Thursday, October 29, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनाव में राजस्थान में उम्मीदवारों की चुनावी तैयारियों को देखते हुए फिलवक्त गौतम शर्मा, रोहित अग्रवाल व देवेंद्र सोमानी का पलड़ा भारी नजर आ रहा है

जयपुर । गौतम शर्मा, रोहित अग्रवाल व देवेंद्र सोमानी ने सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी अपनी उम्मीदवारी को लेकर जो गंभीरता दिखाई है - उसके चलते प्रमोद बूब, रोहित माहेश्वरी, सचिन जैन व निर्मल सोनी के लिए चुनावी मुकाबला चुनौतीपूर्ण हो गया दिख रहा है । यह सातों इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल की दस सीटों के लिए होने वाले चुनाव में राजस्थान के उम्मीदवार हैं - जिनमें देवेंद्र सोमानी व निर्मल सोनी उदयपुर के हैं तथा बाकी पाँचों जयपुर के हैं । यह छोटी सी जानकारी इसलिए उल्लेखनीय है क्योंकि सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल में अभी जो नौ सदस्य हैं, उनमें तीन राजस्थान का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं; और इन तीन में से दो जयपुर के हैं तथा एक जयपुर के बाहर के शहर के हैं । दरअसल इसी तर्ज पर उम्मीद की जा रही है कि इस बार भी जयपुर के दो और जयपुर के बाहर के एक उम्मीदवार तो चुनाव जीत ही जायेंगे । सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल में इस बार जो एक सीट बढ़ी है, उसके जयपुर को मिल जाने का अनुमान भी लगाया जा रहा है । हालाँकि कुछेक लोगों की खामख्याली यह भी है कि रीजनल काउंसिल में इस बार राजस्थान को चार सीटें मिल जायेंगी और यह चारों सीटें जयपुर के हिस्से में आयेंगी । जयपुर के अलावा उदयपुर से चूँकि दो उम्मीदवार हैं, इसलिए जयपुर के कुछेक लोगों को लगता है कि वह दोनों एक दूसरे को ही मार-काट लेंगे, और इसका फायदा जयपुर को मिलेगा । इस तर्क का जबाव लेकिन इसी तर्ज के तर्क से मिल रहा है कि जयपुर में भी तो पाँच उम्मीदवार हैं, क्या वहाँ मार-काट नहीं मचेगी - और उस मार-काट का फायदा उदयपुर के उम्मीदवारों को क्यों नहीं मिलेगा ?
गौर करने वाला तथ्य यह है कि चुनावी नजरिए से सकारात्मक समझी जाने वाली बातों के आधार पर राजस्थान के सातों उम्मीदवारों का पलड़ा भारी नजर आ रहा है और कोई भी किसी दूसरे से कम साबित होता नहीं दिख रहा है : प्रमोद बूब वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट होने के नाते जयपुर में एक जाना-पहचाना चेहरा हैं; गौतम शर्मा ने नेटवर्किंग अच्छी जमाई हुई है; रोहित माहेश्वरी ने राजस्थान के बाहर की ब्रांचेज में अपनी अच्छी पकड़ बनाई हुई है; रोहित अग्रवाल की युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स में अच्छी पैठ है; सचिन जैन को रीजन के जैन वोट मिलने का भरोसा है; देवेंद्र सोमानी ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के हितों के लिए संघर्ष करने को लेकर पीछे जिस तरह की सक्रियता दिखाई, उसके चलते रीजन में उन्होंने संघर्षशील व्यक्तित्व की पहचान बनाई; निर्मल सोनी पिछले चुनाव में हालाँकि कामयाब नहीं हो पाए थे, किंतु उनका प्रदर्शन बहुत बुरा नहीं था और पहली वरीयता के वोटों की गिनती में वह ग्यारहवें नंबर पर थे तथा नितीश अग्रवाल से आगे थे । जाहिर है कि आधार-क्षेत्र के आकलन के अनुसार राजस्थान के सभी सातों उम्मीदवार मजबूत दिखाई दे रहे हैं - लेकिन समस्या की बात यह है कि सातों को तो जीतना नहीं है; इसलिए मुसीबत दरअसल यहाँ से शुरू होती है । कोई भी चुनाव सिर्फ समर्थन के आधार-क्षेत्र की मजबूती के भरोसे नहीं जीता जा सकता है ! चुनाव वास्तव में एक प्रबंधन-कला भी है । चुनाव में जीतता वह है जो अपने समर्थन-आधार को व्यावहारिक तरीके से मैनेज कर पाता है । 
