Wednesday, December 30, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की संभावित उम्मीदवारी के संदर्भ में इंस्टीट्यूट में अच्छा इंतजाम करना खुद अशोक गुप्ता को भी व्यर्थ ही गया लग रहा है

जयपुर । रोटरी इंस्टीट्यूट 2015 में शामिल होने आए रोटरी के हर आम और खास को खुश खुश वापस भेजने में अशोक गुप्ता भले ही कामयाब रहे हैं, किंतु उनकी यह कामयाबी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की तरफ बढ़ती उनकी राह को आसान बनाएगी - इसका विश्वास उनके नजदीकियों व शुभचिंतकों को भी नहीं है । रोटरी इंस्टीट्यूट 2015 के चेयरमैन के रूप में अशोक गुप्ता ने जो व्यवस्था की और आमंत्रितों की जिस तरह की आवभगत हुई, उसकी चैतरफा तारीफ ही सुनने को मिल रही है । रोटरी इंस्टीट्यूट में शामिल होने गया हर छोटा/बड़ा रोटेरियन अशोक गुप्ता की आयोजन-क्षमता का गुण गाता हुआ ही सुना जा रहा है - किंतु इस उपलब्धि के राजनीतिक लाभ में 'ट्रांसफर' हो सकने का सवाल जब आता है, तब सभी लोग अलग अलग राय सुनाने/बताने लगते हैं । तो क्या अशोक गुप्ता ने जो मेहनत की है, उसका उन्हें कोई राजनीतिक फल नहीं मिलेगा ? इंस्टीट्यूट जयपुर में करने की लॉबीइंग करने से लेकर उसे आयोजित करने में लगा अशोक गुप्ता का श्रम क्या बेकार चला जायेगा ? सभी मानते और कहते हैं कि जयपुर में इंस्टीट्यूट का आयोजन कराने/करने के पीछे अशोक गुप्ता का मुख्य उद्देश्य इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए संभावित अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में माहौल बनाना तथा रोटरी के बड़े नेताओं के बीच अपनी धाक जमाना था । 
अशोक गुप्ता अपनी धाक दिखाने/ज़माने में तो सफल हुए हैं, लेकिन इस सफलता के बावजूद इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए बड़े नेताओं का समर्थन जुटाने की उनकी कोशिश सफल नहीं हो सकी है । अशोक गुप्ता के ही नजदीकियों का कहना है कि अशोक गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी के बाबत इंस्टीट्यूट में जयपुर में इकट्ठा हुए रोटरी के सभी बड़े नेताओं की समर्थन की हामी भरवाने की कोशिश तो खूब की, लेकिन सभी बड़े नेता बड़ी सफाई और चालाकी से हामी भरने से बच निकले । उल्लेखनीय है कि अशोक गुप्ता को कल्याण बनर्जी, सुशील गुप्ता, शेखर मेहता, मनोज देसाई आदि का समर्थन माना/बताया जाता है - लेकिन इनमें से कोई भी अभी तक अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी की खुली वकालत करता हुआ नहीं सुना गया है । अशोक गुप्ता और उनके समर्थकों के लिए यह बात चिंता की इसलिए है क्योंकि अशोक गुप्ता के साथ इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए और कई उम्मीदवारों की उम्मीदवारी भी प्रस्तुत होनी है, ऐसे में यदि उनके समर्थक समझे जाने वाले नेताओं ने ही उनके समर्थन से हाथ खींच लिया - तो फिर उनका तो सारा खेल ही गड़बड़ा जायेगा । अशोक गुप्ता को सबसे ज्यादा मदद पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता से मिलने की उम्मीद रही है, लेकिन अब सुशील गुप्ता के रंग-ढंग ही उन्हें बदले बदले से नजर आ रहे हैं । सुशील गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट से जिस तरह अचानक से रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी प्रस्तुत हुई है, उससे अशोक गुप्ता के कान खड़े हुए हैं । जयपुर इंस्टीट्यूट से लौटते ही रंजन ढींगरा ने जिस तरह से अपने क्लब में अपनी उम्मीदवारी का प्रस्ताव पास कराया है, उससे इंस्टीट्यूट को प्रभावी तरीके से आयोजित करने को लेकर मिली प्रशंसा से प्राप्त अशोक गुप्ता का उत्साह हवा हो गया है । रंजन ढींगरा को सुशील गुप्ता के बहुत खास नजदीकी के रूप में देखा/पहचाना जाता है - दरअसल इसीलिए अशोक गुप्ता को सुशील गुप्ता के इरादे कुछ ठीक नहीं लग रहे हैं ।
अशोक गुप्ता के लिए राहत की बात यही है कि प्रतिस्पर्द्धी खेमे में भी अभी तक उम्मीदवार को लेकर एकमतता नहीं बनी है, और वहाँ भी कई उम्मीदवारों के बीच भारी उठा-पटक है । राजेंद्र उर्फ राजा साबू खेमे से यूँ तो भरत पांड्या की उम्मीदवारी सबसे प्रबल है; किंतु दीपक कपूर और सुरेंद्र सेठ भी राजा साबू खेमे के भरोसे ही ताल ठोक रहे हैं । देश में पोलियो अभियान के मुखिया के रूप में काम करते रहे दीपक कपूर की लोगों के बीच पहचान तो खूब है, किंतु इस पहचान को समर्थन में बदलने की कोई कोशिश दीपक कपूर की तरफ से होती हुई नहीं दिखी है - लोगों ने पाया/समझा तो यह है कि इस तरह की किसी कोशिश के लिए दीपक कपूर प्रेरित भी नहीं दिखे हैं । दीपक कपूर को जानने वालों का कहना तो यह है कि एक उम्मीदवार के रूप में 'दिखना' और काम करना उनके बस में शायद है भी नहीं । दीपक कपूर का रोटरी से जो जुड़ाव रहा है, उसमें रोटरी का काम करने की बजाए रोटरी में बिजनेस करने वाला मामला ज्यादा है - इसलिए उनकी उम्मीदवारी के प्रति स्वीकार्यता बनना लोगों को मुश्किल लग रहा है । दीपक कपूर की उम्मीदवारी में 'दम' देखने वाले लोगों का हालाँकि तर्क है कि पोलियो अभियान के मुखिया के रूप में दीपक कपूर ने चूँकि नेताओं को तरह तरह से उपकृत किया है, इसलिए उन उपकारों के बदले में दीपक कपूर अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन की उम्मीद कर सकते हैं । राजा साबू खेमे से दीपक कपूर के उम्मीदवार होने की स्थिति में अशोक गुप्ता के लिए नॉर्थ में समर्थन जुटाना मुश्किल हो जायेगा; जबकि अशोक गुप्ता नॉर्थ के लोगों के भरोसे ही इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने की दौड़/होड़ में हैं । 
अशोक गुप्ता को लेकिन विरोधी खेमे की बजाए अपने खेमे के नेताओं से ही समस्या पैदा होती हुई दिख रही है । उनके खेमे के नेताओं में सुशील गुप्ता तथा शेखर मेहता की निगाह चूँकि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के पद पर है, इसलिए इन दोनों के राजा साबू के उम्मीदवार के खिलाफ जाने की किसी को भी बहुत उम्मीद नहीं है; और जहाँ तक मनोज देसाई की बात है, उनके लिए ज्यादा कुछ कर सकने के मौके नहीं हैं । पिछली बार राजा साबू खेमे ने उनके इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में ज्यादा रोड़े नहीं डाले थे, इसका ख्याल रखते हुए उनके लिए भी सीमा से बाहर जाकर अशोक गुप्ता के लिए कुछ कर पाना मुश्किल ही होगा । अशोक गुप्ता अपने समर्थक नेताओं की 'कमजोरियों' को चूँकि जानते/पहचानते हैं, इसलिए ही उन्होंने इंस्टीट्यूट में उन्हें घेरने तथा अपनी उम्मीदवारी के लिए उन्हें समर्थन व्यक्त करने के लिए तैयार करने का प्रयास किया था । नेता लोग लेकिन ज्यादा घाघ निकले - वह अशोक गुप्ता के इंतजामों की तो तारीफ करते रहे, लेकिन उनकी उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त करने से बचते रहे । 
अशोक गुप्ता के नजदीकियों का कहना है कि रोटरी इंस्टीट्यूट में अशोक गुप्ता ने जो बढ़िया इंतजाम किए थे, वह सिर्फ तारीफ बटोरने के लिए नहीं किए थे - इंतजामों के जरिए उन्होंने वास्तव में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की अपनी संभावित उम्मीदवारी के लिए रोटरी के बड़े नेताओं का समर्थन 'प्राप्त' करने का जुगाड़ बैठाया था । उनका वह जुगाड़ तो काम करता हुआ नहीं दिखा है, और इसलिए ही अशोक गुप्ता का इंस्टीट्यूट में अच्छा इंतजाम करना इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उनकी संभावित उम्मीदवारी के संदर्भ में व्यर्थ ही गया लग रहा है ।

Tuesday, December 29, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में मुकेश अरनेजा ने सतीश सिंघल के गवर्नर-काल में 'जितने क्लब उतने असिस्टेंट गवर्नर' बनाने का अभियान छेड़ा

नई दिल्ली/गाजियाबाद । सतीश सिंघल के गवर्नर-काल के पदों का खजाना लुटा कर मुकेश अरनेजा जिस तरह से घर घर जाकर दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए वोट जुटाने के अभियान में लगे हैं, उसके कारण चुनावी परिदृश्य खासा रोचक हो गया है । परिदृश्य रोचक होने का कारण यह है कि पिछले तीन दिनों में मुकेश अरनेजा ने सतीश सिंघल के गवर्नर-काल के 25-30 असिस्टेंट गवर्नर 'बना' दिए हैं । इस रफ्तार को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि जल्दी ही यह संख्या क्लब्स की संख्या जितनी हो जाएगी । इस तरह, मुकेश अरनेजा ने सतीश सिंघल के गवर्नर-काल को रोटरी के इतिहास का एक ऐसा अनोखा वर्ष बनाने की तैयारी कर ली है, जिसमें 'जितने क्लब उतने ही असिस्टेंट गवर्नर' होंगे । उल्लेखनीय है कि सतीश सिंघल ने खुद यह घोषणा भी की हुई है कि अपने गवर्नर-काल में वह ऐसे ऐसे काम करेंगे, जैसे रोटरी के 110 वर्षों के इतिहास में कभी नहीं हुए होंगे । मुकेश अरनेजा ने लगता है कि ऐसे कामों की एक बानगी पेश कर दी है । इस तरीके को अपना कर मुकेश अरनेजा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में दी गई उस अंडरटेकिंग को भी ठेंगा दिखा दिया है, जिसमें उम्मीदवार और किसी भी डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारी द्वारा चुनाव प्रचार से दूर रहने का वायदा किया गया है । 
मुकेश अरनेजा द्वारा असिस्टेंट गवर्नर का पद 'बाँटने' की कार्रवाई में लेकिन यह एक बुरी बात हुई कि असिस्टेंट गवर्नर 'बनने' वाले रोटेरियन असिस्टेंट गवर्नर 'बनने' का 'सुख' नहीं ले पाए : हुआ दरअसल यह कि असिस्टेंट गवर्नर बने एक रोटेरियन ने दूसरे क्लब के सक्रिय व प्रभावी रोटेरियन को फोन पर अपने असिस्टेंट गवर्नर बनने की बात बताते हुए उससे कहा कि 'मुझे बधाई दे'; जबाव में उसे लेकिन सुनने को मिला कि तू पहले मुझे बधाई दे, मैं तो कल ही असिस्टेंट गवर्नर 'बना' दिया गया था । उनका असिस्टेंट गवर्नर बनने का उत्साह और सुख कुछ ठंडा पड़ा, लेकिन इसे बनाए रखने के लिए उन्होंने अन्य क्लब के प्रमुख व वरिष्ठ साथियों को फोन किया, जिनमें से कुछ तो असिस्टेंट गवर्नर 'बने' मिले - लेकिन कुछ ऐसे भी मिले जो असिस्टेंट गवर्नर नहीं बने थे । यह सुन/जान कर उन्हें कुछ संतोष मिला । लेकिन यह संतोष ज्यादा देर उनके पास रह नहीं पाया - क्योंकी असिस्टेंट गवर्नर नहीं बने रोटेरियंस ने दस-पंद्रह मिनट बाद ही पलट कर उन्हें फोन करके बताया कि उनकी अरनेजा जी से बात हुई है, और अरनेजा जी ने उनसे कहा है कि कल/परसों में वह उनके पास आते हैं और उन्हें असिस्टेंट गवर्नर बनाते हैं ।
इस समय जो चाहे वह सतीश सिंघल के गवर्नर-काल का असिस्टेंट गवर्नर 'बन' जाए - यह देख/जान कर असिस्टेंट गवर्नर बने रोटेरियंस का उत्साह ढेर हो गया है, और उन्हें लगने लगा है कि मुकेश अरनेजा उन्हें 'बिकाऊ' समझ रहे हैं और वास्तव में उन्हें उल्लू बना रहे हैं - इतने सब लोग सचमुच में कैसे असिस्टेंट गवर्नर बन पायेंगे ? इसके अलावा, मुकेश अरनेजा द्वारा पहले असिस्टेंट गवर्नर बनाए गए रोटरी क्लब वैशाली के अध्यक्ष मनोज भदोला का हश्र देख कर भी रोटेरियंस सावधान हुए हैं । उल्लेखनीय है कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में कॉन्करेंस लेने के लिए मुकेश अरनेजा ने मनोज भदोला को असिस्टेंट गवर्नर बनाया था । क्लब की मीटिंग में भेद खुला कि असिस्टेंट गवर्नर 'बनने' के लिए मनोज भदोला ने कॉन्करेंस का सौदा किया है और इस तरह क्लब को बेच दिया है - जिसका नतीजा यह हुआ कि मनोज भदोला से न सिर्फ अध्यक्ष पद छीन लिया गया, बल्कि उन्हें क्लब से भी निकाल दिया गया । मुकेश अरनेजा लेकिन आश्वस्त हैं कि वह असिस्टेंट गवर्नर के काफी पद बेच लेंगे । यह देखना/जानना दिलचस्प होगा कि चुनाव का दिन आते आते वह सतीश सिंघल के गवर्नर-काल के लिए कितने असिस्टेंट गवर्नर 'बना' लेते हैं ?

Sunday, December 27, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में कॉन्करेंस के मामले में संदेह का लाभ दीपक गुप्ता को देकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ ने मुकेश अरनेजा की दोतरफा प्लानिंग को चौपट ही कर दिया

