजदीकियों और समर्थकों को अगले चुनाव में इनकी जीत के प्रति सशंकित कर दिया है, और उन्हें लग रहा है कि इसी का फायदा उठाने के लिए सुधीर अग्रवाल व विजय गुप्ता ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है । संजीव सिंघल और प्रमोद जैन के खिलाफ आम शिकायत है कि यह फोन ही नहीं उठाते हैं, और कॉल बैक भी नहीं करते हैं । आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स तो छोड़िये, वरिष्ठ व खास चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रति भी इनका यही रवैया है । संजीव सिंघल के मामले में तो उनके समर्थक रहे वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट गिरीश आहुजा तक को लोगों की शिकायतें सुनना पड़ रही हैं । भुक्तभोगियों का कहना/बताना है कि संजीव सिंघल के रवैये पर गिरीश आहुजा ने भी नाराजगी दिखाई/जताई है, और लोगों के बीच माना है कि संजीव सिंघल के इस रवैये के चलते उनकी साख व विश्वसनीयता को चोट पहुँची है । दरअसल कई चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने गिरीश आहुजा को उलाहना दिया कि 'हमने तो आपकी सिफारिश पर' संजीव सिंघल को वोट दिया था; हमें विश्वास था कि 'आप' जिसकी सिफारिश कर रहे हैं, चुनाव जीतने के बाद वह हमारी मुश्किलों व समस्याओं को हल करने/करवाने में दिलचस्पी लेंगे - लेकिन संजीव सिंघल तो फोन भी नहीं उठाते हैं । कुछेक वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का कहना है कि उन्हें तो गिरीश आहुजा के हस्तक्षेप करने के बाद संजीव सिंघल की तरफ से कॉल आई । प्रमोद जैन के 'शिकार' लोगों की तो समस्या यह भी है कि वह शिकायत भी करें तो किस से करें ?
उल्लेखनीय है कि पिछले चुनाव में नॉर्दर्न रीजन में संजीव सिंघल को सबसे ज्यादा वोट मिले थे, और प्रमोद जैन विजेता 6 उम्मीदवारों में तीसरे नंबर पर रहे थे । इन्हें जो छप्परफाड़ जीत मिली थी, उसकी दूसरों को तो क्या - खुद इन्हें भी उम्मीद नहीं थी । ठीक इसी तरह से, दूसरों को तो क्या, खुद इन्हें भी उम्मीद नहीं रही होगी कि भारीभरकम जीत हासिल करने के एक वर्ष के भीतर ही इन्हें वोट देने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इनके खिलाफ शिकायतें करने लगेंगे । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की शिकायतों को सुनते/देखते हुए वह कहावत चरितार्थ होती हुई लग रही है कि 'जो जितनी तेजी से ऊपर चढ़ता है, वह उससे ज्यादा तेज गति से नीचे उतरता है ।' संजीव सिंघल और प्रमोद जैन के प्रति मुखर होती शिकायतों ने सुधीर गुप्ता और विजय गुप्ता को अभी से चुनावी तैयारी शुरू करने के लिए प्रेरित किया है, और उनकी तरफ से अपने समर्थकों को सक्रिय करने तथा नए समर्थक खोजने/बनाने का काम शुरू होने की चर्चा है । पिछले चुनाव में सुधीर अग्रवाल करीब डेढ़ सौ वोटों की कमी के चलते सेंट्रल काउंसिल में आने से रह गए थे, और विजय गुप्ता को सेंट्रल काउंसिल की अपनी सीट खोना पड़ी थी । इन दोनों को उम्मीद है कि संजीव सिंघल और प्रमोद जैन के खिलाफ लोगों की नाराजगी जिस तरह से बन/बढ़ रही है, और खासी मुखर हो रही है, उसके कारण इन्हें वोटों का भारी नुकसान होगा; इन्हें होने वाले नुकसान का फायदा उठाने के लिए अगले वर्ष होने वाले सेंट्रल काउंसिल चुनाव के लिए सुधीर अग्रवाल और विजय गुप्ता को अभी से सक्रिय होने की जरूरत लग रही है ।
दरअसल, संजीव सिंघल और प्रमोद जैन के वोटों में कमी होने के आकलन तथा अतुल गुप्ता की सीट के खाली होने के कारण अगले वर्ष होने वाले चुनाव में कुछेक बनिया उम्मीदवारों के मैदान में उतरने की संभावना व्यक्त की जा रही है । चुनावी अनुभव के कारण, सुधीर अग्रवाल और विजय गुप्ता का पलड़ा अगले चुनावों के संदर्भ में भारी तो दिखता है, लेकिन कोई नया उम्मीदवार आ कर इनका 'खेल' बिगाड़ न दे - संभवतः इसलिए ही इन्हें अभी से सक्रिय होना जरूरी लगा होगा । संजीव सिंघल और प्रमोद जैन के कुछेक समर्थकों को हालाँकि लगता है कि इनके रवैये से लोगों के बीच पैदा हुई नाराजगी के चलते, हो सकता है कि इन्हें मिलने वाले वोटों में कुछ कमी हो जाये - लेकिन अपनी सीट निकालना इनके लिए मुश्किल नहीं होगा । कुछेक समर्थकों का यह भरोसा, लेकिन पिछले चुनाव में विजय गुप्ता और संजय वासुदेवा के साथ घटी 'घटना' को याद करते हुए ज्यादा भरोसे का नहीं रह जाता है । पिछले चुनाव में, सेंट्रल काउंसिल में होने के बावजूद विजय गुप्ता और संजय वासुदेवा का अपनी अपनी सीटों को न बचा पाना इस बात का सुबूत है कि सेंट्रल काउंसिल का सदस्य होना जीत की गारंटी नहीं है । और फिर, विजय गुप्ता व संजय वासुदेवा के खिलाफ तो वैसी मुखर नाराजगी भी नहीं दिखती थी, जैसी कि संजीव सिंघल व प्रमोद जैन के प्रति दिख रही है । देखना दिलचस्प होगा कि संजीव सिंघल और प्रमोद जैन अपने खिलाफ बढ़ती नाराजगी को सचमुच खतरे के रूप में देखेंगे और अपने व्यवहार में सुधार करेंगे - या छप्परफाड़ जीत के 'नशे' में आश्वस्त रहेंगे और लोगों की नाराजगी की परवाह नहीं करेंगे ?

Thursday, March 12, 2020

घोटालेबाजी के कारण डूबे यस बैंक में दिल्ली रोटरी ब्लड बैंक के बीसों करोड़ रुपए फँसे होने की बात सामने आने पर, पहले से ही मनमानियों और बेईमानियों के आरोपों में घिरे रोटरी ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट विनोद बंसल की मुसीबतें और बढ़ीं 

