Tuesday, October 20, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के सेंट्रल काउंसिल चुनाव में नॉर्दर्न रीजन में सबसे ज्यादा वोट पाने की होड़ में संजय अग्रवाल से आगे रहने की अतुल गुप्ता की कोशिशों में पंकज त्यागी ने फच्चर फँसाया

नई दिल्ली । पंकज त्यागी ने सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के लिए फरीदाबाद में समर्थन जुटाने की प्रक्रिया में अतुल गुप्ता के कई समर्थकों को अपनी तरफ मिला कर अतुल गुप्ता को जो झटका दिया है - उसके चलते अतुल गुप्ता को सबसे ज्यादा वोट प्राप्त करने का अपना लक्ष्य खतरे में पड़ता दिख रहा है । पंकज त्यागी से फरीदाबाद में मिली चोट का दर्द अतुल गुप्ता ज्यादा महसूस नहीं भी करते, यदि दिल्ली के ऐवान-ए-गालिब तथा हिंदी भवन में पिछले दिनों 'वॉयस ऑफ सीए' द्वारा आयोजित सेमिनारों में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की उम्मीद से कहीं ज्यादा भीड़ न जुटी होती । 'वॉयस ऑफ सीए' चूँकि संजय अग्रवाल का उपक्रम है, इस नाते 'वॉयस ऑफ सीए' की उपलब्धियों को संजय अग्रवाल की उपलब्धियों के रूप में देखा/पहचाना जाना स्वाभाविक ही है । संजय अग्रवाल की उपलब्धियों में अतुल गुप्ता को खतरे की घंटियाँ इसलिए भी सुनाई देती हैं, क्योंकि नॉर्दर्न रीजन में सबसे ज्यादा वोट पाने की होड़ में अतुल गुप्ता को संजय अग्रवाल से ही चुनौती मिलती दिख रही है । नॉर्दर्न रीजन में सबसे ज्यादा वोट पाने की होड़ में पहले नवीन गुप्ता को भी देखा/पहचाना जा रहा था, किंतु उनके पापा एनडी गुप्ता की तमाम कोशिशों के बाद भी उनका समर्थन-आधार जिस तरह घटता गया है और वेद जैन जैसे लोग भी एनडी गुप्ता के झाँसे में आने से बच निकले हैं; उसे देखते/जानते हुए नवीन गुप्ता को उक्त दौड़ से बाहर हुआ मान लिया गया है । नॉर्दर्न रीजन में सबसे ज्यादा वोट पाने की होड़ में अब सिर्फ अतुल गुप्ता और संजय अग्रवाल को ही देखा/पहचाना जा रहा है । 
इस होड़ में अभी तक अतुल गुप्ता का पलड़ा भारी पड़ता नजर आ रहा था - इसका कारण यह रहा कि सबसे ज्यादा वोट जुटाने की होड़ में अतुल गुप्ता हर दाँव आजमाने की तैयारी करते देखे/सुने जा रहे थे, जबकि संजय अग्रवाल खेमे की तरफ से कोई हलचल नहीं दिखाई/सुनाई दे रही थी । अतुल गुप्ता ने पिछले चुनाव में अपने चुनाव अभियान को चलाने के लिए अपनी टीम बनाई थी और टीम के सदस्यों के रूप में युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को नौकरी पर रखा था; इस बार उन्होंने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव लेकिन यह किया कि इस बार अपनी टीम बनाने की बजाये उन्होंने टीमों को आउट-सोर्स किया । इसका सबसे आसान फार्मूला उन्होंने यह निकाला कि रीजनल काउंसिल के कुछेक उम्मीदवारों को उन्होंने 'गोद' ले लिया । असीम पाहवा, पंकज पेरिवाल, अविनाश गुप्ता, आलोक जैन, आरएस यादव आदि को अतुल गुप्ता के गोद