Wednesday, October 21, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति में अहमदाबाद में पराग रावल, पुरुषोत्तम खंडेलवाल व अनिकेत तलति के बीच बने गठजोड़ में सुबोध केडिया के लिए उम्मीद पुरुषोत्तम खंडेलवाल के अपने निजी 'एजेंडे' में छिपी है क्या ?

अहमदाबाद । पराग रावल और पुरुषोत्तम खंडेलवाल ने वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए अनिकेत तलति को चुनाव जितवाने का जो बीड़ा उठाया हुआ है, उसके कारण सुबोध केडिया की रीजनल काउंसिल की सीट खतरे में पड़ती दिख रही है । मजे की बात यह है कि अहमदाबाद में खेमेबाजी की छतरी के लिहाज से देखें तो सुबोध केडिया भी उसी छतरी में आते हैं, जिसमें पराग रावल के साथ पुरुषोत्तम खंडेलवाल व अनिकेत तलति हैं; लेकिन इन तीनों ने सुबोध गुप्ता को फिलहाल छतरी से बाहर कर दिया है । इन तीनों के नजदीकियों का कहना है कि इनका सुबोध केडिया से कोई विरोध नहीं हो गया है, लेकिन चूँकि छतरी में ज्यादा जगह ही नहीं है - इसलिए इन्हें सुबोध केडिया को छतरी से बाहर करना पड़ा है । उल्लेखनीय है कि पिछली बार पराग रावल के अतिरिक्त वोटों की बदौलत ही सुबोध केडिया रीजनल काउंसिल में अपनी जगह बना पाए थे । पिछली बार पहली वरीयता के उन्हें कुल 686 वोट ही मिले थे, जिनके आधार पर उन्हें रीजनल काउंसिल से बाहर ही रहना था - लेकिन पराग रावल के अतिरिक्त वोटों में से 272 वोट जब उनके खाते में जुड़े तब वह मुकाबले में जा पहुँचे थे । पराग रावल के अतिरिक्त वोटों में सबसे ज्यादा वोट सुबोध केडिया को ही मिले थे । उनके बाद, 180 वोट प्रियम शाह के खाते में जुड़े थे । पराग रावल के अतिरिक्त वोटों की बदौलत ही सुबोध केडिया अंतिम गणना में प्रियम शाह से आगे निकल पाए थे; अन्यथा पहली वरीयता के वोटों की गिनती में वह प्रियम शाह से बहुत पीछे थे । प्रियम शाह को पहली वरीयता के 805 वोट प्राप्त हुए थे । 
जाहिर है कि पिछली बार तो पराग रावल के अतिरिक्त वोटों ने सुबोध केडिया की चुनावी नैय्या पार लगा दी थी, लेकिन इस बार पराग रावल जब पुरुषोत्तम खंडेलवाल व अनिकेत तलति के लिए प्रचार कर रहे हैं, तो सुबोध केडिया का क्या होगा ? यहाँ महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पराग रावल इस बार खुद सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार हैं, और इसके बावजूद वह खुलकर रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत पुरुषोत्तम खंडेलवाल व अनिकेत तलति की उम्मीदवारी के लिए प्रचार कर रहे हैं । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में इस तरह का नजारा शायद पहली बार ही देखा जा रहा है । सेंट्रल काउंसिल के कुछेक उम्मीदवारों के किसी किसी रीजनल काउंसिल उम्मीदवार के साथ तार जुड़े ही होते हैं; इस बार ही सेंट्रल काउंसिल उम्मीदवार के पार्टनर रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बने हुए हैं - जाहिर है कि वह उनके लिए समर्थन जुटाने का काम कर ही रहे होंगे; अहमदाबाद में ही प्रियम शाह को दीनल शाह के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता है; लेकिन किसी को भी खुलेआम एकसाथ प्रचार पर निकलते नहीं देखा गया है । पराग रावल ने लेकिन इंस्टीट्यूट के चुनावी परिदृश्य में एक नई प्रथा शुरू की है । पराग रावल की इस नई प्रथा को हालाँकि प्रशंसक व आलोचक दोनों मिले हैं - लेकिन प्रशंसक व आलोचक दोनों इस बात पर एकमत हैं कि उनकी इस नई प्रथा ने सुबोध केडिया के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है । प्रियम शाह पर चूँकि दीनल शाह का हाथ है, इसलिए उनकी सीट तो पक्की ही समझी जा रही है । पराग रावल और पुरुषोत्तम खंडेलवाल व अनिकेत तलति ने जिस तरह का गठजोड़ बना लिया है, उससे पुरुषोत्तम खंडेलवाल व अनिकेत तलति का पलड़ा भारी हो गया है । समस्या सिर्फ सुबोध केडिया के लिए ही बची रह गई है । 
