करनाल । इंस्टीट्यूट की करनाल ब्रांच के पदाधिकारियों के बीच इंस्टीट्यूट प्रशासन द्वारा मनमाने तरीके से दिनेश ग्रोवर की जगह स्वाति मित्तल को ट्रेजरर 'बनाये' जाने के फैसले के खिलाफ नाराजगी है, और इसे लेकर वह इंस्टीट्यूट प्रशासन के साथ भिड़ने के मूड में दिख रहे हैं । उनके नजदीकियों का कहना है कि उनके पास हालाँकि सीमित विकल्प ही हैं । मामले से जुड़े 'दूसरे' पक्ष के लोगों का दावा लेकिन यह है कि पदाधिकारियों का 'नाटक' कुछ ही दिनों का है और उनका 'मूड' जल्दी ही ठीक हो जायेगा और वह इंस्टीट्यूट के फैसले को स्वीकार कर लेंगे । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट प्रशासन की तरफ से करनाल ब्रांच के चेयरमैन दीपक कपूर को यह जानकारी देते हुए पत्र मिला है कि इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी की सलाहानुसार, ब्रांच के ट्रेजरर पद पर हुए दिनेश ग्रोवर के चुनाव को अमान्य घोषित करते हुए स्वाति मित्तल को ट्रेजरर नियुक्त किया जाता है । करनाल ब्रांच के पदाधिकारी यह पत्र मिलने के बाद से खासे नाराज और गुस्से में हैं और आगे की कार्रवाई को लेकर विचार-विमर्श कर रहे हैं । इस विचार-विमर्श में उन्हें जो एक जोरदार विकल्प नजर आ रहा है, वह अपने अपने पदों से इस्तीफा देने का है । यह कदम उठाने से पहले वह लेकिन इसके नफे/नुकसान का आकलन कर लेना चाहते हैं । करनाल ब्रांच के पदाधिकारी इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता के साथ-साथ नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ट्रेजरर पंकज गुप्ता से बुरी तरह खफा हैं । उनका आरोप है कि करनाल ब्रांच के एक्स-ऑफिसो होने के नाते पंकज गुप्ता ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया और अपने स्वार्थ में वह तमाशबीन बने रहे, जिसके चलते इंस्टीट्यूट प्रशासन को करनाल ब्रांच के मामले में मनमानी करने का मौका मिला ।
करनाल ब्रांच के पदाधिकारियों का कहना है कि जिस 'आधार' पर करनाल ब्रांच के मामले में कार्रवाई की गई है; ठीक वैसे ही 'आधार' यमुना नगर, अमृतसर तथा भिवानी ब्रांच में हैं - लेकिन वहाँ कोई कार्रवाई नहीं की गई है । उनका आरोप है कि इसी से जाहिर है कि करनाल ब्रांच के मामले में की गई कार्रवाई मनमानी तथा पक्षपातपूर्ण है, और यह करनाल ब्रांच की बनने वाली बिल्डिंग में पैसे 'बनाने' की कोशिशों से जुड़ी हुई है । करनाल ब्रांच के पदाधिकारियों को दरअसल इसीलिए नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ट्रेजरर पंकज गुप्ता के रवैये पर हैरानी है । उल्लेखनीय है कि करनाल ब्रांच के मामले में शिकायत मिलने पर एक्स-ऑफिसो सदस्य होने के नाते पंकज गुप्ता को मामले में संज्ञान लेने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिस पर पंकज गुप्ता ने बहुत ही चलताऊ तरीके से रिएक्ट किया था । उनके रवैये से पहले ऐसा लगा था, जैसे कि मामले में वह ब्रांच के पदाधिकारियों के साथ हैं - लेकिन फिर पंकज गुप्ता ने ऐसी पलटी मारी कि वह सीन से गायब ही हो गए और इंस्टीट्यूट प्रशासन