नई दिल्ली । रमेश अग्रवाल के कहने/उकसाने पर शरत जैन सीओएल के लिए उम्मीदवार तो बन गए हैं, लेकिन मुकाबले पर मुकेश अरनेजा को देख कर उन्हें लग रहा है कि उन्होंने जैसे मुसीबत आमंत्रित कर ली है । दरअसल रमेश अग्रवाल की हालत ही कुछ ऐसी बन गई है कि वह जिसे उम्मीदवार बनाते हैं, मुसीबतें उसे शुरू से ही दबोच लेती हैं । मौजूदा रोटरी वर्ष में रमेश अग्रवाल ने अशोक जैन को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार बनाया/बनवाया, लेकिन अशोक जैन को जल्दी ही समझ में आ गया कि रमेश अग्रवाल की 'साढ़े साती' के कारण उनके लिए उम्मीदवारी का अभियान चला पाना मुश्किल ही होगा - सो, वह जिस पतली गली से उम्मीदवार बनने के लिए आगे बढ़े थे, उसी पतली गली से वापस लौट गए; और सुखी रहे । अब शरत जैन की भी हालत अशोक जैन जैसी ही है । मुकेश अरनेजा को मुकाबले में देख कर रमेश अग्रवाल व शरत जैन की जोड़ी ने यह तर्क देते हुए दाँव तो अच्छा चला था कि मुकेश अरनेजा एक बार सीओएल में रह चुके हैं, इसलिए अब उन्हें दूसरों के लिए मौका छोड़ देना चाहिए - लेकिन उनकी बदकिस्मती रही कि उनका यह दाँव चलते ही फुस्स हो गया । दरअसल किसी की भी समझ में नहीं आया कि रोटरी इंटरनेशनल के नियम-कानून यदि मुकेश अरनेजा को दोबारा सीओएल का सदस्य बनने का अधिकार देते हैं, तब फिर रमेश अग्रवाल व शरत जैन की जोड़ी मनमाने तरीके से उनसे यह अधिकार छीनने का प्रयास क्यों कर रही है ? और फिर, यदि इस तर्क को व्यवहार में लाना ही था, तो इसके लिए काउंसिल और गवर्नर्स की मीटिंग में बात होना चाहिए थी । यह दोनों डिस्ट्रिक्ट काउंसलर हैं, इन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता को कह कर काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग बुलवाना चाहिए थी, और उसमें यह मुद्दा रखना चाहिए था । मजे की बात लेकिन यह है कि इसके लिए न तो इन दोनों ने कोई प्रयास किए और न दीपक गुप्ता ने ही कोशिश की ।
डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख लोगों और जानकारों का मानना और कहना है कि हो सकता है कि काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में भी रमेश अग्रवाल और शरत जैन की जोड़ी मुकेश अरनेजा को उम्मीदवार बनने से न रोक पाती; तब भी लेकिन लोगों को यह तो 'दिखता' कि वह प्रॉपर तरीके से अपनी बात कह रहे हैं - और उससे उन्हें लोगों के बीच सहानुभूति और समर्थन भी मिल सकता था । यह मौका लेकिन रमेश अग्रवाल और शरत जैन की जोड़ी ने खो दिया । इससे जाहिर है कि सीओएल का पद पाने के लिए शरत जैन को और उन्हें पद दिलवाने के लिए रमेश अग्रवाल को कायदे/कानून से कुछ करना नहीं है; और इसीलिए उनके संभावित सहयोगी/समर्थक भी उनके लिए कुछ करते हुए नजर नहीं आ रहे हैं । शरत जैन को उम्मीद रही है कि दीपक गुप्ता, अशोक अग्रवाल और ललित खन्ना उनकी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम करेंगे; लेकिन वह यह देख/जान कर निराश हैं कि यह तीनों ही कुछ करते हुए नजर नहीं आ रहे हैं । दीपक गुप्ता तो अपने स्वार्थ और अपनी बेवकूफी में कुछ नहीं कर रहे हैं; दीपक गुप्ता दरअसल उम्मीद कर रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में ललित खन्ना उनकी मदद पाने के लिए जिस तरह उनके आगे-पीछे रहते थे, और उनकी हर 'डिमांड' पूरी करते थे, शरत जैन भी वैसे ही करें - शरत जैन चूँकि वैसा कुछ नहीं कर रहे हैं, इसलिए दीपक गुप्ता भी उनके लिए कुछ करने की जरूरत नहीं समझ रहे हैं ।
अशोक अग्रवाल लगता है कि रमेश अग्रवाल के साथ हुए पुराने झगड़े को अभी नहीं भूले हैं, और शरत जैन को वह चूँकि रमेश अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में ही देख/पहचान रहे हैं - इसलिए वह शरत जैन के लिए कुछ करने को प्रेरित नहीं हो पा रहे हैं । ललित खन्ना की समस्या बिलकुल अलग तरह की है; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव वह खुद बड़ी मुश्किलों से - चौथी बार में जीते हैं; ऐसे में, उन्हें डर है कि वह शरत जैन के लिए वोट जुटाने की कोशिश में कहीं खुद का मजाक न बनवा बैठें, लिहाजा वह चुप ही बने हुए हैं । ललित खन्ना की इस चुप्पी ने सीओएल के चुनाव से अलग मामले में शरत जैन की दुविधा को बढ़ाने का काम किया है । शरत जैन को ललित खन्ना की तरफ से संकेत मिला है कि वह उन्हें अपने गवर्नर-वर्ष में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनायेंगे; शरत जैन की आशंका है कि कहीं उस मामले में भी तो ललित खन्ना उन्हें झाँसा नहीं दे देंगे ? अशोक अग्रवाल और ललित खन्ना के सामने एक और मुसीबत है - उन्हें आने वाले वर्षों में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारियाँ सँभालनी हैं, और इसके लिए उन्हें डिस्ट्रिक्ट में सभी का सहयोग/समर्थन चाहिए होगा - सीओएल के चुनाव के चक्कर में वह उस संभावित सहयोग/समर्थन को खतरे में नहीं डालना चाहेंगे । यह मुसीबत वास्तव में इसलिए भी है, क्योंकि किसी को भी सीओएल के चुनाव में शरत जैन के जीतने की संभावना नहीं दिख रही है - इसलिए उनके सहयोगी/समर्थक के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले नेता लोग भी उनके समर्थन में 'दिख' कर अपनी फजीहत नहीं करवाना चाहते हैं, और उनकी उम्मीदवारी से दूर ही रहना चाहते हैं । शरत जैन और मुकेश अरनेजा के बीच होते दिख रहे सीओएल के चुनाव को एक बेमेल चुनाव के रूप में देखा जा रहा है; मुकेश अरनेजा को चुनावी राजनीति का धुरंधर समझा जाता है, जबकि शरत जैन चुनावी राजनीति के बड़े कच्चे खिलाड़ी के रूप में देखे/पहचाने जाते हैं । रही सही कसर रमेश अग्रवाल की बदनामी पूरी कर देती है । लोगों का मानना/कहना है कि रमेश अग्रवाल के उम्मीदवार होने के कारण शरत जैन की भी स्थिति वैसी ही होगी, जैसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद चुनाव के मामले में अशोक जैन की हुई थी । अशोक जैन तो हालात को समझ/पहचान कर जल्दी ही 'कट' लिए थे, देखना दिलचस्प होगा कि शरत जैन क्या करते हैं ?
डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख लोगों और जानकारों का मानना और कहना है कि हो सकता है कि काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में भी रमेश अग्रवाल और शरत जैन की जोड़ी मुकेश अरनेजा को उम्मीदवार बनने से न रोक पाती; तब भी लेकिन लोगों को यह तो 'दिखता' कि वह प्रॉपर तरीके से अपनी बात कह रहे हैं - और उससे उन्हें लोगों के बीच सहानुभूति और समर्थन भी मिल सकता था । यह मौका लेकिन रमेश अग्रवाल और शरत जैन की जोड़ी ने खो दिया । इससे जाहिर है कि सीओएल का पद पाने के लिए शरत जैन को और उन्हें पद दिलवाने के लिए रमेश अग्रवाल को कायदे/कानून से कुछ करना नहीं है; और इसीलिए उनके संभावित सहयोगी/समर्थक भी उनके लिए कुछ करते हुए नजर नहीं आ रहे हैं । शरत जैन को उम्मीद रही है कि दीपक गुप्ता, अशोक अग्रवाल और ललित खन्ना उनकी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम करेंगे; लेकिन वह यह देख/जान कर निराश हैं कि यह तीनों ही कुछ करते हुए नजर नहीं आ रहे हैं । दीपक गुप्ता तो अपने स्वार्थ और अपनी बेवकूफी में कुछ नहीं कर रहे हैं; दीपक गुप्ता दरअसल उम्मीद कर रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में ललित खन्ना उनकी मदद पाने के लिए जिस तरह उनके आगे-पीछे रहते थे, और उनकी हर 'डिमांड' पूरी करते थे, शरत जैन भी वैसे ही करें - शरत जैन चूँकि वैसा कुछ नहीं कर रहे हैं, इसलिए दीपक गुप्ता भी उनके लिए कुछ करने की जरूरत नहीं समझ रहे हैं ।
अशोक अग्रवाल लगता है कि रमेश अग्रवाल के साथ हुए पुराने झगड़े को अभी नहीं भूले हैं, और शरत जैन को वह चूँकि रमेश अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में ही देख/पहचान रहे हैं - इसलिए वह शरत जैन के लिए कुछ करने को प्रेरित नहीं हो पा रहे हैं । ललित खन्ना की समस्या बिलकुल अलग तरह की है; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव वह खुद बड़ी मुश्किलों से - चौथी बार में जीते हैं; ऐसे में, उन्हें डर है कि वह शरत जैन के लिए वोट जुटाने की कोशिश में कहीं खुद का मजाक न बनवा बैठें, लिहाजा वह चुप ही बने हुए हैं । ललित खन्ना की इस चुप्पी ने सीओएल के चुनाव से अलग मामले में शरत जैन की दुविधा को बढ़ाने का काम किया है । शरत जैन को ललित खन्ना की तरफ से संकेत मिला है कि वह उन्हें अपने गवर्नर-वर्ष में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनायेंगे; शरत जैन की आशंका है कि कहीं उस मामले में भी तो ललित खन्ना उन्हें झाँसा नहीं दे देंगे ? अशोक अग्रवाल और ललित खन्ना के सामने एक और मुसीबत है - उन्हें आने वाले वर्षों में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारियाँ सँभालनी हैं, और इसके लिए उन्हें डिस्ट्रिक्ट में सभी का सहयोग/समर्थन चाहिए होगा - सीओएल के चुनाव के चक्कर में वह उस संभावित सहयोग/समर्थन को खतरे में नहीं डालना चाहेंगे । यह मुसीबत वास्तव में इसलिए भी है, क्योंकि किसी को भी सीओएल के चुनाव में शरत जैन के जीतने की संभावना नहीं दिख रही है - इसलिए उनके सहयोगी/समर्थक के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले नेता लोग भी उनके समर्थन में 'दिख' कर अपनी फजीहत नहीं करवाना चाहते हैं, और उनकी उम्मीदवारी से दूर ही रहना चाहते हैं । शरत जैन और मुकेश अरनेजा के बीच होते दिख रहे सीओएल के चुनाव को एक बेमेल चुनाव के रूप में देखा जा रहा है; मुकेश अरनेजा को चुनावी राजनीति का धुरंधर समझा जाता है, जबकि शरत जैन चुनावी राजनीति के बड़े कच्चे खिलाड़ी के रूप में देखे/पहचाने जाते हैं । रही सही कसर रमेश अग्रवाल की बदनामी पूरी कर देती है । लोगों का मानना/कहना है कि रमेश अग्रवाल के उम्मीदवार होने के कारण शरत जैन की भी स्थिति वैसी ही होगी, जैसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद चुनाव के मामले में अशोक जैन की हुई थी । अशोक जैन तो हालात को समझ/पहचान कर जल्दी ही 'कट' लिए थे, देखना दिलचस्प होगा कि शरत जैन क्या करते हैं ?