देहरादून । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को लेकर सात दिन पहले, 29 फरवरी को प्रकाशित 'रचनात्मक संकल्प' की रिपोर्ट में रजनीश गोयल की बड़ी जीत का जो आकलन प्रस्तुत किया गया था, वह अंततः सच साबित हुआ - और रजनीश गोयल ने 100 वोट के बड़े अंतर से पंकज बिजल्वान को परास्त किया । राजनीतिक 'अर्थों' में देखें/समझें तो इस चुनाव में रजनीश गोयल की जीत नहीं हुई है, उनके माथे पर तो जीत का मुकुट भर सजा है - जीत वास्तव में विनय मित्तल की हुई है; और इस जीत के जरिये विनय मित्तल ने दरअसल डिस्ट्रिक्ट के चुनावी परिदृश्य में एक नया अध्याय लिखा है । इस जीत के जरिये विनय मित्तल ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के सबसे बड़े खिलाड़ी मुकेश गोयल को सिर्फ मात ही नहीं दी है, बल्कि उनकी राजनीतिक चमक को मटियामेट कर दिया है । मुकेश गोयल को चुनावी मुकाबले में पराजय के मुँह तो पहले भी देखने पड़े हैं, लेकिन इस बार की पराजय ने उनकी राजनीति को जिस तरह से धूल चटाई है - उसे देख/जान कर मान लिया गया है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में मुकेश गोयल का टाइम अब खत्म हो गया है । मुकेश गोयल का टाइम खत्म होने के संकेत हालाँकि पिछले दो वर्ष से मिलने लगे थे, जब विनय मित्तल ने पहले अश्वनी काम्बोज को और फिर गौरव गर्ग को 'अपने' उम्मीदवार के रूप में चुना, और मुकेश गोयल को उनका समर्थन करने के लिए 'मजबूर' किया । इन संकेतों के बावजूद, डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख लोगों को लगता रहा था कि मुकेश गोयल को जिस वर्ष पैसे वाला उम्मीदवार मिल जायेगा, उस वर्ष वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में पुनर्वापसी कर लेंगे । इसलिए इस वर्ष का चुनाव खासा महत्त्वपूर्ण था और लायन राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले हर छोटे-बड़े नेता की निगाहें इस बार के चुनाव पर थीं ।
इस बार के चुनाव में मुकेश गोयल के सामने अपनी राजनीतिक सत्ता को बचाने की चुनौती थी, तो विनय मित्तल के सामने यह साबित करने का मौका था कि पिछले कई वर्षों से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में मुकेश गोयल का जो झंडा लहरा रहा था, वह मुकेश गोयल का नहीं बल्कि वास्तव में उनका करिश्मा था - और मुकेश गोयल उनकी मदद के चलते डिस्ट्रिक्ट की राजनीति के मसीहा बने हुए थे । विनय मित्तल जब तक मुकेश गोयल के साथ थे, मुकेश गोयल की मुट्ठी बंद रही - जिसे लाख की समझा जाता रहा; लेकिन विनय मित्तल के अलग होते ही मुकेश गोयल की मुट्ठी खुल गई - और लोगों देखा/पाया कि वह तो खाक की है । यह पहला चुनाव है, जिसे मुकेश गोयल ने विनय मित्तल की मदद के बिना लड़ा, और नतीजा सामने है । मजे की बात यह है कि करीब एक महीने पहले तक मुकेश गोयल के नजदीकी इस बार के चुनाव में बराबर की टक्कर देख रहे थे, और चुनावी नतीजा आने के बाद वह कह रहे हैं कि मुकेश गोयल इतनी बुरी तरह से चुनाव हार जायेंगे - यह उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था । लेकिन सच यह है कि इस बार का चुनाव मुकेश गोयल की पकड़ में शुरू से ही नहीं था, और देखने की बात सिर्फ यह थी कि मुकेश गोयल कम अंतर से चुनाव हारते हैं, या बड़े अंतर से हारते हैं । इन पंक्तियों के लेखक को मुकेश गोयल की राजनीति को नजदीक से देखने और जानने/समझने का मौका मिला है; उसी अनुभवपूर्ण समझ के आधार पर इन पंक्तियों के लेखक ने इस बार के चुनाव में मुकेश गोयल वाले खेमे में तैयारी की उस कसावट का आभाव पाया, जो उनकी राजनीति की मुख्य - और निर्णायक ताकत हुआ करती थी । इस बार के चुनाव में लेकिन किसी भी मौके पर ऐसा नहीं लगा कि पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के अभियान पर मुकेश गोयल का कोई कंट्रोल है । वास्तव में, कंट्रोल तो मुकेश गोयल का कभी भी नहीं होता था - चुनाव अभियान पर कंट्रोल तो विनय मित्तल का होता/रहता था, मुकेश गोयल का तो बस नाम रहता था ।
इस 'सच्चाई' को कुछेक क्लब्स तथा पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अनीता गुप्ता को वोटिंग अधिकार न मिलने पर हुए हंगामे के पीछे के कारणों में देखा/पहचाना जा सकता है । समय से इंटरनेशनल ड्यूज न जमा होने के कारण कुछेक क्लब्स को वोटिंग अधिकार नहीं मिले; अनीता गुप्ता का क्लब भी चूँकि ऐसे क्लब्स में शामिल था, इसलिए पूर्व गवर्नर के रूप में उन्हें भी वोटिंग का अधिकार नहीं मिला । इस पर भारी बबाल हुआ, जिसके चलते पुलिस बुलाने तक की नौबत आ गई । सवाल यह है कि ऐसी नौबत आई ही क्यों ? उल्लेखनीय है कि इंटरनेशनल ड्यूज लायंस इंटरनेशनल कार्यालय में पहुँचने होते हैं, और उसी के आधार पर उक्त कार्यालय वोटिंग अधिकार तय करता है । जाहिर है कि यह क्लब के पदाधिकारियों - और या उनके वोटों पर हक रखने वाले नेताओं - की जिम्मेदारी होती है कि वह समय से ड्यूज जमा कराएँ । ऐसा यदि नहीं हुआ, तो इसके लिए दूसरों को जिम्मेदार भला कैसे ठहराया जा सकता है ? पंकज बिजल्वान के समर्थकों ने इसके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीवा अग्रवाल तथा विनय मित्तल को जिम्मेदार ठहराते हुए जमकर हंगामा मचाया । उनका कहना रहा कि इन्होंने जानबूझ कर क्लब्स को आगाह नहीं किया और ड्यूज के मामले में तथ्यों को छिपाया, जिसके चलते क्लब्स के ड्यूज समय से जमा नहीं हो सके । यदि यह आरोप सही भी है, तो भी इसके लिए संजीवा अग्रवाल व विनय मित्तल को जिम्मेदार ठहरा कर पंकज बिजल्वान के समर्थक अपनी जिम्मेदारी से कैसे बच सकते हैं ? वह एक बड़ी लड़ाई लड़ रहे थे, अपनी ताकत को संगठित करने की जिम्मेदारी उनकी ही थी - अपनी ताकत को संगठित करने की जिम्मेदारी वह दूसरों के भरोसे कैसे छोड़ बैठे ? मुकेश गोयल चुनावी राजनीति के बड़े खिलाड़ी समझे जाते रहे हैं, उन्होंने यह जरूरत और सावधानी क्यों नहीं रखी कि उनके समर्थक क्लब्स के ड्यूज समय से जमा हों, ताकि उनके वोटिंग अधिकार सुरक्षित बनें ? बात वही है कि यह सब काम विनय मित्तल करते थे; अब की बार वह मुकेश गोयल की तरफ से यह काम करने के लिए