ने मनमाना, एकतरफा और पक्षपातपूर्ण फैसला ब्रांच पर थोप दिया । कई लोगों का मानना और कहना है कि करनाल ब्रांच के मामले में जो कार्रवाई हुई है, वैसी ही कार्रवाई यदि यमुना नगर, अमृतसर तथा भिवानी ब्रांच के मामलों में भी हुई होती, तब फिर उक्त कार्रवाई उचित और न्यायपूर्ण 'दिखती' - लेकिन जिस तरह से इंस्टीट्यूट प्रशासन ने सिर्फ करनाल ब्रांच के मामले में कार्रवाई की है, उसके कारण यह कार्रवाई तथा इसके पीछे अतुल गुप्ता व पंकज गुप्ता की भूमिका संदेहास्पद हो गई है ।
करनाल ब्रांच के पदाधिकारियों के चुनाव/चयन का जो झमेला है, और जिसमें इंस्टीट्यूट प्रशासन की कार्रवाई को मनमानी तथा पक्षपातपूर्ण माना/बताया जा रहा है - उसके पीछे करनाल ब्रांच की बनने वाली बिल्डिंग की 'कमान' हाथ में रखने की करनाल से लेकर दिल्ली तक के लोगों की कोशिशों को देखा/पहचाना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि करीब ढाई वर्ष पहले बिल्डिंग के लिए जमीन मिल चुकी है, और जल्दी ही उस पर निर्माण कार्य शुरू होना है । मजेदार तथ्य यह भी है कि उक्त बिल्डिंग के लिए बनी कमेटी के चेयरमैन पद को लेकर इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के पिछले टर्म में अतुल गुप्ता और विजय गुप्ता के बीच खासी 'जंग' रही थी, जिसमें विजय गुप्ता विजयी रहे थे । मौजूदा टर्म में विजय गुप्ता चूँकि अपनी जगह सुरक्षित नहीं रख सके, इसलिए बिल्डिंग कमेटी के चेयरमैन पद पर अतुल गुप्ता ने फिर से नजरें टिकाईं, लेकिन वह वाइस प्रेसीडेंट बन गए । करनाल ब्रांच की बिल्डिंग से जुड़ी 'राजनीति' से परिचित लोगों का कहना/बताना है कि प्रेसीडेंट बन जाने के बावजूद अतुल गुप्ता करनाल ब्रांच की बिल्डिंग के मामले में विजय गुप्ता से मिली पराजय की टीस को भूले नहीं हैं, और करनाल ब्रांच में 'अपने' सदस्यों के जरिये वह बिल्डिंग के मामले में अपनी 'पकड़' बनाये रखना चाहते हैं । इंस्टीट्यूट प्रशासन ने नियम-कानूनों का वास्ता देकर मनमाने व पक्षपातपूर्ण तरीके से करनाल ब्रांच के मामले में जो कार्रवाई की है, उसे अतुल गुप्ता की 'पकड़' बनाये रखने की कोशिश के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है । मामले में पंकज गुप्ता के पलटी मारने को अतुल गुप्ता के 'खेल' के हिस्से के रूप में ही जाना/देखा गया है । इंस्टीट्यूट प्रशासन के फैसले पर करनाल ब्रांच के पदाधिकारियों की नाराजगी से लेकिन लग रहा है कि यह मामला अभी जल्दी शांत होने वाला नहीं है ।
करनाल ब्रांच के पदाधिकारियों का कहना है कि जिस 'आधार' पर करनाल ब्रांच के मामले में कार्रवाई की गई है; ठीक वैसे ही 'आधार' यमुना नगर, अमृतसर तथा भिवानी ब्रांच में हैं - लेकिन वहाँ कोई कार्रवाई नहीं की गई है । उनका आरोप है कि इसी से जाहिर है कि करनाल ब्रांच के मामले में की गई कार्रवाई मनमानी तथा पक्षपातपूर्ण है, और यह करनाल ब्रांच की बनने वाली बिल्डिंग में पैसे 'बनाने' की कोशिशों से जुड़ी हुई है । करनाल ब्रांच के पदाधिकारियों को दरअसल इसीलिए नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ट्रेजरर