Tuesday, December 1, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में अधिकृत उम्मीदवार सुभाष जैन के खिलाफ कॉन्करेंस दिलवाने के लिए मुकेश अरनेजा के 'पैर पकड़ों' अभियान का कुल नतीजा 'मुन्नी बदनाम हुई' जैसा मिल रहा है

नई दिल्ली/गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के अधिकृत उम्मीदवार सुभाष जैन को दिए दीपक गुप्ता के चेलैंज को मान्य कराने के लिए जरूरी कॉन्करेंस जुटाने के लिए मुकेश अरनेजा ने अब 'पैर पकड़ो' अभियान शुरू किया है । मजे की बात यह हुई है कि मुकेश अरनेजा अभी कुछ ही दिन पहले तक चुनाव लड़वाने और जितवाने को लेकर जिन लोगों के बीच ऊँची ऊँँची हाँकने में लगे हुए थे, अब वह उन्हीं लोगों की खुशामद/मिन्नत में लगे हैं और अपनी इज्जत की दुहाई देते हुए उनके सामने गिड़गिड़ाने में लगे हुए हैं - तथा उनके पैर पकड़ने से भी परहेज नहीं कर रहे हैं । कुछेक लोगों ने मुकेश अरनेजा से कहा भी कि आप तो इतने/कितने बड़े नेता हो, किसी को भी गवर्नर चुनवा/बनवा देते हो, हमारी मदद की आपको भला क्या जरूरत है - हमारे पैर क्यों पड़ रहे हो ? मुकेश अरनेजा लेकिन पूरी बेशर्मी से यही रट लगाए रहते हैं कि मेरी इज्जत अब आपके ही हाथ में है । इस पर कहीं कहीं उन्हें यह भी सुनने को मिला कि आपकी इज्जत जब हमारे ही हाथ में है, तो हमसे सलाह-मशविरा किए बिना ऊँची ऊँची फेंकते क्यों हो ? इस तरह के रिएक्शन से डिस्ट्रिक्ट में लोगों को इतना तो समझ में आ रहा है कि मुकेश अरनेजा को कॉन्करेंस तो नहीं ही मिलने वाली है, उनकी बची-खुची इज्जत और उतर जानी है । मुकेश अरनेजा को हालाँकि अपनी खुद की इज्जत की कोई परवाह सचमुच में है भी नहीं ! वास्तव में यदि उन्हें परवाह होती तो वह कॉन्करेंस जुटाने के लिए दरवाजे दरवाजे पैर पकड़ते और अपनी बेइज्जती कराते भला क्यों घूमते ? 
मुकेश अरनेजा का हालाँकि यह पुराना फार्मूला है - पहले तो वह डींगे मारते हैं, और जब कामयाब नहीं होते हैं - तो पैर पकड़ लेते हैं । इस फार्मूले से शुरू में उन्हें एक-आध बार कामयाबी मिल भी गई थी - लेकिन जैसे काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ सकती है, वैसे ही मुकेश अरनेजा का यह फार्मूला फिर कभी सफल नहीं हो सका । मुकेश अरनेजा लेकिन इस पिटे-पिटाए फार्मूले को ही बार-बार आजमाते रहते हैं और लगातार 'पिटते' रहे हैं । लोगों का मानना और कहना है कि मुकेश अरनेजा डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच इतनी बुरी तरह से एक्सपोज हो चुके हैं कि उनकी हर कारस्तानी का लोगों को पता चल चुका है और इसलिए उनका कोई भी ढोंग कामयाब नहीं हो पाता है । जैसे ज्यादा दूर या पीछे जाने की क्या जरूरत है, इस बार का ही मामला देखें तो पाते हैं कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को समर्थन दिलवाने के लिए मुकेश अरनेजा ने जो भी हथकंडा अपनाया - वह बुरी तरह पिटा । इससे मुकेश अरनेजा ने भले ही कोई सबक न लिया हो और वह अभी भी उम्मीद कर रहे हों कि अंततः उनके जैसा खोटा सिक्का शायद चल ही जाए - किंतु डिस्ट्रिक्ट में हर किसी को, खुद मुकेश अरनेजा के नजदीकियों व समर्थकों को भी उनके सफल होने का जरा सा भी विश्वास नहीं रह गया है । 