नई दिल्ली । यस बैंक के झमेले में दिल्ली रोटरी ब्लड बैंक भी फँसा है, और एफडी के रूप में उसके बीसों करोड़ रुपए खतरे में पड़ गए हैं । रोटेरियंस के लिए हैरानी की बात यह है कि अपने आपको फाइनेंशियल एक्सपर्ट कहने/बताने वाले विनोद बंसल के प्रेसीडेंट होते हुए रोटरी ब्लड बैंक की मोटी रकम घोटालों का सामना कर रहे यस बैंक में कैसे फँस गई ? उल्लेखनीय है कि यस बैंक घोटालेबाजी की खबरों के चलते पिछले डेढ़-दो वर्ष से चर्चा में है और बैंक के डूबने की आशंकाएँ व्यक्त होती रही हैं । इन आशंकाओं के चलते ही पिछले छह/आठ महीनों में कई कार्पोरेट तथा एनजीओ खाताधारकों ने बैंक में अपने डिपॉजिट्स निकाल लिए थे । फाइनेंशल सेक्टर में एक्सपर्ट्स के बीच यह चर्चा आम थी कि यस बैंक में अपने डिपॉजिट्स छोड़ना उन्हें खतरे में डालना है । ऐसे में, रोटेरियंस के बीच चर्चा और सवाल हैं कि फाइनेंशियल एक्सपर्ट और प्रेसीडेंट के रूप में विनोद बंसल ने रोटरी ब्लड की रकम यस बैंक से निकालने पर ध्यान क्यों नहीं दिया ? कुछेक लोगों को यह विनोद बंसल की प्रशासनिक व प्रोफेशनल चूक व लापरवाही लगती हैं, तो कुछेक अन्य लोग इसमें उनका कोई 'खेल' देख रहे हैं । इस संदर्भ में, एक मजेदार तथ्य यह भी है कि विनोद बंसल रोटरी इंटरनेशनल की इन्वेस्टमेंट कमेटी के सदस्य भी हैं । लोगों का कहना/पूछना है कि जो विनोद बंसल रोटरी ब्लड बैंक की रकम को चूक, लापरवाही और या किसी 'खेल' के चलते खतरे में डाल सकते हैं, वह इन्वेस्टमेंट कमेटी के सदस्य के रूप में रोटरी इंटरनेशनल की भारी-भरकम रकम के लिए भी बड़े खतरे साबित हो सकते हैं ।
विनोद बंसल अपने बचाव में तर्क दे रहे हैं कि रोटरी ब्लड बैंक का अकाउंट यस बैंक में खोलने का फैसला उन्होंने नहीं किया था; प्रेसीडेंट के रूप में उनके काम सँभालने से पहले ही ब्लड बैंक का अकाउंट यस बैंक में था - और क्यों था, यह पहले ट्रेजरर रहे आशीष घोष से पूछा जाना चाहिए । वर्ष 2015 तक ब्लड बैंक के ट्रेजरर रहे आशीष घोष का कहना है कि उन्हें यह याद नहीं है कि उस समय किस बैंक में अकाउंट था, लेकिन यदि विनोद बंसल कह रहे हैं, तो ठीक ही कह रहे होंगे । आशीष घोष पुराने दिनों की याद करते हुए बताते हैं कि तत्कालीन पदाधिकारियों के रूप में सुदर्शन अग्रवाल तथा ओपी वैश्य के साथ वह बैंकों की ब्याज दरों तथा उनके कामकाज का आकलन करते रहते थे, और जहाँ ज्यादा फायदा होता दिखता था, वहाँ अकाउंट खोलने का फैसला करते थे । उनका कहना है कि अधिकतर एनजीओ ऐसा ही करते हैं, और इसमें कुछ भी गलत नहीं है । मजे की बात यह है कि यस बैंक में अकाउंट खोलने और एफडी करवाने की बात को विनोद बंसल भी गलत नहीं बता रहे हैं - वह तो पिछले पदाधिकारियों के समय से यस बैंक में अकाउंट होने की बात कह कर दरअसल मामले को डायवर्ट करने तथा अपने आपको आरोपों से बचाने की कोशिश कर रहे हैं । वास्तव में, सवाल और या आरोप यह है ही नहीं कि रोटरी ब्लड बैंक का अकाउंट यस बैंक किसने खोला और क्यों खोला ? सवाल और आरोप तो यह है कि पिछले डेढ़-दो वर्षों से जब यस बैंक के घोटालों की खबरें आ रहीं थीं, और बैंक के डूबने की आशंका व्यक्त की जा रही थी - और पिछले छह/आठ महीनों में जब कार्पोरेट्स तथा एनजीओ यस बैंक से अपने पैसे निकाल रहे थे, तब फाइनेंशियल एक्सपर्ट होने का दावा करने वाले रोटरी ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट विनोद बंसल आखिर कहाँ सोए हुए थे ?
आरोपों से बचने के लिए विनोद बंसल यह दावा भी कर रहे हैं कि यस बैंक का संकट जल्दी ही दूर हो जायेगा और सरकार ने आश्वस्त किया है कि उसमें जमा पैसा पूरी तरह सुरक्षित है । यस बैंक में दिल्ली रोटरी ब्लड बैंक की सारी कमाई के फँसे होने से परेशान रोटेरियंस का कहना है कि इस तरह की बातों से विनोद बंसल अपनी चूक, लापरवाही और या किसी 'खेल' की आशंका पर पर्दा नहीं डाल सकते हैं । विनोद बंसल से हमदर्दी रखने वाले उनके नजदीकियों व समर्थकों का भी मानना और कहना है कि इस प्रसंग ने विनोद बंसल की कार्य-क्षमता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं । प्रोफेशनली वह जिस काम में एक्सपर्ट समझे जाते हैं, उस काम को ही वह यदि ठीक से नहीं कर सकते हैं और संगठन को भारी चोट पहुँचाने वाले खतरे में धकेल सकते हैं, तो फिर दूसरे कामों के बारे में उनसे उम्मीद करना संदेहास्पद तो होगा ही । विनोद बंसल के ग्रह-नक्षत्र आजकल लगता है कि कुछ अच्छे नहीं चल रहे हैं; वह जहाँ भी होते हैं, वहाँ विवाद और आरोप लगने लगते हैं । रोटरी ब्लड बैंक में वह पहले से ही मनमानियों और बेईमानियों के आरोपों में घिरे हैं, जिनके चलते ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट पद की उनकी कुर्सी और खतरे में पड़ी दिख रही है । प्रेसीडेंट पद की कुर्सी बचाने के लिए विनोद बंसल जीतोड़ कोशिश कर ही रहे थे, कि यस बैंक में ब्लड बैंक के पैसे फँसे होने का मामला उनके गले में आ अटका है । इस मामले में उनके लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि कुछेक लोग इस मामले को भले ही उनकी चूक व लापरवाही के रूप में देख रहे हों, लेकिन अधिकतर लोग इसके पीछे उनकी कोई बिजनेस डील होने का ही संदेह प्रकट कर रहे हैं । विनोद बंसल के सामने समस्या यह है कि आरोपों व संदेहों के बीच उनसे ब्लड बैंक का प्रेसीडेंट पद छिना तो रोटरी की राजनीति व प्रशासनिक व्यवस्था में यह उन्हें और नुकसान पहुँचाने वाला साबित हो सकता है ।  

Tuesday, March 10, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए दीपक गुप्ता को सोनीपत से लेकर बाकी क्षेत्रों तक में समर्थन का जो टोटा पड़ रहा है, उसके चलते प्रियतोष गुप्ता के खिलाफ उम्मीदवार की तलाश में भटक रहे नेताओं/गवर्नर्स को भी दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का झंडा उठाने में कोई फायदा नजर नहीं आ रहा है