सुबोध केडिया के समर्थक लेकिन सुबोध केडिया की जीत को लेकर चिंतित नहीं हैं । उनका तर्क है कि रीजनल काउंसिल में रहते हुए सुबोध केडिया ने अपने समर्थन-आधार का विस्तार किया है, जिसके चलते इस बार उनकी स्थिति पिछली बार जितनी बुरी नहीं रह गई है । उन्हें उम्मीद है कि पिछली बार जो वोट उन्हें वाया पराग रावल मिले थे, इस बार वह उन्हें सीधे मिलेंगे और इसलिए उनके सामने अपनी सीट को बरकरार रखने में कोई समस्या नहीं आएगी । सुबोध केडिया के समर्थक मानते हैं और चाहते हैं कि दूसरे भी मानें कि समस्या अनिकेत तलति के सामने है । ब्रांच का चुनाव ही उन्होंने मुश्किल से जीता था, और तब जीता था जब उनके पिता पूर्व प्रेसीडेंट सुनील तलति ने उन्हें समर्थन दिलाने के लिए दिन-रात एक किया हुआ था । पिता की पहचान और उनकी मेहनत के बूते अनिकेत तलति ब्रांच का चुनाव तो जैसे तैसे जीत गए थे; रीजनल काउंसिल का चुनाव जीतना उनके लिए लेकिन मुश्किल ही होगा । सुबोध केडिया के समर्थक ही नहीं, अन्य कई लोग भी अनिकेत तलति को जितवाने को लेकर पराग रावल व पुरुषोत्तम खंडेलवाल द्वारा अपनाए गए 'तरीके' की सफलता को लेकर संदेहग्रस्त हैं । यह संदेह इसलिए भी है क्योंकि एक उम्मीदवार के रूप में पुरुषोत्तम खंडेलवाल का अपना एजेंडा भी है - और वह यह कि वह पराग रावल की तरह सबसे ज्यादा वोट पाकर जीतना चाहते हैं । पिछली बार ब्रांच का चुनाव भी उन्होंने सबसे ज्यादा वोट प्राप्त करते हुए ही जीता था । इसी तरह का रिकॉर्ड वह रीजनल काउंसिल में बनाना चाहेंगे । ऐसे में, वह किसी से भी यह भला क्यों कहेंगे कि मैं तो आराम से जीत ही रहा हूँ, इसलिए अपना वोट आप अनिकेत तलति को देना । 
पुरुषोत्तम खंडेलवाल के नजदीकियों का कहना भी है कि अनिकेत तलति के साथ उनके संबंध प्रतिस्पर्द्धा वाले ही रहे हैं, और अनिकेत तलति तथा उनके लोग कभी इस बात को हजम नहीं कर पाए कि ब्रांच के चुनाव में पुरुषोत्तम खंडेलवाल को सबसे ज्यादा वोट मिले थे; और इस नाते जहाँ जब कभी मौका मिलता वह पुरुषोत्तम खंडेलवाल को नीचा दिखाने का प्रयास करते रहे हैं । दोनों के बीच खुले विरोध को प्रदर्शित करने की नौबत तो हालाँकि नहीं आई, किंतु दोनों के बीच शीत-युद्ध की सी स्थिति हमेशा बनी रही है । यह पराग रावल के प्रयास हैं कि आज दोनों साथ-साथ मिलकर अपना चुनाव अभियान चला रहे हैं । पराग रावल को भी अनिकेत तलति की तुलना में पुरुषोत्तम खंडेलवाल के ज्यादा नजदीक पहचाना/समझा जाता है । समझा जाता है कि अनिकेत तलति को पुरुषोत्तम खंडेलवाल के साथ अपनी छतरी के नीचे लाने का काम पराग रावल ने यह सोच कर किया है, कि इससे उन्हें सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने में मदद मिलेगी । अनिकेत तलति भी उनकी छतरी के नीचे आने के लिए इसीलिए तैयार हो गए, क्योंकि उन्हें भी अपनी उम्मीदवारी के संदर्भ में एक छतरी की जरूरत तो है ही । ब्रांच के चुनाव में अनिकेत तलति को यह सबक मिल ही गया था कि इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में सिर्फ अपने पिता के भरोसे वह ज्यादा लंबी यात्रा नहीं कर सकेंगे । लोगों को लगता है कि पराग रावल और अनिकेत तलति अपने अपने मतलब से एक साथ आए हैं, और पुरुषोत्तम खंडेलवाल खेमेबाजी व दोस्ती के दबाव में - और शायद 'मजबूरी' में उनके साथ बने हैं; और यही चीज इन तीनों के साथ साथ वाले अभियान की सफलता को संदेहजनक बनाती है । इसी संदेह में सुबोध केडिया को अपने लिए उम्मीद नजर आती है । अनिकेत तलति व सुबोध केडिया के बीच चलने वाली लुकाछिपी ने अहमदाबाद में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के परिदृश्य को दिलचस्प बना दिया है ।