Monday, March 23, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी से पीछा छुड़ा कर और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव राय मेहरा के सहयोग/समर्थन के बल पर अशोक कंतूर ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जीता

नई दिल्ली । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल और रवि चौधरी पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अशोक कंतूर को जितवाने के लिए लगे थे, लेकिन चुनाव अशोक कंतूर की बजाये अनूप मित्तल जीत गए थे; इस वर्ष वह दोनों अजीत जालान को जितवाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन चुनाव अजीत जालान की बजाये अशोक कंतूर जीत गए हैं । इस तरह अशोक कंतूर की पिछले वर्ष की हार और इस वर्ष की जीत विनोद बंसल और रवि चौधरी के लिए किरकिरी करवाने वाली साबित हुई है । रवि चौधरी ने हालाँकि बीच बीच में कुछेक बार अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के समर्थन में आने की कोशिश की थी, लेकिन अशोक कंतूर ने खासी सतर्कता रखते हुए उन्हें अपनी उम्मीदवारी के पास फटकने नहीं दिया - दरअसल वह जान/समझ रहे थे कि रवि चौधरी यदि उनकी उम्मीदवारी के साथ जुड़े, तो उनकी चुनावी नैय्या शर्तिया डूब ही जाएगी । उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष की चुनावी हार के लिए अशोक कंतूर ने रवि चौधरी को ही जिम्मेदार ठहराया था, और कहा/बताया था कि रवि चौधरी की बदनामी उनकी उम्मीदवारी पर भारी साबित हुई । अशोक कंतूर ने जान/समझ लिया था कि वह रवि चौधरी की छाया यदि मुक्त नहीं हुए, तो कभी गवर्नर नहीं बन पायेंगे; और इसलिए अपनी उम्मीदवारी को दोबारा से प्रस्तुत करने से पहले उन्होंने रवि चौधरी को क्लब से निकलवाने की 'व्यवस्था' की और रवि चौधरी को एक दूसरे क्लब में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा । रवि चौधरी ने इस वर्ष अजीत जालान की उम्मीदवारी का झंडा उठाया । अजीत जालान को बहुत लोगों ने समझाया कि रवि चौधरी से यदि उन्होंने दूरी नहीं बनाई, तो चुनाव में अपनी हार पक्की ही समझो । अजीत जालान ने किसी की नहीं सुनी, और नतीजा उनकी हार के रूप में सामने आया है ।
अजीत जालान को पहली वरीयता में तो कम वोट मिले ही, दूसरी वरीयता के 31 वोटों में से भी कुल 2 वोट ही मिले, जिसके कारण उनकी हार का अंतर 50 से भी अधिक वोटों का हो गया । दूसरी वरीयता के वोटों के मामले में अजीत जालान को वोटों का जो टोटा पड़ा, उसे रवि चौधरी की बदनामी से जोड़ कर देखा/पहचाना जा रहा है । अजीत जालान के कुछेक नजदीकियों का ही कहना है कि अजीत जालान की उम्मीदवारी के लिए की गई विनोद बंसल की मेहनत पर रवि चौधरी की बदनामी ने पानी फेर दिया है । इनका यह भी मानना और कहना है कि अजीत जालान की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने में विनोद बंसल का देर से सक्रिय होना भी अजीत जालान की हार का एक प्रमुख कारण है - इनका विश्वास है कि विनोद बंसल यदि और पहले सक्रिय होते, तो अजीत जालान की उम्मीदवारी को और वोट मिल सकते थे और शायद वह चुनाव जीत ही जाते । अजीत जालान के नजदीकियों को लगता है कि विनोद बंसल ने वोटिंग शुरू होने तक अजीत जालान की उम्मीदवारी का समर्थन करने से 'छिपने' की, और अजीत जालान की उम्मीदवारी की कमान रवि चौधरी को सौंपे रखने की जो रणनीति बनाई - उसने उल्टा असर किया; दरअसल रवि चौधरी के अजीत जालान के समर्थन में सक्रिय दिखने से अजीत जालान की उम्मीदवारी का जो कबाड़ा हुआ, विनोद बंसल ने बाद में उसे संभालने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन वह बहुत संभाल नहीं सके । विनोद बंसल का अपने क्लब का वोट आखिर में डलवाने का फैसला भी अजीत जालान की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने वाला रहा । अजीत जालान के कुछेक समर्थकों का ही मानना/कहना है कि विनोद बंसल के 'फैसले' से कई क्लब्स के पदाधिकारियों के बीच अजीत जालान को वोट देने का विश्वास नहीं बन पाया । इन्हें लगता है कि विनोद बंसल यदि अपने क्लब का वोट पहले डलवा देते, तो अजीत जालान को और कुछेक क्लब्स के वोट भी मिल सकते थे ।
इस वर्ष के चुनावी नतीजे में सबसे तगड़ा झटका महेश त्रिखा को लगा है - उन्हें नंबर एक या नंबर दो पर देखा/पहचाना जा रहा था, लेकिन चुनावी नतीजे में वह तीसरे नंबर पर पाए गए । उन्हें वोट देने वालों ने दूसरी वरीयता के लिए जिस थोक भाव में अशोक कंतूर को चुना, उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि अशोक कंतूर ने उनके समर्थन-आधार में अच्छी सेंध लगाई है । अशोक कंतूर ने यह सेंध डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव राय मेहरा के सहयोग से लगाई । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में आने वाले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के समर्थन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है; असल में उसके पास अपनी डिस्ट्रिक्ट टीम के पदों का जखीरा होता है - जिसे 'दिखा' कर वह अपने उम्मीदवार के लिए वोट जुटाने की हैसियत रखता है । संजीव राय मेहरा ने इस वर्ष के कुछेक प्रेसीडेंट्स को जिस तरह से अपनी टीम का सदस्य बनाया है, उसे देख/जान कर ही समझ लिया गया कि यह सब उन्होंने अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के लिए वोट जुटाने के लिए किया है । संजीव राय मेहरा की तरकीब काम कर गई, और अशोक कंतूर को उसका अच्छा फायदा मिला । पिछले वर्ष की चुनावी हार से मिले सबक से अशोक कंतूर ने इस वर्ष की अपनी चुनावी तैयारी को अच्छे से संयोजित भी किया, और वह पूरे चुनाव-अभियान के दौरान कभी भी ओवर-कॉन्फीडेंट होते हुए नजर नहीं आए । चुनाव अभियान के दौरान 'बनने' वाले हर प्रतिकूल मौके को अनुकूल बनाने के लिए उन्हें प्रयास किए और इस वर्ष वह पिछले वर्ष जैसी गलतियाँ करने से बचते हुए दिखे - और इसी का नतीजा रहा कि वह 50 से अधिक वोटों से विजयी हुए हैं ।