सोनीपत । दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए संपर्क अभियान में तेजी लाने के लिए होली के मौके का फायदा तो खूब उठाया, लेकिन उन्हें इसका लाभ मिलता हुआ दिखा नहीं है । दीपक गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह भी हुई है कि जिन नेताओं और गवर्नर्स के साथ उनकी नजदीकी रही है, और जिनके लिए उन्होंने बहुत काम किए हैं - वह भी उनकी उम्मीदवारी के समर्थन से उन्हें पीछे हटते हुए 'दिखाई' दिए हैं । सबसे तगड़ा झटका उन्हें अपने हमनाम मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता से लगा है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता के लिए सोनीपत वाले दीपक गुप्ता ने इस वर्ष भी बहुत काम किया, और उनके चुनाव में भी दिन-रात एक किया था - इस नाते उन्हें विश्वास था कि अब जब वह उम्मीदवार बन रहे हैं, तब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता उनकी मदद करेंगे । लेकिन सोनीपत वाले दीपक गुप्ता को यह देख/जान कर तगड़ा झटका लगा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने की बजाये किसी दूसरे (तीसरे) उम्मीदवार को तलाशने में लगे हुए हैं । सिर्फ इतना ही नहीं, सोनीपत में उन्हें लोगों से यह भी सुनने को मिला है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता उन्हें उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ भड़का रहे हैं । यह बात सोनीपत वाले दीपक गुप्ता को इसलिए और हैरान करने वाली लगी है, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता उनसे कहते/बताते हैं कि उनकी उम्मीदवारी को जब सोनीपत में ही उचित समर्थन नहीं है, तो वह नाहक ही उम्मीदवारी के पचड़े में क्यों पड़ रहे हैं ? डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता के इस दोहरे और अहसानफरामोशी वाले रवैये से सोनीपत वाले दीपक गुप्ता को अपनी उम्मीदवारी का सारा ताना-बाना बुरी तरह बिखरता दिख रहा है ।
इसके अलावा, दीपक गुप्ता अपनी उम्मीदवारी के लिए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मुकेश अरनेजा और शरत जैन का समर्थन जुटाने में भी असफल रहे हैं । मजे की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट में दीपक गुप्ता की कुल पहचान 'मुकेश अरनेजा के आदमी' के रूप में है; इसके बावजूद दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी से सबसे पहले मुकेश अरनेजा ने दूरी बनाई । शरत जैन के गवर्नर-वर्ष में दीपक गुप्ता ने बहुत काम किया था; दीपक गुप्ता को विश्वास था कि शरत जैन ज्यादा उठा-पटक करने वाले व्यक्ति नहीं हैं, इसलिए वह उनके द्वारा किए गए कामों को अवश्य ही याद रखेंगे - लेकिन शरत जैन भी उन्हें अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में दिलचस्पी लेते हुए नहीं नजर आ रहे हैं । दीपक गुप्ता के लिए हैरानी और मुसीबत की बात यह हुई है कि जो नेता/गवर्नर्स प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में नहीं भी हैं, वह भी उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए तैयार नहीं हैं । दरअसल ऐसे नेताओं/गवर्नर्स को लग रहा है कि एक उम्मीदवार के रूप में प्रियतोष गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जिस तरह का आधार बना लिया है, और उनकी उम्मीदवारी को लोगों के बीच जिस तरह का समर्थन मिलता दिख रहा है - उसका मुकाबला कर पाना दीपक गुप्ता के बस की बात नहीं है, इसलिए दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के साथ जुड़ना अपनी नाक कटवाना होगा । दीपक गुप्ता हालाँकि उन्हें समझा रहे हैं कि वह जब इस बात को जान/समझ रहे हैं कि एक उम्मीदवार के रूप में प्रियतोष गुप्ता ने लोगों के बीच अच्छा आधार बना लिया है और उन्हें उचित समर्थन मिल रहा है, तब फिर एक नया उम्मीदवार तो प्रियतोष गुप्ता के सामने और भी कमजोर साबित होगा - ऐसे में, नए उम्मीदवार के मुकाबले वह ही प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी को टक्कर देने वाले साबित होंगे; और इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत हुई प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी का विरोध करने वाले नेताओं/गवर्नर्स को उनकी उम्मीदवारी का ही झंडा उठा लेना चाहिए ।
दीपक गुप्ता ने होली के मौके पर मिलने-जुलने के दौरान इस तर्क के सहारे अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का प्रयास तो खूब किया, लेकिन उनका काम बनता हुआ नजर नहीं आ रहा है । दरअसल डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में सक्रिय रहने तथा भूमिका निभाने वाले अधिकतर नेता और गवर्नर्स दीपक गुप्ता को उस तरह का ही उम्मीदवार मान/समझ रहे हैं, पिछले चुनाव में जिसे एक भी वोट नहीं मिला था । इसीलिए प्रियतोष गुप्ता के खिलाफ उम्मीदवार की तलाश में भटक रहे नेताओं/गवर्नर्स को दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का झंडा उठाने में कोई फायदा नजर नहीं आ रहा है । असल में, एक उम्मीदवार के रूप में दीपक गुप्ता की सोनीपत में ही बुरी स्थिति है । दीपक गुप्ता तो हालाँकि दावा कर रहे हैं कि सोनीपत के सभी क्लब्स उनकी उम्मीदवारी के पक्ष में हैं, लेकिन सोनीपत के क्लब्स के प्रमुख लोगों के संपर्क में रहने वाले लोगों का कहना/बताना है कि सच्चाई ठीक इसके विपरीत है; और सोनीपत में अलग अलग कारणों से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति विरोध का ही भाव और स्वर है । प्रियतोष गुप्ता अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन बनाने/जुटाने के उद्देश्य से जितनी बार भी सोनीपत पहुँचे हैं, सोनीपत के लोगों ने उतनी ही बार बढ़चढ़ कर उनके प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया है । वास्तव में, यही सब देख/जान कर कोई भी नेता/गवर्नर दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी में दिलचस्पी दिखाता नजर नहीं आ रहा है । इसके चलते दीपक गुप्ता के लिए अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में अभियान चलाना तक मुश्किल हो रहा है । होली के मौके पर लोगों से मिलने/जुलने के बहाने दीपक गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी के लिए माहौल बनाने की जो कोशिश की, उसमें भी उनके हाथ असफलता ही लगने की बातें सुनी/सुनाई जा रही हैं । 

Sunday, March 8, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट पद के चुनाव में रजनीश गोयल की 100 वोटों से हुई बड़ी जीत, डिस्ट्रिक्ट में मुकेश गोयल के टाइम को खत्म करने के साथ यह दिखाने वाली भी साबित हुई कि पिछले कई वर्षों से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में मुकेश गोयल का जो झंडा लहरा रहा था, वह वास्तव में विनय मित्तल का करिश्मा था

