नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल का सदस्य बनने के एक वर्ष के अंदर ही संजीव सिंघल तथा प्रमोद जैन के प्रति चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की बढ़ती नाराजगी ने इनके नजदीकियों और समर्थकों को अगले चुनाव में इनकी जीत के प्रति सशंकित कर दिया है, और उन्हें लग रहा है कि इसी का फायदा उठाने के लिए सुधीर अग्रवाल व विजय गुप्ता ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है । संजीव सिंघल और प्रमोद जैन के खिलाफ आम शिकायत है कि यह फोन ही नहीं उठाते हैं, और कॉल बैक भी नहीं करते हैं । आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स तो छोड़िये, वरिष्ठ व खास चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रति भी इनका यही रवैया है । संजीव सिंघल के मामले में तो उनके समर्थक रहे वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट गिरीश आहुजा तक को लोगों की शिकायतें सुनना पड़ रही हैं । भुक्तभोगियों का कहना/बताना है कि संजीव सिंघल के रवैये पर गिरीश आहुजा ने भी नाराजगी दिखाई/जताई है, और लोगों के बीच माना है कि संजीव सिंघल के इस रवैये के चलते उनकी साख व विश्वसनीयता को चोट पहुँची है । दरअसल कई चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने गिरीश आहुजा को उलाहना दिया कि 'हमने तो आपकी सिफारिश पर' संजीव सिंघल को वोट दिया था; हमें विश्वास था कि 'आप' जिसकी सिफारिश कर रहे हैं, चुनाव जीतने के बाद वह हमारी मुश्किलों व समस्याओं को हल करने/करवाने में दिलचस्पी लेंगे - लेकिन संजीव सिंघल तो फोन भी नहीं उठाते हैं । कुछेक वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का कहना है कि उन्हें तो गिरीश आहुजा के हस्तक्षेप करने के बाद संजीव सिंघल की तरफ से कॉल आई । प्रमोद जैन के 'शिकार' लोगों की तो समस्या यह भी है कि वह शिकायत भी करें तो किस से करें ?
उल्लेखनीय है कि पिछले चुनाव में नॉर्दर्न रीजन में संजीव सिंघल को सबसे ज्यादा वोट मिले थे, और प्रमोद जैन विजेता 6 उम्मीदवारों में तीसरे नंबर पर रहे थे । इन्हें जो छप्परफाड़ जीत मिली थी, उसकी दूसरों को तो क्या - खुद इन्हें भी उम्मीद नहीं थी । ठीक इसी तरह से, दूसरों को तो क्या, खुद इन्हें भी उम्मीद नहीं रही होगी कि भारीभरकम जीत हासिल करने के एक वर्ष के भीतर ही इन्हें वोट देने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इनके खिलाफ शिकायतें करने लगेंगे । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की शिकायतों को सुनते/देखते हुए वह कहावत चरितार्थ होती हुई लग रही है कि 'जो जितनी तेजी से ऊपर चढ़ता है, वह उससे ज्यादा तेज गति से नीचे उतरता है ।' संजीव सिंघल और प्रमोद जैन के प्रति मुखर होती शिकायतों ने सुधीर गुप्ता और विजय गुप्ता को अभी से चुनावी तैयारी शुरू करने के लिए प्रेरित किया है, और उनकी तरफ से अपने समर्थकों को सक्रिय करने तथा नए समर्थक खोजने/बनाने का काम शुरू होने की चर्चा है । पिछले चुनाव में सुधीर अग्रवाल करीब डेढ़ सौ वोटों की कमी के चलते सेंट्रल काउंसिल में आने से रह गए थे, और विजय गुप्ता को सेंट्रल काउंसिल की अपनी सीट खोना पड़ी थी । इन दोनों को उम्मीद है कि संजीव सिंघल और प्रमोद जैन के खिलाफ लोगों की नाराजगी जिस तरह से बन/बढ़ रही है, और खासी मुखर हो रही है, उसके कारण इन्हें वोटों का भारी नुकसान होगा; इन्हें होने वाले नुकसान का फायदा उठाने के लिए अगले वर्ष होने वाले सेंट्रल काउंसिल चुनाव के लिए सुधीर अग्रवाल और विजय गुप्ता को अभी से सक्रिय होने की जरूरत लग रही है ।
दरअसल, संजीव सिंघल और प्रमोद जैन के वोटों में कमी होने के आकलन तथा अतुल गुप्ता की सीट के खाली होने के कारण अगले वर्ष होने वाले चुनाव में कुछेक बनिया उम्मीदवारों के मैदान में उतरने की संभावना व्यक्त की जा रही है । चुनावी अनुभव के कारण, सुधीर अग्रवाल और विजय गुप्ता का पलड़ा अगले चुनावों के संदर्भ में भारी तो दिखता है, लेकिन कोई नया उम्मीदवार आ कर इनका 'खेल' बिगाड़ न दे - संभवतः इसलिए ही इन्हें अभी से सक्रिय होना जरूरी लगा होगा । संजीव सिंघल और प्रमोद जैन के कुछेक समर्थकों को हालाँकि लगता है कि इनके रवैये से लोगों के बीच पैदा हुई नाराजगी के चलते, हो सकता है कि इन्हें मिलने वाले वोटों में कुछ कमी हो जाये - लेकिन अपनी सीट निकालना इनके लिए मुश्किल नहीं होगा । कुछेक समर्थकों का यह भरोसा, लेकिन पिछले चुनाव में विजय गुप्ता और संजय वासुदेवा के साथ घटी 'घटना' को याद करते हुए ज्यादा भरोसे का नहीं रह जाता है । पिछले चुनाव में, सेंट्रल काउंसिल में होने के बावजूद विजय गुप्ता और संजय वासुदेवा का अपनी अपनी सीटों को न बचा पाना इस बात का सुबूत है कि सेंट्रल काउंसिल का सदस्य होना जीत की गारंटी नहीं है । और फिर, विजय गुप्ता व संजय वासुदेवा के खिलाफ तो वैसी मुखर नाराजगी भी नहीं दिखती थी, जैसी कि संजीव सिंघल व प्रमोद जैन के प्रति दिख रही है । देखना दिलचस्प होगा कि संजीव सिंघल और प्रमोद जैन अपने खिलाफ बढ़ती नाराजगी को सचमुच खतरे के रूप में देखेंगे और अपने व्यवहार में सुधार करेंगे - या छप्परफाड़ जीत के 'नशे' में आश्वस्त रहेंगे और लोगों की नाराजगी की परवाह नहीं करेंगे ?