गाजियाबाद/नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव की घोषणा करके मुकेश अरनेजा के गेम प्लान को तो फेल किया ही, साथ ही घोषणा के साथ कॉन्करेंस का जो ब्यौरा दिया - उससे मुकेश अरनेजा के हाथ से उन्होंने एक बड़ा हथियार और छीन लिया है । रोटरी की राजनीति में मुकेश अरनेजा, जेके गौड़ को अपना चेला बताते रहे हैं; किंतु यहाँ जो होता हुआ दिखा है - उसमें चेला गुरु पर भारी पड़ता नजर आया है । चुनाव की घोषणा के साथ लोगों को जेके गौड़ का जो पत्र मिला है, उसमें बताया गया है कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में 18 कॉन्करेंस मिलीं - जिनमें से 10 को वैध पाया गया, 4 को नियमों का पालन न होने के कारण अवैध घोषित किया गया, और 4 में नियमों का पालन न होने का संदेह देखा/पहचाना गया; लेकिन संदेह का लाभ दीपक गुप्ता को दिया गया । इस जानकारी ने मुकेश अरनेजा के हाथ से एक बड़ा हथियार छीनने का काम किया है । उल्लेखनीय है कि मुकेश अरनेजा लगातार प्रचार करते रहे हैं कि जेके गौड़ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुभाष जैन की उम्मीदवारी को फायदा पहुँचाने वाले फैसले और काम कर रहे हैं - लेकिन संदेह का लाभ दीपक गुप्ता को देकर जेके गौड़ ने एक झटके में मुकेश अरनेजा के उस प्रचार की हवा निकाल दी है । कॉन्करेंस के संबंध में संदेह का लाभ दीपक गुप्ता को देकर जेके गौड़ ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच यही संदेश दिया है कि उन्होंने तो हमेशा ही रोटरी की मूल भावना और डिस्ट्रिक्ट के हितों का ध्यान रखते हुए ही फैसले किए हैं; इसी का ध्यान रखते हुए उन्होंने कॉन्करेंस के संदर्भ में दीपक गुप्ता को संदेह का लाभ दिया है । इससे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में हमदर्दी जुटाने की मुकेश अरनेजा की कोशिशों को खासा तगड़ा वाला धक्का लगा है । 
मुकेश अरनेजा को यह समझने/पहचानने में देर नहीं लगी है कि जेके गौड़ उनके साथ एक ऊँची चाल खेल गए हैं; और इसीलिए वह कह भी रहे हैं कि कॉन्करेंस के संदर्भ में दीपक गुप्ता को संदेह का लाभ देकर जेके गौड़ ने वास्तव में सुभाष जैन को लाभ पहुँचाने का इंतजाम किया है । दीपक गुप्ता को संदेह का लाभ देकर जेके गौड़ ने चुनाव की जो घोषणा की है, उसने मुकेश अरनेजा को जिस तरह से बौखला दिया है उससे पता चलता है कि चुनाव की घोषणा से मुकेश अरनेजा का पूरा गेम-प्लान ही चौपट हो गया है - और अपना सारा खेल बिगड़ जाने के कारण ही मुकेश अरनेजा बुरी तरह बौखला गए हैं । मुकेश अरनेजा की बौखलाहट बता/जता/दिखा रही है कि मुकेश अरनेजा चुनाव चाहते ही नहीं थे, वह चाहते थे कि कॉन्करेंस रिजेक्ट हों और सुभाष जैन को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी घोषित किया जाए । दरअसल चुनावी राजनीति की राह कोई सीधी/सपाट राह नहीं होती है, वह टेढ़ी-मेढ़ी ही होती है - जिससे सच्चाई को छिपाए रखने में मदद मिलती है; नेताओं पर सबसे गंभीर आरोप ही यह होता है कि वह चाह कुछ और रहे होते हैं, लेकिन कह कुछ और रहे होते हैं । कथनी और करनी में अंतर रख कर ही नेता अपनी राजनीति की दुकान चलाता है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के एक खिलाड़ी नेता के रूप में मुकेश अरनेजा भी यही कर रहे थे । सभी को 'दिख' तो यही रहा था कि मुकेश अरनेजा ने सुभाष जैन और दीपक गुप्ता के बीच चुनाव कराने के लिए जी-जान एक किया हुआ है; और इसी के लिए उन्होंने कॉन्करेंस जुटाने को लेकर दिन-रात अपने को काम में लगाया हुआ है । लेकिन चुनाव की घोषणा पर अपनी बौखलाहट प्रगट करके मुकेश अरनेजा ने खुद ही पोल खोल दी है कि वास्तव में वह चुनाव नहीं चाहते थे, चुनाव चाहने का वह सिर्फ दिखावा कर रहे थे ।  
मुकेश अरनेजा के नजदीकियों का कहना है कि चुनाव की घोषणा से मुकेश अरनेजा को गहरा धक्का लगा है; क्योंकि वह यह उम्मीद कर रहे थे कि कॉन्करेंस को अवैध ठहरा कर जेके गौड़ नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार सुभाष जैन को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी घोषित कर देंगे । मुकेश अरनेजा ने इसके बाद अपनी राजनीतिक चाल चलने की तैयारी की हुई थी । नजदीकियों के अनुसार, उनकी योजना थी कि कॉन्करेंस को अवैध ठहराने के फैसले को वह रोटरी इंटरनेशनल में चैलेंज करवाते तथा रोटरी इंटरनेशनल में जब तक इस चैलेंज पर फैसला होता, तब तक अगला रोटरी वर्ष शुरू हो गया होता और तब अगले रोटरी वर्ष के क्लब-अध्यक्षों के बीच काम करके वह दीपक गुप्ता की चुनावी नैय्या को पार लगवाते । मुकेश अरनेजा को दरअसल इस वर्ष के क्लब-अध्यक्षों से कोई उम्मीद नहीं रह गई है; इस वर्ष के क्लब-अध्यक्षों के प्रति बहुत ही खराब शब्दों व भाषा का इस्तेमाल करते हुए उन्हें अक्सर ही सुना जाता है । दरअसल मुकेश अरनेजा ने यह भाँप लिया था कि इस वर्ष के क्लब-अध्यक्ष तो किसी भी तरह से उनके झाँसे में नहीं आयेंगे और इसीलिए इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को वह वीरेंद्र 'बॉबी' जैन व दीपक तलवार के बीच हुए चुनाव की तर्ज पर अगले रोटरी वर्ष में ले जाना चाहते थे । उल्लेखनीय है कि अशोक घोष के गवर्नर-काल में हुए उस चुनाव में दीपक तलवार विजयी घोषित हुए थे; जिसे वीरेंद्र 'बॉबी' जैन ने रोटरी इंटरनेशनल में चैलेंज किया था और फिर उन दोनों के बीच अगले रोटरी वर्ष में चुनाव हुआ, जिसमें वीरेंद्र 'बॉबी' जैन को जीत मिली थी । मुकेश अरनेजा भी चाहते थे कि इस वर्ष सुभाष जैन विजयी घोषित हो जाएँ, जिसे वह रोटरी इंटरनेशनल में चैलेंज करें और इस तरीके से वह इस वर्ष के चुनाव को अगले रोटरी वर्ष में ले जाएँ । उन्हें विश्वास था कि अगले रोटरी वर्ष में वह अवश्य ही दीपक गुप्ता को जितवा लेंगे । 
मुकेश अरनेजा ने इसके लिए दोतरफा तैयारी की : एक तरफ तो उन्होंने जानबूझ कर ऐसी फर्जी किस्म की कॉन्करेंस जुटाईं और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय को सौंपी, जिनके रिजेक्ट होने की पक्की गारंटी थी; और दूसरी तरफ उन्होंने यह प्रोपेगेंडा किया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय कॉन्करेंस देने वाले क्लब्स के पदाधिकरियों को धमका कर कॉन्करेंस वापस कराने तथा कॉन्करेंस को अवैध ठहराने का षड्यंत्र कर रहा है । इस बारे में उन्होंने मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई तथा पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता तक का नाम इस्तेमाल किया । मुकेश अरनेजा ने दावा किया कि उन्होंने जेके गौड़ की पक्षपातपूर्ण कार्रवाइयों से मनोज देसाई और सुशील गुप्ता को भी अवगत कराया है, और दोनों ने उन्हें आश्वस्त किया है कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में कोई पक्षपात नहीं होने देंगे । इस तरह मुकेश अरनेजा ने नीचे से ऊपर तक ऐसी पक्की व्यवस्था की थी कि कॉन्करेंस रिजेक्ट होंगी, और उन्हें लोगों की हमदर्दी भी मिलेगी और रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत करने को लेकर उन्हें लोगों का समर्थन भी मिलेगा - हमदर्दी और समर्थन अगले रोटरी वर्ष में होने वाले चुनाव में उनके काम आयेगा । जेके गौड़ ने लेकिन मुकेश अरनेजा की इस दोतरफा व्यवस्था को एक झटके में ध्वस्त कर दिया । मुकेश अरनेजा को सपने में भी यह ख्याल नहीं आया कि जेके गौड़ संदेह का लाभ दीपक गुप्ता को दे देंगे । जेके गौड़ ने दरअसल मुकेश अरनेजा की ही छड़ी से मुकेश अरनेजा को पीट दिया । मुकेश अरनेजा अब न तो यह कहने लायक रहे कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ कोई पक्षपात कर रहे हैं, यानि उनका सारा प्रोपेगेंडा बैठ गया है; और दूसरी तरफ जेके गौड़ ने मुकेश अरनेजा को उन्हीं क्लब-अध्यक्षों के सामने भेजने का इंतजाम कर दिया, जिनके बारे में अभद्र और अशालीन किस्म के आरोप लगा कर मुकेश अरनेजा जिन्हें बदनाम और अपमानित करने लगे थे । 

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के नतीजे आने से पहले ही रतन सिंह यादव ने चेयरमैन पद पर अपनी ताजपोशी की तैयारी शुरू कर दी है

नई दिल्ली । रतन सिंह यादव ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के अगले चेयरमैन के रूप में अपनी ताजपोशी का दावा करना शुरू कर दिया है । मजे की बात यह है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए वोटों की गिनती का काम अभी शुरू भी नहीं हुआ है, किंतु रतन सिंह यादव ने न सिर्फ अपनी जीत का दावा करना शुरू कर दिया है - बल्कि अपने नजदीकियों के बीच यह तक कहना/बताना शुरू कर दिया है कि उन्हें पता है कि 22वीं नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में उनके अलावा और कौन कौन सदस्य होगा । अपने नजदीकियों के बीच रतन सिंह यादव ने दावा किया है कि जीतने वाले लोगों से चेयरमैन पद को लेकर उनकी बात हुई है, और सात-आठ लोगों ने अपने आप से उन्हें कहा है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के अगले चेयरमैन पद के लिए उन्हें आगे आना चाहिए, वह उनका समर्थन करेंगे । रतन सिंह यादव के नजदीकियों के अनुसार, रतन सिंह यादव ने उन्हें बताया है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पूर्व चेयरमैन मधु सुदन गोयल ने उन्हें चेयरमैन बनने की तरकीब बताई है और इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा से मदद दिलवाने का भरोसा उन्हें दिया है; अमरजीत चोपड़ा सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों का समर्थन उन्हें दिलवायेंगे । रतन सिंह यादव का कहना है कि मधु सुदन गोयल का सक्रिय सहयोग/समर्थन मिलने; सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों का समर्थन दिलवाने के लिए अमरजीत चोपड़ा की मदद मिलने; और सात-आठ विजेताओं के खुद आगे बढ़ कर उनका समर्थन करने का ऐलान करने के बाद - उनके चेयरमैन बनने को लेकर शक कहाँ रह जाता है ? द्वारका सीपीई स्टडी सर्किल के सेमीनार में भाग लेने वाले लोगों ने भी महसूस किया कि वहाँ रतन सिंह यादव का व्यवहार भावी चेयरमैन जैसा था ।   
नजदीकियों के अनुसार, रतन सिंह यादव की इस तरह की बातें सुनकर कुछेक लोगों ने उन्हें सुझाव भी दिया कि जब तक नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनाव के नतीजे नहीं आ जाते, तब तक उन्हें इस तरह के दावे नहीं करना चाहिए - लेकिन रतन सिंह यादव ने उन्हें यह कह कर चुप कर दिया कि चुनाव के नतीजों का इंतजार तो वह करे, जिसे अपने जीतने का भरोसा न हो । रतन सिंह यादव का कहना रहा कि उन्हें अपनी जीत का न सिर्फ पक्का भरोसा है, बल्कि विश्वास है कि सबसे ज्यादा वोट पाने वाले तीन लोगों में उनका नाम होगा । अपनी बात में वजन पैदा करने के लिए उन्होंने मधु सुदन गोयल और अमरजीत चोपड़ा का नाम लिया । उनका कहना रहा कि चुनाव तो वह अपने दम पर ही जीत जाते; किंतु जिस तरह चुनाव के अंतिम दौर में उन्हें मधु सुदन गोयल और अमरजीत चोपड़ा का समर्थन मिला - उससे उन्हें अच्छी जीत मिलने का विश्वास हुआ है । उनका कहना है कि इन दोनों का समर्थन यदि उन्हें पहले मिल जाता, तो वह सबसे ज्यादा वोट पाने वाले विजेता होते । रतन सिंह यादव ने अपने साथ साथ अजय सिंघल, विवेक खुराना, राकेश मक्कड़, मुकुल अग्रवाल, हरीश चौधरी, आलोक जैन, आलोक कृष्ण आदि के जीतने की भविष्यवाणी भी की है; और दावा किया है कि इनमें से अधिकतर ने चेयरमैन पद के लिए उनका समर्थन करने की बात कही है । उनका तर्क है कि यह सभी किसी न किसी सेंट्रल काउंसिल के संभावित विजेता के नजदीकी हैं और अमरजीत चोपड़ा के दखल और प्रभाव में सेंट्रल काउंसिल के संभावित विजेता भी अपने अपने इन नजदीकियों का समर्थन उन्हें दिलवायेंगे । 
रतन सिंह यादव अभी से चेयरमैन पद के लिए जुटने के एक कारण के रूप में दीपक गर्ग की सक्रियता को भी रेखांकित कर रहे हैं । अपने नजदीकियों से उन्होंने कहा/बताया है कि दीपक गर्ग ने अभी से चेयरमैन पद के लिए लॉबीइंग शुरू कर दी है; और चूँकि वह मौजूदा काउंसिल के सदस्य हैं, इसलिए मौजूदा काउंसिल के सदस्यों तथा नए आने वाले सदस्यों के बीच उनके लिए पैठ बनाना और समर्थन जुटाना आसान होगा । रतन सिंह यादव का तर्क है कि वह यदि नतीजों का इंतजार करेंगे और नतीजे आने के बाद चेयरमैन पद के लिए समर्थन जुटाने का काम शुरू करेंगे, तो दीपक गर्ग से बहुत पिछड़ जायेंगे । रतन सिंह यादव को चेयरमैन पद के लिए मनोज बंसल की उम्मीदवारी भी प्रस्तुत होने की आशंका है । नजदीकियों के अनुसार, रतन सिंह यादव का मानना और कहना है कि मनोज बंसल ने अभी भले ही चेयरमैन पद के लिए अपनी उम्मीदवारी की प्रस्तुति को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है, किंतु नतीजे आने के बाद वह सक्रिय हो सकते हैं - लिहाजा अभी से सक्रिय होकर वह मनोज बंसल के लिए कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते हैं । रतन सिंह यादव नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद के संभावित उम्मीदवारों से आगे रहने के लिए भले ही जो भी प्रयास और दावे कर रहे हों, दूसरे लोग उनके प्रयासों व दावों को उनके बड़बोलेपन व उनकी अपरिपक्वता के रूप में ही देख/पहचान रहे हैं - और उनके दावों को मजाक के रूप में ही ले रहे हैं । दूसरे लोग उनके दावों पर क्या कह रहे हैं इसकी परवाह न करते हुए तथा अपने नजदीकियों तथा चेयरमैन पद के लिए अभी से सक्रिय न होने की सलाह देने वाले लोगों को कनविंस करने का प्रयास करते हुए रतन सिंह यादव ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद के लिए अपनी ताजपोशी की जो तैयारी 'दिखाई' है, उसने नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के राजनीतिक खिलाड़ियों के लेकिन कान तो खड़े कर ही दिए हैं और राजनीतिक परिदृश्य को खासा रोचक बना दिया है । 

Friday, December 25, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में की गईं दिलीप पटनायक की बेईमानियों को हेमंत अरोड़ा व राजा साबू से मिल रहे सहयोग/समर्थन से मामला गंभीर हुआ