लिए उम्मीदवारों के रूप में पहचाना गया । अतुल गुप्ता ने इन्हें गोद लेने के अलावा राजिंदर नारंग, योगिता आनंद, स्वेदश गुप्ता, नितिन कँवर आदि से भी तार जोड़े । अतुल गुप्ता का यह फार्मूला किंतु जल्दी ही पिट गया; क्योंकि रीजनल काउंसिल के इन उम्मीदवारों ने जल्दी ही इस बात को समझ लिया कि अतुल गुप्ता ने इन्हें इनके भले के लिए नहीं, बल्कि अपने फायदे के लिए गोद लिया है - और इनकी चिंता करने की बजाए सिर्फ अपनी फिक्र कर रहे हैं; और इन्हें सिर्फ इस्तेमाल कर रहे हैं । यह समझते ही कुछेक लोग तो अतुल गुप्ता की गोद से उतर कर तथा तार तोड़ कर निकल भागे; और जो अभी भी अतुल गुप्ता को उनकी गोद में बने रहने और उनके साथ तार जोड़े रखने का भ्रम दे रहे हैं उन्होंने भी सेंट्रल काउंसिल के दूसरे उम्मीदवारों से तार जोड़ लिए हैं । 
इस संदर्भ में आलोक जैन का मामला खासा दिलचस्प है । अतुल गुप्ता ने गुड़गाँव में अपने समर्थन-आधार को बढ़ाने के लिए आलोक जैन को गोद लिया; आलोक जैन भी यह सोच कर उनकी गोद में चढ़ बैठे कि इससे गुड़गाँव में उनका समर्थन-आधार भी बढ़ेगा - किंतु जल्दी ही उन्हें अतुल गुप्ता के गेम-प्लान की असलियत पता चली, तो उन्होंने अतुल गुप्ता का ही फार्मूला अतुल गुप्ता पर ही चला दिया । आलोक जैन ने गुड़गाँव में संजीव चौधरी के लोगों के साथ भी अपने तार जोड़ लिए हैं । लुधियाना में पंकज पेरिवाल ने भी यही फार्मूला अपना लिया है । अतुल गुप्ता के गेम-प्लान को इससे झटका तो लगा, लेकिन उन्होंने इस झटके की परवाह इसलिए नहीं की - क्योंकि सबसे ज्यादा वोट पाने की होड़ में उन्हें जिन संजय अग्रवाल से चुनौती मिलने की उम्मीद की जा रही थी, वह संजय अग्रवाल ज्यादा कुछ करते हुए 'नजर' नहीं आ रहे थे । 
लेकिन संजय अग्रवाल के उपक्रम 'वॉयस ऑफ सीए' द्वारा ऐवान-ए-गालिब व हिंदी भवन में आयोजित किए गए सेमीनारों में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की जो भीड़ जुटी, उसने अतुल गुप्ता के लिए सारा नजारा ही बदल दिया । दरअसल इन दो सेमीनारों की सफलता से एक बड़ा भ्रम यह दूर हुआ कि संजय अग्रवाल ज्यादा कुछ कर नहीं रहे हैं । इन दो सेमीनारों की जोरदार सफलता से साबित हुआ कि संजय अग्रवाल बिना शोर मचाए चुपचाप तरीके से काम करते रहे हैं और मौका आने पर उन्हें उसका भरपूर फायदा मिला । उल्लेखनीय है कि हाल-फिलहाल के दिनों में जिन उम्मीदवारों ने तरह तरह की बहानेबाजियों से पार्टियाँ और/या सेमीनार आदि आयोजित किए, उन्हें लोगों को इकट्ठा करने में मुश्किलों का भारी सामना करना पड़ा । दूसरे आयोजनों में जहाँ उतने लोग भी नहीं पहुँचे, जितने लोगों के लिए इंतजाम किया गया था; वहाँ संजय अग्रवाल के आयोजन में उम्मीद से ज्यादा लोग इकट्ठा - और एक बार नहीं, बार-बार इकट्ठा हुए; उससे लोगों के बीच यही संदेश गया है कि संजय अग्रवाल ने अपने समर्थन-आधार का अच्छे से विस्तार किया है, और उसे पक्के तौर पर अपने साथ जोड़ा हुआ है । संजय अग्रवाल की इस तैयारी ने अतुल गुप्ता को चौकन्ना किया है । जो अतुल गुप्ता अभी कुछ समय पहले तक अच्छे-भले झटकों को भी गंभीरता से नहीं ले रहे थे, उन्हीं अतुल गुप्ता ने अब लेकिन छोटे-मोटे झटकों पर भी ध्यान देना शुरू कर दिया है ।
