Thursday, March 12, 2020

घोटालेबाजी के कारण डूबे यस बैंक में दिल्ली रोटरी ब्लड बैंक के बीसों करोड़ रुपए फँसे होने की बात सामने आने पर, पहले से ही मनमानियों और बेईमानियों के आरोपों में घिरे रोटरी ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट विनोद बंसल की मुसीबतें और बढ़ीं 

नई दिल्ली । यस बैंक के झमेले में दिल्ली रोटरी ब्लड बैंक भी फँसा है, और एफडी के रूप में उसके बीसों करोड़ रुपए खतरे में पड़ गए हैं । रोटेरियंस के लिए हैरानी की बात यह है कि अपने आपको फाइनेंशियल एक्सपर्ट कहने/बताने वाले विनोद बंसल के प्रेसीडेंट होते हुए रोटरी ब्लड बैंक की मोटी रकम घोटालों का सामना कर रहे यस बैंक में कैसे फँस गई ? उल्लेखनीय है कि यस बैंक घोटालेबाजी की खबरों के चलते पिछले डेढ़-दो वर्ष से चर्चा में है और बैंक के डूबने की आशंकाएँ व्यक्त होती रही हैं । इन आशंकाओं के चलते ही पिछले छह/आठ महीनों में कई कार्पोरेट तथा एनजीओ खाताधारकों ने बैंक में अपने डिपॉजिट्स निकाल लिए थे । फाइनेंशल सेक्टर में एक्सपर्ट्स के बीच यह चर्चा आम थी कि यस बैंक में अपने डिपॉजिट्स छोड़ना उन्हें खतरे में डालना है । ऐसे में, रोटेरियंस के बीच चर्चा और सवाल हैं कि फाइनेंशियल एक्सपर्ट और प्रेसीडेंट के रूप में विनोद बंसल ने रोटरी ब्लड की रकम यस बैंक से निकालने पर ध्यान क्यों नहीं दिया ? कुछेक लोगों को यह विनोद बंसल की प्रशासनिक व प्रोफेशनल चूक व लापरवाही लगती हैं, तो कुछेक अन्य लोग इसमें उनका कोई 'खेल' देख रहे हैं । इस संदर्भ में, एक मजेदार तथ्य यह भी है कि विनोद बंसल रोटरी इंटरनेशनल की इन्वेस्टमेंट कमेटी के सदस्य भी हैं । लोगों का कहना/पूछना है कि जो विनोद बंसल रोटरी ब्लड बैंक की रकम को चूक, लापरवाही और या किसी 'खेल' के चलते खतरे में डाल सकते हैं, वह इन्वेस्टमेंट कमेटी के सदस्य के रूप में रोटरी इंटरनेशनल की भारी-भरकम रकम के लिए भी बड़े खतरे साबित हो सकते हैं ।
विनोद बंसल अपने बचाव में तर्क दे रहे हैं कि रोटरी ब्लड बैंक का अकाउंट यस बैंक में खोलने का फैसला उन्होंने नहीं किया था; प्रेसीडेंट के रूप में उनके काम सँभालने से पहले ही ब्लड बैंक का अकाउंट यस बैंक में था - और क्यों था, यह पहले ट्रेजरर रहे आशीष घोष से पूछा जाना चाहिए । वर्ष 2015 तक ब्लड बैंक के ट्रेजरर रहे आशीष घोष का कहना है कि उन्हें यह याद नहीं है कि उस समय किस बैंक में अकाउंट था, लेकिन यदि विनोद बंसल कह रहे हैं, तो ठीक ही कह रहे होंगे । आशीष घोष पुराने दिनों की याद करते हुए बताते हैं कि तत्कालीन पदाधिकारियों के रूप में सुदर्शन अग्रवाल तथा ओपी वैश्य के साथ वह बैंकों की ब्याज दरों तथा उनके कामकाज का आकलन करते रहते थे, और जहाँ ज्यादा फायदा होता दिखता था, वहाँ अकाउंट खोलने का फैसला करते थे । उनका कहना है कि अधिकतर एनजीओ ऐसा ही करते हैं, और इसमें कुछ भी गलत