देहरादून/चंडीगढ़ । दिलीप पटनायक की बेईमानियों और घपलेबाजियों पर पर्दा डालने के लिए हेमंत अरोड़ा जिस तरह अपने प्रोफेशन तक के साथ बेईमानी करने को तैयार हो गए - उसे देख/जान कर कहा जा सकता है कि डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स में बहुत याराना है - पर्दे के पीछे एक दूसरे को गिराने/धकेलने के वह चाहें जितने करतब करते हों, लेकिन 'मुसीबत' के समय यह 'मौसेरे भाई' बन जाते हैं और एक दूसरे की मदद करने के लिए वह किसी भी हद तक चले जाते हैं । पिछले दिनों ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में टीके रूबी को हराने के लिए इन्होंने अपनी अपूर्व एकता का परिचय दिया था, और अब दिलीप पटनायक की घपलेबाजियों पर पर्दा डालने के मामले में इन्होंने आपस में हाथ मिला लिए हैं । हेमंत अरोड़ा जहाँ अपने प्रोफेशन तक से बेईमानी करने को तैयार हो गए, वहाँ दूसरे 'मौसेरे भाई' डिस्ट्रिक्ट में यह माहौल बनाने में जुट गए हैं कि कोई भी दिलीप पटनायक की बेईमानी पर बात नहीं करेगा । हालाँकि बातें तो हो रही हैं, लेकिन जिस गुपचुप और फुसफुसाहटों वाले अंदाज में हो रही हैं - उसने मामले को और दिलचस्प बना दिया है । हेमंत अरोड़ा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में की गई दिलीप पटनायक की वित्तीय हेराफेरियों को छिपाने के लिए 'मौसेरे भाई' का फर्ज अदा करते हुए चार्टर्ड अकाउंटेंट प्रोफेशन में एक बड़ा कमाल यह किया है कि एक ही वर्ष के लिए दो दो बैलेंसशीट साइन कर दीं । जानकारों का कहना है कि इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया में हेमंत अरोड़ा की इस कारस्तानी की उचित तरीके से यदि रिपोर्ट हो जाए, तो चार्टर्ड एकाउंटेंट के रूप में काम करने वाली उनकी फर्म का अधिकार छिन जायेगा - और उनकी पिछले करीब तीस वर्षों में कमाई साख धूल में मिल जायेगी ।
हेमंत अरोड़ा के जो लोग नजदीकी हैं वह हैरान हैं कि हेमंत अरोड़ा तो बहुत व्यवस्थित तरीके से काम करने वाले व्यक्ति हैं, आखिर तब फिर वह इस तरह की बेईमानी करने के लिए कैसे और क्यों तैयार हो गए ? हेमंत अरोड़ा ने इंडस्ट्री और प्रशासन और अपने शहर-समाज में अपनी विशेष पहचान बनाई है - और इस तरह अपने पिता एएल अरोड़ा की पहचान की विरासत को और समृद्ध किया है । ऐसे में उनसे यह उम्मीद किसी को नहीं रही कि वह ऐसा कोई काम करेंगे जो उनकी विरासत और उनकी पहचान पर कालिख पोतती हो । लेकिन तथ्य बता रहे हैं कि हेमंत अरोड़ा ने ऐसा काम कर दिया है । क्यों कर दिया - इसे लेकर अलग अलग किस्से/कहानियाँ हैं : कुछ कहते हैं कि दिलीप पटनायक ने फर्जी बिल लगाकर जो पैसे बनाए हैं, उनमें हेमंत अरोड़ा की भी मिलीभगत रही है, और इसलिए यह करना उनकी मजबूरी था; कुछ कहते हैं कि राजा साबू के कहने पर वह अपने प्रोफेशन के साथ धोखाधड़ी करने को तैयार हो गए; कुछ कहते हैं कि हेमंत अरोड़ा ने जब से मुख्यमंत्री के साथ फोटो खिंचा ली है और जज साहब के साथ गोल्फ खेल लिया है, तब से वह यह समझने लगे हैं कि उन्हें तो कुछ भी करने का लाइसेंस मिल गया है । बदकिस्मती की बात यह रही कि दिलीप पटनायक को 'बचाने' के लिए चार्टर्ड एकाउंटेंट के रूप में हेमंत अरोड़ा ने जो तिकड़म की, उससे दिलीप पटनायक बचने की बजाए फँस और गए हैं । हेमंत अरोड़ा ने दूसरी बैलेंसशीट साइन करने की जो बेईमानी की, उसमें भी एक यह और बेईमानी की कि कुछेक कैटेगरी की जानकारी दी ही नहीं, जो कि पहले वाली बैलेंसशीट में थीं । हेमंत अरोड़ा की इस कारस्तानी से दिलीप पटनायक की हरकत न सिर्फ और साफ तरीके से निशाने पर आ गई, बल्कि उसके सुबूतों पर भी लोगों का ध्यान आकर्षित हो गया । 
दिलीप पटनायक के गवर्नर-काल की हेमंत अरोड़ा ने जो पहली बैलेंसशीट साइन की उसमें 20 हजार 407 रुपए का फायदा दिखाया गया था; लेकिन तथ्यों की बाजीगरी के साथ हेमंत अरोड़ा ने जो दूसरी बैलेंसशीट साइन की, उसमें उक्त फायदा जादुई तरीके से छह लाख 23 हजार 547 रुपए के घाटे में बदल गया । फायदे को घाटे में बदलने का 'खेल' करने के लिए मुख्य रूप से पेट्स के खर्चों में हेराफेरी करना पड़ी । पहली बैलेंसशीट में पेट्स का जो खर्चा 9 लाख 63 हजार 475 रुपए था, वह दूसरी बैलेंसशीट में 13 लाख 50 हजार 450 रुपए हो गया । यह जो खर्चा बढ़ा, इसे 'दिखाने' वाले सारे बिल कच्चे हैं । इससे समझा जा सकता है कि फायदे को घाटे में बदलने के लिए फर्जी बिल बनवाए और लगाए गए हैं । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस सब्सिडी में भी इसी तरह का खेल हुआ : पहली बैलेंसशीट में कॉन्फ्रेंस सब्सिडी में 6 लाख 49 हजार रुपए दिखाए गए, जो दूसरी बैलेंसशीट में बढ़ कर 9 लाख 63 हजार 475 रुपए हो गई । दिलीप पटनायक के गवर्नर-काल के हिसाब-किताब को लेकर दो बैलेंसशीट बनना; खर्चों को बढ़ा-चढ़ा कर फायदे को नुकसान में बदलना; और इसके लिए कच्चे बिल प्रस्तुत करना - ऐसे काम साबित हुए कि दिलीप पटनायक बेईंमान कहे जाने लगे और उनकी इस बेईमानी में हेमंत अरोड़ा तथा राजा साबू की मिलीभगत के चर्चे होने लगे । टीके रूबी के मामले के चलते राजा साबू तथा डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स की राजनीतिक बेईमानी के चर्चे पहले से ही थे; अब इस प्रकरण से साबित है कि राजनीतिक बेईमानी करने वाले लोग पैसों की बेईमानी करने में और उसे सपोर्ट करने में भी नहीं हिचकते हैं । 
दिलीप पटनायक के घोटाले के सामने आने का किस्सा और उसका सबक भी खासा दिलचस्प है । बताया गया है कि रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के वरिष्ठ सदस्य एमपी गुप्ता ने ऐसे ही खेल खेल में जिज्ञासावश मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन को एक ईमेल पत्र लिख कर पिछले रोटरी वर्ष का हिसाब-किताब माँग लिया । डेविड हिल्टन ने हिसाब-किताब देने में आनाकानी सी की, तो एमपी गुप्ता को अपनी माँग दोहराने में मजा आने लगा । एमपी गुप्ता के नजदीकियों का कहना है कि एमपी गुप्ता को भी अनुमान नहीं था कि जिज्ञासावश शुरू किया गया उनका अभियान इतना बड़ा गुल खिला देगा और डिस्ट्रिक्ट की पूरी लीडरशिप को मुसीबत में डाल देगा । डिस्ट्रिक्ट के कुछेक नेताओं ने एमपी गुप्ता की इस मुहिम में उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी देखने/पहचानने की कोशिश की, पर उन्हें कुछ मिला नहीं । एमपी गुप्ता को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधुकर मल्होत्रा के नजदीक देखा/समझा जाता रहा है, क्योंकि मधुकर मल्होत्रा के गवर्नर-काल का बहुत सा काम एमपी गुप्ता के ऑफिस से होता था; इसलिए कयास लगाया जाने लगा कि एमपी गुप्ता की इस मुहिम के पीछे कहीं मधुकर मल्होत्रा तो नहीं हैं ? इस तरह के कयास सार्वजनिक होने लगे तो मधुकर मल्होत्रा को खुद आगे आकर यह सफाई देने के लिए मजबूर होना पड़ा कि एमपी गुप्ता की इस मुहिम से उनका कोई लेनादेना नहीं है । मधुकर मल्होत्रा ने तो लोगों को यहाँ तक बताया कि उन्होंने तो एमपी गुप्ता को आगाह किया है कि इस तरह की मुहिम से उनके रोटरी कैरियर का नुकसान होगा । (चलो, इससे यह भी पता चला कि मधुकर मल्होत्रा रोटरी में भी कैरियर देखते हैं !) एमपी गुप्ता ने यह मुहिम क्यों शुरू की है, यह तो वही बता सकते हैं; लेकिन उनकी मुहिम का नतीजा यह जरूर बताता है कि बिना आक्रामक हुए और बिना आरोप लगाए भी डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों और नेताओं की पोल खोली जा सकती है । 
रोटरी में तमाम लोग शिकायत करते हुए सुने जा सकते हैं कि पदाधिकारी और नेता मनमानी करते हैं और मनमानी के जरिए बेईमानी करते हैं; शिकायत करने वाले लोग चूँकि विरोध करने का साहस नहीं दिखा पाते हैं - इसलिए मनमानियाँ और बेईमानियाँ भी चलती रहती हैं और उनके बारे में दबे-छिपे तरीके से शिकायतें भी चलती रहती हैं । एमपी गुप्ता द्वारा अपनाए गए तरीके ने सबक दिया है कि कोई आरोप मत लगाओ, कोई विरोध मत करो - बस विनम्रता के साथ सिर्फ सवाल करो; आप देखोगे कि बड़ी बड़ी मूरतों की चमक उतरने लगेगी और उनकी असलियत सामने आने लगेगी । एमपी गुप्ता के सवालों ने दिलीप पटनायक की बेईमानियों और उनकी बेईमानियों को सहयोग/समर्थन देते हेमंत अरोड़ा व राजा साबू जैसे बड़े लोगों की भी असलियत को लोगों के सामने ला ही दिया है न !

Wednesday, December 23, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में पराग रावल की पराजय का ठीकरा पराग रावल के समर्थकों व शुभचिंतकों ने सुनील तलति के सिर फोड़ना शुरू किया

अहमदाबाद । पराग रावल को सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में पराजय मिलने की ख़बर आने के बाद से पराग रावल के समर्थकों व शुभचिंतकों ने सुनील तलति पर अपना गुस्सा निकालना शुरू किया है । पराग रावल के समर्थकों व शुभचिंतकों ने पराग रावल की पराजय के लिए सुनील तलति को जिम्मेदार ठहराया है - जिम्मेदार ही नहीं ठहराया है, बल्कि आरोप लगाया है कि सुनील तलति ने पराग रावल के साथ धोखा किया है । चुनाव के दौरान जो बातें दबे-छिपे तरीके से कही जा रही थीं, उन्हें अब खुल कर कहा/सुना जा रहा है - कि सुनील तलति अगले चुनाव में अपने बेटे अनिकेत तलति को सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बनायेंगे, और उसमें सफलता के लिए पराग रावल को सेंट्रल काउंसिल से बाहर रखने का प्रयास करेंगे । पराग रावल यदि सेंट्रल काउंसिल में होंगे, तो अगले चुनाव में अनिकेत तलति के लिए सेंट्रल काउंसिल का चुनाव जीतना मुश्किल होगा । अनिकेत तलति की भावी मुश्किल को आसान करने का सुनील तलति को एक ही फार्मूला समझ में आया, और वह यह कि पराग रावल को इस बार वह सेंट्रल काउंसिल के लिए कामयाब न होने दें । मजे की बात यह है कि चुनाव के दिनों में हो रही इन बातों पर पराग रावल के समर्थकों व शुभचिंतकों ने तब जरा भी विश्वास नहीं किया था, और तब वह इन बातों को बकवास बता रहे थे । चुनाव के दिनों में पराग रावल, अनिकेत तलति को अपने साथ लेकर घूम रहे थे और रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अनिकेत तलति की उम्मीदवारी को समर्थन दिलवाने का काम कर रहे थे । पराग रावल उम्मीद - और विश्वास कर रहे थे कि इससे सुनील तलति खुश होंगे तथा इसके बदले में उन्हें समर्थन दिलवाने में मदद करेंगे । चुनाव के अंतिम दौर में इन बातों ने खासा जोर पकड़ लिया था कि सुनील तलति ने कई जगह पराग रावल की खिलाफत की है, किंतु पराग रावल और उनके समर्थकों ने इन बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया । अब लेकिन जब पराग रावल की पराजय की खबर मिली, तो पराग रावल के समर्थक व शुभचिंतक सुनील तलति को कोसने में लग गए हैं । 
चुनावी नतीजा पराग रावल तथा उनके समर्थकों व शुभचिंतकों के लिए है भी सदमे वाला ! पहली वरीयता के वोटों की गिनती में पराग रावल 2322 वोटों के साथ छठे नंबर पर होते हैं, लेकिन गिनती पूरी होते होते वह ग्यारहवें नंबर पर भी नहीं टिक पाते हैं । वोटों की गिनती जैसे जैसे आगे बढ़ी, उसमें कुछ समय तक तो पराग रावल अपनी छठे नंबर की पोजीशन को बचाए/बनाए रखने में सफल रहते हैं, लेकिन फिर पीछे खिसकने लगते हैं - हालाँकि अंत तक उम्मीद बनी रहती है कि पराग रावल इंस्टीट्यूट की 23वीं सेंट्रल काउंसिल में अवश्य ही जगह पा लेंगे; किंतु वोटों की गिनती पूरी होते होते यह उम्मीद धूल में मिल जाती है ।  उल्लेखनीय है कि पराग रावल के बारे में शुरू से ही यह आशंका थी कि जीत की प्रबल संभावनाओं के बावजूद दूसरी और अन्य वरीयता के वोटों के कारण उनकी जीत का गणित बिगड़ सकता है; इस बारे में इन पँक्तियों के लेखक से बात करते हुए पराग रावल ने बताया था कि इस आशंका को उन्होंने हमेशा अपनी चिंता में रखा है और व्यवस्था की है कि यह सच साबित न होने पाए । इसके बावजूद दूसरी और अन्य वरीयताओं के वोटों की कमी ही उनकी जीत में बाधा बन गई । 
उनके जैसी ही हालत जुल्फेश शाह की भी हुई, जो 2144 वोटों के साथ पहली वरीयता के वोटों की गिनती में सातवें नंबर पर रहने के बावजूद सेंट्रल काउंसिल से बाहर रह गए । किंतु उनके मामले में लोगों को हैरानी इसलिए नहीं हुई है, क्योंकि उनके जीतने को लेकर कम ही लोगों को उम्मीद थी । दरअसल नागपुर में ही जुल्फेश शाह को भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा था, और नागपुर व विदर्भ क्षेत्र में कई प्रमुख लोग उनकी खुली खिलाफत कर रहे थे । इस सीन के बावजूद जुल्फेश शाह ने जो वोट पाए, उसे उनकी मेहनत के नतीजे के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । जुल्फेश शाह का प्रदर्शन लोगों की उम्मीद से तो बेहतर रहा, किंतु यह प्रदर्शन उनके लिए खुशखबरी नहीं बन सका । जुल्फेश शाह की पराजय पर लोगों को हैरानी लेकिन इसलिए नहीं हुई, क्योंकि उनके जीतने को लेकर लोगों के बीच बहुत उम्मीद थी भी नहीं । 
पराग रावल के लिए लेकिन लोगों के बीच बहुत अफसोस है और इस अफसोस में गुस्सा भी है - और इस गुस्से का निशाना अभी तो सुनील तलति को बनना पड़ रहा है । चुनावी राजनीति में इस तरह की बातों का हालाँकि कोई महत्व नहीं होता है; यहाँ कोई किसी की बजह से नहीं हारता/जीतता है - जो भी जीतता/हारता है, अपनी खुद की बजह से जीतता/हारता है । बाकी तो सब बहानेबाजी होती है । सुनील तलति यदि वास्तव में अगले चुनाव को ध्यान में रखकर पराग रावल को सेंट्रल काउंसिल से बाहर देखना चाहते थे, तो पराग रावल और उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को इसे पहचानना/समझना चाहिए था और अपनी जीत को सुनिश्चित करने/बनाने के उपाय करना चाहिए थे - जो उन्होंने यदि नहीं किए तो यह उनकी गलती है; इसके लिए सुनील तलति को कोसने का क्या फायदा ? पराग रावल की पराजय, और इस पराजय के लिए पराग रावल के समर्थकों व शुभचिंतकों का सुनील तलति को जिम्मेदार ठहराने से अहमदाबाद में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में खासा घमासान मचने का माहौल बन रहा है । दीनल शाह का सेंट्रल काउंसिल में आखिरी टर्म होगा; सेंट्रल काउंसिल के लिए उनके खेमे से अगली बार प्रियम शाह के उम्मीदवार होने की चर्चा है । प्रियम शाह का दीनल शाह जैसा जलवा होने/रहने की उम्मीद नहीं है; इसलिए अहमदाबाद में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति को लेकर अब जो बिसात बिछेगी, वह उलटफेर वाली होगी - और जाहिर है कि खासी दिलचस्प होगी । 

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में जितेंद्र ढींगरा को हराने के लिए मधुकर मल्होत्रा व शाजु पीटर के बीच की होड़ सामने आने से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव दिलचस्प हुआ