इसी पृष्ठभूमि में फरीदाबाद में पंकज त्यागी की तरफ से अतुल गुप्ता को जो झटका मिला है, उस पर अतुल गुप्ता ने तुरंत से ध्यान दिया है । मजे की बात यह है कि फरीदाबाद यूँ तो विजय गुप्ता का इलाका है, किंतु इस बार के चुनाव में यह कई एक अन्य उम्मीदवारों के लिए चुनावी-तीर्थ बना हुआ है । दरअसल विजय गुप्ता की हालत इस बार खासी पतली समझी जा रही है । फरीदाबाद में तो उनका बड़ा भारी विरोध है - इतना भारी विरोध कि विजय गुप्ता के लिए फरीदाबाद में अपनी उम्मीदवारी के लिए अभियान तक चलाना मुश्किल हो रहा है । ऐसे में, स्वाभाविक रूप से दूसरे उम्मीदवारों की बन आई है और उन्होंने फरीदाबाद में अपने अपने समर्थन के लिए हाथ-पैर मारे/चलाए - जिसका उन्हें भरपूर फायदा भी मिला । ज्यादा फायदा उठाने वालों में अतुल गुप्ता, संजय अग्रवाल व नवीन गुप्ता का ही नाम रहा । इनमें भी अतुल गुप्ता का नाम सबसे ऊपर रहा । फरीदाबाद में विजय गुप्ता को वोटों का जो नुकसान होता हुआ दिखा, उसका सबसे बड़ा हिस्सा अतुल गुप्ता के पास/साथ जाता हुआ नजर आया । किंतु अचानक से शुरू हुई पंकज त्यागी की सक्रियता ने अतुल गुप्ता की नींद हराम कर दी है । दरअसल फरीदाबाद में जो कई लोग अतुल गुप्ता के समर्थन में देखे जा रहे थे, उन्हें बाद में लेकिन जब पंकज त्यागी की उम्मीदवारी का झंडा उठाए देखा गया तो अतुल गुप्ता का चिंतित होना स्वाभाविक ही था । अतुल गुप्ता ने अपने 'भूतपूर्व समर्थकों' को समझाने की बहुत कोशिश की कि पंकज त्यागी चुनावी परिदृश्य में कहीं नहीं हैं, इसलिए उनके साथ क्यों अपना समय और एनर्जी खराब कर रहे हो, किंतु उनके भूतपूर्व समर्थकों पर उनकी समझाइस का कोई असर पड़ता हुआ नहीं दिखा है । 
ऐसा नहीं है कि पंकज त्यागी ने फरीदाबाद में अतुल गुप्ता के समर्थकों को तोड़ कर उन्हें कोई बहुत बड़ा झटका दिया है, लेकिन अतुल गुप्ता फिर भी उनसे मिले झटके से चिंतित हैं तो इसलिए क्योंकि अब उन्हें यह जरूर समझ में आ रहा है कि इस तरह के छोटे छोटे झटके उन्हें सबसे ज्यादा वोट पाने की होड़ में संजय अग्रवाल से पीछे कर देंगे । इसी बात को ध्यान में रखते हुए अतुल गुप्ता ने कहीं कहीं पंकज त्यागी को संजय अग्रवाल के डमी उम्मीदवार के रूप में भी प्रचारित किया । असल में, वह संजय-ग्रंथि से इस कदर ग्रस्त हो गए हैं कि अपनी खिलाफत करता हर व्यक्ति उन्हें संजय अग्रवाल का 'आदमी' लगता है । नॉर्दर्न रीजन में सबसे ज्यादा वोट पाने की होड़ में अतुल गुप्ता को संजय अग्रवाल से मिलती दिख रही चुनौती ने रीजन के चुनावी परिदृश्य को खासा रोमांचक बना दिया है ।