देहरादून । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को लेकर सात दिन पहले, 29 फरवरी को प्रकाशित 'रचनात्मक संकल्प' की रिपोर्ट में रजनीश गोयल की बड़ी जीत का जो आकलन प्रस्तुत किया गया था, वह अंततः सच साबित हुआ - और रजनीश गोयल ने 100 वोट के बड़े अंतर से पंकज बिजल्वान को परास्त किया । राजनीतिक 'अर्थों' में देखें/समझें तो इस चुनाव में रजनीश गोयल की जीत नहीं हुई है, उनके माथे पर तो जीत का मुकुट भर सजा है - जीत वास्तव में विनय मित्तल की हुई है; और इस जीत के जरिये विनय मित्तल ने दरअसल डिस्ट्रिक्ट के चुनावी परिदृश्य में एक नया अध्याय लिखा है । इस जीत के जरिये विनय मित्तल ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के सबसे बड़े खिलाड़ी मुकेश गोयल को सिर्फ मात ही नहीं दी है, बल्कि उनकी राजनीतिक चमक को मटियामेट कर दिया है । मुकेश गोयल को चुनावी मुकाबले में पराजय के मुँह तो पहले भी देखने पड़े हैं, लेकिन इस बार की पराजय ने उनकी राजनीति को जिस तरह से धूल चटाई है - उसे देख/जान कर मान लिया गया है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में मुकेश गोयल का टाइम अब खत्म हो गया है । मुकेश गोयल का टाइम खत्म होने के संकेत हालाँकि पिछले दो वर्ष से मिलने लगे थे, जब विनय मित्तल ने पहले अश्वनी काम्बोज को और फिर गौरव गर्ग को 'अपने' उम्मीदवार के रूप में चुना, और मुकेश गोयल को उनका समर्थन करने के लिए 'मजबूर' किया । इन संकेतों के बावजूद, डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख लोगों को लगता रहा था कि मुकेश गोयल को जिस वर्ष पैसे वाला उम्मीदवार मिल जायेगा, उस वर्ष वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में पुनर्वापसी कर लेंगे । इसलिए इस वर्ष का चुनाव खासा महत्त्वपूर्ण था और लायन राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले हर छोटे-बड़े नेता की निगाहें इस बार के चुनाव पर थीं ।
इस बार के चुनाव में मुकेश गोयल के सामने अपनी राजनीतिक सत्ता को बचाने की चुनौती थी, तो विनय मित्तल के सामने यह साबित करने का मौका था कि पिछले कई वर्षों से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में मुकेश गोयल का जो झंडा लहरा रहा था, वह मुकेश गोयल का नहीं बल्कि वास्तव में उनका करिश्मा था - और मुकेश गोयल उनकी मदद के चलते डिस्ट्रिक्ट की राजनीति के मसीहा बने हुए थे । विनय मित्तल जब तक मुकेश गोयल के साथ थे, मुकेश गोयल की मुट्ठी बंद रही - जिसे लाख की समझा जाता रहा; लेकिन विनय मित्तल के अलग होते ही मुकेश गोयल की मुट्ठी खुल गई - और लोगों देखा/पाया कि वह तो खाक की है । यह पहला चुनाव है, जिसे मुकेश गोयल ने विनय मित्तल की मदद के बिना लड़ा, और नतीजा सामने है । मजे की बात यह है कि करीब एक महीने पहले तक मुकेश गोयल के नजदीकी इस बार के चुनाव में बराबर की टक्कर देख रहे थे, और चुनावी नतीजा आने के बाद वह कह रहे हैं कि मुकेश गोयल इतनी बुरी तरह से चुनाव हार जायेंगे - यह उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था । लेकिन सच यह है कि इस बार का चुनाव मुकेश गोयल की पकड़ में शुरू से ही नहीं था, और देखने की बात सिर्फ यह थी कि मुकेश गोयल कम अंतर से चुनाव हारते हैं, या बड़े अंतर से हारते हैं । इन पंक्तियों के लेखक को मुकेश गोयल की राजनीति को नजदीक से देखने और जानने/समझने का मौका मिला है; उसी अनुभवपूर्ण समझ के आधार पर इन पंक्तियों के लेखक ने इस बार के चुनाव में मुकेश गोयल वाले खेमे में तैयारी की उस कसावट का आभाव पाया, जो उनकी राजनीति की मुख्य - और निर्णायक ताकत हुआ करती थी । इस बार के चुनाव में लेकिन किसी भी मौके पर ऐसा नहीं लगा कि पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के अभियान पर मुकेश गोयल का कोई कंट्रोल है । वास्तव में, कंट्रोल तो मुकेश गोयल का कभी भी नहीं होता था - चुनाव अभियान पर कंट्रोल तो विनय मित्तल का होता/रहता था, मुकेश गोयल का तो बस नाम रहता था ।
इस 'सच्चाई' को कुछेक क्लब्स तथा पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अनीता गुप्ता को वोटिंग अधिकार न मिलने पर हुए हंगामे के पीछे के कारणों में देखा/पहचाना जा सकता है । समय से इंटरनेशनल ड्यूज न जमा होने के कारण कुछेक क्लब्स को वोटिंग अधिकार नहीं मिले; अनीता गुप्ता का क्लब भी चूँकि ऐसे क्लब्स में शामिल था, इसलिए पूर्व गवर्नर के रूप में उन्हें भी वोटिंग का अधिकार नहीं मिला । इस पर भारी बबाल हुआ, जिसके चलते पुलिस बुलाने तक की नौबत आ गई । सवाल यह है कि ऐसी नौबत आई ही क्यों ? उल्लेखनीय है कि इंटरनेशनल ड्यूज लायंस इंटरनेशनल कार्यालय में पहुँचने होते हैं, और उसी के आधार पर उक्त कार्यालय वोटिंग अधिकार तय करता है । जाहिर है कि यह क्लब के पदाधिकारियों - और या उनके वोटों पर हक रखने वाले नेताओं - की जिम्मेदारी होती है कि वह समय से ड्यूज जमा कराएँ । ऐसा यदि नहीं हुआ, तो इसके लिए दूसरों को जिम्मेदार भला कैसे ठहराया जा सकता है ? पंकज बिजल्वान के समर्थकों ने इसके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीवा अग्रवाल तथा विनय मित्तल को जिम्मेदार ठहराते हुए जमकर हंगामा मचाया । उनका कहना रहा कि इन्होंने जानबूझ कर क्लब्स को आगाह नहीं किया और ड्यूज के मामले में तथ्यों को छिपाया, जिसके चलते क्लब्स के ड्यूज समय से जमा नहीं हो सके । यदि यह आरोप सही भी है, तो भी इसके लिए संजीवा अग्रवाल व विनय मित्तल को जिम्मेदार ठहरा कर पंकज बिजल्वान के समर्थक अपनी जिम्मेदारी से कैसे बच सकते हैं ? वह एक बड़ी लड़ाई लड़ रहे थे, अपनी ताकत को संगठित करने की जिम्मेदारी उनकी ही थी - अपनी ताकत को संगठित करने की जिम्मेदारी वह दूसरों के भरोसे कैसे छोड़ बैठे ? मुकेश गोयल चुनावी राजनीति के बड़े खिलाड़ी समझे जाते रहे हैं, उन्होंने यह जरूरत और सावधानी क्यों नहीं रखी कि उनके समर्थक क्लब्स के ड्यूज समय से जमा हों, ताकि उनके वोटिंग अधिकार सुरक्षित बनें ? बात वही है कि यह सब काम विनय मित्तल करते थे; अब की बार वह मुकेश गोयल की तरफ से यह काम करने के लिए नहीं थे, तो यह काम हुआ ही नहीं । मजेदार किस्सा अनीता गुप्ता का रहा - वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रही हैं, उन्हें यह नियम नहीं पता है क्या कि किसी भी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को कोई भी अधिकार, वोट देने का अधिकार भी, तब मिलेगा - जब वह एक गुड स्टैंडिंग क्लब का सदस्य होगा । अनीता गुप्ता अपने क्लब के ड्यूज समय से जमा करवाने के लिए तो प्रयास नहीं करेंगी, और चाहेंगी कि पूर्व गवर्नर के रूप में उन्हें वोट देने का अधिकार मिल जाए - नहीं मिलेगा, तो हंगामा करेंगी । पंकज बिजल्वान की बदकिस्मती रही कि वह ऐसे नेताओं के भरोसे चुनाव जीतने की उम्मीद कर रहे थे । उनकी चुनावी लुटिया तो डूबनी ही थी, और वह डूब भी गई - और कुछ गहरी ही डूब गई । इससे हालाँकि पंकज बिजल्वान का तो ज्यादा कुछ नहीं बिगड़ा; लेकिन मुकेश गोयल की राजनीति का जो गुब्बारा फूला हुआ था - उसकी सारी हवा जरूर निकल गई । 

Friday, March 6, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सात की जगह नौ सदस्यीय एक्जीक्यूटिव कमेटी बनाने के शशांक अग्रवाल के 'खेल' ने सत्ताधारियों के बीच अविश्वास व खटपट चलने के संकेत दिए