चंडीगढ़ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए इस वर्ष के चुनाव में जितेंद्र ढींगरा को घेरने के लिए रोटरी क्लब चंडीगढ़ सेंट्रल के नवजीत औलख तथा रोटरी क्लब चंडीगढ़ के प्रवीन चंद्र गोयल ने जिस तरह कमर कसना शुरू किया है, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गर्मी पैदा होना शुरू हो गई है । चुनावी सीन हालाँकि अभी स्पष्ट नहीं हैं, और उम्मीदवारों के नाम पर अनुमान और कयास भर हैं - लेकिन नवजीत औलख तथा प्रवीन चंद्र गोयल के अपने अपने तरीकों और तर्कों से डिस्ट्रिक्ट के नेताओं को यह समझाने के प्रयासों की लोगों के बीच खूब चर्चा है कि रोटरी क्लब कुरुक्षेत्र के जितेंद्र ढींगरा को एक वही रोक/हरा सकते हैं । इन दोनों को ही लगता है कि जितेंद्र ढींगरा का भय दिखा कर ही यह डिस्ट्रिक्ट के नेताओं का समर्थन जुटा सकते हैं । दरअसल इन दोनों ने ही इस बात को समझ लिया है कि डिस्ट्रिक्ट के नेता जितेंद्र ढींगरा की उम्मीदवारी से घबराए हुए हैं, और किसी भी कीमत पर जितेंद्र ढींगरा को जीतने नहीं देना चाहते हैं । पिछले रोटरी वर्ष में हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव का जो झमेला अभी तक नहीं सुलटा है, और जिसके कारण डिस्ट्रिक्ट के बड़े नेताओं की रोटरी में भारी फजीहत हुई है - उसके लिए डिस्ट्रिक्ट के बड़े नेता जितेंद्र ढींगरा को ही जिम्मेदार मानते/समझते हैं; और इस बात से आशंकित हैं कि यदि जितेंद्र ढींगरा खुद गवर्नर बन गए तो आगे चल कर उनके लिए भारी मुसीबत बनेंगे । पिछले रोटरी वर्ष के अनुभव से सबक लेकर डिस्ट्रिक्ट के बड़े नेता अभी से यह व्यवस्था कर लेना चाहते हैं कि कोई भी जीते, पर जितेंद्र ढींगरा न जीतें । नवजीत औलख और प्रवीन चंद्र गोयल इसी बात का फायदा उठाने की कोशिश में नेताओं के सामने यह साबित करने में जुटे हैं कि जितेंद्र ढींगरा को रोकना/हराना है तो मुझे समर्थन दो । 
नवजीत औलख और प्रवीन चंद्र गोयल ही यदि यह कोशिश कर रहे होते, तो भी बात ज्यादा गंभीर नहीं होती - किंतु नवजीत औलख को मधुकर मल्होत्रा तथा प्रवीन चंद्र गोयल को शाजु पीटर के सहयोग/समर्थन के कारण उनकी कोशिश एक गंभीर मामला बन गई है । इस नाते से जितेंद्र ढींगरा से भिड़ने की यह लड़ाई मधुकर मल्होत्रा और शाजु पीटर के बीच की भिड़ंत भी बन गई है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट में मधुकर मल्होत्रा और शाजु पीटर के बीच आगे बढ़ने/रहने की होड़ को हर किसी ने महसूस किया है । दोनों को ही इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता है । लोगों का कहना/बताना है कि शाजु पीटर ने तो इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी की संभावना को स्वीकार किया है; मधुकर मल्होत्रा अपनी उम्मीदवारी की संभावना से इंकार तो करते हैं, लेकिन उन्हें जानने वालों का कहना है कि जब उचित मौका आयेगा तब मधुकर मल्होत्रा मैदान में उतर आयेंगे । मधुकर मल्होत्रा के नजदीकियों का कहना है कि मधुकर मल्होत्रा अभी इस डर से इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी का इज़हार नहीं कर रहे हैं कि राजा साबू और यशपाल दास कहीं अभी से उसमें अडंगा न डाल दें । मधुकर मल्होत्रा को लगता है कि राजा साबू और यशपाल दास के यहाँ उनके मुकाबले शाजु पीटर की दाल जल्दी गलती है । इसलिए इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के प्रति अपनी इच्छा/महत्वाकांक्षा को व्यक्त करने को लेकर वह सावधान रहते हैं और अपनी उम्मीदवारी की संभावना से इंकार ही करते हैं । नजदीकियों के अनुसार, मधुकर मल्होत्रा को उम्मीद है कि शाजु पीटर ज्यादा समय तक राजा साबू और यशपाल दास को नहीं झेल पायेंगे और जब उनके यहाँ शाजु पीटर की दाल गलना बंद हो जायेगी, तो वह खुद ही इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की दौड़ से बाहर हो जायेंगे । इन बातों को लोगों के बीच इसलिए विश्वसनीयता भी मिली क्योंकि लोगों ने मधुकर मल्होत्रा को डिस्ट्रिक्ट और रोटरी में अतिरिक्त रूप से सक्रिय भी देखा और शाजु पीटर से आगे रहने/होने की तथा शाजु पीटर के काम को 'बिगाड़ने' की कोशिश करते हुए भी देखा । 
नवजीत औलख की उम्मीदवारी के समर्थन के पीछे भी मधुकर मल्होत्रा इसीलिए देखे/समझे जा रहे हैं क्योंकि प्रवीन चंद्र गोयल की उम्मीदवारी के वकीलों में शाजु पीटर सबसे आगे हैं - इतना आगे कि प्रवीन चंद्र गोयल को शाजु पीटर के उम्मीदवार के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है । मजे की बात यह है कि प्रवीन चंद्र गोयल, मधुकर मल्होत्रा के क्लब में हैं - जो कि राजा साबू का भी क्लब है; लेकिन फिर भी मधुकर मल्होत्रा, प्रवीन चंद्र गोयल की बजाए नवजीत औलख की उम्मीदवारी की  वकालत करते देखे/सुने जा रहे हैं । कारण सिर्फ यही है कि प्रवीन चंद्र गोयल यदि आगे बढ़ते हैं, तो इसका श्रेय शाजु पीटर को मिलेगा - और यह मधुकर मल्होत्रा होने नहीं देना चाहते हैं । डिस्ट्रिक्ट में टीके रूबी को लेकर जो झमेला हुआ है और जो अभी भी जारी है उसके कारण डिस्ट्रिक्ट टीके रूबी के समर्थकों व विरोधियों के बीच बँट गया है, इस बँटवारे में नवजीत औलख विरोधियों के खेमे में रहे हैं । नवजीत औलख ने प्रायः हर मौके पर टीके रूबी का मुखर विरोध किया है । मधुकर मल्होत्रा इसी बात को नवजीत औलख का प्लस प्वाइंट बना रहे हैं । उनकी तरफ से तर्क दिया जा रहा है कि टीके रूबी के विरोधियों को भावनात्मक रूप से जोड़े रखने का काम नवजीत औलख की उम्मीदवारी ही कर सकती है, और इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में नवजीत औलख ही जितेंद्र ढींगरा का मुकाबला कर सकते हैं । 
दिलचस्प नजारा यह है कि मधुकर मल्होत्रा जिस बात को नवजीत औलख की 'ताकत' बता/दिखा रहे हैं, दूसरे लोग उसे ही नवजीत औलख की कमजोरी के रूप में रेखांकित कर रहे हैं । उनका कहना है कि टीके रूबी विरोधी लोग हैं कितने ? डिस्ट्रिक्ट के सारे गवर्नर्स ने अपनी सारी ताकत और जोड़-तोड़ लगा कर तो जैसे तैसे तथाकथित रूप से टीके रूबी को चुनाव 'हराया' है । टीके रूबी विरोधियों के भरोसे रहे तो नवजीत औलख के लिए भी फिर सारे गवर्नर्स को पहले जैसी बेशर्मी और निर्लज्जता के साथ चुनावी प्रक्रिया में शामिल होना पड़ेगा । प्रवीन चंद्र गोयल की उम्मीदवारी के समर्थकों का कहना है कि प्रवीन चंद्र गोयल उसी पानीपत ग्रुप के सदस्य रहे हैं, जिसके मुख्य कर्ताधर्ताओं में जितेंद्र ढींगरा होते थे - इसलिए जितेंद्र ढींगरा को प्रवीन चंद्र गोयल ही टक्कर दे सकते हैं, क्योंकि एक ही ग्रुप में होने के कारण प्रवीन चंद्र गोयल को जितेंद्र ढींगरा की राजनीतिक तरकीबों की जानकारी है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में पानीपत ग्रुप का जलवा रहा है और इस ग्रुप ने कई उम्मीदवारों को चुनवाया/जितवाया है । रमन अनेजा को चुनवाने/जितवाने में तो जितेंद्र ढींगरा की सीधी भागीदारी थी । जितेंद्र ढींगरा की देखरेख में ही पिछले रोटरी वर्ष में अचानक से चुनाव से करीब चार महीने पहले प्रस्तुत हुई टीके रूबी की उम्मीदवारी का अभियान चला था और वह अधिकृत उम्मीदवार चुने गए थे । टीके रूबी के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने के बाद जो झमेला खड़ा हुआ, उसमें पानीपत ग्रुप छिन्न-भिन्न हो गया । जितेंद्र ढींगरा की उम्मीदवारी से डरे नेताओं को भय दरअसल यह है कि पानीपत ग्रुप छिन्न-भिन्न भले ही हो गया हो, किंतु जितेंद्र ढींगरा स्थिति को मैनेज कर लेंगे । प्रवीन चंद्र गोयल की उम्मीदवारी के समर्थक यही तर्क देकर नेताओं को समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि पानीपत ग्रुप का होने के कारण प्रवीन चंद्र गोयल पानीपत ग्रुप के लोगों को जोड़ने की जितेंद्र ढींगरा की कोशिशों को विफल कर सकते हैं । उल्लेखनीय है कि प्रवीन चंद्र गोयल को चंडीगढ़ में पानीपत ग्रुप के जासूस के रूप में देखा, पहचाना व पुकारा जाता रहा है । उनकी यही पहचान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के इस वर्ष के चुनाव में उनकी सबसे बड़ी पूँजी बन गई है, जिसके बल पर वह नेताओं का समर्थन पाने की उम्मीद कर रहे हैं । 
मजे की बात यह है कि इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में उम्मीदवारों के नाम अभी तक घोषित रूप में सामने नहीं आए हैं; और अभी तक किसी के भी नामांकन भरने की सूचना नहीं है । संभावित उम्मीदवारों के नाम की चर्चा लोगों के बीच जरूर है, लेकिन जितेंद्र ढींगरा को छोड़ कर बाकी उम्मीदवारों ने अभी अपना चुनाव अभियान शुरू नहीं किया है । डिस्ट्रिक्ट में इस बार का चुनाव पायलट प्रोजेक्ट के तहत होगा, इसलिए भी चुनावी प्रक्रिया को लेकर लोगों के बीच कुछ कन्फ्यूजन सा है । इस कन्फ्यूजन के बीच नवजीत औलख तथा प्रवीन चंद्र गोयल ने अपनी अपनी उम्मीदवारी के लिए जिस तरह से नेताओं का समर्थन जुटाने का प्रयास शुरू किया है, उसने चुनावी परिदृश्य को दिलचस्प बनाने का काम तो किया ही है । 

Monday, December 21, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में कॉन्करेंस के चक्कर में रोटरी क्लब वैशाली के अध्यक्ष मनोज भदोला तथा उनके साथियों की असलियत की पोल खुली

गाजियाबाद । मुकेश अरनेजा ने अधिकृत उम्मीदवार सुभाष जैन के खिलाफ कॉन्करेंस जुटाने के लिए जो जुगाड़ लगाए, और जिनके चलते कुछेक क्लब्स में भीषण विवाद और झगड़े हुए - उसमें एक अच्छा काम यह हुआ है कि कुछेक क्लब्स और उनके पदाधिकारियों के असली रूप सामने आ  गए, अन्यथा जो छिपे ही रहते । मुकेश अरनेजा के गेम-प्लान में फँस कर रोटरी क्लब वैशाली के पदाधिकारियों ने अपना जो 'नंगापन' प्रकट किया, वह एक बड़ा दिलचस्प उदाहरण बन गया है । उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब वैशाली डिस्ट्रिक्ट के एक अच्छे क्लब के रूप में देखा/पहचाना जाता रहा है : इसके सदस्य उच्च शिक्षा प्राप्त तथा प्रोफेशनली खासे कामयाब लोग हैं और इनके परिवारों में अपेक्षाकृत खुलापन व आधुनिक तेवर देखे गए - किसी भी संस्था को आधुनिक व गतिशील शक्ल देने के लिए जिसे आवश्यक माना जाता है । रोटरी क्लब वैशाली अपने सदस्यों की शिक्षा, प्रोफेशनल उपलब्धियों और अपनी जीवंतता व खिलंदड़ेपन के चलते डिस्ट्रिक्ट के खास क्लब्स में गिना जा रहा था और डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों में उसकी खासी उपस्थिति व पहचान बन गई थी । पिछले दो एक वर्षों में क्लब के जो अध्यक्ष बने, वह हालाँकि क्लब की पहले जैसी प्रतिष्ठा व सक्रियता की निरंतरता को नहीं बनाए रख सके - किंतु क्लब की बनी साख के ऑरा (आभामंडल) में उनकी कमजोरियाँ छिपी रह गईं और वह सामने नहीं आ पाईं । लेकिन अभी हाल ही में कॉन्करेंस को लेकर क्लब में जो झगड़ा मचा, उसमें यह तथ्य सामने आया कि क्लब पर इस समय जिन लोगों का कब्जा है - वह भले ही पढ़े-लिखे तथा प्रोफेशनली कामयाब लोग हों; लेकिन सोच, मानसिकता व व्यवहार के मामले में वह वास्तव में सड़कछाप किस्म के लोग हैं । 
क्लब के वरिष्ठ सदस्य प्रसून चौधरी ने सोशल मीडिया में क्लब की मौजूदा स्थिति पर दुःख प्रगट करते हुए जो एक टिप्पणी की, उस पर क्लब पर इस समय काबिज लोगों ने अभद्र, अशालीन व कहीं कहीं अश्लील शब्दों का प्रयोग करते हुए जो प्रतिक्रिया दी - उसने उनके असली चेहरे व चरित्र को सामने ला दिया । एक सामान्य सामाजिक समझ है कि अपने पर लगे आरोपों का जब कोई तथ्यपरक व तर्कपूर्ण जबाव नहीं दे पाता है, तो वह गालियाँ देने लगता है । रोटरी क्लब वैशाली के मौजूदा अध्यक्ष मनोज भदोला व उनके साथ के लोगों ने अपने ही एक वरिष्ठ साथी प्रसून चौधरी के साथ सोशल मीडिया पर यही व्यवहार किया । मनोज भदोला और उनके साथी प्रसून चौधरी की टिप्पणी में कही गई इस बात पर ज्यादा भड़के कि क्लब के फैसलों में सभी सदस्यों की भागीदारी नहीं होती है तथा 'कुछ लोग' ही फैसले ले रहे हैं । हो सकता है कि प्रसून चौधरी की यह बात झूठ हो । इसका तर्कपूर्ण व तथ्यपरक ढंग से जबाव दिया जा सकता था, किंतु मनोज भदोला व उनके साथी गाली-गलौच पर उतर आए । उनके इस रवैये ने ही जाहिर किया कि प्रसून चौधरी ने सही बात कही है, और सच सुन कर मनोज भदोला व उनके साथी भड़क उठे । और बातों व फैसलों को यदि जानें भी दें, तो क्लब के बोर्ड की 'शक्ल' ही प्रसून चौधरी के इस आरोप को पुष्ट करती है । बोर्ड में 18 सदस्य हैं, जिनमें 12 लोग पति-पत्नी हैं । क्लब के अधिकतर सदस्य पति-पत्नी हैं - जो भागीदारी के लिहाज से एक अच्छी बात है । लेकिन इस अच्छी बात को किस तरह से क्लब के मौजूदा पदाधिकारियों ने क्लब पर कब्जा करने/ज़माने की अपनी तरकीब के रूप में इस्तेमाल कर लिया, इसका पुख्ता सुबूत बोर्ड के गठन में देखा/पहचाना जा सकता है । बोर्ड में जो 18 सदस्य लिए गए हैं, वह यदि अलग अलग परिवारों के होते, तो बोर्ड के फैसलों में व्यापक प्रतिनिधित्व होता - लेकिन तब क्लब पर कब्जा कैसे होता ? क्लब पर कब्जा करने के लिए तरकीब निकाली गई कि परिवार के सदस्यों को ही बोर्ड में रख लो । इससे बोर्ड बनाने के पीछे जो भावना व उद्देश्य है, उसका ही मजाक बन गया । घटियापने की हद यह है कि इस पर क्लब का एक वरिष्ठ सदस्य यदि यह कहे कि क्लब में फैसले 'कुछ लोग' ही कर रहे हैं, तो उससे भिड़ जाओ और उसे गालियाँ देने लगो । 
कॉन्करेंस देने की बात क्लब की जिस मीटिंग में हुई, उसमें क्लब के मौजूदा पदाधिकारियों व उनके समर्थकों की मनमानियों, सौदेबाज-प्रवृत्ति तथा उनकी बदतमीजियो का खुला इज़हार हुआ । पदाधिकारियों ने पूरी बेशर्मी के साथ स्वीकार किया कि कॉन्करेंस के लिए उन्होंने मुकेश अरनेजा के साथ सौदा किया है, जिसके तहत उन्हें सतीश सिंघल के गवर्नर-काल में एक असिस्टेंट गवर्नर का पद मिलेगा तथा दो डिस्ट्रिक्ट पोस्ट मिलेंगी । इसे लेकर मीटिंग में जो हाय-हल्ला हुआ, उसमें जबर्दस्त बद्तमीजियाँ हुईं और बेहूदा शब्दों का इस्तेमाल हुआ । क्लब के पदाधिकारी इस बात पर गर्व कर रहे थे कि उन्होंने जो चाहा उसे कर लिया; पर उनका गर्व तब हवा हो गया जब उन्हें पता चला कि उस मीटिंग की पूरी कार्रवाई का ऑडियो रिकॉर्ड कर लिया गया है । यह सुन/जान कर क्लब के पदाधिकारियों के तो तोते उड़ गए और वह फिर अपनी 'औकात' पर आ गए तथा मीटिंग की कार्रवाई का ऑडियो रिकॉर्ड करने वालों के प्रति सोशल मीडिया में अपशब्दों से हमला करने लगे । हास्यास्पद तरीके से उन्होंने रिकॉर्डिंग करने को तो अनैतिक व गैरकानूनी बताने का शोर किया, किंतु अपनी हरकतों पर एक शब्द नहीं कहा । यह ऐसी ही बात हुई कि किसी चोर की हरकत सीसीटीवी में रिकॉर्ड हो जाए और चोर अपनी हरकत पर शर्मिंदा होने की बजाए इस रिकॉर्डिंग को अनैतिक व गैरकानूनी बताने लगे । इस संबंध में सोशल मीडिया में जो चर्चा हुई, उसमें अध्यक्ष-पक्ष की तरफ से ऑडियो रिकॉर्डिंग करने वाले को प्रसून चौधरी के 'मुंडु' के रूप में संबोधित किया गया । चलो मान लेते हैं कि ऑडियो रिकॉर्डिंग करने वाला प्रसून चौधरी का 'मुंडु' होगा, लेकिन इसी तर्ज पर यह भी तो बताना चाहिए कि कॉन्करेंस के लिए पदों की सौदेबाजी करने तथा क्लब व रोटरी को बेचने वाले तथा उनके समर्थक किसके 'मुंडु' हैं ?
क्लब को और रोटरी को बेच देने के लिए तैयार हो जाने वाले मौजूदा पदाधिकारियों व उनके गिने-चुने संगी-साथियों की हरकतों को देखते हुए ही क्लब के कुछेक सदस्य पिछले महीनों में सवाल उठाते रहे हैं कि यह रोटरी क्लब है, या 'क्लब' है । यह सवाल इसलिए उठे क्योंकि रोटरी क्लब वैशाली के ही सदस्यों ने देखा/पाया कि उनका क्लब तो शराबबाजी और मौजमस्ती का अड्डा बनता जा रहा है । मीटिंग के नाम पर कुछ ही परिवार इकठ्ठा होते और उनमें इस बात के लिए शर्त लगती कि कौन ज्यादा शराब पी सकता है ! गज़ब तो पिछले दिनों असेम्बली में हुआ । दो दिन की असेम्बली में करीब दस परिवार गए थे : असेम्बली से लौटने का समय हुआ तो अध्यक्ष मनोज भदौला ने घोषणा की कि वह तो आज नहीं लौटेंगे । लौटने की तैयारी कर चुके सदस्यों ने आज न लौटने का कारण पूछा तो अध्यक्ष ने उन्हें बताया कि शराब की चार-पाँच बोतलें बच गई हैं, वह तो उन्हें खत्म करने के बाद ही लौटेंगे । असेम्बली के तय कार्यक्रम के अनुसार छह-सात परिवार ही लौटे, तथा बाकी तीन-चार परिवार शराब की बची हुई बोतलों को निपटाने के लिए असेम्बली के नाम पर एक दिन और रुक गए । असेम्बली का रोटरी में बड़ा खास महत्व है, जिसे ध्यान में रखते हुए ही रोटरी के कुछेक कार्यक्रमों में इसे विशेष रूप से डिजाइन किया गया है । रोटरी क्लब वैशाली में मनोज भदोला की अध्यक्षता में लेकिन इसे मटरगस्ती का जरिया और बहाना बना दिया गया है । मनोज भदोला मटरगस्ती में इस कदर मशगूल हैं कि रोटरी के नियम-कानूनों व व्यवस्था का पालन करने/करवाने के लिए उनके पास समय ही नहीं है । उन्हें बैंक में क्लब के अकाउंट के सिग्नेटरी बदलने का समय नहीं मिला है और तीन वर्ष से बैंक अकाउंट के सिग्नेटरी आशीष महाजन ही बने हुए हैं । मटरगस्ती के लिए क्लब में फंड आए, इसके लिए तरह तरह के उपाय सोचते रहने और उन्हें अमल में लाते रहने के लिए उनके पास समय की कोई कमी नहीं है । इसी के तहत अभी हाल ही में मनोज भदोला ने क्लब की नियमाबली में एक नियम यह बनवाया है कि क्लब का कोई सदस्य यदि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तत करता है तो क्लब की अनुमति पाने के लिए से क्लब के फंड में दस लाख रुपए देने होंगे । 
रोटरी क्लब वैशाली के पदाधिकारी कॉन्करेंस के चक्कर में न पड़े होते तो यह तथ्य दबा-छिपा ही रह गया होता कि क्लब के अध्यक्ष मनोज भदोला के लिए रोटरी का मतलब सिर्फ सौदेबाजी करना, कुछेक लोगों के साथ मिल कर क्लब में मनमानियाँ करना, उसको शराबबाजी और मटरगस्ती का अड्डा बना देना - और क्लब का कोई वरिष्ठ सदस्य यदि इस सब पर सवाल उठाए तो अपने साथियों के साथ मिलकर उसके साथ गाली-गलौच करना भर है । रोटरी क्लब वैशाली के पदाधिकारियों की असलियत जिस तरह से सामने आई है, उसे देख/जान कर लग रहा है कि मुकेश अरनेजा की कारस्तानी ने कम-अस-कम यह तो एक अच्छा काम किया है ।