इसी का नतीजा है कि कॉन्करेंस दिलवाने के काम में मुकेश अरनेजा को अकेले ही जुटना पड़ रहा है, और नोमीनेटिंग कमेटी का फैसला आने के पहले तक उनके साथी/सहयोगी रहे लोग भी उनका साथ छोड़ गए हैं । मुकेश अरनेजा के नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि मुकेश अरनेजा ने कोशिश की थी कि दीपक गुप्ता के चेलैंज के समर्थन में कॉन्करेंस जुटाने के उनके अभियान में सतीश सिंघल भी उनके साथ चलें, किंतु सतीश सिंघल ने इसे मानने से साफ इंकार कर दिया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी सतीश सिंघल ने मुकेश अरनेजा और दीपक गुप्ता को साफ बता दिया कि अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ कॉन्करेंस देने/दिलवाने का काम गवर्नर कैटेगरी के लोगों को तो नहीं ही करना चाहिए, क्योंकि इससे गवर्नर पद की गरिमा गिरती है । मुकेश अरनेजा और दीपक गुप्ता के नजदीकियों ने ही बताया है कि सतीश सिंघल ने दोनों को समझाने की हर संभव कोशिश की कि नोमीनेटिंग कमेटी में जिस बड़े अंतर से फैसला हुआ है, उससे डिस्ट्रिक्ट के लोगों के मूड का पता चलता है - और इसके बाद दीपक गुप्ता को चेलैंज करने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए । मुकेश अरनेजा व दीपक गुप्ता ने लेकिन सतीश सिंघल की समझाईस पर कोई ध्यान नहीं दिया - और इसी के साथ सतीश सिंघल ने कॉन्करेंस जुटाने के उनके अभियान से दूरी बना ली । दीपक गुप्ता और मुकेश अरनेजा ने रूपक जैन से जो मदद मिलने की उम्मीद की थी, उसे भी खासा तगड़ा झटका लगा है । रूपक जैन की तरफ से भी बता दिया गया है कि कॉन्करेंस मिलनी तो हैं नहीं, फिर अपनी पोल क्यों खुलवानी तथा इस तरह अपनी बेइज्जती क्यों करवानी ?
मुकेश अरनेजा लेकिन डटे हुए हैं - उन्हें अपनी इज्जत की तो परवाह नहीं ही है, साथ ही उन्हें इस बात की भी कोई परवाह नहीं है कि रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन ने गवर्नर टाइप के लोगों से चुनावी राजनीति में सक्रिय हिस्सेदारी न निभाने का अनुरोध किया हुआ है - और उनके इस अनुरोध को कार्यरूप देने की जिम्मेदारी इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई ने संभाली हुई है । इस संदर्भ में पहले जब भी बात उठी है, मुकेश अरनेजा ने केआर रवींद्रन व मनोज देसाई के प्रति बड़ी हिकारत का भाव प्रकट करते हुए प्रतिकूल किस्म की टिप्पणियाँ की हैं और साफ साफ यह जताया है जैसे उन्हें न केआर रवींद्रन का डर है और न मनोज देसाई का । मुकेश अरनेजा ने अब फिर दोहराया है कि जब राजा साबू और उनकी शह पर उनके डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर्स चुनावी राजनीति में हिस्सेदारी निभा सकते हैं, तो फिर वह क्यों पीछे रहें ? मुकेश अरनेजा पीछे रहने को तैयार नहीं हैं और अधिकृत उम्मीदवार सुभाष जैन को किए गए चेलैंज को स्वीकृति दिलाने के लिए जरूरी कॉन्करेंस जुटाने के लिए घर घर भटक रहे हैं । मुकेश अरनेजा जिस किसी क्लब के कार्यक्रम में जाने का जुगाड़ बैठा लेते हैं, वहाँ भी क्लब के पदाधिकारियों को कॉन्करेंस के लिए फुसलाने/पटाने के लिए 'नाटक' करते/जमाते हैं; और जहाँ उन्हें ऐसा मौका नहीं मिल पाता है वहाँ फिर वह घर या ऑफिस जा कर रोना/धोना मचाते हैं । मुकेश अरनेजा ने अभी तक जिन जिन लोगों के पैर पकड़े हैं, उनमें से जिन कुछेक लोगों से इन पँक्तियों के लेखक की बात हो सकी है, उन्होंने बताया है कि मुकेश अरनेजा बुरी तरह बौखलाए हुए हैं और बौखलाहट में वह जिस तरह की हरकतें तथा बातें कर रहे हैं उससे न सिर्फ अपनी गरिमा को खो रहे हैं, बल्कि लोगों के बीच अपने लिए निहायत शर्मनाक स्थिति भी बना रहे हैं । मुकेश अरनेजा के लिए बदकिस्मती की बात यह हुई है कि कॉन्करेंस के लिए लोगों के पैर पकड़ने के बावजूद उन्हें कॉन्करेंस मिलती हुई दिख नहीं रही है । जाहिर है कि 'मुन्नी बदनाम हुई' वाली तर्ज पर कुल नतीजा 'अरनेजा बदनाम हुआ' जैसा ही मिल रहा है ।