नई दिल्ली ।  नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सत्ता स्थापित हुए अभी दस दिन भी नहीं हुए हैं कि सत्ताधारियों के बीच एक्जीक्यूटिव कमेटी के गठन को लेकर तलवारें खिंचीं नजर आ रही हैं । यूँ तो एक्जीक्यूटिव कमेटी का गठन सत्ता स्थापित होते ही हो जाना चाहिए था; और इसी नाते उम्मीद की गई थी कि सत्ता खेमे के सात सदस्यों को लेकर एक्जीक्यूटिव कमेटी गठित हो जाएगी । लेकिन ऐसा नहीं हुआ । शुरू में सुना गया कि चेयरमैन शशांक अग्रवाल ने सत्ता खेमे के बाकी सदस्यों को बताया कि गौरव गर्ग अपने आप को एक्जीक्यूटिव कमेटी में शामिल करने को लेकर बड़ी सिफारिश कर रहे हैं; लेकिन सत्ता खेमे के कुछेक सदस्यों ने गौरव गर्ग को एक्जीक्यूटिव कमेटी में शामिल करने का विरोध किया है । उन्होंने तर्क दिया कि गौरव गर्ग को अंतिम समय तक मौका दिया गया था कि वह इस तरफ आ जाएँ, लेकिन गौरव गर्ग ने एक न सुनी और उस तरफ ही बने रहे - इसलिए अब उन्हें सत्ता खेमे में शामिल करने की कोई जरूरत नहीं है । एक तर्क और दिया गया और वह यह कि गौरव गर्ग जिन लोगों के साथ रहते हैं, उनकी लुटिया डूब जाती है; पिछले वर्ष भी यही हुआ और अब इस वर्ष भी यही कहानी दोहराई गई, इसलिए गौरव गर्ग से दूरी बना कर रखने में ही भलाई है । इस विवाद के चलते नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की एक्जीक्यूटिव कमेटी के गठन का मामला लटका चला आ रहा है ।
बात लेकिन इतनी सीधी/सरल और इतनी ही नहीं है । शशांक अग्रवाल के नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि शशांक अग्रवाल एक्जीक्यूटिव कमेटी में 'अपना' बहुमत रखना/बनाना चाहते हैं, और इसलिए वह सात सदस्यों की एक्जीक्यूटिव कमेटी बनाने के लिए तैयार नहीं हैं । दरअसल, सात सदस्यों की एक्जीक्यूटिव कमेटी में चार का बहुमत होगा; शशांक अग्रवाल को डर है कि पंकज गुप्ता, विजय गुप्ता, श्वेता पाठक व रचित भंडारी के बीच जिस तरह की अंडरस्टैंडिंग है उसके चलते यह लोग उन्हें तंग सकते हैं और उनके फैसलों में अड़ंगा डाल सकते हैं । इससे बचने के लिए शशांक अग्रवाल नौ सदस्यों की एक्जीक्यूटिव कमेटी बनाना चाहते हैं । शशांक अग्रवाल के नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि बाकी दो सदस्यों के रूप में गौरव गर्ग और सुमित गर्ग को तैयार कर लिया गया है । नौ सदस्यों की एक्जीक्यूटिव कमेटी में पाँच का बहुमत होगा; और शशांक अग्रवाल को विश्वास है कि तब पंकज गुप्ता, विजय गुप्ता, श्वेता पाठक व रचित भंडारी का ग्रुप अल्पमत में होगा और यह उन्हें किसी भी तरह से तंग नहीं कर सकेंगे और उनकी हालत पिछले चेयरमैन हरीश जैन जैसी नहीं होगी । अपने 'खेल' को अंजाम देने के लिए शशांक अग्रवाल तर्क दे रहे हैं कि चुनाव के समय विरोध में रहने वाले सदस्य यदि पश्चाताप कर रहे हैं और साथ आना चाहते हैं, तो उन्हें एक्जीक्यूटिव कमेटी में शामिल करके 'हमें' विरोधी खेमे को और कमजोर कर देना चाहिए - इससे काउंसिल में हमारी पकड़ और मजबूत होगी । 
शशांक अग्रवाल का 'खेल' लगता है कि पंकज गुप्ता, विजय गुप्ता, श्वेता पाठक व रचित भंडारी समझ रहे हैं और इसीलिए यह एक्जीक्यूटिव कमेटी में विरोधी खेमे के सदस्यों को शामिल करने का विरोध करने के जरिये नौ सदस्यीय एक्जीक्यूटिव कमेटी बनाने पर ऐतराज कर रहे हैं । इनका तर्क है कि पदाधिकारियों के चुनाव में जिन सदस्यों ने उन्हें वोट नहीं दिया है, उन सदस्यों को एक्जीक्यूटिव कमेटी में शामिल करने का कोई मतलब नहीं है । सत्ताधारी सदस्यों में इसी विवाद के चलते एक्जीक्यूटिव कमेटी का गठन अभी तक टला हुआ है । बताया जाता है कि नौ सदस्यीय एक्जीक्यूटिव कमेटी बनाने का आईडिया शशांक अग्रवाल को इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा व मौजूदा प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता ने दिया है । वास्तव में रीजनल काउंसिल में जो सत्ता गठजोड़ बना है, उसके पीछे इन्हीं दो बड़े नेताओं/पदाधिकारियों की सक्रिय भूमिका रही है । 'रचनात्मक संकल्प' की 27 फरवरी की एक रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि रतन सिंह यादव और अजय सिंघल ने सत्ता से बाहर रह गए छह सदस्यों के साथ मिलकर आठ सदस्यीय पॉवर ग्रुप बनाया था । इन आठ सदस्यों ने एक मंदिर में ईश्वर को साक्षी बना कर दोनों वर्ष साथ रहने की सौगंध खाई और बाकायदा एक एग्रीमेंट लिखा और उस पर अपने अपने हस्ताक्षर किए । गौरव गर्ग की लिखावट में कोडवर्ड में लिखे उक्त एग्रीमेंट की फोटोप्रति इस रिपोर्ट के साथ प्रकाशित है । चर्चा है कि जब अमरजीत चोपड़ा को इस एग्रीमेंट की भनक लगी, तो उन्होंने अतुल गुप्ता के साथ मिलकर एक तरफ तो रतन सिंह यादव व अजय सिंघल को तथा दूसरी तरफ पंकज गुप्ता वाले ग्रुप के सदस्यों को ललचा, धमका, फुसला कर एकजुट किया और सत्ता स्थापित करवा दी । इंस्टीट्यूट के इतिहास में शायद यह पहली बार हुआ है कि इंस्टीट्यूट के बड़े पदाधिकारी रीजनल काउंसिल के कुछेक सदस्यों के प्रति निजी खुन्नस रखने के चलते उनके चुने जाने की संभावना को खत्म करने के लिए षड्यंत्र करें और 'कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा' लेकर सत्ता बनवा दें । अमरजीत चोपड़ा और अतुल गुप्ता ने अपने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सत्ता तो स्थापित करवा दी है, लेकिन सत्ताधारियों के आपसी अविश्वास के चलते अभी से उनके बीच जो खटपट चलती हुई सुनाई दे रही है - उससे सत्ता 'चलने' को लेकर संदेह बनता जा रहा है । 

Thursday, March 5, 2020

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में प्रफुल्ल छाजेड़ द्वारा खाली की जाने वाली सीट पर सुनील पटोदिया की दावेदारी को जितना आसान समझा जा रहा है, वह वास्तव में उतनी आसान भी नहीं है और कई चुनौतियों से घिरी हुई है 