उल्लेखनीय है कि पिछले चुनाव में नॉर्दर्न रीजन में संजीव सिंघल को सबसे ज्यादा वोट मिले थे, और प्रमोद जैन विजेता 6 उम्मीदवारों में तीसरे नंबर पर रहे थे । इन्हें जो छप्परफाड़ जीत मिली थी, उसकी दूसरों को तो क्या - खुद इन्हें भी उम्मीद नहीं थी । ठीक इसी तरह से, दूसरों को तो क्या, खुद इन्हें भी उम्मीद नहीं रही होगी कि भारीभरकम जीत हासिल करने के एक वर्ष के भीतर ही इन्हें वोट देने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इनके खिलाफ शिकायतें करने लगेंगे । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की शिकायतों को सुनते/देखते हुए वह कहावत चरितार्थ होती हुई लग रही है कि 'जो जितनी तेजी से ऊपर चढ़ता है, वह उससे ज्यादा तेज गति से नीचे उतरता है ।' संजीव सिंघल और प्रमोद जैन के प्रति मुखर होती शिकायतों ने सुधीर गुप्ता और विजय गुप्ता को अभी से चुनावी तैयारी शुरू करने के लिए प्रेरित किया है, और उनकी तरफ से अपने समर्थकों को सक्रिय करने तथा नए समर्थक खोजने/बनाने का काम शुरू होने की चर्चा है । पिछले चुनाव में सुधीर अग्रवाल करीब डेढ़ सौ वोटों की कमी के चलते सेंट्रल काउंसिल में आने से रह गए थे, और विजय गुप्ता को सेंट्रल काउंसिल की अपनी सीट खोना पड़ी थी । इन दोनों को उम्मीद है कि संजीव सिंघल और प्रमोद जैन के खिलाफ लोगों की नाराजगी जिस तरह से बन/बढ़ रही है, और खासी मुखर हो रही है, उसके कारण इन्हें वोटों का भारी नुकसान होगा; इन्हें होने वाले नुकसान का फायदा उठाने के लिए अगले वर्ष होने वाले सेंट्रल काउंसिल चुनाव के लिए सुधीर अग्रवाल और विजय गुप्ता को अभी से सक्रिय होने की जरूरत लग रही है ।
दरअसल, संजीव सिंघल और प्रमोद जैन के वोटों में कमी होने के आकलन तथा अतुल गुप्ता की सीट के खाली होने के कारण अगले वर्ष होने वाले चुनाव में कुछेक बनिया उम्मीदवारों के मैदान में उतरने की संभावना व्यक्त की जा रही है । चुनावी अनुभव के कारण, सुधीर अग्रवाल और विजय गुप्ता का पलड़ा अगले चुनावों के संदर्भ में भारी तो दिखता है, लेकिन कोई नया उम्मीदवार आ कर इनका 'खेल' बिगाड़ न दे - संभवतः इसलिए ही इन्हें अभी से सक्रिय होना जरूरी लगा होगा । संजीव सिंघल और प्रमोद जैन के कुछेक समर्थकों को हालाँकि लगता है कि इनके रवैये से लोगों के बीच पैदा हुई नाराजगी के चलते, हो सकता है कि इन्हें मिलने वाले वोटों में कुछ कमी हो जाये - लेकिन अपनी सीट निकालना इनके लिए मुश्किल नहीं होगा । कुछेक समर्थकों का यह भरोसा, लेकिन पिछले चुनाव में विजय गुप्ता और संजय वासुदेवा के साथ घटी 'घटना' को याद करते हुए ज्यादा भरोसे का नहीं रह जाता है । पिछले चुनाव में, सेंट्रल काउंसिल में होने के बावजूद विजय गुप्ता और संजय वासुदेवा का अपनी अपनी सीटों को न बचा पाना इस बात का सुबूत है कि सेंट्रल काउंसिल का सदस्य होना जीत की गारंटी नहीं है । और फिर, विजय गुप्ता व संजय वासुदेवा के खिलाफ तो वैसी मुखर नाराजगी भी नहीं दिखती थी, जैसी कि संजीव सिंघल व प्रमोद जैन के प्रति दिख रही है । देखना दिलचस्प होगा कि संजीव सिंघल और प्रमोद जैन अपने खिलाफ बढ़ती नाराजगी को सचमुच खतरे के रूप में देखेंगे और अपने व्यवहार में सुधार करेंगे - या छप्परफाड़ जीत के 'नशे' में आश्वस्त रहेंगे और लोगों की नाराजगी की परवाह नहीं करेंगे ?