Friday, December 25, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में की गईं दिलीप पटनायक की बेईमानियों को हेमंत अरोड़ा व राजा साबू से मिल रहे सहयोग/समर्थन से मामला गंभीर हुआ

देहरादून/चंडीगढ़ । दिलीप पटनायक की बेईमानियों और घपलेबाजियों पर पर्दा डालने के लिए हेमंत अरोड़ा जिस तरह अपने प्रोफेशन तक के साथ बेईमानी करने को तैयार हो गए - उसे देख/जान कर कहा जा सकता है कि डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स में बहुत याराना है - पर्दे के पीछे एक दूसरे को गिराने/धकेलने के वह चाहें जितने करतब करते हों, लेकिन 'मुसीबत' के समय यह 'मौसेरे भाई' बन जाते हैं और एक दूसरे की मदद करने के लिए वह किसी भी हद तक चले जाते हैं । पिछले दिनों ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में टीके रूबी को हराने के लिए इन्होंने अपनी अपूर्व एकता का परिचय दिया था, और अब दिलीप पटनायक की घपलेबाजियों पर पर्दा डालने के मामले में इन्होंने आपस में हाथ मिला लिए हैं । हेमंत अरोड़ा जहाँ अपने प्रोफेशन तक से बेईमानी करने को तैयार हो गए, वहाँ दूसरे 'मौसेरे भाई' डिस्ट्रिक्ट में यह माहौल बनाने में जुट गए हैं कि कोई भी दिलीप पटनायक की बेईमानी पर बात नहीं करेगा । हालाँकि बातें तो हो रही हैं, लेकिन जिस गुपचुप और फुसफुसाहटों वाले अंदाज में हो रही हैं - उसने मामले को और दिलचस्प बना दिया है । हेमंत अरोड़ा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में की गई दिलीप पटनायक की वित्तीय हेराफेरियों को छिपाने के लिए 'मौसेरे भाई' का फर्ज अदा करते हुए चार्टर्ड अकाउंटेंट प्रोफेशन में एक बड़ा कमाल यह किया है कि एक ही वर्ष के लिए दो दो बैलेंसशीट साइन कर दीं । जानकारों का कहना है कि इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया में हेमंत अरोड़ा की इस कारस्तानी की उचित तरीके से यदि रिपोर्ट हो जाए, तो चार्टर्ड एकाउंटेंट के रूप में काम करने वाली उनकी फर्म का अधिकार छिन जायेगा - और उनकी पिछले करीब तीस वर्षों में कमाई साख धूल में मिल जायेगी ।
हेमंत अरोड़ा के जो लोग नजदीकी हैं वह हैरान हैं कि हेमंत अरोड़ा तो बहुत व्यवस्थित तरीके से काम करने वाले व्यक्ति हैं, आखिर तब फिर वह इस तरह की बेईमानी करने के लिए कैसे और क्यों तैयार हो गए ? हेमंत अरोड़ा ने इंडस्ट्री और प्रशासन और अपने शहर-समाज में अपनी विशेष पहचान बनाई है - और इस तरह अपने पिता एएल अरोड़ा की पहचान की विरासत को और समृद्ध किया है । ऐसे में उनसे यह उम्मीद किसी को नहीं रही कि वह ऐसा कोई काम करेंगे जो उनकी विरासत और उनकी पहचान पर कालिख पोतती हो । लेकिन तथ्य बता रहे हैं कि हेमंत अरोड़ा ने ऐसा काम कर दिया है । क्यों कर दिया - इसे लेकर अलग अलग किस्से/कहानियाँ हैं : कुछ कहते हैं कि दिलीप पटनायक ने फर्जी बिल लगाकर जो पैसे बनाए हैं, उनमें हेमंत अरोड़ा की भी मिलीभगत रही है, और इसलिए यह करना उनकी मजबूरी था; कुछ कहते हैं कि राजा साबू के कहने पर वह अपने प्रोफेशन के साथ धोखाधड़ी करने को तैयार हो गए; कुछ कहते हैं कि हेमंत अरोड़ा ने जब से मुख्यमंत्री के साथ फोटो खिंचा ली है और जज साहब के साथ गोल्फ खेल लिया है, तब से वह यह समझने लगे हैं कि उन्हें तो कुछ भी करने का लाइसेंस मिल गया है । बदकिस्मती की बात यह रही कि दिलीप पटनायक को 'बचाने' के लिए चार्टर्ड एकाउंटेंट के रूप में हेमंत अरोड़ा ने जो तिकड़म की, उससे दिलीप पटनायक बचने की बजाए फँस और गए हैं । हेमंत अरोड़ा ने दूसरी बैलेंसशीट साइन करने की जो बेईमानी की, उसमें भी एक यह और बेईमानी की कि कुछेक कैटेगरी की जानकारी दी ही नहीं, जो कि पहले वाली बैलेंसशीट में थीं । हेमंत अरोड़ा की इस कारस्तानी से दिलीप पटनायक की हरकत न सिर्फ और साफ तरीके से निशाने पर आ गई, बल्कि उसके सुबूतों पर भी लोगों का ध्यान आकर्षित हो गया । 