मुंबई । इंस्टीट्यूट के निवर्त्तमान प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ अगली सेंट्रल काउंसिल में जो जगह खाली करेंगे, उसे भरने के लिए सुनील पटोदिया ने जिस तरह से तैयारी शुरू कर दी है - उसे देखते हुए उनके चुनाव में सभी की दिलचस्पी पैदा हुई है । मजे की बात यह देखने/सुनने को मिल रही है कि वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी करने वाले दूसरे नए संभावित उम्मीदवार सुनील पटोदिया की चुनावी तैयारी से थोड़ा 'डरे' हुए से दिख रहे हैं, और अपनी उम्मीदवारी पर फैसला करने से पहले सुनील पटोदिया की तैयारियों तथा उसके संभावित नतीजे का आकलन कर लेना चाहते हैं । वेस्टर्न रीजन में हालाँकि पहले भी ऐसे उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे हैं, जिन्हें मजबूत उम्मीदवार के रूप में देखा जाता था - लेकिन जैसा 'शोर' सुनील पटोदिया की उम्मीदवारी को लेकर है, वैसा इससे पहले शायद ही यहाँ कभी देखा गया हो । सुनील पटोदिया की उम्मीदवारी के पक्ष में बहुत से सकारात्मक तत्त्व हैं - प्रफुल्ल छाजेड़ तथा उनके वाले खेमे का समर्थन तो सुनील पटोदिया के साथ है ही; उनकी अपनी खुद की भी प्रभावी सक्रियता है, जिसके चलते उनकी व्यापक पहुँच है; उनके व्यवहार की बड़ी तारीफ है । इसका परिणाम 2012 में वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनाव में देखने को मिला था, जो सुनील पटोदिया का पिछला अंतिम चुनाव था । उस चुनाव में पहली वरीयता के 1205 वोट के साथ सुनील पटोदिया पाँचवें नंबर पर थे, और उन्होंने दूसरे/तीसरे चरण की गिनती में ही बहुत आसानी से जरूरी कोटा प्राप्त कर लिया था । हालाँकि कई लोगों का यह भी मानना और कहना है कि रीजनल काउंसिल का चुनाव और सेंट्रल काउंसिल का चुनाव बिलकुल अलग अलग आधार पर होता है, और रीजनल काउंसिल की कामयाबी को सेंट्रल काउंसिल की कामयाबी की गारंटी नहीं माना जा सकता है । 
इस बात को वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के 2012 के चुनावी नतीजों के आधार पर भी समझा जा सकता है । उस चुनाव में पराग रावल पहली वरीयता के 2067 वोटों के साथ पहले नंबर पर रहे थे, जबकि अनिल भंडारी पहली वरीयता के कुल 772 वोटों के साथ 17वें नंबर पर थे । वर्ष 2015 में सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में लेकिन पराग रावल को सफलता नहीं मिली, जबकि अनिल भंडारी सेंट्रल काउंसिल में प्रवेश पा गए थे । इससे जाहिर है कि रीजनल काउंसिल और सेंट्रल काउंसिल में पहुँचने के रास्ते अलग अलग 'गली-कूँचों' से होकर गुजरते हैं, और रीजनल काउंसिल की कामयाबी के आधार पर सेंट्रल काउंसिल की सफलता के प्रति आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता है । वर्ष 2012 के चुनावी नतीजे का विस्तारित आकलन सुनील पटोदिया के लिए एक गंभीर चुनौती की तरफ इशारा करता है; और वह यह कि पहली वरीयता के वोटों की गिनती में सुनील पटोदिया जिस पाँचवें नंबर पर थे, फाइनल नतीजे में भी वह उसी पाँचवें नंबर पर ही रहे - वोटों की गिनती के बीच में वह कुछ समय के लिए हालाँकि चौथे नंबर पर आये थे, लेकिन अंततः पाँचवें नंबर पर ही वह आ टिके । इससे अन्य वरीयताओं के वोटों को प्राप्त करने में उनकी कमजोरी का संकेत मिलता है । सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में यह कमजोरी बहुत नुकसान पहुँचा सकती है । सुनील पटोदिया की उम्मीदवारी को जिन प्रफुल्ल छाजेड़ के समर्थन के चलते भी मजबूती दिखती है, उन प्रफुल्ल छाजेड़ को भी अन्य वरीयताओं के वोटों के संकट का सामना करना पड़ता रहा था - और अपनी जीत के लिए उन्हें भी अंत तक जूझना पड़ता था ।
प्रफुल्ल छाजेड़ की तरह सुनील पटोदिया की भी खूबी यह है कि उनका व्यक्तिगत करिश्मा बड़ा है; लेकिन इस खूबी की समस्या यह है कि व्यक्तिगत करिश्मे के चलते इनका जो समर्थन आधार है, वह बहुत बिखरा हुआ है, जिसे समेटना और वोटों में तब्दील करना खासा चुनौतीपूर्ण होता है । प्रफुल्ल छाजेड़ को भी हर बार इस चुनौती का सामना करना पड़ा है; और सुनील पटोदिया के नजदीकियों के अनुसार, सुनील पटोदिया को भी इस चुनौती से निपटना होगा । सुनील पटोदिया को हालाँकि सूरत से बड़ा फायदा मिलने की उम्मीद है, जो समर्थन-आधार होने के बावजूद प्रफुल्ल छाजेड़ को कभी नहीं मिल सका । मजे की बात यह है कि जय छैरा के चुनावी मुकाबले से हटने के बाद कई मौजूदा व संभावित उम्मीदवारों की निगाह सूरत के वोटरों पर है । सूरत से सेंट्रल काउंसिल के लिए हालाँकि बालकिशन अग्रवाल को संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, लेकिन कोई भी - खुद सूरत के लोग भी - उन्हें विजेता के रूप में नहीं देख/समझ रहे हैं । इस नाते उम्मीद की जा रही है कि अगली बार सूरत के वोट 'बाहर' के उम्मीदवारों के पास जायेंगे । सूरत के संभावित वोटों के भरोसे ही अहमदाबाद के पुरुषोत्तम खंडेलवाल एक बार फिर सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में उतरने की तैयारी करते हुए देखे/सुने जा रहे हैं । पिछली बार वह मामूली वोटों के अंतर से पिछड़ गए थे । पुरुषोत्तम खंडेलवाल के अलावा, सुनील पटोदिया को भी सूरत से बहुत उम्मीदें हैं । दिलचस्प संयोग यह है कि सुनील पटोदिया लायंस इंटरनेशनल में और पुरुषोत्तम खंडेलवाल रोटरी इंटरनेशनल में सक्रिय हैं, और दोनों को विश्वास है कि सामाजिक क्षेत्र में उनकी सक्रियता उनकी उम्मीदवारी को अवश्य ही लाभ पहुँचायेगी । हालाँकि सामाजिक सक्रियता के मामले में सुनील पटोदिया का पलड़ा भारी है; लायंस इंटरनेशनल में वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन जैसे बड़े/ऊँचे पदों तक पहुँचे हैं - जबकि पुरुषोत्तम खंडेलवाल रोटरी इंटरनेशनल में निचली पाँत के खिलाड़ी/नेता हैं: और रोटरी में वह जिस डिस्ट्रिक्ट में हैं, उसका बड़ा हिस्सा वेस्टर्न रीजन से अलग क्षेत्र में है । इस तरह की बातें चुनावी अभियान पर कैसे क्या असर डालेंगी, यह तो बाद में पता चलेगा - अभी लेकिन यह चुनावी मुकाबले के परिदृश्य को रोमांचक तो बनाती ही हैं । 

Wednesday, March 4, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 के रोटरी ब्लड बैंक के पदाधिकारियों की कल हुई बैठक में चुनाव की प्रक्रिया को शुरू करने से जुड़े फैसलों को रोक पाने के प्रयासों में विनोद बंसल के असफल रहने से चुनावी प्रक्रिया शुरू होने का रास्ता खुल गया है, और उम्मीद की जा रही है कि अगले महीने तक दिल्ली रोटरी ब्लड बैंक को पदाधिकारियों की नई टीम मिल जायेगी 

नई दिल्ली । एक सप्ताह के अंदर दिल्ली रोटरी ब्लड बैंक के मामलों को लेकर कल हुई दूसरी मीटिंग के साथ ही ब्लड बैंक में सत्ता परिवर्तित होने का दिन नजदीक आता नजर आ रहा है, और ब्लड बैंक की प्रशासनिक व्यवस्था से जुड़े आम व खास लोगों को लगने लगा है कि प्रेसीडेंट के रूप में विनोद बंसल के दिन बस अब गिने-चुने ही बचे हैं । विनोद बंसल हालाँकि अपना प्रेसीडेंट पद बचाने के लिए जी-तोड़ प्रयास कर रहे हैं, और इसके लिए नाराज सदस्यों को सिफारिशें लगा कर 'शांत' करने से लेकर वरिष्ठ सदस्यों को भावनात्मक रूप से फुसलाने का प्रयास वह कर रहे हैं । विनोद बंसल का कहना है कि उन्होंने ब्लड बैंक की काया पलट दी है और घाटे में चल रहे ब्लड बैंक को फायदे में ला दिया है; उन्होंने ब्लड बैंक के विस्तार की योजना तैयार की है, और उसे क्रियान्वित करना शुरू किया है; विनोद बंसल का कहना है कि ब्लड बैंक में जिन विस्तार योजनाओं पर काम शुरू हुआ है, उनके पूरा होने तक उनका प्रेसीडेंट बने रहना जरूरी है - ताकि उक्त योजनाएँ समय से पूरी हो सकें । लेकिन विनोद बंसल को प्रेसीडेंट पद से हटाने पर आमादा सदस्यों का मानना और कहना है कि दरअसल विस्तार योजनाएँ ही तो झगड़े की जड़ हैं, और यदि उन्हें विनोद बंसल की योजनानुसार ही पूरा होने दिया गया तो उससे ब्लड बैंक का मूल स्वरूप ही नष्ट हो जायेगा तथा विस्तार योजनाओं की आड़ में होने वाली लूट-खसोट पर पर्दा पड़ जायेगा । विनोद बंसल के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि जिन कुछेक लोगों को उन्होंने 'दुश्मन का दुश्मन दोस्त' वाले फार्मूले से अपना समर्थक बनाया हुआ भी है, उनका भी मानना/कहना है कि विनोद बंसल ने यदि किसी भी तरह ली तीन-तिकड़म और या जुगाड़बाजी से प्रेसीडेंट का पद बचा भी लिया तो विवाद और बढ़ेगा, इसलिए ब्लड बैंक को विवाद के दलदल से बचाने का अच्छा तरीका यही है कि विनोद बंसल की प्रेसीडेंट पद से विदाई हो जाए ।
इसीलिए रोटरी ब्लड बैंक के पदाधिकारियों की कल हुई बैठक में चुनाव की प्रक्रिया को शुरू करने से जुड़े फैसलों को रोक पाने के प्रयासों में विनोद बंसल पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए और असफल रहे । कल हुई मीटिंग में लिए गए फैसलों से चुनावी प्रक्रिया शुरू होने का रास्ता खुल गया है, और उम्मीद की जा रही है कि अगले महीने तक दिल्ली रोटरी ब्लड बैंक को पदाधिकारियों की नई टीम मिल जायेगी । कल हुई मीटिंग में शामिल हुए कुछेक सदस्यों ने अपने अपने नजदीकियों के बीच दावा किया है कि मीटिंग में मौजूद सदस्यों के व्यवहार से यह सुनिश्चित लग रहा है कि विनोद बंसल के लिए प्रेसीडेंट पद की कुर्सी बचा पाना अब मुश्किल होगा, हालाँकि उनकी जगह प्रेसीडेंट कौन होगा - यह भी अभी तय नहीं है । दिल्ली रोटरी ब्लड बैंक में चल रहे घमासान का एक मजेदार पहलू यह भी है कि अलग अलग कारणों से विनोद बंसल के खिलाफ तो कई सदस्य हैं, लेकिन अगले प्रेसीडेंट को लेकर उनके बीच कोई बातचीत या सहमति नहीं है । अगले प्रेसीडेंट को लेकर बनी हुई इस अनिश्चितता में विनोद बंसल अपनी कुर्सी को बचाने की आखिरी उम्मीद देख रहे हैं । उन्हें लग रहा है कि दिल्ली रोटरी ब्लड बैंक के अगले प्रेसीडेंट के पद के लिए यदि किसी अन्य नाम पर सदस्यों के बीच सहमति नहीं बनी तो संभव है कि प्रेसीडेंट पद उनके पास ही बचा रह जाए ।
प्रेसीडेंट पद पर बने रहने की विनोद बंसल की कोशिशों ने लेकिन उनके विरोधियों को और ज्यादा उकसाया व भड़काया हुआ है । इसी कारण से कल हुई मीटिंग में चुनावी प्रक्रिया को जल्दी से जल्दी पूरा करने पर जोर दिया गया । यह जोर रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के पदाधिकारियों की हरकतों के चलते और बढ़ा है ।उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के पदाधिकारी लगातार यह बता/दिखा/जता रहे हैं कि ब्लड बैंक की नई बन रही बिल्डिंग में वह डायलिसिस सेंटर शुरू करने जा रहे हैं; इसके लिए उन्होंने रोटरी फाउंडेशन से लेकर लोगों तक से रकम जुटाने की व्यवस्था कर ली है - लेकिन ब्लड बैंक के जिम्मेदार पदाधिकारियों तक का कहना है कि इस बारे में ब्लड बैंक और क्लब के बीच कोई समझौता 'रिकॉर्ड' पर नहीं है । समझा जाता है कि विनोद बंसल ने क्लब के पदाधिकारियों व सदस्यों के साथ मौखिक रूप से डायलिसिस सेंटर के लिए बात की हुई है, और उसी बात के भरोसे क्लब के सदस्य तरह तरह से पैसे जुटाने के अभियान में लगे हुए हैं । क्लब की तरफ से अजीत जालान को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार बनाया हुआ है, जिन्हें विनोद बंसल के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । अजीत जालान का क्लब फाइनेंशियल बेईमानियों के आरोप में खूब चर्चित रहा है, और उसके मामले काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग तक में चर्चा में रहे हैं । ऐसे में, अजीत जालान की उम्मीदवारी को समर्थन देने तथा उनके क्लब को मनमाने तरीके से ब्लड बैंक की बिल्डिंग में डायलिसिस सेंटर बनाने के लिए आश्वस्त करने को लेकर विनोद बंसल की भूमिका भी संदेह के घेरे में आ गई है । उनकी भूमिका को राजनीतिक व फाइनेंशियल बेईमानी में संलग्नता व सहभागिता के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, और इस बात ने उनकी ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट की कुर्सी को खतरे में डाल दिया है ।

