Monday, October 5, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की अपनी सीट बचाने के लिए दीपक गर्ग की विजय गुप्ता पर निर्भरता सचमुच उनके काम आयेगी क्या ?

फरीदाबाद । दीपक गर्ग के शुभचिंतकों ने उस तस्वीर को देख कर अंततः राहत की साँस ली, जिसमें नए नए चार्टर्ड एकाउंटेंट बने बच्चों के लिए हो रहे एक कार्यक्रम में दीपक गर्ग पीछे की सीट पर एक किनारे 'अकेले से' बैठे हुए उन्हें दिखे । दीपक गर्ग पिछले कई दिनों से अपने राजनीतिक गुरु विजय गुप्ता के साथ गायब से चल रहे थे । विजय गुप्ता के गायब होने को लेकर तो लोगों को ज्यादा चिंता नहीं थी - कोई कह रहा था कि वह वित्तीय धोखाधड़ी में फँसे अपने एक क्लाइंट को बचवाने की कार्रवाई में लगे हैं; कोई कहता हुआ सुना जा रहा था कि वह उत्तर प्रदेश में विधान परिषद की सीट का जुगाड़ करने गए हुए हैं; उनके समर्थक लेकिन बता रहे थे कि सेंट्रल काउंसिल की सीट जीतने के लिए वह अंडरग्राउंड रह कर काम कर रहे हैं । लेकिन दीपक गर्ग को लेकर उनके शुभचिंतक भी तथा कई दूसरे लोग भी बहुत चिंतित थे । इसका कारण भी है । शुभचिंतकों के लिए चिंता का कारण यह बना कि चुनाव सिर पर आ चुके हैं, और दीपक गर्ग की सीट खतरे में भी देखी जा रही है - ऐसे में दीपक गर्ग ऐसे कहाँ जा छिपे हैं, कि उनके नजदीकियों को भी उनकी कोई खोज-खबर नहीं है । ऐसे समय में, जबकि उन्हें सभी के सामने होना/ दिखना चाहिए - वह अपने समर्थकों व शुभचिंतकों से भी बचते/छिपते फिर रहे हैं । उनका फोन भी उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को या तो बंद मिलता था, और या पहुँच से बाहर मिलता । किसी का फोन लग भी जाता, तो उठता नहीं; और जिनका उठ जाता, उन्हें सुनने को मिलता कि बाद में बात करता हूँ । ऐसे में हर किसी के लिए समझना मुश्किल हो रहा था कि दीपक गर्ग आखिर हैं कहाँ और क्या कर रहे हैं ?   
दीपक गर्ग तो नहीं मिले, लेकिन एक तस्वीर मिली जो शिमला के किसी रिसोर्ट में चल रहे एक कार्यक्रम की बताई गई - जिसमें दीपक गर्ग बैठे हुए दिखे । इस तस्वीर को देख कर शुभचिंतकों को खुशी भी हुई और लेकिन साथ साथ निराशा भी हुई । खुशी का कारण तो यह रहा कि आखिरकार दीपक गर्ग दिखे तो; निराशा लेकिन इस तस्वीर में उनकी पोजीशन देख कर हुई । इस तस्वीर में वह जिस 'पोजीशन' में बैठे हुए दिख रहे हैं, उसमें कहीं से यह नहीं लग रहा है कि वह एक रीजनल काउंसिल के सदस्य हैं । तस्वीर यंग चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के रेजिडेंशियल रिफ्रेशर कोर्स की है । यूँ तो दीपक गर्ग भी अभी यंग ही हैं, लेकिन प्रोफेशन में जिन्हें यंग कहा/समझा जाता है - 'वह वाले' यंग दीपक गर्ग अब नहीं रहे हैं; तो फिर वह प्रोफेशनल 'यंग' लोगों के इस कार्यक्रम में क्या कर रहे हैं ? और तस्वीर में नजर आ रही बेचारगी वाली हालत में क्यों बैठे हुए हैं ? इन सवालों के जबाव दीपक गर्ग ही दे सकते हैं, लेकिन उन्होंने पूरी तरह से चुप्पी साधी हुई है । उनके समर्थक लेकिन जो बता रहे हैं, उससे नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनाव के संदर्भ में मामला खासा दिलचस्प बन गया है । 
तस्वीर में दीपक गर्ग जिस बेचारगी वाली हालत में बैठे दिख रहे हैं, उसका एक अर्थ तो लोगों ने यही लगाया है कि अपने चुनाव को लेकर दीपक गर्ग अपने राजनीतिक गुरु पर पूरी तरह निर्भर हो गए हैं । दरअसल यंग चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के रेजिडेंशियल रिफ्रेशर कोर्स को उनके राजनीतिक गुरु विजय गुप्ता के राजनीतिक हथकंडे के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है । विजय गुप्ता को लग रहा है कि रेजिडेंशियल आयोजन में वह यंग चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को हर तरह से प्रभावित करने का मौका पा/बना सकते हैं; और यहाँ प्रभावित हुए यंग चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का वोट उनके लिए पक्का ही हो जायेगा । विजय गुप्ता ने अपने लिए वोट पाने का यह जो जुगाड़ किया है, उसी जुगाड़ में दीपक गर्ग ने भी अपने लिए वोट जुटाने का मौका बनाने का काम देखा है । दीपक गर्ग को लग रहा है कि विजय गुप्ता के इस तरह के आयोजन में शामिल रह कर वह दो तरह से फायदा उठा लेंगे - एक तो वह विजय गुप्ता के लिए काम करने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के नजदीक आयेंगे, और दूसरे 'यंग' चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से जुड़ने का मौका उन्हें मिलेगा । अपने आयोजनों की व्यवस्था के लिए विजय गुप्ता अपने साथ कुछेक ऐसे चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को रखते हैं, जिन्हें वह कुछ कुछ काम दिलाते रहते हैं और या काम दिलाने का झाँसा दिए होते हैं; ऐसे चार्टर्ड एकाउंटेंट्स विजय गुप्ता के आयोजनों में व्यवस्था संबंधी मदद तो करते ही हैं, साथ ही उनकी उम्मीदवारी के पक्ष में हवा बनाने का काम भी करते हैं । दीपक गर्ग को लगता है कि विजय गुप्ता के साथ चिपके चिपके रह कर वह भी अपने चुनावी अभियान में ऐसे चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से काम ले सकते हैं ।
दीपक गर्ग ने कुछ तो अपने व्यवहार व रवैये से और कुछ अपने राजनीतिक गुरु विजय गुप्ता के नजदीक दिखने से अपने विरोधियों की संख्या को बढ़ाया ही है । इस बढ़ी हुई संख्या में ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने पिछली बार उनके चुनाव में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था - और उनके लिए समर्थन जुटवाया था । दीपक गर्ग ने लोगों के बीच अपनी उम्मीदवारी के प्रति स्वीकारोक्ति के भाव को तो घटाया ही है, साथ ही अपने कई अच्छे समर्थकों को भी खो दिया है । अपनी उम्मीदवारी के प्रति लोगों के बीच पनपे/फैले विरोध के भाव को देखते हुए ही दीपक गर्ग के लिए लोगों के बीच खुलकर अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में अभियान चलाना तक मुश्किल हो रहा है । इसीलिए अपनी चुनावी नैय्या पार लगाने के लिए दीपक गर्ग के सामने विजय गुप्ता पर निर्भर होने की मजबूरी आ पड़ी है । उल्लेखनीय है कि विजय गुप्ता के साथ दीपक गर्ग अभी तक अपने मिलेजुले से संबंध 'दिखाते' रहे हैं : उन्हें जब जब जहाँ जैसे विजय गुप्ता की मदद की जरूरत पड़ी, और उनकी जरूरत में विजय गुप्ता को भी अपनी दाल गलती हुई दिखी - तब तब विजय गुप्ता उनकी मदद करते हुए नजर आये । किंतु जहाँ कहीं उन्हें विजय गुप्ता के साथ होने के कारण अपना नुकसान होता हुआ नजर आया; वहाँ कहीं दीपक गर्ग ने विजय गुप्ता के साथ अपना किसी भी तरह का संबंध होने की बात से इंकार किया । दीपक गर्ग को इस बात पर सख्त ऐतराज रहा है कि कोई उन्हें विजय गुप्ता का 'आदमी' कहे । लेकिन अब जब वह विजय गुप्ता के एक कार्यक्रम में - जिसमें उनकी कोई आधिकारिक भूमिका स्पष्ट नहीं है - पीछे की सीट पर 'बेचारगी की हालत' में बैठे दिखे हैं, तो लोगों ने मान लिया है कि दीपक गर्ग अपने चुनाव के संदर्भ में विजय गुप्ता पर पूरी तरह निर्भर हो चले हैं । दीपक गर्ग के रूप में रीजनल काउंसिल के एक सदस्य की यह बेचारगी भरी सच्चाई इंस्टीट्यूट के चुनावी परिदृश्य का एक नजारा तो पेश करती ही है, साथ ही दीपक गर्ग के लिए चुनाव को और चुनौतीपूर्ण भी बना देती है । चुनौतीपूर्ण इसलिए भी, क्योंकि ऐसे में जबकि विजय गुप्ता के लिए सेंट्रल काउंसिल की अपनी सीट बचाना मुश्किल हो रहा है, दीपक गर्ग की सीट का बोझ उनके सिर और आ पड़ा है ।