Monday, December 21, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में कॉन्करेंस के चक्कर में रोटरी क्लब वैशाली के अध्यक्ष मनोज भदोला तथा उनके साथियों की असलियत की पोल खुली

गाजियाबाद । मुकेश अरनेजा ने अधिकृत उम्मीदवार सुभाष जैन के खिलाफ कॉन्करेंस जुटाने के लिए जो जुगाड़ लगाए, और जिनके चलते कुछेक क्लब्स में भीषण विवाद और झगड़े हुए - उसमें एक अच्छा काम यह हुआ है कि कुछेक क्लब्स और उनके पदाधिकारियों के असली रूप सामने आ  गए, अन्यथा जो छिपे ही रहते । मुकेश अरनेजा के गेम-प्लान में फँस कर रोटरी क्लब वैशाली के पदाधिकारियों ने अपना जो 'नंगापन' प्रकट किया, वह एक बड़ा दिलचस्प उदाहरण बन गया है । उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब वैशाली डिस्ट्रिक्ट के एक अच्छे क्लब के रूप में देखा/पहचाना जाता रहा है : इसके सदस्य उच्च शिक्षा प्राप्त तथा प्रोफेशनली खासे कामयाब लोग हैं और इनके परिवारों में अपेक्षाकृत खुलापन व आधुनिक तेवर देखे गए - किसी भी संस्था को आधुनिक व गतिशील शक्ल देने के लिए जिसे आवश्यक माना जाता है । रोटरी क्लब वैशाली अपने सदस्यों की शिक्षा, प्रोफेशनल उपलब्धियों और अपनी जीवंतता व खिलंदड़ेपन के चलते डिस्ट्रिक्ट के खास क्लब्स में गिना जा रहा था और डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों में उसकी खासी उपस्थिति व पहचान बन गई थी । पिछले दो एक वर्षों में क्लब के जो अध्यक्ष बने, वह हालाँकि क्लब की पहले जैसी प्रतिष्ठा व सक्रियता की निरंतरता को नहीं बनाए रख सके - किंतु क्लब की बनी साख के ऑरा (आभामंडल) में उनकी कमजोरियाँ छिपी रह गईं और वह सामने नहीं आ पाईं । लेकिन अभी हाल ही में कॉन्करेंस को लेकर क्लब में जो झगड़ा मचा, उसमें यह तथ्य सामने आया कि क्लब पर इस समय जिन लोगों का कब्जा है - वह भले ही पढ़े-लिखे तथा प्रोफेशनली कामयाब लोग हों; लेकिन सोच, मानसिकता व व्यवहार के मामले में वह वास्तव में सड़कछाप किस्म के लोग हैं । 
क्लब के वरिष्ठ सदस्य प्रसून चौधरी ने सोशल मीडिया में क्लब की मौजूदा स्थिति पर दुःख प्रगट करते हुए जो एक टिप्पणी की, उस पर क्लब पर इस समय काबिज लोगों ने अभद्र, अशालीन व कहीं कहीं अश्लील शब्दों का प्रयोग करते हुए जो प्रतिक्रिया दी - उसने उनके असली चेहरे व चरित्र को सामने ला दिया । एक सामान्य सामाजिक समझ है कि अपने पर लगे आरोपों का जब कोई तथ्यपरक व तर्कपूर्ण जबाव नहीं दे पाता है, तो वह गालियाँ देने लगता है । रोटरी क्लब वैशाली के मौजूदा अध्यक्ष मनोज भदोला व उनके साथ के लोगों ने अपने ही एक वरिष्ठ साथी प्रसून चौधरी के साथ सोशल मीडिया पर यही व्यवहार किया । मनोज भदोला और उनके साथी प्रसून चौधरी की टिप्पणी में कही गई इस बात पर ज्यादा भड़के कि क्लब के फैसलों में सभी सदस्यों की भागीदारी नहीं होती है तथा 'कुछ लोग' ही फैसले ले रहे हैं । हो सकता है कि प्रसून चौधरी की यह बात झूठ हो । इसका तर्कपूर्ण व तथ्यपरक ढंग से जबाव दिया जा सकता था, किंतु मनोज भदोला व उनके साथी गाली-गलौच पर उतर आए । उनके इस रवैये ने ही जाहिर किया कि प्रसून चौधरी ने सही बात कही है, और सच सुन कर मनोज भदोला व उनके साथी भड़क उठे । और बातों व फैसलों को यदि जानें भी दें, तो क्लब के बोर्ड की 'शक्ल' ही प्रसून चौधरी के इस आरोप को पुष्ट करती है । बोर्ड में 18 सदस्य हैं, जिनमें 12 लोग पति-पत्नी हैं । क्लब के अधिकतर सदस्य पति-पत्नी हैं - जो भागीदारी के लिहाज से एक अच्छी बात है । लेकिन इस अच्छी बात को किस तरह से क्लब के मौजूदा पदाधिकारियों ने क्लब पर कब्जा करने/ज़माने की अपनी तरकीब के रूप में इस्तेमाल कर लिया, इसका पुख्ता सुबूत बोर्ड के गठन में देखा/पहचाना जा सकता है । बोर्ड में जो 18 सदस्य लिए गए हैं, वह यदि अलग अलग परिवारों के होते, तो बोर्ड के फैसलों में व्यापक प्रतिनिधित्व होता - लेकिन तब क्लब पर कब्जा कैसे होता ? क्लब पर कब्जा करने के लिए तरकीब निकाली गई कि परिवार के सदस्यों को ही बोर्ड में रख लो । इससे बोर्ड बनाने के पीछे जो भावना व उद्देश्य है, उसका ही मजाक बन गया । घटियापने की हद यह है कि इस पर क्लब का एक वरिष्ठ सदस्य यदि यह कहे कि क्लब में फैसले 'कुछ लोग' ही कर रहे हैं, तो उससे भिड़ जाओ और उसे गालियाँ देने लगो । 
कॉन्करेंस देने की बात क्लब की जिस मीटिंग में हुई, उसमें क्लब के मौजूदा पदाधिकारियों व उनके समर्थकों की मनमानियों, सौदेबाज-प्रवृत्ति तथा उनकी बदतमीजियो का खुला इज़हार हुआ । पदाधिकारियों ने पूरी बेशर्मी के साथ स्वीकार किया कि कॉन्करेंस के लिए उन्होंने मुकेश अरनेजा के साथ सौदा किया है, जिसके तहत उन्हें सतीश सिंघल के गवर्नर-काल में एक असिस्टेंट गवर्नर का पद मिलेगा तथा दो डिस्ट्रिक्ट पोस्ट मिलेंगी । इसे लेकर मीटिंग में जो हाय-हल्ला हुआ, उसमें जबर्दस्त बद्तमीजियाँ हुईं और बेहूदा शब्दों का इस्तेमाल हुआ । क्लब के पदाधिकारी इस बात पर गर्व कर रहे थे कि उन्होंने जो चाहा उसे कर लिया; पर उनका गर्व तब हवा हो गया जब उन्हें पता चला कि उस मीटिंग की पूरी कार्रवाई का ऑडियो रिकॉर्ड कर लिया गया है । यह सुन/जान कर क्लब के पदाधिकारियों के तो तोते उड़ गए और वह फिर अपनी 'औकात' पर आ गए तथा मीटिंग की कार्रवाई का ऑडियो रिकॉर्ड करने वालों के प्रति सोशल मीडिया में अपशब्दों से हमला करने लगे । हास्यास्पद तरीके से उन्होंने रिकॉर्डिंग करने को तो अनैतिक व गैरकानूनी बताने का शोर किया, किंतु अपनी हरकतों पर एक शब्द नहीं कहा । यह ऐसी ही बात हुई कि किसी चोर की हरकत सीसीटीवी में रिकॉर्ड हो जाए और चोर अपनी हरकत पर शर्मिंदा होने की बजाए इस रिकॉर्डिंग को अनैतिक व गैरकानूनी बताने लगे । इस संबंध में सोशल मीडिया में जो चर्चा हुई, उसमें अध्यक्ष-पक्ष की तरफ से ऑडियो रिकॉर्डिंग करने वाले को प्रसून चौधरी के 'मुंडु' के रूप में संबोधित किया गया । चलो मान लेते हैं कि ऑडियो रिकॉर्डिंग करने वाला प्रसून चौधरी का 'मुंडु' होगा, लेकिन इसी तर्ज पर यह भी तो बताना चाहिए कि कॉन्करेंस के लिए पदों की सौदेबाजी करने तथा क्लब व रोटरी को बेचने वाले तथा उनके समर्थक किसके 'मुंडु' हैं ?