Tuesday, March 3, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट होली सेलिब्रेशन पर कोरोना वायरस की काली छाया पड़ी, लेकिन सेलिब्रेशन की आड़ में होने वाली कमाई बचाने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता कार्यक्रम को रद्द कर देने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं

नोएडा । दुनिया के साठ से अधिक देशों में अपने पाँव पसार चुके कोरोना वायरस के नोएडा में दस्तक देने के कारण 6 मार्च को नोएडा में होने वाला डिस्ट्रिक्ट 3012 का डिस्ट्रिक्ट होली सेलिब्रेशन खतरे में पड़ता दिख रहा है । नोएडा के श्रीराम मिलेनियम स्कूल के एक छात्र के पिता के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की खबर मिलने के बाद नोएडा को अतिसंवेदनशील जोन में रखने में रखा गया है; और सावधानी के तहत कुछेक स्कूलों में अगले आठ से दस दिन के लिए छुट्टी की घोषणा की गई है । ऐसे हालात में नोएडा में आयोजित हो रहे डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट होली सेलिब्रेशन को रद्द कर देने की सलाह दी जा रही है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता अभी तक हालाँकि होली सेलिब्रेशन को रद्द करने के लिए तैयार नहीं दिख रहे हैं; लेकिन नोएडा में कुछेक स्कूलों के बंद होने के कारण लोगों के बीच डर का जो माहौल बना है, उसके चलते दीपक गुप्ता पर सेलिब्रेशन को रद्द करने के लिए दबाव भी बढ़ रहा है । दीपक गुप्ता का डर है कि होली सेलिब्रेशन यदि रद्द हुआ, तो भारी नुकसान होगा - क्योंकि कार्यक्रम की तैयारियाँ पूरी की जा चुकी हैं और कई मदों में खर्च होने वाला काफी पैसा एडवांस के रूप में खर्च किया जा चुका है । कार्यक्रम की तैयारी से जुड़े लोगों का कहना/बताना हालाँकि यह है कि कार्यक्रम यदि रद्द होता है तो नुकसान तो ज्यादा नहीं होगा; लेकिन हाँ, कार्यक्रम की आड़ में की जाने वाली कमाई नहीं हो पायेगी । कोरोना वायरस के खतरे से डरे डिस्ट्रिक्ट के सदस्य रोटेरियंस का कहना है कि दीपक गुप्ता को कार्यक्रम की आड़ में होने वाली कमाई के लालच में लोगों को खतरे में नहीं डालना चाहिए और सावधानी के तौर पर डिस्ट्रिक्ट होली सेलिब्रेशन को रद्द कर देना चाहिए ।
उल्लेखनीय है कि नोएडा के श्रीराम मिलेनियम स्कूल के एक छात्र के पिता के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की खबर मिलने के बाद नोएडा को अतिसंवेदनशील जोन में रखने की जरूरत दरअसल इसलिए पड़ी है, क्योंकि उक्त पिता ने विदेश से लौटने के बाद अपने बेटे के जन्मदिन की पार्टी दी थी, जिसमें बेटे के दोस्त व उनके माता-पिता तथा कई अन्य लोग शामिल हुए थे । कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले व्यक्ति ने विदेश से लौटने के बाद हालाँकि दिल्ली के मयूर विहार के एक डॉक्टर से अपना चेकअप करवाया था, और डॉक्टर ने उन्हें क्लीनचिट दे दी थी । उसके बाद ही उन्होंने अपने बेटे के जन्मदिन की पार्टी की थी । पार्टी के बाद उनकी जब तबियत बिगड़ी और जाँच हुई, तब उन्हें कोरोना वायरस से संक्रमित पाया गया । इसके बाद ही नोएडा में विशेष सावधानी रखने की जरूरत समझी गई । कहा/बताया गया है कि जो लोग अपने काम या अन्य वजहों से ज्यादा लोगों से संपर्क में आते हैं, उनके खुद चपेट में आने और कोरोना वायरस  वाहक बनने का खतरा ज्यादा होता है । नोएडा के श्रीराम मिलेनियम स्कूल के एक छात्र के पिता के मामले में जो हुआ है, उससे यह बात भी स्पष्ट है कि किसी व्यक्ति में विशेष लक्षण दिखे बिना भी यह वायरस हो सकता है । उक्त पिता ने यदि अपने बेटे के जन्मदिन की पार्टी न दी होती, तब उनके संक्रमित पाये जाने पर नोएडा में इतना बबाल नहीं होता कि स्कूलों को कुछेक दिनों के लिए बंद करने की नौबत आती ।  डिस्ट्रिक्ट 3012 के भी कुछेक सदस्य काम के सिलसिले में विदेश आते-जाते रहते हैं, और कुछेक प्रमुख रोटेरियंस ने अभी हाल ही में अपनी विदेश यात्रा की तस्वीरें सोशल मीडिया में शेयर की हैं । इसी का वास्ता देकर 6 मार्च को नोएडा में होने वाले डिस्ट्रिक्ट होली सेलिब्रेशन को रद्द कर देने की सलाह दी जा रही है ।
कोरोना वायरस का मामला सामने आने के बाद नोएडा प्रशासन सतर्क और सक्रिय हो गया है । चीफ मेडीकल ऑफीसर ने हेल्प लाइन नंबर जारी किया है और लोगों को सुझाव दिया है कि खाँसी, जुकाम, बुखार होने की स्थिति में हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करके आवश्यक मदद व सुझाव ले सकते हैं । विदेश से आने वाले लोगों को 28 दिनों तक निगरानी में रखने की व्यवस्था की जा रही है । संदिग्ध मामलों में सैंपल लेकर उन्हें जाँच के लिए दिल्ली भेजा जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट होली सेलिब्रेशन को रद्द करने की माँग करने वाले रोटेरियंस का कहना है कि चूँकि होली सेलिब्रेशन के आयोजन की जिम्मेदारी संभालने वाले डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों के पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे कि वह यह निगरानी कर सकें कि होली सेलिब्रेशन में आने वाले लोगों में से कौन ऐसा है, जो अभी हाल के दिनों में विदेश से लौटा है, या विदेश से लौटने वाले किसी व्यक्ति के नजदीक रह रहा है - इसलिए होली सेलिब्रेशन खतरे के प्रति लापरवाही बरतने जैसा होगा । कोरोना वायरस को लेकर नोएडा में जो दहशत फैली है, जिसके कारण स्कूलों के बंद होने की नौबत आई है - वह वास्तव में एक व्यक्ति द्वारा की गई लापरवाही का ही नतीजा है । इससे सबक लेते हुए ही, नोएडा में होने वाले डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट होली सेलिब्रेशन कार्यक्रम को रद्द कर देने की माँग की जा रही है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता के नजदीकियों के अनुसार, दीपक गुप्ता इस माँग के चलते दबाव में तो हैं; लेकिन अभी वह कार्यक्रम को रद्द करने के लिए राजी नहीं हुए हैं । उधर कार्यक्रम रद्द करने की माँग करने वाले रोटेरियंस का कहना है कि होली सेलिब्रेशन की आड़ में कमाई करने की तैयारी कर चुके दीपक गुप्ता को लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए और सावधानी के तौर पर कार्यक्रम को रद्द कर देना चाहिए । 