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में अपनी पहचान और प्रासंगिकता बनाएँ रखने खातिर पीएस जग्गी को उम्मीदवार बनाने की केएस लूथरा की कोशिश सचमुच सफल होगी क्या ?

लखनऊ । पीएस जग्गी की असमंजसता ने केएस लूथरा को न सिर्फ बुरी तरह फँसा दिया है, बल्कि उनकी राजनीति को भी दाँव पर लगा दिया है । केएस लूथरा उन्हें इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनाना चाहते हैं, लेकिन वह न तो हाँ कह रहे हैं और न इंकार कर रहे हैं । हाँ और न के बीच झूलती पीएस जग्गी की मनोदशा ने केएस लूथरा को फँसा दिया है - क्योंकि ऐसे में केएस लूथरा के लिए अपने समर्थकों व नजदीकियों को यह बता पाना मुश्किल हो रहा है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की इस वर्ष की राजनीति के संदर्भ में वह क्या स्टैंड लें ? उनकी इस मजबूरी का फायदा शिव कुमार गुप्ता और एके सिंह उठा रहे हैं - यह लोगों को कनविंस करने सफल हो रहे हैं कि इस बार सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए चुनाव की कोई संभावना नहीं है, और एके सिंह को सभी लोगों का समर्थन मिलेगा तथा वह निर्विरोध सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनेंगे । डिस्ट्रिक्ट में लोग इस बात पर यकीन करने भी लगे हैं और इसी यकीन के चलते लोगों ने एके सिंह को भावी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में देखना/पहचानना शुरू भी कर दिया है । केएस लूथरा के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि उनके कई एक समर्थकों ने भी एके सिंह को भावी गवर्नर के रूप में देखते हुए उनके साथ नजदीकी बनाना शुरू कर दिया है । इससे केएस लूथरा को अपना समर्थन-आधार कमजोर पड़ता नजर आ रहा है । अपने समर्थन-आधार को बनाए/बचाए रखने के लिए केएस लूथरा को एक उम्मीदवार की जरूरत है - पर पीएस जग्गी इस जरूरत को उलझाए हुए हैं । पीएस जग्गी यदि उम्मीदवार बनने से इंकार कर दें, तो केएस लूथरा किसी दूसरे को उम्मीदवार बना लें; किंतु पीएस जग्गी न तो इंकार कर रहे हैं और न अपनी उम्मीदवारी के साथ आगे आ रहे हैं । 
केएस लूथरा के नजदीकियों का कहना है कि पीएस जग्गी ने उम्मीदवारी के लिए हरी झंडी तो दे दी है, लेकिन वह अभी उम्मीदवार के रूप में लोगों के बीच नहीं आना चाहते हैं और यह बात उन्होंने केएस लूथरा को भी बता दी है - इसीलिए केएस लूथरा न तो पीएस जग्गी की उम्मीदवारी की बात कर रहे हैं, और न उन्हें छोड़ कर किसी और उम्मीदवार की तलाश कर रहे हैं । पीएस जग्गी अभी अपनी उम्मीदवारी घोषित नहीं करना चाहते हैं, तो केएस लूथरा के नजदीकियों के अनुसार इसका कारण यह है कि अभी से उन्हें खर्चा शुरू कर देना पड़ेगा । पीएस जग्गी ने केएस लूथरा को समझा दिया है कि चुनाव में अभी बहुत समय है, इसलिए अभी से उम्मीदवार 'बनने' की क्या जरूरत है; जब कॉल निकलेगी, तब उम्मीदवार 'बन' जायेंगे । केएस लूथरा के लिए पीएस जग्गी को यह समझाना तो मुश्किल हो रहा है कि जब तक उम्मीदवार 'बनोगे' तब तक तो एके सिंह लोगों के बीच अपनी पैठ बना लेंगे और तब अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाना मुश्किल होगा; लेकिन वह पीएस जग्गी पर अभी से उम्मीदवार बनने के लिए दबाव भी नहीं डाल सकते हैं । पीएस जग्गी तथा उनके नजदीकियों का तर्क है कि शिव कुमार गुप्ता भी तो चुनाव से दो महीना पहले उम्मीदवार बने थे और समर्थन जुटा कर कामयाब हुए थे । पीएस जग्गी इस बात को नहीं समझ रहे हैं, लेकिन केएस लूथरा समझ रहे हैं कि उस समय हालात बिलकुल अलग थे और आज स्थिति अलग है - उस समय जो हुआ, उसे इस बार दोहरापाना मुश्किल ही होगा । 
केएस लूथरा डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के सारे गणित का लेखा-जोखा जेब में रख कर घूम रहे हैं और जब भी मौका मिलता है, उसे जेब से निकाल कर लोगों को दिखाते हैं और यह बताते तथा साबित करते हैं कि चुनावी जीत का आँकड़ा उनके पास है । केएस लूथरा जिस तरह अपने वोटों का कागज जेब में रखे घूम रहे हैं, और जब तब लोगों को दिखाते फिर रहे हैं - उससे लोगों ने एक यह बात तो समझ ली है कि केएस लूथरा इस बार चुनाव तो अवश्य ही करवायेंगे और हर संभव तरीके से एके सिंह का रास्ता रोकने का प्रयास करेंगे । दरअसल पिछले वर्ष संजय चोपड़ा और इस वर्ष शिव कुमार गुप्ता के साथ उनका जो अनुभव रहा, उसके बाद उनके लिए डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में प्रासंगिक बने रहने के लिए चुनाव लड़वाना और जितवाना जरूरी बन गया है । उल्लेखनीय है कि संजय चोपड़ा उनके ही 'आदमी' थे और शिव कुमार गुप्ता यदि आज गवर्नर हैं तो सिर्फ और सिर्फ केएस लूथरा की बदौलत हैं - इसके बावजूद संजय चोपड़ा और शिव कुमार गुप्ता ने गवर्नर के रूप में केएस लूथरा को पर्याप्त तवज्जो नहीं दी; और केएस लूथरा को इनसे बड़ी शिकायत रही । केएस लूथरा को लगता है और अपने नजदीकियों से उन्होंने यह कहा भी है कि जब संजय चोपड़ा और शिव कुमार गुप्ता ने उन्हें खास अहमियत नहीं दी, तो संदीप सहगल और एके सिंह से वह क्या उम्मीद करें ? ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट में अपनी अहमियत बनाए रखने तथा उसे 'दिखाने' के लिए केएस लूथरा को  जरूरी लगता है कि वह अपने उम्मीदवार मैदान में उतारें और उन्हें जितवाएँ । एके सिंह को चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार गुप्ता के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, इसलिए केएस लूथरा को उनके खिलाफ उम्मीदवार लाना जरूरी लग रहा है । 
केएस लूथरा के लिए मुसीबत की बात लेकिन यह है कि जीत का आँकड़ा जेब में रखे रहने के बावजूद उन्हें कोई दमदार उम्मीदवार नहीं मिल रहा, जो एके सिंह से चुनाव लड़ने को तैयार हो जाए । एक जिन पीएस जग्गी पर उनकी उम्मीद और दूसरों की निगाहें टिकी हुई हैं, उनकी उम्मीदवारी को लेकर वास्तव में कोई भी आश्वस्त नहीं है । पीएस जग्गी को जानने वालों का कहना है कि उनमें गवर्नर बनने की इच्छा तो है, पर चुनाव लड़ने के झंझट को झेलने की उतनी हिम्मत नहीं है - जितनी हिम्मत चाहिए होती है । इसीलिए डिस्ट्रिक्ट के बहुत लोगों को शक है कि पीएस जग्गी सचमुच में उम्मीदवार बनेंगे ? केएस लूथरा अपनी तरफ से हालाँकि उन्हें हिम्मत तो बँधा रहे हैं, और जेब से कागज निकाल निकाल कर जीत का गणित समझा रहे हैं - किंतु पीएस जग्गी को उनके गणित पर कितना भरोसा हो रहा है, यह आगे आने वाले दिनों में पता चलेगा । पीएस जग्गी यदि उम्मीदवार नहीं होते/बनते हैं, तब केएस लूथरा क्या करेंगे - यह एक ऐसा सवाल लोगों के बीच चर्चा में है, जिसका कोई साफ जबाव किसी के पास नहीं है । हर किसी को यह तो लगता है कि केएस लूथरा कुछ भी करके किसी न किसी को तो उम्मीदवार जरूर ही बनायेंगे, और एके सिंह का रास्ता रोकने का प्रयास अवश्य ही करेंगे । केएस लूथरा के नजदीकियों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट में अपनी पहचान और प्रासंगिकता बनाएँ रखने के लिए, केएस लूथरा के लिए ऐसा करना मजबूरी भी है । मजबूरी के बावजूद केएस लूथरा ऐसा करने में सचमुच कामयाब हो सकेंगे या नहीं, यह देखना दिलचस्प होगा । 

Sunday, December 20, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के पूर्व प्रेसिडेंट एनडी गुप्ता चुनावी जुगाड़ से क्या अपने बेटे नवीन गुप्ता को वाइस प्रेसीडेंट बनवा लेंगे