नहीं थे, तो यह काम हुआ ही नहीं । मजेदार किस्सा अनीता गुप्ता का रहा - वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रही हैं, उन्हें यह नियम नहीं पता है क्या कि किसी भी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को कोई भी अधिकार, वोट देने का अधिकार भी, तब मिलेगा - जब वह एक गुड स्टैंडिंग क्लब का सदस्य होगा । अनीता गुप्ता अपने क्लब के ड्यूज समय से जमा करवाने के लिए तो प्रयास नहीं करेंगी, और चाहेंगी कि पूर्व गवर्नर के रूप में उन्हें वोट देने का अधिकार मिल जाए - नहीं मिलेगा, तो हंगामा करेंगी । पंकज बिजल्वान की बदकिस्मती रही कि वह ऐसे नेताओं के भरोसे चुनाव जीतने की उम्मीद कर रहे थे । उनकी चुनावी लुटिया तो डूबनी ही थी, और वह डूब भी गई - और कुछ गहरी ही डूब गई । इससे हालाँकि पंकज बिजल्वान का तो ज्यादा कुछ नहीं बिगड़ा; लेकिन मुकेश गोयल की राजनीति का जो गुब्बारा फूला हुआ था - उसकी सारी हवा जरूर निकल गई ।
इस बार के चुनाव में मुकेश गोयल के सामने अपनी राजनीतिक सत्ता को बचाने की चुनौती थी, तो विनय मित्तल के सामने यह साबित करने का मौका था कि पिछले कई वर्षों से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में मुकेश गोयल का जो झंडा लहरा रहा था, वह मुकेश गोयल का नहीं बल्कि वास्तव में उनका करिश्मा था - और मुकेश गोयल उनकी मदद के चलते डिस्ट्रिक्ट की राजनीति के मसीहा बने हुए थे । विनय मित्तल जब तक मुकेश गोयल के साथ थे, मुकेश गोयल की मुट्ठी बंद रही - जिसे लाख की समझा जाता रहा; लेकिन विनय मित्तल के अलग होते ही मुकेश गोयल की मुट्ठी खुल गई - और लोगों देखा/पाया कि वह तो खाक की है । यह पहला चुनाव है, जिसे मुकेश गोयल ने विनय मित्तल की मदद के बिना लड़ा, और नतीजा सामने है । मजे की बात यह है कि करीब एक महीने पहले तक मुकेश गोयल के नजदीकी इस बार के चुनाव में बराबर की टक्कर देख रहे थे, और चुनावी नतीजा आने के बाद वह कह रहे हैं कि मुकेश गोयल इतनी बुरी तरह से चुनाव हार जायेंगे - यह उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था । लेकिन सच यह है कि इस बार का चुनाव मुकेश गोयल की पकड़ में शुरू से ही नहीं था, और देखने की बात सिर्फ यह थी कि मुकेश गोयल कम अंतर से चुनाव हारते हैं, या बड़े अंतर से हारते हैं । इन पंक्तियों के लेखक को मुकेश गोयल की राजनीति को नजदीक से देखने और जानने/समझने का मौका मिला है; उसी अनुभवपूर्ण समझ के आधार पर इन पंक्तियों के लेखक ने इस बार के चुनाव में मुकेश गोयल वाले खेमे में तैयारी की उस कसावट का आभाव पाया, जो उनकी राजनीति की मुख्य - और निर्णायक ताकत हुआ करती थी । इस बार के चुनाव में लेकिन किसी भी मौके पर ऐसा नहीं लगा कि पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के अभियान पर मुकेश गोयल का कोई कंट्रोल है । वास्तव में, कंट्रोल तो मुकेश गोयल का कभी भी नहीं होता था - चुनाव अभियान पर कंट्रोल तो विनय मित्तल का होता/रहता था, मुकेश गोयल का तो बस नाम रहता था ।