Monday, March 2, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के नियम-कानूनों की ऐसीतैसी करते हुए तथा इस तरह सीधे-सीधे इंस्टीट्यूट की प्रभुसत्ता को चुनौती देते हुए कुछेक ब्रांचेज के नए पदाधिकारियों ने जिस तरह से अपने आप को 'चुनवा' लिया है, उसने प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है

नई दिल्ली । अतुल गुप्ता के प्रेसीडेंट बनने के बाद नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की ब्रांचेज में पदाधिकारियों के चयन/चुनाव में मनमानियों का खुल्ला खेल शुरू हो गया है, अतुल गुप्ता लेकिन उसे नियंत्रित करने की बजाये न जाने किन दूसरे कामों में व्यस्त/मस्त हैं । करनाल, यमुना नगर तथा अमृतसर ब्रांच में पिछले वर्ष के चेयरमैन इंस्टीट्यूट की गाइडलाइंस का उल्लंघन करते हुए इस वर्ष ट्रेजरर बन बैठे हैं; जबकि भिवानी ब्रांच में पिछले वर्ष के पदाधिकारियों ने और भी कमाल किया और वह यह कि सभी ने अपने अपने पद छोड़ने से इंकार कर दिया तथा इस वर्ष भी उन्होंने अपने आप को पिछले वर्ष वाले पदों पर ही 'चुनवा' लिया है । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट के नियमानुसार, ब्रांच में चेयरमैन के पद पर रह चुका मैनेजिंग कमेटी का सदस्य बाद के वर्षों में और कोई पद लेने का अधिकारी नहीं रहेगा; किंतु करनाल, यमुनानगर, अमृतसर व भिवानी ब्रांच में इस नियम का खुल्लमखुल्ला मजाक बना दिया गया है । मजे की बात यह है कि यह मनमानी तथाकथित चुनावी बहुमत के नाम पर की गई है । इससे भी ज्यादा मजे की बात यह है कि इन ब्रांचेज में यह मजाक इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता के नाम पर किया गया है । मनमानी करते हुए इंस्टीट्यूट के नियम-कानून का मजाक बनाने वाले ब्रांचेज के 'नए' पदाधिकारी अतुल गुप्ता के साथ अपनी नजदीकियों का वास्ता देते हुए निश्चिंत हैं और दिखा/जता रहे हैं कि 'सैंयाँ जब कोतवाल हो गए हैं', तब उन्हें तो जैसे कुछ भी करने का अधिकार मिल गया है । 
इस नजारे का दिलचस्प पहलू यह भी है कि उक्त ब्रांचेज में घटी नियमविरुद्ध घटनाओं का जो लोग विरोध कर रहे हैं, और इन घटनाओं से दुखी हैं - वह भी अतुल गुप्ता पर ही भरोसा कर रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि अतुल गुप्ता इन घटनाओं को बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं करेंगे और इंस्टीट्यूट के नियमों के साथ खिलवाड़ करने वाले ब्रांच के पदाधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करेंगे । लेकिन अतुल गुप्ता को फिलहाल इस तरह मामलों में ध्यान देने की फुरसत नहीं है, वह जगह जगह प्रेसीडेंट के रूप में अपना स्वागत/सम्मान करवाने की मस्ती में व्यस्त हैं । करनाल ब्रांच के मामले में कुछ ज्यादा शिकायतें/सिफारिशें आईं तो अतुल गुप्ता ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ट्रेजरर पंकज गुप्ता को मामले का संज्ञान लेने का ऑर्डर कर दिया । पंकज गुप्ता को इसलिए क्योंकि वह करनाल ब्रांच के एक्स-ऑफिसो सदस्य हैं । पंकज गुप्ता ने और कमाल किया; उनके नजदीकियों के अनुसार, उन्होंने मामले को नजर भर देखा और पाया कि चूँकि 'पीड़ित' पक्ष ने कोई शिकायत नहीं की है, शिकायत एक 'बाहरी' व्यक्ति ने की है, इसलिए मामले का संज्ञान लेने की जरूरत ही नहीं है । लाख लाख शुक्र है कि पंकज गुप्ता चार्टर्ड एकाउंटेंट हुए, और दरोगा नहीं बने - वहाँ तो वह उपद्रव की सूचना मिलने पर उपद्रवियों के खिलाफ कार्रवाई करने तब तक निकलते ही नहीं, जब तक उपद्रव के पीड़ित शिकायत लेकर उनके पास न आते । 
करनाल, यमुना नगर, अमृतसर, भिवानी आदि में जो हुआ, उसे देख/जान कर निराश होने तथा शर्म महसूस करने वाले लोगों का कहना है कि यहाँ जो हुआ, उसमें 'पीड़ित' तो वास्तव में इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन है । इन ब्रांचेज में जिन पदाधिकारियों ने पद हथियाये हैं, और जिन्होंने पद हथियाने की कार्रवाई का समर्थन किया है - उन्होंने सिर्फ दूसरे सदस्यों के 'अधिकार' ही नहीं छीने हैं, बल्कि इंस्टीट्यूट के नियम-कानून की भी ऐसीतैसी की है और इस तरह सीधे-सीधे इंस्टीट्यूट की प्रभुसत्ता को चुनौती दी है । ऐसे में, इंस्टीट्यूट में विभिन्न पदों पर बैठे पदाधिकारियों से यह उम्मीद तो की ही जानी चाहिए कि वह खुद से संज्ञान लेकर इंस्टीट्यूट की प्रभुसत्ता को बचाने का प्रयास करेंगे । लेकिन संदर्भित ब्रांचेज में किसी भी एक्स-ऑफिसो सदस्य ने खुद से तो संज्ञान नहीं ही लिया; करनाल ब्रांच के मामले में पंकज गुप्ता ने निर्देशित होने के बावजूद मामले की गंभीरता को नहीं समझा । इस मामले में लेकिन अकेले पंकज गुप्ता को ही क्यों दोष देना । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के दो दो बार चेयरमैन बनने से वंचित रह गए काउंसिल के सबसे वरिष्ठ सदस्य रतन सिंह यादव ने तो इन सभी ब्रांचेज के पदाधिकारियों को बाकायदा बधाई दी है । टीम भिवानी के पदाधिकारी तो और भी ज्यादा 'सौभाग्यशाली' हैं, उन्हें तो इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा की भी बधाई मिली है । ऐसे में, सहज ही समझा जा सकता है कि पदों को प्राप्त करने तथा पदों पर बने/टिके रहने की होड़ में इंस्टीट्यूट के नियम-कानूनों का मजाक बना देने के हौंसले बुलंद आखिर क्यों न हों ?