पिछली बार अशोक ताम्बी चुनावी प्रबंधन में कौशल न दिखा पाने के कारण ही जीतते-जीतते हार गए थे; और आशीष व्यास जीतने की तरफ बढ़ते बढ़ते हार की तरफ निकल गए । गौर करने वाला तथ्य यह है कि पहली वरीयता के वोटों की गिनती में अशोक ताम्बी सातवें नंबर पर तथा आशीष व्यास नौवें नंबर पर थे, लेकिन फिर भी काउंसिल में नहीं जा पाए । राजस्थान के इस बार के जो उम्मीदवार हैं, वह अशोक ताम्बी व आशीष व्यास के साथ पिछली बार जो हुआ - चाहें तो उससे सबक ले सकते हैं । पिछली बार के चुनावी नतीजों का विश्लेषण यदि करें, तो एक मजेदार तथ्य यह पता चलता है कि एक नितीश अग्रवाल को छोड़ कर राजस्थान के बाकी सभी उम्मीदवारों को दूसरी/तीसरी वरीयता के वोटों का टोटा पड़ गया था, और इस कारण उनकी रैंकिंग पीछे गई । पहली वरीयता के वोटों की गिनती में तीसरे नंबर पर रहने वाले सीएल यादव फाइनली पाँचवें नंबर पर रहे; मनीष बारोद छठे नंबर से पहले तो सातवें नंबर पर खिसके, लेकिन अंततः अपने छठे नंबर को बचाए रखने में कामयाब रहे; अशोक ताम्बी और आशीष व्यास का हाल पहले ही बताया जा चुका है; निर्मल सोनी के लिए भी अपने ग्यारहवें नंबर को बचाये रख पाना संभव नहीं हुआ । एक अकेले नितीश अग्रवाल ने अपनी स्थिति सुधारी थी और वह बारहवें नंबर से आठवें नंबर पर पहुँचे थे । यह नतीजा बताता है कि राजस्थान के उम्मीदवार दूसरी/तीसरी वरीयता के वोटों का फायदा उठाने की व्यवस्था करने में पिछड़ जाते हैं । पिछली बार जयपुर के बाहर के शहरों के उम्मीदवार के रूप में नितीश अग्रवाल, आशीष व्यास और निर्मल सोनी का जो प्रदर्शन रहा, वह जयपुर के उम्मीदवारों की उम्मीदों पर पानी फेरने का काम करता है । 
समझा जाता है कि जयपुर के बाहर के शहरों के तीनों उम्मीदवारों का जो प्रदर्शन रहा था, उसमें जयपुर-विरोधी भावना की महत्वपूर्ण भूमिका थी । उल्लेखनीय है कि राजस्थान में कई ब्रांचेज में लोगों को इस बात पर बड़ी चिढ़ है कि इंस्टीट्यूट की दोनों काउंसिल में सारी सीटें जयपुर के लोग ही हथिया लेना चाहते हैं । इसी चिढ़ के कारण जयपुर के उम्मीदवारों के लिए राजस्थान की दूसरी ब्रांचेज में वोट जुटाना मुश्किल हो जाता है; और यही बात जयपुर के बाहर के उम्मीदवारों के लिए वरदान बन जाती है । देवेंद्र सोमानी ने इसी स्थिति का फायदा उठाने की अच्छी तैयारी दिखाई है, और इसी बिना पर उनकी चुनावी स्थिति को मजबूत देखा/पहचाना जा रहा है । उनकी स्थिति को खतरा बस निर्मल सोनी की तरफ से देखा जा रहा है । दोनों चूँकि एक ही शहर के हैं, और निर्मल सोनी का पिछली बार का प्रदर्शन अपेक्षाकृत ठीक ही रहा था - इसलिए कुछेक लोगों को लगता है कि देवेंद्र सोमानी के लिए मामला आसान नहीं होगा । किंतु उदयपुर में लोगों का मानना/कहना है कि निर्मल सोनी को पिछली बार जो वोट मिले थे, वह इसलिए मिले थे क्योंकि पिछली बार वह पूरे रीजन में अकेले माहेश्वरी थे; इस बार राजस्थान में ही चार माहेश्वरी हैं । दावा किया जा रहा है कि उदयपुर में ही निर्मल सोनी को खास समर्थन नहीं है; और उदयपुर में इस बार उनकी उम्मीदवारी के पीछे उन लोगों को देखा/पहचाना जा रहा है, जो पिछली बार उनके खिलाफ थे - और जो इस बार सिर्फ उनके साथ इसलिए हैं क्योंकि उन्हें देवेंद्र सोमानी का विरोध करने के लिए कोई 'मोहरा' चाहिए । देवेंद्र सोमानी ने निर्मल सोनी की तरफ से मिलने वाली चुनौती को पहचाना हुआ है, और उससे निपटने की रणनीति के तहत राजस्थान की विभिन्न ब्रांचेज के साथ-साथ मध्य प्रदेश की इंदौर ब्रांच में तथा बिहार की कुछेक ब्रांचेज में समर्थन जुटाने की कोशिशें की हैं । देवेंद्र सोमानी ने अपने पक्ष में 'हवा' तो अच्छी बनाई है, लेकिन फिर भी उनकी सफलता इस बात पर निर्भर होगी कि अपने समर्थन-आधार को वह व्यवस्थित कैसे करते हैं । 
जयपुर के उम्मीदवारों में गौतम शर्मा और रोहित अग्रवाल अपनी चुनावी तैयारी को गंभीरता से लेते दिख रहे हैं - इसलिए उनकी चुनावी स्थिति को बाकी उम्मीदवारों की तुलना में फिलवक्त बेहतर देखा/पहचाना जा रहा है । जयपुर में कई लोगों का हालाँकि यह भी मानना/कहना है कि जयपुर के दूसरे उम्मीदवारों का भी समर्थन-आधार चूँकि अच्छा है, इसलिए यदि वह अपनी अपनी चुनावी तैयारियों को लेकर वास्तव में गंभीर हो जाते हैं - तब फिर गौतम शर्मा व रोहित अग्रवाल के लिए मामला उतना आसान शायद नहीं रह जायेगा, जितना आसान वह अभी दिख रहा है । सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनाव के संदर्भ में राजस्थान का चुनावी परिदृश्य इसलिए दिलचस्प है क्योंकि यहाँ सीन बहुत कुछ स्पष्ट होने के बावजूद अभी भी पूरी तरह सुनिश्चित नहीं माना/कहा जा सकता है ।