Tuesday, October 13, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए नीलेश गुप्ता की उम्मीदवारी के गंभीर रूप लेते ही इंदौर में विकास जैन खेमा विजेश खंडेलवाल की उम्मीदवारी के झंडे को छोड़ने के लिए मजबूर हुआ

इंदौर । नीलेश गुप्ता को रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी को गंभीरता से लेते देख इंदौर में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों को अपने अपने समीकरण फिर से बैठाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है । इसका कारण यह है कि नीलेश गुप्ता पिछले दिनों जब अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटते दिख रहे थे, तब इंदौर में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति का समीकरण बिलकुल अलग था; किंतु अब जब नीलेश गुप्ता अपनी उम्मीदवारी के साथ न सिर्फ वापस लौट आए हैं, बल्कि उन्होंने अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम भी जोरशोर से शुरू कर दिया है - तो इंदौर में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के समीकरण पूरी तरह उलट पलट गए हैं । मजे की बात यह हुई है कि रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत नीलेश गुप्ता की उम्मीदवारी के गंभीर रूप लेते ही सबसे ज्यादा असर सेंट्रल काउंसिल के उम्मीदवार विकास जैन के खेमे पर पड़ा है । विकास जैन खेमे के लोगों ने पहले इंदौर में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति पर अपना कब्जा जमाने के उद्देश्य से रीजनल काउंसिल के लिए विजेश जैन की उम्मीदवारी का झंडा भी उठा लिया था; किंतु नीलेश गुप्ता की उम्मीदवारी के गंभीर रूप लेते ही वह विजेश खंडेलवाल की उम्मीदवारी का झंडा छोड़ देने के लिए मजबूर हुए हैं । बदले हालात में विकास जैन खेमे के लोगों ने रीजनल काउंसिल की राजनीति में पड़ने की बजाए सेंट्रल काउंसिल के लिए विकास जैन की उम्मीदवारी की फिक्र करने की जरूरत ज्यादा समझी है । 
विकास जैन खेमे के लोगों ने दरअसल चर्चिल जैन की उम्मीदवारी को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया था; जिसके चलते उन्होंने सेंट्रल काउंसिल के साथ साथ रीजनल काउंसिल की राजनीति पर भी कब्जा करने की नीयत से विजेश खंडेलवाल की उम्मीदवारी का जिम्मा भी अपने हाथों में ले लिया था । इंदौर ब्रांच की पिछले टर्म की तीन वर्षीय कमेटी में विकास जैन और विजेश खंडेलवाल साथ साथ थे, तथा कई एक कामों में दोनों की मिलीभगत भी थी - इस नाते दोनों के बीच एक तार जुड़ा हुआ था ही । विजेश जैन इंदौर ब्रांच के चुनाव ही मुश्किल से जीतते थे और वहाँ चेयरमैन भी वह तीसरे टर्म में बन सके थे; इस बात को ध्यान में रखते हुए रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत उनकी उम्मीदवारी को कोई भी गंभीरता से लेता हुआ नहीं दिख रहा था । इंदौर में रीजनल काउंसिल के दोनों उम्मीदवारों - चर्चिल जैन और विजेश खंडेलवाल की खस्ता हालत की चर्चा बाहर तक थी; जिसका नतीजा था कि यहाँ वोट जुटाने के लिए जयपुर के सचिन जैन, रतलाम के प्रमोद नाहर तथा उज्जैन के शरद जैन तक ने घात लगाना शुरू कर दिया था । ऐसे में विकास जैन और उनके संगी-साथियों ने सोचा कि वह यदि प्रयास करेंगे तो संभव है कि वह विजेश खंडेलवाल को जितवा देंगे । यही सोच कर उन्होंने विजेश खंडेलवाल की उम्मीदवारी का जिम्मा ले लिया । यह जिम्मा लेने के पीछे उनका एक उद्देश्य यह भी बना कि इसके जरिए उन्हें इंदौर में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति की चाबी पूरी तरह अपने हाथ में आती हुई दिखाई दी । 
