Friday, March 6, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सात की जगह नौ सदस्यीय एक्जीक्यूटिव कमेटी बनाने के शशांक अग्रवाल के 'खेल' ने सत्ताधारियों के बीच अविश्वास व खटपट चलने के संकेत दिए

नई दिल्ली ।  नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सत्ता स्थापित हुए अभी दस दिन भी नहीं हुए हैं कि सत्ताधारियों के बीच एक्जीक्यूटिव कमेटी के गठन को लेकर तलवारें खिंचीं नजर आ रही हैं । यूँ तो एक्जीक्यूटिव कमेटी का गठन सत्ता स्थापित होते ही हो जाना चाहिए था; और इसी नाते उम्मीद की गई थी कि सत्ता खेमे के सात सदस्यों को लेकर एक्जीक्यूटिव कमेटी गठित हो जाएगी । लेकिन ऐसा नहीं हुआ । शुरू में सुना गया कि चेयरमैन शशांक अग्रवाल ने सत्ता खेमे के बाकी सदस्यों को बताया कि गौरव गर्ग अपने आप को एक्जीक्यूटिव कमेटी में शामिल करने को लेकर बड़ी सिफारिश कर रहे हैं; लेकिन सत्ता खेमे के कुछेक सदस्यों ने गौरव गर्ग को एक्जीक्यूटिव कमेटी में शामिल करने का विरोध किया है । उन्होंने तर्क दिया कि गौरव गर्ग को अंतिम समय तक मौका दिया गया था कि वह इस तरफ आ जाएँ, लेकिन गौरव गर्ग ने एक न सुनी और उस तरफ ही बने रहे - इसलिए अब उन्हें सत्ता खेमे में शामिल करने की कोई जरूरत नहीं है । एक तर्क और दिया गया और वह यह कि गौरव गर्ग जिन लोगों के साथ रहते हैं, उनकी लुटिया डूब जाती है; पिछले वर्ष भी यही हुआ और अब इस वर्ष भी यही कहानी दोहराई गई, इसलिए गौरव गर्ग से दूरी बना कर रखने में ही भलाई है । इस विवाद के चलते नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की एक्जीक्यूटिव कमेटी के गठन का मामला लटका चला आ रहा है ।
बात लेकिन इतनी सीधी/सरल और इतनी ही नहीं है । शशांक अग्रवाल के नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि शशांक अग्रवाल एक्जीक्यूटिव कमेटी में 'अपना' बहुमत रखना/बनाना चाहते हैं, और इसलिए वह सात सदस्यों की एक्जीक्यूटिव कमेटी बनाने के लिए तैयार नहीं हैं । दरअसल, सात सदस्यों की एक्जीक्यूटिव कमेटी में चार का बहुमत होगा; शशांक अग्रवाल को डर है कि पंकज गुप्ता, विजय गुप्ता, श्वेता पाठक व रचित भंडारी के बीच जिस तरह की अंडरस्टैंडिंग है उसके चलते यह लोग उन्हें तंग सकते हैं और उनके फैसलों में अड़ंगा डाल सकते हैं । इससे बचने के लिए शशांक अग्रवाल नौ सदस्यों की एक्जीक्यूटिव कमेटी बनाना चाहते हैं । शशांक अग्रवाल के नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि बाकी दो सदस्यों के रूप में गौरव गर्ग और सुमित गर्ग को तैयार कर लिया गया है । नौ सदस्यों की एक्जीक्यूटिव कमेटी में पाँच का बहुमत होगा; और शशांक अग्रवाल को विश्वास है कि तब पंकज गुप्ता, विजय गुप्ता, श्वेता पाठक व रचित भंडारी का ग्रुप अल्पमत में होगा और यह उन्हें किसी भी तरह से तंग नहीं कर सकेंगे और उनकी हालत पिछले चेयरमैन हरीश जैन जैसी नहीं होगी । अपने 'खेल' को अंजाम देने के लिए शशांक अग्रवाल तर्क दे रहे हैं कि चुनाव के समय विरोध में रहने वाले सदस्य यदि पश्चाताप कर रहे हैं और साथ आना चाहते हैं, तो उन्हें एक्जीक्यूटिव कमेटी में शामिल करके 'हमें' विरोधी खेमे को और कमजोर कर देना चाहिए - इससे काउंसिल में हमारी पकड़ और मजबूत होगी । 
शशांक अग्रवाल का 'खेल' लगता है कि पंकज गुप्ता, विजय गुप्ता, श्वेता पाठक व रचित भंडारी समझ रहे हैं और इसीलिए यह एक्जीक्यूटिव कमेटी में विरोधी खेमे के सदस्यों को शामिल करने का विरोध करने के जरिये नौ सदस्यीय एक्जीक्यूटिव कमेटी बनाने पर ऐतराज कर रहे हैं । इनका तर्क है कि पदाधिकारियों के चुनाव में जिन सदस्यों ने उन्हें वोट नहीं दिया है, उन सदस्यों को एक्जीक्यूटिव कमेटी में शामिल करने का कोई मतलब नहीं है । सत्ताधारी सदस्यों में इसी विवाद के चलते एक्जीक्यूटिव कमेटी का गठन अभी तक टला हुआ है । बताया जाता है कि नौ सदस्यीय एक्जीक्यूटिव कमेटी बनाने का आईडिया शशांक अग्रवाल को इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा व मौजूदा प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता ने दिया है । वास्तव में रीजनल काउंसिल में जो सत्ता गठजोड़ बना है, उसके पीछे इन्हीं दो बड़े नेताओं/पदाधिकारियों की सक्रिय भूमिका रही है । 'रचनात्मक संकल्प' की 27 फरवरी की एक रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि रतन सिंह यादव और अजय सिंघल ने सत्ता से बाहर रह गए छह सदस्यों के साथ मिलकर आठ सदस्यीय पॉवर ग्रुप बनाया था । इन आठ सदस्यों ने एक मंदिर में ईश्वर को साक्षी बना कर दोनों वर्ष साथ रहने की सौगंध खाई और बाकायदा एक एग्रीमेंट लिखा और उस पर अपने अपने हस्ताक्षर किए । गौरव गर्ग की लिखावट में कोडवर्ड में लिखे उक्त एग्रीमेंट की फोटोप्रति इस रिपोर्ट के साथ प्रकाशित है । चर्चा है कि जब अमरजीत चोपड़ा को इस एग्रीमेंट की भनक लगी, तो उन्होंने अतुल गुप्ता के साथ मिलकर एक तरफ तो रतन सिंह यादव व अजय सिंघल को तथा दूसरी तरफ पंकज गुप्ता वाले ग्रुप के सदस्यों को ललचा, धमका, फुसला कर एकजुट किया और सत्ता स्थापित करवा दी । इंस्टीट्यूट के इतिहास में शायद यह पहली बार हुआ है कि इंस्टीट्यूट के बड़े पदाधिकारी रीजनल काउंसिल के कुछेक सदस्यों के प्रति निजी खुन्नस रखने के चलते उनके चुने जाने की संभावना को खत्म करने के लिए षड्यंत्र करें और 'कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा' लेकर सत्ता बनवा दें । अमरजीत चोपड़ा और अतुल गुप्ता ने अपने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सत्ता तो स्थापित करवा दी है, लेकिन सत्ताधारियों के आपसी अविश्वास के चलते अभी से उनके बीच जो खटपट चलती हुई सुनाई दे रही है - उससे सत्ता 'चलने' को लेकर संदेह बनता जा रहा है ।