नई दिल्ली । एनडी गुप्ता ने अपने बेटे नवीन गुप्ता को इस बार वाइस प्रेसीडेंट चुनवाने का बीड़ा अभी से उठा लिया है, और इसके लिए उन्होंने नवीन गुप्ता में भी चाबी भरी है । अपने जानने वालों को खासा हैरान करते हुए नवीन गुप्ता वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए खुद भी समर्थन जुटाने के प्रयासों में लगे देखे/सुने गए हैं । नवीन गुप्ता को प्रयास करते देख/सुन कर उन्हें जानने वालों को हैरानी दरअसल इसलिए हुई है क्योंकि नवीन गुप्ता इस तरह से कभी भी सक्रिय नहीं देखे गए हैं । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य के रूप में नवीन गुप्ता का व्यवहार और रवैया दरअसल ऐसा रहा है, जैसे उन्हें यहाँ जबर्दस्ती धकेल दिया गया है । नवीन गुप्ता न तो काउंसिल की मीटिंग्स में खास दिलचस्पी लेते देखे गए हैं, और न इंस्टीट्यूट की कमेटियों के कामकाज में उन्हें कोई विशेष भूमिका और जिम्मेदारी निभाते हुए देखा गया है । नवीन गुप्ता सेंट्रल काउंसिल में अपना छठा वर्ष पूरा कर रहे हैं, और इन छह वर्षों में सक्रियता के लिहाज से सबसे सुस्त और सोते सदस्य का चुनाव यदि हो जाए तो नवीन गुप्ता एकमत से यह चुनाव जीत जायेंगे । यह तो कुछ भी नहीं, नवीन गुप्ता पर सबसे गंभीर आरोप यह है कि वह लोगों के फोन तक नहीं उठाते हैं, जिस किसी के फोन उठा भी लेते हैं उसकी सुनते नहीं हैं, और जो कोई अपनी सुनाने में कामयाब हो जाता है उसका काम कराने में तो कतई कोई दिलचस्पी नहीं लेते हैं । सेंट्रल काउंसिल के दूसरे सदस्य अपने मतदाताओं और संभावित मतदाताओं का जहाँ पूरा पूरा ख्याल रखने का हरसंभव प्रयास करते हैं, वहाँ नवीन गुप्ता अपने मतदाताओं को ठेंगे पर रखते रहे हैं । इसलिए चुनाव के दौरान उनके पिताजी एनडी गुप्ता का बहुत सा समय और एनर्जी लोगों से माफी माँगने में ही खर्च होती है । इंस्टीट्यूट के चुनाव में नवीन गुप्ता से ज्यादा सक्रियता और विजिबिलिटी और चर्चा उनके पिता एनडी गुप्ता की नजर आती है । व्यवहार के मामले में पिता और पुत्र में इतना विरोधाभास है कि कई लोग कहते सुने गए हैं कि उन्हें तो शक होता है कि नवीन गुप्ता सचमुच में एनडी गुप्ता के ही बेटे हैं ? इस शक के चलते चुनाव में नुकसान न हो, इसलिए इंस्टीट्यूट के चुनाव के लिए नवीन गुप्ता का नाम नवीन एनडी गुप्ता रख लिया गया ।  
इसी पृष्ठभूमि में वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए जुगाड़ बैठाने की कवायद में जब लोगों ने एनडी गुप्ता के साथ नवीन गुप्ता को भी सक्रिय देखा/सुना, तो उन्हें थोड़ा हैरानी हुई । एनडी गुप्ता को जानने वाले लोगों का अनुमान है कि एनडी गुप्ता ने नवीन गुप्ता की खुशामद की होगी - बेटा, कुछ तो कर ले ! और बेटा पिता पर मेहरबानी करने के लिए तैयार हो गया । नवीन गुप्ता सेंट्रल काउंसिल की मीटिंग्स व अन्य गतिविधियों में भले ही दिलचस्पी न लेते हों और लोगों को रेस्पॉन्ड भले न करते हों, लेकिन पिता की बात मान लेते हैं । उन्हें जानने वालों का कहना है कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में वह सिर्फ अपने पिता की आकांक्षा को पूरा करने की खातिर ही हैं; और वह इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट बनें यह उनसे ज्यादा उनके पिता की इच्छा है । पिता की इच्छा का पालन करते हुए ही, लोगों को हैरान करते हुए नवीन गुप्ता वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए समर्थन जुटाने की दौड़ में शामिल हो गए हैं । नवीन गुप्ता ने चूँकि सेंट्रल काउंसिल की मीटिंग्स व अन्य गतिविधियों में कभी कुछ खास दिलचस्पी नहीं ली, इसलिए सेंट्रल काउंसिल के दूसरे सदस्यों के साथ उनके सहज और भरोसे के संबंध नहीं बन सके हैं - जिस कारण से उन्हें वाइस प्रेसीडेंट चुनवाने का जिम्मा लेना तो एनडी गुप्ता को ही पड़ेगा, और उन्होंने जिम्मा ले भी लिया है; किंतु वाइस प्रेसीडेंट चूँकि नवीन गुप्ता को बनना है, इसलिए वोटरों को उन्हें शक्ल तो दिखानी ही पड़ेगी न ।
मजे की बात यह है कि इंस्टीट्यूट की 23वीं सेंट्रल काउंसिल के लिए वोटों की गिनती शुरू होने से पहले ही एनडी गुप्ता ने जिस तरह से 23वीं सेंट्रल काउंसिल के पहले वर्ष में अपने बेटे को वाइस प्रेसीडेंट चुनवाने का जुगाड़ बैठाना शुरू कर दिया है, उसमें उनके 'जल्दी' में होने का सुबूत देखा/पहचाना गया है । हालाँकि कुछेक लोग इसमें एनडी गुप्ता के चुनावी अनुभव का नतीजा भी देख/पहचान रहे हैं । उन्हें लगता है कि इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति को अच्छे से जानने/समझने के कारण एनडी गुप्ता को सक्रिय होने के लिए यह समय उचित लगा होगा, जबकि अभी दूसरे संभावित उम्मीदवार 23वीं सेंट्रल काउंसिल के नतीजों का इंतजार कर रहे हैं । एनडी गुप्ता ने अभी दूसरे रीजन के उन सदस्यों की डोर बेल बजाई है, जो 22वीं काउंसिल में हैं और जिनका 23वीं काउंसिल में आना पक्का है । एनडी गुप्ता के नजदीकी होने का दावा करने वाले लोगों का कहना है कि सेंट्रल काउंसिल में अपनी सीट पर वापस आने वाले सदस्यों से बात करके एनडी गुप्ता ने वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव के संभावित परिदृश्य को समझने/परखने का प्रयास किया है, तथा वाइस प्रेसीडेंट पद के दूसरे संभावित उम्मीदवारों की ताकत को आँकने की कोशिश की है । एनडी गुप्ता को अच्छी तरह पता है कि नवीन गुप्ता को नॉर्दर्न रीजन के मौजूदा सदस्यों के तो विरोध का सामना करना ही पड़ेगा, जो दो नए सदस्य आयेंगे उनके समर्थन का फैसला इस पर निर्भर करेगा कि नए विजेता होंगे कौन ?
एनडी गुप्ता ने नवीन गुप्ता को वाइस प्रेसीडेंट चुनवाने का जो खेल अभी से शुरू किया है, उसने वाइस प्रेसीडेंट पद के दूसरे संभावित उम्मीदवारों को चौकन्ना तो किया है - लेकिन इस संदर्भ में अपनी सक्रियता शुरू करने से पहले वह 23वीं सेंट्रल काउंसिल के चुनावी नतीजों का इंतजार कर लेना चाहते हैं । उन्हें लगता है कि 23वीं सेंट्रल काउंसिल का नतीजा आने के बाद ही वाइस प्रेसीडेंट पद का चुनावी सीन स्पष्ट होगा - वाइस प्रेसीडेंट पद के जिन संभावित उम्मीदवारों को ज्यादा वोट नहीं मिल पायेंगे, उनका दावा ढीला पड़ेगा; जिन्हें ज्यादा वोट मिलेंगे, उनका दावा मजबूत होगा । इसी हिसाब से नए समीकरण बनेंगे/जुड़ेंगे । इसीलिए वाइस प्रेसीडेंट पद के दूसरे संभावित उम्मीदवार नवीन गुप्ता को लेकर एनडी गुप्ता की सक्रियता से बहुत चिंतित या परेशान नहीं हैं । वह इसलिए भी चिंतित या परेशान नहीं हैं, क्योंकि अधिकतर लोगों का मानना और कहना है कि एनडी गुप्ता सेंट्रल काउंसिल का चुनाव नवीन गुप्ता को भले ही जितवा देते हों - लेकिन वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव जितवा पाना उनके लिए मुश्किल ही होगा । वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में नवीन गुप्ता का अपना व्यवहार व व्यक्तित्व बाधा बनेगा ही । 

Saturday, December 19, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में अतुल देव की शिकायत पर रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय की सक्रियता ने विनय भाटिया की उम्मीदवारी रद्द होने का खतरा पैदा किया

जयपुर/नई दिल्ली । अतुल देव ने विनय भाटिया की जो शिकायत की है, उस पर कार्रवाई टलवाने के लिए विनय भाटिया के समर्थक पूर्व गवर्नर्स ने जयपुर इंस्टीट्यूट में लॉबिंग तो खूब की - लेकिन अपनी लॉबिंग के सफल होने का खुद उन्हें ही कोई भरोसा नहीं मिला है । विनय भाटिया के समर्थक एक पूर्व गवर्नर ने इन पँक्तियों के लेखक से बात करते हुए बताया कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन इस मामले में लगता है कि अपना मन बना चुके हैं, और इसलिए रोटरी के दूसरे नेताओं ने इस मामले से दूर रहने का ही निश्चय किया है - और इस कारण कोई उन्हें मदद का आश्वासन तक देने को तैयार नहीं हुआ है । फरीदाबाद और दिल्ली में बैठे विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थकों को उम्मीद थी कि रोटरी इंस्टीट्यूट में शामिल होने गए उनके समर्थक पूर्व गवर्नर्स उन्हें कोई अच्छी खबर भेजेंगे, किंतु जयपुर में जुगाड़ लगा रहे उनके समर्थक पूर्व गवर्नर्स को अभी तक, जबकि रोटरी इंस्टीट्यूट अपने समापन की ओर बढ़ रहा है, कोई सफलता हाथ नहीं लगी है । फरीदाबाद और दिल्ली में बैठे विनय भाटिया के कई एक नजदीकियों व समर्थकों को तो जयपुर से सूचना मिली है कि अतुल देव की शिकायत पर विनय भाटिया की उम्मीदवारी का नामांकन रद्द होना निश्चित है । नोमीनेटिंग कमेटी के लिए तय हुए रोटेरियंस के बीच भी यह सूचना चूँकि चली गई है, इसलिए नोमीनेटिंग कमेटी के लिए प्रस्तावित रोटेरियंस में जो लोग विनय भाटिया के पक्ष में जाने का मन बना रहे थे - उन्होंने भी सोचना शुरू कर दिया है कि विनय भाटिया को वोट देकर अपना वोट खराब क्यों करना ? इस माहौल से विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थकों को तगड़ा झटका लगा है, और उनके लिए विनय भाटिया की उम्मीदवारी के पक्ष में अभियान चलाते रहना मुश्किल हुआ है । 
दिलचस्प सीन यह बना है कि इस मामले को लेकर विनय भाटिया के समर्थकों के बीच आपस में ही सिर-फुटौव्वल शुरू हो गई है, और उनके समर्थक इस स्थिति के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराने लगे हैं । उल्लेखनीय है कि विनय भाटिया की उम्मीदवारी के नजदीकी समर्थकों पर शुरू से ही यह गंभीर आरोप रहा है कि उन्होंने बहुत ही फूहड़ तरीके से हुड़दंगबाजी करके विनय भाटिया की उम्मीदवारी के अभियान को चलाया है, और कई मौकों पर हुड़दंगबाजी में खुद विनय भाटिया भी शामिल हुए/दिखे - जिससे लोगों के बीच विनय भाटिया की उम्मीदवारी को लेकर नकारात्मक प्रभाव ही बना है । डिस्ट्रिक्ट में जब चारों तरफ से आलोचना हुई तो विनय भाटिया और उनके नजदीकी समर्थकों पर लगाम कसी गई; विनय भाटिया को समझाया गया कि रोटरी में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनना चाहते हो तो उसके लायक यदि सचमुच बन न सको तो लेकिन कम से कम 'दिखने' की कोशिश तो करो । विनय भाटिया ने भेष बदलने की कोशिश तो खूब की, लेकिन भेष बदल कर असलियत ज्यादा समय तक चूँकि नहीं छिपाई जा सकती, और वह सामने आ ही जाती है - विनय भाटिया खुद अपनी ही सोच और अपने ही व्यवहार का शिकार हो गए । विनय भाटिया और उनके नजदीकी समर्थक अपनी मुसीबत के लिए अब अपने ही समर्थक पूर्व गवर्नर्स को कोस रहे हैं : उनका कहना है कि उनके समर्थक गवर्नर्स उनकी कमियाँ/गलतियाँ ही बताते रहते हैं और जब सचमुच कुछ करने की जरूरत होती है तो बहानेबाजी करने लगते हैं । विनय भाटिया और उनके समर्थकों की आलोचना का शिकार हो रहे उनके समर्थक पूर्व गवर्नर्स का कहना है कि विनय भाटिया और उनके नजदीकी समर्थक सलाह सुनेंगे/मानेंगे नहीं, और जब अपनी ही हरकतों से फँसेंगे तो उम्मीद करेंगे कि अब इन्हें जैसे भी करके बचाओ । विनय भाटिया के समर्थक गवर्नर्स का ही कहना है कि अपनी उम्मीदवारी के नामांकन के निरस्त होने की स्थिति खुद विनय भाटिया ने ही अपने रवैये से पैदा की है ।
मामला गिफ्ट देने का है । उल्लेखनीय है कि रोटरी की चुनावी राजनीति में उम्मीदवार द्वारा पार्टियाँ देने तथा गिफ्ट देने का चलन स्वीकार्यता पा चुका है, और सभी यह मानते और जानते हैं कि समर्थन पाने के लिए उम्मीदवार को यह करना ही होगा । इसके बाद 'देखने' की बात यह रह जाती है कि कौन उम्मीदवार इस काम को अंजाम किस तरह से और कैसे देता है ? उम्मीद की जाती है कि पार्टियाँ और गिफ्ट इस 'अदा' के साथ दिया जाए कि पाने वाले को अच्छा लगे और वह देने वाले के व्यवहार से प्रभावित हो । इस 'अदा' का एक फायदा यह भी होता है कि रोटरी की चुनावी राजनीति में जो रोटेरियंस पार्टियों व गिफ्ट्स के चलन के पक्ष में नहीं भी होते हैं, वह भी व्यवहार से प्रभावित होकर चुप लगा जाते हैं । विनय भाटिया इस बात को समझने/अपनाने में चूक गए - जिसका नतीजा यह रहा कि उम्मीदवार के रूप में उन्होंने जो पार्टियाँ दीं और जो गिफ्ट दिए, वह खासी फूहड़ता के साथ दिए; जिन्हें 'लेते' हुए लोगों ने खुद को खासा अपमानित ही महसूस किया । कुछेक लोगों ने आपसी बातचीत में कहा भी कि विनय भाटिया ने इस अंदाज में गिफ्ट पहुँचाएँ जैसे वह वोट पाने के लिए रिश्वत पहुँचा रहे हों । लोगों के इस अपमान महसूसने को आवाज दी रोटरी क्लब दिल्ली इंद्रप्रस्थ ओखला के वरिष्ठ सदस्य अतुल देव ने । अतुल देव ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला को शिकायत लिखी कि नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्य के रूप में उनका वोट पाने के लिए विनय भाटिया ने उन्हें गिफ्ट भेजा है, जो रोटरी के उच्च आदर्शों के तो खिलाफ है ही, साथ ही चुनाव को प्रभावित करने का प्रयास भी है । अतुल देव ने यह कहते हुए नोमीनेटिंग कमेटी की अपनी सदस्यता भी छोड़ दी कि जहाँ चुनाव को इस तरह मजाक बना दिया जाए वहाँ चुनावी प्रक्रिया में उनके शामिल होने का कोई मतलब नहीं है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला ने अतुल देव के इस आरोप पर विनय भाटिया से जबाव माँगा । विनय भाटिया अब तक अपने आप को विजयी समझने लगे थे, सो उसी 'नशे' में उन्होंने जबाव में अतुल देव को झूठा बता दिया । अतुल देव आर्मी में रहे हैं और इस नाते उनके कामकाज और काम करने के उनके तरीके में एक खास किस्म का अनुशासन रहा है; पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता के साथ उनकी नजदीकियत रही है - उन्हें विनय भाटिया से अपने को झूठा सुनना और बुरा लगा । विनय भाटिया ने सोचा यह था कि वह अतुल देव को झूठा कह देंगे और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला मामले को खत्म/बंद कर देंगे - लेकिन अतुल देव की तरफ से सुधीर मंगला को मामले की जाँच के लिए कमेटी बनाने का सुझाव मिला । अतुल देव का कहना रहा कि जिस पर आरोप लगता है, वह तो आरोप को झूठा बताता ही है, ऐसे में आरोप की सच्चाई की पड़ताल तो तीसरा पक्ष ही कर सकेगा । सुधीर मंगला ने मामले को रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय को भेज दिया और सलाह माँगी कि वह क्या करें ? इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन ने चूँकि रोटरी में चुनाव को लेकर होने वाली धांधलियों और चुनाव को प्रभावित करने की कोशिशों के खिलाफ बड़ा कठोर रवैया अपनाया हुआ है, लिहाजा रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने अतुल देव की शिकायत के मामले को गंभीरता से लिया । अतुल देव की शिकायत को पुख्ता बनाने के उद्देश्य से रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने अतुल देव से एफिडेविट देने को कहा, जो अतुल देव ने तुरंत से दे दिया । इस कार्रवाई की जानकारी मिलते ही विनय भाटिया समर्थकों के बीच खलबली मच गई । अभी तक तो विनय भाटिया और उनके समर्थक आश्वस्त थे कि अतुल देव की शिकायत का कुछ नहीं होगा : उन्हें पक्का भरोसा था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला कुछ करने की हिम्मत नहीं करेंगे, और जब वह हिम्मत नहीं करेंगे तो फिर होगा भी क्या ? 
अतुल देव की तरफ से भी विनय भाटिया और उनके समर्थक आश्वस्त थे कि अतुल देव की रोटरी में कोई खास सक्रियता भी नहीं है, और वह ज्यादा कुछ जानते भी नहीं हैं; सुशील गुप्ता के साथ उनकी जो नजदीकियत है वह भी व्यक्तिगत किस्म की है और सुशील गुप्ता को भी मैनेज कर लिया जायेगा । लेकिन रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने जिस तरह से अतुल देव की शिकायत में दिलचस्पी ली है और जिस तरह से उनसे एफिडेविट लिया है, उससे विनय भाटिया और उनके समर्थकों के बीच खलबली मची है । विनय भाटिया के समर्थक पूर्व गवर्नर्स ने रोटरी इंस्टीट्यूट में जयपुर जाते समय विनय भाटिया को भरोसा तो दिया था कि जयपुर में सभी बड़े नेता मिलेंगे, सो वह कुछ जुगाड़ लगायेंगे । लेकिन जुगाड़ कुछ लगा नहीं है । रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय के रवैये को देखते हुए रोटरी के बड़े नेताओं ने जयपुर में मौजूद डिस्ट्रिक्ट 3011 के विनय भाटिया के समर्थक पूर्व गवर्नर्स को साफ बता दिया है कि विनय भाटिया की उम्मीदवारी का निलंबन पक्का है, इसलिए इस मामले में अब दिलचस्पी न लो । जयपुर गए अपने समर्थक पूर्व गवर्नर्स से यह सुन/जान कर विनय भाटिया और उनके समर्थकों को गहरा धक्का लगा है और निराशा व हताशा में वह अपने समर्थक पूर्व गवर्नर्स को कोसने में लग गए हैं । 