क्लब को और रोटरी को बेच देने के लिए तैयार हो जाने वाले मौजूदा पदाधिकारियों व उनके गिने-चुने संगी-साथियों की हरकतों को देखते हुए ही क्लब के कुछेक सदस्य पिछले महीनों में सवाल उठाते रहे हैं कि यह रोटरी क्लब है, या 'क्लब' है । यह सवाल इसलिए उठे क्योंकि रोटरी क्लब वैशाली के ही सदस्यों ने देखा/पाया कि उनका क्लब तो शराबबाजी और मौजमस्ती का अड्डा बनता जा रहा है । मीटिंग के नाम पर कुछ ही परिवार इकठ्ठा होते और उनमें इस बात के लिए शर्त लगती कि कौन ज्यादा शराब पी सकता है ! गज़ब तो पिछले दिनों असेम्बली में हुआ । दो दिन की असेम्बली में करीब दस परिवार गए थे : असेम्बली से लौटने का समय हुआ तो अध्यक्ष मनोज भदौला ने घोषणा की कि वह तो आज नहीं लौटेंगे । लौटने की तैयारी कर चुके सदस्यों ने आज न लौटने का कारण पूछा तो अध्यक्ष ने उन्हें बताया कि शराब की चार-पाँच बोतलें बच गई हैं, वह तो उन्हें खत्म करने के बाद ही लौटेंगे । असेम्बली के तय कार्यक्रम के अनुसार छह-सात परिवार ही लौटे, तथा बाकी तीन-चार परिवार शराब की बची हुई बोतलों को निपटाने के लिए असेम्बली के नाम पर एक दिन और रुक गए । असेम्बली का रोटरी में बड़ा खास महत्व है, जिसे ध्यान में रखते हुए ही रोटरी के कुछेक कार्यक्रमों में इसे विशेष रूप से डिजाइन किया गया है । रोटरी क्लब वैशाली में मनोज भदोला की अध्यक्षता में लेकिन इसे मटरगस्ती का जरिया और बहाना बना दिया गया है । मनोज भदोला मटरगस्ती में इस कदर मशगूल हैं कि रोटरी के नियम-कानूनों व व्यवस्था का पालन करने/करवाने के लिए उनके पास समय ही नहीं है । उन्हें बैंक में क्लब के अकाउंट के सिग्नेटरी बदलने का समय नहीं मिला है और तीन वर्ष से बैंक अकाउंट के सिग्नेटरी आशीष महाजन ही बने हुए हैं । मटरगस्ती के लिए क्लब में फंड आए, इसके लिए तरह तरह के उपाय सोचते रहने और उन्हें अमल में लाते रहने के लिए उनके पास समय की कोई कमी नहीं है । इसी के तहत अभी हाल ही में मनोज भदोला ने क्लब की नियमाबली में एक नियम यह बनवाया है कि क्लब का कोई सदस्य यदि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तत करता है तो क्लब की अनुमति पाने के लिए से क्लब के फंड में दस लाख रुपए देने होंगे । 
रोटरी क्लब वैशाली के पदाधिकारी कॉन्करेंस के चक्कर में न पड़े होते तो यह तथ्य दबा-छिपा ही रह गया होता कि क्लब के अध्यक्ष मनोज भदोला के लिए रोटरी का मतलब सिर्फ सौदेबाजी करना, कुछेक लोगों के साथ मिल कर क्लब में मनमानियाँ करना, उसको शराबबाजी और मटरगस्ती का अड्डा बना देना - और क्लब का कोई वरिष्ठ सदस्य यदि इस सब पर सवाल उठाए तो अपने साथियों के साथ मिलकर उसके साथ गाली-गलौच करना भर है । रोटरी क्लब वैशाली के पदाधिकारियों की असलियत जिस तरह से सामने आई है, उसे देख/जान कर लग रहा है कि मुकेश अरनेजा की कारस्तानी ने कम-अस-कम यह तो एक अच्छा काम किया है ।