Monday, March 2, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के नियम-कानूनों की ऐसीतैसी करते हुए तथा इस तरह सीधे-सीधे इंस्टीट्यूट की प्रभुसत्ता को चुनौती देते हुए कुछेक ब्रांचेज के नए पदाधिकारियों ने जिस तरह से अपने आप को 'चुनवा' लिया है, उसने प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है

नई दिल्ली । अतुल गुप्ता के प्रेसीडेंट बनने के बाद नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की ब्रांचेज में पदाधिकारियों के चयन/चुनाव में मनमानियों का खुल्ला खेल शुरू हो गया है, अतुल गुप्ता लेकिन उसे नियंत्रित करने की बजाये न जाने किन दूसरे कामों में व्यस्त/मस्त हैं । करनाल, यमुना नगर तथा अमृतसर ब्रांच में पिछले वर्ष के चेयरमैन इंस्टीट्यूट की गाइडलाइंस का उल्लंघन करते हुए इस वर्ष ट्रेजरर बन बैठे हैं; जबकि भिवानी ब्रांच में पिछले वर्ष के पदाधिकारियों ने और भी कमाल किया और वह यह कि सभी ने अपने अपने पद छोड़ने से इंकार कर दिया तथा इस वर्ष भी उन्होंने अपने आप को पिछले वर्ष वाले पदों पर ही 'चुनवा' लिया है । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट के नियमानुसार, ब्रांच में चेयरमैन के पद पर रह चुका मैनेजिंग कमेटी का सदस्य बाद के वर्षों में और कोई पद लेने का अधिकारी नहीं रहेगा; किंतु करनाल, यमुनानगर, अमृतसर व भिवानी ब्रांच में इस नियम का खुल्लमखुल्ला मजाक बना दिया गया है । मजे की बात यह है कि यह मनमानी तथाकथित चुनावी बहुमत के नाम पर की गई है । इससे भी ज्यादा मजे की बात यह है कि इन ब्रांचेज में यह मजाक इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता के नाम पर किया गया है । मनमानी करते हुए इंस्टीट्यूट के नियम-कानून का मजाक बनाने वाले ब्रांचेज के 'नए' पदाधिकारी अतुल गुप्ता के साथ अपनी नजदीकियों का वास्ता देते हुए निश्चिंत हैं और दिखा/जता रहे हैं कि 'सैंयाँ जब कोतवाल हो गए हैं', तब उन्हें तो जैसे कुछ भी करने का अधिकार मिल गया है । 
इस नजारे का दिलचस्प पहलू यह भी है कि उक्त ब्रांचेज में घटी नियमविरुद्ध घटनाओं का जो लोग विरोध कर रहे हैं, और इन घटनाओं से दुखी हैं - वह भी अतुल गुप्ता पर ही भरोसा कर रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि अतुल गुप्ता इन घटनाओं को बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं करेंगे और इंस्टीट्यूट के नियमों के साथ खिलवाड़ करने वाले ब्रांच के पदाधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करेंगे । लेकिन अतुल गुप्ता को फिलहाल इस तरह मामलों में ध्यान देने की फुरसत नहीं है, वह जगह जगह प्रेसीडेंट के रूप में अपना स्वागत/सम्मान करवाने की मस्ती में व्यस्त हैं । करनाल ब्रांच के मामले में कुछ ज्यादा शिकायतें/सिफारिशें आईं तो अतुल गुप्ता ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ट्रेजरर पंकज गुप्ता को मामले का संज्ञान लेने का ऑर्डर कर दिया । पंकज गुप्ता को इसलिए क्योंकि वह करनाल ब्रांच के एक्स-ऑफिसो सदस्य हैं । पंकज गुप्ता ने और कमाल किया; उनके नजदीकियों के अनुसार, उन्होंने मामले को नजर भर देखा और पाया कि चूँकि 'पीड़ित' पक्ष ने कोई शिकायत नहीं की है, शिकायत एक 'बाहरी' व्यक्ति ने की है, इसलिए मामले का संज्ञान लेने की जरूरत ही नहीं है । लाख लाख शुक्र है कि पंकज गुप्ता चार्टर्ड एकाउंटेंट हुए, और दरोगा नहीं बने - वहाँ तो वह उपद्रव की सूचना मिलने पर उपद्रवियों के खिलाफ कार्रवाई करने तब तक निकलते ही नहीं, जब तक उपद्रव के पीड़ित शिकायत लेकर उनके पास न आते । 
करनाल, यमुना नगर, अमृतसर, भिवानी आदि में जो हुआ, उसे देख/जान कर निराश होने तथा शर्म महसूस करने वाले लोगों का कहना है कि यहाँ जो हुआ, उसमें 'पीड़ित' तो वास्तव में इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन है । इन ब्रांचेज में जिन पदाधिकारियों ने पद हथियाये हैं, और जिन्होंने पद हथियाने की कार्रवाई का समर्थन किया है - उन्होंने सिर्फ दूसरे सदस्यों के 'अधिकार' ही नहीं छीने हैं, बल्कि इंस्टीट्यूट के नियम-कानून की भी ऐसीतैसी की है और इस तरह सीधे-सीधे इंस्टीट्यूट की प्रभुसत्ता को चुनौती दी है । ऐसे में, इंस्टीट्यूट में विभिन्न पदों पर बैठे पदाधिकारियों से यह उम्मीद तो की ही जानी चाहिए कि वह खुद से संज्ञान लेकर इंस्टीट्यूट की प्रभुसत्ता को बचाने का प्रयास करेंगे । लेकिन संदर्भित ब्रांचेज में किसी भी एक्स-ऑफिसो सदस्य ने खुद से तो संज्ञान नहीं ही लिया; करनाल ब्रांच के मामले में पंकज गुप्ता ने निर्देशित होने के बावजूद मामले की गंभीरता को नहीं समझा । इस मामले में लेकिन अकेले पंकज गुप्ता को ही क्यों दोष देना । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के दो दो बार चेयरमैन बनने से वंचित रह गए काउंसिल के सबसे वरिष्ठ सदस्य रतन सिंह यादव ने तो इन सभी ब्रांचेज के पदाधिकारियों को बाकायदा बधाई दी है । टीम भिवानी के पदाधिकारी तो और भी ज्यादा 'सौभाग्यशाली' हैं, उन्हें तो इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा की भी बधाई मिली है । ऐसे में, सहज ही समझा जा सकता है कि पदों को प्राप्त करने तथा पदों पर बने/टिके रहने की होड़ में इंस्टीट्यूट के नियम-कानूनों का मजाक बना देने के हौंसले बुलंद आखिर क्यों न हों ?