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में कॉन्करेंस जुटाने से जुड़ी अपनी कारस्तानियों को लेकर मुकेश अरनेजा को रोटरी इंस्टीट्यूट में भारी छीछालेदर का सामना करना पड़ा है

जयपुर/नई दिल्ली । जयपुर स्थित बीएम बिड़ला ऑडीटोरियम में रोटरी इंस्टीट्यूट में शामिल होने आए रोटरी के बड़े नेताओं तथा विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारियों के बीच डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अपनी भूमिका को लेकर मुकेश अरनेजा को जिस लानत-मलानत का शिकार होना पड़ा, उसका वहाँ मौजूद दूसरे रोटेरियंस के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट 3012 व डिस्ट्रिक्ट 3011 के रोटेरियंस नेताओं ने खूब मजा लिया । मुकेश अरनेजा के लिए मुसीबत की बात यह रही कि वहाँ उनके बचाव में कोई आगे नहीं आया, और जिनसे उन्हें सहयोग व समर्थन मिलने की उम्मीद भी थी - वह लोग भी उनकी उड़ती खिल्ली में मजे लेते देखे गए । मुकेश अरनेजा के लिए आफत यह रही कि इंस्टीट्यूट के उद्घाटन अवसर पर जुटे रोटरी नेताओं के बीच खड़े रहना, उनके लिए अपनी फजीहत को निमंत्रण देने जैसा रहा । प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, मुकेश अरनेजा जिस किसी के पास खड़े हो जाते - वही उनसे डिस्ट्रिक्ट 3012 के चुनाव में उनकी भूमिका का जिक्र छेड़ देता और कहने लगता कि एक वरिष्ठ पूर्व गवर्नर के रूप में उन्हें वह सब नहीं करना चाहिए जो उन्होंने किया है या कर रहे हैं । किसी किसी ने तो मुकेश अरनेजा को साफ साफ कहा कि उनकी हरकतों से दूसरे रोटेरियंस को भी शर्मिंदा होना पड़ता है, और रोटरी की बदनामी होती है । अधिकतर मौकों पर होता यह कि यह बात शुरू होती तो आसपास खड़े दूसरे लोग भी इस बातचीत में शामिल हो जाते और फिर सब मिल कर मुकेश अरनेजा की लानत-मलानत करते - और मुकेश अरनेजा के लिए उससे बच निकलना मुश्किल होता । 
मुकेश अरनेजा के लिए हालत यह बनी कि रोटरी इंस्टीट्यूट में उनसे पहले उनकी कारस्तानियों की खबरें पहुँची हुई थीं, और इसीलिए हो यह रहा था कि मुकेश अरनेजा जिससे भी मिलते वह उनसे हालचाल पूछने की बजाए उनकी कारस्तानियों की बात छेड़ देता । रोटरी इंस्टीट्यूट में मौजूद लोगों के बीच मुकेश अरनेजा की बदनामी के चर्चे सुन/देख कर बड़े रोटरी नेताओं ने मुकेश अरनेजा को तवज्जो नहीं दी, और उन्हें अपने पास ज्यादा देर बैठने/खड़े होने नहीं दिया । कुछेक बड़े नेताओं के साथ और उनके बीच तस्वीरें खिंचवाने के लिए मुकेश अरनेजा को खासी मशक्कत करना पड़ी - कुछेक मौकों पर वह इसमें सफल भी हुए । रोटरी इंस्टीट्यूट के उद्घाटन के मौके पर मुकेश अरनेजा ने रोटरी के बड़े नेताओं के साथ तस्वीरें खिंचवाने पर खास ध्यान दिया, ताकि सोशल साइट्स पर उन्हें पेस्ट करके वह लोगों को 'दिखा' सकें कि तमाम बदनामी और फजीहत के बावजूद रोटरी के बड़े नेताओं के बीच उनकी अच्छी पैठ है । रोटरी के बड़े नेताओं के साथ तस्वीरें खिंचवाना मुकेश अरनेजा के लिए कभी भी इतना मुश्किल नहीं हुआ, जितना इस बार रोटरी इंस्टीट्यूट के उद्घाटन मौके पर हुआ । रोटरी इंस्टीट्यूट के जयपुर में हुए उद्घाटन अवसर पर रोटरी के बड़े नेताओं के साथ तस्वीरें खिंचवाने के लिए मुकेश अरनेजा बेशर्मी पर उतरे, तब जाकर वह कुछेक बड़े नेताओं के साथ तस्वीरें खिंचवा सकने में सफल हो सके । 
रोटरी नेताओं के बीच मुकेश अरनेजा की सबसे ज्यादा छीछालेदर डिस्ट्रिक्ट 3012 के रोटरी क्लब वैशाली के संदर्भ में हुई । रोटरी क्लब वैशाली में सदस्यों की सदस्यता को लेकर रोटरी इंटरनेशनल की वेबसाइट के साथ जिस तरह की छेड़छाड़ की गई, उसे रोटरी नेताओं ने बहुत ही 'संगीन अपराध' के रूप में देखा/पहचाना है - और इस 'अपराध' के प्रेरणा स्रोत के रूप में मुकेश अरनेजा को जिम्मेदार पाया/ठहराया । जिन्हें भी इस किस्से की जानकारी रही, उन्होंने माना/समझा कि वैशाली क्लब की कॉन्करेंस जुटाने के लिए मुकेश अरनेजा ने क्लब में झगड़ा पैदा करने का जो काम किया, उसे अंजाम तक पहुँचाने के लिए मुकेश अरनेजा ने ही क्लब के प्रेसीडेंट मनोज भदोला को रोटरी इंटरनेशनल के रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ करने का रास्ता दिखाया/सुझाया - और इसके बाद जो हुआ उससे रोटरी इंटरनेशनल की सदस्यता का रिकॉर्ड रखने की व्यवस्था मजाक बन कर रह गई । मजे की बात यह रही कि मुकेश अरनेजा के दिखाए रास्ते पर चल कर जिन मनोज भदोला ने इस खेल की शुरुआत की, वही मनोज भदोला आज क्लब से बाहर कर दिए गए हैं । दरअसल वैशाली क्लब की कॉन्करेंस का जुगाड़ बैठा रहे मुकेश अरनेजा को क्लब के प्रेसीडेंट मनोज भदोला ने बताया कि क्लब के वरिष्ठ सदस्य प्रसून चौधरी कॉन्करेंस देने का विरोध कर सकते हैं और चूँकि क्लब में प्रसून चौधरी की अच्छी पकड़ है, इसलिए उनके विरोध के चलते क्लब के बाकी सदस्यों को कॉन्करेंस के लिए राजी करना असंभव होगा । उल्लेखनीय है कि प्रसून चौधरी पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार थे - नोमीनेटिंग कमेटी में फैसला लेकिन उनके अनुकूल नहीं रहा था; डिस्ट्रिक्ट में कई नेताओं व लोगों का उन पर दबाव रहा कि उन्हें अधिकृत उम्मीदवार को चेलैंज करना चाहिए, लेकिन प्रसून चौधरी ने साफ कह दिया कि अधिकृत उम्मीदवार को चेलैंज करने के काम में जो गंदगी होती है उसे वह रोटरी के हित में नहीं देखते हैं और इसलिए वह चेलैंज नहीं करेंगे । प्रसून चौधरी ने अधिकृत उम्मीदवार को चेलैंज न करने की लाइन ली, उससे रोटरी में और डिस्ट्रिक्ट में उनका कद और बढ़ा । इसी कारण से मुकेश अरनेजा और उनके जाल में फँसे क्लब प्रेसीडेंट मनोज भदोला को लगा कि प्रसून चौधरी कॉन्करेंस में रोड़ा बनेंगे । 
मुकेश अरनेजा ने मनोज भदोला को प्रसून चौधरी रूपी रोड़े को हटाने का उपाय बताया कि क्लब में फर्जी किस्म की ग्राउंड तैयार करो और उसका बहाना लेकर प्रसून चौधरी को क्लब से ही बाहर कर दो । मनोज भदोला ने मुकेश अरनेजा की आज्ञा का पालन किया । किंतु मामला उल्टा पड़ गया । प्रसून चौधरी की क्लब में जो साख है, उसके चलते फर्जी तरीके से क्लब से उन्हें निकालने की कार्रवाई पर क्लब में बबाल हो गया । इस बबाल को थामने तथा क्लब के लोगों के विरोध को नियंत्रित करने के लिए मनोज भदोला ने अपने गिने-चुने साथियों के साथ मिलकर चालबाजियाँ तो खूब चलीं, लेकिन उनकी चालबाजियाँ उनके काम आई नहीं और कुल नतीजा यह है कि प्रसून चौधरी को क्लब से निकाले जाने के फैसले को रद्द कर दिया गया है, और प्रेसीडेंट मनोज भदोला को क्लब से निकाल दिया गया है । रोटरी क्लब वैशाली का मामला वैसे तो एक क्लब का मामला भर है, जिस पर रोटरी के बड़े नेताओं का ध्यान शायद ही जाता - किंतु इस मामले में मुकेश अरनेजा की संलग्नता और रोटरी इंटरनेशनल की वेबसाइट के साथ हुई छेड़छाड़ ने इसे एक बड़ा मामला बना दिया है । 
रोटरी इंस्टीट्यूट के उद्घाटन अवसर पर मौजूद रोटेरियंस के बीच मुकेश अरनेजा की इस बात के लिए भी खासी छीछालेदर हुई कि कॉन्करेंस जुटाने के लिए उन्होंने अपने डीआरएफसी होने का बेजा इस्तेमाल किया और मैचिंग ग्रांट के नाम पर क्लब्स के पदाधिकारियों को ब्लैकमेल किया । उल्लेखनीय है कि कुछेक क्लब्स के पदाधिकारियों ने आरोप लगाया है कि मुकेश अरनेजा ने उन्हें धमकी दी कि उन्होंने यदि कॉन्करेंस नहीं दी तो वह मैचिंग ग्रांट के उनके आवेदनों पर साइन नहीं करेंगे । अधिकृत उम्मीदवार सुभाष जैन के खिलाफ कॉन्करेंस जुटाने में मुकेश अरनेजा ने अपने पद की गरिमा के साथ साथ रोटरी को भी जिस तरह से लज्जित किया है, उसकी हर किसी ने तीखी आलोचना ही की है । मुकेश अरनेजा के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि क्लब्स में झगड़े करवा कर तथा अपनी भारी फजीहत करवा कर उन्होंने जो कॉन्करेंस इकठ्ठा की/करवाई हैं, उनके फर्जी होने की पोल खुलने लगी है । कुछेक क्लब्स के पदाधिकारियों तथा सदस्यों ने अपने अपने क्लब की कॉन्करेंस को फर्जी करार देते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ को पत्र लिखे हैं । इससे कई क्लब्स की कॉन्करेंस निरस्त हो जाने की संभावना बन रही है । सचमुच यदि ऐसा हुआ तो मुकेश अरनेजा के लिए तो 'जूते भी खाने और प्याज भी खाने' वाला मामला हो जायेगा - यानि रोटरी भर में बदनामी भी मिली और काम भी नहीं हुआ । 

Monday, December 14, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटरी बॉल के स्थगन के लिए विनय भाटिया और उनके समर्थकों ने नवदीप चावला और विजय जिंदल को निशाना बनाया

