Friday, October 16, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में आलोक गुप्ता को इग्नोर करते हुए मुकेश अरनेजा ने अमित अग्रवाल की उम्मीदवारी की घोषणा करके दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के अभियान को भटकाने तथा उसे और पीछे धकेलने का काम किया है

गाजियाबाद । मुकेश अरनेजा ने दीपक गुप्ता के गवर्नर-काल में अमित अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनवाने/चुनवाने की घोषणा करके मौजूदा चुनावी माहौल को मनोरंजक बनाने का काम किया है । उल्लेखनीय है कि किसी भी चुनाव में कई रंग देखने को मिलते हैं - उनमें एक रंग मनोरंजन का भी होता है । नेताओं के बहुत से बयान, उनकी बहुत सी बातें, उनकी बहुत सी हरकतें - जो कही/होती तो बड़ी गंभीरता से हैं, लेकिन काम वह चुटकुले का करती हैं । जैसे मुकेश अरनेजा ने अमित अग्रवाल को लेकर जो कहा है, वह उन्होंने कोई मजाक में थोड़े ही कहा है; उन्होंने तो बड़ी गंभीरता से उक्त घोषणा की है - डिस्ट्रिक्ट में लोग लेकिन उसे चुटकुला समझ कर मजा ले रहे हैं । मजा इसलिए ले रहे हैं क्योंकि सभी लोग समझ रहे हैं कि अभी दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी तो खतरे में पड़ी है और उनका जीत पाना ही मुश्किल दिख रहा है; मुकेश अरनेजा ने लेकिन उनके गवर्नर-काल की राजनीति के सपने देखने शुरू कर दिए हैं । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति जिन लोगों की हमदर्दी है, उनमें से ही कुछेक का कहना है कि मुकेश अरनेजा को इस तरह की जुमलेबाजी छोड़ कर इस समय दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की फिक्र करना चाहिए - और इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि दीपक गुप्ता की तमाम भागदौड़ तथा मेहनत के बावजूद उनकी उम्मीदवारी को समर्थन मिलता आखिर 'दिख' क्यों नहीं रहा है ? ऐसा क्यों है कि सुभाष जैन की उम्मीदवारी के जो समर्थक हैं, वह तो खुल कर सुभाष जैन की उम्मीदवारी की वकालत करते हुए नजर आ रहे हैं; जबकि दीपक गुप्ता के समर्थन में जो लोग बताए जा रहे हैं, वह दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की वकालत खुल कर करने से बचते हुए दिख रहे हैं ? दीपक गुप्ता ने कई लोगों को अपने साथ 'चलने' के लिए प्रेरित करने का प्रयास भी खूब किया, किंतु उनकी चुनावी संभावना में कहीं कोई उम्मीद न देखने के कारण कोई उनकी बातों में आता हुआ दिखा नहीं है । 
दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को खुले तरफदारों/समर्थकों का जो टोटा पड़ा है, उसे दूर करने में उन्हें मुकेश अरनेजा से भी कोई मदद नहीं मिली है । लोगों का कहना हालाँकि यह भी है कि इस मामले में मुकेश अरनेजा ने उनकी मदद करने की कोशिश तो बहुत की, किंतु वह मदद दिलवा नहीं सके । डिस्ट्रिक्ट में जिन लोगों को मुकेश अरनेजा के 'आदमी' के रूप में जाना/पहचाना जाता है, उन्होंने भी जिस तरह से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में सार्वजनिक रूप से सक्रिय होने से परहेज किया है - उससे लोगों के बीच यही संदेश जा रहा है कि उन्हें भी दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी में कोई दम नजर नहीं आ रहा है, और इसीलिए वह दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में 'दिखने' से बच रहे हैं । ऐसी स्थिति में, मुकेश अरनेजा यदि दीपक गुप्ता के तथाकथित गवर्नर-काल की चुनावी राजनीति का एजेंडा तय करने वाली बातें कर रहे हैं - तो लोग उसे 'मुंगेरीलाल के हसीन सपने' की तरह सुनते/देखते हुए मजा ही तो लेंगे न ! लोग यही कर रहे हैं । मजे की बात यह है कि मुकेश अरनेजा की इस जुमलेबाजी को खुद अमित अग्रवाल ने कोई बहुत उत्साह से नहीं लिया है । अपनी उम्मीदवारी की बातों में उन्हें बहुत संकोच के साथ प्रतिक्रिया देते हुए देखा/पाया गया है । कुछेक लोगों ने उन्हें मुकेश अरनेजा की बातों में आकर 'उड़ना' शुरू न कर देने की जो नसीहत दी, उस पर भी वह सकारात्मक प्रतिक्रिया ही देते सुने/पाए गए हैं । 
अमित अग्रवाल के लिए कई लोगों का सुझाव है कि जब भी उम्मीदवार बनो, स्थिति का खुद से आकलन करके बनना; मुकेश अरनेजा की बातों में आकर उम्मीदवार बने तो अशोक गर्ग व दीपक गुप्ता की दशा को प्राप्त होगे ! अशोक गर्ग को तो अभी समझ में आ गया है कि मुकेश अरनेजा की बातों में आकर उन्होंने कितनी बड़ी बेवकूफी की; दीपक गुप्ता को भी जल्दी ही समझ में आ जायेगा कि वह नाहक ही मुकेश अरनेजा के जाल में फँसे और उनके उकसाने में आ गए । मुकेश अरनेजा के भरोसे उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले दीपक गुप्ता को मुकेश अरनेजा से मदद कम मिल रही है, नुकसान ज्यादा हो रहा है । नुकसान भी दोतरफा हो रहा है : एक तरफ तो मुकेश अरनेजा की जो नकारात्मक छवि है, उसका नुकसान; और दूसरी तरफ उनकी बातों व हरकतों से होने वाला नुकसान । जैसे यह, अमित अग्रवाल की उम्मीदवारी को लेकर मुकेश अरनेजा ने जो घोषणा की है - वह एक तरफ तो मजाक का विषय बनी है, और दूसरी तरफ दीपक गुप्ता के जो थोड़े से समर्थक हैं भी उनमें भी खटराग पैदा करने का कारण बनी है । मुकेश अरनेजा की यह घोषणा दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के एक दूसरे समर्थक आलोक गुप्ता को झटका देने वाली घोषणा के रूप में भी देखी/पहचानी जा रही है । मजे की बात यह है कि आलोक गुप्ता को अमित अग्रवाल के मुकाबले मुकेश अरनेजा के ज्यादा नजदीक माना/पहचाना जाता है; और आलोक गुप्ता भी अगले वर्षों में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने को लेकर उत्सुक सुने जाते हैं । ऐसे में, हर किसी को हैरानी है कि मुकेश अरनेजा ने आलोक गुप्ता की बजाए अमित अग्रवाल की उम्मीदवारी की बात क्यों की ?
