Wednesday, December 23, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में पराग रावल की पराजय का ठीकरा पराग रावल के समर्थकों व शुभचिंतकों ने सुनील तलति के सिर फोड़ना शुरू किया

अहमदाबाद । पराग रावल को सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में पराजय मिलने की ख़बर आने के बाद से पराग रावल के समर्थकों व शुभचिंतकों ने सुनील तलति पर अपना गुस्सा निकालना शुरू किया है । पराग रावल के समर्थकों व शुभचिंतकों ने पराग रावल की पराजय के लिए सुनील तलति को जिम्मेदार ठहराया है - जिम्मेदार ही नहीं ठहराया है, बल्कि आरोप लगाया है कि सुनील तलति ने पराग रावल के साथ धोखा किया है । चुनाव के दौरान जो बातें दबे-छिपे तरीके से कही जा रही थीं, उन्हें अब खुल कर कहा/सुना जा रहा है - कि सुनील तलति अगले चुनाव में अपने बेटे अनिकेत तलति को सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बनायेंगे, और उसमें सफलता के लिए पराग रावल को सेंट्रल काउंसिल से बाहर रखने का प्रयास करेंगे । पराग रावल यदि सेंट्रल काउंसिल में होंगे, तो अगले चुनाव में अनिकेत तलति के लिए सेंट्रल काउंसिल का चुनाव जीतना मुश्किल होगा । अनिकेत तलति की भावी मुश्किल को आसान करने का सुनील तलति को एक ही फार्मूला समझ में आया, और वह यह कि पराग रावल को इस बार वह सेंट्रल काउंसिल के लिए कामयाब न होने दें । मजे की बात यह है कि चुनाव के दिनों में हो रही इन बातों पर पराग रावल के समर्थकों व शुभचिंतकों ने तब जरा भी विश्वास नहीं किया था, और तब वह इन बातों को बकवास बता रहे थे । चुनाव के दिनों में पराग रावल, अनिकेत तलति को अपने साथ लेकर घूम रहे थे और रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अनिकेत तलति की उम्मीदवारी को समर्थन दिलवाने का काम कर रहे थे । पराग रावल उम्मीद - और विश्वास कर रहे थे कि इससे सुनील तलति खुश होंगे तथा इसके बदले में उन्हें समर्थन दिलवाने में मदद करेंगे । चुनाव के अंतिम दौर में इन बातों ने खासा जोर पकड़ लिया था कि सुनील तलति ने कई जगह पराग रावल की खिलाफत की है, किंतु पराग रावल और उनके समर्थकों ने इन बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया । अब लेकिन जब पराग रावल की पराजय की खबर मिली, तो पराग रावल के समर्थक व शुभचिंतक सुनील तलति को कोसने में लग गए हैं । 
चुनावी नतीजा पराग रावल तथा उनके समर्थकों व शुभचिंतकों के लिए है भी सदमे वाला ! पहली वरीयता के वोटों की गिनती में पराग रावल 2322 वोटों के साथ छठे नंबर पर होते हैं, लेकिन गिनती पूरी होते होते वह ग्यारहवें नंबर पर भी नहीं टिक पाते हैं । वोटों की गिनती जैसे जैसे आगे बढ़ी, उसमें कुछ समय तक तो पराग रावल अपनी छठे नंबर की पोजीशन को बचाए/बनाए रखने में सफल रहते हैं, लेकिन फिर पीछे खिसकने लगते हैं - हालाँकि अंत तक उम्मीद बनी रहती है कि पराग रावल इंस्टीट्यूट की 23वीं सेंट्रल काउंसिल में अवश्य ही जगह पा लेंगे; किंतु वोटों की गिनती पूरी होते होते यह उम्मीद धूल में मिल जाती है ।  उल्लेखनीय है कि पराग रावल के बारे में शुरू से ही यह आशंका थी कि जीत की प्रबल संभावनाओं के बावजूद दूसरी और अन्य वरीयता के वोटों के कारण उनकी जीत का गणित बिगड़ सकता है; इस बारे में इन पँक्तियों के लेखक से बात करते हुए पराग रावल ने बताया था कि इस आशंका को उन्होंने हमेशा अपनी चिंता में रखा है और व्यवस्था की है कि यह सच साबित न होने पाए । इसके बावजूद दूसरी और अन्य वरीयताओं के वोटों की कमी ही उनकी जीत में बाधा बन गई । 
उनके जैसी ही हालत जुल्फेश शाह की भी हुई, जो 2144 वोटों के साथ पहली वरीयता के वोटों की गिनती में सातवें नंबर पर रहने के बावजूद सेंट्रल काउंसिल से बाहर रह गए । किंतु उनके मामले में लोगों को हैरानी इसलिए नहीं हुई है, क्योंकि उनके जीतने को लेकर कम ही लोगों को उम्मीद थी । दरअसल नागपुर में ही जुल्फेश शाह को भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा था, और नागपुर व विदर्भ क्षेत्र में कई प्रमुख लोग उनकी खुली खिलाफत कर रहे थे । इस सीन के बावजूद जुल्फेश शाह ने जो वोट पाए, उसे उनकी मेहनत के नतीजे के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । जुल्फेश शाह का प्रदर्शन लोगों की उम्मीद से तो बेहतर रहा, किंतु यह प्रदर्शन उनके लिए खुशखबरी नहीं बन सका । जुल्फेश शाह की पराजय पर लोगों को हैरानी लेकिन इसलिए नहीं हुई, क्योंकि उनके जीतने को लेकर लोगों के बीच बहुत उम्मीद थी भी नहीं । 
पराग रावल के लिए लेकिन लोगों के बीच बहुत अफसोस है और इस अफसोस में गुस्सा भी है - और इस गुस्से का निशाना अभी तो सुनील तलति को बनना पड़ रहा है । चुनावी राजनीति में इस तरह की बातों का हालाँकि कोई महत्व नहीं होता है; यहाँ कोई किसी की बजह से नहीं हारता/जीतता है - जो भी जीतता/हारता है, अपनी खुद की बजह से जीतता/हारता है । बाकी तो सब बहानेबाजी होती है । सुनील तलति यदि वास्तव में अगले चुनाव को ध्यान में रखकर पराग रावल को सेंट्रल काउंसिल से बाहर देखना चाहते थे, तो पराग रावल और उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को इसे पहचानना/समझना चाहिए था और अपनी जीत को सुनिश्चित करने/बनाने के उपाय करना चाहिए थे - जो उन्होंने यदि नहीं किए तो यह उनकी गलती है; इसके लिए सुनील तलति को कोसने का क्या फायदा ? पराग रावल की पराजय, और इस पराजय के लिए पराग रावल के समर्थकों व शुभचिंतकों का सुनील तलति को जिम्मेदार ठहराने से अहमदाबाद में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में खासा घमासान मचने का माहौल बन रहा है । दीनल शाह का सेंट्रल काउंसिल में आखिरी टर्म होगा; सेंट्रल काउंसिल के लिए उनके खेमे से अगली बार प्रियम शाह के उम्मीदवार होने की चर्चा है । प्रियम शाह का दीनल शाह जैसा जलवा होने/रहने की उम्मीद नहीं है; इसलिए अहमदाबाद में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति को लेकर अब जो बिसात बिछेगी, वह उलटफेर वाली होगी - और जाहिर है कि खासी दिलचस्प होगी ।