नहीं है । मजे की बात यह है कि यस बैंक में अकाउंट खोलने और एफडी करवाने की बात को विनोद बंसल भी गलत नहीं बता रहे हैं - वह तो पिछले पदाधिकारियों के समय से यस बैंक में अकाउंट होने की बात कह कर दरअसल मामले को डायवर्ट करने तथा अपने आपको आरोपों से बचाने की कोशिश कर रहे हैं । वास्तव में, सवाल और या आरोप यह है ही नहीं कि रोटरी ब्लड बैंक का अकाउंट यस बैंक किसने खोला और क्यों खोला ? सवाल और आरोप तो यह है कि पिछले डेढ़-दो वर्षों से जब यस बैंक के घोटालों की खबरें आ रहीं थीं, और बैंक के डूबने की आशंका व्यक्त की जा रही थी - और पिछले छह/आठ महीनों में जब कार्पोरेट्स तथा एनजीओ यस बैंक से अपने पैसे निकाल रहे थे, तब फाइनेंशियल एक्सपर्ट होने का दावा करने वाले रोटरी ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट विनोद बंसल आखिर कहाँ सोए हुए थे ?
आरोपों से बचने के लिए विनोद बंसल यह दावा भी कर रहे हैं कि यस बैंक का संकट जल्दी ही दूर हो जायेगा और सरकार ने आश्वस्त किया है कि उसमें जमा पैसा पूरी तरह सुरक्षित है । यस बैंक में दिल्ली रोटरी ब्लड बैंक की सारी कमाई के फँसे होने से परेशान रोटेरियंस का कहना है कि इस तरह की बातों से विनोद बंसल अपनी चूक, लापरवाही और या किसी 'खेल' की आशंका पर पर्दा नहीं डाल सकते हैं । विनोद बंसल से हमदर्दी रखने वाले उनके नजदीकियों व समर्थकों का भी मानना और कहना है कि इस प्रसंग ने विनोद बंसल की कार्य-क्षमता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं । प्रोफेशनली वह जिस काम में एक्सपर्ट समझे जाते हैं, उस काम को ही वह यदि ठीक से नहीं कर सकते हैं और संगठन को भारी चोट पहुँचाने वाले खतरे में धकेल सकते हैं, तो फिर दूसरे कामों के बारे में उनसे उम्मीद करना संदेहास्पद तो होगा ही । विनोद बंसल के ग्रह-नक्षत्र आजकल लगता है कि कुछ अच्छे नहीं चल रहे हैं; वह जहाँ भी होते हैं, वहाँ विवाद और आरोप लगने लगते हैं । रोटरी ब्लड बैंक में वह पहले से ही मनमानियों और बेईमानियों के आरोपों में घिरे हैं, जिनके चलते ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट पद की उनकी कुर्सी और खतरे में पड़ी दिख रही है । प्रेसीडेंट पद की कुर्सी बचाने के लिए विनोद बंसल जीतोड़ कोशिश कर ही रहे थे, कि यस बैंक में ब्लड बैंक के पैसे फँसे होने का मामला उनके गले में आ अटका है । इस मामले में उनके लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि कुछेक लोग इस मामले को भले ही उनकी चूक व लापरवाही के रूप में देख रहे हों, लेकिन अधिकतर लोग इसके पीछे उनकी कोई बिजनेस डील होने का ही संदेह प्रकट कर रहे हैं । विनोद बंसल के सामने समस्या यह है कि आरोपों व संदेहों के बीच उनसे ब्लड बैंक का प्रेसीडेंट पद छिना तो रोटरी की राजनीति व प्रशासनिक व्यवस्था में यह उन्हें और नुकसान पहुँचाने वाला साबित हो सकता है ।