इस सवाल का जबाव खोजने में दो तथ्यों का ध्यान करना/रखना बहुत जरूरी है : एक यह कि अपनी उम्मीदवारी के चक्कर में आलोक गुप्ता एक बार मुकेश अरनेजा से धोखा खा चुके हैं; तथा दूसरा यह कि अमित अग्रवाल और आलोक गुप्ता के बीच परस्पर विरोध का - तगड़े वाले विरोध का संबंध है । उल्लेखनीय है कि तीन वर्ष पहले आलोक गुप्ता ने मुकेश अरनेजा के भरोसे ही अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी, किंतु मुकेश अरनेजा से उन्हें धोखा ही मिला था - जिसके चलते उनके बीच एक बड़ी दूरी बन गईं थी । अपनी अपनी मजबूरियों के चलते पिछले कुछेक महीनों में दोनों ने अपने बीच की दूरी को पाटने के संकेत तो दिए हैं; किंतु अमित अग्रवाल की उम्मीदवारी को लेकर की गई मुकेश अरनेजा की घोषणा ने उन संकेतों को संदेहास्पद बना दिया है । आलोक गुप्ता की एक समय अमित अग्रवाल से भी अच्छी पटती थी । अमित अग्रवाल पहले उन्हीं के क्लब में थे । खटपट होने पर बाद में अमित अग्रवाल ने अपना क्लब बना लिया था । उनके बीच की खटपट कितनी तल्ख थी, इसका पता तब चला जब तीन वर्ष पहले उम्मीदवार के रूप में आलोक गुप्ता को नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्य के रूप में अमित अग्रवाल ने जीरो नंबर दिए । यानि उम्मीदवार के रूप में आलोक गुप्ता को मुकेश अरनेजा से तो धोखा मिला ही था, साथ ही अमित अग्रवाल से भी विरोध का बहुत तगड़ा वाला डोज मिला था । पिछले तीन वर्षों में उक्त तल्खी हालाँकि काफी घटी है - मुकेश अरनेजा के साथ तो आलोक गुप्ता के संबंध पहले जैसे होते 'दिखे' ही हैं और अमित अग्रवाल के दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के सेनापति होने के बावजूद आलोक गुप्ता भी दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक बने हैं, तो माना जा रहा था कि पुरानी दुश्मनियों को छोड़ कर दोस्ती की नई इबारत लिखने का प्रयास हो रहा है । 
किंतु मुकेश अरनेजा द्वारा अमित अग्रवाल की उम्मीदवारी की घोषणा ने आलोक गुप्ता के पुराने जख्मों को कुरेदने का काम किया है । करीब तीन वर्ष बाद, अब जब मुकेश अरनेजा ने आलोक गुप्ता को इग्नोर करते हुए अमित अग्रवाल की उम्मीदवारी की घोषणा की है - तो लोगों के बीच सहसा सवाल भी पैदा हुआ है कि तीन वर्ष पहले अमित अग्रवाल ने आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति जिस तरह का घोर नकारात्मक रवैया दिखाया था, उसके प्रेरणा स्रोत कहीं मुकेश अरनेजा ही तो नहीं थे ? आलोक गुप्ता से अमित अग्रवाल की खटपट का फायदा उठाते हुए कहीं मुकेश अरनेजा ने ही तो अमित अग्रवाल के जरिए आलोक गुप्ता को निपटाने की भूमिका नहीं बनाई थी ? एक सवाल का जबाव मिलता नहीं है कि दूसरा सवाल खड़ा हो जाता है - मुकेश अरनेजा, अमित अग्रवाल व आलोक गुप्ता के संबंधों की पहेली को हल करने के लिए उठते सवालों के इस शोर में दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की बात और पीछे चली गई है । दीपक गुप्ता को समर्थकों का वैसे ही टोटा है, उनके जो गिने-चुने समर्थक हैं भी उन्हें मुकेश अरनेजा ने अपनी फालतू की बयानबाजी से आपस में ऐसा उलझा दिया है कि वह दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को भूल कर अपनी अपनी उम्मीदवारी के बारे में हाँ/ना करने में उलझ गए हैं । इसी सब को देख कर लोगों का कहना है कि मुकेश अरनेजा की बातें और हरकतें दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का काम ज्यादा कर रही हैं ।