पंकज गुप्ता के रवैये पर हैरानी है । उल्लेखनीय है कि करनाल ब्रांच के मामले में शिकायत मिलने पर एक्स-ऑफिसो सदस्य होने के नाते पंकज गुप्ता को मामले में संज्ञान लेने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिस पर पंकज गुप्ता ने बहुत ही चलताऊ तरीके से रिएक्ट किया था । उनके रवैये से पहले ऐसा लगा था, जैसे कि मामले में वह ब्रांच के पदाधिकारियों के साथ हैं - लेकिन फिर पंकज गुप्ता ने ऐसी पलटी मारी कि वह सीन से गायब ही हो गए और इंस्टीट्यूट प्रशासन ने मनमाना, एकतरफा और पक्षपातपूर्ण फैसला ब्रांच पर थोप दिया । कई लोगों का मानना और कहना है कि करनाल ब्रांच के मामले में जो कार्रवाई हुई है, वैसी ही कार्रवाई यदि यमुना नगर, अमृतसर तथा भिवानी ब्रांच के मामलों में भी हुई होती, तब फिर उक्त कार्रवाई उचित और न्यायपूर्ण 'दिखती' - लेकिन जिस तरह से इंस्टीट्यूट प्रशासन ने सिर्फ करनाल ब्रांच के मामले में कार्रवाई की है, उसके कारण यह कार्रवाई तथा इसके पीछे अतुल गुप्ता व पंकज गुप्ता की भूमिका संदेहास्पद हो गई है ।
करनाल ब्रांच के पदाधिकारियों के चुनाव/चयन का जो झमेला है, और जिसमें इंस्टीट्यूट प्रशासन की कार्रवाई को मनमानी तथा पक्षपातपूर्ण माना/बताया जा रहा है - उसके पीछे करनाल ब्रांच की बनने वाली बिल्डिंग की 'कमान' हाथ में रखने की करनाल से लेकर दिल्ली तक के लोगों की कोशिशों को देखा/पहचाना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि करीब ढाई वर्ष पहले बिल्डिंग के लिए जमीन मिल चुकी है, और जल्दी ही उस पर निर्माण कार्य शुरू होना है । मजेदार तथ्य यह भी है कि उक्त बिल्डिंग के लिए बनी कमेटी के चेयरमैन पद को लेकर इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के पिछले टर्म में अतुल गुप्ता और विजय गुप्ता के बीच खासी 'जंग' रही थी, जिसमें विजय गुप्ता विजयी रहे थे । मौजूदा टर्म में विजय गुप्ता चूँकि अपनी जगह सुरक्षित नहीं रख सके, इसलिए बिल्डिंग कमेटी के चेयरमैन पद पर अतुल गुप्ता ने फिर से नजरें टिकाईं, लेकिन वह वाइस प्रेसीडेंट बन गए । करनाल ब्रांच की बिल्डिंग से जुड़ी 'राजनीति' से परिचित लोगों का कहना/बताना है कि प्रेसीडेंट बन जाने के बावजूद अतुल गुप्ता करनाल ब्रांच की बिल्डिंग के मामले में विजय गुप्ता से मिली पराजय की टीस को भूले नहीं हैं, और करनाल ब्रांच में 'अपने' सदस्यों के जरिये वह बिल्डिंग के मामले में अपनी 'पकड़' बनाये रखना चाहते हैं । इंस्टीट्यूट प्रशासन ने नियम-कानूनों का वास्ता देकर मनमाने व पक्षपातपूर्ण तरीके से करनाल ब्रांच के मामले में जो कार्रवाई की है, उसे अतुल गुप्ता की 'पकड़' बनाये रखने की कोशिश के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है । मामले में पंकज गुप्ता के पलटी मारने को अतुल गुप्ता के 'खेल' के हिस्से के रूप में ही जाना/देखा गया है । इंस्टीट्यूट प्रशासन के फैसले पर करनाल ब्रांच के पदाधिकारियों की नाराजगी से लेकिन लग रहा है कि यह मामला अभी जल्दी शांत होने वाला नहीं है ।