नीलेश गुप्ता की उम्मीदवारी में लेकिन दोबारा से पैदा हुई गर्मी ने विकास जैन और उनके संगी-साथियों की इस योजना पर पानी फेर दिया है । इंदौर ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी में सदस्य के रूप में तथा चेयरमैन के रूप में नीलेश गुप्ता की जैसी सक्रियता रही, और विभिन्न उपलब्धियों के साथ उनकी जैसी पहचान व प्रतिष्ठा बनी - उसे देखते/समझते हुए उन्हें एक मजबूत उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । अपने स्वभाव और अपनी सक्रियता से नीलेश गुप्ता ने सिर्फ इंदौर में ही पहचान व प्रतिष्ठा अर्जित नहीं की है, बल्कि अन्य कुछेक ब्रांचेज में भी अपनी जगह बनाई है । कोटा से चार्टर्ड एकाउंटेंसी की पढ़ाई करने तथा अपने प्रोफेशनल जीवन के शुरू के कुछेक वर्ष वहाँ व्यतीत करने के कारण उनका कोटा व राजस्थान के लोगों के साथ भी भावनात्मक रिश्ता है । इस सब के संदर्भ में नीलेश गुप्ता की उम्मीदवारी का वजन काफी बढ़ा दिख रहा है । दरअसल इसीलिए नीलेश गुप्ता की उम्मीदवारी के गंभीर रूप लेते ही इंदौर में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के समीकरण पूरी तरह बदल गए । ऐसे में, विकास जैन तथा उनके संगी-साथियों को विजेश खंडेलवाल की उम्मीदवारी के झंडे को पकड़े रहने में खतरा दिखा । खतरा यह कि तब नीलेश गुप्ता को समर्थन देने वाले लोग सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में विकास जैन का विरोध करेंगे । नीलेश गुप्ता का समर्थन आधार चूँकि खासा बड़ा है, इसलिए विकास जैन व उनके संगी-साथियों को लगा कि विजेश खंडेलवाल के चक्कर में वह अपनी उम्मीदवारी को खतरे में क्यों डालें ? लिहाजा उन्होंने विजेश खंडेलवाल की उम्मीदवारी का खुला समर्थन करने से हाथ खींच लिया । 
विकास जैन व उनके संगी-साथियों से झटका मिलने के कारण विजेश खंडेलवाल की उम्मीदवारी के सामने गंभीर संकट तो पैदा हो गया है, जिसे उनके समर्थक अभी इस तर्क के जरिए झुठलाने का प्रयास कर रहे हैं कि नीलेश गुप्ता और चर्चिल जैन एक ही खेमे के उम्मीदवार होने के कारण एक-दूसरे के वोटों को ही काटेंगे - और इस तरह नीलेश गुप्ता की उम्मीदवारी के पुनः सक्रिय होने से विजेश खंडेलवाल के लिए चुनाव और आसान हो गया है, जिसके कारण उन्हें विकास जैन व उनके संगी-साथियों के समर्थन की ज्यादा जरूरत रह भी नहीं गई है । दूसरे लोगों का कहना किंतु यह है कि किताबी रूप में तो यह तर्क अच्छा दिखता है, लेकिन व्यावहारिक रूप में इस तर्क का कोई मतलब नहीं है । यह सच है कि ब्रांच के पिछले चुनाव में चर्चिल जैन ने दोस्त होने के नाते नीलेश गुप्ता का साथ दिया था; लेकिन उनकी दोस्ती चुनावी संदर्भ में समर्थक और उम्मीदवार के रूप में विभक्त हुई थी । उम्मीदवार के रूप में नीलेश गुप्ता का साथ तो बहुत से लोगों ने दिया था - जिनमें चर्चिल जैन भी एक थे । ऐसे में चर्चिल जैन अब उनकी बराबरी पर कैसे आ सकते हैं ? जाहिर है कि चर्चिल जैन की उम्मीदवारी नीलेश गुप्ता के लिए कोई समस्या नहीं बनेगी; वह यदि समस्या बनेगी भी तो विजेश खंडेलवाल के लिए - विकास जैन के मार्फत जो जैन वोट विजेश खंडेलवाल को मिल सकते होंगे, चर्चिल जैन उन्हें अपनी तरफ खींच सकते हैं । मजे की बात यह है कि चर्चिल जैन की उम्मीदवारी को कोई भी पक्ष गंभीरता से नहीं ले रहा है, और दोनों पक्षों को ही लग रहा है कि इंदौर में वास्तव में दो ही उम्मीदवार हैं । नीलेश गुप्ता की उम्मीदवारी का पलड़ा वैसे भी भारी दिख रहा था, जिसके 'बोझ' को महसूस करते हुए विकास जैन व उनके संगी-साथियों ने विजेश खंडेलवाल की उम्मीदवारी के समर्थन से हाथ खींच कर और भारी बना दिया है । विकास जैन व उनके संगी-साथियों ने अपनी उम्मीदवारी को बचाने के लिए विजेश खंडेलवाल की उम्मीदवारी को जिस तरह से बीच रास्ते पर छोड़ दिया है, उससे विजेश खंडेलवाल के लिए मुसीबत तो पैदा हुई ही है - लेकिन इंदौर का चुनावी परिदृश्य भी खासा दिलचस्प हो गया है ।