दिलीप पटनायक के गवर्नर-काल की हेमंत अरोड़ा ने जो पहली बैलेंसशीट साइन की उसमें 20 हजार 407 रुपए का फायदा दिखाया गया था; लेकिन तथ्यों की बाजीगरी के साथ हेमंत अरोड़ा ने जो दूसरी बैलेंसशीट साइन की, उसमें उक्त फायदा जादुई तरीके से छह लाख 23 हजार 547 रुपए के घाटे में बदल गया । फायदे को घाटे में बदलने का 'खेल' करने के लिए मुख्य रूप से पेट्स के खर्चों में हेराफेरी करना पड़ी । पहली बैलेंसशीट में पेट्स का जो खर्चा 9 लाख 63 हजार 475 रुपए था, वह दूसरी बैलेंसशीट में 13 लाख 50 हजार 450 रुपए हो गया । यह जो खर्चा बढ़ा, इसे 'दिखाने' वाले सारे बिल कच्चे हैं । इससे समझा जा सकता है कि फायदे को घाटे में बदलने के लिए फर्जी बिल बनवाए और लगाए गए हैं । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस सब्सिडी में भी इसी तरह का खेल हुआ : पहली बैलेंसशीट में कॉन्फ्रेंस सब्सिडी में 6 लाख 49 हजार रुपए दिखाए गए, जो दूसरी बैलेंसशीट में बढ़ कर 9 लाख 63 हजार 475 रुपए हो गई । दिलीप पटनायक के गवर्नर-काल के हिसाब-किताब को लेकर दो बैलेंसशीट बनना; खर्चों को बढ़ा-चढ़ा कर फायदे को नुकसान में बदलना; और इसके लिए कच्चे बिल प्रस्तुत करना - ऐसे काम साबित हुए कि दिलीप पटनायक बेईंमान कहे जाने लगे और उनकी इस बेईमानी में हेमंत अरोड़ा तथा राजा साबू की मिलीभगत के चर्चे होने लगे । टीके रूबी के मामले के चलते राजा साबू तथा डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स की राजनीतिक बेईमानी के चर्चे पहले से ही थे; अब इस प्रकरण से साबित है कि राजनीतिक बेईमानी करने वाले लोग पैसों की बेईमानी करने में और उसे सपोर्ट करने में भी नहीं हिचकते हैं । 
दिलीप पटनायक के घोटाले के सामने आने का किस्सा और उसका सबक भी खासा दिलचस्प है । बताया गया है कि रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के वरिष्ठ सदस्य एमपी गुप्ता ने ऐसे ही खेल खेल में जिज्ञासावश मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन को एक ईमेल पत्र लिख कर पिछले रोटरी वर्ष का हिसाब-किताब माँग लिया । डेविड हिल्टन ने हिसाब-किताब देने में आनाकानी सी की, तो एमपी गुप्ता को अपनी माँग दोहराने में मजा आने लगा । एमपी गुप्ता के नजदीकियों का कहना है कि एमपी गुप्ता को भी अनुमान नहीं था कि जिज्ञासावश शुरू किया गया उनका अभियान इतना बड़ा गुल खिला देगा और डिस्ट्रिक्ट की पूरी लीडरशिप को मुसीबत में डाल देगा । डिस्ट्रिक्ट के कुछेक नेताओं ने एमपी गुप्ता की इस मुहिम में उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी देखने/पहचानने की कोशिश की, पर उन्हें कुछ मिला नहीं । एमपी गुप्ता को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधुकर मल्होत्रा के नजदीक देखा/समझा जाता रहा है, क्योंकि मधुकर मल्होत्रा के गवर्नर-काल का बहुत सा काम एमपी गुप्ता के ऑफिस से होता था; इसलिए कयास लगाया जाने लगा कि एमपी गुप्ता की इस मुहिम के पीछे कहीं मधुकर मल्होत्रा तो नहीं हैं ? इस तरह के कयास सार्वजनिक होने लगे तो मधुकर मल्होत्रा को खुद आगे आकर यह सफाई देने के लिए मजबूर होना पड़ा कि एमपी गुप्ता की इस मुहिम से उनका कोई लेनादेना नहीं है । मधुकर मल्होत्रा ने तो लोगों को यहाँ तक बताया कि उन्होंने तो एमपी गुप्ता को आगाह किया है कि इस तरह की मुहिम से उनके रोटरी कैरियर का नुकसान होगा । (चलो, इससे यह भी पता चला कि मधुकर मल्होत्रा रोटरी में भी कैरियर देखते हैं !) एमपी गुप्ता ने यह मुहिम क्यों शुरू की है, यह तो वही बता सकते हैं; लेकिन उनकी मुहिम का नतीजा यह जरूर बताता है कि बिना आक्रामक हुए और बिना आरोप लगाए भी डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों और नेताओं की पोल खोली जा सकती है । 
रोटरी में तमाम लोग शिकायत करते हुए सुने जा सकते हैं कि पदाधिकारी और नेता मनमानी करते हैं और मनमानी के जरिए बेईमानी करते हैं; शिकायत करने वाले लोग चूँकि विरोध करने का साहस नहीं दिखा पाते हैं - इसलिए मनमानियाँ और बेईमानियाँ भी चलती रहती हैं और उनके बारे में दबे-छिपे तरीके से शिकायतें भी चलती रहती हैं । एमपी गुप्ता द्वारा अपनाए गए तरीके ने सबक दिया है कि कोई आरोप मत लगाओ, कोई विरोध मत करो - बस विनम्रता के साथ सिर्फ सवाल करो; आप देखोगे कि बड़ी बड़ी मूरतों की चमक उतरने लगेगी और उनकी असलियत सामने आने लगेगी । एमपी गुप्ता के सवालों ने दिलीप पटनायक की बेईमानियों और उनकी बेईमानियों को सहयोग/समर्थन देते हेमंत अरोड़ा व राजा साबू जैसे बड़े लोगों की भी असलियत को लोगों के सामने ला ही दिया है न !