इस 'सच्चाई' को कुछेक क्लब्स तथा पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अनीता गुप्ता को वोटिंग अधिकार न मिलने पर हुए हंगामे के पीछे के कारणों में देखा/पहचाना जा सकता है । समय से इंटरनेशनल ड्यूज न जमा होने के कारण कुछेक क्लब्स को वोटिंग अधिकार नहीं मिले; अनीता गुप्ता का क्लब भी चूँकि ऐसे क्लब्स में शामिल था, इसलिए पूर्व गवर्नर के रूप में उन्हें भी वोटिंग का अधिकार नहीं मिला । इस पर भारी बबाल हुआ, जिसके चलते पुलिस बुलाने तक की नौबत आ गई । सवाल यह है कि ऐसी नौबत आई ही क्यों ? उल्लेखनीय है कि इंटरनेशनल ड्यूज लायंस इंटरनेशनल कार्यालय में पहुँचने होते हैं, और उसी के आधार पर उक्त कार्यालय वोटिंग अधिकार तय करता है । जाहिर है कि यह क्लब के पदाधिकारियों - और या उनके वोटों पर हक रखने वाले नेताओं - की जिम्मेदारी होती है कि वह समय से ड्यूज जमा कराएँ । ऐसा यदि नहीं हुआ, तो इसके लिए दूसरों को जिम्मेदार भला कैसे ठहराया जा सकता है ? पंकज बिजल्वान के समर्थकों ने इसके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीवा अग्रवाल तथा विनय मित्तल को जिम्मेदार ठहराते हुए जमकर हंगामा मचाया । उनका कहना रहा कि इन्होंने जानबूझ कर क्लब्स को आगाह नहीं किया और ड्यूज के मामले में तथ्यों को छिपाया, जिसके चलते क्लब्स के ड्यूज समय से जमा नहीं हो सके । यदि यह आरोप सही भी है, तो भी इसके लिए संजीवा अग्रवाल व विनय मित्तल को जिम्मेदार ठहरा कर पंकज बिजल्वान के समर्थक अपनी जिम्मेदारी से कैसे बच सकते हैं ? वह एक बड़ी लड़ाई लड़ रहे थे, अपनी ताकत को संगठित करने की जिम्मेदारी उनकी ही थी - अपनी ताकत को संगठित करने की जिम्मेदारी वह दूसरों के भरोसे कैसे छोड़ बैठे ? मुकेश गोयल चुनावी राजनीति के बड़े खिलाड़ी समझे जाते रहे हैं, उन्होंने यह जरूरत और सावधानी क्यों नहीं रखी कि उनके समर्थक क्लब्स के ड्यूज समय से जमा हों, ताकि उनके वोटिंग अधिकार सुरक्षित बनें ? बात वही है कि यह सब काम विनय मित्तल करते थे; अब की बार वह मुकेश गोयल की तरफ से यह काम करने के लिए नहीं थे, तो यह काम हुआ ही नहीं । मजेदार किस्सा अनीता गुप्ता का रहा - वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रही हैं, उन्हें यह नियम नहीं पता है क्या कि किसी भी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को कोई भी अधिकार, वोट देने का अधिकार भी, तब मिलेगा - जब वह एक गुड स्टैंडिंग क्लब का सदस्य होगा । अनीता गुप्ता अपने क्लब के ड्यूज समय से जमा करवाने के लिए तो प्रयास नहीं करेंगी, और चाहेंगी कि पूर्व गवर्नर के रूप में उन्हें वोट देने का अधिकार मिल जाए - नहीं मिलेगा, तो हंगामा करेंगी । पंकज बिजल्वान की बदकिस्मती रही कि वह ऐसे नेताओं के भरोसे चुनाव जीतने की उम्मीद कर रहे थे । उनकी चुनावी लुटिया तो डूबनी ही थी, और वह डूब भी गई - और कुछ गहरी ही डूब गई । इससे हालाँकि पंकज बिजल्वान का तो ज्यादा कुछ नहीं बिगड़ा; लेकिन मुकेश गोयल की राजनीति का जो गुब्बारा फूला हुआ था - उसकी सारी हवा जरूर निकल गई ।