फरीदाबाद/नई दिल्ली । विनय भाटिया और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों ने रोटरी बॉल की तैयारियों की ढीलमढाल के लिए जिस तरह नवदीप चावला को जिम्मेदार ठहराना शुरू किया, उसका नतीजा यह हुआ कि नवदीप चावला ने बॉल की तैयारी में दिलचस्पी लेना बिलकुल ही छोड़ दिया और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला को 20 दिसंबर को आयोजित होने वाले बॉल कार्यक्रम को स्थगित कर देने के लिए मजबूर होना पड़ा है । मजेदार सीन यह है कि बॉल कार्यक्रम के स्थगित होने पर विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थक कुछेक पूर्व गवर्नर सुधीर मंगला को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । उनका कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुधीर मंगला के नकारापन का यह एक बड़ा सुबूत है कि अपने एक महत्वपूर्ण आयोजन को तय समय पर कर पाने में वह विफल रहे हैं और उसे स्थगित करके उन्हें अपनी इज्जत बचाना पड़ रही है । सुधीर मंगला और उनके नजदीकी बॉल कार्यक्रम के स्थगित होने के लिए फरीदाबाद के रोटेरियन नेताओं के साथ साथ विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थक पूर्व गवर्नर्स को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । सुधीर मंगला और उनके नजदीकी फरीदाबाद के रोटेरियन नेताओं तथा विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थक पूर्व गवर्नर्स की बातों में आने तथा उन पर भरोसा करने को अपनी सबसे बड़ी भूल व गलती के रूप में रेखांकित कर रहे हैं । सुधीर मंगला और उनके नजदीकी मान रहे हैं और कह रहे हैं कि वह यदि 'यह गलती' न करते तो उन्हें आज यह दुर्दिन न देखना पड़ता । सुधीर मंगला और उनके नजदीकी इस बात पर भी हैरान हैं कि विनय भाटिया के समर्थक पूर्व गवर्नर्स अपने नकारापन और अपनी असफलता का ठीकरा उनके सिर क्यों फोड़ रहे हैं ?
सुधीर मंगला और उनके नजदीकियों का कहना है कि फरीदाबाद के रोटेरियन नेताओं तथा विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थक पूर्व गवर्नर्स ने रोटरी डिस्ट्रिक्ट बॉल आयोजन कमेटी का चेयरमैन नवदीप चावला को तथा को-चेयरमैन विजय जिंदल को बनाने के लिए उनपर खासा दबाव बनाया था । सुधीर मंगला को आश्वस्त किया गया था कि बॉल की सारी जिम्मेदारी वह फरीदाबाद के रोटेरियंस को सौंप दें और निश्चिंत हो जाएँ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुधीर मंगला को यह ऑफर स्वाभाविक रूप से बहुत ही आकर्षक लगा, लिहाजा उन्होंने इसे स्वीकार करने में जरा भी देर नहीं की और बॉल आयोेजन कमेटी के दोनों बड़े पद फरीदाबाद को सौंप दिए । सुधीर मंगला को हालाँकि कुछेक लोगों ने उस समय यह समझाने का खूब प्रयास किया था कि जिन लोगों की बातों में आकर वह 'यह' रहे हैं, वह फरीदाबाद के नाम पर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं और फरीदाबाद के लोगों के साथ साथ उन्हें भी इस्तेमाल कर रहे हैं - सुधीर मंगला ने लेकिन तब किसी की नहीं सुनी । फरीदाबाद के लोगों के साथ साथ नवदीप चावला को भी धीरे धीरे समझ में आने लगा कि विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थक नेता फरीदाबाद के नाम पर उन्हें इस्तेमाल करने तथा उनकी जेब काटने का काम कर रहे हैं । 
फरीदाबाद के रोटेरियंस का माथा तो दरअसल यह देख/जान कर ठनका कि विनय भाटिया और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेता अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए हर काम की जिम्मेदारी ले लें, और फिर पैसा देने के लिए उन पर दबाव बनाएँ । पेट्स में यही हुआ । विनय भाटिया और उनके समर्थकों ने अपना प्रभाव जमाने/दिखाने के लिए पेट्स में दिए जाने वाले गिफ्ट्स का जिम्मा ले लिया और फिर उसके खर्च का बोझ फरीदाबाद से पेट्स में जाने वाले लोगों के सिर मढ़ने का प्रयास किया । फरीदाबाद में इसकी इतनी तीखी प्रतिक्रिया हुई कि कई लोगों ने पेट्स में जाने से ही इंकार कर दिया । फरीदाबाद में लोगों का कहना रहा कि यह सब चूँकि विनय भाटिया की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के लिए किया जा रहा है, इसलिए इसका खर्चा विनय भाटिया को उठाना चाहिए । उस बबाल को बड़ी मुश्किल से संभाला जा सका । विनय भाटिया और उनके समर्थकों ने लेकिन उस बबाल से कोई सबक नहीं लिया । विनय भाटिया के क्लब के अधिष्ठापन समारोह में फिर यही समस्या पैदा हुई । विनय भाटिया ने चाहा कि उनकी उम्मीदवारी के संदर्भ को देखते हुए उनके क्लब का अधिष्ठापन समारोह जोरशोर से हो और उसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को शामिल होने के लिए प्रेरित किया जाए । क्लब के पदाधिकारियों व सदस्यों को विनय भाटिया की इस चाहना को पूरा करने को लेकर तो कोई समस्या नहीं थी, किंतु इसके खर्च को लेकर मामला फँस गया । क्लब के पदाधिकारियों व सदस्यों का कहना रहा कि विनय भाटिया की उम्मीदवारी के चक्कर में अधिष्ठापन समारोह में जो अतिरिक्त खर्चा हो रहा है, उसकी भरपाई विनय भाटिया करें; किंतु विनय भाटिया इस चक्कर में रहे कि जो भी खर्चा है, उसे क्लब के लोग मिलजुल कर पूरा करें । इसे लेकर क्लब में खासी हीलहुज्जत हुई और बस जैसे तैसे क्लब का अधिष्ठापन समारोह हुआ । 
डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले तक आते आते फरीदाबाद के लोगों के बीच विनय भाटिया और उनके समर्थकों की पोल-पट्टी पूरी तरह खुल चुकी थी - लेकिन मजे की बात यह रही कि विनय भाटिया और उनके समर्थकों ने इस सच्चाई से अपनी आँखें पूरी तरह मूंदी रखीं । नतीजा यह रहा कि विनय भाटिया और उनके समर्थकों ने तो दीवाली मेले के लिए स्पॉन्सरशिप दिलवाने तथा टिकट बिकवाने को लेकर बड़े बड़े दावे किए, किंतु फरीदाबाद के लोगों ने उनके दावों को पूरा करवाने में कोई दिलचस्पी नहीं ली । विनय भाटिया और उनके समर्थकों ने दीवाली मेले के नाम पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला को बड़े बड़े सब्ज़बाग दिखाए कि इतने की स्पॉन्सरशिप यहाँ से दिलवायेंगे, उतने की स्पॉन्सरशिप वहाँ से दिलवायेंगे, इतने टिकट बिकवायेंगे - लेकिन जब सचमुच कुछ करने का मौका आया तो विनय भाटिया और उनके समर्थक सुधीर मंगला से मुँह छिपाते फिरे । टिकटों का हिसाब देने का समय आया तो बहुत से टिकटें तो यह कह कर लौटा दीं कि यह बिक नहीं पाई हैं, और बिकी हुई टिकटों का पैसा भी बाद में देने की बात कही गई । सुधीर मंगला दीवाली मेले के तीन लाख से ज्यादा रुपए विनय भाटिया और उनके समर्थकों पर अभी तक बकाया होने का रोना रोते सुने जा रहे हैं - और उन्हें यह तक नहीं बताया जा पा रहा है कि यह बकाया रकम देगा कौन ? विनय भाटिया और उनके समर्थक नेता इसके लिए फरीदाबाद के रोटेरियंस को जिम्मेदार तो ठहरा रहे हैं, लेकिन यह नहीं बता रहे हैं कि यह बकाया रकम मिलेगी कैसे और किससे ?
डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले में फरीदाबाद के लोगों ने जिस तरह से विनय भाटिया और उनके समर्थकों की चालबाजी में फँसने से इंकार किया, उसे देख/जान कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला और बॉल कमेटी के चेयरमैन तथा को-चेयरमैन विजय जिंदल के कान खड़े हुए । नवदीप चावला और विजय जिंदल बॉल के आयोजन से पीछा छुटाते से दिखे तो विनय भाटिया और उनके समर्थकों ने उन्हें ही लपेटे में लेना शुरू कर दिया । विनय भाटिया और उनके समर्थकों की तरफ से कहा जाने लगा कि नवदीप चावला व विजय जिंदल को पद पाने का तो शौक है, लेकिन पद की जिम्मेदारी निभाने में दिलचस्पी नहीं है - और उनके इस रवैये से फरीदाबाद का नाम तो ख़राब हो ही रहा है, विनय भाटिया की उम्मीदवारी पर भी बुरा असर पड़ रहा है । विनय भाटिया और उनके नजदीकियों की तरफ से नवदीप चावला और विजय जिंदल पर दबाव बनाने के उद्देश्य से कहा जाने लगा कि इनके बस की यदि बॉल को आयोजित करना नहीं है, तो यह अपने अपने पदों से इस्तीफ़ा क्यों नहीं दे देते ? विनय भाटिया और उनके समर्थकों का यह रवैया नवदीप चावला और विजय जिंदल के लिए हैरान करने वाला था - क्योंकि इन्हें बॉल की जिम्मेदारी मिलने से विनय भाटिया और उनके समर्थक खुश ही दिखते रहे हैं । नवदीप चावला व विजय जिंदल के लिए यह समझना मुश्किल हुआ कि अचानक से इन्हें क्या हो गया है, जो यह इनके खिलाफ बातें करने लगे ? विनय भाटिया के नजदीकियों का ही कहना है कि नवदीप चावला और विजय जिंदल के प्रति विनय भाटिया तथा उनके समर्थकों ने विरोधी रवैया इसलिए अपना लिया ताकि बॉल की असफलता से विनय भाटिया की उम्मीदवारी पर कोई प्रतिकूल असर न पड़े । विनय भाटिया और उनके समर्थकों के इस स्वार्थी रवैये ने नवदीप चावला व विजय जिंदल को खासी तगड़ी चोट पहुँचाई । फरीदाबाद के लोगों के इस तरह आपस में एक दूसरे को नीचा दिखाने की कार्रवाई में लगा देख डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला को बॉल के आयोजन को स्थगित कर देने में ही अपनी भलाई नजर आई । फरीदाबाद के रोटेरियन नेताओं की आपसी खींचतान ने पहले दीवाली मेले के आयोजन को घाटा पहुँचाया और अब रोटरी के प्रमुख व प्रतिष्ठित कार्यक्रम को ही लील लिया है । 

Wednesday, December 9, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में विनय भाटिया और उनके समर्थकों से मिली लताड़ से डिस्ट्रिक्ट 3012 में दीपक गुप्ता के पक्ष में कॉन्करेंस जुटाने के मुकेश अरनेजा के प्रयासों को खासा तगड़ा वाला झटका लगा है

नई दिल्ली । मुकेश अरनेजा ने डिस्ट्रिक्ट 3012 की चुनावी राजनीति में दीपक गुप्ता की लुटिया डुबोने के बाद डिस्ट्रिक्ट 3011 में विनय भाटिया की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का प्रयास शुरू किया, तो उन्हें लोगों से खासी लताड़ सुनने को मिली । कई लोगों ने ताना सा मारते मुकेश अरनेजा से कहा कि अब जब आप इस डिस्ट्रिक्ट में नहीं रह गए हैं, तो अब तो इस डिस्ट्रिक्ट को अपनी राजनीति का अखाड़ा न बनाओ । मुकेश अरनेजा के लिए इससे भी ज्यादा बदकिस्मती की बात यह रही कि विनय भाटिया के समर्थकों व शुभचिंतकों ने ही उनसे कहा कि विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थन में उनके सक्रिय होने से विनय भाटिया को नुकसान ही होगा, इसलिए कृपया आप कुछ न करें और चुप ही रहें । डिस्ट्रिक्ट 3011 में लोगों की तरफ से मिले इस रिएक्शन ने मुकेश अरनेजा को तगड़ा झटका दिया है । उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में डिस्ट्रिक्ट 3012 में अपनी चुनावी फजीहत के बीच मुकेश अरनेजा ने कुछेक लोगों के बीच शिकायती स्वर में रोना रोया था कि मुझे तो डिस्ट्रिक्ट 3011 के लोग अपने यहाँ बुला रहे थे, किंतु मैंने डिस्ट्रिक्ट 3012 में रहने का फैसला किया और आप मेरे साथ परायों व दुश्मनों जैसा व्यवहार कर रहे हो । उनकी इस भंगिमा को लोगों को भावनात्मक रूप से प्रभावित करने की चाल के रूप में देखा/पहचाना गया । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में दीपक गुप्ता के पक्ष में मुकेश अरनेजा ने जो भी चाल चली, वह उल्टी ही पड़ी, और नोमीनेटिंग कमेटी में दीपक गुप्ता बड़े भारी अंतर से सुभाष जैन से पिछड़ गए । मुकेश अरनेजा को नोमीनेटिंग कमेटी की चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने का बड़ा मास्टर माना जाता है, लेकिन दीपक गुप्ता के लिए मुकेश अरनेजा ने जो भी मास्टरी दिखाई, उसकी बुरी गत ही बनी । मुकेश अरनेजा का कोई फार्मूला काम नहीं आया । 
दीपक गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों का तो यहाँ तक कहना है कि नोमीनेटिंग कमेटी में दीपक गुप्ता की जो बुरी स्थिति रही, उसके लिए मुकेश अरनेजा जिम्मेदार हैं । दीपक गुप्ता दरअसल समझ ही नहीं पाए कि लोगों के बीच मुकेश अरनेजा की कितनी बदनामी है, और मुकेश अरनेजा की बदनामी का खामियाजा उन्हें ही भुगतना पड़ेगा । विडंबनापूर्ण स्थिति यह रही कि मुकेश अरनेजा जिन लोगों से दीपक गुप्ता के लिए समर्थन माँगते थे, उनमें से कइयों ने उनके मुँह पर ही कहा कि वैसे तो हम दीपक गुप्ता का समर्थन कर सकते थे - किंतु चूँकि आप उनके साथ हो, इसलिए अब उनका समर्थन हरगिज नहीं करेंगे । दीपक गुप्ता ने कई लोगों का समर्थन मुकेश अरनेजा के कारण ही खोया । दरअसल मुकेश अरनेजा के समर्थन में होने के कारण दीपक गुप्ता के लिए समर्थन जुटाने के मौके काफी सिकुड़ गए थे । डिस्ट्रिक्ट में बहुत से लोग मुकेश अरनेजा के नाम से ही ऐसे बिदकते हैं, जैसे मुकेश अरनेजा को छूत की कोई बीमारी हो; मुकेश अरनेजा के उम्मीदवार के रूप में दीपक गुप्ता के लिए ऐसे लोगों के दरवाजे स्वतः ही बंद हो गए । बाकी बचे लोगों में बहुत से लोग ऐसे थे, जो मुकेश अरनेजा के साथ कभी गर्म कभी नर्म वाला रवैया अपनाते हैं; ऐसे लोगों को चूँकि मुकेश अरनेजा के साथ बैठने और बात करने में कोई आपत्ति नहीं थी, इसलिए मुकेश अरनेजा यदि होशियारी के साथ मूव करते तो ऐसे लोगों को कनविंस या कन्फ्यूज कर सकते थे - किंतु मुकेश अरनेजा ने राजनीतिक प्रक्रिया पर भरोसा करने की बजाए तिकड़मों का सहारा लिया, और ऐसी तिकड़मों का सहारा लिया जो पहले कई बार अपनाई जा चुकी हैं और बुरी तरह पिट चुकी हैं, इसलिए इस बार भी वह पिटी और बहुत बुरी तरह पिटीं । एक बड़े और बहुमत प्रदर्शित करने वाले तबके से दूर हो चुके मुकेश अरनेजा को फिर सबसे जोर वाला झटका यह लगा कि उनके अपने समझे जाने वाले लोगों ने भी उनका साथ छोड़ दिया । 
उल्लेखनीय है कि अशोक गर्ग और प्रवीन निगम को मुकेश अरनेजा के ही उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था । इसी आधार पर माना/समझा जा रहा था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई अपने अंतिम दौर में जब सुभाष जैन और दीपक गुप्ता के बीच बची रह जायेगी, तब अशोक गर्ग और प्रवीन निगम जैसे मुकेश अरनेजा के नजदीकियों का समर्थन दीपक गुप्ता को मिल जायेगा । चुनावी लड़ाई के अंतिम दौर तक पहुँचते पहुँचते लेकिन मुकेश अरनेजा ने अपनी हरकतों से अपनी ऐसी हालत कर ली, कि अशोक गर्ग व प्रवीन निगम तक उनका साथ छोड़ कर सुभाष जैन के साथ खड़े नजर आने लगे । कहा भी जाता है कि डूबती हुई नाव में आखिर कौन बैठा रहना चाहेगा ? एक अकेले दीपक गुप्ता पता नहीं क्या सोच कर या किस गलतफहमी में मुकेश अरनेजा की डूबती नाव में बैठे रहे, और फिर स्वाभाविक परिणति के रूप में उन्होंने भी अपने आप को गहरे डूबे पाया । इस परिणति के बारे में चूँकि डिस्ट्रिक्ट 3011 के लोगों को और वहाँ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार विनय भाटिया तथा उनके समर्थकों को भी पता है, इसलिए जैसे ही मुकेश अरनेजा ने वहाँ राजनीतिक सक्रियता दिखाई - वहाँ के लोगों ने तुरंत से मुकेश अरनेजा को लताड़ दिया । विनय भाटिया और उनके समर्थकों ने भी जान/पहचान लिया कि मुकेश अरनेजा की समर्थनपूर्ण बातें उन्हें फायदा पहुँचाने की बजाए उन्हें नुकसान ही पहुँचाएंगी - इसलिए उन्होंने भी एक फिल्मी डायलॉग का सहारा लेते हुए मुकेश अरनेजा से तो टूक कहा कि यदि आप सचमुच चाहते हो कि आप हम पर अहसान करो, तो सिर्फ एक अहसान करो और वह यह कि प्लीज हम पर कोई अहसान न करो ! यह एक मजेदार सीन है : किसी भी चुनाव में उम्मीदवार लोग हर किसी का समर्थन जुटाने का प्रयास करते हैं, पर यहाँ उल्टा ही हो रहा है - मुकेश अरनेजा समर्थन दे रहे हैं, उम्मीदवार उसे लेने से मना कर रहा है । 
डिस्ट्रिक्ट 3011 में लोगों को लग रहा है कि मुकेश अरनेजा डिस्ट्रिक्ट 3011 की चुनावी राजनीति में इसलिए दिलचस्पी ले रहे हैं, ताकि डिस्ट्रिक्ट 3012 में लोगों को वह यह दिखा सकें कि उनकी तो डिस्ट्रिक्ट 3011 में भी बहुत पूछ है । डिस्ट्रिक्ट 3011 में लेकिन उन्हें जो लताड़ मिली है, उससे उनका सारा गेमप्लान एक बार फिर चौपट हो गया है । डिस्ट्रिक्ट 3011 के लोगों ने स्पष्ट कह/कर दिया है कि उन्हें मुकेश अरनेजा रूपी गंदगी अपने यहाँ नहीं चाहिए । इससे डिस्ट्रिक्ट 3012 में दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को साँस देने की मुकेश अरनेजा की तिकड़म को खासा झटका लगा है । यह झटका ऐसे समय लगा जब दीपक गुप्ता के लिए कॉन्करेंस जुटाने के उद्देश्य से मुकेश अरनेजा तरह तरह की तिकड़में भिड़ा रहे हैं, और उनकी तिकड़में काम नहीं आ रही हैं । झूठ मुकेश अरनेजा की राजनीति का प्रमुख हथियार है - झूठे दावे कर कर के वह लोगों को भ्रमित करते हैं और अपना काम निकालने का प्रयास करते हैं । झूठ के सहारे ही मुकेश अरनेजा ने दीपक गुप्ता के लिए कॉन्करेंस जुटाने का प्रयास किया हुआ है; और इसी प्रक्रिया में उन्होंने डिस्ट्रिक्ट 3011 में अपनी राजनीतिक हैसियत का झूठ बोला । डिस्ट्रिक्ट 3011 में उनकी क्या राजनीतिक हैसियत है, इसकी पोल खुल जाने के कारण कॉन्करेंस को लेकर किए जा रहे दावे भी संदेह के घेरे में आ गए हैं । मुकेश अरनेजा और उनके नजदीकियों की तरफ से पिछले कुछ दिनों से दीपक गुप्ता के पक्ष में 12 कॉन्करेंस जुटा लेने का दावा तो किया जा रहा है, लेकिन जब कोई उन 12 क्लब के नाम पूछता है तो मुकेश अरनेजा व दावा करने वाले दूसरे लोगों को साँप सूँघ जाता है । कुछेक क्लब के पदाधिकारियों ने मुकेश अरनेजा से कहा भी कि आप कॉन्करेंस देने वाले 12 क्लब्स के नाम बता दीजिए, हम तुरंत आपको अपने क्लब की कॉन्करेंस दे देंगे । मुकेश अरनेजा लेकिन नाम तो तब बताते, जब नाम उनके पास होते । इस तरह मुकेश अरनेजा अपने ही झूठ को खुद ही उद्घाटित कर दे रहे हैं । इस पृष्ठभूमि में, मुकेश अरनेजा की डिस्ट्रिक्ट 3011 के संबंध में हाँकी गई डींग जिस तरह से झूठी साबित हुई है - उससे कॉन्करेंस के संबंध में किए जा रहे प्रचार अभियान को जोर का झटका लगा है । इसी का नतीजा है कि वाट्सअप पर अभी हाल ही में कॉन्करेंस को लेकर जो गर्मी पैदा करने की कोशिश की गई, वह ठंडी ही पड़ी रह गई और लोगों ने उसमें कोई दिलचस्पी ही नहीं ली ।