मुंबई । इंस्टीट्यूट के निवर्त्तमान प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ अगली सेंट्रल काउंसिल में जो जगह खाली करेंगे, उसे भरने के लिए सुनील पटोदिया ने जिस तरह से तैयारी शुरू कर दी है - उसे देखते हुए उनके चुनाव में सभी की दिलचस्पी पैदा हुई है । मजे की बात यह देखने/सुनने को मिल रही है कि वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी करने वाले दूसरे नए संभावित उम्मीदवार सुनील पटोदिया की चुनावी तैयारी से थोड़ा 'डरे' हुए से दिख रहे हैं, और अपनी उम्मीदवारी पर फैसला करने से पहले सुनील पटोदिया की तैयारियों तथा उसके संभावित नतीजे का आकलन कर लेना चाहते हैं । वेस्टर्न रीजन में हालाँकि पहले भी ऐसे उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे हैं, जिन्हें मजबूत उम्मीदवार के रूप में देखा जाता था - लेकिन जैसा 'शोर' सुनील पटोदिया की उम्मीदवारी को लेकर है, वैसा इससे पहले शायद ही यहाँ कभी देखा गया हो । सुनील पटोदिया की उम्मीदवारी के पक्ष में बहुत से सकारात्मक तत्त्व हैं - प्रफुल्ल छाजेड़ तथा उनके वाले खेमे का समर्थन तो सुनील पटोदिया के साथ है ही; उनकी अपनी खुद की भी प्रभावी सक्रियता है, जिसके चलते उनकी व्यापक पहुँच है; उनके व्यवहार की बड़ी तारीफ है । इसका परिणाम 2012 में वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनाव में देखने को मिला था, जो सुनील पटोदिया का पिछला अंतिम चुनाव था । उस चुनाव में पहली वरीयता के 1205 वोट के साथ सुनील पटोदिया पाँचवें नंबर पर थे, और उन्होंने दूसरे/तीसरे चरण की गिनती में ही बहुत आसानी से जरूरी कोटा प्राप्त कर लिया था । हालाँकि कई लोगों का यह भी मानना और कहना है कि रीजनल काउंसिल का चुनाव और सेंट्रल काउंसिल का चुनाव बिलकुल अलग अलग आधार पर होता है, और रीजनल काउंसिल की कामयाबी को सेंट्रल काउंसिल की कामयाबी की गारंटी नहीं माना जा सकता है ।
इस बात को वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के 2012 के चुनावी नतीजों के आधार पर भी समझा जा सकता है । उस चुनाव में पराग रावल पहली वरीयता के 2067 वोटों के साथ पहले नंबर पर रहे थे, जबकि अनिल भंडारी पहली वरीयता के कुल 772 वोटों के साथ 17वें नंबर पर थे । वर्ष 2015 में सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में लेकिन पराग रावल को सफलता नहीं मिली, जबकि अनिल भंडारी सेंट्रल काउंसिल में प्रवेश पा गए थे । इससे जाहिर है कि रीजनल काउंसिल और सेंट्रल काउंसिल में पहुँचने के रास्ते अलग अलग 'गली-कूँचों' से होकर गुजरते हैं, और रीजनल काउंसिल की कामयाबी के आधार पर सेंट्रल काउंसिल की सफलता के प्रति आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता है । वर्ष 2012 के चुनावी नतीजे का विस्तारित आकलन सुनील पटोदिया के लिए एक गंभीर चुनौती की तरफ इशारा करता है; और वह यह कि पहली वरीयता के वोटों की गिनती में सुनील पटोदिया जिस पाँचवें नंबर पर थे, फाइनल नतीजे में भी वह उसी पाँचवें नंबर पर ही रहे - वोटों की गिनती के बीच में वह कुछ समय के लिए हालाँकि चौथे नंबर पर आये थे, लेकिन अंततः पाँचवें नंबर पर ही वह आ टिके । इससे अन्य वरीयताओं के वोटों को प्राप्त करने में उनकी कमजोरी का संकेत मिलता है । सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में यह कमजोरी बहुत नुकसान पहुँचा सकती है । सुनील पटोदिया की उम्मीदवारी को जिन प्रफुल्ल छाजेड़ के समर्थन के चलते भी मजबूती दिखती है, उन प्रफुल्ल छाजेड़ को भी अन्य वरीयताओं के वोटों के संकट का सामना करना पड़ता रहा था - और अपनी जीत के लिए उन्हें भी अंत तक जूझना पड़ता था ।
प्रफुल्ल छाजेड़ की तरह सुनील पटोदिया की भी खूबी यह है कि उनका व्यक्तिगत करिश्मा बड़ा है; लेकिन इस खूबी की समस्या यह है कि व्यक्तिगत करिश्मे के चलते इनका जो समर्थन आधार है, वह बहुत बिखरा हुआ है, जिसे समेटना और वोटों में तब्दील करना खासा चुनौतीपूर्ण होता है । प्रफुल्ल छाजेड़ को भी हर बार इस चुनौती का सामना करना पड़ा है; और सुनील पटोदिया के नजदीकियों के अनुसार, सुनील पटोदिया को भी इस चुनौती से निपटना होगा । सुनील पटोदिया को हालाँकि सूरत से बड़ा फायदा मिलने की उम्मीद है, जो समर्थन-आधार होने के बावजूद प्रफुल्ल छाजेड़ को कभी नहीं मिल सका । मजे की बात यह है कि जय छैरा के चुनावी मुकाबले से हटने के बाद कई मौजूदा व संभावित उम्मीदवारों की निगाह सूरत के वोटरों पर है । सूरत से सेंट्रल काउंसिल के लिए हालाँकि बालकिशन अग्रवाल को संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, लेकिन कोई भी - खुद सूरत के लोग भी - उन्हें विजेता के रूप में नहीं देख/समझ रहे हैं । इस नाते उम्मीद की जा रही है कि अगली बार सूरत के वोट 'बाहर' के उम्मीदवारों के पास जायेंगे । सूरत के संभावित वोटों के भरोसे ही अहमदाबाद के पुरुषोत्तम खंडेलवाल एक बार फिर सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में उतरने की तैयारी करते हुए देखे/सुने जा रहे हैं । पिछली बार वह मामूली वोटों के अंतर से पिछड़ गए थे । पुरुषोत्तम खंडेलवाल के अलावा, सुनील पटोदिया को भी सूरत से बहुत उम्मीदें हैं । दिलचस्प संयोग यह है कि सुनील पटोदिया लायंस इंटरनेशनल में और पुरुषोत्तम खंडेलवाल रोटरी इंटरनेशनल में सक्रिय हैं, और दोनों को विश्वास है कि सामाजिक क्षेत्र में उनकी सक्रियता उनकी उम्मीदवारी को अवश्य ही लाभ पहुँचायेगी । हालाँकि सामाजिक सक्रियता के मामले में सुनील पटोदिया का पलड़ा भारी है; लायंस इंटरनेशनल में वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन जैसे बड़े/ऊँचे पदों तक पहुँचे हैं - जबकि पुरुषोत्तम खंडेलवाल रोटरी इंटरनेशनल में निचली पाँत के खिलाड़ी/नेता हैं: और रोटरी में वह जिस डिस्ट्रिक्ट में हैं, उसका बड़ा हिस्सा वेस्टर्न रीजन से अलग क्षेत्र में है । इस तरह की बातें चुनावी अभियान पर कैसे क्या असर डालेंगी, यह तो बाद में पता चलेगा - अभी लेकिन यह चुनावी मुकाबले के परिदृश्य को रोमांचक तो बनाती ही हैं ।